Friday, 1 November 2013

कैसे करती हैं अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसियाँ आपकी जासूसी?

कैसे करती हैं अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसियाँ आपकी जासूसी?

 शुक्रवार, 2 नवंबर, 2013 को 12:52 IST तक के समाचार

ग़ैर क़ानूनी गतिविधियों का पर्दाफ़ाश करने वाले यानी विसलब्लोअर एडवर्ड स्नोडेन के लीक दस्तावेज़ बताते हैं कि अमरीका ने किस तरह से बड़े पैमाने पर पूरी दुनिया में ख़ुफ़िया अभियान चलाया हुआ है जिसमें सहयोगी देशों में गुपचुप बातचीत सुनना भी शामिल है.
हालांकि इस मामले के सामने आने के बाद अमरीकी सीनेट की ख़ुफ़िया कमेटी ने वादा किया कि वह देश के सबसे बड़े ख़ुफ़िया संगठन नेशनल सिक्युरिटी एजेंसी (एनएसए) के निगरानी कार्यक्रम की समीक्षा करेगा.
लीक दस्तावेज़ों के अनुसार आईए जानते हैं उन ख़ास तरीक़ों के बारे में, जिनका इस्तेमाल जासूसी एजेंसी करती रही है

1. इंटरनेट कंपनी के डाटा तक पहुंच

जून में लीक दस्तावेज़ों से पता लगा कि किस तरह क्लिक करें एनएसए की 'पीछे के दरवाज़े' से बड़ी टेक्नोलोजी कंपनियों तक पहुंच है.
फ़ाइलें बताती हैं कि एजेंसी की पहुंच नौ इंटरनेट कंपनियों तक थी, जिसमें फ़ेसबुक, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और याहू जैसी कंपनियां शामिल हैं. ऑनलाइन संवाद पर नज़र रखने का काम निगरानी प्रोग्राम 'प्रिज़्म' के ज़रिए किया जाता है.
दावा है कि इस प्रोजेक्ट में एनएसए ब्रिटेन के जीसीएचक्यू स्टेशन के साथ मिलकर ई-मेल, चैट लॉग्स, स्टोर डाटा, वॉएस ट्रैफ़िक, फ़ाइल ट्रांसफ़र और सोशल नेटवर्किंग डाटा तक पहुंच रखता था.
हालांकि कंपनियां एजेंसी को सर्वर पर सीधी पहुंच की सुविधा देने से इनकार करती हैं.
कुछ विशेषज्ञ 'प्रिज़्म' की असली ताक़त को लेकर सवाल भी करते हैं. डिजिटल फ़ोरेंसिक प्रोफ़ेसर पीटर सोमर बीबीसी से कहते हैं ये पहुंच 'बैकडोर' की बजाए 'कैटफ़्लैप' की तरह है, जिसमें ख़ुफ़िया एजेंसी किसी तय टारगेट के लिए सर्वर को टैप करके जानकारियां इकट्ठा करती थी.

2. फ़ाइबर ऑप्टिक केबल्स की टैपिंग

जून में जीसीएचक्यू से लीक दस्तावेज़ों के संबंध में 'गार्डियन' अख़बार में रिपोर्ट प्रकाशित की जिससे पता लगा कि ब्रिटेन ने ग्लोबल संचार में इस्तेमाल होने वाले फ़ाइबर ऑप्टिक केबल्स की टैपिंग की और हासिल डाटा को एनएसए से साझा किया.
दस्तावेज़ों का दावा है कि जीसीएचक्यू एकसाथ 200 फ़ाइबर ऑप्टिक केबल्स पर पहुंच रखता था, यानी रोज़ 60 करोड़ बातचीत को मॉनिटर करने में सक्षम था.
इंटरनेट और फ़ोन इस्तेमाल की जानकारियों को 30 दिनों तक स्टोर किए जाने के बाद इन्हें वहां से हटाकर विश्लेषित किया जाता था.
जीसीएचक्यू ने यद्यपि इस पर कोई टिप्पणी से मना कर दिया लेकिन ये ज़रूर कहा कि वह क़ानूनों के प्रति ईमानदार है.
अक्तूबर में इतालवी साप्ताहिक 'एल' एस्प्रेसो' में प्रकाशित रिपोर्ट में दावा किया गया कि जीसीएचक्यू और क्लिक करें एनएसए की नज़र समुद्र में बिछे तीन केबल्स पर थी, जिसके टर्मिनल इटली में थे, ये कमर्शियल और मिलिट्री डाटा को बीच में रोकते थे.
सिसली में मौजूद इन केबल्स के नाम सीमीवी3, सीमीवी4 और फ़्लैम यूरोपा-एशिया हैं.

3. फ़ोन बातचीत को छिपकर सुनना

अक्तूबर में जर्मन मीडिया ने रिपोर्ट छापी कि अमरीका ने जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल के फ़ोन को एक दशक से कहीं ज़्यादा समय से बग के ज़रिए टैप कर रखा था-ये ख़ुफ़िया निगरानी कुछ महीनों पहले बंद की गई.
'डेर श्पीगल' मैगज़ीन ने विसलब्लोअर एडवर्ड स्नोडेन के दस्तावेज़ों को उद्धृत करते हुए कहा, ''अमरीका वर्ष 2002 से ही मर्केल के मोबाइल की जासूसी में लगा था.''
दस्तावेज़ों के आधार पर मैगज़ीन ने दावा किया कि इस फ़ोन से होने वाली बातचीत को बीच में सुनने वाली ईकाई बर्लिन स्थित अमरीकी दूतावास में थी-इस तरह का ऑपरेशन दुनियाभर में 80 जगहों पर चलाया जा रहा था.
खोजी पत्रकार डंकन कैम्पबेल ने ब्लॉग में बताया है कि किस तरह आधिकारिक भवन के बाहर खिड़की रहित इलाक़ा भी 'रेडियो खिड़की' हो सकता है. ये 'बाहरी खिड़कियां' एक ख़ास पदार्थ से बनाई जाती हैं-जो बिजली से संचालित नहीं होतीं-बल्कि इनसे रेडियो सिग्नल्स गुज़र सकते हैं और इन्हें प्राप्त कर इनका विश्लेषण करने वाले यंत्र अंदर लगे होते हैं.
हालांकि बाद की रिपोर्ट्स बताती हैं कि उनकी नज़र चांसलर के दो फ़ोनों पर थी-एक वो फ़ोन, जिसका इस्तेमाल वो पार्टी मामलों के लिए करती थीं और दूसरा था कोड डिवाइस से इस्तेमाल किया जाने वाला सरकारी फ़ोन.
सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार स्टैंडर्ड मोबाइल फ़ोन का कूट सिस्टम आसानी से भेदा जा सकता है, क्योंकि उनका सिस्टम साफ़्टवेयर की भाषा में मैसेज क्रिएट करने के प्रोग्राम से अलग होता है.
बर्लिन में अमरीकी दूतावास की इस खिड़की रहित कमरे से सुनी जाती चांसलन मार्केल की बातचीत
एनएसए जर्मन चांसलर के फ़ोन को बग करने के साथ ही जर्मनी और फ्रांस के दसियों लाख लोगों के ई-मेल्स के साथ टेलीफ़ोन कॉल्स पर नज़र रखता था. ब्राज़ील व मैक्सिको के राष्ट्रपतियों के फ़ोन पर भी उसने कुछ यूं ही नज़र रखी.
'गार्डियन' ने बाद में रिपोर्ट दी कि क्लिक करें एनएसए दुनियाभर के 35 नेताओं के फ़ोन पर नज़र रखता था, जिनके नंबर उन्हें अमरीका के किसी और अधिकारी द्वारा दिए जाते थे. इस रिपोर्ट के स्रोत भी एडवर्ड स्नोडेन ही थे.

4. लक्ष्यीकृत जासूसी

'डेर श्पीगल' में जून में प्रकाशित रिपोर्टों में दावा किया गया कि एनएसए यूरोप और अमरीका में यूरोपीय यूनियन नेताओं की भी जासूसी कर रहा था.
मैगज़ीन का कहना है कि स्नोडेन के लीक दस्तावेज़ ज़ाहिर करते हैं कि अमरीका ने वाशिंगटन स्थित यूरोपीय यूनियन के आंतरिक कंप्यूटर नेटवर्क के साथ न्यूयॉर्क स्थित यूएन ऑफ़िस के 27 सदस्यीय ब्लॉक की भी जासूसी की.
आरोप है कि एनएसए ब्रसेल्स की एक बिल्डिंग से गुपचुप बातचीत सुनने का ऑपरेशन चला रहा था, जहां यूरोपीय यूनियन काउंसिल के मंत्री और काउंसिल के लोग रहते हैं.
जुलाई में 'गार्डियन' ने दस्तावेज़ों के ज़रिए फिर दावा किया कि 38 दूतावासों और मिशन को क्लिक करें अमरीकी जासूसी ऑपरेशन में टारगेट किया गया था.
टारगेट किए जा रहे देशों में फ़्रांस, इटली और ग्रीस के साथ अमरीका के ग़ैर यूरोपीय सहयोगी जापान, दक्षिण कोरिया और भारत भी शामिल थे. यही नहीं यूरोपीय यूनियन के न्यूयार्क और वाशिंगटन स्थित दूतावास और मिशन भी निगरानी पर थे.
दस्तावेज़ की फ़ाइलें ये भी बताती हैं कि किस तरह संदेशों को बीच में रोकने के लिए 'असाधारण विविधता वाले' जासूसी तरीक़ों का इस्तेमाल किया गया. इसमें बग्स, ख़ास एंटेना और वायर टेप शामिल थे.

किस तरह से डाटा तक प्रिज़्म की पहुंच

माइक्रोसॉफ़्ट – माइक्रोसॉफ़्ट की कुछ साइट्स ई-मेल पते, नाम, घर या कार्यस्थल का पता या टेलीफ़ोन नंबर इकट्ठा करती हैं. कुछ सेवाओं में साइन-इन करने के लिए ईमेल और पासवर्ड की ज़रूरत होती है.
माइक्रोसॉफ़्ट वेब-ब्राउजर्स के ज़रिए भी साइट्स पर आने वालों की जानकारी इकट्ठा करता है, साथ ही आईपी एड्रेस, साइट एड्रेस और विज़िट टाइम और कुकीज़ के ज़रिए विज़िटर्स की जानकारी मुहैया कराती है.
याहू- जब कोई यूज़र याहू के प्रोडक्ट्स या सेवाओं को साइन-इन करता है तो ये उसकी पर्सनल जानकारियां इकट्ठा करने लगता है. जिसमें नाम, एड्रेस, जन्मस्थान, पोस्टकोड और पेशा संबंधी जानकारियां शामिल हैं.
ये यूज़र के कंप्युटर से भी जानकारियां लेता है, जिसमें आईपी एड्रेस शामिल है.
गूगल- गूगल अकाउंट्स में साइन-इन करने के लिए पर्सनल विवरण मांगे जाते हैं, जिसमें नाम, ईमेल एड्रेस और फ़ोन नंबर शामिल हैं. गूगल का ईमेल-जीमेल-हर 10 जीबी क्षमता के अकाउंट धारक के ईमेल संपर्क और मेल संबंधी सारी जानकारियां स्टोर करता है.
इसमें सर्च संबंधी जानकारी, आईपी एड्रेस, टेलीफ़ोन लॉग जानकारी और कुकीज़ से हासिल हर अकाउंट की जानकारी स्टोर की जाती है. चैट बातचीत भी रिकॉर्ड होती है बशर्ते यूज़र ने ऑफ़ द रिकॉर्ड विकल्प नहीं चुना हो.
फ़ेसबुक-फ़ेसबुक में साइन-इन करने के लिए व्यक्तिगत जानकारियां देने की ज़रूरत होती है, मसलन-नाम, ईमेल एड्रेस, जन्मतिथि और लिंग. ये स्टेटस अपडेट, फ़ोटो और शेयर हो रहे वीडियो, वॉल पोस्ट्स, दूसरी पोस्ट्स पर कमेंट्स, मैसेज और चैट बातचीत को इकट्ठा करता है.
इसमें दोस्त के नाम, उनके ई-मेल विवरण भी रिकॉर्ड किए जाते हैं. साथ ही जीपीएस और लोकेशन संबंधी जानकारियां भी स्टोर की जाती हैं.
पालटॉक- ये तुरंत चैट, वॉयस और वीडियो मैसेजिंग सर्विस है. इसमें यूज़र को ई-मेल समेत कांटैक्ट जानकारियां उपलब्ध करानी पड़ती हैं.
कंपनी यूज़र के व्यवहार को ट्रैक करने के लिए कुकीज छोड़ती है, ताकि एडवरटाइज़िंग के मद्देनज़र उन्हें टारगेट किया जा सके.
यूट्यूब – गूगल स्वामित्व वाले यूट्यूब से भी डाटा जुटाए जाते हैं. इसमें यूज़र को अपने गूगल अकाउंट के ज़रिए लॉग-ऑन करना पड़ता है. यहां भी उसकी गतिविधि रिकॉर्ड की जाती है.
स्काइप-स्काइप माइक्रोसॉफ़्ट का अंग है. इसकी तुरंत मैसेजिंग सर्विस से इस साल माइक्रोसॉफ़्ट मैसेंजर को बदला गया है.
यहां भी यूज़र को व्यक्तिगत जानकारियां उपलब्ध करानी पड़ती हैं. यहां भी यूज़र के डाटा और कांटैक्ट लिस्ट रिकॉर्ड होती है.

Thursday, 31 October 2013

'अमरीका ने हैक की' याहू, गूगल की जानकारियां

'अमरीका ने हैक की' याहू, गूगल की जानकारियां

 गुरुवार, 31 अक्तूबर, 2013 को 09:01 IST तक के समाचार

अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी के पूर्व अधिकारी एडवर्ड स्नोडन की तरफ से लीक हुई ताज़ा जानकारी में पता चला है कि अमरीका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) गोपनीय जानकारियाँ निकालने के लिए याहू और गूगल की डाटा सूत्रों को हैक करती रही हैं.
वॉशिंगटन पोस्ट पर छपे दस्तावेज़ों के अनुसार इन दोनों इंटरनेट कंपनियों के नेटवर्कों से लाखों रिकॉर्ड रोज़ाना चोरी किए जाते थे.
हालांकि एनएसए के निदेशक का कहना है कि उनकी पहुंच गूगल और याहू के कंप्यूटरों तक नहीं थी.
जनरल कीथ एलेक्ज़ेंडर ने ब्लूमबर्ग टीवी को बताया, "हमें किसी अमरीकी कंपनी के सर्वर तक पहुंच कर उसमे से जानकारियां निकालने की अनुमति नहीं है."
लेकिन संवाददाताओं का कहना है कि एलेक्ज़ेंडर इन आरोपों का सीधे तौर पर खंडन भी नहीं कर रहे हैं.

'डाटा रूट हैक'

स्नोडन के ताज़ा ख़ुलासे के अनुसार सर्वर हैक करने की जगह एनएसए गोपनीय जानकारियां उसी समय हासिल कर लेता है जब वो डाटा के रूप में ऑप्टिकल फ़ाइबर केबल के ज़रिए किसी नेटवर्क डिवाइस से सर्वर तक यात्रा कर रहा होता है.
एजेंसी ने जो जानकारियां जुटाई थी उसमें मेटा डाटा से लेकर टेक्स्ट, ऑडियो और वीडियो तक शामिल थे, जिसे बाद में एनएसए के प्रोग्राम 'मसक्यूलर' ने प्रोसेस किया.
एनएसए के पास गूगल और याहू के यूज़रों की जानकारियां निकालने के लिए एक 'वैध' रास्ता, ख़ुफ़िया कार्यक्रम 'प्रिज़्म' पहले से मौजूद है.
ताज़ा ख़ुलासे एडवर्ड स्नोडन के दस्तावेज़ों से मिले हैं जो ख़ुद इस वक्त रूस की शरण में हैं और अमरीका को उनकी तलाश है.
ये जानकारियां उस वक्त लीक की गईं हैं जब जर्मनी की चांसलर एंगेला मर्केल के मोबाइल फ़ोन से ख़ुफ़िया जानकारियां चुराए जाने के दावे पर चर्चा के लिए जर्मन दूत वॉशिंगटन पहुंचे हैं.

अमरीका के मित्र देश 'ख़फ़ा'

जर्मनी की ख़ुफ़िया एजेंसियों के प्रमुख अगले हफ्ते वॉशिंगटन में अमरीकी एजेंसियों के प्रमुख लोगों से मिलेंगे.
अमरीका के ख़ुफ़िया कार्यक्रम के प्रमुख ने दुनिया के बड़े नेताओं की जानकारियां जुटाने की प्रक्रिया का बचाव तो किया है, लेकिन अमरीका के जिन मित्र देशों के नेताओं की ख़ुफ़िया जानकारियां जुटाई गई, वो अमरीका के इस रवैये से ख़फ़ा हैं.
स्पेन के प्रधानमंत्री मेरियानों राजॉय ने कहा कि अगर एनएसए ने स्पेन की भी जानकारियां इकठ्ठा की हैं तो ये 'बहुत ग़लत बात है जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता.'
हालांकि जनरल एलेक्ज़ेंडर कहते हैं' "एक बात जो कही जा रही है कि एनएसए ने यूरोप में लाखों फ़ोन कॉल रिकॉर्ड किए, वो बिल्कुल ग़लत है."
एजेंसी ने इतालवी मीडिया के उन आरोपों को भी ख़ारिज किया जिसमें दावा किया गया था कि वेटिकन से भी ख़ुफ़िया सूचनाएं जुटाई गई थी.

इसराइल का सीरिया पर हवाई हमला

इसराइल का सीरिया पर हवाई हमला

 शुक्रवार, 1 नवंबर, 2013 को 11:05 IST तक के समाचार

इसराइल को इस साल सीरिया में कई हमलों के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है.
एक अमरीकी अधिकारी के मुताबिक़ इसराइल के एक विमान नेक्लिक करें सीरिया के तटीय शहर लटाकिया के पास हमला किया है.
अमरीकी अधिकारी ने कहा कि हमले में रूस निर्मित मिसाइलों को निशाना बनाया गया जो कि लिबनानी चरमपंथी गुट हिज़बुल्लाह के लिए थीं.
लटाकिया को राष्ट्रपति बशर अल-असद का गढ़ माना जाता है, और यह सीरिया का एक महत्वपूर्ण तटीय शहर है.
इसराइल को सीरिया में इस साल अब तक तीन बार हवाई हमले करने के आरोप में व्यापक रूप से सूचित किया जा चुका है.

आधिकारिक बयान नहीं

समयसीमा से पहले ही ओपीसीडब्ल्यू यानी ऑर्गनाइज़ेशन फ़ॉर द प्रॉहिबिशन ऑफ़ केमिकल वेपंस द्वारा क्लिक करें रासायनिक हथियार बनाने वाले उपकरणों को नष्ट करने की घोषणा के तुरन्त बाद इस हमले को अंजाम दिया गया है.
अमरीकी अधिकारी के मुताबिक़ इसराइली हमला बुधवार रात से गुरुवार तक चला.
गुरुवार को लटाकिया में विस्फोट होने की ख़बरें आईं थीं लेकिन इसकी वजह स्पष्ट नहीं की जा सकीं थीं.

ब्रिटेन के एक मानवाधिकार कार्यकर्ता के मुताबिक़ स्नूबर जब्लेह में वायुसेना के शिविर में धमाकों की कई आवाज़ें सुनाईं दीं.
इसराइल और सीरिया की तरफ़ से इस बारे में अभी तक कोई बयान नहीं आया है.
नाम न बताने की शर्त पर एक अमरीकी अधिकारी ने समाचार एजेंसी एपी को बताया कि इसराइली हमले में रूस निर्मित एसए-125एस मिसाइलों को निशाना बनाया गया था.
ओपीसीडब्ल्यू के निरीक्षकों ने सीरिया में फैले 23 में 21 ऐसे स्थानों का दौरा किया जहाँ रासायनिक हथियारों को तैयार किया जाता था.

इसराइल ने क्या कहा?

इसराइल ने एक बार फिर ये दोहराया है कि अगर उसे लगता है कि सीरिया के पारंपरिक या रासायनिक हथियारों को चरमपंथियों और मुख्य रूप से हिज़बुल्लाह को हस्तांतरित किया जाता है, तो वह कार्रवाई करेगा.
रूस, सीरिया संघर्ष के दौरान सीरिया में लगातार हथियारों की पूर्ति कर राष्ट्रपति बशर-अल-असद का प्रमुख समर्थक रहा है.
असद ने क्लिक करें इसराइल द्वारा भविष्य में किए जाने वाले किसी भी हमले का जबाव देने का वादा किया था.
ओपीसीडब्ल्यू द्वारा रासायनिक हथियारों के उपकरणों को नष्ट करन के बाद सीरिया के उप विदेश मंत्री फ़ैसल मकदाद ने बीबीसी से कहा था कि सीरिया की सरकार मध्य पूर्व में हथियारों को व्यापक रूप से नष्ट करने में पूरी तरह साथ थी.
सीरिया में अभी भी 1,000 टन से ज़्यादा ख़तरनाक रसायन मौजूद हैं जिन्हें ख़त्म किया जाना बाक़ी है.
संयुक्त राषट्र के मुताबिक़ 2011 में बशर अल-असद के ख़िलाफ़ शुरु हुई बग़ावत के बाद से सीरिया में अब तक एक लाख लोग मारे जा चुके हैं और 20 लाख से ज्यादा लोग देश से पलायन कर चुके हैं.

Sunday, 27 October 2013

गोधरा कांड:नरेंद्र मोदी पर फैसला,मजिस्ट्रेट कल सुना सकते हैं-जकिया जाफरी की याचिका

गोधरा कांड:मजिस्ट्रेट कल सुना सकते हैं नरेंद्र मोदी पर फैसला-जकिया जाफरी की याचिका

अहमदाबाद, 27 अक्टूबर 2013 | अपडेटेड: 21:21 IST
टैग्स: जकिया जाफरी| गोधरा कांड| नरेंद्र मोदी| दंगे| याचिका


नरेंद्र मोदी
नरेंद्र मोदी
सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त एसआईटी की मामले को बंद करने की रिपोर्ट के खिलाफ जकिया जाफरी की याचिका पर यहां की अदालत सोमवार को फैसला सुना सकती है. यह मामला वर्ष 2002 के दंगों में कथित षड्यंत्र के सिलसिले में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और अन्य को क्लीनचिट देने से संबंधित है. जाफरी की याचिका पर उनके वकीलों एवं विशेष जांच दल (एसआईटी) के वकील की जिरह मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट बी. जे. गणात्रा के समक्ष पांच महीने तक चली, जिसके बाद जाफरी के वकील ने 18 सितम्बर को अदालत को लिखित हलफनामा दिया.
एसआईटी ने 30 सितम्बर को लिखित हलफनामा दिया और मजिस्ट्रेट गणात्रा ने कहा कि वह 28 अक्टूबर को फैसला सुनाएंगे.
जकिया जाफरी के पति और पूर्व सांसद एहसान जाफरी 2002 के दंगे में गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार में मारे गए 69 लोगों में शामिल थे. जाफरी ने याचिका दायर कर एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट पर आपत्ति जताई. क्लोजर रिपोर्ट में मोदी को किसी भी तरह के षड्यंत्र में शामिल होने से बरी कर दिया गया था.
जाफरी की शिकायत पर जांच पूरी करने के बाद एसआईटी ने आठ फरवरी 2012 को जांच रिपोर्ट दायर की थी, जिसमें कहा था कि आठ वर्ष बीत जाने के कारण साक्ष्य जुटाने में परेशानी के बावजूद जो भी साक्ष्य जुटाए जा सके, उनसे यह साबित नहीं हो सका कि 2002 के दंगों के षड्यंत्र के आरोप जिन लोगों पर लगाए गए थे वे इनमें संलिप्त थे.