Saturday 22 March 2014

कहां गए भारत के चिट्ठी लेखक?

कहां गए भारत के चिट्ठी लेखक?


भारत के प्रोफ़ेशनल पत्र लेखक, जगदीश चंद्र शर्मा, दिल्ली
सदियों से भारत में पेशेवर चिट्ठी लेखकों ने लाखों निरक्षर लोगों की मदद की है. लेकिन भारत के अधिकांश शहरों से पत्र लेखकों की यह प्रजाति लगभग विलुप्त हो चुकी है.
दिल्ली में एक व्यक्ति भारत की राजधानी के इकलौते प्रोफ़ेशनल पत्र लेखक होने का दावा करते हैं.
मुझे आज भी कोलकाता शहर में घरेलू काम में मदद करने वाले कैलाश के लिए मेरी माँ का पत्र लिखना याद है.
उड़ीसा के रहने वाले कैलाश की उम्र 50 साल थी और वह कभी स्कूल नहीं गए.
हर महीने मेरी माँ उनके लिए चिट्ठी लिखती थीं.

बचपन की यादें

"लोग मुझे बताते थे कि वे क्या लिखवाना चाहते हैं, मैं उनकी बात सुनता और संक्षेप में सुंदर शब्दों में लिखता था. इसके बाद मैं उनके लिए पत्र पढ़ता और लोग मेरे काम से प्रभावित हो जाते थे."
जगदीश शर्मा, दिल्ली के एक पत्र लेखक
आमतौर पर चिट्ठियों की शुरुआत, "प्रिय बेटे..." के साथ होती और इसमें पूरे परिवार का हाल-समाचार पूछा जाता था.
चिट्ठियों में कोलकाता से भेजे जाने वाले पैसों को ख़र्च करने से जुड़ी सलाह भी होती थी.

अपनी किशोरावस्था में मैंने और मेरी बहन ने उनके लिए पत्र लिखने की ज़िम्मेदारी ले ली.
कैलाश हमारे घर में रहते थे और हममें से किसी से भी पत्र लिखने को कहते थे.
उनके जैसे लाखों लोग जो नियमित रूप से बड़े शहरों में काम के सिलसिले में सफ़र करते हैं, उनका हाल-सामाचार उनके घरों तक पहुंचाने के लिए पेशेवर पत्र लेखक होते थे. लेकिन अब वे विलुप्ति के कगार पर हैं.

'आख़िरी पत्र लेखक'

भारत की राजधानी में जगदीश चंद्र शर्मा शायद आख़िरी पेशेवर पत्र लेखक हैं. उन्होंने भी पिछले दस सालों में एक भी पत्र नहीं लिखा है.
मुंबई में पत्र लेखक
कश्मीरी गेट के व्यस्त पोस्ट ऑफ़िस के सामने मेरी उनसे मुलाकात हुई, उनके मुताबिक़, वो यहां पिछले 31 साल से बैठ रहे हैं.
वह बताते हैं कि उन्होंने कई साल तक मज़दूरों, रेड लाइट एरिया में रहने वाली सेक्स वर्करों, स्थानीय फल और सब्ज़ी विक्रेताओं के लिए पत्र लिखे हैं.
इस पेशे की सीधी सी योग्यता है भाषा पर पकड़, साफ़-साफ़ लिखना और कल्पनाशील मन.
अपने बीते दिनों के बारे में शर्मा कहते हैं, "लोग मुझे बताते थे कि वे क्या लिखवाना चाहते हैं. मैं उनकी बात सुनता और संक्षेप में सुंदर शब्दों में लिखता था. इसके बाद मैं उनके लिए पत्र पढ़ता और लोग मेरे काम से प्रभावित हो जाते थे."

'खाने की फ़ुरसत नहीं'

कुछ साल पहले तक शर्मा के साथ अन्य पत्र लेखक भी पोस्ट ऑफ़िस के सामने बैठा करते थे.
भारतीय पत्र लेखक, मुंबई
वे बताते हैं, "रोज़ाना हमारे सामने लोगों की लंबी लाइन होती थी और हम उनके पत्र लिखते, मनीऑर्डर और टेलीग्राम फ़ॉर्म भरते, पार्सल पैक करते और आख़िर में उसके ऊपर पते लिखते थे."
बीते दिनों को याद करके वे कहते हैं, "रोज़ाना करीब 70-80 लोगों की चिट्ठियाँ लिखते थे. किसी-किसी दिन तो खाना खाने की भी फ़ुरसत नहीं मिलती थी."
कभी-कभार उनसे पत्र लिखवाने वाले लोग पत्र पढ़वाने के लिए भी आते थे.
दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में मध्यकालीन इतिहास के प्रोफ़ेसर व इतिहासकार नजफ़ हैदर कहते हैं कि चिट्ठियां और ख़त लिखने वाले सदियों से भारत के शहरी जीवन का अभिन्न हिस्सा रहे हैं.

सीमित शुल्क वाले पत्र

नजफ़ हैदर बताते हैं, "16वीं-17वीं शताब्दी के दौरान मुगल काल में राजा के दरबार, सरदार और अभिजात वर्ग में पत्रलेखन के लिए मुंशी की नियुक्ति होती थी.''
उस समय कातिब भी होते थे जो दस्तावेज़ों और किताबों के पुनर्लेखन का काम करते थे और जनसामान्य के लिए पत्र भी लिखते थे."
भारत में अंग्रेज़ों ने 1854 में आधुनिक डाक सेवा की शुरुआत करते हुए पोस्ट ऑफ़िस में पेशेवर चिट्ठी लिखने वालों की औपचारिक व्यवस्था की थी.
डाक सेवा पूर्व उप-निदेशक ब्रिगेडियर वायपीएस मोहन कहते हैं, "19वीं शताब्दी के दौरान साक्षरता दर काफ़ी कम होने के कारण यह सेवा शुरू की गई थी."
पोस्ट एंड टेलीग्राफ़ मैनुअल के अनुसार, "डाक अधीक्षक के पास पेशेवर पत्र लेखकों को पोस्ट ऑफ़िस परिसर में काम की अनुमति देने का अधिकार था, अगर वे लोगों के हित में काम करते हैं."
इस योजना के तहत पूरे भारत में सैकड़ों पेशेवर पत्र लिखने वाले लोग पोस्ट ऑफ़िस के सामने ही बैठा करते थे, जो थोड़े से पैसे लेकर लोगों की चिट्ठियां लिखा करते थे.

शिक्षा-दूरसंचार में क्रांति

भारत में धीरे-धीरे शिक्षा बढ़ी. लगभग हर किसी के हाथ तक मोबाइल की पहुंच हो गई. इसके कारण चिट्ठी लिखने वालों के रोज़गार में तेज़ी से कमी आई.
जुलाई 2008 में ब्रिगेडियर मोहन के एक पत्र पर हस्ताक्षर के साथ पेशेवर लेखकों की सेवा भी समाप्त हो गई थी.
फ़ोन पर बात करती एक लड़की
उनके आदेश के अनुसार, "यह सेवा ऐसे दौर में शुरू की गई थी जब भारत में साक्षरता की दर बहुत ज़्यादा नहीं थी और निरक्षर लोगों को डाक विभाग के ज़रिए संवाद करने के लिए इस मदद की ज़रूरत थी."
इसके मुताबिक़, "पूरे देश में साक्षरता दर में बढ़ोत्तरी और मोबाइल की पहुंच (दूरसंचार क्रांति) के कारण पेशेवर चिट्ठी लेखक अप्रासंगिक हो गए हैं."
शर्मा बताते हैं कि 2008 के इस आदेश से पहले ही पत्र लेखन का पेशा ढलान पर था.

'फ़ोन पर बात कर लूंगी'

बदलते समय के साथ पत्र लेखन से जुड़े लोग दूसरे रोज़गार में लग गए या सेवानिवृत्ति ले ली, लेकिन जगदीश शर्मा इस पेशे में बने रहे.
वे बताते हैं, "मैं कहीं और नहीं जा सकता था."
जब मैं उस दोपहर शर्मा से मिली, तो वह पोस्ट ऑफ़िस बिल्डिंग के बाहर बैठे एक महिला ग्राहक के लिए बच्चों के कपड़ों वाला पार्सल पैक कर रहे थे.
पार्सल पैक कराने वाली महिला रेखा कुमारी उनके पास पिछले 10 साल से आ रही हैं.
शर्मा कहते हैं कि वह दिन की पहली ग्राहक हैं. जब मैंने रेखा से पूछा कि क्या वह जगदीश से अपने लिए पत्र लिखने के लिए भी कहेंगी?
तो उन्हों

मिले प्लास्टिक के मैडल: नक्सलियों से लड़े, मरे... मिले प्लास्टिक के मैडल ::नक्सलियों के हाथों मारे गए लोगों के परिजनों की व्यथा

 शनिवार, 22 मार्च, 2014 को 11:34 IST तक के समाचार

दंतेवाड़ा, बिंजाम गांव, प्लास्टिक के मैडल
बिंजाम गाँव में उदासी छाई हुई है. यहाँ एक बार फिर मातम का माहौल है. किसी ने यहाँ के रहने वालों के ज़ख़्मों को फिर से हरा कर दिया है.
इससे पहले वर्ष 2011 की नौ जून को यहाँ मातम तब पसरा था जब इसी गाँव के तीन नौजवान दंतेवाड़ा के कटेकल्याण के इलाक़े में हुए एक बारूदी सुरंग विस्फोट में मारे गए थे.
घटना में कुल दस जवान मारे गए थे जिनमें से तीन विशेष पुलिस अधिकारी- योगेश मडियामी, बख्शु ओयामी और चमनलाल बिंजाम के ही थे जबकि बाक़ी के छत्तीसगढ़ के दूसरे इलाक़ों से थे.
अगले साल, यानि 2006 में 26 जनवरी के दिन दंतेवाड़ा के कारली स्थित पुलिस लाइन में एक समारोह आयोजित कर मारे गए विशेष पुलिस अधिकारियों को सम्मान दिया गया. बस्तर की तत्कालीन प्रभारी मंत्री ने मारे गए जवानों के परिजनों को मैडल भी दिए.
मगर जवानों के परिवारों को झटका तब लगा जब सम्मान में दिए गए मैडलों का रंग उतरने लगा. पता चला कि यह सभी मैडल प्लास्टिक के हैं.

अस्थाई नौकरी

योगेश मडियामी के पिता रूपाराम मडियामी के लिए सम्मान का पदक दरअसल अब अपमान का पदक बन गया है. गाँव में बनी उनकी झोपड़ी की दीवार से टंगे-टंगे जैसे अब यह पदक उन्हें चिढ़ा रहा है.
दंतेवाड़ा से 12 किलोमीटर दूर अपने गाँव में जब बीबीसी से उनकी मुलाक़ात हुई तो वो काफ़ी आहत नज़र आए.
कहने लगे, "मंत्री लता उसेंडी ने पदक देते वक़्त हमसे कहा था कि यह सोने का है और इसे संभाल कर रखना. सोना क्या रहेगा, यह तो लोहे का भी नहीं है. अब पता चल रहा है कि यह तो प्लास्टिक का है. यह हमारे परिवार का सम्मान नहीं, बल्कि अपमान है."
दंतेवाड़ा, बिंजाम गांव, प्लास्टिक के मैडल
रूपाराम मडियामी कहते हैं कि प्लास्टिक के मैडल उनके परिवार और उनके बेटे की शहादत का अपमान हैं.
नक्सल विरोधी अभियान के दौरान मारे जाने वाले सुरक्षा बल के जवानों को सरकार की तरफ़ से मुआवज़ा दिया जाता है. मगर योगेश और उनके साथ मारे गए जवान छत्तीसगढ़ पुलिस बल के सदस्य नहीं थे बल्कि वह विशेष पुलिस अधिकारी थे. इसलिए उन्हें मुआवज़े की रक़म भी कम मिली.
जिस तरह से मुआवज़े की रक़म दी गई वह भी कम अपमानजनक नहीं था. रूपाराम बताते हैं कि सबसे पहले उन्हें बेटे के दाह-संस्कार के लिए एक लाख रुपये दिए गए थे. फिर तीन महीने बाद उन्हें पांच लाख रुपये और मिले. कुछ ही दिनों बाद उनसे एक लाख रुपये वापस लौटाने को कहा गया.
सरकार की नीति के अनुसार, नक्सल विरोधी अभियान में मारे गए सुरक्षा बल के जवानों के परिजनों को अनुकम्पा के आधार पर स्थायी सरकारी नौकरी और मकान भी दिया जाता है.
बिंजाम के मारे गए विशेष पुलिस अधिकारियों के आश्रितों को अनुकम्पा के आधार पर नौकरी तो दी गई, मगर दैनिक वेतन भोगी की.
योगेश की बहन प्रभा को दंतेवाड़ा के कन्या छात्रावास में दैनिक वेतन भोगी चपरासी की नौकरी मिली. बख्शु ओयामी के भाई पन्द्रू ओयामी के भाई को बालक छात्रावास में रसोइये की नौकरी मिली जो अस्थाई है. इसी तरह चमनलाल की पत्नी को भी चपरासी की अस्थाई नौकरी दी गई.

मरहम !

मैडलों पर से रंग उतरता देख, मारे गए विशेष पुलिस अधिकारियों के परिवारों के चेहरे एक बार फिर बोझिल होने लगे हैं.
योगेश की माँ आमवारी के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे. वह अब बात करने की स्थिति में नहीं हैं. दो साल पहले के उनके ज़ख़्म एक बार फिर हरे हो गए हैं.
दंतेवाड़ा, बिंजाम गांव, प्लास्टिक के मैडल
बस्तर के प्रभारी छत्तीसगढ़ के मंत्री केदार कश्यप ने बीबीसी से बात करते हुए घटना पर आश्चर्य ज़ाहिर किया और कहा कि वह पूरे मामले की जांच करवाएंगे.
वह कहते हैं, "ये एक गंभीर मामला है. हम सुनिश्चित करेंगे कि जिन पुलिस के जवानों ने अपनी जान देकर इलाक़े में शांति स्थापित करने के लिए क़ुर्बानी दी है, उन्हें पूरा सम्मान मिले."
एक मंत्री के दिए ज़ख्मों और दूसरे मंत्री के मरहम के बीच अब छत्तीसगढ़ में इस बात पर बहस छिड़ गई है कि नक्सल विरोधी अभियान में इतनी राशि के आवंटन के बावजूद मारे गए जवानों के परिजनों को रुसवाई क्यों उठानी पड़ रही है.

भारतीय सेना: तीन अधिकारियों को मिला कीर्ति चक्र

भारतीय सेना: तीन अधिकारियों को मिला कीर्ति चक्र

नई दिल्‍ली, 22 मार्च 2014 | अपडेटेड: 17:01 IST
टैग्स: कीर्ति चक्र| अधिकारी| सम्‍मान| एयरफोर्स| इंजीनियर| विंग कमांडर
भारतीय वायुसेना के एक अधिकारी सहित तीन अधिकारियों को आज कीर्ति चक्र प्रदान किया गया. कीर्ति चक्र शांति समय का दूसरा सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार है. पुरस्कार पाने वालों में उत्तराखंड बाढ़ पीडि़तों की जान बचाते समय जान गंवाने वाले वायुसेना के अधिकारी, बिना रुके पूरी दुनिया का चक्कर समुद्र मार्ग से लगाने वाले नौसेना के अधिकारी और चार आतंकियों को मार गिराने वाले सेना के एक मेजर शामिल हैं.
असम में अपने तीन सहयोगियों का जीवन बचाते समय जान गंवाने वाले सीमा सड़क संगठन के एक सिविल इंजीनियर और एक गांव को आग से बचाने वाले भारतीय वायुसेना के एक जवान सहित 10 लोगों को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शौर्य चक्र से सम्मानित किया.
विंग कमांडर डेरिल कैस्टेलिनो को मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया है. उत्तराखंड में राहत और बचाव ऑपरेशन राहत के दौरान एक एमआई17वी 5 हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. उस समय उस पर 20 लोग सवार थे. दुर्घटना से पहले कैस्टेलिनो ने 80 से अधिक लोगों का जीवन बचाने में मदद की थी.
पंजाब रेजीमेंट के मेजर महेश कुमार ने जम्मू कश्मीर में तीन अलग अलग घटनाओं में चार आतंकियों का सफाया किया. ऐसी ही एक कार्रवाई के दौरान उन्होंने दो आतंकियों को मार गिराया था. ये आतंकी एक साइकिल से भागने की कोशिश कर रहे थे और उन्होंने मेजर पर ग्रेनेड से हमला भी करने का प्रयास किया.

कमोडोर अभिलाष टोमी ने 151 दिन में बिना रुके और बिना किसी बाहरी समर्थन के अपने पोत से दुनिया का चक्कर समुद्र मार्ग से लगाया.


Breaking News Till 22 Mar 2014:Blog Archive 2014 & 2013(Full NEWS In ONE Place Till 22 Mar 2014)

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MORE NEWS LIKE: EXCLUSIVE: UTTARAKHAND GOVERNMENT IS NOW ON LOW MAJORITY-उत्तराखंड में गिर सकती है कांग्रेस सरकार,|सतपाल महराज ने दिया कांग्रेस को झटका, BJP में हुए शामिल,| हरीश रावत कैंप का दावा, सरकार को खतरा नहीं| खबर यह भी है कि कांग्रेस के 6 विधायक सतपाल महाराज के साथ,कांग्रेस की सरकार अल्पमत में  
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Sikh man jailed for attack on Lt Gen Brar, who led Operation Blue Star, in UK


Sikh man jailed for attack on Lt Gen Brar, who led Operation Blue Star, in UK



READ MORE Kuldip Singh Brar|Operation Blue Star
LONDON: 
 
A 26-year-old Sikh man was on Friday jailed for 10 years here for making an attempt on the life of Lt Gen (retd) Kuldip Singh Brar, who led the 1984 Operation Blue Star to flush out extremists from the Golden Temple.

The pro-Khalistani supporters tried to slash the throat of 78-year-old Brar in a revenge attack on the streets of central London in 2012 for his role in leading the operation at the Sikh holy shrine in Amritsar.

Lakhbir Singh was the fifth man to be sentenced for the attack after being convicted for grievous bodily harm with intent at Southwark Crown Court in London.

A gang of three men and a woman were jailed in December for their role in the attack.

The trial heard that the gang targeted Brar, himself a Sikh, in revenge for his leading role in Operation Blue Star against Sikh militants that left 1000 people dead.

Brar survived the knife attack, which left him with a 12-inch cut across his jaw.

Brar who was on a holiday here returned to India and gave evidence through video link.

He was attacked when he was returning to his hotel after dinner in central London with his wife Meena in September 2012.

Friday 21 March 2014

तो सतपाल बनेंगे उत्तराखंड के अगले मुख्यमंत्री? ::::BJP READY TO GIVE HIM CM-UTTARAKHAND SEAT OF UTTARAKHAND ::: सतपाल ने बढ़ाई कांग्रेस की मुश्किलें

तो सतपाल बनेंगे उत्तराखंड के अगले मुख्यमंत्री?


सतपाल के इस दांव के मायने

सतपाल के इस दांव के मायने


उत्तराखंड में दिग्गज कांग्रेसी नेता सतपाल महाराज का पार्टी छोड़कर भाजपा में प्रवेश महज नाराजगी के बाद उठाया गया कदम नहीं है। सब पत्ते ठीक चले और सब योजनाबद्ध रूप से हुआ तो वह उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी बन सकते हैं या फिर उनके किसी विश्वस्त को सत्ता सौंपी जा सकती है। कांग्रेस के तंग गलियारों के बजाय भाजपा में उनके लिए कई विकल्प खुले हैं।



जहां भाजपा से तीनों पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खण्डूड़ी, कोश्यारी और डॉ. रमेश पोखरियाल संसद का चुनाव लड़ रहे हैं, वहीं इस बात की राह देखी जा रही है कि सतपाल की बगावत और फिर पार्टी छोड़ना कांग्रेस को कहां तक धाराशाही कर सकता है। महज उत्तराखंड की लोकसभा की पांच सीट ही नहीं, राज्य में कांग्रेस सरकार की स्थिति भी डावांडोल हो सकती है।

अब देखा यही जा रहा है कि सतपाल महाराज अपने साथ-साथ कितने कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों को तोड़ सकते हैं। उत्तराखंड सरकार में उनकी पत्नी अमृता रावत मंत्री हैं और निर्दलीय जीतकर मंत्री बने मंत्री प्रसाद नैथानी उनके करीबियों में हैं। सतपाल महाराज अपने साथ अगर विधायकों की अपेक्षित संख्या में जोड़ पाते हैं तो उत्तराखंड में सत्ता परिवर्तन को नकारा नहीं जा सकता। दिल्ली में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद भले ही सरकार बनाने में संकोच किया हो, लेकिन उत्तराखंड में भाजपा पीछे नहीं 

भाजपा में आने के बाद तमाम विकल्प खुले


वर्तमान स्थितियों में कांग्रेस में सतपाल महाराज के लिए कुछ खास अवसर नहीं बन रहे थे। जिस पौड़ी लोकसभा सीट से वह चुनकर आए थे, वहां इस बार उनके लिए रास्ता सहज नहीं था। यही माना जा रहा था कि इस बार उनके लिए पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद खण्डूड़ी के सामने टिक पाना मुश्किल होगा। हालात को देखते हुए उन्होंने टिकट लेने से भी इंकार किया।

दूसरी ओर हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद उनके लिए राज्य की बागडोर संभालने का अवसर भी निकल गया। सतपाल महाराज ने अच्छी तरह समझा होगा कि अब सामान्य स्थिति में हरीश रावत को ही अगले विधानसभा चुनाव तक सत्ता संभालनी है।

इस हालात में उनके लिए संतोष करने लायक यही स्थिति रहती कि प्रदेश की सरकार में उनकी पत्नी कबीना मंत्री हैं। यह राजनीति में अवसरों के लिए जुगाली करने जैसी बात होती। लेकिन भाजपा में आने के बाद उनके सामने तमाम विकल्प खुल गए हैं। भाजपा उन्हें राज्यसभा में भी भेज सकती है।  

कांग्रेस का आंतरिक द्वंद


राज्य में कांग्रेस की सरकार जिन परिस्थितियों में बनी थी, उसमें असंतोष के बीज उसी दिन पड़ गए थे। कांग्रेस कुछ निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार तो बना सकी, लेकिन उसके छत्रपों में द्वंद्व चलता रहा। कांग्रेस हाइकमान के जरिए विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाए जाने पर हरीश खेमा ने त्यौरियां दिखाई तो सतपाल महाराज कसमसाते रह गए।

लेकिन विजय बहुगुणा ने धीरे-धीरे सतपाल महाराज को मना लिया। विजय बहुगुणा के मंत्रिमंडल में अमृता रावत प्रभावशाली मंत्री के तौर पर रही। लेकिन बदली परिस्थितियों में जब हरीश रावत ने राज्य की सत्ता संभाली तो सब कुछ पहले की तरह अनुकूल नहीं था। सतपाल महाराज ने कुर्सी की लड़ाई जम कर लड़ी। लेकिन हरीश रावत बाजी मार गए।

कांग्रेस का आतंरिक द्दंद्व खुल कर सामने आता रहा।

सतपाल ने बढ़ाई कांग्रेस की मुश्किलें

सतपाल महाराज अपनी नाराजगी को व्यक्त करने से नहीं चूके। उधर अमृता रावत के पास से उद्यान विभाग लेकर डॉ हरक सिंह रावत को दे दिया गया। डॉ हरक सिंह रावत और सतपाल महाराज के करीबी मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी के बीच पहले भी एक दो मामलों को लेकर नोकंझोंक होती रही हैं।

इस बार उद्यान विभाग के हाथ से निकलने पर सतपाल महाराज धड़े ने इसे प्रतिष्ठा से जोड़ा। यही माना गया कि कहीं न कहीं हरीश रावत इसके जरिए सतपाल महाराज की अहमियत को कम आंक रहे हैं। हुआ यही कि सतपाल महाराज ने पहले तो लोकसभा चुनाव लड़ने से इंकार किया और फिर चौंकाते हुए भाजपा के पाले में चले गए। राज्य कांग्रेस के आला नेताओं को इस बारे में आभास था।

मुख्यमंत्री हरीश रावत और विजय बहुगुणा की दिल्ली में बातचीत का सबसे अहम पहलू इसी संभावित बगावत और उसके बाद के हालात ही थे। हालांकि कहा यही गया कि हरीश रावत विजय बहुगुणा को मनाने और टिहरी से चुनाव लड़ने के लिए तैयार करने आए थे। उत्तराखंड में सतपाल महाराज का कांग्रेस छोड़ने के बाद कांग्रेस के सामने कई और मुश्किले आने वाली है। सतपाल महाराज ने कांग्रेस छोड़ने के पीछे के आपदा प्रंबंधन में सरकार की असफलता को आड़े हाथ लिया है। कांग्रेसी खेमे में पहले ही सुकून नहीं था, सतपाल महाराज की बगावत ने उसकी दिक्कतों को और बढ़ा दिया है। 
 

GMAIL INDIA ON DANGER,GMAIL RELEASE PRECAUTION ON IT...जीमेल पर खतरा, जारी की चेतावनी :::: गूगल बेहतर सुरक्षा के लिए ईमेल संदेशों को कूट रूप देगा

GMAIL INDIA ON DANGER,GMAIL RELEASE PRECAUTION ON IT...जीमेल पर खतरा, जारी की चेतावनी :::: गूगल बेहतर सुरक्षा के लिए ईमेल संदेशों को कूट रूप देगा

गूगल ने छेड़ा बचाव अभियान

गूगल ने छेड़ा बचाव अभियान


दुनिया की दिग्गज आईटी कंपनी गूगल ने जीमेल खातों और कंप्यूटरों पर सरकार प्रायोजित हमले की चेतावनी जारी की है। कई देशों की सरकारें हैकरों के जरिए अहम लोगों के कंप्यूटर और ई-मेल में सेंधमारी कराती हैं।

भारत में पहली बार बड़े पैमाने पर नेताओं, सरकारी अधिकारियों, पत्रकारों और कॉरपोरेट्स के जीमेल और पर्सनल कंप्यूटर पर ऐसे हमलों का खतरा पैदा हुआ है। गूगल ने जीमेल खातों को इनसे बचाने का अभियान भी शुरू किया है।

शुक्रवार सुबह से ही भारत में कई जीमेल अकाउंट पर गूगल की ओर से चेतावनी मिलनी शुरू हुई।
लिंक या अटैचमेंट वाले ईमेल से हमले


ऐसी चेतावनी सिर्फ संवेदनशील जीमेल खातों पर ही भेजी जा रही है। इसमें गूगल ने लिखा है कि राज्य प्रायोजित हमलावर आपके ई-मेल खाते और कंप्यूटर पर अटैक कर सकते हैं। ऐसे हमले लिंक या अटैचमेंट वाले ई-मेल भेजकर किए जाते हैं, जिन्हें खोलते ही कंप्यूटर या मेल हैक हो जाता है।

गूगल ने संभावित खतरे से बचने के लिए किसी भी संदिग्ध मेल या लिंक को न खोलने की सलाह दी है। इसके अलावा जीमेल अकाउंट की सुरक्षा बढ़ाने केलिए कई उपाय भी सुझाए गए हैं।

साइबर कानून के एक्सपर्ट पवन दुग्गल का कहना है कि पिछले साल एडवर्ड स्नोडेन के खुलासे के बाद सरकारों की तरफ से साइबर जासूसी की बात सामने आई थी। अब गूगल की चेतावनी से इस तरह के खतरे की बात पुख्ता हो गई है। सरकार प्रायोजित हमलों के प्रति चेतावनी देना गूगल का नया फीचर है, जिससे लोगों में जागरूकता बढ़ेगी।

 गूगल के सुझाव

गूगल के सुझाव


- किसी संदिग्ध या अनजान मेल, लिंक, अटैचमेंट को न खोलें।
- जीमेल खातों की सुरक्षा बढ़ाने में गूगल की टिप्स लें।
- फर्जी लॉग-इन पेज से सतर्क रहें।
- डबल पासवर्ड का इस्तेमाल करें।

गूगल बेहतर सुरक्षा के लिए ईमेल संदेशों को कूट रूप देगा


इंटरनेट क्षेत्र की प्रमुख कंपनी गूगल ने अपने सर्वर को ज्यादा सुरक्षित और विश्‍वसनीय बनाने तथा सुरक्षा में खामी को दूर करने के लिए अपनी लोकप्रिय सेवा जीमेल को कूट रूप (एन्क्रिप्टेड) की घोषणा की है.

जीमेल के सुरक्षा इंजीनियरिंग क्षेत्र के प्रमुख निकोलस ने कहा कि आपका ईमेल आपके लिए महत्वपूर्ण है और इसे हमेशा सुरक्षित और उपलब्ध रखना हमारे लिए महत्वपूर्ण है.

निकोलस ने एक ब्‍लॉग में लिखा कि आज से आप जब भी ईमेल देखेंगे या भेजेंगे तो जीमेल कूट रूप (एन्क्रिप्टेड) एचटीटीपीएस संपर्क का उपयोग करेगा.

जीमेल ने शुरुआत से एचटीटीपीएस का उपयोग किया है. उन्होंने कहा कि आज के बदलाव का मतलब है कि कोई भी आपके संदेश को नहीं देख सकेगा.

 

कान के मैल से जुड़ी पांच अहम बातें:::: know about year dust-why,how,how automatically quite

कान के मैल से जुड़ी पांच अहम बातें:::: know about year dust-why,how,how automatically quite

 शुक्रवार, 21 मार्च, 2014 को 20:39 IST तक के समाचार

कान का मैल
कान का मैल कुछ उन शारीरिक पदार्थों में से एक है जिसकी चर्चा करना अमूमन हम पसंद नहीं करते हैं.
शरीर के अन्य स्रावों की तरह, हम में से ज़्यादातर अकेले में इससे निपटना पसंद करते हैं. तब भी कई लोगों के लिए यह एक आकर्षण का विषय है.
पहले इसका इस्तेमाल एक लिप बाम और ज़ख़्मों पर मरहम के तौर पर किया जाता था
लेकिन यह इससे कुछ ज़्यादा कर सकता है. हाल के शोध से पता चलता है कि यह शरीर में प्रदूषक पदार्थ इकट्ठा होने का संकेत देता है और इससे शरीर में कुछ बीमारियों का भी पता लगाया जा सकता है.
कान के मैल से जुड़ी पाँच चीजें जो शायद आप ना जानते हो.

1. ये बाहर कैसे आता है?

कान के अंदर की कोशिकाएँ विशेष तरह की होती है. वे एक जगह से दूसरे जगह तक जाती है.
लंदन के रॉयल नेशनल अस्पताल में गला, नाक और कान के प्रोफेसर शकील सईद के मुताबिक़ " आप कान में स्याही की एक बूंद डाल कर देखिए, कुछ हफ़्तों के बाद पाएंगे कि कोशिकाओं के साथ ये बाहर आ रही है."
यदि ऐसा नहीं होता है तो कान का छेद प्राकृतिक प्रक्रिया से बनी मृत कोशिकाओं से भर जाएगा.
कान का मैल
इसी तरह से कान का मैल भी आगे बढ़ता है. ऐसा माना जाता है कि खाने-पीने के दौरान जबड़े के हिलने से भी ये मैल बाहर आता है.
प्रोफेसर सईद ने पाया है कि उम्र बढ़ने के साथ कभी-कभी यह मैल ज़्यादा काला हो जाता है और जिन लोगों के कान में बाल ज़्यादा होते हैं उनके कान से मैल बाहर नहीं आ पाता है.

2. एंटी-माइक्रोबियल गुण

कान के मैल में मोम होता है लेकिन यह मूल रूप से मृत केराटिनोसाइट्स कोशिकाओं का बना होता है.
कान का मैल कई पदार्थों का मिश्रण होता है. करीब 1,000 से 2,000 के बीच ग्रंथियां एंटी-माइक्रोबियल पेप्टाइड बनाती हैं. बालों की कोशिकाओं के करीब मौजूद वसा की ग्रंथियां मिश्रित एल्कोहल, स्कुआलीन नाम का तेल, कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड बनाती हैं.
महिलाओं और पुरूषों में कान का मैल एक समान मात्रा में बनता है लेकिन एक अध्ययन से पता चला है कि ट्राइग्लिसराइड की मात्रा नंवबर से जुलाई के बीच कम हो जाती है.
कान के मैल में लाइसोज़ाइम भी पाया जाता है जो एक एंटी-बैक्टिरियल एंज़ाइम है.

3. आपका परिवार कहां से है ये मायने रखता है

कान का ऑपरेशन
अमरीका के फिलाडेल्फिया के मोनेल संस्थान के वैज्ञानिकों के मुताब़िक एशियाई और गैर एशियाई लोगों के कान में अलग-अलग तरह का मैल होता है. क्रोमोज़ोम 16 कान के मैल के "गीले" या "सूखा" होने के लिए जिम्मेदार है.
जीन एबीसीसी11 में एक छोटा सा परिवर्तन कान के मैल के सूखा होने और चीनी, जापानी और कोरियाई व्यक्तियों के शरीर के कम दुर्गंध युक्त होने से संबंधित है.
अमरीकी अध्ययन में पूर्वी एशियाई और गोरे पुरुषों के समूहों में कान के मैल में 12 वाष्पशील कार्बनिक यौगिक पाए गए हैं.

4. साफ़ करने का तरीका

कान का मैल
कान के मैल में एंटी-बैक्टीरियल एंजाइम लाइसोज़ाइम पाया जाता है.
कान को साफ़ करने के लिए किसी सिरींज के बदले नन्हा वैक्युम क्लीनर बेहतर है.
प्रोफेसर सईद सिरीज से बेहतर वैक्युम क्लीनर को मानते हुए कहते है, "अगर आप पानी का इस्तेमाल करते हैं तो उसे मैल से आगे जाना होगा और मैल लेकर वापस आना होगा. अगर कोई अंतर नहीं होगा तो ये मैल से आगे नहीं जा सकेगा और इस पर ज़्यादा ताकत भी नहीं लगाई जानी चाहिए. कान के पर्दे को सिरींज करने पर यूं तो नुकसान नहीं पहुंचता लेकिन ऐसा कभी-कभी होता है."

5. इससे प्रदूषण का पता चलता है

कान के मैल में कई अन्य शारीरिक स्राव की तरह कुछ भारी धातुओं के रूप में कुछ विषाक्त पदार्थ हो सकते हैं.
लेकिन एक तो यह ऐसी चीज़ देखने के लिए एक अजीब जगह है और दूसरी बात ये कि एक साधारण रक्त परीक्षण से ज़्यादा विश्वसनीय नहीं है.
कुछ दुर्लभ चयापचय संबंधी विकार कान के मैल को प्रभावित करने वाले होते हैं.

EXCLUSIVE: UTTARAKHAND GOVERNMENT IS NOW ON LOW MAJORITY- उत्तराखंड में गिर सकती है कांग्रेस सरकार,| सतपाल महराज ने दिया कांग्रेस को झटका, BJP में हुए शामिल,| हरीश रावत कैंप का दावा, सरकार को खतरा नहीं | खबर यह भी है कि कांग्रेस के 6 विधायक सतपाल महाराज के साथ,कांग्रेस की सरकार अल्पमत में

EXCLUSIVE: UTTARAKHAND GOVERNMENT IS NOW ON LOW MAJORITY-

उत्तराखंड में गिर सकती है कांग्रेस सरकार,|

सतपाल महराज ने दिया कांग्रेस को झटका, BJP में हुए शामिल,|

 हरीश रावत कैंप का दावा, सरकार को खतरा नहीं| 

खबर यह भी है कि कांग्रेस के 6 विधायक सतपाल महाराज के साथ,कांग्रेस की सरकार अल्पमत में 

 

खबर यह भी है कि सतपाल महाराज के साथ उत्तराखंड से कांग्रेस के 6 विधायक जा सकते है। यदि ऐसा होता है तो राज्य में कांग्रेस की सरकार अल्पमत में आ सकती है। 

 

  Mar 21, 2014 at 11:56am | Updated Mar 21, 2014 at 12:48pm 
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नई दिल्ली। चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस को एक और तगड़ा झटका लगा है। उत्तराखंड के मजबूत नेता और पौड़ी गढ़वाल से सांसद सतपाल महराज ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है। सतपाल महराज पार्टी से इस्तीफा देने के बाद बीजेपी में शामिल हो गए हैं। 

आज बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह की मौजूदगी में सतपाल बीजेपी में शामिल हो गए। इस मौके पर राजनाथ ने कहा कि सतपाल के आने से बीजेपी को उत्तराखंड में मजबूती मिली है। मैं सतपाल जी का पार्टी में स्वागत करता हूं।
कांग्रेस में टिकटों के बंटवारे को लेकर लड़ाई पहले से ही चल रही थी जो अब खुलकर सामने आ गई। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत से मनमुटाव की खबरों के बाद आखिर सतपाल महराज ने कांग्रेस को अलविदा कह ही दिया। हरीश रावत के रवैये को लेकर सतपाल लगातार नाराज चल रहे थे।
सतपाल महाराज की पत्नी अमृता रावत उत्तराखंड सरकार में मंत्री है। गढ़वाल मंडल में सतपाल का खासा असर माना जाता है। हरीश रावत के सीएम बनने के बाद सतपाल महाराज को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का वादा किया गया था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। साथ ही हाल ही में सतपाल महाराज की पत्नी से बागवानी मंत्रालय लापस ले लिया गया था और हरक सिंह रावत को दे दिया गया था। 

खबर यह भी है कि सतपाल महाराज के साथ उत्तराखंड से कांग्रेस के 6 विधायक जा सकते है। यदि ऐसा होता है तो राज्य में कांग्रेस की सरकार अल्पमत में आ सकती है। 

Thursday 20 March 2014

NARAYAN MURTI INFOSYS: मूर्ति आये और बड़े अधिकारी गये, इंफोसिस में एक और इस्तीफा

NARAYAN MURTI INFOSYS: मूर्ति आये और बड़े अधिकारी गये, इंफोसिस में एक और इस्तीफा

Fri, 21 Mar 2014 09:26 AM (IST)

 
मूर्ति आये और बड़े अधिकारी गये, इंफोसिस में एक और इस्तीफा
नई दिल्ली। इंफोसिस के सह-संस्थापक एनआर नारायणमूर्ति के चेयरमैन पद पर वापसी के बाद से शीर्ष अधिकारियों का कंपनी छोड़ना जारी है। कंपनी के भारतीय कारोबार के ऑपरेशन हेड चंद्रशेखर काकाल ने गुरुवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। प्रबंधन के वह नौंवे ऐसे अधिकारी हैं जिन्होंने यह रास्ता अख्तियार किया है।
मूर्ति ने पहले ही यह साफ कर दिया है कि कंपनी में जो बेहतर प्रदर्शन नहीं करेंगे उन्हें जाना होगा। काकाल वर्ष 1999 से इंफोसिस को सेवाएं दे रहे थे। वह कंपनी के वैश्रि्वक कारोबार में एप्लिकेशन डेवलपमेंट, मेंटेनेंस, टेस्टिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर मैनेजमेंट सेवाएं भी दे रहे थे। वह इंफोसिस बीपीओ के बोर्ड में भी शामिल थे।

इंफोसिस ने अमेरिकी बाजार नियामक एसईसी को दी गई जानकारी में कहा कि कंपनी के सीनियर वाइस प्रेसीडेंट और एक्जिक्यूटिव काउंसिल के सदस्य चंद्रशेखर काकाल ने 19 मार्च, 2014 को कंपनी से इस्तीफे की इच्छा जताई। उनका इस्तीफा 18 अप्रैल से प्रभावी होगा। इससे पहले जुलाई 2013 में कंपनी के ग्लोबल सेल्स हेड बासब प्रधान और अगस्त में ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हेड अशोक वेमूरी ने कंपनी छोड़ी थी।

नवंबर में इंफोसिस कंसल्टिंग के सह संस्थापक स्टीफन प्रैट ने इस्तीफा दिया था। सितंबर में ऑस्ट्रेलिया में बीपीओ सेल्स हेड कार्तिक जयरमन और बीपीओ हेड लैटिन अमेरिका हम्बटरे एंद्राडे ने कंपनी छोड़ी थी।

इस शख्स की सैलरी है 1 रुपये, कंपनी का कारोबार 13000 करोड़ से ज्यादा


 
इस शख्स की सैलरी है 1 रुपये, कंपनी का कारोबार 13000 करोड़ से ज्यादा
नई दिल्ली। ऐसा व्यक्ति जिसने देश के आइटी सेक्टर को आसमान पर पहुंचा दिया, जिसकी वजह से इस कंपनी को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ आइटी कंपनी के तौर पर देखा जाता है उसकी सैलरी मात्र एक रुपया है जबकि कारोबार तेरह हजार करोड़ रुपये से ज्यादा। जी हां, वो कोई और नहीं बल्कि इंफोसिस के सहसंस्थापक एनआर नारायणमूर्ति हैं।
एक वक्त था जब इंफोसिस हर साल कामयाबी की नई ऊंचाइयों को छू रही थी। लेकिन जैसे ही नारायण मूर्ति का नाता कंपनी से छुटा वैसे ही कंपनी की परफॉर्मेस खराब होने लगी। नारायण ने एक बार फिर इंफोसिस में वापसी की और सबको हैरान कर दिया। इंफोसिस की खराब हालत को संभालने के लिए एनआर नारायण मूर्ति कंपनी में लौट आए।

साल 1981 में छह अन्य इंजीनियर्स के साथ मिलकर नारायण मूर्ति ने इंफोसिस को शुरू किया। इसके लिए उन्होंने उस समय 10,000 रुपये का निवेश किया वो भी रिश्तेदारों और परिवारवालों से उधार लेकर।

क्या आप जानते हैं इस बड़े आदमी ने पिछले साल जब कंपनी में वापसी की तो उसकी सैलरी कितनी थी। नारायण मूर्ति ने जब वापसी की तो उन्होंने मात्र 1 रुपये प्रति वर्ष की सैलरी पर कुर्सी संभाली। हाल ही में जारी इंफोसिस के वित्तीय परिणामों ने सभी को चौंका दिया। कंपनी का कारोबार बढ़कर 13,064 करोड़ रुपये पर पहुंच गया और मुनाफा बढ़कर 2,875 करोड़ रुपये दर्ज किया गया। इससे पहले इंफोसिस की वित्तीय हालत नाजुक दौर से गुजर रही थी।
ऐसा ही उदाहरण विदेशों में देखा गया जब बड़ी कंपनियों के सीईओ 1 डॉलर का वेतन लेकर कंपनी का परिचालन कर रहे थे। सिटी ग्रुप की माली हालत खराब होने के बाद कंपनी के सीईओ विक्रम पंडित ने सैलरी के नाम 1 डॉलर का भुगतान लेना शुरू किया था। इसके अलावा, फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग, गूगल के लैरी पेज, हेल्वेट पैकार्ड के मेग वाइटमैन उन लोगों में शामिल हैं जिन्होंने कंपनी को आगे बढ़ाने और एक आदर्श साबित करने के लिए 1 डॉलर सैलरी पर काम किया। हालांकि, इस एक डॉलर सैलरी की शुरुआत अमेरिका में व‌र्ल्ड वॉर 1 के बाद हुई जब सरकारी कर्मचारियों ने इस सैलरी पर काम किया था।

इंफोसिस की कहानी में एक और मोड़


 
इंफोसिस की कहानी में एक और मोड़
नई दिल्ली [धीरेंद्र कुमार]। यदि भारत में आइटी उद्योग और खासकर इंफोसिस की मूल विशेषता की बात की जाए तो वह यह है कि इसके नेतृत्व में उम्मीदों से बेहतर करने की योग्यता है। मुहावरे के रूप में कहा जाए तो इस उद्योग का ट्रैक रिकॉर्ड लोगों को हैरत में डालने वाला रहा है। दो दशक पहले इसकी शुरुआत भी कुछ इसी तरह आश्चर्यजनक रूप से हुई थी।
पिछले शुक्रवार को इंफोसिस के शेयर में 17 फीसद का जोरदार उछाल आया। इस तेजी से कंपनी का बाजार पूंजीकरण करीब 20,000 करोड़ रुपये बढ़ गया। भारतीय शेयर बाजार में यह किसी भी बड़ी कंपनी में एक दिन में आया यह सबसे बड़ा उछाल था। प्रतिशत के मामले में भी यह वर्ष 1997 में इंफोसिस के शेयर में ही दर्ज हुई अब तक की सबसे बड़ी तेजी के लगभग बराबर रही। वैसे, उस वक्त इस आइटी कंपनी का बाजार पूंजीकरण अब से 150 गुना कम था। साथ ही उस समय शेयर बाजार के निवेशक इस कंपनी से परिचित ही हो रहे थे।
किसी जानी मानी कंपनी की कीमत में कुछ ही घंटों में इतनी बड़ी तब्दीली कैसे आ सकती है? बाजार कारोबारों का मूल्यांकन करता है, यदि हम आम नजरिये से समझें, तो पाते हैं कि कंपनी जितनी बड़ी होगी, उतनी गहराई से उस पर रिसर्च होता है। साथ ही जितना ही पारदर्शी कंपनी का कारोबारी मॉडल होगा, उतना ही इसका बाजार मूल्य स्थिर रहना चाहिए। इंफोसिस अपनी श्रेणी में इन सभी मानकों पर अव्वल रहने वाली कंपनी है। साथ ही ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जो यह कहते हैं कि वह कंपनी के कारोबारी मॉडल को पूरी तरह से समझते हैं। इतना ही नहीं वे यह भी बता सकते हैं कि इसकी भावी दशा और दिशा क्या होगी।
दर्जनों शोध संस्थाएं इंफोसिस के साथ-साथ समूचे आइटी उद्योग पर भी तमाम तरीकों से निगाह रखती हैं। यदि आप इनमें से किसी भी संस्था की रिपोर्ट पढ़ें तो लगता है कि जो कुछ कंपनी में हुआ, इन संस्थाओं को उसकी पूरी और सटीक जानकारी थी। जो कुछ भविष्य में हो सकता है उसकी भी इन्हें पूरी जानकारी है। साथ ही इस बात को पूरे यकीनी तौर पर कहा जाता है। लेकिन इन सब के बावजूद बाजार को अचानक अपने अनुमानों को बदलना पड़ता है और इसके चलते कंपनी की बाजार कीमत एक ही झटके में 17 फीसद बढ़ जाती है।
ऐसा क्यों हुआ? यदि बाजार के जानकारों से बात करें तो वे आपको कारोबारी जवाब देंगे कि लोगों ने अपनी शॉर्ट पोजीशन कवर की है। लेकिन असल में यह कोई जवाब नहीं है, यह केवल तेजी के घटनाक्रम का ही विस्तृत ब्योरा है। आखिर शॉर्ट पोजीशन बनाने वाले इतने सारे लोग इससे सहमत क्यों हुए कि इंफोसिस एकतरफा गिरावट की राह पर थी? गिरावट भी कोई साधारण नहीं बल्कि तेज और इतनी डरावनी कि जिसे रोका नहीं जा सकता।
इसके जवाब के दो पहलू हैं। पहला यह कि इन दिनों जैसे विश्लेषण हो रहे हैं, उनमें हालिया रुझानों को ही सीधे-सीधे अतिरंजित रूप में पेश किया जाता है। यानी इंफोसिस का समय खराब बीता है, इसलिए यह निकट भविष्य में और बदतर होता जाएगा। कुल मिलाकर इन सभी विश्लेषणों में इस बात को सिरे से अनदेखा किया जाता है कि कंपनी का प्रबंधन विभिन्न घटनाक्रमों, मोड़ों और बदलावों से सीधे तौर पर प्रभावित नहीं हुआ है। यदि भारत में आइटी उद्योग और खासकर इंफोसिस की मूल विशेषता की बात की जाए तो वह यह है कि इसके नेतृत्व में उम्मीदों से बेहतर करने की योग्यता है। मुहावरे के रूप में कहा जाए तो इस उद्योग का ट्रैक रिकॉर्ड लोगों को हैरत में डालने वाला रहा है। दो दशक पहले इस उद्योग की शुरुआत भी कुछ इसी तरह आश्चर्यजनक रूप से हुई थी। साफ-सुथरे तरीके से कारोबार करना और कोई छुपा हुआ एजेंडा न रखना ही इस उद्योग (और इसके कुछ प्रमोटरों) को दौड़ में आगे बनाए रखता है। मैंने महसूस किया है कि जानकार हमेशा इस बात की अहमियत को कम करके आंकते हैं कि कैसे एक गुणवत्तापूर्ण प्रबंधन अतिरिक्त मूल्य सृजित कर सकता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि समान गुणवत्ता के मौजूदा उत्पाद की क्या कीमत लगाई जा रही है।
दूसरा पहलू यह है कि इक्विटी विश्लेषण का पूरा कारोबार एक ईको चैंबर बन गया है। इसमें एक ही तरह की राय बार-बार दुहराए जाने से एक खास तरह का माहौल तैयार कर देते हैं, ऐसे लोग एक दूसरे का समर्थन करते हुए इतने मजबूत हो जाते हैं कि किसी कथित सच्चाई का अतिरंजित स्वरूप स्थापित कर दिया जाता है। और फिर जब कोई अप्रत्याशित घटना घटती है तो एक जैसी राय का यह चक्र विपरीत दिशा में घूम जाता है और इस दिशा में अतिवाद की तरफ बढ़ जाता है। इंफोसिस की कहानी केवल एक मसला है, मगर बाजार और इसके विश्लेषक किस तरह से प्रतिक्रिया देते हैं यह पूरी एक अलग कथा है। अगर बाजार के विश्लेषक इस बात पर ध्यान दें तो यह ज्यादा उपयोगी होगा।


इंफोसिस को सही राह पर लाने को लौटे मूर्ति

Sat, 01 Jun 2013 09:47 PM (IST)

 
इंफोसिस को सही राह पर लाने को लौटे मूर्ति
बेंगलूर। जब एक जहाज की स्थिति बेकाबू होने लगती है तो संभालने के लिए सभी उसे बनाने वाले को याद करते हैं। कुछ ऐसा ही हुआ है देश की दूसरी सबसे बड़ी आइटी कंपनी इंफोसिस लिमिटेड के साथ। पिछले दो साल से लगातार खराब तिमाही नतीजों और बाजार हिस्सेदारी में आ रही कमी से परेशान इंफोसिस ने एक बार फिर अपने सह संस्थापक एनआर नारायणमूर्ति को याद किया है। भारतीय आइटी सेक्टर को दुनियाभर में पहचान दिलाने के बाद अगस्त, 2011 में मूर्ति ने रिटायरमेंट ले लिया था। अब उन्हें केवी कामथ की जगह एक जून से पांच साल के लिए नया एक्जीक्यूटिव चेयरमैन नियुक्त किया गया है।
पिछली कुछ तिमाहियों में इंफोसिस की मुख्य प्रतिद्वंद्वी टीसीएस, कॉग्नीजेंट और एचसीएल टेक ग्लोबल सुस्ती के बावजूद बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं। वहीं, इंफोसिस उचित निर्देशन के अभाव में पिछड़ती जा रही थी। कंपनी के सीईओ एवं सह संस्थापक एसडी शिबूलाल को इसके चलते लगातार हमले झेलने पड़ रहे थे। नारायणमूर्ति ने 1981 में छह साथियों के साथ मिलकर 250 डॉलर पूंजी के जरिये इंफोसिस को खड़ा किया। यह आज 396 अरब रुपये की कंपनी बन चुकी है।
अगस्त में 67 साल के होने जा रहे मूर्ति ने इस फैसले पर कहा, 'यह बेहद अनोखा है। कंपनी कड़ी चुनौतियों का सामना कर रही है। मैं शिबूलाल को मदद देने आया हूं। मेरा बेटा रोहन भी चेयरमैन के एक्जीक्यूटिव असिस्टेंट के तौर पर इस टीम में शामिल होगा।' पिता-पुत्र अपने कार्यकाल के दौरान एक रुपये सालाना का सांकेतिक वेतन लेंगे। अब एक्जीक्यूटिव वीपी की जिम्मेदारी संभालने वाले एस गोपालकृष्णन और शिबुलाल ने भी मूर्ति के पदचिन्हों पर चलते एक रुपये की सैलरी लेने की बात कही है।
इस फैसले के बारे में कामथ ने बताया कि आइटी कंपनी कई चुनौतियों के भंवर में फंसी हुई हैं। बोर्ड ने मानद चेयरमैन नारायणमूर्ति को एक बार फिर कंपनी को इनसे उबारने व शेयरधारकों के हितों की रक्षा के लिए याद किया है। मूर्ति की नियुक्ति को शेयरधारकों की मंजूरी के लिए 15 जून को सालाना आमसभा में पेश किया जाएगा।
नेतृत्व में फेरबदल
केवी कामथ की जगह नारायण मूर्ति नए एक्जीक्यूटिव चेयरमैन बने हैं। रोहन मूर्ति को नारायण की टीम में एक्जीक्यूटिव असिस्टेंट बनाया गया है। एक्जीक्यूटिव को-चेयरमैन गोपालकृष्णन एक्जीक्यूटिव वीपी का पद संभालेंगे। शिबुलाल एमडी और सीईओ बने रहेंगे। वहीं, कामथ स्वतंत्र निदेशक के पद पर जाएंगे।
एप्पल में भी हुआ था ऐसा
किसी सेवानिवृत्त आला अफसर को वापस कंपनी में लाने का यह पहला उदाहरण नहीं है। दिवंगत स्टीव जॉब्स को दिग्गज अमेरिकी टेक्नोलॉजी कंपनी एप्पल के बोर्ड ने मुश्किल में फंसने के बाद याद किया था। उन्होंने वापस आने के बाद आइ-मैक, आइ-ट्यून, आइ-पॉड, आइ-फोन और आइ-पैड जैसे बेहतरीन उत्पाद लॉन्च कर इस कंपनी को बुलंदियों तक पहुंचाया।




नारायण मूर्ति की वापसी से इंफोसिस भरने लगी दम

Sat, 11 Jan 2014 06:32 PM (IST)
 
 
नारायण मूर्ति की वापसी से इंफोसिस भरने लगी दम
मैसूर। देश की दूसरी सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी इंफोसिस में नारायण मूर्ति की वापसी के साथ ही वित्तीय तस्वीर बदलने लगी है। मूर्ति के असर से चालू वित्त वर्ष की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में कंपनी का शुद्ध लाभ 21.4 फीसद उछलकर 2,875 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। यह अक्टूबर-दिसंबर 2012 में 2,369 करोड़ रुपये था।
कंपनी के गिरते प्रदर्शन को देखते हुए पिछले साल जून में मूर्ति ने इंफोसिस में अपनी दूसरी पारी एक्जीक्यूटिव चेयरमैन के तौर पर शुरू की थी। उसके बाद से कंपनी का प्रदर्शन सुधरने लगा है। इंफोसिस के सीईओ और एमडी एसडी शिबुलाल ने शुक्रवार को नतीजों की घोषणा करते हुए कहा कि तीसरी तिमाही शानदार रही। इस अवधि में राजस्व भी 25 फीसद बढ़कर 13,026 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। यह इससे पिछले वित्त वर्ष की दिसंबर तिमाही में 10,424 करोड़ रुपये था। शिबुलाल ने बताया कि पिछली दो तिमाहियों में कंपनी द्वारा उठाए गए कदमों का नतीजा हमें शुद्ध मुनाफे में दोहरे अंक में उछाल के तौर पर मिला। दिसंबर तिमाही में कंपनी ने 54 नए ग्राहक जोड़े हैं। इनमें से एक पांच करोड़ डॉलर का भी है। इन नतीजों से उत्साहित होकर कंपनी ने चालू वित्त वर्ष के लिए राजस्व वृद्धि अनुमान बढ़ाकर 24.4-24.9 फीसद कर दिया है।

शिबुलाल ने कहा कि उपभोक्ताओं में भरोसा जाग रहा है। मगर अभी भी लागत को लेकर ग्राहक सतर्कता बरत रहे हैं। पूरी उम्मीद है कि आने वाले समय में बड़े ग्राहक मिलेंगे, जिससे अगली तिमाहियों के प्रदर्शन में भी सुधार होता रहेगा। इस तिमाही में इंफोसिस को कुल राजस्व का 60 फीसद हिस्सा अमेरिका से और 24.9 फीसद यूरोप से मिला है।
कर्मचारियों को रोकना हो रहा मुश्किल

तीन साल में होगा इंफोसिस का कायापलट


 
 
तीन साल में होगा इंफोसिस का कायापलट
बेंगलूर। देश की दूसरी सबसे बड़ी आइटी कंपनी रही इंफोसिस को बुरे दिनों से उबारने के लिए कंपनी के संस्थापक एनआर नारायणमूर्ति ने सुधारों की योजना तैयार कर ली है। सेवानिवृत्ति के बाद फिर से चेयरमैन पद पर लौटे मूर्ति का कहना है कि उम्मीदों पर खरी उतरने वाली इंफोसिस के पुननिर्माण में कम से कम 36 माह का समय लगेगा। इस दौरान दर्द देने वाले कई सख्त कदम भी उठाने पड़ेंगे। उन्होंने अगले तीन साल तक चलने वाली सुधार की इस प्रक्रिया में शेयरधारकों से उनका सहयोग और समर्थन मांगा है।
इंफोसिस के शेयरधारकों की शनिवार को 32वीं सालाना आम बैठक में मूर्ति ने कहा कि कंपनी की चुनौती काफी गंभीर और काम बेहद कठिन है। बेहतर क्षमताओं वाली टीम और कंपनी के हर कर्मचारी के समर्पण के बावजूद सुधार में वक्त लगेगा। अपने कर्मचारियों पर सबसे ज्यादा ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। तेजी से और सख्त निर्णय लेने पड़ेंगे। इन पर अमल में और भी चुस्ती और फुर्ती दिखानी होगी, ताकि निवेशकों और ग्राहकों की उम्मीदों से आगे रहा जा सके।
बैठक में सीईओ एसडी शिबुलाल ने कहा कि कंपनी का प्रदर्शन हमारी और उद्योग दोनों की उम्मीदों से कमतर रहा है। वैसे, कारोबारी माहौल कई चुनौतियां केवल इंफोसिस पर असर डालने वाली रहीं।
लगातार खराब प्रदर्शन से निवेशकों को निराश कर रही इंफोसिस में मूर्ति को सेवानिवृत्ति से वापस बुलाया गया। दो सप्ताह पहले ही उन्हें दोबारा कंपनी का कार्यकारी चेयरमैन नियुक्त किया गया है। कंपनी में वापस आए मूर्ति ने बेटे रोहन मूर्ति को भी अपना एक्जीक्यूटिव असिस्टेंट बनाया है।
मूर्ति ने अपनी योजना को लेकर कहा कि कंपनी पिछले साल में सुस्त पड़ी कमाई वाली आउटसोर्सिग परियोजनाओं पर अपना फोकस बढ़ाएगी। इससे अगले तीन से पांच साल तक कंपनी बड़े आउटसोर्सिग सौदों की संख्या बढ़ेगी। इसके अलावा कंपनी अपनी प्रमुख वरीयता वाले क्षेत्रों की प्रगति को भी बनाए रखेगी। इसी तरह बड़े पैमाने के कारोबार पर ज्यादा ध्यान देने से कंपनी को राजस्व बढ़ाने में खासी मदद मिलेगी।
कंपनी का नया रोडमैप:
-बड़े आउटसोर्सिग सौदे हासिल करने पर रहेगा जोर
-सुरक्षित फंड को उत्पादक निवेश कार्यों में लगाया जाएगा
-विकास दर बढ़ाने के लिए अपनाई जाएगी लचीली कीमत नीति
-सॉफ्टवेयर विकास टीम की गुणवत्ता और उत्पादकता बढ़ाई जाएगी
-प्रतिस्पर्धी कारोबारों में भी मार्जिन बढ़ाने के लिए होंगे प्रयास
-आय के विश्वसनीय अनुमान के लिए विकसित होगा मॉडल




'जो (नरेंद्र मोदी) अपने गुरू (वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी) का ना हुआ, वह देश का क्या होगा' :कपिल सिब्बल


'जो (नरेंद्र मोदी) अपने गुरू (वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी) का ना हुआ, वह देश का क्या होगा' :कपिल सिब्बल

Fri, 21 Mar 2014 11:29 AM (IST)

 
मोदी पर सिब्बल का वार, 'जो अपने गुरू का ना हुआ, वह देश का क्या होगा'
 
नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी पर अपने ही गुरू को दगा देने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि जिन्हें नरेंद्र मोदी अपना गुरू बताते थे, उन्हें ही अब वह नजरअंदाज कर चुके हैं। उन्होंने अपने इस बयान के जरिए एक ओर जहां भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी पर तंज कसने की कोशिश की है वहीं मोदी को भी आड़े हाथों लिया है। यह बातें अपने चांदनी चौक में नामांकन करने के बाद कही।
गुरुवार को सिब्बल ने चांदनी चौक सीट से अपना नामांकन भरा। इस मौके पर काफी संख्या में उनके समर्थक मौजूद थे। इस सीट पर उनका मुकाबला आप के उम्मीदवार आशुतोष और भाजपा नेता और दिल्ली की भाजपा इकाई के अध्यक्ष डाक्टर हर्षवर्धन से होगा। आप और भाजपा उम्मीदवार शुक्रवार को अपना नामांकन दाखिल करेंगे।

कपिल सिब्बल चांदनी चौक सीट से तीसरी बार मैदान में है। इस बार इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला दिलचस्प रहने की उम्मीद है। लगातार दो बार इस सीट से जीत दर्ज करने वाले सिब्बल इस बार भी अपनी जीत को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त दिखाई दे रहे हैं। नामांकन भरने के बाद उन्होंने देश में मोदी की लहर होने संबंधी सवाल को पूरी तरह से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि चुनाव परिणाम के बाद यह बात पूरी तरह से स्पष्ट भी हो जाएगी कि देश में मोदी लहर जैसी कोई चीज नहीं थी। 


पटेल कहते थे, आरएसएस जहरीला संगठन : राहुल



 

धर्मशाला: 'आज जो नेता सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा बनाने की बात कर रहे हैं, वे शायद नहीं जानते कि सरदार पटेल ने ही आरएसएस को जहरीली संस्था बताते हुए कहा था कि इस पर प्रतिबंध से ही देश को बचाया जा सकता है।..'
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी यह बात गुरुवार को धर्मशाला में फिर दोहराई। वह यहां के पुलिस मैदान में आयोजित जनसभा को संबोधित कर रहे थे। हालांकि उन्होंने राजग पर खुल कर हमला बोला किंतु अनेक ऐसी बातें ही कहीं जिन्हें वह अन्य जनसभाओं में कहते रहे हैं। बकौल राहुल, 'भाजपा को हिदूं धर्म की परिभाषा तक पता नहीं है। हिंदुत्व में विरोध ,अभिमान तथा वैरभाव का कोई स्थान नहीं है लेकिन भाजपा हमेशा ही वैरभाव की राजनीति करती रही है।'
राहुल ने कहा कि जब प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कंप्यूटरीकरण व सेलफोन की बात की थी तो भाजपा ने इसका कड़ा विरोध किया था, लेकिन आज वही लोग इसका श्रेय लेने का प्रयास कर रहे है। उन्होंने कहा कि संप्रग सरकार ने पूर्व की राजग सरकार से तीन गुना अधिक सड़कें केवल पांच वर्षो में बनाई हैं। भाजपा के भ्रष्टाचार के मुद्दे का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि संप्रग सरकार ने सूचना का अधिकार देकर हर व्यक्ति को भ्रष्टाचार से लड़ने का एक अधिकार दिया है। इससे व्यवस्था पारदर्शी हुई है। उन्होंने कहा कि इस बार लोकसभा में छह बिल लाए गए और विपक्ष ने इन्हें रोककर केवल अपने चुनावी हितों को ही साधा है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने 15 करोड़ गरीबों को रोजगार, भोजन व सत्तार हजार किसानों को लाभ दिलवाने के लिए फूड प्रोसेसिंग यूनिट उनके खेतों के आस-पास खोले गए है। वहीं 70 करोड़ लोगों को मिडल क्लास की श्रेणी में लाने के लिए उच्च शिक्षण संस्थानों का विस्तार किया गया है। उन्होंने दिल्ली-मुंबई-चेन्नई में विशेष निर्माण गलियारे का जिक्र भी किया। उन्होंने विपक्ष पर महिला सशक्तिकरण विरोधी होने का आरोप लगाते हुए वादा किया कि विधानसभा, लोकसभा व कांग्रेस के संगठन में महिलाओं व पंचायती राज में युवाओं को पूरा प्रतिनिधित्व देंगे। गुरुवार की सुबह कांगड़ा पहुंचे राहुल गांधी इससे पूर्व राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज टांडा में पूर्व सैनिकों के साथ चौपाल में भी शामिल हुए और 'वन रैंक वन पेंशन' का श्रेय लिया। इसके बाद प्रदेश कांग्रेस समिति की बैठक में भी शामिल हुए।

स्वयं को भारत के साथ मित्रता का मजबूत समर्थक बताते हुए गुरुवार को कहा कि भारत के साथ संबंधों को बढ़ाना मेरा ऐतिहासिक मिशन: चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग

 
 
 
 
स्वयं को भारत के साथ मित्रता का मजबूत समर्थक बताते हुए गुरुवार को कहा कि भारत के साथ संबंधों को बढ़ाना मेरा ऐतिहासिक मिशन: चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग
बीजिंग, एजेंसी
First Published:20-03-14 10:15 PM

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चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने स्वयं को भारत के साथ मित्रता का मजबूत समर्थक बताते हुए गुरुवार को कहा कि चीन भारत के रणनीतिक संबंधों को आगे बढ़ाना उनका ऐतिहासिक मिशन है। शी ने ग्रेट हाल ऑफ पीपुल में आयोजित एक विशेष समारोह में चीन में भारत के नये राजदूत अशोक के कांता के परिचय पत्र स्वीकार करते हुए उनसे कहा कि भारत के साथ रणनीतिक संबंधों को आगे बढ़ाना मेरा ऐतिहासिक मिशन है और मैं इसका समर्थक हूं।
भारतीय अधिकारियों ने कहा कि शी की नये राजदूत के लिए स्पष्ट टिप्पणी चीन के नये नेतृत्व की भारत के साथ नजदीकी संबंध विकसित करने की गंभीरता को प्रदर्शित करता है क्योंकि यह वर्तमान शासन के शीर्षतम नेता की ओर से आया है। अधिकारियों ने बताया कि शी ने भारत में आम चुनाव के बाद नई सरकार के सत्तारूढ़ होने के बाद भारत यात्रा पर जाने में रूचि दिखायी। उन्होंने कांता के साथ 15 मिनट की बैठक की।

शी ने इस दौरान कांता से कहा कि चीन का नया नेतत्व भारत के साथ नजदीकी संबंध सुधार के साथ ही क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर कार्य करने का इच्छुक है। यद्यपि शी ने 15 नये राजदूतों से परिचय पत्र प्राप्त किया लेकिन उन्होंने उनमें से कुछ के साथ ही निजी मुलाकात की, जिनमें कांता भी शामिल थे। परिचय पत्र सौंपने वाले राजदूतों में चीन में अमेरिका के राजदूत मैक्स बाउकस भी शामिल थे।

AFTER CONTROVERSIAL BEHAVE OF RBI Governor Raghuram Rajan, RBI deputy governor KC Chakrabarty resigned :::: रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर के सी चक्रवर्ती का इस्तीफा

AFTER CONTROVERSIAL BEHAVE OF RBI Governor Raghuram Rajan, RBI deputy governor KC Chakrabarty resigned :::: रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर के सी चक्रवर्ती का इस्तीफा

 

AFTER CONTROVERSIAL BEHAVE OF RBI Governor Raghuram Rajan

RBI deputy governor KC Chakrabarty resigned

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रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर के सी चक्रवर्ती का इस्तीफा

Delhi, March 20, 2014
First Published: 23:06  |

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In a surprise development, Reserve Bank deputy governor KC Chakrabarty, known for his strong views and who had fought with former SBI chairman in public on issues, has resigned, three months before his term was to end.

He has "requested to be relieved earlier than the scheduled (term ending June 15, 2014)," a top government source said.

Chakrabarty, 62, who was appointed as RBI deputy governor in 2009, was always blunt with his views and made it public.

Known for his strong views on the efficacy of CRR (cash reserve ratio) as a tool for monetary management, he was involved in a verbal duel in 2012 with the then SBI chairman Pratip Chaudhuri, who wanted its abolition.

"Chakrabarty has requested for slightly earlier departure than scheduled term-end. He has requested to be relieved by April 25... for personal reasons," an official said.
Chakrabarty, the senior most among four deputy governors, could not be contacted on the reasons for his surprise decision.

He was appointed as RBI deputy governor for a three-year term on June 15, 2009 and was subsequently given a two-year extension. His extended term was to end on June 15, 2014.
Since his term was ending in June, the finance ministry has already set up a search committee, headed by RBI governor Raghuram Rajan, to find his replacement.

As many as five PSU bankers have been called for interviews for the coveted post.
Chakrabarty's current assignments at RBI include guiding and overseeing areas pertaining to supervision of banks, currency management, financial stability, customer service, rural credit and human resource management.

He is the RBI's nominee on the financial stability board, a global body established to develop and promote implementation of effective regulatory, supervisory and other financial sector policies.
Chakrabarty is also the chairman of the Bharatiya Reserve Bank Note Mudran. He also heads the Advisory Committee of College of Agricultural Banking (CAB).

He was the CMD of Punjab National Bank and Indian Bank before joining the RBI.
 
 
 
 
रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर के सी चक्रवर्ती का इस्तीफा
नई दिल्ली, एजेंसी
First Published:21-03-14 10:13 AM 

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अपने विचार मजबूती से रखने के लिए प्रसिद्ध रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर के सी चक्रवर्ती ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। चक्रवर्ती ने हैरान करने वाला यह फैसला तब लिया है जबकि उनके कार्यकाल के तीन माह बचे थे। चक्रवर्ती की विभिन्न मुद्दों पर एसबीआई के चेयरमैन से सार्वजनिक तौर गरमा गरम बहस भी हुई थी।
एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने कहा कि चक्रवर्ती ने 15 जून, 2014 को उनका कार्यकाल समाप्त होने से पहले उन्हें सेवामुक्त करने को कहा है। 62 वर्षीय चक्रवर्ती को 2009 में रिजर्व बैंक का डिप्टी गवर्नर नियुक्त किया गया था। यात्रा पर होने की वजह से उनसे संपर्क नहीं हो पाया।

हालांकि, सूत्र ने यह नहीं बताया कि चक्रवर्ती ने क्यों पद छोड़ने की इच्छा जताई है। चक्रवर्ती को 15 जून, 2009 को तीन साल के लिए रिजर्व बैंक का डिप्टी गवर्नर नियुक्त किया गया था। उसके बाद उन्हें दो साल का विस्तार दिया गया। अब उनका कार्यकाल 15 जून, 2014 को समाप्त होना था।

पुतिन के 'ख़ास' लोगों पर अमरीकी प्रतिबंध*(रूसी अधिकारियों और एक बैंक पर) :::: रूस ने प्रतिबंधों के ख़िलाफ़ चेतावनी दी ::::: सरकार की आलोचना करने वाली कई वेबसाइटों पर रूस ने लगाया प्रतिबंध

पुतिन के 'ख़ास' लोगों पर अमरीकी प्रतिबंध(रूसी अधिकारियों और एक बैंक पर)

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रूस ने प्रतिबंधों के ख़िलाफ़ चेतावनी दी

सरकार की आलोचना करने वाली कई वेबसाइटों पर रूस ने लगाया प्रतिबंध

 

 शुक्रवार, 21 मार्च, 2014 को 03:01 IST तक के समाचार

क्राइमिया संकट पर अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कई रूसी अधिकारियों और एक बैंक पर और अधिक प्रतिबंधों की घोषणा की है.
ओबामा ने कहा कि उन्होंने रूसी अर्थव्यवस्था से जुड़े कुछ क्षेत्रों पर प्रतिबंध लगाने संबंधी आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए हैं.
इस बीच यूरोपीय संघ के नेता रूस के ऊपर कड़े प्रतिबंधों की चेतावनी के बीच ब्रसेल्स पहुंच गए हैं.
"रूस को ये अवश्य समझ लेना चाहिए कि उसके ख़िलाफ़ अगली कोई भी कार्रवाई उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अलग-थलग कर देगी."
बराक ओबामा, अमरीका के राष्ट्रपति
क्राइमिया को रूस में शामिल करने संबंधी समझौते को रूसी सरकार की मंजूरी मिलने के बाद से ही इस इलाके में तनाव काफ़ी बढ़ गया है. क्राइमिया अभी तक यूक्रेन का एक स्वायत्त हिस्सा रहा है.
बराक ओबामा का कहना था, "रूस को ये अवश्य समझ लेना चाहिए कि उसके ख़िलाफ़ अगली कोई भी कार्रवाई उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अलग-थलग कर देगी."
उन्होंने कहा कि अमरीका पूर्वी और दक्षिणी यूक्रेन की चिंताओं से वाक़िफ़ है और उस पर नज़र रखे हुए था.

पुतिन के क़रीबियों पर निशाना

ह्वाइट हाउस के एक प्रवक्ता का कहना था कि रूस के ऊपर ताज़ा प्रतिबंधों के तहत ऐसे बीस लोग प्रभावित हुए हैं जिनके हित क्राइमिया से जुड़े हुए हैं. ये सभी लोग रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के विश्वस्त सहयोगी हैं.

क्राइमिया को लेकर यूरोपीय संघ और अमरीका के निशाने पर आ गए हैं पुतिन
इन बीस लोगों में सेना प्रमुख सरगेई इवानोव और अमीर व्यवसायी आर्केडी रोटेनबर्ग और गेनेडी टिमशेंको भी शामिल हैं.
अमरीकी वित्त मंत्रालय का कहना है कि रूस के बैंक रोसिया को सरकारी अधिकारियों का सहयोग करने के कारण प्रतिबंधित किया गया है.
जिन लोगों पर प्रतिबंध लगाए गए हैं वो डॉलर में कोई व्यापारिक गतिविधि नहीं कर सकेंगे, अमरीका में मौजूद उनकी सारी संपत्तियां सरकार अपने कब्जे में ले लेगी और ये लोग अमरीका में किसी तरह का व्यापार नहीं कर सकेंगे.
इस बीच, जर्मनी की चांसलर एंगेला मर्केल ने जर्मनी की संसद में कहा है कि यदि रूस यूक्रेन में आगे भी हस्तक्षेप जारी रखता है तो यूरोपीय संघ को उसके ख़िलाफ़ आर्थिक प्रतिबंधों को और कड़ा कर देना होगा.
यूरोपीय संघ और अमरीका ने रूसी और यूक्रेनियाई लोगों पर सबसे पहले प्रतिबंध सोमवार को लगाया था जब क्राइमिया के लोगों ने रूस में शामिल होने के लिए हुए जनमत संग्रह के पक्ष में मतदान किया था.

रूस ने प्रतिबंधों के ख़िलाफ़ चेतावनी दी

यूक्रेन संकट
रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने अमरीका को चेतावनी देते हुए कहा है कि वह यूक्रेन के क्राईमिया में जारी संकट के जवाब में 'जल्दबाजी' में कोई लापरवाही भरा कदम ना उठाए.
अमरीकी विदेश मंत्री जॉन कैरी के साथ फोन पर बातचीत में लावरोव ने कहा कि मॉस्को पर प्रतिबंध लगाना अमरीका को भारी पड़ सकता है.
क्लिक करें क्राईमिया पिछले हफ्ते से रूस समर्थित सैन्य दल के नियंत्रण में है.
क्राईमिया में रूस समर्थक सैनिकों की उपस्थिति को लेकर रूस और यूक्रेन के बीच तनाव चल रहा है. गुरुवार को क्राईमिया की संसद ने रूस में शामिल होने के पक्ष में मतदान किया था.

चेतावनी

क्राईमिया की संसद ने घोषणा की है कि वह 16 मार्च को क्लिक करें जनमत संग्रह के जरिए पता लगाएगी कि कौन रूस के साथ जुड़ना चाहता है और कौन क्राईमिया में ही रहना चाहता है.
रूसी संसद ने क्राईमिया से वादा किया है कि यदि वह रूस का हिस्सा बनने का मत देती है तो वह क्राईमिया के लोगों की मदद करेगा.
यूक्रेन संकट
अर्सेनी यत्सेन्यूक समेत क्लिक करें यूक्रेन सरकार के कई अन्य नेताओं ने जनमतसंग्रह को असंवैधानिक और अवैध क़रार दिया लेकिन रूस की संसद ने जनमत संग्रह का समर्थन किया है.
रूसी विदेश मंत्रालय ने जानकारी दी है कि शुक्रवार को जॉन कैरी के साथ फोन पर हुई बातचीत के दौरान लावरोव ने चेतावनी दी कि वे बिना सोचे-समझे कोई कदम ना उठाएं. यदि ऐसा किया गया तो इससे रूस-अमेरिका के संबंधों पर बुरा असर पड़ सकता है.
लावरोव ने कहा कि यूक्रेन संकट से जुड़े होने के कारण अगर रूस पर प्रतिबंध लगाए जाते हैं तो उनका ख़ुद अमरीका पर उल्टा असर पड़ेगा.

पत्रकार को पीटा

"क्राईमिया शहर सेवेस्तोपोल के बाहर ए2355 मिसाइल डिफेंस बेस के गेट को ठोकर मारते हुए एक लॉरी ने अंदर प्रवेश किया. पीछे से लगभग 20 'हमलावर' भी घुसे और बेहोश कर देने वाले हथगोले फेंके."
रक्षा मंत्रालय
शुक्रवार की शाम को यूक्रेन की समाचार एजेंसी इंटरफैक्स ने रक्षा मंत्रालय के हवाले से बताया, "क्राईमिया के शहर सेवेस्तोपोल के बाहर ए2355 मिसाइल डिफेंस बेस के गेट को ठोकर मारते हुए एक लॉरी ने अंदर प्रवेश किया. पीछे से लगभग 20 'हमलावर' भी घुसे और बेहोश कर देने वाले हथगोले फेंके."
समाचार एजेंसी ने आगे बताया कि यूक्रेन के सैन्य दलों ने इमारत में घुसकर ख़ुद को बचाया और इससे पहले कि गोलीबारी होती उनके सेनाध्यक्ष ने बातचीत के जरिए स्थिति पर काबू किया.
स्थल का मुआयना करने वाले बीबीसी के क्रिश्चियन फ्रेज़र ने बताया कि सैन्य अड्डे पर नियंत्रण किए जाने या गेट को जबरन खोलने के कोई संकेत नहीं मिले हैं.
सोची पैरालंपिक खेल
क्लिक करें बीबीसी संवाददाता ने आगे बताया कि गेट के बाहर दो रूसी लॉरी खड़ी थीं जिन पर रूसी नंबर प्लेट लगे हुए थे. लॉरियों को सैनिकों ने घेर रखा था. रूस समर्थित प्रदर्शनकारियों की भीड़ काफी गुस्से में दिख रही थी.
दो पत्रकारों को बुरी तरह पीटा गया. वे घटनास्थल की तस्वीर लेने की कोशिश कर रहे थें.
बाद में यूक्रेन के एक अधिकारी ने 'डेली टेलीग्राफ' को बताया कि 'बातचीत' के बाद गतिरोध खत्म हुआ. इसके बाद रूसी लॉरियों और वहां मौजूद 30 से 60 रूसी सैन्य दलों को वापस बुला लिया गया.
इस बीच किसी तरह की गोलीबारी नहीं हुई.


सरकार की आलोचना करने वाली कई वेबसाइटों पर रूस ने लगाया प्रतिबंध



यूक्रेन में तनाव के बीच क्रेमलिन की स्वतंत्र मीडिया के खिलाफ कार्रवाई तेज हो गई है और रूस ने सरकार की आलोचना करने वाली कई बेवसाइटों और जाने माने विपक्षी नेता अलेक्सई नवालनी के एक ब्लॉग पर प्रतिबंध लगा दिया है.संचार व्यवस्था पर निगरानी रखने वाली सरकारी संस्था रोस्कोमनैदजोर ने बताया कि ग्रानी डॉट रू, कास्पारोव डॉट रू और येजहेदनेवनी जर्नल (दैनिक समाचार पत्र) ने उकसावे और अनधिकृत जन समारोहों में भागीदारी को बढ़ावा दिया, जो गैरकानूनी है.
इसमें कहा गया है कि यह प्रतिबंध प्रॉसिक्यूटर जनरल ऑफिस के आग्रह पर लगाया गया है और अब इंटरनेट प्रदाताओं को ब्लॉक करने के निर्देश दिए जा चुके हैं. कास्पारोव डॉट रू का संचालन विपक्षी दिग्गज और शतरंज चैंपियन गैरी कास्परोव कर रहे हैं.
इसके साथ साथ दो अन्य वेबसाइटों में भी, यूक्रेन के क्रीमिया प्रायद्वीप पर रूसी सैनिकों के नियंत्रण को लेकर पुतिन सरकार की आलोचना की गई है.

शिव सेना: 'ना तो विचारधारा है, ना ही विज़न':::::::अगर उन्हें मीडिया और ख़ास तौर से पिछले दो दशक के दौरान इलेक्ट्रानिक मीडिया ने अनुचित समर्थन न दिया होता तो उनका आंदोलन और संगठन राज्य की राजनीतिक चेतना से मिट गया होता.

शिव सेना: 'ना तो विचारधारा है, ना ही विज़न'

अगर उन्हें मीडिया और ख़ास तौर से पिछले दो दशक के दौरान इलेक्ट्रानिक मीडिया ने अनुचित समर्थन न दिया होता तो उनका आंदोलन और संगठन राज्य की राजनीतिक चेतना से मिट गया होता.

 गुरुवार, 20 मार्च, 2014 को 07:01 IST तक के समाचार

बाल ठाकरे
शिव सेना के उदय और पिछले नौ वर्षों के दौरान महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के उभार को समझने के लिए राज्य की जटिल रूपरेखा को समझना ज़रूरी है.
इस राज्य का जन्म भी आंध्र प्रदेश राज्य के लिए शुरू हुए आंदोलन के साथ हुआ. जैसा कि सभी जानते हैं कि आंध्र आंदोलन के नेता पोट्टि श्रीरामुलू के आमरण अनशन, जिसमें उनकी शहादत हो गई, के चलते पंडित जवाहर लाल नेहरू को ऐसे राज्य के गठन के लिए तैयार होना पड़ा जिसमें तेलंगाना भी शामिल था.
वास्तव में, क्लिक करें तेलंगाना के लोग अपना अलग राज्य चाहते थे, लेकिन इस प्रक्रिया में उनकी मांग को नज़रअंदाज कर दिया गया.
भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का विचार भारत में पहली बार 1920 के दशक के अंत में उठा.
उस समय इसका मॉडल सोवियत रूस था, जहां कई भाषाएं थीं, इसके बावजूद वो एक 'संघ' का हिस्सा थे.
हालांकि, श्रीरामुलू के बलिदान तक इस विचार को ठंडे बस्ते में डालकर रखा गया था.

संयुक्त महाराष्ट्र

मराठी लोगों को एक राज्य के रूप में संगठित करने का विचार 1930 के दशक में भी था, लेकिन आज़ादी के बाद इसमें राजनीतिक उभार आने लगा.
आंध्र प्रदेश राज्य के गठन के बाद तो इसमें चरमपंथी उभार देखने मिले. संयुक्त महाराष्ट्र समिति (एसएमएस) की गतिविधियां 1950 के दशक के अंत में बढ़ने लगी थीं. उस समय तक ये साहित्यकारों, मीडिया, सामाजिक आंदोलनकारियों और वामपंथी दलों के बीच एक सांस्कृतिक विमर्श का मसला था.
भाषा, संस्कृति और अलग पहचान पर गर्व की भावना तेज़ी से राजनीतिक रूप ले रही थी, और एक बार फिर क्लिक करें पंडित नेहरू को मुंबई क्षेत्र के जनदबाव के आगे झुकना पड़ा. मुंबई एक द्विभाषी राज्य था, जिसमें आसपास के अंचलों के लोग आकर बसे थे.
'द्विभाषी' यानी एक ऐसा समाज जहां मराठियों और गुजरातियों का प्रभाव था.
शिव सेना
हालांकि मराठी बोलने वालों की संख्या सबसे अधिक थी, लेकिन ये मुंबई में 50 प्रतिशत से अधिक नहीं थे. गुजराती 15 प्रतिशत से कम थे. लेकिन मोटे तौर पर उद्योग और व्यापार पर गुजरातियों और मारवाड़ियों का नियंत्रण था.
मराठी लोग या तो श्रमिक वर्ग में थे या फिर क्लर्क. महाराष्ट्र आंदोलन इसी वर्ग की भौतिक और सांस्कृतिक आकांक्षाओं की प्रतिध्वनि थी.
इसलिए राज्य के गठन के बाद जल्द ही उनकी राजनीति के केंद्र में मराठी लोगों को नौकरी और आजीविका देने की मांग आ गई. इस वर्ग ने क्लिक करें शिव सेना को जन्म दिया.

शिव सेना का कैडर

मुंबई, हालांकि महानगरीय और बहु-सांस्कृतिक, बहुभाषी शहर था, लेकिन मोटे तौर पर यहां उत्तर भारतीय या हिंदी भाषी लोग बहुत अधिक संख्या में नहीं थे.
लिखा-पढ़ी का काम करने वाले निम्न मध्य वर्ग में ज़्यादातर दक्षिण भारतीय थे. इसमें चारों दक्षिणी राज्यों के लोग समान रूप से थे.
साठ का दशक कई तरह की परेशानियों वाला था. अर्थव्यवस्था में मंदी थी और बेरोज़गारी बढ़ रही थी.
जब क्लिक करें महाराष्ट्र बना तो दो अन्य राज्य अपने आप बन गए- कर्नाटक और गुजरात. परिणाम स्वरूप पांच साल (1955-60) के भीतर चार राज्यों का जन्म हुआ- आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक.
मराठी भाषी मुंबईकर ये दलील देने लगे कि राज्य का गठन उनके फ़ायदे के लिए हुआ है और वो राज्य के गठन का फ़ायदा दूसरों को देने से इनकार करने लगे.
ऐसे में शिव सेना ने निम्न मध्य वर्ग के दक्षिण भारतीयों को निशाना बनाना शुरू कर दिया, जो नौकरी की तलाश में मुंबई आते थे. वो कम वेतन वाली नौकरी करते थे. शिव सेना और दक्षिण भारतीयों के बीच टकराव पहचानवादी राजनीति का केंद्र बिंदु बन गया.
उत्तर प्रदेश की तरह महाराष्ट्र भी राजनीतिक रूप से विभाजित राज्य है. राज्य के विभिन्न हिस्सों को जोड़ने में मराठी भाषा अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.
महाराष्ट्र की छवि राजनीतिक और सामाजिक रूप से एक प्रगतिशील राज्य की बनी. इसकी वज़ह 19वीं सदी के अंत में और 20वीं सदी की शुरुआत में वहां हुए सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलन थे.

मराठी समाज

राज ठाकरे
लेकिन ये छवि और इस पर बनी राजनीतिक सहमति लंबे समय तक नहीं चली. राज्य के गठन के बाद जल्द ही 1960 में विभिन्न जातियां ख़ुद को राजनीतिक रूप से संगठित करने लगीं.
इनमें सबसे बड़ा हिस्सा मराठों का था, जो कुंभी और मराठों में विभाजित थे. एक छोटा लेकिन सबसे अधिक नफ़रत का शिकार समुदाय ब्राह्मणों का था. ज़्यादातर ब्राह्मण नौकरशाही, शिक्षा और बैंकिंग के क्षेत्र में काम कर रहे थे. वो चार प्रतिशत से भी कम थे लेकिन एक जाति के रुप में पेशवा के तहत आने वाले राज्य के ज़्यादातर हिस्सों में उनका आधिपत्य था.
इसलिए साहित्य, शिक्षा और यहां तक कि राजनीति पर उनकी अच्छी ख़ासी पकड़ थी. वो बुद्धिजीवी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते थे.
मराठा आमतौर पर खेती के काम में लगे थे. इसमें बड़े खेतिहर किसानों से लेकर भूमिहीन किसान तक शामिल थे. लेकिन वो जाति के आधार पर एक दूसरे से जुड़े थे.
शिव सेना को ऊंची जातियों के असंतोष के साथ ही श्रमिक वर्ग की बेरोज़गारी की शिकायत से फ़ायदा मिला. इसके समर्थक बहुत बड़े काश्तकार या बहुत अधिक पढ़े लिखे लोग नहीं थे. मोटे तौर पर निम्न कौशल और निम्न आय वाले लोग ही इसके सदस्य थे. आक्रामक आंदोलन के लिए ये वर्ग एकदम सही था.
शिव सेना ने 68 सालों के अपने इतिहास में कोई भी संस्थागत आधार, कोई भी जाति आधारित समर्थक नहीं तैयार किया. मराठी समुदाय आमतौर पर उद्योग और व्यापार से दूर रहा है और इस कारण आर्थिक गतिविधियों में वो हाशिए पर रहे.

विज़न का अभाव

बढ़ती बेरोज़गारी के साथ ही शिव सेना की हैसियत भी बढ़ती गई. शिव सेना सिर्फ़ राजनीति करती है और इसकी मदद से ठेकेदारों का नेटवर्क तैयार करती है.
एमएनएस का जन्म भी इसी प्रक्रिया से हुआ है. ये उन लोगों के बीच विभाजन है जिनके पास राजनीति के अलावा दूसरा कोई आजीविका का साधन नहीं है. उनकी कोई विशेष विचारधारा नहीं है, कार्यक्रम नहीं हैं, महाराष्ट्र के लिए कोई विज़न नहीं है, न ही भारत के परिप्रेक्ष्य में कोई विज़न है.
यहां तक कि भाषा को लेकर गर्व भी इतना सतही है कि शिव सेना और एमएनएस के ऊपर से नीचे तक ज़्यादातर नेता अपने बच्चों को पढ़ने के लिए अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में भेजते हैं. लेकिन, भाषाई और सांस्कृतिक पहचानवादी राजनीति के अलावा उनका कोई एजेंडा नहीं है. इसके लिए वो मुंबई, पुणे और नासिक जैसे मुख्य शहरी केंद्रों में हंगामा खड़ा कर सकते हैं.
अगर उन्हें मीडिया और ख़ास तौर से पिछले दो दशक के दौरान इलेक्ट्रानिक मीडिया ने अनुचित समर्थन न दिया होता तो उनका आंदोलन और संगठन राज्य की राजनीतिक चेतना से मिट गया होता. लेकिन जिन्हें मीडिया ने जन्म दिया है, वो मीडिया के ज़रिए ही ख़त्म हो जाते हैं.

ख़ुशवंत सिंह का 99 साल की उम्र में निधन :::: "ख़ुशवंत सिंह को 'हिस्ट्री ऑफ़ सिख' नाम से सिखों का इतिहास लिखने के लिए याद किया जाएगा. ::AND:: भारत-पाकिस्तान के बंटवारे पर आधारित उपन्यास ''ट्रेन टू पाकिस्तान' का इतिहास लिखने के लिए याद किया जाएगा==== And पुण्य प्रसून बाजपेयी के पिता मणिकांत बाजपेयी का निधन

ख़ुशवंत सिंह का 99 साल की उम्र में निधन

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पुण्य प्रसून बाजपेयी के पिता मणिकांत बाजपेयी का निधन

 ख़ुशवंत सिंह का 99 साल की उम्र में निधन 

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 "ख़ुशवंत सिंह को  'हिस्ट्री ऑफ़ सिख' नाम से सिखों का इतिहास लिखने के लिए याद किया जाएगा. 

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भारत-पाकिस्तान के बंटवारे पर आधारित उपन्यास ''ट्रेन टू पाकिस्तान' का इतिहास लिखने के लिए याद किया जाएगा

 गुरुवार, 20 मार्च, 2014 को 17:25 IST तक के समाचार

ख़ुशवंत सिंह (फ़ाइल फ़ोटो)
ख़ुशवंत सिंह नहीं रहे
पदम विभूषण से सम्मानित जाने-माने पत्रकार, लेखक और स्तंभकार  ख़ुशवंत सिंह का गुरुवार सुबह उनके दिल्ली स्थित निवास पर निधन हो गया. वो 99 साल के थे.
उनकी मृत्यु पर भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के आधिकारिक ट्वीट में कहा गया, "वो एक प्रतिभाशाली लेखक, भरोसमंद टिप्पणीकार और प्यारे दोस्त थे. उन्होंने सचमुच एक सृजनात्मक जीवन जिया."
खुशवंत सिंह 'योजना', नेशनल हेराल्ड, हिन्दुस्तान टाइम्स और 'दि इलेस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया' के संपादक रहे.
ख़ुशवंत को सबसे पहली ख्याति भारत-पाकिस्तान के बंटवारे पर आधारित उपन्यास ''ट्रेन टू पाकिस्तान' से मिली.
उन्होंने 'हिस्ट्री ऑफ़ सिख' नाम से सिख धर्म का इतिहास भी लिखा जिसे काफ़ी सराहा गया.
उम्र के अंतिम पड़ाव तक वो लेखन में सक्रिय रहे. पिछले साल उनकी किताब 'खुशवंतनामा: द लेसन्स ऑफ़ माई लाइफ़' प्रकाशित हुई थी.

'साहस और बेवकूफी'

"ख़ुशवंत सिंह को व्हिस्की से अपने प्यार के लिए जाना जाता था लेकिन वो प्रकृति को उससे भी ज़्यादा प्यार करते थे. वो सलीम अली और एम कृष्णन को अपना हीरो मानते थे."
रामचंद्र गुहा, इतिहासकार
उनकी मृत्यु पर इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपने ट्वीट में कहा, "ख़ुशवंत सिंह को सिखों का इतिहास लिखने के लिए याद किया जाएगा. वे बहुत उदार व्यक्ति थे. भिंडरावाले का विरोध उनका सबसे साहसिक काम था..उनका सबसे बेवकूफी भरा काम था संजय गांधी और मेनका गांधी का समर्थन करना."
गुहा ने आगे कहा, "हालांकि हम इसे भूल सकते हैं और उनकी किताबों, उनके अपनत्व और उदारता को याद कर सकते हैं. ख़ुशवंत सिंह को व्हिस्की से अपने प्यार के लिए जाना जाता था लेकिन वो प्रकृति को उससे भी ज़्यादा प्यार करते थे. वो सलीम अली और एम कृष्णन को अपना हीरो मानते थे."
लेखक अमिताव घोष ने ट्वीट करके उन्हें श्रद्धांजलि दी. उन्होंने कहा, "महान इतिहासकार, उपन्यासकार, संपादक, स्तम्भकार और एक शानदार, उदार भले आदमी ख़ुशवंत सिंह की मौत बहुत दुखदायक ख़बर है. श्रद्धांजलि."
हिन्दी फ़िल्मों के मशहूर अभिनेता शाहरुख़ ख़ान ने अपने संदेश में कहा, "अफ़सोस, ख़ुशवंत सिंह नहीं रहे. उन्होंने अपने साहित्यिक योगदान से हम सबका जीवन समृद्ध किया. 'विद मैलिस टुवर्डस वन एंड ऑल', श्रद्धांजलि"
वे विभिन्न अख़बारों में नियमित स्तम्भ भी लिखते रहे थे.
वे 1980 से 1986 तक राज्य सभा के सदस्य थे. भारत सरकार ने उन्हें 1974 में पदम भूषण से सम्मानित किया था.
लेकिन 1984 में स्वर्ण मंदिर में हुए सेना के ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में उन्होंने पदम भूषण वापस कर दिया था. 2007 में उन्हें पदम विभूषण से नवाज़ा गया.


पुण्य प्रसून बाजपेयी के पिता मणिकांत बाजपेयी का निधन
date: March 20, 2014

शोक संदेश : वरिष्ठ टेलीविजन पत्रकार ‘पुण्य प्रसून बाजपेयी’ के पिता ‘मणिकांत बाजपेयी’ का दो दिन पहले निधन हो गया है. 18 मार्च शाम 5.30 बजे उनका निधन हुआ. वे अल्झाइमर रोग से पीड़ित थे और उनका इलाज कई वर्षों से चल रहा था. लोदी रोड स्थित शवदाह गृह में उनका कल अंतिम संस्कार किया गया. अंत्येष्टि में बड़ी संख्या में पत्रकारों के अलावा आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया भी शामिल हुए.

Punya Prasun Bajpai may gob gives you power to win on this pain of life...god bless you,,, reg : @bhupesh kumar mandal cloud news