धर्मांतरण पर भगवा परिवार को केंद्र का झटका, धर्मांतरण के खिलाफ कानून बनाने की मांग पर भगवा परिवार को असमर्थता जताई
धर्मांतरण के खिलाफ कानून बनाने की मांग पर भगवा
परिवार को करारा झटका लगा है। कानून मंत्रालय ने संविधान के अनुच्छेद 25 का
हवाला देते हुए गृह मंत्रालय से असमर्थता जताई है।कानून मंत्रालय
की दलील है कि धर्मांतरण के खिलाफ कानून संभव नहीं है। धर्मांतरण के खिलाफ
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश में लागू कानून को विधि मंत्रालय
ने महज एक नियमावली माना है।संघ के घर वापसी अभियान पर विवाद के
बाद केंद्र सरकार के आला मंत्रियों से लेकर भगवा परिवार के तमाम नेताओं ने
धर्मांतरण के खिलाफ कानून बनाने की चुनौती सियासी दलों को दी थी।
भगवा कुनबे से उठी थी कानून की मांग
सूत्र बताते हैं कि संघ परिवार के दबाव में गृह
मंत्रालय ने बीते माह कानून मंत्रालय से धर्मांतरण के खिलाफ कानून पर राय
मांगी थी। मगर कानून मंत्रालय ने गृह मंत्रालय से नए कानून पर असमर्थता
जताई है।कानून मंत्रालय की दलील है कि धर्मांतरण कानून बनाने से
संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन होगा, जो भारत के हर नागरिक को इसकी
आजादी देता है कि वह किसी भी धर्म में विश्वास, पालन और उसका प्रचार-प्रसार
करे।
कानून मंत्रालय के रुख पर संघ के प्रांत प्रचार प्रमुख राजीव तूली का कहना है कि ऐसी कोई दिक्कत नहीं है। अगर है तो कानून मंत्रालय को इसका रास्ता निकालना चाहिए। हमने सदैव सर्व सहमति बनाकर संविधान में संशोधन की बात कही है।वहीं सुप्रीम कोर्ट के वकील संजय हेगड़े का कहना है कि धर्मांतरण के खिलाफ कानून संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन करता है। धर्मांतरण के खिलाफ मध्य प्रदेश का कानून धर्मांतरण पर पाबंदी नहीं बल्कि धर्मांतरण के कायदे बताता है। ऐसे कानून की पहल पहले भी हुई थी मगर सर्वोच्च न्यायालय ने उसे नकार दिया था।
कानून मंत्रालय के रुख पर संघ के प्रांत प्रचार प्रमुख राजीव तूली का कहना है कि ऐसी कोई दिक्कत नहीं है। अगर है तो कानून मंत्रालय को इसका रास्ता निकालना चाहिए। हमने सदैव सर्व सहमति बनाकर संविधान में संशोधन की बात कही है।वहीं सुप्रीम कोर्ट के वकील संजय हेगड़े का कहना है कि धर्मांतरण के खिलाफ कानून संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन करता है। धर्मांतरण के खिलाफ मध्य प्रदेश का कानून धर्मांतरण पर पाबंदी नहीं बल्कि धर्मांतरण के कायदे बताता है। ऐसे कानून की पहल पहले भी हुई थी मगर सर्वोच्च न्यायालय ने उसे नकार दिया था।
ReplyDeleteThe post is very much interesting.
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