Pages

Thursday, 6 March 2014

पाकिस्तान: एक थी फिज़ा (23 साल की फ़िज़ा ने कुछ दिन पहले ही वकालत की पढ़ाई पूरी की थी- जिंदगी आतंकवाद की भेंट:3 मार्च को इस्लामाबाद की अदालत में एक हमला हुआ था जिसमें उनकी मौत)

पाकिस्तान: एक थी फिज़ा (23 साल की फ़िज़ा ने कुछ दिन पहले ही वकालत की पढ़ाई पूरी की थी- जिंदगी आतंकवाद की भेंट:3 मार्च को इस्लामाबाद की अदालत में एक हमला हुआ था जिसमें उनकी मौत)

 शुक्रवार, 7 मार्च, 2014 को 02:45 IST तक के समाचार

पाकिस्तान की वकील फिजा
पाकिस्तान की युवा वकील फ़िज़ा मलिक पाकिस्तान के संघर्ष का नया चेहरा बन गई हैं. दो दिन पहले ही 3 मार्च को इस्लामाबाद की अदालत में एक हमला हुआ था जिसमें उनकी मौत हो गई थी.
ऊर्दू संवाददाता के मुताबिक़ फिज़ा की मौत के बाद सोशल नेटवर्क और मीडिया पर दुख का सैलाब उमड़ पड़ा है.
पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद की अदालत में किए गए क्लिक करें हमले में मारी गई फ़िज़ा मलिक के भाई कहते हैं, "काश उसने मेरी सुनी होती और मेरे साथ दुबई चली आई होती. अगर उसने ऐसा किया होता तो आज हमें ये दिन नहीं देखना पड़ता."
23 साल की फ़िज़ा ने कुछ दिन पहले ही वकालत की पढ़ाई पूरी की थी.

देश से मोहब्बत

हादसे वाले दिन फ़िज़ा मलिक क्लिक करें इस्लामाबाद के सेक्टर एफ-8 स्थित कचहरी में आपराधिक केस की छानबीन में लगी हुई थी. उसी समय हमलावरों ने परिसर में फायरिंग की और देसी बम फेंके.
भरी हुई आंखों से फ़िज़ा की मां ने बताया, "उसे पाकिस्तान से इस क़दर मोहब्बत थी कि किसी और देश में बसने का ख्याल उसे दिल में कभी नहीं आया. मगर वो क्या जानती थी कि जिस देश पर वह मरती है एक दिन उसी देश में उसकी जान चली जाएगी?"
मां ने दुखी स्वर में कहा, "मेरी फ़िज़ा बहुत खूबसूरत थी. उसे इतनी जल्दी दुनिया छोड़ कर नहीं जाना था."
मलिक ने ब्रिटेन की नॉटिंघम विश्वविद्यालय के पत्राचार शिक्षण कार्यक्रम के तहत इस्लामाबाद स्कूल ऑफ लॉ से पिछले साल ही स्नातक किया था. वकालत शुरू किए हुए उन्हें चंद रोज़ ही हुए थे.
वे दो भाइयों की इकलौती बहन थी. उनके भाई दुबई में नौकरी करते थे. उनके एक भाई असद फ़िज़ा की मौत से काफी व्यथित थे.
असद ने फ़िज़ा के साथ फोन पर हुई अंतिम बातचीत याद करते हुए कहा, "आतंकवाद की आग ने मेरी बहन की जिंदगी राख कर दी. अब हर भाई को यही अंदेशा रहेगा कि घर के बाहर उसकी बहन सुरक्षित है या नहीं.

आतंकवाद की भेंट

इस्लामाबाद अदालत हमला
फ़िज़ा के पिता ने  बताया कि वह सबकी बेहद परवाह करती थीं. उन्होंने कहा, "हमने अपनी क्लिक करें बच्ची खो दी. यदि हम अब भी आतंकवाद के खिलाफ़ उठ खड़े नहीं होते, तो उसकी कुर्बानी बेकार जाएगी. क्या पाकिस्तान सरकार के लिए यह कुर्बानी कोई मायने रखती है?"
हमले में फ़िज़ा मलिक की एक आंख की रोशनी चली गई थी. अमरीका के अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था.
उनके दोस्त अहमद ने बताया कि वह बेहद महत्वाकांक्षी महिला थीं. अपने सपनों को लेकर वे इतनी गंभीर थी कि एक आंख से दिखाई नहीं दिए जाने के बावजूद भी वे देश में रहकर सबसे अच्छा वकील बनने के अपने सपने से पीछे नहीं हटी थीं.
अदालत परिसर में हुए हमले में न्यायाधीश और कुछ वकीलों सहित कम से कम 11 लोग मारे गए थे और 20 से ज्यादा घायल हुए थे.

माडिया में प्रतिक्रिया

"उसे पाकिस्तान से इस क़दर मोहब्बत थी कि किसी और देश में बसने का ख्याल उसे दिल में कभी नहीं आया. मगर वो क्या जानती थी कि जिस देश पर वह मरती है एक दिन उसी देश में उसकी जान चली जाएगी?"
फिजा की मां
फ़िज़ा के सहयोगियों और दोस्तों ने उन्हें 'क्लिक करें डान न्यूज वेबसाइट' पर छपे एक लेख में ऊर्जा और क्षमता से भरपूर शख्सियत के रूप में याद किया है.
फ़िज़ा की मौत को पाकिस्तान की मीडिया में अलग अलग तरह से पेश किया.
क्लिक करें एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने हेडलाइन लगाई, "एक जीवन खत्म हो गया."
उनकी मौत की खबर ट्विटर पर भी तेजी से फैली.
मानवाधिकार कार्यकर्ता क्लिक करें अलीजह इकबाल हैदर ने ट्वीट किया, "हमारे बच्चे हमसे छिन रहे हैं, और हम उसे भूलकर आगे बढ़ जाते हैं. कुछ भी तो नहीं बदलता."
क्लिक करें नज़राना युसुफजई ने फ़िज़ा को श्रृद्धांजलि देते हुए ट्वीट किया, "उन सबकी आत्मा को शांति मिले, जो अब हमारे बीच नहीं हैं."

No comments:

Post a Comment