Tuesday 31 December 2013

DOWNLOAD:DATE SHEET--CLASS 10TH and 12TH EXAM CBSE 2014

DOWNLOAD:DATE SHEET--CLASS 10TH and 12TH EXAM CBSE 2014

Students of class X and XII from Central Board of Secondary Education (CBSE)-affiliated schools examination's date-sheet
2014

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CBSE web site link:

http://cbse.gov.in/welcome.htm
Direct web site link of date sheet of class 10th cbse 2014 exam: http://cbse.gov.in/attach/DSHEET10_2014.pdf

Date sheet for Board Examination 2014   |   Class X   |   Class XII

Monday 30 December 2013

वीडियो:भारतीय पुरुष महिलाओं को इस तरह घूरते है(WATCH VIDEO:men who stare at women in public)

वीडियो:भारतीय पुरुष महिलाओं को इस तरह घूरते है(WATCH VIDEO:men who stare at women in public)

नई दिल्‍ली, 31 दिसम्बर 2013 | अपडेटेड: 11:11 AM
टैग्स: Dekh Le| YouTube| Women Empowerment| Viral video


NATIONAL SHAME FOR US(INDIAN)...





FOR 100% GIRLS

QUS: GIRLS ARE YOU FACING IT IN PAST OR CURRENT LIFE?

ANS: OBVIOUSLY YES.

SOLUTION:BE COOL THAT TIME AND TRY TO TAKE VIDEO THEM AND THEN UPLOAD IT  IN YOUTUBE.SHARE IT IN YOUR FRIENDS CIRCLE.THROUGH IT SURELY ONE DAY YOU GOT SOLUTION.



FOR 90% BOYS:

QUS:ARE YOU DOING IT IN YOUR WHOLE PAST OR CURRENT LIFE ONCE OR MORE TIME?ARE YOU FEELING YOUR SELF IN THAT VIDEO VIRTUALY?

ANS:OBVIOUSLY YES.

SOLUTION:STOP DOING IT IMMEDIATELY.RESPECT ALL GIRLS LIKE YOUR FAMILY MEMBER.TRY TO BE A SOCIAL HUMAN.DO SOMETHING FOR POOR ONE PERSON IN A DAY OR WEAK OR MONTH...DEPENDS ON YOUR EFFORT.I AM SURE ONE DAY YOU GOT CHANGE IN YOUR BEAUTIFUL LIFE.



औरतों को घूरने वाले पुरुषों पर बना वीडियो हुआ वायरल


सरे राह कहीं पर भी, कभी भी भारतीय पुरुष महिलाओं को इस तरह घूरते हैं जैसे वे कोई चीज़ हों और उन पर फब्तियां कसना तो मानो वो अपना अधिकार मानते हों. उनके लिए तो यह भी याद रख पाना मुश्किल है कि उन्‍होंने दिन भर में कितनी लड़कियों को घूरा और छेड़ा, लेकिन उन गंदी नजरों का सामना करने वाली लड़की ही जानती है कि उस पर उस वक्‍त क्‍या गुजरती है.


बहरहाल, सार्वजनकि जगहों पर औरतों को घूरने के खिलाफ 'देख ले' प्रचार अभियान शुरू किया गया है. इस अभियान के तहत यूट्यूब पर एक वीडियो अपलोड किया गया है, जिसके जरिए संदेश दिया गया है देख ले तू देखते हुए कैसा लगता है. यह वीडियो पुरुषों को उनके घूरने को लेकर सजग करता है. यह वीडियो खूब वायरल हो रहा है. खबर लिखे जाने तक यूट्यूब पर इस वीडियो को अब तक 1,488,767 लोग देख चुके हैं. इसे फिल्‍म इंस्‍टीट्यूट व्हिस्लिंग वुड्स ने प्रोड्यूस किया है.


वीडियो की शुरुआत में दिखाया गया है कि बाइक सवार दो पुरुष स्‍कूटी में बैठी हुई लड़की की जांघों को घूर रहे हैं. लड़की ने शॉर्ट्स पहने हुए हैं. इसके बाद एक बस का सीन दिखाया गया है, जहां एक महिला अपनी साथी महिला के कंधे पर सिर रखकर सो रही और पास में ही खड़े तीन पुरुष उसके क्‍लीवेज को घूर रहे हैं. इसके बाद वीडियो में दिख रहा है कि एक पुरुष लड़की की कमर पर बने टैटू को घूर रहा है. फिर एक चौथा शख्‍स दिखाया गया है जो ट्रेन में बुरका पहने एक महिला को घूरता है.


इसके बाद दिखाया गया है कि किस तरह ये सभी महिलाएं घूरने वाले पुरुषों को एक अलग ही अंदाज में जवाब देती हैं.

सोना महापात्रा ने विज्ञापन के गाने 'देख ले तू देखते हुए कैसा लगता है...', को अपनी आवाज दी है, जबकि म्‍यूजिक रामसंपत का है. 

अगर आपने अभी तक यह वीडियो नहीं देखा है तो यहां देखें



Sunday 29 December 2013

भटकल:भारत में परमाणु धमाकों के लिए मदद पाकिस्‍तान में मिलना सुनिश्चित,गिरफ्तारी के चलते योजना बीच में ही लटकी

 भटकल:भारत में परमाणु धमाकों के लिए मदद पाकिस्‍तान में मिलना सुनिश्चित,गिरफ्तारी के चलते योजना बीच में ही लटकी

...तो पाकिस्‍तान की मदद से भारत में हो जाता परमाणु बम धमाका?


नई दिल्ली. आतंकियों को भारत में परमाणु धमाका करने में पाकिस्‍तान मदद कर सकता है। यह चौंकाने वाला खुलासा कुख्यात आतंकवादी और इंडियन मुजाहिदीन इंडिया के प्रमुख जरार सिद्दीबप्पा उर्फ यासीन भटकल ने किया है। उसके मुताबिक उसे भारत में परमाणु धमाकों के लिए जरूरी मदद पाकिस्‍तान में मिलना सुनिश्चित हो गया था, लेकिन उसकी गिरफ्तारी के चलते योजना बीच में ही लटक गई। 
 
भारत में कई शहरों में सीरियल बम धमाके करने वाले यासीन के इस खुलासे से जांच एजेंसियों के होश उड़ गए हैं। सूत्रों के हवाले से सामने आई खबर में कहा गया है कि यासीन भटकल ने जांच कर रहे भारतीय अफसरों को पूछताछ में बताया है कि उसने पाकिस्तान में बैठे अपने 'आकाओं' की मदद से भारत के सूरत शहर को तबाह करने की नापाक साजिश रच डाली थी। लेकिन ऐन वक्त पर उसकी गिरफ्तारी ने सूरत को पाकिस्तान के कहर से बचा लिया।  
 
भारत और अमेरिका समेत दुनिया के कई देश इस बात को लेकर चिंतित हैं कि कहीं पाकिस्तान में सक्रिय चरमपंथी और आतंकवादी गुटों के पास परमाणु बम न हो। दिसंबर, 2008 में अमेरिका के बॉब ग्राहम और जिम टेलेंट की अध्यक्षता बने एक कमिशन ने 'वर्ल्ड एट रिस्क' नाम से एक रिपोर्ट जारी की थी। उस रिपोर्ट में कहा गया था, 'अमेरिका को कई मोर्चों पर खतरा है। एक तरफ बेहद लचर सरकार वाले पाकिस्तान में फैलता आतंकवाद तो दूसरी ओर बायोलॉजिकल और एटमी आतंकवाद।' बॉब ग्राहम और जिम टेलेंट ने बढ़ते खतरे को लेकर अमेरिका के पूर्व अफसर रिचर्ड डेंजिग की बात दोहराई थी। रिचर्ड ने कहा था, 'आतंकवादियों की बेपरवाही और उनका तजुर्बा (एटमी हथियारों को लेकर) न होना ही हमें बचा रहा है।'
 
यही वजह है कि अमेरिका पाकिस्तान के परमाणु बमों की सुरक्षा को लेकर कई बार सवाल उठा चुका है। लेकिन पाकिस्तान सरकार यही कहती रही है कि दुनिया उसके एटम बमों के बारे में फिक्र न करे। लेकिन यासीन भटकल का ताजा खुलासा भारत ही नहीं अमेरिका की भी आंखें खोलने के लिए काफी है। भारत के एक सीनियर खुफिया अफसर ने कहा,  'हम लोग अलग-अलग तरह की आईईडी देख रहे हैं। इसकी वजह यह है कि आतंकवादी पाकिस्तान में वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई की मदद से सभी तरह के हथियारों को चलाने और बम बनाने की ट्रेनिंग ले रहे हैं। अगर आतंकवादियों की पहुंच एटम बम तक है तो यह भारत के लिए बहुत खतरनाक बात है।' 
 
पाकिस्तान सरकार की ओर से वहां के भारत विरोधी तत्वों और चरमपंथियों को संरक्षण दिया जाना नई बात नहीं है। लेकिन अब तक घुसपैठ या आईईडी धमाकों तक सीमित रहने वाले पड़ोसी देश के असल इरादे यासीन के खुलासे से सामने आ गए हैं।  

...तो पाकिस्‍तान की मदद से भारत में हो जाता परमाणु बम धमाका?
रियाज ने यासीन से कहा था, पाकिस्तान में कुछ भी हो सकता है 
 
इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादी यासीन भटकल (तस्वीर में) ने पूछताछ में जांच कर रहे अफसरों को बताया कि उसने पाकिस्तान में मौजूद अपने सरगना रियाज भटकल से फोन पर पूछा था कि क्या वह एक छोटे एटम बम का इंतजाम कर सकता है। यासीन के मुताबिक रियाज ने कहा, 'पाकिस्तान में कुछ भी हो सकता है।' यासीन के मुताबिक रियाज ने उसे बताया था कि एटम बम से हमले किए जा सकते हैं। इसलिए मैंने सूरत में दागने के लिए एक एटम बम का इंतजाम करने को कहा था। यासीन का यह भी कहना है कि जब उसने रियाज से बात की तो रियाज ने कहा था कि अगर सूरत में एटम बम विस्फोट होगा तो उसमें मुस्लिम भी मारे जाएंगे। इस पर यासीन ने रियाज से कहा था कि वह सूरत की मस्जिदों में पोस्टर चिपका देगा जिसमें मुस्लिमों से चुपचाप शहर छोड़कर चले जाने को कहा जाएगा।   
 
लेकिन यासीन का यह खतरनाक प्लान असलियत नहीं बन सका। इसी साल अगस्त में उसे नेपाल के पोखरा से धर दबोचा गया था। सूरत यासीन के रडार पर काफी पहले से बताया जा रहा है। 2008 में दिल्ली, जयपुर और अहमदाबाद में हुए सीरियल बम विस्फोटों में भी यासीन भटकल का अहम रोल था। यासीन ने आतिफ अमीन के साथ मिलकर 27 बम तैयार किए थे, जिनसे 2008 में सीरियल विस्फोट किए गए थे। 
 
...तो पाकिस्‍तान की मदद से भारत में हो जाता परमाणु बम धमाका?
मुजफ्फराबाद, मुरीदके और सिंध में चल रहे हैं आतंक के कैंप
 
पाकिस्तान में लाहौर के नजदीक मुरदीके, सिंध और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के मुजफ्फराबाद में भारत विरोधी आतंकवादियों के लिए ट्रेनिंग कैंप चल रहे हैं। जानकारों के मुताबिक इन कैंपों से 2004 तक करीब 10 हजार लोगों को आतंकवादी ट्रेनिंग दी जा चुकी है। 
 
पाकिस्तान के शहर लाहौर से करीब 30 किलोमीटर दूर मुरीदके नाम की जगह पर पाकिस्तान उन तत्वों को आतंकवादी ट्रेनिंग देता है जो भारत के खिलाफ काम करना चाहते हैं। मुरीदके में करीब 200 एकड़ में फैले एक कंपाउंड में प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन लश्कर ए तैयबा की राजनीतिक और सामाजिक ईकाई जमात उद दावा का सेंटर है। लश्कर की स्थापना पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की मदद से 1990 में की गई थी। जमात उद दावा का प्रमुख हाफिज सईद है। वह भारत की मोस्ट वॉन्टेड लिस्ट में शामिल है। 26 नवंबर, 2008 में मुंबई शहर पर हुए आतंकवादी हमले का मास्टर माइंड हाफिज को ही माना जाता है। मुरीदके में मौजूद जमात के इसी ट्रेनिंग सेंटर में उन आतंकवादियों को ट्रेनिंग दी गई थी, जिन्होंने मुंबई पर हमला किया था। 
 
जमात से जुड़े लोग औपचारिक तौर पर यही बताते हैं कि यहां डेयरी, मछली पालन, अस्पताल और जन कल्याण का काम होता है। लेकिन ब्रिटिश मीडिया में आई खबरों के मुताबिक यह दुनिया की सबसे खतरनाक जगहों में से एक है। ब्रिटिश अखबार टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मुरीदके में जमात के कंपाउंड में अल कायदा के आतंकवादी पनाह लेते रहे हैं। इनमें रमजी यूसेफ भी शामिल है, जिसने 1993 में न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादी हमले की साजिश रची थी। बताया जाता है कि मुरीदके में चल रहे आतंकी ट्रेनिंग कैंप में पाकिस्तानी सेना के अफसर आकर ट्रेनिंग देते हैं। 
 
(तस्वीर: मुरीदके में मौजूद जमात उद दावा का ट्रेनिंग सेंटर) 



...तो पाकिस्‍तान की मदद से भारत में हो जाता परमाणु बम धमाका?
'संपूर्ण' भारत को आजाद कराना चाहता है लश्कर! 
 
मशहूर भारतीय इतिहासकार और लेखक ए.जी. नूरानी के मुताबिक लश्कर मरकज दावा वल इरशाद की सैन्य ईकाई है। नूरानी के मुताबिक मरकज दावा वल इरशाद संगठन के दो उद्देश्य हैं-पहला दावा (ज्ञान देना) और दूसरा-जेहाद। नूरानी के मुताबिक, 'हाफिज मोहम्मद सईद इन दोनों उद्देश्यों को अहम और एक दूसरे से जुदा न किए जा सकने वाला बताता है। लेकिन हाफिज को यह लगता है कि जेहाद को लेकर लापरवाही बरती जा रही है। लश्कर के नापाक इरादों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लश्कर के निशाने पर भारत और इजराइल हैं। यह प्रतिबंधित संगठन हिंदू और यहूदियों के अलावा ईसाइयों को निशाना बनाता रहा है। लश्कर स्पेन के अलावा संपूर्ण भारत को आज़ाद कराने के लिए कसमें खाता रहा है। स्पेन पर 800 से ज्यादा वर्षों तक मुस्लिमों ने शासन किया था।' 
 
(तस्वीर: मुरीदके में मौजूद जमात उद दावा का ट्रेनिंग सेंटर) 


...तो पाकिस्‍तान की मदद से भारत में हो जाता परमाणु बम धमाका?
मुशर्रफ का दावा, 6.5 लाख सैनिकों का बल अब भी मेरे साथ
 
भारत में 1999 में कारगिल जैसी घुसपैठ कराने वाले वाले पाकिस्तान के पूर्व सैनिक तानाशाह परवेज मुशर्रफ ने फिर ताल ठोकी है। उन्होंने इन बातों को खारिज कर दिया कि पाकिस्तान की शक्तिशाली सेना उन्हें छोड़ चुकी है। उन्होंने दावा किया, ‘6.5 लाख सैनिकों का बल अब भी मेरे साथ है।’ 
 
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने सेना का नेतृत्व ब्रिगेडियर और चीफ के तौर पर किया है। एक लीडर की तरह। कमांडर की तरह नहीं। एक चैनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा, ‘असली नेतृत्व तब आता है जब आपकी वर्दी में सितारे न लगे हों। आप सितारे हटाइए। फिर देखिए कि क्या आपके लोग आपकी बात सुनते हैं।’ मुशर्रफ ने कहा, ‘6.5 लाख सैनिकों वाली सेना ने उनका साथ नहीं छोड़ा है।’ खुद पर चल रहे मुकदमे के बारे में उन्होंने कहा, ‘इससे राजनीतिक प्रतिशोध की बू आती है। पूरी सेना इसे लेकर निराश है। मुझे इस बारे में संदेह नहीं है। मुझे जो प्रतिक्रिया मिली है, उसके मुताबिक सेना इस मुद्दे पर मेरे साथ है।’ 
 
एक जनवरी को होंगे पेश 
 
मुशर्रफ देशद्रोह के मामले में एक जनवरी को विशेष अदालत में पेश होंगे। 2007 में इमरजेंसी लगाने और संविधान निलंबित करने के लिए पूर्व सैन्य शासक पर देशद्रोह का मुकदमा चल रहा है। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सरकार ने इसके लिए विशेष अदालत गठित की है। शरीफ को 1999 में अपदस्थ कर मुशर्रफ देश की बागडोर अपने हाथ में ले ली थी। वे 2008 में पद से हटे थे।
 

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Thursday 26 December 2013

अहमदाबाद कोर्ट का नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट,जाकिया जाफरी ने कहा-फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत हाई कोर्ट में जाऊंगी

अहमदाबाद कोर्ट का नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट,जाकिया जाफरी ने कहा-फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत  हाई कोर्ट में जाऊंगी

 

नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट सही, नहीं चलेगा दंगों का केस, अहमदाबाद कोर्ट का फैसला

नई दिल्ली, 26 दिसम्बर 2013 | अपडेटेड: 18:04 IST
टैग्स: गुजरात दंगा| नरेंद्र मोदी| जाकिया जाफरी| गुलबर्ग सोसाइटी हत्याकांड| 2002 दंगा
नरेंद्र मोदी
नरेंद्र मोदी
बीजेपी के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को बड़ी राहत देते हुए अहमदाबाद की मजिस्ट्रेट अदालत ने उस एसआईटी रिपोर्ट को बरकरार रखा है जिसमें 2002 के गुजरात दंगों के मामले में मोदी को क्लीन चिट मिली थी. कोर्ट ने जाकिया जाफरी की याचिका को खारिज कर दिया. इसके साथ साफ कर दिया कि मोदी पर दंगों का केस नहीं चलेगा. मोदी ने इस फैसले के बाद ट्वीट किया, सत्यमेव जयते! Truth alone triumphs. हालांकि मजिस्ट्रेट बीजे गनात्रा ने यह भी कहा है कि जाकिया जाफरी को इस फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में जाने का पूरा अधिकार है.
आपको बता दें कि एसआईटी ने 2002 के सांप्रदायिक दंगा मामले में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और 58 अन्य को क्लीनचिट दी है. जिसे चुनौती देते हुए जाकिया जाफरी ने याचिका दी थी.
अब तक क्या-क्या हुआ?
जाकिया जाफरी ने आरोप लगाया था कि मोदी ने सीनियर मंत्रियों, अधिकारियों और पुलिस के साथ मिलकर राज्य में दंगे होने दिए. जाकिया द्वारा लगाए गए इन आरोपों की जांच सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित SIT टीम ने मार्च 2008 में शुरू की. चार साल के बाद एसआईटी ने फरवरी 2012 में कहा कि मोदी व अन्य आरोपियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं जिसके दम पर केस चलाया जा सके. SIT ने जांच खत्म करने की बात कहकर क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी.
आपको बता दें कि कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी अहमदाबाद के गुलबर्ग सोसाइटी के उन 58 लोगों में थे जिनकी हत्या उग्र भीड़ ने 28 फरवरी 2002 को कर दी. SIT ने 2010 में मोदी से पूछताछ की थी जो करीबन 9 घंटे तक चली.
2011 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि इसकी सुनवाई अहमदाबाद की अदालत ही करेगी. अप्रैल 2011 में गुजरात पुलिस के निलंबित पुलिस अधिकारी संजीव भट्ट ने दावा किया कि एक मीटिंग में मोदी ने उन्हें और अन्य पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि हिंदू दंगाइयों को साबरमती एक्सप्रेस में मारे गए 59 कारसेवकों की मौत का बदला लेने दिया जाए. हालांकि SIT ने कहा कि संजीव भट्ट की गवाही विश्वसनीय नहीं है क्योंकि राज्य सरकार द्वारा निलंबित किए जाने के कारण उनके मन में दुर्भावना हैं. SIT ने यह भी आरोप लगाया था कि याचिका राजनीति से प्रेरित है जिसे सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के कहने पर दायर किया गया.

नरेंद्र मोदी पर आए मजिस्ट्रेट कोर्ट के फैसले पर जाकिया जाफरी ने कहा- हिम्मत नहीं हारने वाली

नई दिल्ली, 26 दिसम्बर 2013 | अपडेटेड: 18:15 IST
टैग्स: जाकिया जाफरी| नरेंद्र मोदी| नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट| 2002 गुजरात दंगे| मजिस्ट्रेट कोर्ट| एसआईटी रिप
जाकिया जाफरी
जाकिया जाफरी
अहमदाबाद की अदालत द्वारा नरेंद्र मोदी को क्‍लीन चिट दिए जाने के फैसले पर याचिकाकर्ता जाकिया जाफरी ने कहा है कि वो हार नहीं मानने वाली हैं और एक न एक दिन मोदी की हकीकत सबके सामने आ जाएगी. मोदी को बड़ी राहत देते हुए अहमदाबाद की मजिस्ट्रेट कोर्ट ने उस एसआईटी रिपोर्ट को बरकरार रखा है, जिसमें 2002 के गुजरात दंगों के मामले में मोदी को क्लीन चिट मिली थी. क्या बोलीं जाकिया जाफरी
जाकिया जाफरी ने मीडिया से कहा, 'आज तो जज साहब ने फैसला सुनाया, मैंने सुन लिया. मैं हिम्मत हारने वाली नहीं हूं. केस को आगे लाऊंगी. हाई कोर्ट में जाऊंगी. आज जो मेरे को रिजल्ट मिला है, उससे आप समझ ही सकते हैं कि कितना न्याय हुआ. अभी नहीं तो फिर कभी. सही चीज सामने आएगी ही. जो सबूत हमने कोर्ट के सामने रखे, वो भले ही अभी कोर्ट को महत्वपूर्ण न लगे हों. मगर उम्मीद है कि बड़ी अदालत में इस पर ध्यान दिया जाएगा.'
क्या बोले वकील
हमें नहीं पता कि मिस्टर श्रीकुमार, राहुल शर्मा और संजीव भट्ट ने जो सबूत जुटाए थे, उन्हें अदालत ने माना भी है या नहीं. अभी हमने विस्तार से अदालत का फैसला नहीं पढ़ा है. मगर हमें लगता है कि जिस तरह के सबूत अदालत में दाखिल किए गए थे, वह नरेंद्र मोदी को गुनहगार ठहराने के लिए पर्याप्त थे. इसी यकीन के साथ हम ऊंची अदालत में जाएंगे. नरेंद्र मोदी 20-25 दिन सुकून से जी सकते हैं. तब तक हम फिर से मामला फाइल कर देंगे और आखिरी हद तक इस लड़ाई को जारी रखेंगे.


मोदी को घेरने की तैयारी में केंद्र सरकार, जासूसी कांड की जांच के लिए बनेगा आयोग

मोदी को घेरने की तैयारी में केंद्र सरकार, जासूसी कांड की जांच के लिए बनेगा आयोग

नई दिल्ली, 26 दिसम्बर 2013 | अपडेटेड: 14:00 IST
टैग्स: नरेंद्र मोदी| बीजेपी| जासूसी कांड| गुजरात| अमित शाह
नरेंद्र मोदी
नरेंद्र मोदी
केंद्र सरकार ने बीजेपी के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की मुश्किल बढ़ा दी है. कैबिनेट ने फैसला किया है कि गुजरात जासूसी कांड की जांच होगी. इसके लिए जांच आयोग के गठन को मंजूरी दे दी गई है. आपको बता दें कि मोदी के करीबी अमित शाह के इशारे पर गुजरात में कथित तौर पर एक महिला की जासूसी कराई गई. खबरों के मुताबिक, गुजरात पुलिस ने एक महिला आर्किटेक्ट पर अवैध तरीके से नजर रखी और इस क्रम में फोन टैपिंग नियमों का उल्लंघन किया. खबरों में कहा गया कि उक्त महिला जब गुजरात से बाहर जाती थी तो केंद्र सरकार की अनुमति लिए बिना ही उसके फोन टैप किए जाते थे.
जासूसी कांड की जांच के लिए बनाए जाने वाले जांच आयोग की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज करेंगे. फिलहाल इस जांच के लिए कोई समय सीमा नहीं तय की गई है पर इतना तय है कि इस जांच पर अंतिम रिपोर्ट लोकसभा चुनावों से पहले आ जाएंगे.
बीजेपी ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है. बीजेपी प्रवक्ता निर्मला सीतारमण ने इसे अपने राजनीतिक विरोधियों को दबाने की कांग्रेसी साजिश करार देते हुए कहा, ‘इमरजेंसी के समय जो मानसिकता थी वही आज भी चल रही है. विधानसभा चुनावों में करारी हार मिलने के बावजूद कांग्रेस सीखती नहीं है. यह राजनीतिक साजिश है. मोदी के खिलाफ कांग्रेस कैसे आगे बढ़ें यह उन्हें समझ में नहीं आ रहा है. इसलिए मोदी को निशाना बना रही है कांग्रेस.’

बीजेपी नेता और राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने इसे संघीय ढांचे पर हमला बताया है और कहा है कि बीजेपी इसे कोर्ट में चुनौती देगी.

The Central Government has announced the setting up a Commission of Inquiry to probe the allegations of alleged snooping by the Gujarat Government. This action is politically motivated. The Congress Party has not learnt from the drubbing it got in the elections recently. It has continued with its strategy of fighting Narendra Modi not politically but through investigative agencies and now through a Commission of Inquiry.

The Gujarat Government has already set up a Commission of Inquiry to inquire into this issue. The setting up of a parallel Commission by the Central Government ostensibly on the pretext of this issue covering more than one State is without any basis. This action legally is a suspect and liable for challenge. I am sure it will be legally challenged in courts. The setting up of this Commission violates the federal structure of the Constitution. It is an affront to the States.

I hope other Chief Ministers also join in the protest against this action.

Wednesday 25 December 2013

पाकिस्तान के साथ जारी रहेगा परमाणु सहयोग: चीन

पाकिस्तान के साथ जारी रहेगा परमाणु सहयोग: चीन

 बुधवार, 25 दिसंबर, 2013 को 17:04 IST तक के समाचार

पाकिस्तान के साथ परमाणु सहयोग के मसले पर चीन ने कहा है कि दोनों देशों के बीच परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में नज़दीकी सहयोग जारी रहेगा. साथ ही चीन ने यह भी जोड़ा है कि यह सहयोग "शांतिपूर्ण उद्देश्य" के लिए है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा है कि परमाणु ऊर्जा के मसले पर चीन और पाकिस्तान के बीच जारी सहयोग शांतिपूर्ण उद्देश्य और स्थानीय लोगों की भलाई के लिए है.
क्लिक करें पाकिस्तान के कराची शहर में बन रहे परमाणु बिजली संयंत्र को चीन की मदद के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच असैनिक परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में कई वर्षों से सहयोग का रिश्ता है.
चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने हुआ चुनयिंग के हवाले से बताया है, "यह सहयोग पूरी तरह से शांतिपूर्ण उद्देश्य के लिए है, अंतरराष्ट्रीय दायित्वों के अनुरूप है और इसमें अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के सुरक्षा उपायों का पूरा ख्याल रखा गया है."

शांतिपूर्ण उद्देश्य

पाकिस्तान परमाणु हथियार सम्पन्न देश है.
पीटीआई के मुताबिक पाकिस्तान के साथ क्लिक करें चीन का बढ़ता परमाणु व्यापार और सहयोग भारत के साथ ही पश्चिमी देशों की चिंता की प्रमुख वजह है, क्योंकि ऐसी आशंकाएं जताई जा रही हैं कि नए संयंत्र के चालू होने से पाकिस्तान के पुराने रिएक्टर हथियारों के लिए यूरेनियम तैयार कर सकते हैं.
लेकिन हुआ चुनयिंग का कहना है कि इस सहयोग से क्लिक करें पाकिस्तान में बिजली की किल्लत दूर करने में मदद मिलेगी और यह स्थानीय लोगों के हित में है. उन्होंने कहा कि चीन अपनी क्षमता के मुताबिक सहायता मुहैया कराता रहेगा.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री क्लिक करें नवाज शरीफ ने पिछले महीने करीब साढ़े नौ अरब डॉलर के इस संयंत्र के बारे में जानकारी दी थी लेकिन अधिकारियों ने इस बारे में थोड़ी ही जानकारी दी है कि वे इस योजना के लिए धन का इस्तेमाल कैसे करेंगे.

चीन से आर्थिक मदद

समाचार एजेंसी रॉयटर्स को मिले दस्तावेजों से पता चलता है कि चीन की राष्ट्रीय परमाणु सहयोग संस्था (सीएनएनसी) ने इस परियोजना में मदद के लिए कम से कम साढ़े छह अरब डॉलर बतौर कर्ज देने का वादा किया है.
इस परियोजना के तहत दो रिएक्टर होंगे, जिनमें से प्रत्येक की क्षमता 1,100 मेगावाट होगी.
रॉयटर्स के मुताबिक सरकार की ऊर्जा टीम में शामिल दो सदस्यों और इस सौदे के साथ करीब से जुड़े तीन सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है. हालांकि इस बारे में सीएनएनसी की टिप्पणी नहीं मिल सकी.
पाकिस्तानी परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष अंसार परवेज़ ने रॉयटर्स को बताया, "एक परमाणु बिजली संयंत्र का संचालन करने की पाकिस्तान की क्षमता पर चीन को पूरा भरोसा है."
उन्होंने कहा, "पाकिस्तान में परमाणु बिजली संयंत्रों का प्रदर्शन और क्षमता गैर-परमाणु संयंत्रों के मुकाबले काफी बेहतर रहा है."

सहयोग पर सवाल

परवेज़ ने हालांकि आर्थिक मदद का अधिक ब्यौरा देने से मना कर दिया लेकिन इतना कहा कि यह संयंत्र 2019 में तैयार होगा और इसके तहत बनने वाले प्रत्येक रिएक्टर की क्षमता पाकिस्तान की कुल स्थापित परमाणु बिजली क्षमता से अधिक होगी.
पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान ने 2004 में यह स्वीकार किया कि उन्होंने उत्तर कोरिया, ईरान और इराक को परमाणु तकनीक दी.
रॉयटर्स ने बताया है कि समझौते के मुताबिक चीन ने इस ऋण पर बीमा प्रीमियम के तौर पर ढाई लाख डॉलर माफ कर दिए हैं.
पाकिस्तान और चीन दोनों देशों के पास परमाणु हथियार हैं और उनके बीच बढ़ते सहयोग से भारत की चिंताएं बढ़नी स्वभाविक है.
इससे पहले 2008 में अमरीका ने परमाणु आपूर्ति के लिएक्लिक करें भारत के साथ समझौता किया था, जिस पर पाकिस्तान और चीन ने चिंता जताई थी.
पाकिस्तान भी अमरीका के साथ ऐसा ही समझौता करना चाहता था लेकिन अमरीका इसके लिए तैयार नहीं हुआ. इसकी बड़ी वजह यह रही क्योंकि पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान ने 2004 में यह स्वीकार किया था कि उन्होंने उत्तर कोरिया, ईरान और इराक को परमाणु तकनीक दी.

चीन: अपनों के बीच बेगाने हुए माओत्से तुंग

चीन: अपनों के बीच बेगाने हुए माओत्से तुंग

 गुरुवार, 26 दिसंबर, 2013 को 01:31 IST तक के समाचार

अमरीकी नागरिक सिडनी रिडेनबर्ग ने चीन में उस समय 35 साल गुजारे जब वहां बेहद उथल-पुथल मची हुई थी और माओत्से तुंग सहित कई दूसरे प्रमुख चीनी नेताओं के साथ उनकी गहरी दोस्ती थी. यहां हम चीन के गृह युद्ध, साम्यवाद के शुरुआती दिनों और माओ के दर्शन के बारे में उनके नज़रिए को रख रहे हैं.
चीन की किसी भी दूसरी चीज़ की तरह ही माओ की भूमिका भी विरोधाभाषी अध्ययन का विषय है. वो कमोबेश एक ऐसा विराट व्यक्तित्व थे जो बीजिंग की पहचान पर हावी रहे और यह प्रभाव फिलहाल तो कम होता नहीं दिखाई दे रहा है.
चीनी जनवादी प्रजातंत्र की स्थापना करने वाले क्लिक करें माओ की पहचान जार्ज वाशिंगटन की तरह है. वो अपने समय में एकता के महान सूत्रधार थे.
लेकिन आज उनकी पार्टी के नए सदस्यों सहित चीन के युवा मुश्किल से ही उनके लेखन, उनके सिद्धान्तों, उनकी महान सफलताओं और भयानक भूलों के बारे में कुछ जानते हैं.

उहापोह का दौर

शी जिगपिंग और उनके प्रमुख साथियों ने चेतावनी दी थी कि सोवियत की तर्ज पर माओवाद को उदार बनाने से काफी भ्रम फैल सकता है और इससे मौजूदा शासन कमजोर होगा.
इसके साथ ही वो 1950 के दशक के 'ग्रेट लीफ फॉरवर्ड' या 1966 से 1976 तक चली क्लिक करें सांस्कृतिक क्रांति जैसे भयानक माओवादी रोमांच से भी नहीं गुजरना चाहेंगे. सत्ता के अहंकार में किए गए इन सामाजिक प्रयोगों में करोड़ों निर्दोष लोगों की मौत हो गई थी.
स्टालिन के विपरीत माओ ने किसी को जेल में नहीं डाला और निश्चित रूप से वो भयानक अत्याचार के पक्ष में नहीं थे.
लेकिन वो अच्छी तरह से जानते थे कि वो एक बड़े सामाजिक प्रयोग में शामिल हैं, जिसने लाखों लोगों की जान जोखिम में डाल दी है और नतीजों को लेकर वो खुद भी बहुत अधिक आशावान नहीं थे.
उन्होंने वामपंथी अमरीकी लेखक अन्ना लुईस स्ट्रांग से 1958 में इस बात को स्वीकार किया था. स्ट्रांग उस समय माओ की सफलताओं पर केंद्रित एक किताब लिख रहीं थीं.

इंतजार कीजिए!

जब उन्होंने माओ से बात की तो उन्होंने कहा, "इस बारे में लिखने से पहले अभी पांच साल और इंतजार कीजिए." स्ट्रांग बताती हैं कि वो नतीजों को लेकर आश्वस्त नहीं थे.
तो क्या शी जिनपिंग माओवाद की समीक्षा कर रहे हैं? या इसी कारण चॉन्गचिंग में पार्टी के पूर्व प्रमुख क्लिक करें बो शिलाई के महत्व को कम किया गया.
दोनों ही सवालों का उत्तर है ''नहीं.''
बो गरीबों का समर्थन हासिल करने के लिए एक लोकप्रिय नेता की तरह समतावादी नारों का इस्तेमाल कर रहे थे.
जहां तक शी जिनपिंग की बात है, तो उनकी सुधारवादी नीतियां सीधे माओवादी अर्थशास्त्र के विपरीत हैं, लेकिन उन्होंने चीन की समस्याओं का विश्लेषण और उनके समाधान के लिए कुशलता के साथ माओवादी द्वंद्वात्मकता के तर्क का इस्तेमाल किया है.
वो माओ के नेतृत्व की सकारात्मक उपलब्धियों को स्वीकार करते हैं.

संघर्ष के दिन

इस तरह हम एक बेहद रोचक मोड़ पर आ जाते हैं. मोटेतौर पर पश्चिमी विद्वानों ने माओ के विश्लेषणों और दर्शन की अनदेखी की है. हालांकि अब खुद चीन में ही उनकी अनदेखी की जा रही है.
जब मैं सितंबर 1945 में चीन आया, उस दौर को याद कीजिए.
दो विरोधी दल कुओमिटांग (केएमटी) राष्ट्रवादी और क्लिक करें चीन के कम्युनिस्ट अपने सैन्य बलों को तैयार कर रहे थे. दोनों ही गरीबों के हितों के नाम पर एक खुनी गृह युद्ध के लिए खुद को तैयार कर रहे थे.
राष्ट्रवादी पक्ष के पास हट्टे-कट्टे और अच्छी तरह से प्रशिक्षित सैन्य टुकड़ी थी, जिसके पास हवाई सहायता और टैंक डिवीजन, भारी तोपखाने और मोटर आधारित परिवाहन प्रणाली थी. उनकी संख्या कम्युनिस्टों के मुकाबले कई गुना थी.
संचार के सभी प्रमुख साधनों पर उनका नियंत्रण था और मंचूरिया के बाहर सभी प्रमुख शहरों पर उनका ही प्रभाव था.
उन्हें हथियार और धन के रूप में अमरीका की मदद हासिल थी. हर लिहाज से उनकी श्रेष्ठता जगजाहिर थी.

दर्शन के शिक्षक

कम्युनिस्ट पक्ष की बात करें तो साधनविहीन ही दिखते थे. नवंबर 1946 में यनन से 40 किलोमीटर दूर कम्युनिस्ट की 359वीं ब्रिगेड से मिलने गया, जिसका कमांडर वांग जेन मेरा दोस्त था.
359वीं ब्रिगेड का लंबा इतिहास रहा है और उसने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान एक अमरीकी एयरबेस तैयार करने में मदद भी की थी.
यनन में उन्हें मार्च करते हुए देखकर मैं चकित रह गया. वो पुराने कपड़ों में एक भीड़ की तरह दिखाई दे रहे थे. उनमें से ज्यादातर तरुण थे.
प्रत्येक दस्ते में कुछ लोगों के पास ही जूते थे और ज्यादातर के पास खुद तैयार की गई घास की चप्पलें थीं. दस लोगों में पांच या छह के पास जापानी राइफल थी. बाकी बरछी-भाला लिए हुए थे.
यह दृश्य देखकर मेरा दिल दहल उठा: ये कैसे जीत सकेंगे?
इसके बावजूद वो जीते. आखिर क्यों? एक श्रेष्ठ, अधिक वैज्ञानिक सोच के कारण, जिसने कुशल और अधिक लोकप्रिय नीतियों (जैसे भूमि सुधार) को बढ़ावा दिया.
क्लिक करें माओ खुद को हमेशा एक प्राथमिक स्कूल का शिक्षक बताते थे. वास्तव में वो मानवता के इतिहास में दर्शन के एक महान शिक्षक थे.

मिस्र ने मुस्लिम ब्रदरहूड को आतंकी संगठन घोषित किया

मिस्र ने मुस्लिम ब्रदरहूड को आतंकी संगठन घोषित किया
काहिरा, एजेंसी
First Published:25-12-13 10:28 PM

मिस्र की सैन्य समर्थित सरकार ने मुस्लिम ब्रदरहूड को आतंकवादी संगठन घोषित किया है।
मिस्र के उच्च शिक्षा मंत्री होसाम ईशा ने कहा कि कैबिनेट ने मुस्लिम ब्रदरहूड को आतंकवादी संगठन घोषित किया है। सामाजिक सदभावना मंत्री अहमद अल बोरेई ने कहा कि सरकार ब्रदरहुड की सभी गतिविधियों को प्रतिबंधित करेगी।

रेडक्लिफ जिसने खींची थी भारत-पाकिस्तान के बीच बंटवारे की रेखा

रेडक्लिफ जिसने खींची थी भारत-पाकिस्तान के बीच बंटवारे की रेखा

 गुरुवार, 26 दिसंबर, 2013 को 07:29 IST तक के समाचार
 
 
बंटवारे की फाइल फोटो
साल 1947 का वो समय जब आनन फानन में ब्रिटेन से बुलाए गए सिरील रेडक्लिफ से कहा गया था कि भारत के दो टुकड़े करने है.... रेडक्लिफ न कभी भारत आए थे, न यहाँ की संस्कृति की समझ थी, बस भारत को बांटने का ज़िम्मा उन्हें सौंप दिया गया था. क्या गुज़रा होगा रेडक्लिफ़ के दिलो-दिमाग़ में.. इसी की कल्पना पर आधारित नाटक 'ड्राइंग द लाइन' लंदन में चर्चा में है.
नाटक के लेखक हॉवर्ड ब्रेंटन कुछ साल पहले भारत आए थे. वहाँ केरल में उनकी मुलाक़ात एक युवक से हुई जिसके पास पाकिस्तान में उनके पुश्तैनी घर की चाबियाँ आज भी हैं.
ये किस्सा सुनने के बाद हॉवर्ड के मन में भारत के बंटवारे को लेकर कई सवाल उठे और ख़ासकर उस शख़्स को लेकर जिसे विभाजन रेखा खींचने का ज़िम्मा सौंपा गया था.
कहते हैं कि रेडक्लिफ़ ने वो सब दस्तावेज़ और नक्शे जला दिए थे जो क्लिक करें बंटवारे के गवाह थे और इस बारे में ज़्यादा बात नहीं की. इतिहासकारों के मुताबिक भारत और पाकिस्तान में हुई सांप्रादियक हिंसा के कारण लाखों लोगों की मौत हो गई थी.
क्या रेडक्लिफ़ को इस पूरी घटनाक्रम को लेकर ग्लानि थी, क्या वे ख़ौफ़ज़दा या नाराज़ थे? इन्हीं काल्पनिक सवालों का जवाब ढूँढने की कोशिश इस नाटक में की गई है.
रेलक्लिफ़
ये नाटक भले ही इतिहास की एक त्रासदी को दर्शाता है जिसमें बंटवारे की रेखा अपने साथ ग़ुस्सा, बेबसी, कटुता का सैलाब लेकर आई. लेकिन नाटक में कई मुश्किल परिस्थितियों को भी कभी कभी तंज़ और व्यंग्य के पुट में दिखाया गया है.
मिसाल के तौर पर नाटक के एक दृश्य पर नज़र डालिए
पहला व्यक्ति (रेडक्लिफ़ से)- नक्शे पर आपने जो लकीर खींची है वो फिरोज़पुर की रेलवे लाइन है. आपने रेलवे लाइन के बीचों बीच सीमारेखा खींच दी है. एक रेल भारत में हो जाएगी और दूसरी पाकिस्तान में.
रेडक्लिफ़ (नक्शे पर खींची रेखा मिटाते हुए)- तो हम सीमारेखा को थोड़ा दक्षिण की ओर कर देते हैं.
पहला व्यक्ति- लेकिन यहाँ तो हिंदुओं के खेत हैं
रेडक्लिफ़- तो सीमारेखा को उत्तर की ओर कर देते हैं.

कैसे पाकिस्तान को मिला लाहौर

भारत के वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नय्यर विभाजन के समय सियालकोट में रहते थे. वे उन चंद लोगों में से थे जिन्होंने बाद में रेडक्लिफ़ से लंदन में मुलाक़ात की थी.
बंटवारे की फाइल फोटो
रेडक्लिफ़ से जुड़े अपने अनुभव बाँटते हुए कुलदीप नय्यर ने बताया, “मैं जानना चाहता था कि कैसे उन्होंने विभाजन की लाइन खींची. उन्होंने कोई बात मुझसे छिपाई नहीं.”
बकौल कुलदीव नय्यर रेडक्लिफ़ ने आपबीती सुनाते हुए कहा था, “मुझे 10-11 दिन मिले थे सीमा रेखा खींचने के लिए. उस वक़्त मैंने बस एक बार हवाई जहाज़ के ज़रिए दौरा किया. न ही ज़िलों के नक्शे थे मेरे पास. मैंने देखा लाहौर में हिंदुओं की संपत्ति ज़्यादा है. लेकिन मैंने ये भी पाया कि पाकिस्तान के हिस्से में कोई बड़ा शहर ही नहीं था. मैंने लाहौर को भारत से निकालकर पाकिस्तान को दे दिया. अब इसे सही कहो या कुछ और लेकिन ये मेरी मजबूरी थी. पाकिस्तान के लोग मुझसे नाराज़ हैं लेकिन उन्हें ख़ुश होना चाहिए कि मैने उन्हें लाहौर दे दिया.”
बंटवारे के कारण लाखों लोगों की जान गई. क्या रेडक्लिफ़ को इसे लेकर अफ़सोस था. कुलदीप नय्यर ने बताया कि इस बारे में रेडक्लिफ़ से कोई सीधी बात नहीं हुई लेकिन उन्हें बातचीत से ऐसा लगा कि रेडक्लिफ़ संवेदनशील इंसान थे और उन्हें काफ़ी ग्लानि महसूस हुई.

रेडक्लिफ़ कभी भारत नहीं लौटे

नाटक 'ड्राइंग द लाइन' में रेडक्लिफ़ का किरादर निभाने वाले ब्रितानी अभिनेता टॉम बियर्ड का भी मानना है कि वे शालीन और बिना पक्षपात करने वाले इंसान थे लेकिन अंतत वो शायद अपने काम को ठीक से अंजाम दे नहीं पाए.
नाटक की रिहर्सल के दौरान टॉम ने बताया, "मेरे ख़्याल से रेडक्लिफ़ पूरा काम सही तरीके से करना चाहते थे. उन्हें बहुत ही जटिल काम में झोंक दिया गया था, समय बहुत ही कम था उनके पास. रेडक्लिफ़ न्यायपूर्ण काम करना चाहते थे. पर वो कर नहीं पाए. वो इससे टूट जाते हैं, बिखर जाते हैं. दरअसल शुरू में उन्हें अंदाज़ा ही नहीं था कि ये कितना बड़ा काम है और इसका मानवीय-राजनीतिक असर क्या हो सकता है."
नाटक में काम करने वाले कलाकार मानते हैं कि 60 से भी ज़्यादा साल पहले हुए बंटवारे का खमियाज़ा आज की पीढ़ियाँ भी झेल रही हैं. भारतीय मूल के पॉल बेज़ली ने जिन्ना का किरदार निभाया है.
बंटवारे की फाइल फोटो
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "विभाजन की औपनेविशक विरासत का बोझ आज भी लोग उठा रहे हैं. कश्मीर को देखिए, वो आज युद्धक्षेत्र जैसा है. पाकिस्तान और भारत कई युद्ध लड़ चुके हैं. हज़ारों लोग दो ऐसे देशों की लड़ाई में मारे जा चुके हैं जो दो पीढ़ी पहले तक एक थे. जहाँ भी औपविेशवाद होता है, वो अपने निशां छोड़ ही जाता है. बस उस ताकत की जगह कोई नई शक्ति ले लेती है."
भारत और पाकिस्तान के लोगों के लिए ये नाटक इसलिए अहम है क्योंकि रेडिक्लिफ़ ही वो शख़्स थे जिनकी खींची एक रेखा ने रातों रात एक देश के दो टुकड़े कर दिए जबकि ब्रितानियों के लिए ये नाटक इतिहास की सबक की तरह है कि कैसे एक घटना लाखों लोगों की जान जाने की वजह बन गई.
बंटवारे के बाद लाखों की संख्या लोग अपना घर छोड़ सीमा के आर-पार जाने को मजूबर हुए लेकिन इस बीच सिरील रेडक्लिफ़ कभी भारत लौटकर नहीं आए.