#Editorial : विकास का ढोल
...पुरानी योजनाओं का नया नामकरण करके जनता को बेवकूफ बनाया जा रहा है।
ऐसा
लगता है कि यूपीए-दो की सरकार से लोगों को शिकायत सिर्फ इस बात से थी कि
वह कांग्रेसनीत गैर-हिंदुत्ववादी ‘सेक्युलर’ सरकार थी। वरना मौजूदा सरकार
के तहत आज योजनाएं, नीतियां और स्थितियां वही हैं जो पहले थीं, चाहे वह
विदेशी निवेश, यानी एफडीआइ हो, महंगाई या कालाधन हो। बल्कि पुरानी योजनाओं
का नया नामकरण करके जनता को बेवकूफ बनाया जा रहा है। मसलन,
बेवकूफ जनता : पुरानी योजनाओं का नया नामकरण
-प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना अब हो गई सांसद आदर्श ग्राम योजना,
-निर्मल भारत अभियान अब स्वच्छ भारत अभियान,
-एक व्यक्ति एक खाता योजना का नया नाम प्रधानमंत्री जनधन योजना ...etc आदि।
मनरेगा और खाद्य सुरक्षा जारी है।
-एफडीआइ की सीमा को बढ़ा दिया गया और डीबीटी, यानी डायरेक्ट बैंक ट्रांस्फर योजना भी फिर से शुरू होने जा रही है।
-जहां तक जनसाधारण के लिए उपयोगी वस्तुओं की कीमतों की बात है तो सिर्फ पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बहुत मामूली कमी (इसका बाजार पर कोई असर नहीं पड़ा) के अलावा अन्य सभी आवश्यक वस्तुओं के दाम वैसे ही हैं।
-पेट्रोल और डीजल के दाम भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में गिरावट के कारण कम हुए हैं, सरकार की किसी मेहरबानी के चलते नहीं। इस पर अगर कोई यह तर्क दे कि अंतरराष्ट्रीय बाजार भी, खासकर अरब (मुसलिम) देश मोदी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर तेल की कीमतें कम कर रहे हैं तो उस पर तरस ही खाना चाहिए!
अब बाजारवादी नीतियों को पहले के मुकाबले और निर्मम तरीके से क्रियान्वित कराया जा रहा है, क्योंकि अब संख्याबल भी पर्याप्त है, जिसके अभाव का रोना मनमोहन सिंह अक्सर रोते थे। अब रसोई गैस की सबसिडी भी समाप्त करने की योजना है। विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने इसे राष्ट्रविरोधी कदम बता कर घोर विरोध जताया था और संसद का पूरा सत्र बर्बाद कर दिया था। जो लोग महंगाई को लेकर हमेशा रोते रहते थे, वे भी अब इस मुद्दे पर चुप हैं। मीडिया के भी एक छोटे-से वर्ग को छोड़ कर आमतौर पर सबने इस सरकार को मौन सहमति दे रखी है। क्या सिर्फ इसलिए कि अचार के नए मर्तबान में पुराना अचार हिंदुत्व का तड़का लगा कर परोसा जा रहा है? क्या सिर्फ हिंदुत्व के नाम पर इस सरकार को समर्थन देना सच्चा राष्ट्रवाद कहा जा सकता है? कहां है वह विकास का ‘गुजरात मॉडल’ जिसका चुनावों से पहले ढिंढोरा पीटा जाता था?
...पुरानी योजनाओं का नया नामकरण करके जनता को बेवकूफ बनाया जा रहा है।
बेवकूफ जनता : पुरानी योजनाओं का नया नामकरण
-प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना अब हो गई सांसद आदर्श ग्राम योजना,
-निर्मल भारत अभियान अब स्वच्छ भारत अभियान,
-एक व्यक्ति एक खाता योजना का नया नाम प्रधानमंत्री जनधन योजना ...etc आदि।
मनरेगा और खाद्य सुरक्षा जारी है।
-एफडीआइ की सीमा को बढ़ा दिया गया और डीबीटी, यानी डायरेक्ट बैंक ट्रांस्फर योजना भी फिर से शुरू होने जा रही है।
-जहां तक जनसाधारण के लिए उपयोगी वस्तुओं की कीमतों की बात है तो सिर्फ पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बहुत मामूली कमी (इसका बाजार पर कोई असर नहीं पड़ा) के अलावा अन्य सभी आवश्यक वस्तुओं के दाम वैसे ही हैं।
-पेट्रोल और डीजल के दाम भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में गिरावट के कारण कम हुए हैं, सरकार की किसी मेहरबानी के चलते नहीं। इस पर अगर कोई यह तर्क दे कि अंतरराष्ट्रीय बाजार भी, खासकर अरब (मुसलिम) देश मोदी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर तेल की कीमतें कम कर रहे हैं तो उस पर तरस ही खाना चाहिए!
अब बाजारवादी नीतियों को पहले के मुकाबले और निर्मम तरीके से क्रियान्वित कराया जा रहा है, क्योंकि अब संख्याबल भी पर्याप्त है, जिसके अभाव का रोना मनमोहन सिंह अक्सर रोते थे। अब रसोई गैस की सबसिडी भी समाप्त करने की योजना है। विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने इसे राष्ट्रविरोधी कदम बता कर घोर विरोध जताया था और संसद का पूरा सत्र बर्बाद कर दिया था। जो लोग महंगाई को लेकर हमेशा रोते रहते थे, वे भी अब इस मुद्दे पर चुप हैं। मीडिया के भी एक छोटे-से वर्ग को छोड़ कर आमतौर पर सबने इस सरकार को मौन सहमति दे रखी है। क्या सिर्फ इसलिए कि अचार के नए मर्तबान में पुराना अचार हिंदुत्व का तड़का लगा कर परोसा जा रहा है? क्या सिर्फ हिंदुत्व के नाम पर इस सरकार को समर्थन देना सच्चा राष्ट्रवाद कहा जा सकता है? कहां है वह विकास का ‘गुजरात मॉडल’ जिसका चुनावों से पहले ढिंढोरा पीटा जाता था?