UTTARAKHAND FLOOD 2013

UTTARAKHAND KEDARNATH FLOOD 2013


Kedarnath Flood 2013 #RTI: केदारनाथ राहत कार्यों में सामने आए करोड़ों के घोटाले!.केदारनाथ में लोग मरते रहे, और अधिकारी मौज करते रहे!.होटलों में रहने का बिल एक दिन का 7-7 हजार रुप; एक दिन में 900 रुपए का चिकन- मटन खा गए...#Cops #corruption #Fake #Bills #kedarnath #Natural #Disaster #Police 

30 MAY 2015


2013 उत्तराखंड त्रासदीः चिकन, मटन और गुलाबजामुन उड़ा रहे थे राहत कार्य में जुटे अधिकारी



नई दिल्ली। केदारनाथ त्रासदी के बाद चलाए गए राहत कार्यों में बड़े घोटाले का खुलासा एक आरटीआई से हुआ है। ये सच सामने आया है कि हादसे के बाद यहां ड्यूटी पर लगाए गए एक-एक अधिकारी एक दिन में 900 रुपए का खाना खा गए, दिखाए गए खर्च के मुताबिक कोई दिन ऐसा नहीं था जब अधिकारियों ने चिकन- मटन खाने का बिल ना लगाया हो। होटलों में रहने का बिल एक दिन का 7-7 हजार रुपए का है।
केदारनाथ में जून 2013 में आई आपदा अफसरों के लिए कमाई का जरिया बन गई। लोग मरते रहे, मदद के लिए चीखते रहे लेकिन अफसर मौज करते रहे। लोग एक टुकड़ा रोटी और बूंद- बूंद पानी के लिए तरस रहे थे। तमाम लोग भूखे मर गए, किसी के सिर पर छत नहीं थी तो कोई ठंड से मर गया। लेकिन मदद के लिए भेजे गए अफसर इस त्रासदी को पिकनिक समझ बैठे थे।
केदारनाथ में लोग मरते रहे, और अधिकारी मौज करते रहे!
अधिकारियों को लग रहा था कि मौज मस्ती का वक्त आ गया है और हुआ भी यही। जिस आपदा के लिए अफसरों को पैसा दिया गया वो अफसर इस पैसे से नॉनवेज खा रहे थे। होटलों में आराम फरमा रहे थे। हैरानी की बात ये है कि जिस पहाड़ पर स्कूटर से चढ़ना तो दूर की बात सोचना भी नामुमकिन है उस पहाड़ पर अधिकारी स्कूटर से लोगों को राहत पहुंचा रहे थे। जी हां यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है आरटीआई के जरिए।
आरटीआई से ये भी खुलासा हुआ है कि राहत कार्यों में इस्तेमाल एक हेलीकॉप्टर का बिल 90 लाख का है और सबसे ज्यादा अचंभे वाली बात है कि डीजल के जो बिल दिए गए उनमें दर्ज वाहनों के नंबर, स्कूटर के नंबर निकले जबकि स्कूटरों में डीजल भरवाया नहीं जा सकता और पहाड़ों पर उससे राहत सामग्री पहुंचाई नहीं जा सकती। राज्य सूचना आयोग ने इस मामले में करोड़ों के घपले की आशंका जाहिर की है।
 

2013 उत्तराखंड त्रासदीः चिकन, मटन और गुलाबजामुन उड़ा रहे थे राहत कार्य में जुटे अधिकारी

उत्तराखंड में साल 2013 में आई विनाशकारी बाढ़ में फंसे लाखों लोगों को जहां पीने के लिए पानी तक नहीं मिल रहा था वहीं बाढ़ राहत कार्यों की निगरानी में लगे राज्य सरकार के अधिकारियों ने रोजाना हजारों रुपये का चिकन, मटन, दूध, पनीर और गुलाब जामुन उड़ाए.
 
ऐसे हुआ 'गड़बड़ झाला...' बाढ़ पीड़ित दाने दाने को मोहताज थे और ये अधिकारी होटलों में बैठकर मटन चाप, चिकन, दूध, पनीर और गुलाम जामुन खाते हुए राहत और बचाव कार्यों की निगरानी में व्यस्त थे. आधा लीटर दूध के लिए 194 रुपये और दोपहिया वाहनों के लिए डीजल की आपूर्ति, होटल में रहने के लिए रोज 7000 रुपये का क्लेम करने, एक ही व्यक्ति को दो बार राहत का भुगतान, लगातार तीन दिन तक एक ही दुकान से 1800 रेनकोट की खरीद और ईंधन खरीद के लिए एक हेलिकॉप्टर कंपनी को 98 लाख रुपये का भुगतान करने जैसी बड़ी बड़ी वित्तीय गड़बड़ियों का खुलासा एक आरटीआई आवेदन के जरिए हुआ है.
 
सीबीआई जांच की उठी मांग उत्तराखंड के भीषण प्राकृतिक आपदा की चपेट में रहने के दौरान हुई इन कथित अनियमितताओं का संज्ञान लेते हुए राज्य के सूचना आयुक्त अनिल शर्मा ने सीबीआई जांच की सिफारिश की है. शिकायतकर्ता और नेशनल एक्शन फोरम फॉर सोशल जस्टिस के सदस्य भूपेंद्र कुमार की शिकायत पर सुनवाई करते हुए जारी 12 पन्नों के आदेश में शर्मा ने आरटीआई आवेदनों के जवाब में विभिन्न जिलों द्वारा उपलब्ध कराए गए बिलों का संज्ञान लिया है. इन आरटीआई आवेदनों में प्राकृतिक आपदा के दौरान राहत कार्यो में खर्च किए गए धन का ब्यौरा मांगा गया था. भीषण बाढ़ में तीन हजार लोग मारे गए थे और बहुत से अभी भी लापता हैं.
अधिकारियों द्वारा उपलब्ध करवाए गए रिकॉर्ड के मुताबिक कुछ राहत कार्य 28 दिंसबर, 2013 को शुरू होकर 16 नवंबर, 2013 को समाप्त हो गए. पिथौरागढ़ में कुछ राहत कार्य 22 जनवरी, 2013 को शुरू हुए थे यानी बाढ़ आने से छह माह पहले ही. बाढ़ 16 जून, 2013 को आयी थी. शर्मा ने अपने आदेश में कहा, ‘अपीलकर्ता द्वारा पेश रिकॉर्ड्स से आयोग प्रथम दृष्टया मानता है कि शिकायतकर्ता की अपील और अन्य दस्तावेज उत्तराखंड के मुख्य सचिव के पास इस निर्देश के साथ भेजे जाएं कि ये बातें मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाई जाएं जिससे वह इन आरोपों पर सीबीआई जांच शुरू करने पर निर्णय ले सकें.’
 
एक दिन के खाने का खर्च 900 रुपये
अपनी आरटीआई याचिकाओं पर जवाब में अधिकारियों से मिले 200 से अधिक पृष्ठों के रिकॉर्ड का हवाला देते हुए कुमार ने एसआईसी में सुनवाई के दौरान दावा किया कि एक ओर जहां लोग खुले आसमान के नीचे भूख से बिलबिला रहे थे तो वहीं बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित रूद्रप्रयाग जिले में अधिकारियों ने नाश्ते के लिए 250 रुपये, लंच के लिए 300 रुपये और डिनर के लिए 350 रुपये के क्लेम पेश किए. यानी रोजाना 900 रुपये केवल खाने पर.
 
'बेहिसाब' खर्च पर उठे सवाल
इन अधिकारियों ने राहत कार्यों की निगरानी के लिए होटल प्रवास के दौरान प्रति रात्रि 6750 रुपये के दावे भी पेश किए. कुमार ने इस ‘बेहिसाब खर्च’ पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि प्रति अधिकारी प्रति दिन करीब 7000 रुपए का खर्च आया. उन्होंने सुनवाई के दौरान रिकॉर्ड का हवाला देते हुए कहा कि उन वाहनों के लिए 30 लीटर और 15 लीटर डीजल के बिल दिए गए हैं जिन पर स्कूटर, मोटरसाइकिल और तिपहिए वाहनों के नंबर थे जबकि ये वाहन पेट्रोल से चलते हैं और इनके ईंधन के टैंक इतने बड़े नहीं होते जितनी मात्रा बिलों में दर्शाई गई.
 
बाढ़ आने से पहले ही बुक कराए गए होटल!
कुमार ने यह दर्शाने के लिए भी रिकॉर्ड पेश किए कि चार दिनों के लिए 98 लाख रुपये का ईंधन बिल हेलीकॉप्टर कंपनी के लिए मंजूर किया गया. उन्होंने कहा, ‘ऐसे भी उदाहरण हैं जब अधिकारियों के होटल में ठहरने की अवधि 16 जून, 2013 को बाढ़ आने से पहले के रूप में दर्शाई गई है. आधा लीटर दूध की कीमत 194 रुपये दिखाई गई है जबकि बकरे का गोश्त, मुर्गी का मांस, अंडे, गुलाब जामुन जैसी चीजें भी बाजार दाम से बहुत ऊंची दरों पर खरीदी दिखाई गई हैं.’
 
2013 uttarakhand floods rti reveals officers on relief duty relished mutton gulabjamuns Keyword : Kedarnath, 2013 Uttarakhand floods, RTI, reveals officers

 Uttarakhand Government Rescues

Track Updated full status Of uttarakhand government Rescues
_________________________________________________
= Link To Track Updated Rescues:  http://dms.uk.gov.in/ , http://uk.gov.in/ ,   http://164.100.150.41/rescuenrelief/
=Call BSNL toll free 1503 or 09412024365 to find out last active location of BSNL
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Emergency nos: Tehri: 01376-233433 Uttarakhand: 0135-2710334,2710335,2710233 ITBP/control room: 011-24362892,9968383478 Army medical: 18001805558,8009833388Bhupesh Mandal's photo.


























  


































































 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

जो फर्ज के लिए कुर्बान कर गए अपनी जान                                                                        






कई जांबाजों ने महाप्रलय में अपनी जान की परवाह नहीं की. उत्तराखंड के दुर्गम इलाकों में जब हजारों लोग तबाही की चपेट में फंसे थे, सेना के ये जांबाज अपनी जान जोखिम में डालकर उन्हें बचा रहे थे. लेकिन नियति देखिए, एक हादसा होता है और 20 जवानों की जान चली जाती है. उन्हीं शहीदों को देश ने दिया आखिरी सलामी...

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दिल दहला देने वाली है उत्तराखंड में मृतकों की तादाद  3000 के आंकड़े को पार कर सकती है
 देहरादून, 28 जून 2013






उत्तराखंड से जो खबर आ रही है, वो वाकई परेशान करनेवाली है. पुलिस सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि जितने लोगों की मौत की अब तक जानकारी आई है, वो तो बहुत कम है. नई जानकारी के बाद अब इस प्राकृतिक आपदा में मरने वालों की संख्‍या 3000 के आंकड़े को पार कर सकती है.

उत्तराखंड में तबाही का भयंकर सच आ रहा है सामने, रामबाड़ा-गौरीकुंड के बीच पड़े हैं करीब 2500 शव



 
उत्तराखंड से जो खबर आ रही है, वो वाकई परेशान करनेवाली है. पुलिस सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि जितने लोगों की मौत की अब तक जानकारी आई है, वो तो बहुत कम है. खबर मिली है कि रामबाड़ा और गोरीकुंड के बीच अब भी ढाई हजार शव पड़े हैं. पुलिस सूत्रों ने हमें ये भी जानकारी दी है कि इन शवों को पहचान पाना भी मुश्किल है. इस नई जानकारी के बाद अब इस प्राकृतिक आपदा में मरने वालों की संख्‍या 3000 के आंकड़े को पार कर जाएगी. अभी तक इस आपदा में 822 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है. एक्सकैवेटर मशीनों से हटेगा मलबाकेन्द्र सरकार बाढ़ के कहर से गुजरे उत्तराखंड के केदारनाथ से शिलाखंडों और मलबे को हटाने के लिए विमान से विशाल एक्सकैवेटर मशीनें भेजने की योजना बना रही है. बाढ़ प्रभावित राज्य से लौट कर आए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के उपाध्यक्ष एम. शशिधर रेड्डी ने बताया, ‘केदारनाथ में शिलाखंड और भारी मलबा जमा हो गया है और हम मलबा हटाने के लिए विशेष एमआई-26 हेलीकाप्टर से एक्सकैवेटर ले जाने की योजना बना रहे हैं.’ रेड्डी ने पत्रकारों को बताया, ‘हेलीकाप्टरों को उतारने का मुद्दा भी तय किया जा रहा है.’
विमानों से किया जाएगा सर्वेक्षणउन्होंने बताया कि जिन जगहों पर बचाव अभियान चलाया गया है वहां का ‘नेत्र’ जैसे मानवरहित विमानों (यूएवी) से सर्वेक्षण किया जाएगा. उत्तराखंड के ताजा हालात बताते हुए रेड्डी ने प्रभावित गांवों की तादाद और राहत कार्य की नवीनतम स्थिति की जानकारी दी. उन्होंने यह भी बताया कि लोक स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए कौन से कदम उठाए जा रहे हैं. रेड्डी ने बताया, ‘राज्य में कुल 22,000 गांवों में से 2,375 गांव प्रभावित हैं. उनमें से 1,636 को अभी तक जोड़ा जा चुका है जबकि 739 को जोड़ा जाना बाकी है.’
डॉक्‍टरों की टीम तैनातउन्होंने कहा, ‘चिकित्सीय तैयारियों का प्रभार संभाल रही एक टीम स्वास्थ्य मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों के साथ देहरादून में है. न्यूनतम समय में प्रभावित क्षेत्रों में जाने के लिए 50 डाक्टर अभी स्टैंडबाई में हैं. कुछ को अगले 2-3 महीने के लिए रुकना पड़ सकता है क्योंकि हम पुनर्वास देखेंगे.’ रेड्डी ने कहा कि अभी तक कहीं से किसी भी तरह की महामारी फैलने की कोई रिपोर्ट नहीं है. उन्होंने कहा, ‘अभी तक 1,04,095 लोगों को बचाया गया है. लेकिन बद्रीनाथ में अभी 1,400 लोगों को बचाया जाना है.’ रेड्डी ने कहा, ‘तकरीबन 1,000 लोग पिथौरागढ़ में फंसे हैं जो माना जाता है कि मानसरोवर की तरफ जा रहे हैं, लेकिन उनकी स्थिति आपात जैसी नहीं है. हषिर्ल में लोगों को बचाया गया है.’ उन्होंने बताया कि केन्द्रीय गृहमंत्री ने राहत और बचाव अभियान के लिए और हेलीकाप्टरों की सेवा लेने का आदेश दिया है और 105 सैटेलाइट फोन पहले से उपयोग किए जा रहे हैं.
हेलीकॉप्‍टर दुर्घटना के शिकार लोगों के परिजन के लिए पेंशनरेड्डी ने कहा कि दो दिन पहले हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मारे गए लोगों के बारे में उन्होंने केन्द्रीय गृहमंत्री को उनके निकटतम परिजन को भत्तों के साथ विशेष पेंशन देने को कहा है जो नक्सल हमले में मारे गए अर्धसैनिक बलों के जवानों के निकटतम परिजन को मिलने वाली पेंशन जैसी हो. उन्होंने कहा, ‘आपदा में क्षतिग्रस्त हुए 80 प्रतिशत मोबाइल टावर का काम-काज बहाल कर दिया गया है. जहां तक सड़कों का मामला है, सीमा सड़क संगठन को कहा गया है कि जहां सड़क मुमकिन नहीं है वहां खच्चरों का रास्ता बनाया जाए और पैदल-पथ बनाए जाएं ताकि राहत सामग्रियां उस छोर तक ले जाया जाए जहां सड़क मौजूद है.’



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 latest Important News for Uttrakhand Flood Victims

Missing, cremated person(s) details of uttarakhand flashflood disaster can now be found on this website.

http://zipnet.in/
 
Preamble
• The ZIPNet Project
• Member States
Victims
• Missing Children
• Un-identified Children Found
• Missing Persons
• Unidentified Dead Bodies
• Unidentified Persons Found
Vehicles/Mobiles
• Stolen Vehicles
• Unclaim/Seized Vehicles
• Missing Mobiles
  उत्तराखंड आपदा: गर्भवती महिलाएँ- दो ज़िंदगी बचाने की जंग
 मुनसियारी, उत्तराखंड  बुधवार, 31 जुलाई, 2013
 
आपदा के एक महीने बाद भी सड़क संपर्क न होने के चलते कस्बों और गाँवों की गर्भवती महिलाओं पर दोहरी मार पड़ रही है. दो ज़िंदगियां बचाने की जद्दोजहद में वे दुर्गम इलाकों में पैदल चलने को मजबूर हैं.
उत्तराखंड के मुनसियारी क्षेत्र से अब तक कम से कम छह गर्भवती महिलाओं को हेलिकॉप्टर के ज़रिए उन अस्पतालों में पहुंचाया जा चुका है, जहाँ प्रसव की सुविधा है.
इन दुर्गम इलाकों में स्थितियाँ गर्भवती महिलाओं के लिए डराने वाली हैं.

सुकुमा देवी की कहानी

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आठ माह की गर्भवती सुकुमा देवी को हेलिकॉप्टर से बंगापानी से निकाला गया
सड़क संपर्क टूट जाने के चलते प्रसव के समय उनके पास विकल्प है कि या तो घर पर प्रसव कराएं या फिर पहाड़ों पर घंटों लगातार चढ़ते हुए अस्पताल पहुंचें.
मुनसियारी के उप ज़िलाधिकारी अनिल कुमार शुक्ला ने बीबीसी को बताया, “हेलिकॉप्टर के ज़रिए दो गर्भवती महिलाओं को मल्ला जोहार से, एक को गोल्फा, एक को बौना से बाहर लाया गया है. इसी तरह बंगापानी में दो महिलाओं को अस्पताल पहुंचाया गया है.”
अनिल कुमार शुक्ला कहते हैं कि अब चूंकि कहीं-कहीं रास्ता भी खुलने लगा है, तो डॉक्टरों का दल वहाँ जाकर उनकी देखभाल कर रहा है.
जीतेंद्र सिंह स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं जिन्होंने बंगापानी में फँसी एक गर्भवती महिला सुकमा देवी को बाहर निकाला. वह बताते हैं कि सड़क संपर्क न होने के चलते इलाकों तक क्लिक करें पहुंचना बेहद कठिन है.
जीतेंद्र सिंह ने बताया, “दो जुलाई को जब हमारी टीम बंगापानी पहुंची तो गर्भवती सुकुमा देवी की हालत बहुत ख़राब थी. उनके दाहिने पैर में ऊपर से नीचे तक सूजन थी, वह ज़रा भी चलने की हालत में नहीं थीं.”
सुकुमा का गर्भ आठ महीने का था. “तो उनकी गंभीर हालत को देखते हुए उन्हें हेलिकॉप्टर से बाहर निकाला गया. उन्हें पिथौरागढ़ के अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहाँ से उन्हें हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल क्लिक करें ले जाया गया.”

हेलिकॉप्टर का ही भरोसा

उत्तराखंड टूटे रास्ते
दुर्गा उप्रेती, मदकोट के देवी प्रखंड के शिविर में विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की सेहत की देख-रेख करती हैं. इस शिविर में एक गर्भवती महिला है, जिनके प्रसव की तारीख करीब है.
वह कहती हैं, “ये महिला प्रसव के लिए मुनसियारी जाना चाहती है लेकिन मदकोट से मुनसियारी सिर्फ हेलिकॉप्टर क्लिक करें ही पहुंचा सकता है. वैसे शायद इसकी नौबत न पड़े क्योंकि ये उनका दूसरा बच्चा है.”
सड़क की स्थिति तो ये है कि मदकोट से जॉलजीबी तक का पूरा क्लिक करें रास्ता बनने में साल भर से कम नहीं लगेगा.
मदकोट में तो हेलिकॉप्टर उतारने की भी जगह नहीं है, वहाँ से पैदल चलकर अस्पताल पहुंचने में कम से कम 30 किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ेगा. वो भी जंगल-जंगल पहाड़ चढ़ते और उतरते हुए.
उत्तराखंड
इसी तरह, गोठी के राहत शिविर में दो गर्भवती महिलाएं थीं लेकिन इममें से एक को पिथौरागढ़ के अस्पताल ले जाया गया है.
आशा कार्यकर्ता कृष्णा फिरवाल कहती हैं, “भगवान का शुक्र है कि जब तक धारचुला से पिथौरागढ़ का रास्ता कटा रहा, तब तक इस तरह का कोई मामला नहीं हुआ.”
बलुआकोट के राहत शिविर में भी एक गर्भवती महिला थीं, जिन्हें पिथौरागढ़ में भर्ती कराया गया है.
शिविर के प्रभारी जयंत बताते हैं कि आशा कार्यकर्ताओं के साथ-साथ आपातकालीन एंबुलेंस 108 की सेवा भी ली जा रही है. ताकि गर्भवती महिलाओं को क्लिक करें तत्काल पास के अस्पलातों में ले जाया जा सके.
गर्भवती महिला के लिए इसलिए भी दिक्कतें हैं क्योंकि वे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जा नहीं सकतीं, घर पर इंजेक्शन उन्हें लग नहीं सकते. प्रसव के लिए गर्भवती महिलाओं के पास दो ही चारे हैं. या तो भगवान भरोसे गाँव में ही बच्चे को जन्म दें या फिर हेलिकॉप्टर के ज़रिए अस्पताल पहुंचें.




केदारनाथः रुद्रप्रयाग के एसडीएम मंदाकिनी में बहे



देहरादून 31 जुलाई 2013 6:35 PM



Rudraprayag SDM Swept Away in Mandakini river
रुद्रप्रयाग जिले में बचाव कार्य के दौरान एक बड़ा हादसा हो गया है। रुदप्रयाग के एसडीएम अजय अरोड़ा के बचाव कार्य के दौरान नदी में बहने की खबर आ रही है।

बुधवार को रुद्रप्रयाग के एसडीएम अजय अरोड़ा बचाव कार्य के लिए क्षेत्र में निकले हुए थे। जानकारी के मुताबिक पुल पार करते हुए एसडीएम मंदाकिनी नदी की चपेट में आ गए।

एसडीएम अजय अरोड़ा के मंदा‌किनी के चपेट में आने की पुष्टि गढ़वाल कमिश्नर सुबर्द्घन ने भी कर दी है। आयुक्त के मुताबिक एसडीएम अजय अरोड़ा मंदाकिनी नदी में उस वक्‍त बह गए जब वो पुल पार कर रहे थे।

आयुक्त ने बताया कि प्रशासन उनकी खोज में जुटा हुआ है लेकिन अभी तक उनका कोई पता नहीं चल सका है।




उत्तराखंड आपदाः तिवारी के पत्र में बहुगुणा पर सवाल


 रविवार, 18 अगस्त, 2013 को 08:14 IST तक के समाचार


उत्तराखंड में जीवन

उत्तराखंड में आई प्रलयंकारी आपदा के दो महीने पूरे हो जाने के बावजूद अब भी पहाड़ में जीवन पटरी पर नहीं लौट पाया है. कई प्रभावित इलाकों में राहत कार्यों की स्थिति ये है कि मुठ्ठी भर अनाज के लिए लोगों को मीलों पैदल चलना पड़ रहा है. लोग शिविरों में गुजारा करने के लिए मजबूर हैं, स्कूल-कॉलेज खुल नहीं पाए हैं और रास्ते अभी भी कटे हुए हैं.
लगातर भूधंसाव हो रहा है. कई जगह राहत सामग्री सड़ रही है और जरूरी सामान लोगों तक पंहुच ही नहीं पा रहा है. राज्य की बहुगुणा सरकार अपने राहत अभियान के प्रचार पर करोड़ों रूपये खर्च कर रही है लेकिन प्रभावित इलाकों के प्रति जिस तरह की संवेदनहीनता दिखाई जा रही है, उससे विपक्ष तो विपक्ष ऐसा लगता है कि सत्तापक्ष भी मुख्यमंत्री के खिलाफ मोर्चाबंद हो रहा है.


आरोप

विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल, केदारनाथ की विधायक शैलारानी रावत और केंद्रीय मंत्री हरीश रावत के बाद अब उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कॉग्रेस के वयोवृद्ध नेता नारायण दत्त तिवारी ने बहुगुणा सरकार पर आरोप लगाया है कि वो आपदा पीड़ितों को सिर्फ कोरे आश्वासन दे रही है और अपना निजी एजेंडा चला रही है.

"पहाड़ में आपदा की वजह से गरीबी, भूख, लाचारी और पलायन के बीच अगर सरकार इसी तरह अपने निजी एजेंडे पर चलती रहेगी तो इसके खतरनाक परिणाम हो सकते हैं."
नारायण दत्त तिवारी, पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड
अपने विशेष कार्याधिकारी भवानी दत्त भट्ट की मदद से लिखी चिठ्ठी में तिवारी ने कहा है कि पहाड़ में आपदा की वजह से गरीबी, भूख, लाचारी और पलायन के बीच अगर सरकार इसी तरह अपने निजी एजेंडे पर चलती रहेगी तो इसके खतरनाक परिणाम हो सकते हैं.


न्यायिक जाँच

उन्होंने माँग की है कि आपदा पीड़ितों को चिन्हित करने की प्रक्रिया सरल रखी जाए और राहत के लिये प्राप्त राशि का 50 प्रतिशत प्रभावित परिवारों में बाँट दिया जाए और बाकी 50 प्रतिशत सुरक्षित रख दिया जाए. गौरतलब है कि आपदा पीड़ितों को राहत के नाम पर उत्तराखंड सरकार को सरकारी और गैरसरकारी स्त्रोतों से अरबों रूपये मिल रहे हैं.

आपदा के बाद उत्तराखंड
उत्तराखंड में आई आपदा के दो महीने बाद भी हालात बेहतर नहीं हो पाए हैं.
तिवारी ने ये भी आरोप लगाया है कि बहुगुणा सरकार उनके ख़िलाफ़ षडयंत्र कर रही है और प्रोटोकॉल के तहत उन्हें दी गई गाड़ी का तेल रोक दिया गया है और उनके साथ धोखा किया जा रहा है. उन्होंने इसकी न्यायिक जाँच की भी माँग की है.
तिवारी की चिठ्ठी में ये भी कहा गया है कि वो पूरी तरह स्वस्थ हैं और नई स्फूर्त्ति के साथ जल्द ही उत्तराखंड लौटेंगे. नारायण दत्त तिवारी इन दिनों लखनऊ में रह रहे हैं. उन्होंने अपनी चिठ्ठी में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की जमकर तारीफ़ की है.


राजनीति

जाहिर है कि इस चिठ्ठी के राजनीतिक मायने हैं और ये क्या गुल खिलाएंगे, इसका सही अंदाजा तभी लगेगा जब कथित रूप से आगामी 18 अक्तूबर को वो अपने समर्थकों के साथ अगली रणनीति की घोषणा करेंगे.
तिवारी के कार्याधिकारी भवानी दत्त भट्ट ने बीबीसी को फोन पर बताया कि तिवारी समाजवादी विचारों से जुड़े रहे हैं और इस नाते उनका आशीर्वाद अखिलेश यादव के साथ है.
तिवारी का प्रकट जनाधार पहले की तरह नहीं रहा है लेकिन पिछले विधानसभा में उन्होंने अपने राजनीतिक कौशल और दबाव का इस्तेमाल कर मुख्यमंत्री पद की दावेदारी पेश कर दी थी और फिर कुछ सीटों पर अपने चहेतों को टिकट दिलाने में भी खासे सफल रहे थे.


एक गुफा जिसने बचाई 25 लोगों की जान



 शनिवार, 27 जुलाई, 2013 को 11:47 IST तक के समाचार


उत्तराखंड बाढ़ से प्रभावित, धारचुला में राहत शिविर

उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा के विनाश का कहर धारचूला के लोगों ने सबसे ज़्यादा झेला है.
दुर्गम पहाड़ी इलाक़े में बसे धारचूला के लिए 16 जुलाई का वो दिन बेहद खौफ़नाक था. धौली गंगा नदी अपने पूरे उफान पर थी. आसपास के गाँव में बसे लोगों ने शायद इतना पानी अपने जीवन में कभी नहीं देखा था. इस इलाके में पड़ने वाले चार गाँवों का अब नामोनिशान भी नहीं बचा है.

शोबला, कंजोती, खिम और खेत. सबसे पहले, शोबला बहा, फिर कंजौती, खिम और खेत. इन सभी गाँवों के लोगों की दास्तान एक जैसी ही है. धारचूला इंटर कॉलेज में अब इन गाँवों के करीब 158 से ज्यादा परिवार रह रहे हैं. इस स्कूल में बच्चों की कक्षाएं नहीं लग पा रही हैं क्योंकि पिछले एक महीने से यहाँ बच्चे, महिलाएँ और बूढ़े सभी एक छत के नीचे रह रहे हैं.


सरस्वती बिष्ट खिमस्वा गाँव, कंजोती की रहने वाली हैं. उनके साथ कम से कम 25 लोग किसी तरह जान बचाकर शिविर में आए. वे उस दिन को याद नहीं करना चाहतीं, लेकिन जब वे इसके बारे में सोचती हैं तो उनकी आँखों में आँसू आ जाते हैं.

घर तबाह


उत्तराखंड बाढ़ से प्रभावित सरस्वती देवी
16 जुलाई की रात सरस्वती देवी के लिए न भूलने वाली रात साबित हुई.
हादसे वाले दिन क्या हुआ था, इस बारे में पूछे जाने पर वह कहती हैं, "16 तारीख के दिन से ही धौली गंगा नदी में पानी बढ़ने लगा था. जिस तरह नदी में पानी बढ़ रहा था, उसे देखते हुए हमें लगा कि कुछ अनर्थ होने वाला है. हमारे घर तबाह होने जा रहे हैं. हमने अपना थोड़ा बहुत सामान बाँधा, और दूसरी जगह रखने लगे. शाम पाँच बजे के आसपास हमने देखा कि कैलाश मानसरोवर की यात्रा में पड़ने वाला पुल भी ज़ोर-ज़ोर से हिलने लगा था."

उस लम्हें भय और आशंका के माहौल के बीच बचाव की कोशिशों के लिए तमाम विकल्पों पर विचार किया जा रहा था.
सरस्वती बताती हैं, "यही एक मात्र पुल है जो हमारे गाँव को जोड़ता है. इस पुल के टूटने के बाद तो जान बचाना असंभव था. हम सब ने जल्दी-जल्दी पुल पार किया और खिम गाँव से भागकर कंजौती आ गए. रात में कंजौती का जो झरना है, उसमें भी ज़बरदस्त पानी आ गया था."

"एक ओर नदी बढ़ रही थी तो दूसरी तरफ़ झरने से पानी और मलबा गिर रहा था. रात में बारह बजे के आसपास नदी से ऐसी भयानक आवाज़ें आने लगीं कि हम सब बहुत डर गए. मेरे साथ दस बच्चे थे. मैंने दो बच्चों को कंधे पर उठाया और एक को गोद में लिया और सारे के सारे पहाड़ की एक गुफा में छिप गए."

पूरा गाँव शमशान


उत्तराखंड बाढ़ से प्रभावित एक गाँव
"साढ़े बारह बजे भयानक तूफान आया कि सब कुछ उड़ने लगा. मकान की छतें उड़ गईं, मोटर साइकिलें बह गईं. गाय, भैंस, बकरी सब पानी में बहने लगे. मेरी 50 से ज़्यादा बकरियां ग़ायब हो गईं. बहते हुए लोगों ने नदी में जो कुछ सहारा मिला, पकड़कर अपनी जान बचाई लेकिन फिर भी दो लोग बहकर मर गए."

"हम सब उस गुफा में बैठे रहे, बच्चे रो रहे थे. गुफा में भी डर लग रहा था कि कहीं पत्थर ऊपर से न बरसने लगें. लेकिन ऊपर वाले की कृपा है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ. पूरी रात और पूरा दिन हम उस गुफा में ही छिपे रहे. वो रात अब तक की सबसे काली रात थी, सवेरा होने पर देखा कि गाँव तो है ही नहीं, पूरा गाँव बह चुका था. पूरा गाँव श्मशान बन चुका था."
"पहने हुए कपड़ों को छो़ड़कर कुछ भी नहीं बचा था हमारे पास. हम इसके बाद एक पड़ोसी गाँव न्यूसुआ गए, वहाँ लोगों ने हमें खाना खिलाया और पहनने को कपड़े दिए. कुछ दिन बाद पुलिस वाले हमें इस शिविर में ले आए. इस शिविर में रहते हुए एक महीना होने को है. हम खाना तो खा रहे हैं लेकिन बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं. हमारा मकान, मवेशी सब कुछ बह गया. समझ नहीं आता क्या करें. अब आगे क्या होगा, भगवान ही मालिक है."

यह कहानी अकेले सरस्वती बिष्ट की नहीं है. उत्तराखंड में बाढ़ से बच गए तकरीबन सभी लोगों के पास ऐसे ही कई अनुभव हैं जिससे सुनकर यह समझना मुश्किल नहीं कि कि उस रात बाढ़ की शक्ल में मौत किस तरह आई होगी.





Saurav Ganguly Donated Rs. One Crore For Uttarakhand Flood Victims.


 Mr. Saurav Ganguly Donated Rs. One Crore For Uttarakhand Flood Victims. You Are Baap Of Baaps, No Wonder People Call You Dada. Thank You Dada & May God Bless You Always.  #Respect
 
Mr. Saurav Ganguly with her wife Dona
 
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