Saturday, 4 April 2015

गोवा टू बंगलूरू:मार्गदर्शक से मूकदर्शक तक आडवाणी.#BJP की दो साल पहले गोवा से आडवाणी को हाशिए पर डालने की प्रकिया बंगलूरू में पूरी.भाजपा में आडवाणी का सूर्य अस्त हो चुका है

गोवा टू बंगलूरू:मार्गदर्शक से मूकदर्शक तक आडवाणी.#BJP की दो साल पहले गोवा से आडवाणी को हाशिए पर डालने की प्रकिया बंगलूरू में पूरी.भाजपा में आडवाणी का सूर्य अस्त हो चुका है
लाल कृष्‍ण आडवाणी के जिन रथों पर सवार होकर भाजपा केंद्र की सत्ता का व्यूह भेद पाई थी, उन्हीं रथों के पहिए 2013 में गोवा में पटरी से उतरे और बंगलुरू में उसके परखच्‍चे उड़ गए।

पिछले लोकसभा चुनावों में बहुमत पाकर सत्ता में आई भाजपा ने सबसे पहले अपने तीन वरिष्ठ नेताओं अटल ‌बिहारी वाजपेयी, लालकृष्‍ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को संसदीय समि‌ति से बाहर कर मार्गदर्शक मंडल में रखा। बंगलूरू में हो रही राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उनसे मार्गदर्शन का अधिकार भी छीन लिया गया।

राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के पहले दिन से ही मुरली मनोहर जोशी चर्चा से बाहर थे, जबकि संभावना था कि पार्टी मे पितृपुरुष की पदवी पर बैठे आडवाणी को बोलने का मौका दिया जा सकता है। शुक्रवार को दिन भर चर्चा रही कि किसी प्रस्ताव में हस्तक्षेप या किसी अन्य माध्यम से आडवाणी को बोलने का मौका दिया जाऐगा।

हालांकि शनिवार को भी वक्ताओं की सूची में उनका नाम नहीं डाला गया। अनदेखी से व्यथित आडवाणी ने स्वयं ही भाषण देने से इनकार कर दिया।
 

भाजपा में आडवाणी का सूर्य अस्त हो चुका है

1980 में पार्टी के गठन के बाद ये पहला मौका है जब आडवाणी कार्यकारिणी की बैठक को संबोधित नहीं कर पाए। इससे पहले 2013 में गोवा में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में अनुपस्थित रहने के कारण आडवाणी का भाषण नहीं हो पाया था।

भाजपा में आडवाणी के पराभव की घोषणा तो उसी समय हो गई थी, जब उन्हें पार्टी की सर्वाधिक शक्तिशाली इकाई संसदीय समिति से निकालकर म्यूजियम जैसे मार्गदर्शक मंडल में सजा दिया गया। नरेंद मोदी और अमित शाह के उदय और लोकसभा चुनावों के बाद विधानसभा चुनावों में राज्य दर राज्य विजय से ये तय हो गया था‌ कि जब‌ तक यह जोड़ी है, तब तक आडवाणी का सूर्य अस्त ही रहेगा।

राष्ट्रीय कार्यक‌ारिणी में आडवाणी की अनदेखी ने उस मत की पुष्टि कर दी। मोदी युग के आरंभ और आडवाणी युग के अंत की जो प्रक्रिया 2013 की गर्मियों में गोवा से शुरु हुई थी, वह बंगलूरू में पूरी हो गई। भाजपा को अब 'आडवाणी-मुक्त' माना जा सकता है।
 

दो साल पहले शुरु हुई थी आडवाणी के अंत की प्रक्रिया

दो साल पहले शुरु हुई थी आडवाणी के अंत की प्रक्रिया
भाजपा में आडवाणी को हाशिए पर डालने की प्रकिया जून 2013 में गोवा में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक से शुरू हुई थी।

2009 में भाजपा ने लाल कृष्‍ण आडवाणी को प्रधानमंत्री पद का उम्‍मीदवार घो‌षित किया था, उस समय एक टीवी चैनल ने नरेंद्र मोदी से पूछा कि पार्टी अगर चुनाव हार गई, तो क्या अगले चुनाव में वे प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। जवाब में मोदी ने कहा था, 'हमारे नेता आडवाणी हैं, आडवाणी ही रहेंगे।'

हालांक‌ि जब 2014 के लोकसभा चुनाव करीब आए आडवाणी के दोबारा प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने की संभावनाओं पर मोदी ने ही पानी फेर दिया।

जून, 2013 में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से पहले भाजपा के चुनाव प्रचार की कमान आडवाणी के हाथ में थी। उस बैठक से चंद दिनों पहले चर्चा होने लगी कि नरेंद्र मोदी को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया जा सकता है।
 

आडवाणी ने मोदी को रोकने की हर संभव कोशिश की

आडवाणी ने मोदी को रोकने की हर संभव कोशिश की
चुनाव प्रचार समिति से हटाए जाने का अर्थ था प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी से हटाया जाना। आडवाणी ने मोदी के समर्थन में उमड़े तूफान को रोकने के लिए कार्यकारिणी के ब‌हिष्कार का अस्त्र फेंका।

बैठक गोवा में हो रही थी, आडवाणी दिल्ली में थे। उन्होंने बीमारी का बहाना बनाकर जाने से मना कर दिया। आडवाणी समर्थक कई अन्य नेताओं ने भी कार्यकारणी में जाने से मना कर दिया। उन नेताओं में जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा आदि शामिल थे। अधिकांश ने न जाने का कारण बीमारी ही बताया।

हालांकि यशवंत सिन्हा से जब ये पूछा गया था कि क्या वे बीमारी के कारण गोवा नहीं जा रहे, तो वह पूछने वाले पर भड़क गए। तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने उस समय आडवाणी को मनाने की हर संभव को‌शिश की, लेकिन वह नहीं माने। वह गोवा न जाने पर अड़े रहे।
 

आडवाणी का एक भी पैंतरा काम न आया

आडवाणी का एक भी पैंतरा काम न आया
दो दिनों तक चली राष्ट्रीय कार्यका‌रिणी की बैठक में नरेंद्र मोदी को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बना दिया गया। आडवाणी समेत कई वरिष्ठ नेताओं की अनु‌पस्थिति का पैंतरा काम नहीं आया।

बीजेपी के सहयोगी जदयू ने भी मोदी को रोकने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रही। चंद दिनों बाद उसने बीजेपी से 16 साल पुराना गठबंधन तोड़ लिया। आडवाणी ने राष्ट्रीय पटल पर तेजी से उभर रहे मोदी को रोकने के लिए आखिरी कोशिश इस्तीफे के रूप में की।

9 जून, 2013 को नरेंद्र मोदी को चुनाव प्रचार की कमान सौंपी गई और अगले ही दिन यानी 10 जून, 2013 को आडवाणी ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। आडवाणी के इस्तीफे पर तूफान आना तय ‌था और हुआ भी वही।

पार्टी के आला नेता आडवाणी को मनाने के ‌लिए दौड़ पड़े। हालांकि मोदी और उनकी लॉबी ने चुप्पी साधे रखी।
 

आडवाणी के इस्तीफे का अस्त्र भी नहीं चल पाया

आडवाणी के इस्तीफे का अस्त्र भी नहीं चल पाया
आडवाणी ने अपने इस्तीफे में कहा था कि भाजपा अब उन आदर्शों वाली पार्टी नहीं रही, जैसी इसे श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपध्याय, नानाजी देशमुख और अटल बिहारी वाजपेयी ने बनाया था।

तत्कालीन भाजपा अध्‍यक्ष राजनाथ ‌सिंह ने आडवाणी का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया। एक दिन बाद आरएसएस के हस्तक्षेप के बाद आडवाणी ने इस्तीफा वापस ले लिया। उस समय राजनाथ सिंह ने कहा था क‌ि आडवा‌णी की जो भी मुद्दे उठाएं हैं, उनका उचित तरीके से समाधान किया जाएगा। पार्टी की कार्यशैली में कोई बदलाव नहीं होगा।

आडवाणी ने इस्तीफा वापस तो ले लिया, लेकिन वे अब ये भी समझ चुके थे कि भाजपा के भीतर वह नक्‍कारखाने की तूती भर रह गए हैं। उनकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं बचा है।

उसी साल 13 सितंबर को भाजपा संसदीय बोर्ड ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घो‌षित कर दिया। आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और सुषमा स्वराज ने विरोध किया, लेकिन बहुमत के आगे उन्हें झुकना पड़ा।
 

आडवाणी ने कहा, पीएम न बनने का अफसोस नहीं

नवंबर-दिसंबर, 2013 में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए। दिल्‍ली और मिजोरम को छोड़कर भाजपा ने मध्य प्रदेश राजस्‍थान और छत्तीसगढ़ में रिकॉर्डतोड़ जीत हासिल की। 2014 की गर्मियों में हुए लोकसभा चुनावों में मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने 282 सीटें जीतीं। 30 सालों बाद किसी पार्टी को लोकसभा में बहुमत मिला।

भाजपा का ग्राफ तेजी से बढ़ता रहा और आडवाणी हाशिए पर फिसलते गए। लोकसभा चुनावों में ऐतिहासिक जीत के बाद मोदी ने मंत्री पद के लिए अधिकत 75 वर्ष की उम्र सीमा तय कर उनके लिए मंत्रालय के दरवाजे भी बंद कर दिए।

पिछले 11 महीने में गाहेबगाहे कई बार ऐसे मौके आए हैं, जिससे ये लगा कि आडवाणी और मोदी के रिश्ते सुमधुर है। हालांकि सूत्रों की मानें तो राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में मोदी-शाह ने उन्हें केवल इसलिए नहीं बोलने दिया कि कहीं वह पार्टी की फजीहत न करा दें।

बहरहाल पिछले वर्ष नवंबर महीने में दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि उन्हें प्रधानमंत्री न बन पाने का कोई अफसोस नहीं है। हाल ही उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।

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Rain Misery For Indian Farmers: 67 Farmers Are Suicides in March Month in India. Unseasonal Rains Have Destroyed Farmer's All Crops

Rain Misery For Indian Farmers: 67 Farmers Are Suicides in March Month in India. Unseasonal Rains Have Destroyed Farmer's All Crops

4 April 2015
Unseasonal rains have destroyed Ram Lal's crops
Unseasonal rains have destroyed Ram Lal's crops
Unseasonal rains and hailstorms have destroyed crops in several parts of northern and western India. Small farmers are suffering the most in this crisis. Some of the affected farmers in northern Uttar Pradesh state tell their stories.

Ram Singh of Pratapgarh looks nervous and unsure about the future as he shows me the destroyed wheat crop in his farm.
He is one among many farmers in the district who are "devastated" because of the unseasonal rains.
"I was about to harvest this season's wheat crop. But the rains did not allow the grains to ripe and now I have nothing left. How would I recover my investment? How will I feed my children?" he asks.

Thinking I am a government official, his wife Prabha Devi asks me about compensation.
I introduce myself and the couple agree to sit down and have a chat with me.
"No government official has visited us so far. We are a small-time farming family and have no other source of income. I have three children to feed and send them to school. The future is looking bleak," Prabha Devi says.
Prabha Devi is worried about her children's future
Prabha Devi is worried about her children's future
The federal and state governments have recognised the problem and ministers have been touring the affected areas to assess the damage.
Media reports say that preliminary government data shows that about 3% of the crop has been damaged by the inclement weather.
Veteran journalist Shree Padre, who has been covering farming issues in India for more than 30 years, believes such crop losses have a far reaching impact.
"Such damage causes shortage of grains, pulses and vegetables and that increases food prices," he says.
For farmers like Ram Singh time is running out with no other source of income in sight.

"Son of the soil"

He says he may consider going to the city of Allahabad, about 370 miles from the national capital Delhi, to work as a rickshaw puller or labourer on construction sites.
"I don't have a choice. I don't want to go to the city. Farming is what I do and want to continue."
In the neighbouring area, I meet Vimla Devi. She says crops like wheat, pulses and vegetables have been completely destroyed in their area.
Vimla Devi is getting "sleepless nights" due to loans
Vimla Devi is getting "sleepless nights" due to loans
Vimla Devi and her husband have four children and they have to repay a 200,00 rupees (£2,166;$3,211) farm loan.
She breaks down while talking about the loan, but quickly recovers and gets busy in saving the remains of her crop. She says that the remains will be used as fodder for her cows and buffalos.
Issues like indebtedness, the future of children and precarious food security seems to be worrying every farming family.
Pappu says he is "devastated" due to the crop damage
Pappu says he is "devastated" due to the crop damage
"We are hearing that the government will give us compensation. I just hope we get it in time. I don't want to read any more stories of farmers in debt killing themselves," says Pappu, another farmer.
Indian papers have been reporting isolated cases of farmers killing themselves in the past two weeks.

'We feed the nation'

Many of these farmers own small plots of land and take loans from government for farming.
Vimla Devi and her husband Mithai Lal's loan has been giving them "sleepless nights".
"We farmers grow food and feed the rest of the nation, but small farmers are still poor in the country," she says.
Whose fault is that?
"I don't know whom to blame. We make enough to survive every year. But when bad weather hits us, we just want our government to take care of us. I hope you will tell them," she says.
What crops have suffered the most due the unseasonal rains
Wheat crops have been been damaged in the unseasonal rains
Shree Padre says that it's difficult to protect farmers from unseasonable rains "because sudden weather changes are very hard to predict".
"But that doesn't mean we cannot do anything for these farmers. Authorities need to set up a crisis management cells and invest in modern farming technologies, like farming under shelters," he says.

'Not one but two countries'

Farmers who own land stand a chance to get government compensation and loan waivers if their crop fails.
But the story is very different for farm workers like Surfali.
Surfali fears that her earning will go down drastically this harvest year
Surfali fears that her earning will go down drastically this harvest season
She and thousands like her in the area don't have land, but work in farms owned by others to make a living.
"I work in fields of landlords to make money. My income peaks during the harvest season. But I have very little work this season," she says.
She adds that she doesn't want her children to become farmers.
A local journalist tells me that India "is not one but two countries". He says "when people were enjoying the weather in cities, farmers in rural India were holding their breath".
"You have to just come out of cities and talk to these farmers to know that," he adds.

Must Read: Editor's Sensitive Pick: The Syrian child who 'surrendered' to a camera,The photographer who broke the internet's heart

Must Read:
Editor's Sensitive Pick: The Syrian child who 'surrendered' to a camera,The photographer who broke the internet's heart



A girl with her hands up in surrender
The photo was taken by Turkish photographer Osman Sağırlı in 2014

Thousands online have shared an image of a Syrian child with her hands raised in surrender - but what is the story behind it?

Those sharing it were moved by the fear in the child's eyes, as she seems to staring into the barrel of a gun. It wasn't a gun, of course, but a camera, and the moment was captured for all to see. But who took the picture and what is the story behind it? BBC Trending have tracked down the original photographer - Osman Sağırlı - and asked him how the image came to be.
It began to go viral Tuesday last week, when it was tweeted by Nadia Abu Shaban, a photojournalist based in Gaza. The image quickly spread across the social network. "I'm actually weeping", "unbelievably sad", and "humanity failed", the comments read. The original post has been retweeted more than 11,000 times. 

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On Friday the image was shared on Reddit, prompting another outpouring of emotion. It's received more than 5,000 upvotes, and 1,600 comments.

Accusations that the photo was fake, or staged, soon followed on both networks. Many on Twitter asked who had taken the photo, and why it had been posted without credit. Abu Shaban confirmed she had not taken the photo herself, but could not explain who had. On Imgur, an image sharing website, one user traced the photograph back to a newspaper clipping, claiming it was real, but taken "around 2012", and that the child was actually a boy. The post also named a Turkish photojournalist, Osman Sağırlı, as the man who took the picture.

Sağırlı - now working in Tanzania - to confirm the origins of the picture. The child is in fact not a boy, but a four-year-old girl, Hudea. The image was taken at the Atmeh refugee camp in Syria, in December last year. She travelled to the camp - near the Turkish border - with her mother and two siblings. It is some 150 km from their home in Hama.

"I was using a telephoto lens, and she thought it was a weapon," says Sağırlı. "İ realised she was terrified after I took it, and looked at the picture, because she bit her lips and raised her hands. Normally kids run away, hide their faces or smile when they see a camera." He says he finds pictures of children in the camps particularly revealing. "You know there are displaced people in the camps. It makes more sense to see what they have suffered not through adults, but through children. It is the children who reflect the feelings with their innocence."

The image was first published in the Türkiye newspaper in January, where Sağırlı has worked for 25 years, covering war and natural disasters outside the country. It was widely shared by Turkish speaking social media users at the time. But it took a few months before it went viral in the English-speaking world, finding an audience in the West over the last week

P V Narsimha Rao: Hero of liberalization or Villain of Babri demolish in India? :::: उदारीकरण के हीरो या बाबरी के विलेन?

P V Narsimha Rao: Hero of liberalization or Villain of Babri demolish in India?

उदारीकरण के हीरो या बाबरी के विलेन?

Is  is  of 's
or
He is  of 's after   in ?

...की बाबरी मस्जिद विध्वंस में भूमिका थी. जब कारसेवक मस्जिद को गिरा रहे थे, तब वो अपने निवास पर पूजा में बैठे हुए थे. वो वहाँ से तभी उठे जब मस्जिद का आख़िरी पत्थर हटा दिया गया."

पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव
राजीव गाँधी की हत्या के बाद जब शोक व्यक्त करने आए सभी विदेशी मेहमान चले गए तो सोनिया गाँधी ने इंदिरा गाँधी के पूर्व प्रधान सचिव पीएन हक्सर को 10, जनपथ तलब किया.
उन्होंने हक्सर से पूछा कि आपकी नज़र में कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए कौन सबसे उपयुक्त व्यक्ति हो सकता है.

हक्सर ने तत्कालीन उप राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा का नाम लिया. नटवर सिंह और अरुणा आसफ़ अली को ज़िम्मेदारी दी गई कि वो शंकरदयाल शर्मा का मन टटोलें.
शर्मा ने इन दोनों की बात सुनी और कहा कि वो सोनिया की इस पेशकश से अभिभूत और सम्मानित महसूस कर रहे हैं, लेकिन "भारत के प्रधानमंत्री का पद एक पूर्णकालिक ज़िम्मेदारी है. मेरी उम्र और स्वास्थ्य, मुझे देश के इस सबसे बढ़े पद के प्रति न्याय नहीं करने देगा."
इन दोनों ने वापस जाकर शंकरदयाल शर्मा का संदेश सोनिया गाँधी तक पहुंचाया.
एक बार फिर सोनिया ने हक्सर को तलब किया. इस बार हक्सर ने नरसिम्हा राव का नाम लिया. आगे की कहानी इतिहास है.

 विवेचना विस्तार से

वरिष्ठ पत्रकार कल्याणी शंकर, बीबीसी स्टूडियो में रेहान फ़ज़ल के साथ
वरिष्ठ पत्रकार कल्याणी शंकर
नरसिम्हा राव भारतीय राजनीति के ऊबड़-खाबड़ धरातल से ठोकरें खाते हुए सर्वोच्च पद पर पहुंचे थे. किसी पद को पाने के लिए उन्होंने किसी राजनीतिक पैराशूट का सहारा नहीं लिया था. जब वो प्रधानमंत्री बने तो उनके पास पूर्ण बहुमत नहीं था.
उनसे पहले के प्रधानमंत्री आर्थिक सुधारों की बात तो करते थे, लेकिन उनमें न तो इसे लागू करने की हिम्मत थी और न ही चाह. राव का कांग्रेस और देश के लिए सबसे बड़ा योगदान था डॉक्टर मनमोहन सिंह की खोज.
जिस समय उन्होंने मनमोहन सिंह को अपना वित्त मंत्री बनाया, उस समय उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी कि एक दिन वो देश के प्रधानमंत्री बनेंगे.
शिवराज पाटिल, नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह.
लोकसभा के पूर्व स्पीकर शिवराज पाटिल और मनमोहन सिंह के साथ नरसिम्हा राव.
मशहूर पत्रकार और नरसिम्हा राव को नज़दीक से जानने वाली कल्याणी शंकर कहती हैं, "ये गलत धारणा है कि आर्थिक सुधारों के जनक मनमोहन सिंह हैं. नरसिम्हा राव मनमोहन सिंह को लाए थे. उन्होंने खुद पीछे रह कर सोचसमझ कर उन्हें आगे किया. पार्टी में उस समय उनका बहुत विरोध हुआ."
"1996 में चुनाव हारने के बाद बहुत लोगों ने कहा कि आर्थिक सुधारों के कारण हम हारे. जब वो प्रधानमंत्री बने तो भारत की अर्थव्यवस्था बहुत बुरी हालत में थी. यशवंत सिन्हा आपको बताएंगे कि भारत के पास दो हफ़्ते चलाने लायक भी विदेशी मुद्रा भंडार नहीं था. उसके लिए उन्हें बाहर से पैसा लाना ही लाना था. उसके लिए वो एक विश्वसनीय चेहरा ढ़ूंढ रहे थे."
"उनकी पहली पसंद मशहूर अर्थशास्त्री आईजी पटेल थे, लेकिन उन्होंने दिल्ली आने से मना कर दिया. फिर उन्होंने मनमोहन सिंह को बुलाया, क्योंकि विश्व बैंक से पैसा लाने और उससे बातचीत के लिए वो ही सबसे उपयुक्त व्यक्ति थे."

मनमोहन को राव का समर्थन

नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह
मॉरिशस के प्रधानमंत्री अनिरुद्ध जगन्नाथ और मनमोहन सिंह के साथ नरसिम्हा राव .
ये वही मनमोहन सिंह थे जिनके नेतृत्व वाले योजना आयोग को राजीव गाँधी ने एक बार ’बंच ऑफ़ जोकर्स’ कहा था और वो इससे इतने आहत हुए थे कि उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा देने का मन बना लिया था.
एक ज़माने में विश्वनाथ प्रताप सिंह के मीडिया सलाहकार रह चुके प्रेम शंकर झा कहते हैं, "राव अपने मंत्रियों से काम करवाते थे और पीछे से उनका सपोर्ट करते थे. उस समय भी कांग्रेस के अंदर एक जिंजर ग्रुप था जो नेहरुवियन सोशलिज़्म का नाम लेकर उन पर ग़द्दारी का आरोप लगाते थे."
वरिष्ठ पत्रकार प्रेमशंकर झा बीबीसी हिंदी स्टूडियो में रेहान फ़ज़ल के साथ
वरिष्ठ पत्रकार प्रेमशंकर झा 
"मनमोहन सिंह कहते थे कि मंत्रिमंडल में हर कोई उनके ख़िलाफ़ था, लेकिन उनके पास हमेशा एक शख़्स का समर्थन होता था... वो थे प्रधानमंत्री राव. जब उनको यूरो मनी ने वर्ष 1994 में सर्वश्रेष्ठ वित्त मंत्री का पुरस्कार दिया तो उन्होंने पुरस्कार समारोह में कहा- इसका श्रेय नरसिम्हा राव को दिया जाना चाहिए."
लेकिन नरसिम्हा राव के बढ़ते राजनीतिक ग्राफ़ को बहुत बड़ा धक्का तब लगा जब 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया और वो कुछ नहीं कर पाए.
कुलदीप नैय्यर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, "मुझे जानकारी है कि राव की बाबरी मस्जिद विध्वंस में भूमिका थी. जब कारसेवक मस्जिद को गिरा रहे थे, तब वो अपने निवास पर पूजा में बैठे हुए थे. वो वहाँ से तभी उठे जब मस्जिद का आख़िरी पत्थर हटा दिया गया."
अर्जुन सिंह
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अर्जुन सिंह.
"लगभग उसी समय उनके मंत्रिमंडल के सदस्य अर्जुन सिंह ने पंजाब के मुक्तसर शहर से उन्हें फ़ोन किया. उन्हें बताया कि नरसिम्हा राव कोई फ़ोन नहीं ले रहे हैं. शाम छह बजे राव ने अपने निवास स्थान पर मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई."

बाबरी मस्जिद

बाबरी मस्जिद
अर्जुन सिंह अपनी आत्मकथा 'ए ग्रेन ऑफ़ सैंड इन द आर ग्लास ऑफ़ टाइम' में लिखते हैं, "पूरी बैठक के दौरान नरसिम्हा राव इतने हैरान थे कि उनके मुंह से एक शब्द तक नहीं निकला. सबकी निगाहें जाफ़र शरीफ़ की तरफ मुड़ गईं मानों उनसे कह रही हों कि आप ही कुछ कहिए. जाफ़र शरीफ़ ने कहा इस घटना की देश, सरकार और कांग्रेस पार्टी को भारी क़ीमत चुकानी पड़ेगी."
"माखनलाल फ़ोतेदार ने उसी समय रोना शुरू कर दिया लेकिन राव बुत की तरह चुप बैठे रहे."
दि इनसाइडर
राजनीतिक विश्लेषक राम बहादुर राय कहते हैं, "जब वर्ष 1991 में ये लगने लगा कि बाबरी मस्जिद पर ख़तरा मंडरा रहा है, तब भी उन्होंने इसे कम करने की कोई कोशिश नहीं की. राव के प्रेस सलाहकार रहे पीवीआरके प्रसाद ने एक क़िताब लिखी है जिसमें वो बताते हैं कि कैसे राव ने मस्जिद गिरने दी. वो वहाँ पर मंदिर बनाने के लिए उत्सुक थे, इसलिए उन्होंने रामालय ट्रस्ट बनवाया."
"मस्जिद गिराए जाने के बाद तीन बड़े पत्रकार निखिल चक्रवर्ती, प्रभाष जोशी और आरके मिश्र नरसिम्हा राव से मिलने गए. मैं भी उनके साथ था. ये लोग जानना चाहते थे कि 6 दिसंबर को आपने ऐसा क्यों होने दिया. मुझे याद है कि सबको सुनने के बाद नरसिम्हा राव ने कहा- क्या आप लोग ऐसा समझते हैं कि मुझे राजनीति नहीं आती?"
राय कहते हैं, "मैं इसका अर्थ ये निकालता हूँ कि अपनी राजनीति के तहत और ये सोचकर कि अगर बाबरी मस्जिद ढहा दी जाएगी तो भारतीय जनता पार्टी की मंदिर की राजनीति हमेशा के लिए ख़त्म हो जाएगी, उन्होंने इसे रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया."

राजनीतिक ग़लती

पीवी नरसिम्हा राव
"मेरा मानना है कि राव किसी ग़लतफ़हमी में नहीं, भारतीय जनता पार्टी से साठगाँठ के कारण नहीं बल्कि इस विचार से कि उनसे वो ये मुद्दा छीन सकते हैं, उन्होंने एक एक कदम इस तरह से उठाया कि बाबरी मस्जिद का ध्वंस हो जाए."
लेकिन राव की नजदीकी कल्याणी शंकर का मानना है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस में नरसिम्हा राव की भूमिका को ज़्यादा से ज़्यादा एक 'राजनीतिक मिसकैलकुलेशन' कहा जा सकता है.
वे कहती हैं, "आडवाणी और वाजपेयी ने उन्हें विश्वास दिलाया कि कुछ होगा नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र को रिसीवरशिप लेने से मना कर दिया. ये राज्य का अधिकार है कि वो वहाँ पर सुरक्षा बलों को भेजे या नहीं. कल्याण सिंह ने वहाँ सुरक्षा बल भेजने ही नहीं दिया."
नरसिम्हा राव पर अपनी सरकार बचाने के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों को रिश्वत देने के आरोप भी लगे. लेकिन उनकी सबसे ज़्यादा किरकिरी उस समय हुई जब शेयर दलाल हर्षद मेहता ने उन्हें एक सूटकेस में एक करोड़ रुपए देने की बात जगज़ाहिर की.

सूटकेस का राज़

हर्षद मेहता
वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी के साथ हर्षद मोहता.
लेकिन प्रेमशंकर झा इस मामले में नरसिम्हा राव को क्लीन चिट देते हैं, "केस ये था कि जब हर्षद मेहता ने राव को नोटों से भरा सूटकेस दिया तो उन्होंने उसे खोल कर देखा. राम जेठमलानी ने डिटेल्स दिए थे कि इस समय हम प्रधानमंत्री निवास के अंदर गए थे. जब मुझे टाइमिंग मिल गई तो मैंने जाँच की. पता लगा कि उसी दिन उसी समय आगा शाही के नेतृत्व में पाकिस्तान का एक प्रतिनिधि मंडल नरसिम्हा राव के सामने बैठा हुआ था."
"मेहता के आने और आगा शाही से मीटिंग के बीच जो समय रह गया था, उस दौरान ये सूटकेस राव तक नहीं पहुंचाया जा सकता था. मैं चूंकि पीएमओ में काम कर चुका हूँ इसलिए मुझे पता है कि इस तरह की प्रक्रिया में कितना समय लगता है. एक-एक सेकंड का हिसाब करने पर पता चला कि हर्षद 11 बजकर 10 मिनट से पहले किसी भी हालत में प्रधानमंत्री से नहीं मिल सकते थे और ठीक 11 बजे आगा शाही साहब प्रधानमंत्री से मिलने पहुंच गए थे."
राव पर ये भी आरोप लगे कि वो साधु संतों और तांत्रिकों के प्रभाव में थे, वो उनसे मनमर्ज़ी काम करवा सकते थे.

चंद्रास्वामी का असर

नरसिम्हा राव, चंद्रशेखर, आडवाणी
नरसिम्हा राव चंद्रशेखर, लालकृष्ण आडवाणी और एचडी देवगौड़ा के साथ.
राम बहादुर राय कहते हैं, "वो तांत्रिक चंद्रास्वामी के बहुत अधिक प्रभाव में थे. ये भी कहा जाता है कि वो जो चाहते थे उनसे करवा लेते थे. उन्होंने चंद्रास्वामी के कहने पर रामलखन यादव को मंत्री बनाया था. मुझे याद है कि जब रामलखन यादव को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई तो चंद्रा स्वामी मुंबई में थे. वहाँ उन्होंने बाक़ायदा ऐलान किया- मैं दिल्ली जा रहा हूँ रामलखन यादव को मंत्री बनवाने."
हालांकि नरसिम्हा राव को कांग्रेस और देश का नेतृत्व करने की ज़िम्मेदारी सोनिया गांधी ने ही दी थी, लेकिन कुछ दिनों के भीतर ही दोनों के बीच ग़लतफ़हमियाँ पैदा हो गईं.
सोनिया गांधी पर किताब लिखने वाले राशिद क़िदवई कहते हैं, "राव राजनीतिक व्यक्ति थे. वो भी सोनिया गाँधी का इस्तेमाल करना चाहते थे. जब भी मंत्रिमंडल में फेरबदल करना चाहते थे, वो उनसे सलाह मशविरा करते थे. दोनों एक दूसरे का आदर भी करते थे."
सोनिया गाँधी
"जब राजीव गांधी फ़ाउंडेशन की बैठक की बात आई तो राव समझ गए कि सोनिया को बैठक के लिए 7 रेसकोर्स रोड आने में दिक्कत है. वहाँ से उनकी बहुत सी यादें जुड़ी हुई थीं. उन्होंने खुद पेशकश की थी वो इस बैठक के लिए सोनिया के निवास स्थान 10 जनपथ आएंगे."
"ये उनका बड़प्पन था लेकिन बीच के लोग जैसे अर्जुन सिंह, माखनलाल फ़ोतेदार और विंसेंट जॉर्ज उनके बीच ग़लतफ़हमियाँ पैदा करने की कोशिश करते थे. नरसिम्हा राव भी दूध के धुले नहीं थे. वो किसी की कठपुतली बनकर नहीं रहना चाहते थे. सोनिया गाँधी को उस समय राजनीति की इतनी समझ नहीं थी. इसलिए धीरे धीरे उनके बीच दूरियाँ बढ़ती चली गईं."
कुछ भी हो लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि नरसिम्हा राव ऊँचे दर्जे के बुद्धिजीवी थे. उन्हें 17 भाषाएं आती थीं और नई चीज़ों को सीखने का उनमें गज़ब का जज़्बा था.

विद्वान

नरसिम्हा राव
कल्याणी शंकर कहती हैं कि ऊँचे स्तर की स्पेनिश सीखने के लिए उन्होंने स्पेन में रहने का फ़ैसला किया था. वर्ष 1985-86 में राजीव गांधी का अक्सर मज़ाक उड़ाया जाता था कि वो कंप्यूटर का इस्तेमाल करते हैं... बीसवीं सदी की बात कर रहे हैं.
नरसिम्हा राव ने 70 साल की उम्र में कंप्यूटर सीखा. वो हमेशा कंप्यूटर पर काम करते थे और जैसे ही कोई नया कंप्यूटर आता था, वो उसे ख़रीद लेते थे. संगीत के भी वो बहुत शौकीन थे. ख़ुद भी गाते थे. वो अक्सर हैदराबाद से कलाकारों को बुलाकर अपने घर पर कॉन्सर्ट किया करते थे.
लेकिन उनके जीवन की साँध्यबेला में स्वयं उनकी पार्टी ने उनसे किनारा कर लिया. वो बहुत एकाकी और अपमानित होकर इस दुनिया से विदा हुए.
नरसिम्हा राव
न सिर्फ़ उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में नहीं होने दिया गया, उनके पार्थिव शरीर को भी कांग्रेस मुख्यालय 24, अकबर रोड के अंदर नहीं आने दिया गया. उन पर डाक टिकट जारी करने की मांग नहीं हुई. न ही किसी ने उन्हें भारत रत्न देने की मांग की.
वर्षगाँठ और बरसी पर भी उनकी चर्चा करना ज़रूरी नहीं समझा गया. शायद कुछ समय बाद इतिहास उनका सही मूल्यांकन कर पाए.

Thursday, 2 April 2015

अरुणाचलः सेना के काफिले पर हमला, 3 जवान शहीद | Terror attack in Arunachal Pradesh.We Lost 3 #Indian Army Soldiers

अरुणाचलः सेना के काफिले पर हमला, 3 जवान शहीद 

Terror attack in Arunachal Pradesh.We Lost 3 #Indian Army Soldiers

खोन्सा इलाके में हथियारबंद आतंकियों ने सेना की टुकड़ी को निशाना बनाकर हमला किया।
खोन्सा इलाके में हथियारबंद आतंकियों ने सेना की टुकड़ी को निशाना बनाकर हमला किया।
इटानगर,अरुणाचल प्रदेश के तिराप जिले में गुरुवार को संदिग्ध उग्रवादियों ने सेना के एक काफिले पर घात लगाकर हमला कर दिया। इस हमले में सेना के तीन जवान शहीद हो गए, जबकि तीन अन्य घायल हो गए। सेना के एक अधिकारी ने बताया कि उग्रवादियों ने सेना के एक काफिले पर ताबड़तोड़ गोलीबारी शुरू कर दी, जिसमें सेना के छह जवान घायल हो गए। घायल सैनिकों को अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां तीन ने दम तोड़ दिया।

अधिकारी ने कहा, 'सेना का काफिला असम के तिनसुकिया जिला स्थित छावनी से अरुणाचल प्रदेश के लोंगडिंग जिले की ओर जा रहा था। काफिला जैसे ही टोपी इलाके में पहुंचा संदिग्ध उग्रवादियों के एक दल ने अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी।' उन्होंने कहा, 'हमें संदेह है कि इस हमले के पीछे नैशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड-खपलांग (एनएससीएन-के) धड़े का हाथ है। एनएससीएन के इस धड़े ने उल्फा के बाचतीच विरोधी धड़े के साथ मिलकर घात लगाकर यह हमला किया है।'

अधिकारी ने हालांकि कहा कि नैशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड-इसाक मुइवा (एनएससीएन-आईएम) की भूमिका से भी इंकार नहीं किया जा सकता। एस.एस. खपलांग के नेतृत्व वाले एनएससीएन-खपलांग ने शुक्रवार को केंद्र सरकार के साथ संघर्ष विराम समझौते को भंग कर दिया था। म्यांमार की सीमा से लगे अरुणाचल प्रदेश के तिराप और चंगलांग जिलों को एनएससीएन धड़ों का गढ़ माना जाता है। साथ ही यह उल्फा के बाचतीच विरोधी धड़े का म्यांमार तक जाने का रास्ता भी है जहां पर इन समूहों के शिविर हैं।

#AcheDin:अब किसानों को भी रखना होगा पैन कार्ड, देना होगा Tax ... #Modi #PAN card #Earning #Farmer

#AcheDin:अब किसानों को भी रखना होगा पैन कार्ड, देना होगा Tax
 
 April 03, 2015-6:25 AM
नई दिल्ली : मोदी सरकार ने काले धन के इस्तेमाल पर नकेल कसने में मदद के लिए एक नया अभियान शुरू किया है। इस अभियान के तहत 18 वर्ष से ऊपर के हर भारतीय को पैन कार्ड देने का फैसला लिया गया है। किसी भी तरह के लेन-देन में 1 लाख रुपए से ज्यादा के भुगतान पर/कमाई पर पैन कार्ड अनिवार्य होगा।
 
मोदी सरकार के इन फैसलों से न सिर्फ रीयल एस्टेट और ज्वैलरी उद्योग बड़े पैमाने पर प्रभावित होंगे बल्कि उससे कहीं ज्यादा देश के किसानों को नुक्सान पहुंचेगा, जो अपना अनाज नकद बेचते हैं। वहीं इन किसानों के पास पैन कार्ड हैं ही नहीं तो वे इसका इस्तेमाल कैसे करेंगे।

#Uttrakhand #Earthquake: उत्तराखंड के चमोली में भूकंप के जोरदार झटके । भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 5.1 दर्ज की गई।

#Uttrakhand #Earthquake:
उत्तराखंड के चमोली में भूकंप के जोरदार झटके। भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 5.1 दर्ज की गई।
देहरादून 
02-04-15 12:19 PM

   http://www.livehindustan.com/uploadimage/filephotos/year_2015/month_04/day_02/earthquake~02~04~2015~1427947500_storyimage.jpg 

त्तराखंड के चमोली जिले में आज तड़के भूकंप के तेज झटके महसूस किये गये। भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 5.1 दर्ज की गई। मौसम विभाग के अनुसार यह भूकंप तडके दो बजकर 54 मिनट पर आया और इसका केंद्र 30.2 डिग्री उत्तर तथा 79.4 डिग्री पूर्व में था।
कुछ सेकेंडों तक महसूस किये गये भूकंप के इन झटकों से चमोली और गोपेश्वर सहित जिले के विभिन्न स्थानों के निवासी दहशत में आ गये और वे घबराहट में घरों से बाहर निकल आये। चमोली जिले की सहायक विकास अधिकारी सुनीता रौतेला ने गोपेश्वर से बताया कि भूकंप के झटके तेज थे और इससे दहशत में आये सभी लोग घरों से निकलकर बाहर एकत्र हो गये। उन्होंने कहा कि भूकंप के कारण क्षेत्र में इतना डर फैल गया कि हम लोग फिर सो ही नहीं पाये।

चमोली के जिलाधिकारी अशोक कुमार ने भाषा को बताया कि भूकंप से नुकसान की फिलहाल कोई सूचना नहीं है और इस सबंध में अभी जानकारी एकत्र की जा रही है।

Indian media analyses news: Minister's (Giriraj Singh) 'distasteful remark' about Sonia Gandhi

Indian media analyses news: Minister's (Giriraj Singh) 'distasteful remark' about Sonia Gandhi

Giriraj Singh is a minister in PM Narendra Modi's cabinet
Giriraj Singh is a minister in PM Narendra Modi's cabinet
Indian federal minister Giriraj Singh's "racist remarks" about opposition party leader Sonia Gandhi has sparked severe criticism from politicians and foreign diplomats.

"If [ex-Indian PM] Rajiv Gandhi had married a Nigerian lady and not a white-skinned woman, then would the Congress have accepted her leadership?" Mr Singh, 63, said in Bihar's Hajipur district.

After receiving criticism from his party colleagues and opposition leaders, Mr Singh said he was speaking informally and off the record.

"During off the record sessions, many things are said. If Rahul Gandhi or Sonia Gandhi are hurt by my statements, I regret what I said," the DNA website quotes him as saying.
Reports say Mr Singh's comments were targeted at Mrs Gandhi's "Italian roots".
Born Sonia Maino on 9 December 1946 in the town of Orbassano, near Turin, to a building contractor and his wife, Mrs Gandhi was raised in a traditional Roman Catholic household.

In 1964, she went to Cambridge to study English at a language school. Her life changed forever when she met her future husband, Rajiv Gandhi, who was studying engineering at the university.
File photo of Rajiv Gandhi and Sonia Gandhi
Sonia Gandhi (right) met her future husband Rajiv Gandhi (left) at Cambridge university
She is now an Indian citizen and heads the main opposition Congress party.
Her party has demanded an apology from Mr Singh and the ruling Bharatiya Janata Party.
"The Congress strongly deprecates and condemns the intemperate and distasteful remarks of Giriraj Singh bordering on insanity," the NDTV website quotes Congress spokesperson Randeep Singh Surjewala as saying.
The DNA adds that BJP chief Amit Shah has also told the minister to be restrained in his comments.

His comments have also drawn sharp reactions from Nigeria's acting High Commissioner to India, OB Okongor, in Delhi.
"Giriraj's remarks were in very bad taste and we expect the minister to withdraw the comments and apologise to the Nigerian people," the Zee News quotes him as saying.

'Fake civil servant'

Meanwhile, a woman allegedly faked her identity as a trainee and lived for six months at a civil services training academy in northern India, The Indian Express reports.
The police in Dehradun district of Uttrakhand state are now trying to track down the woman to get more details, the paper adds.

Senior police officers said they were unsure about the motive of the woman's decision to live in the academy.
And finally, Amaravati has been officially chosen as the new capital of southern Andhra Pradesh state, the NDTV website reports.
Andhra Pradesh was split into two in July 2013 to create the new state of Telangana. The state's former capital, Hyderabad, was given to Telangana.

Wednesday, 1 April 2015

Haryana IAS officer Khemka gets another transfer by BJP Gov. It's #Khemka's 45th transfer in 24 years.

Haryana IAS officer Khemka gets another transfer by BJP Gov. It's #Khemka's 45th transfer in 24 years.


 MORE Robert Vadra|Ashok Khemka
Haryana IAS officer Khemka gets another transfer

CHANDIGARH: It seems there is no let up for senior IAS officer Ashok Khemka from transfers, as on Wednesday he was once again transferred to an inconsequential posting by the BJP government in Haryana.

This is Khemka's 45th transfer in 24 years.

Khemka, as per the latest orders of the Haryana government, has been posted as secretary, archaeology and museums department and director general, archaeology and museums.
He was appointed as transport commissioner and secretary, transport department, last year after Manohar Lal Khattar assumed office as chief minister of the first BJP government in Haryana.

At that time, Khemka, who had blown the lid off from the controversial multi-million-rupee land deals of Congress president Sonia Gandhi's son-in-law Robert Vadra, was touted to get an important assignment. However, he was posted in the transport department.


Meanwhile, nine other senior officers were also transferred by the Haryana government.

Among those transferred were S S Dhillon, a former principal secretary to previous chief minister Bhupinder Singh Hooda, who has now been made additional chief secretary, transport and civil aviation department.

Additional principal secretary to chief minister Khattar, Sumita Misra, has been posted as principal secretary, tourism department.
 

#SadDayForIndia:India's Biggest Icon Of #Tobacco Battle Sunita Tomar RIP :( in Mumbai.We Lost India's Another Fighter Lady #SunitaTomar.


:India's Biggest Icon Of  Battle Sunita Tomar RIP :( in Mumbai.We Lost India's Another Fighter Lady .

A promise to Sunita Tomar: Sunita Tomar passed away today in Mumbai.She is face of India's anti-tobacco campaign, loses battle with cancer


April 2, 2015 10:53 am
http://images.indianexpress.com/2015/04/sunita-tomar_759.jpg


Sunita Tomar is no more.” I awoke to this numbing text message, a cruel slap in the face and the final straw in days that have felt surreal. It’s 2015. Yet, here we are, responding to questions on whether or not tobacco indeed causes cancer, let alone other diseases. Sunita Tomar’s death felt like a sharp rebuke.

Most people would recognise her from a graphic, hard-hitting tobacco control public service announcement (PSA) that ran on national television and radio stations in 2014. Many would recognise her as the face of a campaign to encourage the government of India to carry through its decision to have graphic warnings covering 85 per cent of the pack for all tobacco products, smoking and smokeless, from April 1, 2015.

Sunita Tomar was, in many ways, an every woman. From a small town called Bhind in Madhya Pradesh, she was married at 14 to a truck driver. She had two young sons and lived with her parents-in-law in their ancestral home. They made a relatively modest living and aspired for more for their children. And, like many women, Sunita began to chew tobacco. She chewed tobacco for pleasure, but she also consumed it in the form of an oral dentifrice, ignorant of the lethal effects of a supposed dental hygiene product. Not surprisingly, a few years later, she developed oral cancer. Hers is not an uncommon story.

But Sunita was extraordinary. Dealt this devastating blow, the family, at great personal cost, travelled to the Tata Memorial Hospital in Mumbai so that Sunita could undergo potentially life-saving surgery. That’s when the true courage of her character began to reveal itself. And that’s when we came to know her.

I work with an organisation that is part of an international initiative, known as the Bloomberg Initiative to Reduce Tobacco Use, which works hard with governments in low- and middle-income countries to support the implementation of policies and programmes that protect citizens from the harms of tobacco. The organisation I represent, the World Lung Foundation, has developed tried-and-tested mass media campaigns aimed at reducing the prevalence of tobacco. I know I speak for my colleagues when I say that we learn our most important lessons from people like Sunita.

I first met her during a press conference with former Union Health Minister Harsh Vardhan. Sunita had been fortunate in her choice of physician. Pankaj Chaturvedi of the Tata Memorial Hospital was not only an experienced surgeon but also a force for tobacco control in India. After the initial shock upon learning of her illness had passed, Sunita and her husband decided to join Chaturvedi in his efforts to spread the message about the ill effects of tobacco. My colleagues travelled to Mumbai to create a 30-second PSA that would tell her story.

Through the filming of the PSA, I heard about Sunita’s strength and humility, and the compassion of her husband. She was ashamed of the scars on her face. She tried to conceal the post-operative drooling from her mouth. She was frequently tired. My colleagues often asked if they should suspend filming. Both Sunita and her husband were determined. He’d say, “She’s a fighter. Give her a few minutes. She’ll be ready.”

Impressed with her story and courage, the Union ministry of health ran one of its strongest national mass media campaigns yet, featuring the Sunita PSA. Sunita, with her husband and children, travelled to Delhi — her first time in the capital — to be present at the launch of the campaign. She was felicitated by Harsh Vardhan, so were her husband and children. She spoke with dignity and clarity to the media, never flinching in the face of all that scrutiny. She pleaded for a tobacco-free world that would save her children and others from the suffering she experienced. As if in response to her plea, on that very day, Harsh Vardhan notified a ban on all forms of chewing tobacco. Two months later, even while Indian government officials were in negotiations on the Framework Convention for Tobacco Control in Moscow, Harsh Vardhan announced India’s intention to implement the new graphic health warnings on all tobacco packs. I was in Moscow at the time and recall the jubilance of tobacco control advocates from India and the region.

India is on the cusp of something great, continuing with its own legacy. It was among the first few to enact a comprehensive national tobacco control law (the Cigarettes and Other Tobacco Products Acts of 2003 and 2009). It became one of the first signatories of the World Health Organisation’s Framework Convention for Tobacco Control in 2004 and subsequently launched its National Tobacco Control Programme in 2008. India’s movie rules, which require health warnings every time tobacco is portrayed on a scene, are novel and other countries, like Russia, are considering following suit. The current reversal on the notified 85 per cent graphic warnings is a deep betrayal.

Sunita’s death was avoidable. The solutions to tobacco are evident and within reach. Graphic health warnings on all tobacco packs, increased taxes on tobacco products, hard-hitting mass media campaigns, enforcing smoking bans and bans on the promotion and sponsorship of tobacco products are proven ways of reducing the prevalence of tobacco.
Sunita is no more. But there are millions of young people like her falling prey to a seemingly innocuous but deadly habit. Her bravery stands in sharp contrast to the duplicity of the tobacco industry, which spreads misinformation about the health hazards of tobacco and the economic benefits of its products. We need large graphic warnings so people are aware of the real harm caused by tobacco in all its forms.

We need large graphic warnings to dissuade our children from starting this deadly habit. We need large graphic warnings to help reduce the annual 1.4 trillion rupee cost of tobacco to our economy. We need large graphic warnings to carry through the promise made to Sunita, that her pain and her experience — and her family’s loss — would not be in vain. Our government needs to go ahead and implement large graphic warnings without delay.
Doing anything less would be making a mockery of Sunita Tomar and her legacy.

 https://newsnation1.s3.amazonaws.com/images/2015/04/02/791162495-sunitatomar_6.jpg
Sunita Tomar, face of India's anti-tobacco campaign, lost her battle with cancer on Wednesday.
Tomar, 28, died en route to a hospital in Gwalior in the wee hours. She is survived by her husband and two sons. Sunita Tomar in a screengrab from the ad campaign.

"Sunita came to us (Mumbai) around seven days ago for treatment, but she insisted on returning to her native place in Bhind district in Madhya Pradesh since her two kids were alone," Pankaj Chaturvedi, who treated her at the Tata Memorial Hospital in Mumbai, told PTI.

"Around three days ago she returned to Bhind and last night her condition deteriorated. She complained of breathlessness after which she was taken to a local doctor, who referred her to a Gwalior hospital, but she died en route," he said.

Two years ago, she had undergone a surgery for oral cancer at the hospital.
She shared her experience in a video, which was used by the government for its anti-tobacco drive to warn people against consumption of smokeless gutkha and pan masalas.

Just a few days ago, she had written to Prime Minister Narendra Modi expressing deep disappointment at BJP MP Dilip Gandhi's statement in his capacity as chairman of Lok Sabha's Committee of Subordinate Legislations that there was no Indian study to confirm that tobacco use leads to cancer.
"Recently Dilip Gandhi, chairman of a parliamentary panel wrote to the Health Ministry asking for the notification on bigger tobacco pack warnings to be kept in abeyance. I was shocked that people in such high posts can be so irresponsible.

"Bigger warnings can probably save some innocent lives like mine. You have started to take people along in your 'Mann Ki Baat' where you recently talked about de-addiction. I hope you will also take up the cause of tobacco," Sunita had written in the letter.

Tuesday, 31 March 2015

Dehradun (Uttarakhand) As Tourist Place: Dehradun Tourism --- "देहरादून जाएं, तो ये 10 जगहें जरूर देखें" Places to visit in Dehradun and Mussoorie

Dehradun (Uttarakhand) As Tourist Place 

Dehradun Tourism : "देहरादून जाएं, तो ये 10 जगहें जरूर देखें"
 
Dehradun: किसी भी पर्यटक के लिए घूमने की खास जगहों की कमी कभी नहीं होती है. दुनिया में तमाम ऐसी जगहें हैं, जहां आप सैर-सपाटा कर सकते हैं. लेकिन हम आपको अपने देश में ही कुछ ऐसी जगहों पर घुमाते हैं, जोकि काफी आकर्षक हैं. जी हां हम बात कर रहे हैं, देहरादून के वो 10 स्‍पेशल प्‍लेसेस जिन्‍हें देखकर आपका मन कभी नहीं भरेगा. ये ऐसी जगहें है जहां पर पर्यटक दूर-दूर से आकर आनंद उठाते हैं. तो फिर आप कभी भी देहरादून आएं, तो इन खास जगहों को देखना न भूलें.... 
 
  (1) आसन बैराज

उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश को जोड़ती आसन झील का अपना ही एक अलग इतिहास है. देहरादून से 28 किलो मीटर की दूरी पर स्थित आसन बैराज साइबेरियन बर्ड के लिए फेमस स्पॉट है. इन विदेशी मेहमानों को देखने के लिए सैकड़ों की संख्या में टूरिस्ट आसन बैराज का रुख करते हैं. यहां दिखने वाले पक्षी आईयूसीएन की रेड डाटा बुक (प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ) द्वारा लुप्त प्रजातियों के रूप में सूचीबद्ध किए गए हैं. आप यहां मल्लाड्र्स, रेड क्रेस्टेड पोचाड्र्स, कूट्स, कोर्मोरंट्स, एग्रेट्स, वाग्तैल्स, पोंड हेरोंस, पलस फिशिंग ईगल्स, मार्श हर्रिएर्स, ग्रेटर स्पॉटेड ईगल्स, ऑसप्रे और स्टेपी ईगल्स को देख सकते हैं. सर्दियों के मौसम में विभिन्न प्रवासी पक्षियों की आमद ज्यादा रहती है. अक्टूबर से नवंबर और फरवरी से मार्च तक यहां पक्षियों को देखने का सबसे अच्छा समय है.

(2) बुद्धा टेंपल

राजधानी दून की आईएसबीटी (इंटर स्टेट बस टर्मीनल) महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर ही तिब्बती समुदाय धार्मिक स्थल स्थित है. जिसे बुद्धा मॉनेस्ट्री या बुद्धा गॉर्डन के नाम से जाना जाता है. तिब्बती समुदाय द्वारा मंदिर की स्थापना 1965 ई. में की गई थी. मंदिर का अदभुत दृश्य टूरिस्ट को अपनी ओर अट्रैक्ट करता है. जानकारों की माने तो मंदिर को गोल्डेन कलर देने के लिए पचास कलाकारों को तीन साल का लंबा वक्त लगा.

(3) एफआरआई


देहरादून क्लॉक टॉवर से महज सात किलोमीटर की दूरी स्टेट का एक मात्र सबसे ओल्डेस्ट इंस्टीट्यूट स्थित है. एफआरआई के इतिहास बारे में बात की जाए तो ब्रिटिश काल में 1878 में ब्रिटिश इंपीरियल वन स्कूल स्थापित किया गया. फिर 1906 में ब्रिटिश इंपीरियल वानिकी सेवा के तहत इंपीरियल वन अनुसंधान संस्थान (आईएफएस) के रूप में पुनस्र्थापना हुई. 450 हेक्टेअर में फैला एफआरआई में कुल सात म्यूजियम हैं. जिसमें वनस्पति विज्ञान से तत्वों को संग्रह किया गया है. वैसे तो एफआरआई का बॉलीवुड कनेक्शन भी गजब है. कई बड़े फिल्म निर्माता एफआरआई कैंपस में फिल्म की शूटिंग कर चुके हैं. जैसे धर्मा प्रोडक्शन के तहत स्टूडेंट ऑफ द ईयर, तिग्मांशू धूलिया की पान सिंह तोमर जैसी बड़ी फिल्में एफआरआई में शूट हो चुकी हैं

(4) गुच्चुपानी या रावर्स केव

दून सिटी के कैंट एरिया से कुछ ही दूरी पर पहाड़ों की बीच बसा एक प्राकृतिक स्पॉट. जहां गर्मियों के मौसम सैंकड़ों की संख्या सैलानी पिकनिक मनाने आते हैं. पहाड़ों की बीच बसे इस गुफा के बीच से गिरता झरनों का पानी सैलानियों को बहुत अट्रैक्ट करता है.

(5) मालसी डीयर पार्क

देहरादून मसूरी मार्ग पर मालसी डीयर पार्क स्थित है. मालसी डीयर पार्क को मिनी जू के नाम से भी जाना जाता है. पार्क में मौजूद जानवर जैसे हिरण, चीतल, मोर तेंदूआ और भी कई कई ऐसे जानवरों की प्रजातियां हैं जो टूरिस्ट को काफी अट्रैक्ट करती है. पार्क में पिकनिक मनाने के लिए भी काफी अच्छा माहौल और स्पेस है. जिसमें आप विद फैमिली अपनी वेकेशंस को एंज्वॉय कर सकते हैं.

(6) सहस्त्रधारा



प्रकृति के गोद में बसा सहस्त्रधारा की एक अपनी अलग पहचान है. कोई सैलानी यहां पिकनिक सेलिब्रेट करने तो कोई प्रकृति के नजारों का आनंद लेने जाता है. वैसे सहस्त्रधारा में एक तरफ जहां छोटे-छोटे झरने, पहाड़ के उपर मौजूद मंदिर तो दूसरी तरफ बुद्धा मॉनेस्ट्री टूरिस्ट को खूब अट्रैक्ट करती है. सहस्त्रधारा वैसे तो सल्फर वाटर के लिए फेमस है. कहते हैं सल्फर वाटर में नहाने से स्कीन से रिलेटेड कोई भी प्रॉब्लम हो वो दूर हो जाती है.

(7) टपकेश्वर मंदिर

टपकेश्वर महादेव मंदिर एक लोकप्रिय गुफा मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. यह देहरादून शहर के बस स्टैंड से 5.5 किमी दूर स्थित एक तमसा नदी के तट पर स्थित है. मंदिर गुफा में एक शिवलिंग है और गुफा की छत से पानी टपकता रहता है, जो सीधे शिवलिंग पर गिरता है. मंदिर के चारों ओर सल्फर वाटर का झरना गिरता है. सल्फर वाटर स्किन से रिलेटेड बीमारी के लिए काफी लाभदायक होता है. हिंदू त्योहार शिवरात्रि के अवसर पर भारी संख्या में श्रद्धालु इस मंदिर में आते हैं.  इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का शुभ विवाह समारोह भी आयोजित किया जाता है.

(8) राजाजी नेशनल पार्क

राजाजी नेशनल पार्क देहरादून से 23 किमी की दूरी पर स्थित है. यह पार्क 1966 में स्थापित किया गया था. राजाजी पार्क 830 वर्ग किमी के क्षेत्रफल में फैला हुआ है. अपने शानदार पारिस्थितिकी तंत्र के कारण पार्क लोगों को खासा प्रभावित करता है. राजाजी, मोतीचूर और चिल्ला रेंज से घिरा हुआ है, जिस कारण यहां की प्राकृतिक छटा बरबस ही लोगों को अपनी ओर अट्रैक्ट करती है. 1983 में इन तीनों पार्कों को मिला कर एक कर दिया गया था. जिसे राजाजी नेशनल पार्क का नाम दिया गया. यह पार्क हाथी की आबादी के लिए जाना जाता है. यहां स्तनधारियों की 23 और पक्षियो की 315 प्रजातियां पाई जाती हैं.

(9) माल देवता

प्रकृति के गोद में बसा माल देवता दृश्य देखते ही बनता है. यहां की प्राकृतिक सौंदर्य सैलानियों का मन मोह लेती है. कहते हैं कि देहरादून आए और माल देवता का विजिट नहीं किया तो आपने बहुत कुछ मिस कर दिया. माल देवता में पहाड़ों से गिरने वाले छोटे-छोटे झरने टूरिस्ट को अट्रैक्ट ही नहीं बल्कि उन्हें वहां वक्त गुजारने पर मजबूर कर देता है.

(10) गुरु राम राय दरबार साहिब

देहरादून शहर के सेंटर में स्थित दरबार श्री गुरु राम राय जी महाराज महान स्मारक का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है. वास्तव में देहरादून शहर का नाम भी इसी गुरु राम राय जी बदौलत ही है. श्री गुरु राम राय जी, सातवीं सिख गुरू हर राय जी के ज्येष्ठ पुत्र, दून (घाटी) में अपना डेरा डाला था.  1676. में डेरा और दून के बाद में देहरादून बन गया. दरबार साहिब की अपनी अलग मान्यता है. यहां साल लगने वाले झंडा जी मेले में हजारों की संख्या संगतें देश व विदेश आती हैं. झंडा जी मेला दून का सबसे बड़ा लगने वाला मेला है. झंडा जी की भी अपनी अलग मान्यता है. झंडा जी पर शनील के के गिलाफ चढ़ाने के लिए श्रद्धालुओं सालों पहले आवेदन करना पड़ता है. तब जाकर 20 या 25 साल बाद किसी श्रद्धालु को झंडा जी पर गिलाफ चढ़ाने का मौका मिलता है.



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