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विश्व शतरंज चैंपियनशिप: आनंद ने कार्लसन से तीसरी बाजी जीती
November 12, 2014
आनंद ने तीसरी बाजी में मैगनस को हराकर खिताब में वापसी कर ली है।
सोचि (रूस)। विश्वनाथन आनंद
ने सही समय पर अपने कौशल का बेहतरीन इस्तेमाल करके आज यहां मौजूदा चैंपियन
मैगनस कार्लसन के खिलाफ तीसरी बाजी जीतकर विश्व शतरंज चैंपियनशिप में
शानदार वापसी की। सफेद मोहरों से खेल रहे भारतीय स्टार आनंद ने अपनी शुरुआती चालों से ही
साफ कर दिया था कि वह जीत क लिए खेल रहे हैं और आखिर में 34वीं चाल में
नार्वे के कार्लसन ने हार स्वीकार कर ली। आनंद ने इस जीत से 12 बाजियों के
मुकाबले को 1.5 – 1.5 से बराबरी पर ला दिया है।
इस मुकाबले की पहली बाजी ड्रॉ छूटी थी जबकि कार्लसन ने सफेद मोहरों से
खेलते हुए दूसरी बाजी में जीत दर्ज की थी। नार्वे का यह खिलाड़ी कल फिर सफेद
मोहरों से खेलेगा। आनंद ने आज की जीत से कार्लसन के खिलाफ क्लासिकल शतरंज में पिछले चार
साल से चला आ रहा जीत का सूखा भी समाप्त कर दिया। इस प्रारूप में पांच बार
के विश्व चैंपियन ने नार्वे के खिलाड़ी को इससे पहले 2010 में हराया था। काले मोहरों से खेल रहे कार्लसन ने क्वीन गैम्बिट अपनाया लेकिन आनंद ने
अपने वैरीएशन से उन्हें हैरान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बाद में कार्लसन
ने माना कि उन्होंने अच्छी शुरुआत नहीं की। कार्लसन ने कहा, ‘‘आनंद ने इस बाजी के लिए बेहतर तैयारी की थी और वह जीत
का हकदार था। यह ऐसी बाजी थी जिसमें मेरे लिये शुरू से ही सब कुछ गलत हो
रहा था।’’ दोनों खिलाड़ियों ने लेवोन आरोनियन और माइकल एडम्स के बीच 2013 में खेली
गयी बाजी को अपनाया लेकिन लग रहा था कि कार्लसन इस बाजी के लिये अच्छी तरह
से तैयार होकर नहीं आये हैं। उन्होंने विश्व चैंपियनशिप में पहली बार आनंद
के खिलाफ सैद्धांतिक जंग की चलने की रणनीति अपनायी लेकिन खेल से साफ हो गया
कि भारतीय स्टार इसके लिये भी बेहतर तैयारी के साथ आया है। कार्लसन पर समय कम होने का दबाव भी था और बीच में उन्होंने बाजी बराबरी पर लाने की कोशिश भी की लेकिन आनंद ने उनकी एक नहीं चलने दी।
भारतीय स्टार ने शुरू से ही कार्लसन को घेरने की रणनीति अपनायी और 17वीं
चाल में अपने घोड़े की चाल से कार्लसन को घेर भी दिया था। आनंद ने 20वीं चाल
में नयी तरकीब अपनायी जिससे उनकी स्थिति काफी मजबूत हो गयी। आलम यह था कि
नार्वे के खिलाड़ी को अपनी चाल चलने के लिये लंबा समय लेना पड़ा। भारतीय खिलाड़ी ने हालांकि सतर्कता भी बरती और सीधे आक्रमण की रणनीति
नहीं अपनायी। उन्होंने कार्लसन को चारों तरफ से घेरकर उन पर दबाव बनाया और
नार्वे के खिलाड़ी के अंदाज में ही उन्हें कड़ा सबक सिखाया। कार्लसन लगातार हार की तरफ बढ़ रहे थे लेकिन वह आखिर तक मौका तलाशते रहे।
आनंद ने हालांकि उन्हें कोई मौका नहीं दिया। इस बीच कार्लसन 28वीं चाल के
बड़ी गलती कर गये और आखिर में 34वीं चाल में उन्होंने घुटने टेक दिये। विश्व
चैंपियनशिप में यह पहला अवसर है जबकि कार्लसन को बाजी गंवानी पड़ी।
छत्तीसगढ़ नसबंदीः डॉक्टरी लापरवाही- मरने वालों की संख्या 13 हुई
स्थानीय स्वास्थ्य कर्मियों ने शिविर में जाने के लिए महिलाओं को किया बाध्य , ‘भेड़-बकरियों की तरह ढकेलते हुए ले गए उन्हें’
बिलासपुर
12 nov
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में नसबंदी चिकित्सा शिविर में महिलाओं की मौत की संख्या बढ़कर 13 हो गई है.
बिलासपुर शहर के चार अस्पतालों में भर्ती 60 से अधिक महिलाओं में से कम से कम 20 की हालत अब भी चिंताजनक है. शनिवार
को बिलासपुर के पेंडारी में सरकारी चिकित्सा शिविर में 83 महिलाओं की
नसबंदी के बाद हालत खराब हो गई थी. इसके बाद से ही महिलाओं की मौत का
सिलसिला जारी है. नसबंदी में हुई मौत के सिलसिले में राज्य सरकार ने न
केवल चार डॉक्टरों को निलंबित कर दिया है बल्कि उनके खिलाफ आपराधिक मामला
भी दर्ज करने के आदेश दिए गए हैं. राज्य के स्वास्थ्य सचिव डॉक्टर
कमलप्रीत सिंह को पद से हटाया गया है और मुख्यमंत्री ने पीड़ित परिवारों को
चार-चार लाख रुपए का मुआवज़ा देने की घोषणा की है.
छत्तीसगढ़ बंद
छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान के डॉक्टर लाखन सिंह ने महिलाओं की मौत की संख्या और बढ़ने की आशंका से इनकार नहीं किया है.
उन्होंने
कहा, "हम दिन-रात महिलाओं को बेहतर से बेहतर इलाज उपलब्ध कराने की कोशिश
कर रहे हैं. पूरा मेडिकल स्टाफ़ इसमें जुटा हुआ है." इधर राज्य में
विपक्षी दल कांग्रेस ने बुधवार को छत्तीसगढ़ बंद का आह्वान किया है, जिसे
राज्य के चेंबर ऑफ कामर्स समेत दूसरी संस्थाओं ने भी समर्थन दिया है. बंद
का असर बिलासपुर शहर में नज़र आ रहा है. स्कूलों में अघोषित छुट्टियां
नज़र आ रही हैं. आंशिक तौर पर परिवहन सेवा भी प्रभावित हुई है.
आंखों-देखी
छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान के आईसीयू में जिन पांच महिलाओं का इलाज चल रहा है वे होश में हैं और उनकी हालत स्थिर है. लेकिन जब वे यहां लाई गई थीं तब उन्हें लगातार उल्टी और निम्न रक्तचाप की शिकायत थी. हालांकि
डॉक्टर बताते हैं कि सभी महिलाओं की हालत में लगातार उतार-चढ़ाव जारी है,
इसलिए ये कहना मुश्किल है कि वे फिलहाल खतरे से बाहर हैं. उनकी उम्र 20 से
35 साल के बीच है.
छह घंटे में 83 ऑपरेशन
आईसीयू में भर्ती पांच महिलाओं में से एक 26 साल की रीति सिरवास है. उनके तीन बच्चे हैं. रीति
ने बताया, "ऑपरेशन में केवल पांच मिनट लगे. मुझे कोई तकलीफ नहीं हुई. बाद
में दवाएं भी मिलीं. लेकिन जब घर जाने लगी तो उल्टियां शुरू हो गईं." डॉक्टरों
के मुताबिक महिलाओं की नसबंदी के लिए उनका 'लेप्रोस्कोपिक ट्यूबेक्टोमी'
ऑपरेशन किया गया. वे बताते हैं कि इसमें केवल चंद मिनट लगते हैं, लेकिन
ऑपरेशन के पहले मरीज को तैयार करने और ऑपरेशन के बाद उसकी बेहोशी पर नजर
रखने में कम से कम 25 मिनट लग जाते हैं. छत्तीसगढ़ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ के मेडिकल सुपरिटेंडेंट रमेश मूर्ति ने नियमों की जानकारी देते हुए बताया कि एक दिन में एक डॉक्टर नसबंदी के केवल 35 ऑपरेशन ही कर सकता है. जबकि नसबंदी के नियम के विपरीत आरोप है कि एक डॉक्टर ने मात्र छह घंटे में 83 महिलाओं की नसबंदी कर डाली.
मौत की जिम्मेवारी
दूसरी ओर राज्य के स्वास्थ्य
मंत्री अमर अग्रवाल ने दोहराया है कि वे नैतिक रूप से इस घटना के लिए
ज़िम्मेवार हैं और सीधे तौर पर ज़िम्मेवार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गई
है और आपराधिक मामला दर्ज किया गया है. अमर अग्रवाल ने कहा, “ हम
किसी को भी नहीं छोड़ेंगे. संकट की इस घड़ी में कांग्रेस बजाए पीड़ितों के
दुख-दर्द दूर करने में सहयोग करने के, लाशों पर राजनीति कर रही है. आज का
छत्तीसगढ़ बंद इसी का नमूना है और जनता ने इसे ख़ारिज कर दिया है.” दूसरी
ओर राज्य में नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव ने कहा है कि स्वास्थ्य मंत्री
अगर ज़िम्मेवारी ले रहे हैं तो उन्हें इस्तीफा भी देना ही होगा.
छत्तीसगढ़ नसबंदी मामला: ‘भेड़-बकरियों की तरह ढकेलते हुए ले गए उन्हें’
डॉक्टरी
लापरवाही की शिकार बनी महिलाओं के परिजनों ने बातचीत
में साफ तौर पर कहा कि स्थानीय स्वास्थ्य कर्मियों ने शिविर में जाने के
लिए महिलाओं को किया बाध्य
बिलासपुर। बिलासपुर में नसबंदी शिविर से कुछ दिन पहले नेम बाई ने एक
बच्चे को जन्म दिया था। उसका परिवार नहीं चाहता था कि वह ऑपरेशन कराए।
लेकिन स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्ता के दबाव के आगे वह मजबूर हो गई और
ऑपरेशन के बाद अब वह इस दुनिया में नहीं है।
चंदाकली पुणे में अपमे पति के साथ मजूरी करती थी। वह यहां अपने घर आई
थी। घर वाले नहीं चाहते थे कि वह नसबंदी कराए। लेकिन बाद में वे राजी हो
गए। ये दोनों उन ग्यारह बदनसीब महिलाओं में हैं, जिनकी नसबंदी ऑपरेशन के
कारण अब तक मौत हो चुकी है। हालांकि वे कभी नहीं चाहती थीं कि वे यह ऑपरेशन
कराएं। इनके अलावा कई अन्य महिलाएं, जो चिकित्सकीय लिहाज से ऑपरेशन के
लायक नहीं थीं, अब भी मौत और जिंदगी के बीच झूल रही हैं। इस समय पचास
महिलाएं ऑपरेशन के कारण अस्पताल में दाखिल हैं।
मंगलवार को चंदाकली की बेटियां सत्यवती और सरस्वती छत्तीसगढ़ के अस्पताल
के शवगृह के बाहर बैठी अपनी मां की पार्थिव देह का इंतजार कर रही थीं।
चंदाकली का पति पुणे से चल पड़ा था।
हालांकि छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल ने इस बात से इनकार
किया कि नसबंदी ऑपरेशन के लिए इन महिलाओं को प्रलोभन दिया गया। लेकिन
डॉक्टरी लापरवाही की शिकार बनी महिलाओं के परिजनों ने इंडियन एक्सप्रेस से
बातचीत में साफ तौर पर कहा कि स्थानीय स्वास्थ्य कर्मियों ने शिविर में
जाने के लिए महिलाओं को बाध्य किया। हर महिला को नसबंदी के लिए 600 रुपए
दिए जाने थे। स्वास्थ्य कर्मी को प्रति महिला के हिसाब के हिसाब से डेढ़ सौ
रुपए मिलते हैं। सर्जन को 75 रुपए और एनस्थीसिया देने वाले को प्रति ऑपरेशन
25 रुपए मिलते हैं। अगर कोई एनस्थीसिया वाला नहीं आता तो पूरा पैसा सर्जन
की जेब में जाता है।
नेम बाई के देवर महेश सूर्यवंशी ने बताया कि उसे बिना हमसे पूछे ले गए।
हमने बार-बार कहा कि उसने हाल में बच्चे को जन्म दिया है। लेकिन उन्होंने
कुछ नहीं सुनी। बोले-कुछ नहीं होगा। छोटा-सा ऑपरेशन है। भेड़-बकरियों की तरह
ढकेलते हुए उन्हें ले गए।
नेम बाई का परिवार बिलासपुर के भराड़ी गांव में रहता है। महेश ने बताया
कि जिस समय वे लोग उसे ले गए, उसकी तबीयत ठीक नहीं थी। जब वह लौटी तो उसकी
हालत और बिगड़ चुकी थी।
लोगों ने बताया कि आॅपरेशन के लिए जिन महिलाओं को ले जाया गया, उनमें से
कई की सेहत ठीक नहीं थी। कुछ को शुगर की बीमारी थी। कुछ को दमा था और कुछ
दिल की मरीज थीं। चिकित्सा के किसी कायदे या मापदंड का पालन नहीं किया गया।
हालांकि अभी पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार है और मुख्यमंत्री रमन सिंह
ने भी मौतों का कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया है। उनका कहना है कि रिपोर्ट
आने के बाद ही स्थिति साफ हो पाएगी। लेकिन अस्पताल के डॉक्टरों ने बताया कि
पहली नजर में लगता है कि ये महिलाएं शारीरिक कमजोरी के कारण नसबंदी के
लायक नहीं थीं और ऑपरेशन के बाद उनकी चिकित्सकीय देखभाल ठीक से नहीं हो
पाई।
Women Got The Right To Be Make-Up Artist In Film Industry
महिलाओं को मिला फिल्म इंडस्ट्री में मेक-अप आर्टिस्ट बनने का अधिकार
Nov 11, 2014, 09:32AM IST
(ये हैं चारू जिन्होंने चुपके से किया था रावण फिल्म में अभिषेक का मेकअप।)
नई दिल्ली. ये फिल्म इंडस्ट्री में महिला मेकअप आर्टिस्ट
के हक की नहीं, बल्कि महिलाओं से भेदभाव के खिलाफ जीत है। सोमवार को
सुप्रीम कोर्ट की भी ऐसी ही टिप्पणी थी। इस जीत के पीछे बड़ा रोल था चारू
खुराना का। जो खुद मेकअप आर्टिस्ट थीं। जानिए, इस लड़ाई की पूरी कहानी...
कैलिफोर्निया से मेकअप का कोर्स करने वाली चारू खुराना का सपना था
बॉलीवुड में बतौर मेकअप आर्टिस्ट काम करना। इसके लिए उन्होंने 2009 में
सिने कॉस्ट्यूम्स मेकअप आर्टिस्ट एंड हेयर ड्रेसर एसोसिएशन (सीसीएमएए) की
सदस्यता के लिए आवेदन किया। लेकिन आवेदन खारिज हो गया। चारू ने एसोसिएशन
को फिर पत्र लिखा और आवेदन खारिज करने की वजह पूछी। उन्हें एसोसिएशन के
महासचिव की ओर से जल्द ही इसका लिखित जवाब भी मिला।
महासचिव हेनरी जे मार्टिस ने लिखा- 1955 में संगठन के बनने के बाद से आज तक
किसी महिला को मेकअप आर्टिस्ट कार्ड नहीं दिया गया है। क्योंकि महिलाओं को
यह कार्ड दिया गया तो पुरुष बेरोजगार हो जाएंगे। उन्हें परिवार को चलाने
में मुश्किलें आएंगी।
इस जवाब से चारू सकते में थीं। चारू ने बताया- जो महिला मेकअप
आर्टिस्ट इस दिशा में कोशिश भी करती, तो उसे धमकियां दी जाती थीं। इसके बाद
चारू ने फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न सिने एम्प्लॉइज़ की सदस्यता ली। ताकि
विज्ञापनों और म्यूजिक एल्बम के लिए काम कर सकें। लेकिन कुछ ही दिनों बाद
फेडरेशन को धमकी मिली कि चारू की सदस्यता रद्द करो, वर्ना कड़े कदम उठाए
जाएंगे।इस तरह का भेदभाव कोलकाता, बेंगलुरू, चेन्नई, हैदराबाद में भी था।
चारू ने कहा कि मैं जब चेन्नई में कमल हसन की फिल्म में मेकअप
आर्टिस्ट थीं, तो चेन्नई के एसोसिएशन ने धमकी दी कि इसे बाहर निकालो। लेकिन
कमल हसन के प्रभाव की वजह से वे मुझे निकाल नहीं पाए। हालांकि मुझे वहां
काम करने के लिए बतौर डोनेशन एसोसिएशन को 26,500 रुपए देने पड़े। इसके बाद
मैंने मणिरत्नम की रावण में चुपके से काम किया।
चारू बताती हैं-मैं इस भेदभाव से तंग आ चुकी थी। मैंने सुप्रीम कोर्ट
का दरवाजा खटखटाया। अंतत: सोमवार को मुझे सुकून मिला। जब सुप्रीम कोर्ट ने
59 साल पुरानी इस भेदभावपूर्ण परंपरा को खत्म कर दिया। कोर्ट ने सीसीएमएए
के नियमों को असंवैधानिक करार दिया। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि हम
2014 में रह रहे हैं न कि 1935 में। इस तरह की परंपरा एक दिन भी जारी नहीं
रहनी चाहिए।
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने सरकारी और सार्वजनिक
क्षेत्र के उपक्रम के एक करोड़ से अधिक सेवानिवृत्त कर्मियों को बड़ी राहत
दी है।
अब पेंशधारकों को अपनी पेंशन जारी रखने को हर साल
अधिकारियों के सामने शारीरिक उपस्थिति दर्ज या विशेष अधिकारियों द्वारा
जारी जीवित रहने का प्रमाण पत्र पेश नहीं कराना होगा। वे बस अपनी मौजूदगी
का डिजिटल सबूत पेश कर पेंशन जारी करवा सकेंगे।
प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने सोमवार को पेंशनधारकों के लिए आधार आधारित डिजिटल जीवन
प्रमाण पत्र ‘जीवन प्रमाण’ योजना का शुभारंभ किया। स्व प्रमाणन के बाद आम
जनता को लाभ पहुंचाने के लिए यह योजना मददगार साबित होगी।
प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से जारी एक बयान में कहा गया है कि
प्रस्तावित डिजिटल प्रमाणन पेंशनधारकों को हर साल नवंबर में शारीरिक जीवन
प्रमाण पत्र जमा करने की जरूरत को खत्म करेगा। पहले पेंशन जारी रखने के लिए
हर साल सक्षम अधिकारी के सामने शारीरिक उपस्थिति दर्ज करानी होती थी।
इलेक्ट्रॉनिक्स
और आईटी विभाग ने एक सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन तैयार किया है जोकि पेंशनधारकों
का आधार नंबर और बायोमीट्रिक जानकारी उनके मोबाइल डिवाइस या कंप्यूटर से
रिकॉर्ड करने में सक्षम होगा।
तिथि, समय और बायोमीट्रिक जानकारी
समेत पेंशनधारकों की महत्वपूर्ण सूचना वास्तविक समय पर केंद्रीय डाटाबेस
में अपलोड हो जाया करेगी। इससे यह पता चल जाएगा कि पेंशनधारक अभी भी जीवित
है।
मौजूदा समय में 50 लाख लोग केंद्र सरकार से अकेले पेंशन ले रहे
हैं। इतनी ही संख्या में लोग प्रदेश और केंद्र शासित सरकारों से भी पेंशन
उठा रहे हैं।
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Modi government gift for pensioners.. National News in Hindi by
जमीनी हकीकत:दागियों के मामले में UPA से भी आगे मोदी सरकार,मोदी कैबिनेट में एक तिहाई मंत्री दागी, कैसे पूरा होगा दागीमुक्त संसद का वादा
| नई दिल्ली, 11 नवम्बर 2014 |
नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)
हत्या की कोशिश, राज्य के खिलाफ युद्ध, आपराधिक धमकी और धोखाधड़ी. ये वे
मामले हैं जिनमें नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्रीय कैबिनेट के मंत्री
फंसे हुए हैं. नरेंद्र मोदी ने संसद को दागीमुक्त बनाने का वादा किया था,
लेकिन जमीनी हकीकत इससे कहीं दूर है. संसद तो दूर, उनके खुद के मंत्रिमंडल में करीब एक तिहाई मंत्रियों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. रविवार
को शपथ लेने वाले 21 में से सात मंत्रियों के खिलाफ भी अदालत में आपराधिक
केस चल रहे हैं. यानी अब 66 सदस्यीय कैबिनेट में दागी मंत्रियों का अनुपात
बढ़कर करीब एक तिहाई हो गया है. दागियों के मामले में UPA से भी आगे मोदी सरकार मोदी कैबिनेट में
कम से कम पांच मंत्रियों के खिलाफ रेप और सांप्रदायिक हिंसा जैसे गंभीर
मामले पेंडिंग हैं. हालांकि सोमवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सफाई
देते हुए कहा कि कैबिनेट में अपराधियों के शामिल होने की बात 'पूरी तरह
निराधार' है. उन्होंने कहा, 'ये मामले आरोप आधारित हैं, अपराध आधारित
नहीं.' उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने स्वयं इन मंत्रियों की भली-भांति
जांच की है.
हालांकि आगरा से सांसद और मोदी सरकार में नए मानव संसाधन राज्य मंत्री
रामशंकर कठेरिया के खिलाफ 20 से ज्यादा आपराधिक मामले हैं. इनमें हत्या की
कोशिश और धार्मिक और जातीय विद्वेष बढ़ाने जैसे गंभीर आरोप भी हैं. कठेरिया
के दफ्तर से उनका जो नंबर मिला, वह बंद था. इसलिए वह प्रतिक्रिया के लिए
उपलब्ध नहीं हो सके.
जाहिर है, ऐसे मंत्रियों की आमद नरेंद्र मोदी के भ्रष्टाचार और अपराध
विरोधी नारे के प्रतिकूल है. बल्कि मोदी कैबिनेट में दागियों की तादाद
पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के मुकाबले करीब दोगुनी है. इसी वजह से सोशल मीडिया
पर उनकी आलोचना भी हो रही है. हंसराज अहिर पर भी 20 से ज्यादा मामले नए रसायन और उर्वरक राज्य
मंत्री हंसराज अहिर पर भी 20 से ज्यादा मामले चल रहे हैं. इनमें राज्य के
खिलाफ युद्ध छेड़ने, धमकाने और विद्रोह को उकसाने जैसे गंभीर मामले भी हैं.
अहिर भी बातचीत के लिए उपलब्ध नहीं हो पाए. लेकिन उनके सचिव ने कहा कि
उनके खिलाफ मामले राजनीति से प्रेरित थे. बीजेपी प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा
ने कहा कि मंत्रियों पर लगे आरोप सही हैं या नहीं, इसका फैसला कोर्ट करेगा.
उन्होंने कहा कि कई आरोप राजनीतिक विरोधियों की साजिश हैं.
वहीं बिहार के नवादा से सांसद गिरिराज सिंह भी आलोचना के दायरे में हैं.
उन्होंने अपने घर पर 50 हजार रुपये चोरी होने की रपट लिखाई थी, लेकिन पुलिस
ने चोरों को 1 करोड़ 14 लाख रुपये के साथ धर दबोचा. गिरिराज ने सफाई देते
हुए कहा कि यह पैसा उनका नहीं, उनके भतीजे का था. इसके बाद आयकर विभाग
मामले की जांच कर रहा था. तब से इस मामले में कोई नई जानकारी सामने नहीं आई
है. गिरिराज सिंह अब सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय में राज्य
मंत्री बना दिए गए हैं. याद रहे कि सत्तारूढ़ बीजेपी के राष्ट्रीय
अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ भी फर्जी एनकाउंटर का केस चल रहा है और मामले
में एक बार वह गिरफ्तार भी किए जा चुके हैं. एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक
दागी सांसदों की संख्या बीते दो दशकों में दोगुनी से ज्यादा हो गई है.
और जानें :India-based Neutrino Observatory |
Pottipuram village |
Theni |
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चेन्नई। ब्रह्मांड के मूल कणों के गुणों के
अध्ययन की भारत की महत्वपूर्ण परियोजना को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की
मंजूरी का इंतजार है। 15 सौ करोड़ रुपये की इस महत्वाकांक्षी परियोजना के
तहत तमिलनाडु के मदुरै में जमीन से करीब सवा किलोमीटर अंदर प्रयोगशाला
बनाकर अध्ययन किया जाएगा। यह हिग्स बोसोन (गॉड पार्टिकल्स) की खोज के लिए
स्विट्जरलैंड में बनी सर्न प्रयोगशाला जैसी होगी। इंडियन न्यूट्रिनो
आब्जर्वेटरी (आईएनओ) परियोजना के प्रमुख नाबा के. मोंडल ने बताया कि
तमिलनाडु की थेनी जिले के मदुरै में फेंसिंग, आवश्यक भवन निर्माण जैसे काम
पूरे हो चुके हैं, लेकिन मुख्य परियोजना के पहले चरण के लिए पीएमओ की
मंजूरी का इंतजार है। मोंडल इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेंस की रविवार को
संपन्न 80वीं सालाना बैठक में भाग लेने यहां आए थे। इसमें उन्होंने आईएनओ
परियोजना पर शोध पत्र पढ़ा। ब्रह्मांड के कणों का होगा अध्ययन परमाणु
ऊर्जा विभाग के अधीन इस परियोजना में थेनी जिले में मदुरै के निकट
पोट्टिपुरम में जमीन में 1300 मीटर (सवा किमी) अंदर भूमिगत प्रयोगशाला में
ब्रह्मांडीय कणों के गुणों का अध्ययन किया जाएगा। इससे न्यूट्रिनो के
आकार-प्रकार का सूक्ष्म विश्लेषण किया जाएगा। परियोजना के चरण - पहले चरण में 83 करोड़ आवंटित कए गए थे। इससे परियोजना स्थल पर पूर्व तैयारियां की गई। -
दूसरे चरण में दो भूमिगत प्रयोगशाला बनाई जाएगी। इसमें करीब 1 किलोमीटर के
चट्टानी क्षेत्र के नीचे डिटेक्टर्स और नियंत्रण उपकरण लगाए जाएंगे। इसमें
आवाजाही के लिए पहाड़ के नीचे दो किमी लंबी सुरंग बनाई जाएगी। आठ साल पिछड़ी परियोजना मोंडल
ने बताया कि परियोजना पहले स्थल चयन व पर्यावरणीय मंजूरी के लिए अटकी रही।
कुल मिलाकर इसमें सात-आठ साल की देरी हो चुकी है। यदि यह पहले शुरू हो
जाती तो अब तक काफी काम हो चुका होता। शोध में सहभागी आईएनओ
परियोजना में देश के 30 से ज्यादा शोध संस्थान सहभागी हैं। इनमें
इंस्टीट्यूट ऑफ मैथेमेटिकल साइंसेज चेन्नई, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल
रिसर्च मुंबई, भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर मुंबई, साहा इंस्टीट्यूट ऑफ
न्यूक्लियर फिजिक्स कोलकाता, इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च
कलपक्कम, हरिशचंद्र रिसर्च इंस्टीट्यूट इलाहाबाद तथा कुछ आईआईटी भी इसमें
समन्वय कर रहे है। क्या है परियोजना भारत
में स्थित न्यूट्रिनो वेधशाला (आईएनओ) कण भौतिकी में शोध के लिए निर्मित
विज्ञान परियोजना है। इसका उद्देश्य ब्रह्मांडीय न्यूट्रिनो का अध्ययन करना
है। न्यूट्रिनो सृृष्टि के मूल कण होते हैं जिनका सूर्य, तारों एवं
वायुमंडल में प्राकृतिक रूप से निर्माण होता है। सर्न के बाद बड़ा प्रयोग पिछले
साल स्विट्जरलैंड में नाभिकीय अनुसंधान के यूरोपीय संगठन (सर्न) द्वारा
हिग्स बोसोन (गॉड पार्टिकल) की खोज के लिए किए गए प्रयोग के बाद यह दूसरा
बड़ा प्रोजेक्ट है। हालांकि सर्न के प्रयोग में खोजे गए हिग्स बोसोन को गॉड
पार्टिकल मानने पर मतभेद उभर रहे हैं।