पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि विदेश
सचिव स्तर की बातचीत रद्द करने से भारत और पाकिस्तान के रिश्तों को झटका
लगा है। पाकिस्तान विदेश मंत्रालय का कहना है कि दोनों देशों के बीच किसी
भी बातचीत से पहले कश्मीरी अलगाववादी नेताओं से पाकिस्तान की बातचीत
स्थापित परंपरा है। पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने कहा, 'भारत
सरकार के फैसले से हमारे नेतृत्व की उन कोशिशों को झटका लगा है जिसके तहत
भारत के साथ एक अच्छे पड़ोसी जैसे संबंधों को बढ़ावा दिया जा रहा था।'
फाइल फोटो: इसी साल मई में शपथ ग्रहण समारोह के दौरान नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में मुलाकात करते मोदी और नवाज शरीफ।
बातचीत रद्द करने का संभावित नतीजा
- भारत की ओर से विदेश सचिव स्तर की बातचीत रद्द करने के फैसले के बाद
पाकिस्तान के साथ भारत का रिश्ता 2008 के दौर में पहुंच गया है। मुंबई हमले
के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ बातचीत न करने का फैसला किया था।
- जानकारों के मुताबिक, बातचीत खत्म करने के फैसले से भारत और
पाकिस्तान के बीच 2005 से शुरू हुई गुप्त बातचीत (कंपोजिट डायलॉग का अहम
हिस्सा) का दौर भी बंद हो जाएगा।
- मोदी सरकार के फैसले से पाकिस्तान और अलगाववादियों को कड़ा संदेश मिला
है। बातचीत रद्द करने के फैसले से पाकिस्तान पर अलगाववादियों से बात न करने
और सीजफायर रोकने के लिए दबाव बढ़ेगा।
- मोदी सरकार के फैसले से पाकिस्तान की उस रणनीति पर भी दबाव बनेगा,
जिसके तहत वहां की सरकार शांति और बातचीत की बात करती थी और पर्दे के पीछे
से वहां की सेना आतंकवाद और सीमा पर गोलीबारी को बढ़ावा देती थी।
- भारत के रुख से पाकिस्तान पर यह दबाव भी बनेगा कि वह कश्मीर के अलावा अन्य मुद्दों को भी तरजीह दे।
क्या कहते हैं जानकार
"भारत ने बातचीत रद्द कर अच्छा फैसला लिया है। मैं तो कहता हूं कि
अलगाववादियों से बातचीत करने वाले पाकिस्तानी हाई कमिश्नर को भी वापस उनके
देश भेज दिया जाना चाहिए। हमें पाकिस्तान के बिना जीना सीखना चाहिए।"
-माहरूफ रजा, डिफेंस एक्सपर्ट
"पाकिस्तान को जैसे को तैसा की तर्ज पर जवाब देना चाहिए। पाकिस्तान में
भारत के हाई कमिश्नर को बलूचिस्तान और पाक के कब्जे वाले कश्मीर के शिया
नेताओं से मुलाकात करनी चाहिए।"
-जनरल (रिटायर्ड) जीडी बख्शी, डिफेंस एक्सपर्ट
"भारत सरकार का यह थोड़ा जल्दबाजी में लिया गया फैसला लगता है। लेकिन यह जरूरी था।"
केसी सिंह, पूर्व राजनयिक
क्या कहता विदेशी मीडिया
"बातचीत रद्द करना राजनयिक रिश्तों में एक बड़ा कदम पीछे खींच लेने
जैसा है। दोनों देशों के रिश्तों को उस वक्त मजबूती मिली थी, जब मई में
मोदी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपने शपथ ग्रहण समारोह में
अन्य दक्षिण एशियाई देशों के साथ दिल्ली आमंत्रित किया था।"
-पाकिस्तान के अखबार डॉन में छपी रिपोर्ट।
"कश्मीर के अलगाववादी नेताओं के साथ बात न करने की भारत की हिदायत को
नजरअंदाज करने पर भारत ने पाकिस्तान के साथ सचिव स्तर की बातचीत को रद्द कर
दिया है। भारत की तरफ से हुई इस घोषणा ने दोनों देशों के बीच बातचीत की
संभावनाओं को धूमिल कर दिया है। भारत में इससे पहले की सरकारें पाकिस्तान
सरकार और कश्मीर के अलगाववादी नेताओं के बीच बातचीत को बर्दाश्त करती रही
हैं, लेकिन मोदी ने संकेत दिया है कि वे ऐसा नहीं करेंगे।"
-अमेरिका के मशहूर अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट।
पाक उच्चायुक्त से भेंट का सिलसिला जारी
पाकिस्तान के साथ विदेश सचिव स्तर
की बातचीत रद्द करने के भारत सरकार के फ़ैसले से अलगाववादियों समेत कश्मीर
घाटी के ज़्यादातर लोग निराश हैं.
भारत-पाकिस्तान के बीच सचिव स्तर की द्विपक्षीय
बातचीत 25 अगस्त को प्रस्तावित थी. अलगाववादी नेताओं ने पाकिस्तानी
उच्चायुक्त और शब्बीर शाह की मुलाक़ात के बाद लिए गए भारत सरकार के फ़ैसले
को 'दुर्भाग्यपूर्ण' बताया है.
हालांकि अलगाववादी नेताओं का
पाकिस्तानी उच्चायुक्त से मिलने का सिलसिला जारी है. कश्मीरी नेता सैयद अली
शाह गिलानी और मीरवाइज़ उमर फ़ारुक़ मंगलवार को पाकिस्तान के उच्चायुक्त
अब्दुल बासित से मिल रहे हैं.
बुधवार को उच्चायुक्त और मोहम्मद यासीन मलिक के मुलाकात का कार्यक्रम है.
घाटी में निराशा
मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़ ने कहा कि अलगाववादी नेताओं
की पाकिस्तानी उच्चायुक्त के साथ मुलाक़ात में कोई नुक़सान नहीं है.
उन्होंने कहा, "हमने सिर्फ़ अपने विचार रखे और ऐसा पहली बार नहीं हुआ है."
जेकेएलएफ के प्रमुख मोहम्मद यासीन मलिक ने भी कहा कि अलगाववादी नेताओं की पाक अधिकारियों से मुलाक़ात में कुछ भी नया नहीं है.
हुर्रियत के उग्र धड़े के प्रमुख सैयद अली गिलानी ने भी निराशा जताई है और कहा कि भारत की प्रतिक्रिया 'ग़ैरज़रूरी और अपरिपक्व' है.
राजनीतिक विश्लेषक और उर्दू दैनिक चट्टान के
संपादक ताहिर मोहिउद्दीन का मानना है कि भाजपा सरकार ने यह 'निराशाजनक'
निर्णय विपक्षी पार्टी कांग्रेस के दबाव में लिया है.
मोहिउद्दीन ने कहा, "बातचीत रद्द करने का निर्णय
निराशाजनक है. भाजपा सरकार को प्रस्तावित बैठक के साथ आगे बढ़ना चाहिए था.
लेकिन वे कांग्रेस के दबाव के आगे झुक गए और पड़ोसी देश के साथ बातचीत की
प्रक्रिया शुरू करने का मौका गंवा दिया."
पहले भी मुलाक़ातें
एक अन्य उर्दू दैनिक युक़ाब के संपादक मंज़ूर
अंजुम कहते हैं, "ऐसी मुलाक़ातें कई साल से होती रही हैं. अप्रैल 2005 में
भी ये अलगाववादी नेता नई दिल्ली में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति
परवेज़ मुशर्रफ़ से मिले थे."
राज्य के प्रमुख राजनीतिक दलों नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी यानी पीडीपी ने भी इस फ़ैसले पर निराशा जताई है.
नेशनल कॉन्फ्रेंस के महासचिव अली मोहम्मद सागर ने
कहा, "सवाल ये नहीं है कि आप इसकी निंदा करते हैं या नहीं. हमारा ये मानना
है कि जब ऐसी मुलाक़ातें पहले भी होती रही हैं तो अब इस पर सवाल क्यों
उठाया जा रहा है?"
उन्होंने सवाल किया कि भाजपा कश्मीर पर वाजपेयी की नीतियों को आगे बढ़ाने का दावा करती है तो फिर ऐसा कदम क्यों उठाया गया.
उधर, पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती ने कहा कि
यह कदम बेहद 'नकारात्मक' है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण
समारोह में नवाज़ शरीफ़ को न्यौता देकर जो माहौल बनाया गया था, वो बिगड़
गया है.
पाकिस्तान से नहीं होगी बातचीत: भारत
पाकिस्तानी उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने कश्मीरी अलगाववादी नेताओं को बातचीत का न्यौता दिया है.
भारत ने पाकिस्तान के साथ विदेश सचिव स्तर की बातचीत रद्द कर दी है. ये बातचीत 25 अगस्त को होने वाली थी.
भारत ने ऐसा पाकिस्तानी उच्चायुक्त के भारत में कश्मीर के अलगाववादी नेताओं से मुलाक़ात के फ़ैसले के विरोध में किया है.
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता
सैयद अकबरुद्दीन ने बताया, "ये दिखाता है कि पाकिस्तान किस तरह भारत के
अंदरूनी मामलों में लगातार दख़ल दे रहा है. भारतीय विदेश सचिव ने आज
पाकिस्तान के उच्चायुक्त को बता दिया है कि भारत के अंदरूनी मामलों में
पाकिस्तान का दख़ल अस्वीकार्य है."
प्रवक्ता के मुताबिक़, "ये भी बताया गया है कि
पाकिस्तानी उच्चायुक्त की हुर्रियत के कथित नेताओं से मुलाक़ात भारतीय
प्रधानमंत्री मोदी की सकारात्मक कूटनीतिक पहल के मुताबिक़ नहीं है.
पाकिस्तान के पास एक ही रास्ता है कि वह द्विपक्षीय मसले शांतिपूर्ण वार्ता
और शिमला समझौता के साथ ही लाहौर घोषणा पत्र के मुताबिक़ हल करे."
अलगाववादी संगठन जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ़्रंट के
नेता यासीन मलिक ने बीबीसी की अनुभा रोहतगी से कहा, "नरेंद्र मोदी ने इस
फ़ैसले से साफ कर दिया है कि वो कश्मीर मसले को बातचीत से सुलझाने के मूड
में कतई नहीं हैं. कश्मीरी लोगों की जो उम्मीदें थीं उन्होंने उस पर पानी
फेर दिया है."
'छद्म युद्ध'
उन्होंने बताया, "मौजूदा हालात में ये लगा कि
भारतीय विदेश सचिव के इस्लामाबाद जाने से कुछ भी हासिल नहीं होगा. इसलिए
भारतीय विदेश सचिव सुजाता सिंह की 25 अगस्त को इस्लामाबाद में होने वाली
वार्ता रद्द कर दी गई है."
इससे पहले सोमवार को पाकिस्तानी उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने अलगाववादी नेता शब्बीर शाह से मुलाक़ात की.
मंगलवार को भी उनकी सैयद अली शाह गिलानी समेत कुछ और नेताओं से मुलाक़ात की योजना है.
इस मुलाक़ात के विरोध में एक हिंदू संगठन ने दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायोग के सामने प्रदर्शन किया था.
पिछले सप्ताह ही प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान पर 'छद्म युद्ध' करने का आरोप लगाया था.
इधर शब्बीर शाह ने मीडिया से कहा, "दोनों देशों के
बीच बातचीत से कश्मीर मसला हल नहीं होगा. बातचीत में कश्मीर की जनता को
शामिल करना ही होगा."
अब तक ये स्पष्ट नहीं हो पाया है कि जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ़्रंट के यासिन मलिक पाकिस्तानी उच्चायुक्त से मिलेंगे या नहीं.
कश्मीरी नेताओं से मुलाक़ात पर स्पष्टीकरण
एक सप्ताह बाद भारत और पाकिस्तान
के बीच होने वाली विदेश सचिवों की बैठक रद्द होने के बाद पाकिस्तान ने कहा
है कि कश्मीरी नेताओं से पाकिस्तानी उच्चायुक्त की मुलाक़ात में कुछ भी नया
नहीं है.
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट पर एक
क्लिक करें
प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है, ''भारत के विदेश मंत्रालय ने
भारत में मौजूद हमारे उच्चायुक्त को बैठक रद्द किए जाने की सूचना दी है.
इसमें कश्मीरी नेताओं के साथ उच्चायुक्त की मुलाक़ात पर आपत्ति जताई गई
है.''
विज्ञप्ति के अनुसार, ''पाकिस्तान और भारत के बीच
बातचीत से पहले कश्मीरी नेताओं के साथ बैठक करने की लंबे समय से परंपरा रही
है, ताकि कश्मीर मुद्दे पर अर्थपूर्ण बातचीत की राह बनाई जा सके.''
इसमें कहा गया है, ''भारत के फैसले से, बेहतर
पड़ोसी रिश्ते बनाने की हमारे नेतृत्व की कोशिशों को झटका लगा है.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने स्पष्ट रूप से शांति और विकास का विज़न पेश
किया था. और इसी कारण उन्होंने शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए
भारतीय प्रधानमंत्री का न्यौता स्वीकार किया था. दोनों प्रधानमंत्रियों की
सहमति के बाद ही विदेशी सचिवों की बैठक तय की गई थी.''