Saturday, 30 May 2015

PM Narendra Modi likely to visit India's oldest mosque during Kerala trip

PM Narendra Modi likely to visit India's oldest mosque during Kerala trip


PM Narendra Modi likely to visit India's oldest mosque during Kerala trip
Unending legacy: The centuries-old Cheraman Juma Masjid in Kerala before and after the renovation.

   
   KOCHI: In a gesture that could resonate with the minority community, Prime Minister Narendra Modi is likely to visit the centuries-old Cheraman Juma Masjid, India's oldest Muslim shrine, when he visits Kerala in July or August.

The main purpose of the visit will be to inaugurate the completion of the first phase of Muziris heritage project funded by Kerala tourism. "The prime minister agreed to visit Kerala to inaugurate the Muziris project. But the date has not been finalized," tourism secretary G Kamala Vardhana Rao told on Saturday.

The Cheraman Juma Masjid is said to have been built in 629 AD by Malik Bin Dinar, a contemporary of Cheraman Perumal, the ruler of Kodungalur and adjoining parts of Malabar, who subsequently converted to Islam.

Over centuries, the mosque developed a synthetic legacy, with many non-Muslims even holding the 'vidyarambham' ceremony to initiate children to the world of letters here by lighting a traditional lamp inside the masjid.

"If Modi visits the mosque, it will be a welcome move because the BJP's usual propaganda has it that Muslims in India are the progeny of 'invaders'," said Dr Fasal Gafoor, president of Muslim Educational Society.

The PM is expected to touch down by chopper on the ground of Kodungallur Kunhikuttan Thampuran Memorial Government College. He will carry out the inauguration of the Muziris project at the International Research and Convention Centre.

"Officers from special branch visited the mosque and enquired about security aspects, like the number of gates and entrances to the mosque, as part of the PM's visit to Kodungallur," said Faisal Edavanakkad, the administrator of Cheraman Juma Masjid.

Modi may also visit two other historic places of worship — the Kodungallur Bhagavathy temple and St Thomas Church, believed to one of the churches established by Christ's apostle.

Muslim India: Adani hires MBA grad who was denied job for being a Muslim | 'निराश' मुस्लिम युवक को अडाणी ने दी नौकरी

Adani hires MBA grad who was denied job for being a Muslim

Earlier this week, Zeeshan Khan received a call from the HR department of Adani group. "I cleared the interview and was offered this job," he said.

AHMEDABAD: All's well that ends well. Zeeshan Khan, who made national headlines after he was denied a job by a Mumbai-based diamond firm because of being a Muslim, has decided to join the Ahmedabad-based Adani group.

"I received about a dozen offers following the religious discrimination I had to face. My mail box is flooded with solidarity messages," says Khan, 22, who was in Ahmedabad to complete formalities at Adani's corporate office. "Among all the offers I got, this was the best," says Khan, who will join the group's Mumbai office as an executive trainee. When asked why he chose to join Adani, he said it was one of the biggest integrated infrastructure companies in the country.

"We encourage talent irrespective of caste, creed and religion. We found Zeeshan a competent candidate and hence a job was offered," said an Adani spokesperson.

In the third week of May, Khan had sent a email application to Hari Krishna Exports Pvt Ltd for a marketing job. Within 15 minutes, he received the reply: "We regret to inform you that we hire only non-Muslim candidates." Khan and his friends put out a screenshot of the mail on social media and it went viral.


(A Mumbai diamond jewellery export firm's rejection letter to Zeeshan. )

Khan, who did his MBA in Mumbai, approached the Mumbai police and a case was registered against the company under section 153B of the IPC, which deals with national integration and provides for a jail term of up to three years for the guilty.

Earlier this week, Khan received a call from the HR department of Adani group. "I cleared the interview and was offered this job," he said.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

'निराश' मुस्लिम युवक को अडाणी ने दी नौकरी


एक कहावत है कि अंत भला तो सब भला। यह कहावत जीशान के मामले में एकदम सही बैठती है। वही जीशान जिन्हें एक मुस्लिम होने की वजह से मुंबई की एक हीरा फर्म ने नौकरी देने से मना कर दिया था और जिसके बाद जीशान खान राष्ट्रीय सुर्खियों में छा गए थे। उन्होंने अब अहमदाबाद स्थित अदानी ग्रुप में शामिल होने का फैसला किया है।

अदानी के अहमदाबाद स्थित कॉर्पोरेट ऑफिस कुछ औपचारिकताएं पूरी करने पहुंचे जीशान ने कहा, 'धार्मिक भेदभाव वाले मामले के बाद मेरे पास एक दर्जन से ज्यादा नौकरियों के ऑफर्स आए हैं। मुझे उन सभी ऑफर्स में यह सबसे अच्छा लगा।'

अदानी ग्रुप के मुंबई ऑफिस में बतौर ऐग्जिक्युटिव ट्रेनी शामिल होने जा रहे जीशान से जब पूछा गया कि उन्होंने अदानी ग्रुप में ही शामिल होना क्यों तय किया तो उन्होंने कहा कि यह देश की बड़ी इंटिग्रेटेड इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों में से एक है।

अदानी ग्रुप के एक प्रवक्ता ने कहा, 'हम जाति, सम्प्रदाय और धर्म से ऊपर उठ कर टैलेंट को प्रोत्साहित करते हैं। हमने जीशान को एक सक्षम कैंडीडेट पाया और इसीलिए नौकरी की पेशकश की।'

मई महीने में जीशान ने एक मार्केटिंग नौकरी के लिए हरि कृष्ण एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड को एक ईमेल भेजा था। जिसके 15 मिनट के अंदर ही उन्हें जवाब मिला, 'हमें खेद है लेकिन हम केवल गैर मुस्लिम कैंडीडेट्स को ही हायर करते हैं।' इसके बाद जीशान और उनके दोस्तों ने मेल के स्क्रीनशॉट को सोशल मीडिया पर डाल जिसके बाद यह वायरल हो गया।

जीशान ने बाद में मुंबई पुलिस से संपर्क किया जिसके बाद पुलिस ने कंपनी के खिलाफ आईपीसी के सेक्शन 153B के तहत मामला दर्ज कर लिया था। यह सेक्शन राष्ट्रीय एकता से संबंधित है और इसके तहत 3 साल तक की सजा हो सकती है।

afspa Kashmir: क्या कश्मीर से भी हटेगा अफ़्सपा?

afspa Kashmir: क्या कश्मीर से भी हटेगा अफ़्सपा?

31  मई 2015
भारतीय सेना

त्रिपुरा से सेना को विशेषाधिकार देने वाला क़ानून, अफ़्सपा, हटाए जाने के बाद अब भारत प्रशासित कश्मीर में भी इसे हटाने की माँग तेज़ हो गई है.
मुख्यधारा की कुछ राजनीतिक पार्टियाँ कश्मीर से अफ़्सपा हटाने की मांग कर रही हैं.
अलगाववादी संगठनों ने भी त्रिपुरा की तरह कश्मीर से भी अफ़्सपा हटाने की मांग कर राजनीतिक पार्टियों को मुश्किल में डाल दिया है.
भाजपा के साथ राज्य में गठबंधन सरकार चला रही पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने कहा है कि राज्य में सुरक्षा हालात बेहतर हुए हैं. अफ़्सपा जैसे क़ानून हटाए जाने चाहिए ताक़ि ज़मीन पर भी यह बदलाव दिखे.

'कश्मीरियों की आवाज़ सुनें'

पीडीपी के प्रवक्ता डॉक्टर महबूब बेग़ ने कहा, "ये तथ्य स्वीकार किया जाना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर के लोग ही इस राज्य के हितों के सबसे बड़े रक्षक हैं. लोकतांत्रिक तरीक़े से उठाई गईं उनकी जायज़ मांगों को सुना जाना चाहिए ताक़ि विश्वास की कमी पूरी हो और वे ख़ुद को अलग ना मानें."

भारतीय सेना
भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर के कुछ इलाक़ों में 1990 में अफ़्सपा लगाया गया था.
उन्होंने कहा कि प्रांत के लोकतांत्रिक संस्थानों के विकास के लिए यह ज़रूरी हैं कि उनमें 'संरक्षणात्मक हिरासत' की भावना ना हो.
बेग ने कहा कि लोगों को सुरक्षा के मुद्दे पर राहत देने के लिए अस्फ़पा हटाया जाना अहम है.
हालांकि भाजपा का कहना है कि वह राष्ट्रीय हित के मामलों में किसी को समझौता नहीं करने देगी.

नेशनल कॉन्फ़्रेंस भी हटाने के पक्ष में

जम्मू-कश्मीर में विपक्षी दल नेशनल कांफ़्रेंस का कहना है कि प्रांत के शांत हिस्सों से अफ़्सपा हटाए जाने का यही सही वक़्त है.
पार्टी नेता नासिर असलम वानी ने कहा, "जम्मू-कश्मीर के अधिकतर इलाक़ों में हालात सामान्य हो गए हैं. कई इलाक़े ऐसे हैं जहाँ सुरक्षा बलों की कोई भूमिका ही नहीं है. ऐसे इलाक़ों से जल्द से जल्द अफ़्सपा हटना चाहिए."

सैयद अली शाह गीलानी
गिलानी कहते हैं कि अफ़्सपा कश्मीर पर भारत के क़ब्ज़े का नतीजा है.
उन्होंने कहा कि अपनी सरकार के दौरान उनकी पार्टी लगातार इसकी माँग करती रही थी और सेना के विरोध के कारण ऐसा नहीं हो सका.
कांग्रेस का कहना है कि जम्मू-कश्मीर के लोगों को राहत दी जानी चाहिए लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा की क़ीमत पर नहीं.
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा, "ऐसा क़ानून होना चाहिए जो कश्मीर में सैन्य बलों के संचालन में मदद करे, साथ ही कश्मीर के लोगों को भी राहत मिलनी चाहिए."

'पूरी आज़ादी से हल'


भारतीय सेना
सेना का कहना है कि अफ़्सपा पर फ़ैसला राज्य और केंद्र सरकार को लेना है.
हुर्रियत कांफ़्रेंस ने त्रिपुरा के फ़ैसले का स्वागत करते हुए इसे जम्मू-कश्मीर सरकार के लिए आँख खोलने वाला बताया है.
मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़ ने कहा, "त्रिपुरा का अफ़्सपा हटाना एक साहसी फ़ैसला है. ये जम्मू-कश्मीर सरकार के लिए आँख खोलने वाला है. हालांकि यहाँ सरकार की क़ानून हटाने की कोई इच्छा नहीं है."
अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने कहा, "यह भारतीय क़ब्ज़े का ही एक नतीजा है. पूरी आज़ादी इस सबको ख़त्म कर देगी."
क़ानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि जम्मू-कश्मीर सरकार भी प्रांत में क़ानून को बेअसर कर सकती है अगर वो इस संबंध में अपना गजट नोटिफ़िकेशन वापस ले ले.
जम्मू-कश्मीर सरकार ने छह जुलाई 1990 को नोटिफ़िेकेशन जारी किया था जिसमें प्रांत के कुछ इलाक़ों को हिंसा प्रभावित घोषित किया गया था जिसके बाद वहाँ अफ़्सपा लागू हो गया था. साल 2000 में जारी एक नोटिफ़िकेशन में जम्मू को भी हिंसा प्रभावित घोषित कर दिया गया था.
हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील जफ़र अहमद शाह कहते हैं कि यदि राज्य सरकार की मंत्री परिषद राज्यपाल के पास इस नोटिफ़िकेशन को हटाने का प्रस्ताव भेजती है तो राज्यपाल को उसे मानना होगा.

अलगाववादी नेता उमर फ़ारूख
अलगाववादी नेता उमर फ़ारूक़ का कहना है कि सरकार नहीं चाहती की अफ़्सपा हटे.

'राज्य सरकार चाहे तो हटा ले'

राज्य के महाधिवक्ता रेयाज़ जान कहते हैं कि नोटिफ़िकेशन वापस लेने का अधिकार उसी के पास होता है जो उसे जारी करता है. अगर सरकार ने नोटिफ़िकेशन जारी किया है तो वो उसे वापस भी ले सकती है.
हालांकि सेना की पंद्रहवी कोर के कमांडिंग ऑफ़िसर लेफ़्टिनेंट जनरल सुब्रत साहा कहते हैं, "जहाँ तक कश्मीर का सवाल है, राज्य और केंद्र सरकार अफ़्सपा के मुद्दे पर विचार कर रही हैं. इसे वापस लेने का फ़ैसला भी वे ही ले सकती हैं."

आत्मा की खोज: राहुल गांधी में ये बदलाव कैसे?

आत्मा की खोज: राहुल गांधी में ये बदलाव कैसे?

31 मई 2015

राहुल गांधी

अगर आप को कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मिलने का मौक़ा मिले तो उनसे आप पहला सवाल क्या करेंगे? यही सवाल मैंने अपने कुछ युवा साथियों से फ़ोन करके पूछा.
एक ने कहा वो उनसे पूछेंगे कि आप 56 दिनों तक कहां ग़ायब थे और उस दौरान आपने क्या खाया कि अब आप आक्रमणकारी बन गए हैं?
दूसरे ने कहा कि उनका सवाल होगा, "आप के अचानक आक्रामक होने का राज़ क्या है?".
तीसरे ने कहा कि उनका प्रश्न होगा, "आप अब अचानक इस क़दर मोदी सरकार और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर क्यों बरस रहे हैं?"
तीनों उत्तर में एक बात सामान्य थी और वो थी राहुल गांधी का आक्रामक रुख़, ख़ास तौर से मोदी और आरएसएस के ख़िलाफ़.

नया चेहरा


ये बात सही है कि जब से वो विदेश में 'विराम' या 'चिंतन' करके लौटे हैं हम राहुल गांधी का एक नया चेहरा देख रहे हैं.
उनकी वापसी के बाद दिल्ली में किसानों की रैली में उनका नया अवतार पहली बार नज़र आया. उसके बाद लोकसभा में भी उनका आक्रामक रुख़ देखने को मिला.
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने राहुल गांधी के इस नए अवतार को अद्भुत परिवर्तन क़रार दिया. उमर का कहना था कि वो उनके इस परिवर्तन से सीखने की कोशिश करेंगे.
कांग्रेस के राष्ट्रीय छात्र संगठन एनएसयूआई के कार्यक्रम 'दृष्टिकोण 2015' में एक बार फिर उनका नया आक्रामक रुख दिखाई दिया.
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार देश को आरएसएस की एक शाखा में बदल रही है.
द हिन्दू अख़बार के अनुसार राहुल गांधी काफी आक्रामक मूड में थे. राहुल गांधी ने अपने भाषण में कहा कि 'आरएसएस अपनी विचारधारा देश पर थोप रहा है. आरएसएस अनुशासन के लिए जाना जाता है लेकिन ये ढोंग है. अनुशासन की आड़ में ये संस्था वाद-विवाद और संवाद को कुचलती है.'
राहुल ने मोदी सरकार पर इल्ज़ाम लगाया कि उनके राज में मुद्दों पर आम चर्चा नहीं होती, व्यक्तित्व को दबाया जा रहा है.

भूमिका


राहुल गांधी
राहुल गांधी का मोदी सरकार और आरएएस के ख़िलाफ़ ये आक्रमण क्यों?
एक ऐसा नेता जो यूपीए सरकार के दौरान खामोश रहा, जिसका वजूद सोशल मीडिया पर नहीं है और जिसने पिछले साल एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में अपने ख़राब प्रदर्शन से अपने प्रशंसकों को मायूस किया, अब इतना आक्रामक रुख़ क्यों अपनाए हुए है?
आरएसएस विचारक और बीजेपी के महासचिव राम माधव के अनुसार राहुल गांधी की चार पीढ़ियों के विरोध के बावजूद आरएसएस आगे बढ़ रहा है.
उन्होंने ट्वीट करके कहा, "परदादा ने कोशिश की. दादी ने कोशिश की. पिता ने भी. चार पीढ़ियों की नफरत के बावजूद आरएएस फला फूला. मगर कांग्रेस?"
बीजेपी के प्रवक्ता नलिन कोहली के अनुसार राहुल गांधी का मोदी सरकार पर हमला सियासत में योग्य बने रहने की एक कोशिश है.
हक़ीक़त ये है कि राहुल गांधी की ये सियासत में एक तरह से दूसरी पारी है. पहली पारी में वो ज़बरदस्त लुढ़के.
पिछले साल उनकी निगरानी में पार्टी की चुनाव में सबसे बड़ी हार हुई. उनकी पार्टी और खुद उनका सियासी वजूद खतरे में पड़ गया. उनका 56 दिनों का 'वनवास' उनके लिए फायदेमंद साबित हो रहा है.
शायद उन्होंने चिंतन किया होगा कि अब उनका क्या होगा? अब कांग्रेस का क्या होगा? उनकी देश में भूमिका क्या होगी?

कामयाब रुख


राहुल गांधी
चिंतन कहें या आत्मा की खोज, उनकी सोच अब रंग ला रही है. अप्रैल में किसान रैली में नया रुख़ कामयाब रहा. अच्छी प्रतिक्रियाएं आईं.
राहुल गांधी की दूसरी पारी अब तक सफल रही है जिसका एक कारण खुद मोदी सरकार है.
बीजेपी को दिल्ली चुनाव में एक ज़बरदस्त झटका लगा जिससे नरेंद्र मोदी की अपराजेयता वाली छवि को झटका लगा.
दूसरी तरफ मोदी सरकार ने अपने आलोचकों को सरकार की आलोचना के मौके दिए.
उनके ख़िलाफ़ 'विरोधी' आवाज़ों को कुचलने की कोशिश का इल्ज़ाम हो या फिर अर्थव्यवस्था में कोई ख़ास वृद्धि न होने का आरोप हो या फिर अपने चुनावी वादों को एक साल में पूरा न करने के इल्ज़ाम.
मोदी सरकार को घेरने के लिए विपक्ष के पास अब काफ़ी मौके और मुद्दे हैं. राहुल गांधी इसका फायदा उठा रहे हैं.

मोदी जी ज़मीन हड़पने की जल्दी में भूमि अधिग्रहण पर तीसरी बार अध्यादेश; "कांग्रेस पार्टी सूट-बूट की सरकार के ख़िलाफ़ किसानों और मज़दूरों की लड़ाई लड़ती रहेगी.": राहुल

"मोदी जी ज़मीन हड़पने की जल्दी में"; "भूमि अधिग्रहण पर तीसरी बार अध्यादेश"; "कांग्रेस पार्टी सूट-बूट की सरकार के ख़िलाफ़ किसानों और मज़दूरों की लड़ाई लड़ती रहेगी.": राहुल

मोदी जी ज़मीन हड़पने की जल्दी में: राहुल

31 मई 2015


राहुल गांधी
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भूमि अधिग्रहण पर तीसरी बार अध्यादेश लाने की कोशिश पर केंद्र सरकार पर हमला बोला है और कहा है कि सरकार किसी भी कीमत पर गरीब किसानों की ज़मीन हड़पने को उतावली है.
राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा,"मोदी जी ग़रीब किसानों की ज़मीन हड़पने में ग़ज़ब की जल्दी में हैं. किसान विरोधी ज़मीन अध्यादेश को आगे बढ़ाने की तीसरी कोशिश."
राहुल ने आगे लिखा, "कांग्रेस पार्टी सूट-बूट की सरकार के ख़िलाफ़ किसानों और मज़दूरों की लड़ाई लड़ती रहेगी."
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में शनिवार सुबह हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में भूमि अधिग्रहण पर एक बार फिर अध्यादेश लाने का फ़ैसला लिया गया है.
भूमि अधिग्रहण पर मौजूदा अध्यादेश की अवधि चार जून को समाप्त हो रही है.

विरोध


किसानों का विरोध
विपक्षी दलों के अलावा मोदी सरकार में शामिल शिवसेना भी भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक का विरोध कर रही है.
बजट सत्र में भारी विरोध के कारण इस विधेयक को संसद की संयुक्त समिति के पास भेजा गया था.
शुक्रवार को इस समिति की पहली बैठक हुई थी.
इससे पहले कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने इसे देश के किसानों के साथ क्रूर मज़ाक़ बताया था.

Parrikar: लड़ाकू दस्ते में नहीं होगी महिलाओं की बहाली

Parrikar: लड़ाकू दस्ते में नहीं होगी महिलाओं की बहाली

31 May 2015



पुणे। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने सुरक्षा कारणों से सेना के लड़ाकू दस्ते में महिलाओं की बहाली से इंकार करते हुए कहा है कि अन्य संचालन गतिविधियों में उन्हें चरणबद्ध तरीके से शामिल किया जाएगा। शनिवार को खड़कवासला में आयोजित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) की पासिंग आउट परेड के बाद संवाददाताओं से बात करते हुए पर्रिकर ने सेना में महिलाओं की युद्धक भूमिका से साफ इंकार कर दिया। उन्होंने कहा, "कल्पना कीजिए। लड़ाई के दौरान अगर किसी महिला सैनिक को दुश्मनों ने बंदी बना लिया तो क्या होगा?"
सैन्य बलों में अफसरों की कमी के संबंध में उन्होंने कहा कि रिक्त पदों पर भर्ती का काम चल रहा है। पहले जहां 11 हजार अधिकारियों का पद रिक्त था, वहीं अब यह घटकर सात हजार रह गया है। पर्रिकर ने रक्षा अकादमी की क्षमता भी बढ़ाने की बात कही। रक्षा मंत्री के अनुसार, अगले दो सालों में यहां 2,400 छात्रों का नामांकन लिया जाएगा। इस समय इसकी क्षमता 1950 छात्रों की है।

Friday, 29 May 2015

यूपी: मैगी के बाद अब येप्पी नूडल्स की बारी, पांच हजार पैकेट सीज...#NESTLY #MAGGIE #ITC #YEPEE #NOODLES #FOOD #SAFETY #MSG

यूपी: मैगी के बाद अब येप्पी नूडल्स की बारी, पांच हजार पैकेट सीज...


लखनऊ/आगरा, 30 मई 2015

मैगी के बाद अब येप्पी नूडल्स के भी सैंपल फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने लिए हैं. इसे जांच के लिए लखनऊ स्थित लैब भेजा जाएगा. चीफ फूड इंस्पेक्टर रामनरेश यादव ने को वाटर वर्क्‍स चौराहे के पास आईटीसी के डिस्ट्रिब्यूटर के गोदाम से ये सैंपल लिए हैं. एफडीए ने शुक्रवार को येप्पी नूडल्स के पांच हजार पैकेट सीज कर लिए हैं. चीफ फूड इंस्पेक्टर ने बताया कि जांच रिपोर्ट आने के बाद ही इसे रिलीज करने पर फैसला होगा. उन्होंने कहा कि बाजार में मैगी या येप्पी नूडल्स की बिक्री रोकने के लिए ऐसा किया गया है.
उन्होंने बताया कि येप्पी के सैंपल लेने के लिए किसी तरह का निर्देश नहीं था. एफडीआई की जिम्मेदारी है कि हर तरह के खाद्य पदार्थ की जांच करे. चूंकि मैगी में लेड (शीशा) होने के मामले पहले ही सामने आ चुके हैं, इसलिए अब येप्पी के तीन सैंपल लिए गए हैं. उन्होंने कहा कि ठेले पर बिकने वाले नूडल्स और चाऊमीन के भी सैंपल लेकर जांच के लिए भेजे जाएंगे, ताकि लोगों को नुकसानदायक खाद्य पदार्थ से बचाया जा सके.
गौरतलब है कि आगरा से एक सप्ताह पहले मैगी के सैंपल जांच के लिए लखनऊ की लैब में भेजे गए थे, लेकिन उसकी रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है. एफडीए को इसकी रिपोर्ट का इंतजार है, ताकि वह अगली कार्रवाई कर सके. फिलहाल मैगी और येप्पी की बिक्री पर रोक नहीं लगाई गई है.
मैगी में लेड की मात्रा ज्यादा मिलने से पूरे देश में नमूने लेकर इसकी जांच की कार्रवाई की जा रही है. यह लेड नुकसानदायक स्तर पर है. यह खासकर बच्चों की सेहत के लिए खतरनाक है. इसके बाद 1.40 लाख मैगी के पैकेट्स सीज किए गए थे.

Nestly India Foods - MAGGI & Noodles का झूठ: मांस (E635) और बंदूक की गोली में मिले लेड (MSG) से बनती है मैगी! | Nestle urges retailers to step up Maggi promotions as sales slide



EXCLUSIVE: जनधन में 'ठन-ठन' गोपाल, वादा निभाने में फिलहाल फेल हुई मोदी सरकार

EXCLUSIVE: जनधन में 'ठन-ठन' गोपाल, वादा निभाने में फिलहाल फेल हुई मोदी सरकार

नई दिल्ली, 30 मई 2015 
लाल किले की प्राचीर से 15 अगस्त, 2014 को पहली बार तिरंगा फहराने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गरीबों के लिए एनडीए सरकार की सबसे बड़ी जनधन योजना की घोषणा की. 28 अगस्त को दिल्ली के विज्ञान भवन में योजना के विधिवत उद्घाटन के मौके पर अपने 26 मिनट और 13 सेकंड के भाषण में मोदी ने कहा , '15 अगस्त के मेरे भाषण की एक बात पर टीवी चैनल और अखबारों ने बहुत ध्यान नहीं दिया. लेकिन एक सज्जन ने आकर मुझे बताया कि उनके ड्राइवर ने उनसे कहा कि मोदीजी ने जनधन के माध्यम से हम जैसे गरीबों को एक लाख रुपये का बीमा दे दिया. अब मेरी जिंदगी सुरक्षित है.'
इस योजना की कामयाबी के लिए प्रधानमंत्री ने 7 लाख बैंक अधिकारियों को पत्र लिखे, एक दिन में 77,000 कैंप लगवाए और एक ही दिन में डेढ़ करोड़ लोगों के खाते भी खुलवा दिए. भाषण के अंत में मोदी ने कहा, 'अब गरीब आदमी ब्याज के विषचक्र से दूर होगा, आत्महत्या से बचेगा और सुख का जीवन जिएगा.'
सरकार का एक साल पूरा होने पर प्रधानमंत्री ने 25 मई को मथुरा रैली में भी जनधन योजना को गरीबी हटाने की दिशा में बड़ी कामयाबी बताया. जो आंकड़े सरकार सामने लाई उनमें देश में 15 करोड़ से अधिक जनधन खाते खुलना और इन खातों में 17,000 करोड़ रुपये जमा होना सबसे बड़ी उपलब्धि बताई गईं. लेकिन आखिर कितने लोगों को जनधन योजना में कर्ज मिला, कितने लोगों को दुर्घटना बीमा और जीवन बीमा का लाभ मिला, जिसकी आस में करोड़ों लोगों ने बैंकों का रुख किया था. सरकार इन आंकड़ों पर चुप है, जबकि इन्हीं आंकड़ों से पता चलना है कि आखिर जनधन में खाता खुलवाने वाले लोगों को कुछ फायदा भी हुआ या नहीं, या करोड़ों की भीड़ ऐसे ही खाता खुलवाने टूट पड़ी थी.
वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक 2014 के अंत तक महज 40,000 खाता धारक ही ओवरड्राफ्ट के लिए आवेदन कर सके और इनमें से 8,000 लोगों को ओवरड्राफ्ट सुविधा दी जाएगी. इसी तरह सिर्फ 108 लोगों को दुर्घटना बीमा और 152 लोगों को जीवन बीमा का लाभ दिया गया. इस तरह खाताधारकों के अनुपात में लाभार्थियों की संख्या देखें तो वह शून्य फीसदी के करीब बैठती है. उधर चालू वित्त वर्ष पर नजर डालें तो हालात और खराब हैं. इस साल जनधन की बीमा व्यवस्था देख रही न्यू इंडिया एश्यारेंस कंपनी के मुंबई स्थित मुख्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इंडिया टुडे को बताया, 'चालू वित्त वर्ष में बीमा के लिए 14 आवेदन आए. इनमें से तीन आवेदन पिछले वित्त वर्ष के होने के कारण और अन्य तीन आवेदनों को रुपया कार्ड का 45 दिन तक इस्तेमाल न होने के कारण वापस कर दिया गया. शेष 8 बीमा क्लेम पर विचार किया जा रहा है.'
ये 14 दावे ऐसे देश में आए हैं जहां हर साल 1 लाख से ज्यादा लोग तो सिर्फ सड़क दुर्घटनाओं में मर जाते हैं. रुपया कार्ड एक किस्म का डेबिट कार्ड है जो जनधन योजना में खाता खुलवाने वालों को दिया जाता है. आखिर करोड़ों खाताधारक वाली योजना में इतने कम लाभार्थी क्यों हैं? इस सवाल पर बचाव करते हुए वित्त मंत्रालय के संयुक्त सचिव और जनधन योजना के मिशन डायरेक्टर राजेश अग्रवाल कहते हैं, '300 से 400 लोगों को पिछले वित्त वर्ष में बीमा का लाभ मिल सका. योजना की घोषणा अगस्त के अंत में हुई. खाता धारकों को पिन नंबर देने में समय लगा. बीमा का लाभ देने की प्रक्रिया व्यावहारिक रूप से दिसंबर में चालू हुई. इसीलिए ये आंकड़े कम दिख रहे हैं.'

जब उनसे पूछा गया कि 45 दिन तक कार्ड स्वैप न होने के कारण बीमा आवेदन खारिज हो रहे हैं, जबकि लोग तो यह मान रहे थे कि जनधन का खाता खुला और उनकी किस्मत बदल जाएगी, लेकिन लोग ओवरड्राफ्ट के लिए तरस रहे हैं. अग्रवाल स्वीकारते हैं, 'योजना के शुरुआती स्वरूप में निषेधात्मक चीजें ज्यादा थीं, अब इन्हें बदला जा रहा है. इसीलिए प्रधानमंत्री ने जो दो नई बीमा योजनाएं शुरू की हैं, उनमें पहले से कहीं ज्यादा लोग पात्र होंगे और लाभ पाना भी आसान है.' हालांकि यहां यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि जब जनधन में खाते खुलवाने की मियाद 15 अगस्त 2014 से 26 जनवरी 2015 तक ही थी, तो बिना मियाद बढ़ाए सरकार नई बीमा योजनाओं को जनधन का हिस्सा कैसे मान रही है.
वैसे न के बराबर लोगों को योजना का लाभ मिलने की असल वजह जनधन योजना की वेबसाइट पर प्रकाशित अपात्र लोगों के क्राइटेरिया में छिपी है. इसके तहत किसी भी तरह का सेवारत या सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी, इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने वाला व्यक्ति, टीडीएस अदा करने वाला व्यक्ति जनधन का पात्र नहीं होगा. इसी तरह चाहे एक घर में कितने भी लोगों ने खाते खुलवाए हों, लेकिन 30,000 रु. के जीवन बीमा का लाभ सिर्फ परिवार के मुखिया को मिलेगा, वह भी तब जब वह ऊपर बताई शर्तें पूरी करे. इसके अलावा वह पहले से बैंक की किसी बीमा योजना का लाभार्थी न हो. तो क्या खाता खोलते समय बैंकों को यह बातें पता नहीं थीं? इसके जवाब में उत्तर प्रदेश में पंजाब नेशनल बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी मुस्कुराते हुए कहते हैं, 'अगर कोई आदमी बैंक में खाता खुलवाने आ रहा है और उसके लिए केवाइसी नियम आसान कर दिए गए हों, तो कोई बैंक अधिकारी उसे क्यों मना करेगा? एक ही परिवार के सारे सदस्य अगर अपना जनधन खाता खुलवा रहे हैं तो हम यह थोड़े ही पूछेंगे कि क्या आप खाता बीमा, लोन या दूसरी सरकारी मदद के लालच में खुलवा रहे हैं?' जनधन खाता खुलवाने वाला व्यक्ति बीमा का लाभ पाने का हकदार होगा या नहीं, यह शुरू से ही बैंकों की चिंता का विषय नहीं था. बैंकों को तो बीमा क्लेम बीमा कंपनी को फॉरवर्ड करना था, उसका मंजूर होना या ना होना बीमा कंपनी और पीड़ित का सिरदर्द था.

हां, बैंकों को इस बात की चिंता जरूर थी कि जीरो बैलेंस के खाते उनके लिए बोझ न बन जाएं. इसके लिए बैंकों ने दो सीधे तरीके निकाले. पहला तरीका भारतीय स्टेट बैंक, इंदौर के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, 'बैंकों ने अघोषित नीति बनाई कि ओवरड्राफ्ट नहीं देना है.' और अगर देना भी पड़ जाए तो छह महीने तक बैंक में रहे औसत बैलेंस के बराबर ओवरड्राफ्ट दिया जाएगा. वित्त मंत्रालय के सूत्रों की मानें तो बैंकों को जहां ओवरड्राफ्ट देना भी पड़ा, वहां औसत 2,500 रुपये का ओवर ड्राफ्ट दिया गया है. बैंकों के दूसरे तरीके का जिक्र करते हुए झांसी से पीएनबी के एक अधिकारी बताते हैं, 'हर खाते के संचालन के लिए व्यावहारिक रूप से बैंक को कुछ न कुछ लागत आती है. मान लीजिए, किसी की पासबुक खो गई तो नई पासबुक तो देनी ही होगी. ऐसे में अगर जीरो बैलेंस खाता हुआ तो यह पैसे कहां से कटेंगे. इसलिए बैंक ने लोगों को खाते में पैसा जमा करने के लिए प्रेरित किया.' इसी का असर है कि जन धन के खातों में 17,000 करोड़ रुपये जमा हो गए. यह पैसा फिलहाल बैंकिंग सेक्टर के लिए सौगात बन गया.
इस स्थिति का बचाव करते हुए वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा कहते हैं, 'ओवर ड्राफ्ट इसलिए कम लोगों को मिल रहा है क्योंकि बैंक पहले यह देखेगा कि छह महीने तक खाता सही ढंग से चला या नहीं. ग्राहक की क्रेडिट हिस्ट्री देखने के बाद ही उसे ओवरड्राफ्ट जारी करने का अप्रूवल दिया जाएगा.'
यानी बैंक और वित्त राज्य मंत्री दोनों ही मान रहे हैं कि जनधन में खाता खुलवाना बैंक से कर्ज मिलने की गारंटी नहीं है. कर्ज पाने के लिए आपको बैंक की बुनियादी शर्तों को पूरा करना पड़ेगा. इस पर तंज करते हुए उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष निर्मल खत्री कहते हैं, 'सूट-बूट की सरकार तो उन कंपनियों से भी ज्यादा छलावा कर रही है जो नियम और शर्तें बहुत महीन अक्षरों में नीचे लिख देती हैं. यहां तो करोड़ों खाते प्रधानमंत्री की जुबान के भरोसे खुल गए और बाद में महीन अक्षर में नियम शर्तें लगा दी गईं. अगर लोगों को पहले से यह बातें पता होतीं तो वे खाते खुलवाते ही नहीं.'
तो अब रास्ता क्या है? इस सवाल पर अग्रवाल कहते हैं, 'योजना की शुरुआती निषेधात्मक शर्तों को व्यावहारिक कठिनाइयों के बाद हटाया जा रहा है.' इतनी बड़ी आबादी को जोड़ने वाली योजना में व्यावहारिक दिक्कतों के हिसाब से बदलाव जरूरी हैं. इसीलिए अब पूरी योजना को जनधन योजना तक सीमित न रखकर इसे जन सुरक्षा योजना कहा जा रहा है. इसमें अटल पेंशन योजना, जन सुरक्षा योजना की दोनों बीमा योजनाओं को भी वृहत्तर योजना का हिस्सा मान लिया गया है. सिन्हा समझाते हैं, 'मोबाइल नंबर, आधार कार्ड और बैंक खाते ये तीन चीजें लोगों को वित्तीय व्यवस्था से जोड़ने के नींव के पत्थर हैं. ये तीनों चीजें मिलकर लोगों को वित्तीय व्यवस्था से जोड़ने का ढांचा खड़ा करेंगी और लोगों को गरीबी के दुष्चक्र से निकालेंगी.'
यानी जब तक जन-धन योजना की बारीकियां सामने आईं और लोग उसके नफे-नुकसान का जायजा लेने निकले, सरकार ने नई योजनाएं जोड़कर इस आकलन को और जटिल बना दिया. फिलहान नई बीमा योजनाएं शुरू हुई हैं और इनकी बीमा पॉलिसी सामने आने के बाद ही पता चलेगा कि असल में इनमें है क्या. फिलहाल लोग उसी उत्साह से जन सुरक्षा की नई योजनाओं से जुड़ने में लग गए हैं, जिस तरह छह-सात महीने पहले वे जनधन से जुड़े थे.
ऐसे में सरकार को यह तो सुनिश्चित करना ही होगा कि वह कौन-सी योजना होगी जो लोगों को वाकई वे वादे मुहैया करा सके जो प्रधानमंत्री के रौबीले भाषणों में प्रकट होते हैं. वैसे भी एक योजना को दूसरी योजना में जोड़ते चले जाने और बार-बार संशोधन करने से लोगों में भ्रम फैल रहा है. आखिर 2011 में मनमोहन सिंह सरकार की तरफ से भी ऐसी ही योजना शुरू हुई थी. तब 2000 से अधिक आबादी वाले गांवों को बैंक से जोड़ा जाना था, अब हर घर को जोड़ा जाना है. जनधन शुरू करते समय ही सरकार ने अपने दस्तावेजों में माना था कि यह योजना पुरानी योजना का विस्तार है. ऐसे में जनधन का अंजाम भी पुरानी योजना जैसा न हो और मोदी जी का भाषण सुनकर अपनी जिंदगी सुरक्षित मानने वाले ड्राइवर का भरोसा न टूटे, उसके लिए सरकार को खड़ी चढ़ाई चढ़नी होगी.


Kedarnath Flood 2013 #RTI: केदारनाथ राहत कार्यों में सामने आए करोड़ों के घोटाले!.केदारनाथ में लोग मरते रहे, और अधिकारी मौज करते रहे!.होटलों में रहने का बिल एक दिन का 7-7 हजार रुप; एक दिन में 900 रुपए का चिकन- मटन खा गए...#Cops #corruption #Fake #Bills #kedarnath #Natural #Disaster #Police

Kedarnath Flood 2013 #RTI: केदारनाथ राहत कार्यों में सामने आए करोड़ों के घोटाले!.केदारनाथ में लोग मरते रहे, और अधिकारी मौज करते रहे!.होटलों में रहने का बिल एक दिन का 7-7 हजार रुप;  एक दिन में 900 रुपए का  चिकन- मटन खा गए

2013 उत्तराखंड त्रासदीः चिकन, मटन और गुलाबजामुन उड़ा रहे थे राहत कार्य में जुटे अधिकारी


May 30, 2015




नई दिल्ली। केदारनाथ त्रासदी के बाद चलाए गए राहत कार्यों में बड़े घोटाले का खुलासा एक आरटीआई से हुआ है। ये सच सामने आया है कि हादसे के बाद यहां ड्यूटी पर लगाए गए एक-एक अधिकारी एक दिन में 900 रुपए का खाना खा गए, दिखाए गए खर्च के मुताबिक कोई दिन ऐसा नहीं था जब अधिकारियों ने चिकन- मटन खाने का बिल ना लगाया हो। होटलों में रहने का बिल एक दिन का 7-7 हजार रुपए का है।
केदारनाथ में जून 2013 में आई आपदा अफसरों के लिए कमाई का जरिया बन गई। लोग मरते रहे, मदद के लिए चीखते रहे लेकिन अफसर मौज करते रहे। लोग एक टुकड़ा रोटी और बूंद- बूंद पानी के लिए तरस रहे थे। तमाम लोग भूखे मर गए, किसी के सिर पर छत नहीं थी तो कोई ठंड से मर गया। लेकिन मदद के लिए भेजे गए अफसर इस त्रासदी को पिकनिक समझ बैठे थे।
केदारनाथ में लोग मरते रहे, और अधिकारी मौज करते रहे!
अधिकारियों को लग रहा था कि मौज मस्ती का वक्त आ गया है और हुआ भी यही। जिस आपदा के लिए अफसरों को पैसा दिया गया वो अफसर इस पैसे से नॉनवेज खा रहे थे। होटलों में आराम फरमा रहे थे। हैरानी की बात ये है कि जिस पहाड़ पर स्कूटर से चढ़ना तो दूर की बात सोचना भी नामुमकिन है उस पहाड़ पर अधिकारी स्कूटर से लोगों को राहत पहुंचा रहे थे। जी हां यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है आरटीआई के जरिए।
आरटीआई से ये भी खुलासा हुआ है कि राहत कार्यों में इस्तेमाल एक हेलीकॉप्टर का बिल 90 लाख का है और सबसे ज्यादा अचंभे वाली बात है कि डीजल के जो बिल दिए गए उनमें दर्ज वाहनों के नंबर, स्कूटर के नंबर निकले जबकि स्कूटरों में डीजल भरवाया नहीं जा सकता और पहाड़ों पर उससे राहत सामग्री पहुंचाई नहीं जा सकती। राज्य सूचना आयोग ने इस मामले में करोड़ों के घपले की आशंका जाहिर की है।
 

2013 उत्तराखंड त्रासदीः चिकन, मटन और गुलाबजामुन उड़ा रहे थे राहत कार्य में जुटे अधिकारी




उत्तराखंड में साल 2013 में आई विनाशकारी बाढ़ में फंसे लाखों लोगों को जहां पीने के लिए पानी तक नहीं मिल रहा था वहीं बाढ़ राहत कार्यों की निगरानी में लगे राज्य सरकार के अधिकारियों ने रोजाना हजारों रुपये का चिकन, मटन, दूध, पनीर और गुलाब जामुन उड़ाए.
 
ऐसे हुआ 'गड़बड़ झाला...' बाढ़ पीड़ित दाने दाने को मोहताज थे और ये अधिकारी होटलों में बैठकर मटन चाप, चिकन, दूध, पनीर और गुलाम जामुन खाते हुए राहत और बचाव कार्यों की निगरानी में व्यस्त थे. आधा लीटर दूध के लिए 194 रुपये और दोपहिया वाहनों के लिए डीजल की आपूर्ति, होटल में रहने के लिए रोज 7000 रुपये का क्लेम करने, एक ही व्यक्ति को दो बार राहत का भुगतान, लगातार तीन दिन तक एक ही दुकान से 1800 रेनकोट की खरीद और ईंधन खरीद के लिए एक हेलिकॉप्टर कंपनी को 98 लाख रुपये का भुगतान करने जैसी बड़ी बड़ी वित्तीय गड़बड़ियों का खुलासा एक आरटीआई आवेदन के जरिए हुआ है.
 
सीबीआई जांच की उठी मांग उत्तराखंड के भीषण प्राकृतिक आपदा की चपेट में रहने के दौरान हुई इन कथित अनियमितताओं का संज्ञान लेते हुए राज्य के सूचना आयुक्त अनिल शर्मा ने सीबीआई जांच की सिफारिश की है. शिकायतकर्ता और नेशनल एक्शन फोरम फॉर सोशल जस्टिस के सदस्य भूपेंद्र कुमार की शिकायत पर सुनवाई करते हुए जारी 12 पन्नों के आदेश में शर्मा ने आरटीआई आवेदनों के जवाब में विभिन्न जिलों द्वारा उपलब्ध कराए गए बिलों का संज्ञान लिया है. इन आरटीआई आवेदनों में प्राकृतिक आपदा के दौरान राहत कार्यो में खर्च किए गए धन का ब्यौरा मांगा गया था. भीषण बाढ़ में तीन हजार लोग मारे गए थे और बहुत से अभी भी लापता हैं.
अधिकारियों द्वारा उपलब्ध करवाए गए रिकॉर्ड के मुताबिक कुछ राहत कार्य 28 दिंसबर, 2013 को शुरू होकर 16 नवंबर, 2013 को समाप्त हो गए. पिथौरागढ़ में कुछ राहत कार्य 22 जनवरी, 2013 को शुरू हुए थे यानी बाढ़ आने से छह माह पहले ही. बाढ़ 16 जून, 2013 को आयी थी. शर्मा ने अपने आदेश में कहा, ‘अपीलकर्ता द्वारा पेश रिकॉर्ड्स से आयोग प्रथम दृष्टया मानता है कि शिकायतकर्ता की अपील और अन्य दस्तावेज उत्तराखंड के मुख्य सचिव के पास इस निर्देश के साथ भेजे जाएं कि ये बातें मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाई जाएं जिससे वह इन आरोपों पर सीबीआई जांच शुरू करने पर निर्णय ले सकें.’
 
एक दिन के खाने का खर्च 900 रुपये
अपनी आरटीआई याचिकाओं पर जवाब में अधिकारियों से मिले 200 से अधिक पृष्ठों के रिकॉर्ड का हवाला देते हुए कुमार ने एसआईसी में सुनवाई के दौरान दावा किया कि एक ओर जहां लोग खुले आसमान के नीचे भूख से बिलबिला रहे थे तो वहीं बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित रूद्रप्रयाग जिले में अधिकारियों ने नाश्ते के लिए 250 रुपये, लंच के लिए 300 रुपये और डिनर के लिए 350 रुपये के क्लेम पेश किए. यानी रोजाना 900 रुपये केवल खाने पर.
 
'बेहिसाब' खर्च पर उठे सवाल
इन अधिकारियों ने राहत कार्यों की निगरानी के लिए होटल प्रवास के दौरान प्रति रात्रि 6750 रुपये के दावे भी पेश किए. कुमार ने इस ‘बेहिसाब खर्च’ पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि प्रति अधिकारी प्रति दिन करीब 7000 रुपए का खर्च आया. उन्होंने सुनवाई के दौरान रिकॉर्ड का हवाला देते हुए कहा कि उन वाहनों के लिए 30 लीटर और 15 लीटर डीजल के बिल दिए गए हैं जिन पर स्कूटर, मोटरसाइकिल और तिपहिए वाहनों के नंबर थे जबकि ये वाहन पेट्रोल से चलते हैं और इनके ईंधन के टैंक इतने बड़े नहीं होते जितनी मात्रा बिलों में दर्शाई गई.
 
बाढ़ आने से पहले ही बुक कराए गए होटल!
कुमार ने यह दर्शाने के लिए भी रिकॉर्ड पेश किए कि चार दिनों के लिए 98 लाख रुपये का ईंधन बिल हेलीकॉप्टर कंपनी के लिए मंजूर किया गया. उन्होंने कहा, ‘ऐसे भी उदाहरण हैं जब अधिकारियों के होटल में ठहरने की अवधि 16 जून, 2013 को बाढ़ आने से पहले के रूप में दर्शाई गई है. आधा लीटर दूध की कीमत 194 रुपये दिखाई गई है जबकि बकरे का गोश्त, मुर्गी का मांस, अंडे, गुलाब जामुन जैसी चीजें भी बाजार दाम से बहुत ऊंची दरों पर खरीदी दिखाई गई हैं.’




उत्‍तराखंड आपदा राहत के नाम पर लूट, सीएम ने दिए जांच के आदेश

 
उत्‍तराखंड आपदा राहत के नाम पर लूट, सीएम ने दिए जांच के आदेश
देहरादून, [सुमन सेमवाल]। जून 2013 में जब उत्तराखंड भीषण आपदा से जूझ रहा था, केदारघाटी में लाशों के ढेर लगे थे, जान बचाने का संघर्ष चल रहा था और लोग भूख-प्यास से बिलबिला रहे थे। उस समय राहत एवं बचाव में लगे अधिकारी महंगे होटलों में रात गुजार भोजन में लजीज व्यंजन (चिकन-मटन-अंडे, मटर पनीर व गुलाब जामुन) का स्वाद ले रहे थे।
सूचना के अधिकारी की एक अपील की सुनवाई में यह सब सामने आया। सूचना आयोग में प्रस्तुत आपदा के दौरान के राहत-बचाव कार्यों के बिल इसकी गवाही दे रहे हैं। यह देख सूचना आयोग अवाक रह गया।
मामले के सामने आ जाने के बाद मुख्यमंत्री हरीश रावत ने जांच के आदेश दे दिए हैं। राज्य सूचना आयुक्त अनिल कुमार शर्मा ने आपदा के कार्यों में सैकड़ों करोड़ रुपये के घपले की आशंका जताते हुए सभी कार्यों की सीबीआइ या किसी निष्पक्ष जांच एजेंसी से जांच कराने की गुजारिश मुख्यमंत्री से की थी।

नेशनल एक्शन फोरम फॉर सोशल जस्टिस के जिलाध्यक्ष भूपेंद्र कुमार ने 27 दिसंबर, 2013 को रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ व बागेश्वर के जिलाधिकारियों से जून 2013 में आई आपदा के दौरान राहत-बचाव के सभी कार्यों में व्यय धनराशि और इसमें जुटे अधिकारियों के खर्च की जानकारी मांगी थी।

तय समयावधि में समुचित जानकारी न मिलने पर भूपेंद्र कुमार ने सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया। आयोग की सख्ती के बाद जब जनपदों ने बिल देने शुरू किए तो मामले की सुनवाई कर रहे सूचना आयुक्त अनिल कुमार शर्मा अवाक रह गए।

केदारघाटी की त्रासदी वाले रुद्रप्रयाग जनपद के ही एक मामले के बिल पर गौर करें तो आपदा की जिस घड़ी में लोगों के सिर पर छत नहीं थी और लोगों को पर्याप्त भोजन भी मयस्सर नहीं हो पा रहा था, उस दौरान राहत-बचाव कार्य में लगे कार्मिकों के ठहरने व खाने की व्यवस्था पर 25 लाख 19 हजार रुपये का खर्च आया।
एक अधिकारी के होटल में ठहरने का जो किराया दर्शाया गया, वह 6750 रुपये था। भोजन मिलाकर यह राशि प्रतिदिन 7650 रुपये बैठ रही थी। चौंकाने वाली बात यह भी कि उस दौरान अधिकारियों ने आधा लीटर दूध की 194 रुपये कीमत अदा की।

अपेक्षाकृत कम प्रभावित पिथौरागढ़, बागेश्वर जनपद में कुमाऊं मंडल विकास निगम ने 15 दिन आपदा प्रभावितों के सरकारी रेस्ट हाउस में ठहरने का चार लाख रुपये का बिल भेजा है।
कई कार्य ऐसे हैं, जिन्हें आपदा से पहले ही पूरा दिखाया गया। जबकि, कुछ बिल आपदा वाले दिन के ही हैं। आपदा के दौरान अधिकारियों ने मोटरसाइकिल व स्कूटर में भी डीजल भर डाला। इस तरह की बिलों में तमाम अनियमितता मिलीं, जिस पर आयोग को संज्ञान लेकर सूचना आयोग को सीबीआइ जांच कराने की गुजारिश करनी पड़ी।

उत्तराखंड के राज्य सूचना आयुक्त अनिल कुमार शर्मा ने बताया कि 'आपदा राहत में लगे कार्मिकों के खाने-पीने व ठहरने के बिल मानवता को शर्मसार करने वाले हैं। ये कार्मिक आपदा पीड़ितों की मदद और दायित्व निर्वहन के लिए गए थे या पिकनिक मनाने।'

इन पर ठिठका आयोग :
- पिथौरागढ़ जनपद में अधिशासी अभियंता, जल संस्थान डीडीहाट ने एक कार्य को 28 दिसंबर 2013 को शुरू होना दिखाया, जबकि बिल में कार्य पूर्ण होने की तिथि 43 दिन पहले 16 नवंबर 2013 दिखाई गई।

- एक अन्य बिल में राहत कार्य आपदा से छह माह पहले 22 जनवरी 2013 को ही शुरू करना दर्शाया गया।
- नगर पंचायत डीडीहाट के 30 लाख 45 हजार रुपये के कार्यों के बिलों में कोई तिथि अंकित नहीं मिली।
- तहसीलदार कपकोट द्वारा 12 लाख रुपये आपदा पीड़ितों को बांटना दिखाया है, जबकि रसीद एकमात्र पीड़िता को पांच हजार रुपये भुगतान की लगाई गई।
- तहसीलदार गरुड़ ने आपदा राहत के एक लाख 83 हजार 962 रुपये बांटे और यहां भी रेकार्ड के तौर पर 1188, 816 रुपये की ही रसीद मिली।


- 16 जून 2013 को आई आपदा की भयावहता का पता प्रशासन को दो-तीन दिन बाद ही चल पाया था, लेकिन उत्तरकाशी में खाने-पीने आदि की सामग्री के लाखों रुपये के बिल 16 तारीख के ही लगा दिए गए।
- आपदा के समय मोटरसाइकिल (यूए072935), (यूए07ए/0881), (यूके05ए-0840), बजाज चेतक (यूए12/0310) में क्रमश: 30, 25, 15, 30 लीटर डीजल डालना दिखाया गया।
- थ्री व्हीलर (यूके08टीए/0844) व ए/एफ नंबर के एक वाहन में क्रमश: 30-30 लीटर डीजल डालने के बिल भी अधिकारियों ने संलग्न किए। बता दें कि पर्वतीय जिलों में थ्री व्हीलर चलते ही नहीं हैं।
- उपजिलाधिकारी के नाम से बनाए गए बिलों पर बिना नंबर के वाहनों में 21 जून से 09 जुलाई के मध्य क्रमश: 51795, 49329, 21733 रुपये के डीजल खर्च होना दिखाया गया।
- तहसील कर्णप्रयाग में राहत कार्य के तहत आपदा से करीब डेढ़ माह पहले के ईंधन बिल लगाए गए।
- चमोली के जिला युवा कल्याण एवं प्रांतीय रक्षक दल अधिकारी ने आपदा से एक माह पहले के होटल बिल लगा दिए।
- डेक्कन हेलीकॉप्टर सेवा ने 24 जून की तारीख का जो बिल जमा किया है, उसमें ईंधन का चार दिन का खर्च 98 लाख 8090 रुपये दर्शाया गया है।


 

How to Connect Two Computers (PC/Laptop) Via Lan Cable?...Go To Read All In Full Step

How to Connect Two Computers Via Lan Cable

In this tutorial we are going to show you how to transfer data from one computer to another. We need to PC/Laptop and a lan cable to transfer data.

PC 1

Step1: Go to “Open Networking and Sharing Center“.
Step2: Click on “Local Area Connection“.
Step3: Now click on “Properties“.
Step4: Double click on “Internet Protocol Version 4(TCP/IPv6)“.
Step5: Click on “Use the following IP address:” and enter the IP address: as 192.168.1.1 and just give a click on Subnet mask. Once done click “Ok” and close it.

PC 2

Step1: Go to “Open Networking and Sharing Center“.
Step2: Click on “Local Area Connection“.
Step3: Now click on “Properties“.
Step4: Double click on “Internet Protocol Version 4(TCP/IPv6)“.
Step5: Click on “Use the following IP address:” and enter the IP address: as 192.168.1.2 and just give a click on Subnet mask. Once done click “Ok” and close it.


Now  two computers are connected. To share files we need to give access to our drives, so follow the commands given below to give access to your drivers.

Step1: Click on “Computer“.
Step2: Right click on driver and then Properties.
Step3: Click on “Sharing” tab and then Advance Sharing and then check out Share the folder
Step4: Click on Permissions to give control on the other PC and once done click “Ok” and close it
Step5: Click Security and then go onto Advance Settings > Change Permissions > Add > Advance >  
Find Now at bottom click Everyone

If you have any problems then you can watch the video given below or comment below this post

Note: If you share your data via WiFi the data transfer will be 1-2MB and if you share the data via Lan cable the data transfer will be 10-12MB

PM मोदी की नीतियों की आलोचना करने पर स्टूडेंट फोरम पर IIT Madras ने लगाया बैन.विचारों की आजादी एक बार फिर सवालों के घेरे में Modi

PM मोदी की नीतियों की आलोचना करने पर स्टूडेंट फोरम पर IIT Madras ने लगाया बैन.विचारों की आजादी एक बार फिर सवालों के घेरे में Modi

  | नई दिल्ली, 29 मई 2015

 
देशभर में पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ कितना ऊपर है, इसको लेकर तमाम तरह के दावे किए जाते रहे हैं. पर IIT मद्रास में मोदी से जुड़ा जो मामला सामने आया है, वह चौंकाने वाला है.

IIT मद्रास ने पीएम मोदी के खिलाफ कथित तौर पर नफरत फैलाने वाले एक फोरम को प्रतिबंधि‍त कर दिया है. छात्रों के इस फोरम के खिलाफ शिकायत मिलने के बाद संस्थान ने इसे बैन करने का फैसला किया.
फोरम के खि‍लाफ शिकायत में कहा गया है कि छात्रों का यह समूह हिंदी के इस्तेमाल, गोमांस और केंद्र सरकार की कुछ अन्य नीतियों पर दूसरे छात्रों को बरगला रहा था.
IIT कैंपस में अंबेडकर-पेरियार स्टूडेंट सर्कल (APSC) के खि‍लाफ शिकायत मिलने के बाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने जांच कराई, जिसके बाद IIT ने स्टूडेंट सर्कल पर प्रतिबंध लगाया.
बहरहाल, केंद्र में मोदी सरकार के गठन के बाद अपने तरह का यह पहला मामला सामने आया है. विचारों की आजादी एक बार फिर सवालों के घेरे में नजर आ रही है.

Thursday, 28 May 2015

#Activists hail repeal of 'draconian' AFSPA by #Tripura & #Indian #Government. Lifting of #AFSPA in #Tripura hailed as #victory for #sanity.

hail repeal of 'draconian' AFSPA by & . Lifting of in hailed as for .

Tripura withdraws Afspa after 18 years as insurgent activities dip

Agartala; May 29, 2015

Tripura chief minister Manik Sarkar speaking at a press conference

The Left-ruled Tripura on Wednesday decided to withdraw the controversial Armed Forces Special Powers Act (Afspa), which gives sweeping powers and judicial immunity to security forces in conflict-hit areas, due to a decrease in militancy-related incidents in Tripura.
The decision to withdraw the law, that was enforced in the state 18 years ago to curb insurgency, was taken during a cabinet meeting held at the Civil Secretariat.
https://pbs.twimg.com/media/CGEaeu7UsAAXWXu.jpg

"We have reviewed the situation of the disturbed areas of the state after every six months and also discussed the issue with the state police and other security forces working in the state. They suggested that there is no requirement of the act now as the insurgency problem has largely been contained. We would soon issue gazette notification in this regard," chief minister Manik Sarkar told reporters.
"The decisions were taken in view of the decrease of militancy-related incidents in Tripura over the last few years. However, the security forces would be watchful over the situation," said Sarkar.

Sarkar, who also holds the home portfolio, said plying of vehicles along the Assam-Agartala national highway (NH-44) - the lifeline of Tripura - would be allowed until midnight instead of 10pm.
Tripura has 74 police stations and Afspa was in force in 30 police station areas. It was fully operational in 26 police station areas and partially in four.

The Afspa was imposed in the state on February 16, 1997 when terrorism was at its peak in the state, bordering Bangladesh.
"Though the four-and-half-decade-old terrorism has been tamed in Tripura, the state government is always cautious about the terror outfits and their activities," an official with the home department told IANS.
Rights groups and political parties, including the ruling Communist Party of India-Marxist and the tribal-based Indigenous Nationalist Party of Twipra (INPT) and Indigenous People's Front of Tripura, have described the law as "draconian" and have been demanding the withdrawal of Afspa.

"As the government has taken the decision after a prolonged time, we express our satisfaction on the decision," said Jagadish Debbarma, general secretary of the INPT.
The Afspa is also in force in Manipur (excluding the Imphal Municipal Council area), Assam and Nagaland and in several districts of Arunachal Pradesh.

Lifting of AFSPA in Tripura hailed as victory for sanity

Tripura government's decision to withdraw AFSPA from the state was today hailed by former Home Minister P Chidambaram as victory for sanity and humanity while Hurriyat's moderate faction hoped it will serve as an "eye opener" for political parties in Jammu and Kashmir.

"My plea to repeal AFSPA heard in Tripura. AFSPA withdrawn. Victory for sanity and humanity," Chidambaram wrote on microblogging site Twitter.The senior Congress leader had strongly advocated, as Union Home Minister, for repeal of the Armed Forces (Special Powers) Act, 1958. "Some things do not have a place in a civilised country. One of them is AFSPA," he had said recently.

Welcoming the decision, CPI demanded that the Centre repeal the law. Expressing concern over alleged abuse of the act leading to violation of human and democratic rights of locals resulting in their alienation, CPI said that what the CPI-M government had done in Tripura is the "right thing". "There has been the demand in North-East including Manipur that AFSPA be repealed. A similar demand has also been raised in Jammu and Kashmir.

"Over the years, use and abuse of the act has led to violation of human and democratic rights and led to alienation of local people. The new situation demands that Centre should review the situation and ensure AFSPA is repealed. Tripura has done the right thing," CPI leader D Raja said. The moderate faction of separatist Hurriyat Conference led by Mirwaiz Umer Farooq said the revocation of AFSPA from Tripura should serve as an "eye opener" for the ruling class of J&K who make "loud claims" about the revocation of this "draconian" law from the state, "but in reality have no interest or intentions to do so".

A Hurriyat spokesman also said it is a bold decision. "Many governments came and pledged to revoke AFSPA from the state but all these pledges and claims proved to be blatant lies made just for public consumption," he added.


Tripura - त्रिपुरा: सेना को मिला विशेषाधिकार ख़त्म ...#CommunalMedia

त्रिपुरा: सेना को मिला विशेषाधिकार ख़त्म

28*05*2015


भारतीय सेना

त्रिपुरा सरकार ने सेना को विशेष अधिकार देने वाला विवादित क़ानून अाफ़्सपा को 18 साल बाद हटा दिया है.
समाचार एजेंसी पीटीआई ने मुख्यमंत्री माणिक सरकार के हवाले से कहा है कि बुधवार को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में इसे हटाने का फ़ैसला किया गया.
मुख्यमंत्री ने कहा, "हमने प्रभावित इलाक़ों के हालात की हर छह महीने समीक्षा की. इस मामले पर राज्य पुलिस और राज्य में तैनात सुरक्षाबलों से चर्चा भी की गई."
राज्य में वामपंथी पार्टी की सरकार है.

हिंसा का दौर ख़त्म

उन्होंने कहा कि अब राज्य में हिंसा की समस्या करीब ख़त्म हो गई है. इसलिए इस क़ानून की अब कोई ज़रूरत नहीं है. हम जल्द ही इस संबंध में अधिसूचना जारी करेंगे.

त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार
त्रिपुरा में अलगाववादी हिंसा बढ़ने के बाद 16 फ़रवरी 1996 को अाफ़्सपा लगाया गया था.
जिस समय आफ़्सपा राज्य में लागू किया गया था, उस समय वहां केवल 42 पुलिस थाने थे. इनमें से दो-तिहाई पुलिस थानों में ये क़ानून लागू था.
इस समय त्रिपुरा में 74 पुलिस थाने हैं. आफ़्सपा इनमें से 26 पुलिस थानों में पूरी तरह और चार में आशिंक रूप से लागू था.

क्या है आफ़्सपा

भारतीय संसद ने 11 सितंबर 1958 को आफ़्सपा क़ानून बनाया था. इसे शुरू में पूर्वोत्तर भारत के हिंसा प्रभावित इलाक़ों में लागू किया गया था.

भारतीय सेना
पंजाब में चरमपंथी हिंसा के दौर में आफ़्सपा वहां लागू किया गया.
सितंबर 1990 में संसद ने आफ़्सपा (जम्मू-कश्मीर) क़ानून बनाया. यह क़ानून जम्मू-कश्मीर के हिंसा प्रभावित इलाक़ों में लागू है.

जम्मू कश्मीर में तैनात सेना का जवान
जम्मू कश्मीर के लिए सितंबर 1990 में आफ़्सपा (जम्मू-कश्मीर) क़ानून बनाया गया.
हिंसा प्रभावित इलाक़ों में यह कानून सेना और अर्धसैनिक बलों को विशेष अधिकार देता है. इसके तहत वो सिर्फ़ शक़ के आधार पर किसी को भी गोली मार सकते हैं या किसी इमारत को तबाह कर सकते हैं. बिना वारंट के केवल शक के आधार पर ही किसी को गिरफ़्तार भी किया जा सकता है.
मानवाधिकार संगठन आरोप लगाते रहे हैं कि आफ़्सपा की आड़ में कई फ़र्ज़ी मुठभेड़ें हुई हैं.

Wednesday, 27 May 2015

NDA report card On Modi's first anniversary, Congress releases video detailing government's frequent U-turns.Watch Video

On Modi's first anniversary, Congress releases video detailing government's frequent U-turns.Watch Video

Short film details BJP's flipflops on China, land acquisition, illegal foreign accounts and other policy issues, accompanied by a satirical song.
Photo Credit: YouTube.com
The Modi government’s first anniversary party on Tuesday was marked by an intense war of words between the ruling Bharatiya Janata Party and the Congress.

In an elaborate outreach programme,  BJP ministers, MPs and workers fanned out across the country to  highlight the Modi government’s  achievements and launch an offensive against the scandals that surfaced when the previous Congress-led United Progressive Alliance government was in power.

But the Congress was equally quick to hit back.  The party released  a  42-page report card detailing the NDA government’s failures and launched  a 12-minute video showing how the ruling alliance had done a U-turn on key policy decisions after coming to power at a specially convened press briefing addressed by senior leaders Ghulam Nabi Azad and Mallikarjun Kharge. The media event marked the culmination of a week-long country-wide media blitzkrieg launched by the Congress to challenge the government’s claims of achievement and paint Prime Minister Narendra Modi as pro-corporate and anti-farmer.

The Congress campaign titled Pol-Khol was a surprise since innovative communication has  not been the party’s strong point. In contrast,  the BJP was always ahead in winning the perception battle by grabbing headlines and eyeballs In fact, Congress leaders openly lamented that poor communication was one of the key reasons it lost the last Lok Sabha election.

Getting its act together

After floundering for nearly a year after its shock defeat in the last general election, the grand old party is finally getting its act together. The Congress’s communication department is suddenly transformed not unlike the party’s vice-president Rahul Gandhi who returned from his unexplained sabbatical in a brand new avatar. With Rahul Gandhi setting the “attack Modi” agenda, the party soon followed suit. A re-energised Congress then went about collecting ammunition to hit out at  the Modi government.

What followed was a series of  hard-hitting statements on how the government had failed on various fronts and the release of the report card titled Ek Saal, Desh Badhaal, which details how the Modi government has allegedly let down the poor farmer with its decision to dilute the Land Acquisition Act,  reduced the budgetary allocations for social welfare schemes, ignored its much-touted Make in India programme with the purchase of Rafale fight jets from France and failed to implement its election promise to bring back black money stashed abroad.

While this message was disseminated through the country by Congress spokespersons, the party surprised everybody with the launch of a video, showing clips of the statements made by BJP leaders before the Lok Sabha election and its volte face on coming to power. Out of character with the Congress party’s known ambivalence on media outreach, the video was yet another example of how the party is trying to keep pace with the BJP’s communication strategy.



The video opens with the title song Acche Din Ab Kab Aayenge and then contrasts statements by BJP leaders when they were in opposition with their rhetoric now that they are in government.  For instance, there is a clip of Modi’s fiery election speech in which he is attacking the UPA government for not bringing back black money and that  his government would act swiftly  and ensure that each Indian gets Rs 10 lakhs-Rs 15 lakhs from the proceeds. This is followed by BJP president Amit Shah’s embarrassed statement that this was a mere “election jumla”, not to be taken seriously.

Similarly,  Modi’s equally determined rejection of the UPA government’s move to introduce the Goods and Service Tax Bill as Gujarat chief minister is also followed by a somersault as Prime Minister Modi is shown announcing his support for the same bill.

Sushma Swaraj as leader of the opposition is seen rejecting the Indo-Bangla land agreement and Foreign Direct Investment in multi-brand retail. A subsequent clip shows Swaraj telling Parliament how this agreement was in the country’s interest as it would improve ties with neighbouring Bangladesh. As for multi-brand retail, the Modi government has not revoked the UPA government’s decision to cap FDI at 51%.

Then there is Modi lashing out at the UPA government for raising fuel prices and rail fares. But Finance Minister Arun Jaitley can be seen subsequently justifying his government’s decision to increase fares on the grounds that the railways had been allowed to bleed by the previous government and that the BJP could not follow the weak-kneed policies of their predecessor.

The video also shows the U-turns on the BJP’s position on China, Modi’s promise to raise the minimum support price to farmers and the party’s opposition to hiking foreign investment in the insurance sector.