Thursday 7 November 2013

सीबीआई असंवैधानिक संस्थाः गुवाहाटी हाई कोर्ट

सीबीआई असंवैधानिक संस्थाः गुवाहाटी हाई कोर्ट

गुवाहाटी, 8 नवम्बर 2013 | अपडेटेड: 09:30 IST
टैग्स: सीबीआई| गुवाहाटी हाई कोर्ट| संविधान| केंद्र सरकार
सीबीआई की साख पर फिर उठे सवाल
सीबीआई की साख पर फिर उठे सवाल
अपनी किस्म के एक अजीबोगरीब फैसले में गुवाहाटी हाई कोर्ट ने उस प्रस्ताव को रद्द कर दिया, जिसके जरिए केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई का गठन किया गया था और साथ ही कहा है कि सीबीआई की सारी कार्रवाइयां ‘असंवैधानिक’ हैं.

न्यायाधीश आई ए अंसारी तथा इंदिरा शाह की खंडपीठ ने यह फैसला हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश द्वारा वर्ष 2007 में दिए गए फैसले को चुनौती देते हुए नावेन्द्र कुमार द्वारा दायर रिट याचिका पर दिया. वर्ष 2007 में सीबीआई का गठन करने वाले प्रस्ताव के संबंध में फैसला दिया गया था.

अदालत ने कहा, ‘इसलिए हम 01.04.1963 के प्रस्ताव को रद्द करते हैं जिसके जरिए सीबीआई का गठन किया गया था.  हम यह भी फैसला देते हैं कि सीबीआई न तो दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (डीएसपीई) का कोई हिस्सा है और न उसका अंग है और सीबीआई को 1946 के डीएसपीई अधिनियम के तहत गठित ‘पुलिस बल’ के तौर पर नहीं लिया जा सकता.’ अदालत ने आगे कहा कि गृह मंत्रालय का उपरोक्त प्रस्ताव ‘न तो केंद्रीय कैबिनेट का फैसला था और न ही इन कार्यकारी निर्देशों को राष्ट्रपति ने अपनी मंजूरी दी थी.’


अदालत ने कहा, ‘इसलिए संबंधित प्रस्ताव को अधिक से अधिक एक विभागीय निर्देश के रूप में लिया जा सकता है जिसे ‘कानून’ नहीं कहा जा सकता.’ इसके बाद अदालत ने सीबीआई द्वारा कुमार के खिलाफ दाखिल आरोपपत्र और साथ ही सुनवाई को दरकिनार करते हुए रद्द कर दिया. 


Wednesday 6 November 2013

नाइजीरियाई चेतावनी:अगर भारत में रह रहे नाइजीरियाई को गोवा से भगाना बंद नहीं किया गया तो नाइजीरिया में रह रहे भारतीयों को इसके नतीजे भुगतने होंगे.

नाइजीरियाई चेतावनी:अगर भारत में रह रहे नाइजीरियाई को गोवा से भगाना बंद नहीं किया गया तो नाइजीरिया में रह रहे भारतीयों को इसके नतीजे भुगतने होंगे.

गोवा सरकार के रवैये से आहत हैं: नाइजीरियाई उच्चायुक्त

 गुरुवार, 7 नवंबर, 2013 को 08:09 IST तक के समाचार

पिछले दिनों गोवा में एक नाइजीरियाई नागरिक की हत्या के बाद, भारत में रह रहे नाइजीरियाई समुदाय में डर और नाराज़गी है.
नाइजीरिया के उच्यायुक्त डूबीसी वाइटस अमाकू ने बीबीसी हिंदी से बात करते हुए कहा कि गोवा सरकार के रवैये से वहां रह रहे नाइजीरियाई लोग आहत हैं और असुरक्षित महसूस कर रहे हैं.
गोवा सरकार की कड़ी आलोचना करते हुए उन्होंने आगे कहा, ''एक नाइजीरियाई की हत्या के बाद तेज़ी से जांच करने की जगह, गोवा सरकार का ये कहना कि नाइजीरिया के जो भी लोग राज्य में ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से रहे हैं, उन्हें वापस भेज दिया जाएगा, इस बात ने घाव पर नमक छिड़कने जैसा काम किया है.''
इस बीच गोवा पुलिस ने नाइजीरियाई युवक की हत्या के मामले में एक गिरफ्तारी की है.
गोवा में पिछले सप्ताह चाकू से किए गए हमले के दौरान एक नाइजीरियाई की मौत और पांच अन्य के घायल होने के बाद तनाव बढ़ गया था.
हत्या के तुरंत बाद क़रीब 200 नाइजीरियाई मूल के लोगों ने गोवा के मुख्य हाईवे को कई घंटो तक बंद कर दिया था.
पुलिस ने इस हत्या के पीछे स्थानीय लोगों और नाइजीरियाई मादक पदार्थो के तस्करों के आपसी झगड़े को कारण बताया.
इस घटना के बाद गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पारिकर ने पुलिस को आदेश दिया था कि उन सभी विदेशियों को पकड़कर वापस उनके देश भेजा जाए जो ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से गोवा में रह रहे हैं.

घाव पर नमक

"भारतीयों को समझना होगा कि भारत में बड़ी तादाद में नाइजीरियाई लोग वैध तरीके से रह रहे हैं, और अगर कुछ नाइजीरियाई जो कि गैरकानूनी तरीके से यहां रह रहे हैं तो उनसे निपटने के लिए कानून है. उन्हीं नियमों को लागू करना होगा."
अमाकू, नाइजीरियाई उच्चायुक्त
भारत में लगभग 40,000 नाइजीरियाई मूल के लोग है और उच्चायुक्त अमाकू के मुताबिक़ वे अपने लोगों की सुरक्षा के लिए चिंतित हैं.
अमाकू ने कहा, ''भारतीयों को समझना होगा कि भारत में बड़ी तादाद में नाइजीरियाई लोग वैध तरीक़े से रह रहे हैं, और अगर कुछ नाइजीरियाई जो कि ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से यहां रह रहे हैं तो उनसे निपटने के लिए क़ानून है. उन्हीं नियमों को लागू करना होगा.''
उच्चायुक्त अमाकू ने अवैध रूप से भारत में रह रहे नाइजीरियाई लोगों को वापस भेजने की योजना की भी अलोचना की.
इससे पहले एक अन्य नाइजीरियाई राजनयिक ने चेतावनी दी थी कि अगर भारत में रह रहे नाइजीरियाई को गोवा से भगाना बंद नहीं किया गया और हत्यारों को नहीं पकड़ा गया तो नाइजीरिया में रह रहे भारतीयों को इसके नतीजे भुगतने होंगे.
इस समय आठ से अधिक भारतीय नाइजीरिया में रहते हैं और वे वहाँ लगभग एक लाख व्यवसायों के मालिक हैं.
अमाकू ने कहा कि यह बयान हत्या के संदर्भ में दिया गया था और वह अधिकारी भी नाइजीरियाई समुदाय के अन्य सदस्यों की तरह ही "पीड़ित" महसूस कर रहे हैं.
इस बीच, भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अकबरुद्दीन ने कहा कि उन्हें यक़ीन है कि यह मामला सौहार्दपूर्ण ठंग से सुलझाया जा सकेगा.
समाचार एजेंसी एएफ़पी को दिए बयान में उन्होंने कहा कि, "हमें आश्वासन मिला है कि हत्या की जाँच की जा रही है.''

जेएनयू की 53 फीसदी छात्राओं को होना पड़ा है यौन शोषण का शिकार: सर्वे

जेएनयू की 53 फीसदी छात्राओं को होना पड़ा है यौन शोषण का शिकार: सर्वे

  नई दिल्ली, 6 नवम्बर 2013 | अपडेटेड: 23:28 IST
टैग्स: जेएनयू| यौन शोषण| महिला सुरक्षा| एनएसयूआई
देश के प्रतिष्ठित विश्‍वविद्यालय जेएनयू के कैंपस में करीब 3 महीने पहले एक लड़के द्वारा एक लड़की पर जानलेवा हमला करने की घटना सामने आई थी. इस घटना ने जेएनयू कैंपस में महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए थे. इसी के बाद जेएनयू प्रशासन ने कैंपस में महिला सुरक्षा और छात्रों के नजरिये को जानने के लिए एक ऑनलाइन सर्वे कराया, जिसमें कई चौंकाने वाले तथ्‍य सामने आए. सर्वे में 53 फीसदी छात्राओं ने माना कि उनको कभी ना कभी यौन शोषण का सामना करना पड़ा है, वहीं 21 फीसदी छात्राओं ने खुलासा किया कि उनके रिलेशनशिप में गाली-गलौच होती है.
सर्वे में यह भी सामने आया कि 31 जुलाई को जेएनयू कैंपस में हुई घटना का भी गहरा असर हुआ है. कुल 96 फीसदी छात्र-छात्राओं ने बताया कि 31 जुलाई की घटना आज भी उनके जेहन में जिंदा है, जो अभी भी उनको डराती है. साथ ही 42 फीसदी लड़कियों और 62 फीसदी लड़कों को लगता है कि इस घटना के बाद भविष्य में लड़के और लड़कियों के आपसी संबंधों पर जरूर असर पड़ेगा.
जेएनयू प्रशासन द्वारा कराये गये इस ऑनलाइन सर्वे में कुल 528 छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया, जिनमें ज्यादातर संख्या रिसर्च स्कॉलर छात्र-छात्राओं की रही. हालांकि कैंपस में ही कई संगठन ये भी मानते हैं कि कैंपस में कई घटनाओं के बाद भी महिला सुरक्षा के प्रति जागरुकता लाने में जेएनयू प्रशासन नाकाम रहा है.
एनएसयूआई छात्र नेता सिराज उदमा ने कहा कि कैंपस में जीएसकैश (Gender Sensitisation Committee Against Sexual Harassment) जैसी कमिटी है, जो महिलाओं के लिए काम करती है लेकिन सच्‍चाई यह है कि वे कुछ नहीं करते.
हालांकि जेएनयू प्रशासन द्वारा गठित एक 10 सदस्यीय कमिटी ने कैंपस में महिला सुरक्षा और जागरुकता को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है लेकिन कमिटी के सुझावों पर जेएनयू प्रशासन ने अब तक कोई काम नहीं किया है.



माइक्रोसॉफ्ट ने कहा, आपके Gmail एकाउंट की हर एक ईमेल को पढ़ता है गूगल

माइक्रोसॉफ्ट ने कहा, आपके Gmail एकाउंट की हर एक ईमेल को पढ़ता है गूगल

  लंदन, 6 नवम्बर 2013 | अपडेटेड: 16:15 IST
टैग्स: गूगल| माइक्रोसॉफ्ट| जीमेल| आउटलुक| प्राइवेसी
गूगल
माइक्रोसॉफ्ट ने आरोप लगाया है कि गूगल ईमेल्‍स में ताक झांक कर अपने प्रॉफिट के लिए यूजर्स की निजी जानकारियों का इस्‍तेमाल कर रहा है.सॉफ्टवेयर कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने एक विज्ञापन अभियान चलाया है, जिसके तहत लोगों को सावधान किया जा रहा है कि गूगल विज्ञापनों की खातिर कीवर्ड्ज की स्‍कैनिंग करने के लिए हर उस मेल को पढ़ता है जिसे यूजर्स भेजते हैं.

माइक्रोसॉफ्ट ने अब keepyouremailprivate.com नाम से एक वेबसाइट बनाई है, ताकि लोगों को यह बताया जा सके कि गूगल ईमेल्‍स से कैसे पैसे बना रहा है.
वेबसाइट के मुताबिक, 'गूगल कीवर्ड्ज के लिए हर यूजर के जीमेल एकाउंट से भेजी गईं और इनबॉक्‍स में आईं मेल्‍स में ताक झांक करता है, ताकि वह जीमेल यूजर्स को पेड एड्स के जरिए टारगेट कर सके. और आपकी निजता पर हो रहे इस हमले से बाहर निकलने का कोई तरीका भी नहीं है.'

वेबसाइट ने गूगल की ताक झांक के कुछ उदाहरण भी दिए हैं. एक ईमेल में कोई यूजर अपने दोस्‍त को अपनी बिल्‍ली के बारे में जानकारी दे रहा है और उसके जीमेल एकाउंट में बिल्‍ली से संबंधित विज्ञापन दिखाई दे रहे हैं. वहीं, एक अन्‍य यूजर की ईमेल में एक जगह कैरिबियन शब्‍द का इस्‍तेमाल किया गया था और उसके एकाउंट में हॉलीडे फर्म्स और फ्लाइट से संबंधित विज्ञापन थे.

माइक्रोसॉफ्ट के स्‍ट्रेटजी निर्देशक बिल कॉक्‍स के मुताबिक, 'ब्रिटेन के ज्‍यादातर लोग इस बात से अनजान हैं कि गूगल अपने फायदे के लिए उनकी निजी जानकारियों का इस्‍तेमाल कर रहा है. हमें भी जब गूगल की इस हरकत के बारे में पता चला तो हम भी हक्केबक्‍के रह गए.'
उन्‍होंने कहा कि माइक्रोसॉफ्ट का ईमेल वर्जन Outlook.com यूजर्स की मेल्‍स की जासूसी नहीं करता है.
वहीं, गूगल के प्रवक्‍ता ने कहा, 'जीमेल में पेड विज्ञापनों की प्रक्रिया पूरी तरह से ऑटोमेटिक है. कोई भी इंसान ना तो आपकी ईमेल पढ़ता है और ना ही विज्ञापनों के लिए आपके एकाउंट की जानकारी हासिल की जाती है. इसके साथ ही हम जाति, धर्म, लिंग, स्‍वास्‍थ्‍य और वित्तीय जानकारियों जैसे संवेदनशील मुद्दों पर पेड विज्ञापन नहीं देते हैं.

Tuesday 5 November 2013

आसान नहीं होगा मंगलयान का सफर,इसरो अब आगे आने वाली दो अहम तारीखों का इंतजार कर रहा है

आसान नहीं होगा मंगलयान का सफर,इसरो अब आगे आने वाली दो अहम तारीखों का इंतजार कर रहा है

journey of mars will not be easy
भारत ने मंगल ग्रह के लिए अपने उपग्रह का सफल प्रक्षेपण करने में कामयाबी हासिल कर ली है, लेकिन उसकी अंतर ग्रह यात्रा की यह शुरुआत भर है। आगे उसकी यह यात्रा काफी लंबी और जटिल होगी।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो अब आगे आने वाली दो अहम तारीखों का इंतजार कर रहा है। पहली तारीख है 1 दिसंबर। इस दिन मंगलयान पृथ्वी का प्रभाव क्षेत्र छोड़ देगा।


दूसरी तारीख है, 2014 की 24 सितंबर। इस दिन मंगल की कक्षा इसे अपने दायरे में खींच लेगी। इसरो ने 1 दिसंबर को ट्रांस-मार्स इंजेक्शन देने का फैसला किया है। इससे मंगलयान, लाल ग्रह (मंगल) की लंबी यात्रा पर निकल पड़ेगा। इससे पहले यह 25 दिनों तक पृथ्वी का चक्कर लगाएगा।

इंजेक्शन को बेहद सटीक होना होगा क्योंकि यही तय करेगा कि मंगलयान 24 सितंबर, 2014 को मंगल के गिर्द निर्धारित कक्षा से ( 366 किलोमीटर गुणा 80,000 किलोमीटर) 50 किलोमीटर आगे या पीछे, कहां होगा।

जैसे-जैसे उपग्रह मंगल की कक्षा की ओर बढ़ेगा इसरो वेग में कमी करना शुरू करेगा। इससे मंगल की कक्षा मंगलयान को खुद में जज्ब कर लेगी, अगर वेग ज्यादा रहा तो मंगलयान, मंगल को पार कर जाएगा।

इसरो के चेयरमैन के. राधाकृष्णन ने इस मिशन की पेचीदगियों के बारे में बताते हुए कहा, इस तरह के दुरुह और जटिल मिशन में जिस दिन आप आगे बढ़ते हैं वह आपकी तरक्की मानी जाएगी। पृथ्वी से मंगल तक की यात्रा 300 दिनों की है। इसरो ने आपात स्थिति से निपटने के लिए खुद-ब-खुद काम करने वाले फीचर जोड़े हैं।

मंगलयान के मंगल की ओर बढ़ने के समय पृथ्वी से इसकी दूरी को देखते हुए कोई भी संदेश 20 मिनट देरी से मिलेगा। इसका मतलब यह कि जब पृथ्वी से सिगनल भेजा जाएगा तो यह उपग्रह तक पहुंचने में 20 मिनट लेगा। यानी दूसरी ओर से भी सिगनल पहुंचने में भी 20 मिनट लगेगा।

इस तरह एक संदेश पूरा होने में 40 मिनट का समय लगेगा। इस क्रम में एक समय ऐसा आएगा, जब आप इस बात से अनजान होंगे कि आखिर उपग्रह के साथ क्या हो रहा है। ऐसी स्थिति में उपग्रह के स्वायत्त सिस्टम काम करने लगेंगे। जब तक पृथ्वी से संदेश पहुंचेगा तब तक वह खुद फैसला लेकर काम करता रहेगा।

किसी भी गड़बड़ी की स्थिति में यह उपग्रह अतिरिक्त सिस्टम में स्विच हो जाएगा और सेफ मोड में चला जाएगा। ऐसी स्थिति में इसका एंटीना पृथ्वी की ओर और सोलर पैनल सूरज की ओर मुड़ जाएगा ताकि यह भरपूर ऊर्जा हासिल कर सके।

भारत का मंगल यान पृथ्वी की कक्षा में पहुंचा

भारत का मंगल यान पृथ्वी की कक्षा में पहुंचा

 मंगलवार, 5 नवंबर, 2013 को 15:28 IST तक के समाचार

मंगलयान
मंगलयान के साथ देश के 121 करोड़ लोगों की उम्मीदें जुड़ी हैं.
भारत के बहुप्रतीक्षित मंगलयान का आज़ दोपहर दो बजकर 38 मिनट पर आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपण कर दिया गया.
मंगलयान को पीएसएलवी-सी25 रॉकेट से अंतरिक्ष में भेजा गया है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने उम्मीद जताई है कि 450 करोड़ रुपए के मंगलयान अभियान से मंगल के रहस्यों पर से पर्दा उठाने में मदद मिलेगी.

लांच होने के बाद यह पृथ्वी की कक्षा में स्थापित हो जाएगा और इसके बाद इसके छह इंजन इससे अलग होकर इसे वहां से दो लाख पंद्रह हज़ार किलोमीटर के दूरतम बिंदु पर स्थापित कर देंगे. जहां यह लगभग 25 दिनों तक रहेगा. फिर एक अंतिम तौर पर मंगलयान को 30 नवंबर को अंतरग्रहीय प्रक्षेप वक्र में भेज दिया जाएगा.

मंगल की कक्षा में

उपग्रह को मंगल की कक्षा में जाने के लिए पहले पृथ्वी की कक्षा पार करनी होगी. इसके बाद यह एक दीर्घवृत्ताकार ट्रांसफ़र ऑर्बिट से गुज़रने के बाद मंगल की कक्षा में पहुंच जाएगा.
मंगलयान को अपने मुक़ाम तक पहुंचने के लिए क़रीब तीन सौ दिन का समय लगेगा.
यह उपग्रह मंगल ग्रह के 80 हज़ार किलोमीटर के दायरे में चक्कर काटेगा. भारत के इस मंगलयान में पाँच ख़ास उपकरण मौजूद हैं. इसमें मंगल के बेहद संवेदनशील वातावरण में जीवन की निशानी मीथेन गैस का पता लगाने वाले सेंसर, एक रंगीन कैमरा और मंगल की धरती पर खनिज संपदा का पता लगाने वाले उपकरण मौजूद हैं.
इसरो ने इस यान पर नियंत्रण के लिए बंगलौर के पास डीप स्पेस नेटवर्क स्टेशन बनाया है, जहां से इस यान पर नियंत्रण रखा जाएगा और आँकड़े हासिल किए जाएंगे.
साल 1960 से अब तक 45 मंगल अभियान शुरु किए जा चुके हैं. इसमें से एक तिहाई असफल रहे हैं. अब तक कोई भी देश अपने पहले प्रयास में सफल नहीं हुआ है. हालांकि भारत का दावा है कि उसका मंगल अभियान पिछ्ली आधी सदी में ग्रहों से जुड़े सारे अभियानों में सबसे कम खर्चे वाला है. अगर भारत का मंगल मिशन कामयाब होता है तो भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की यह एक बड़ी उपलब्धि होगी.


मंगल रवाना हुआ ISRO का यान, अंतरिक्ष की दुनिया में भारत का नया चैप्टर


अंतरिक्ष विज्ञान के इतिहास में भारत ने एक नया अध्याय लिख दिया है. आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से मंगलयान लॉन्च कर दिया गया. ऐसा करने वाला भारत तीसरा देश बन गया है.
मंगलवार को जैसे ही घड़ी की सुइयां दोपहर 2 बजकर 39 मिनट पर पहुंचीं, PSLV C-25 मार्स ऑर्बिटर नाम के उपग्रह को लेकर अंतरिक्ष रवाना हो गया. मंगल मिशन को 28 अक्टूबर को ही लॉन्च किया जाना था लेकिन खराब मौसम की वजह से वैज्ञानिकों ने लॉन्चिंग 5 नवंबर तक टाल दी थी.
मंगल मिशन भारत का पहला इंटरप्लेनेटरी मिशन
मंगल मिशन भारत का पहला इंटरप्लेनेटरी मिशन है यानी पहली बार किसी दूसरे ग्रह पर प्रयोग की शुरुआत कर रहा है भारत. मिशन के लिए PSLV-C25 का इस्तेमाल किया गया है यानी ये PSLV का 25वां मिशन है. PSLV-C25 की ऊंचाई 45 मीटर है. जिस उपग्रह को मंगल की कक्षा में स्थापित किया जाएगा उसका नाम है मार्स ऑर्बिटर. 1337 किलो वजन वाले मार्स ऑबिटर सैटेलाइट को लेकर PSLV- C-25 अंतरिक्ष में गया है. आज से 300 दिन बाद यानी सितबंर 2014 में इसे मंगल की कक्षा में स्थापित किया जाएगा और फिर शुरू होगी मंगल की अबूझ पहेलियों को जानने की कोशिश.
कैसा होगा मंगल तक मंगलयान का सफर?
मंगलयान 3 चरणों में मंगल की कक्षा में प्रवेश करेगा. पहले चरण में मंगलयान 4 हफ्ते तक धरती का चक्कर लगाएगा. इस दौरान मंगलयान धीरे-धीरे पृथ्वी की कक्षा से दूर होता जाएगा और फिर मंगलयान का सातवां इंजन इसे मंगल की ओर धकेल देगा. दूसरे चरण में मंगलयान पृथ्वी की कक्षा से बाहर हो जाएगा. तीसरे चरण में 21 सितंबर 2014 को मंगल की कक्षा में प्रवेश करेगा मंगलयान. और फिर इसमें लगी मशीनें मंगल के बारे में जानकारियां भेजने लगेंगी.
अंतरिक्ष विज्ञान में भारत ने लिखा इतिहास
मंगल मिशन के लॉन्च होते ही भारत गिने चुने देशों की कतार में आ खड़ा हो गया. भारत से पहले अमेरिका और रूस भी मंगल के लिए यान भेज चुके हैं. 1960 में रूस ने पहली बार इसके लिए कोशिश की थी और आज अमेरिकी यान मंगल की सतह पर पहुंचकर लाल ग्रह के रहस्यों को बेपर्दा कर रहे हैं. लाल ग्रह के सैकड़ों-हजारों रहस्यों को जानने के लिए दुनिया बरसों से कोशिश करती आ रही है, जिसका इतिहास 1960 तक पीछे जाता है. जब रूस ने दुनिया के पहले मिशन मंगल का आगाज किया, जिसे नाम दिया गया कोराब्ल 4. हालांकि यह मिशन फेल हो गया.
- 1965 में अमेरिका के स्पेसक्राफ्ट मैरिनर 4 ने पहली बार मंगल की तस्वीर धरती पर भेजी और मंगल के लिए ये पहला सफल मिशन साबित हुआ.
- पहली बार 1971 में सोवियत संघ का ऑर्बाइटर लैंडर मार्स 3 यान मंगल पर उतरा.
- 1996 में अमेरिका ने मार्स ग्लोबल सर्वेयर स्पेसक्राफ्ट को लॉन्च किया जो अपने रोबोटिक रोवर के साथ मंगल की सतह पर उतरा.
- 2004 में अमेरिका ने फिर अपने दो रोवरयान स्पिरिट और ऑपरच्यूनिटी को मंगल की सतह पर उतारा.
- 26 नवंबर 2011 में अमेरिका ने क्यूरियोसिटी रोवर को ल़ॉन्च किया, जिसकी 6 अगस्त 2012 में मंगल की सतह पर सफल लैंडिंग हुई.

जब मार्स ऑरबिटर मंगल की कक्षा में घूमना शुरू करेगा तो भारत अंतरिक्ष विज्ञान की चुनौतियों समेत मंगल ग्रह के बारे में ढेरों जानकारियां हासिल होंगी. शायद हमें पता चल पाएगा कि क्या मंगल पर मीथेन गैस है, क्या इस ग्रह के गर्भ में खनिज छिपे हैं, क्या यहां बैक्टीरिया का भी वास है और क्या यहां जिंदगी की संभावनाएं भी हैं. अगर भारत का मार्स ऑर्बाइटर मिशन यानी मंगलयान अपने मकसद में पूरी तरह कामयाब रहता है तो फिर अंतरिक्ष विज्ञान और तकनीक की दुनिया में हिंदुस्तान निश्चित रूप से एक नया मुकाम हासिल कर लेगा.

'Lucky peanuts' wish from Nasa to Isro on Mars mission

sends lucky peanuts to ISRO as good luck for Mars mission Press Trust of India Nov 02, 2013 at 12:36am IST #indian space research organisation #jet propulsion lab #mars mission #nasa 170 It is a 'lucky peanuts' wish from the NASA to Indian Space Research Organisation on its ambitious mission to Mars. As the ISRO geared up for the Mars Orbit Mission (MOM) 'Mangalyaan', NASA wished the Indian space agency with lucky peanuts on its Facebook page, for the MOM scheduled for launch on November 5 from Andhra Pradesh's Sriharikota. The good wishes message titled 'lucky peanuts' was posted on the ISRO's recently created MOM Facebook page, on Thursday, by NASA's Jet Propulsion Lab (JPL). NASA sends lucky peanuts to ISRO as good luck for Mars mission NASA sends lucky peanuts to ISRO as good luck for Mars mission "As you prepare for your launch to Mars, do not forget one of the few, but important action: pass around the peanuts!" a post by JPL on ISRO's MOM Facebook page read. The American NASA/JPL is also providing communications and navigation support to this mission to the Red Planet with their deep space network facilities. Illustrating the tradition of peanuts for Mars Mission at JPL, the post read: "It goes back to the 1960s with the very first missions we sent to the moon. We had seven mission attempts to go the moon before we succeeded, and on the seventh one, they had passed out peanuts in the control room." "Ranger 7, which in July 1964 became the first US space probe to successfully transmit close images of the moon's surface back to the earth, made the peanuts into a tradition at JPL," it added. Stating that ever since, it has been a long standing tradition to hand out peanuts "whenever we launch and whenever we do anything important like land on Mars", the post by JPL read: "We use all the luck we can get!" Giving away another traditional secret to ISRO, followed during the launch that has proved lucky to NASA, the post said "For MSL, (Mars Science Laboratory) we put a label on the jar that says "dare mighty things." "This phrase was taken from Theodore Roosevelt's quote, "Far better it is to dare mighty things, to win glorious triumphs even though checkered by failure, than to rank with those timid spirits who neither enjoy nor suffer much because they live In the grey twilight that knows nether victory nor defeat."" The post greeted ISRO and its Scientist's with slogans "GO MOM!!!" "GOOD LUCK MOM!" "DARE MIGHTY THINGS". ISRO's MOM joined Facebook on October 22 and has received more than 11,850 likes in a short span. To update people with the daily developments about India's Mars Orbit Mission, IRSO has opened the Facebook page. "Our website has daily updates of the developments taking place in the project. Despite this, there were requests from the people and media personnel to have a Facebook page that could give daily updates on the mission," said a senior Institute of Space Research Organisation (ISRO) officer. The officer said many were of the opinion that receiving Facebook updates on their phone and tablets is easier when one does not have access to laptops or desktops to get the information on the mission. He also said this offered a faster means of communication, with wider following than making people visit the website and browse through the web-pages. The Facebook page "ISRO's Mars Orbiter Mission" also has over 12,300 likes and over 10,000 are talking about the misson. The page can also be acessed by visiting ISRO's webiste, if one is not on Facebook. The page not only has updates but also carries informative pieces about the different stages involved in the mission.

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 'Lucky peanuts' wish from Nasa to Isro on Mars mission
#NASA sends #luckypeanuts to #ISRO as good luck for #Marsmission


BANGALORE: It is a "lucky peanuts" wish from the Nasa to Indian Space Research Organization on its ambitious mission to Mars.
As the Isro geared up for the Mars Orbit Mission (MOM) " Mangalyaan", Nasa wished the Indian space agency with "lucky peanuts" on its Facebook page, for the MOM scheduled for launch on November 5 from Andhra Pradesh's Sriharikota.











(The PSLV-C25, which will…)


The good wishes message titled "lucky peanuts" was posted on the Isro's recently created MOM Facebook page on Thursday by Nasa's Jet Propulsion Lab (JPL).
"As you prepare for your launch to Mars, do not forget one of the few, but important action: pass around the peanuts!" a post by JPL on Isro's MOM Facebook page read.
The American Nasa/JPL is also providing communications and navigation support to this mission to the red planet with their deep space network facilities.
Illustrating the tradition of peanuts for Mars Mission at JPL, the post read: "It goes back to the 1960s with the very first missions we sent to the moon. We had seven mission attempts to go the moon before we succeeded, and on the seventh one, they had passed out peanuts in the control room."
"Ranger 7, which in July 1964 became the first US space probe to successfully transmit close images of the moon's surface back to the earth, made the peanuts into a tradition at JPL," it added.
Stating that ever since, it has been a long standing tradition to hand out peanuts "whenever we launch and whenever we do anything important like land on Mars", the post by JPL read: "We use all the luck we can get!"
Giving away another traditional secret to Isro, followed during the launch that has proved lucky to Nasa, the post said "For MSL, (Mars Science Laboratory) we put a label on the jar that says "dare mighty things."
"This phrase was taken from Theodore Roosevelt's quote, "Far better it is to dare mighty things, to win glorious triumphs even though checkered by failure, than to rank with those timid spirits who neither enjoy nor suffer much because they live In the grey twilight that knows nether victory nor defeat.""



Bangalore: 3:25 pm: Mars Orbiter Mission launch has been successful, says ISRO. 3:20 pm: Prime Minister Manmohan Singh and President Pranab Mukherjee congratulate ISRO for successful initiation of Mars Mission and wish for its successful future. ALSO SEE Full coverage: India goes to Mars 2:58 pm: BJP prime ministerial candidate Narendra Modi congratulates ISRO for the launch of Mars Orbiter Mission.

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BREAKING Mars Orbiter Mission launch has been successful, says ISRO ibnlive » Tech

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BREAKING Mars Orbiter Mission launch has been successful, says ISRO ibnlive » Tech

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NASA sends lucky peanuts to ISRO as good luck for Mars mission Press Trust of India Nov 02, 2013 at 12:36am IST #indian space research organisation #jet propulsion lab #mars mission #nasa 170 It is a 'lucky peanuts' wish from the NASA to Indian Space Research Organisation on its ambitious mission to Mars. As the ISRO geared up for the Mars Orbit Mission (MOM) 'Mangalyaan', NASA wished the Indian space agency with lucky peanuts on its Facebook page, for the MOM scheduled for launch on November 5 from Andhra Pradesh's Sriharikota. The good wishes message titled 'lucky peanuts' was posted on the ISRO's recently created MOM Facebook page, on Thursday, by NASA's Jet Propulsion Lab (JPL). NASA sends lucky peanuts to ISRO as good luck for Mars mission NASA sends lucky peanuts to ISRO as good luck for Mars mission "As you prepare for your launch to Mars, do not forget one of the few, but important action: pass around the peanuts!" a post by JPL on ISRO's MOM Facebook page read. The American NASA/JPL is also providing communications and navigation support to this mission to the Red Planet with their deep space network facilities. Illustrating the tradition of peanuts for Mars Mission at JPL, the post read: "It goes back to the 1960s with the very first missions we sent to the moon. We had seven mission attempts to go the moon before we succeeded, and on the seventh one, they had passed out peanuts in the control room." "Ranger 7, which in July 1964 became the first US space probe to successfully transmit close images of the moon's surface back to the earth, made the peanuts into a tradition at JPL," it added. Stating that ever since, it has been a long standing tradition to hand out peanuts "whenever we launch and whenever we do anything important like land on Mars", the post by JPL read: "We use all the luck we can get!" Giving away another traditional secret to ISRO, followed during the launch that has proved lucky to NASA, the post said "For MSL, (Mars Science Laboratory) we put a label on the jar that says "dare mighty things." "This phrase was taken from Theodore Roosevelt's quote, "Far better it is to dare mighty things, to win glorious triumphs even though checkered by failure, than to rank with those timid spirits who neither enjoy nor suffer much because they live In the grey twilight that knows nether victory nor defeat."" The post greeted ISRO and its Scientist's with slogans "GO MOM!!!" "GOOD LUCK MOM!" "DARE MIGHTY THINGS". ISRO's MOM joined Facebook on October 22 and has received more than 11,850 likes in a short span. To update people with the daily developments about India's Mars Orbit Mission, IRSO has opened the Facebook page. "Our website has daily updates of the developments taking place in the project. Despite this, there were requests from the people and media personnel to have a Facebook page that could give daily updates on the mission," said a senior Institute of Space Research Organisation (ISRO) officer. The officer said many were of the opinion that receiving Facebook updates on their phone and tablets is easier when one does not have access to laptops or desktops to get the information on the mission. He also said this offered a faster means of communication, with wider following than making people visit the website and browse through the web-pages. The Facebook page "ISRO's Mars Orbiter Mission" also has over 12,300 likes and over 10,000 are talking about the misson. The page can also be acessed by visiting ISRO's webiste, if one is not on Facebook. The page not only has updates but also carries informative pieces about the different stages involved in the mission.

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NASA sends lucky peanuts to ISRO as good luck for Mars mission Press Trust of India Nov 02, 2013 at 12:36am IST #indian space research organisation #jet propulsion lab #mars mission #nasa 170 It is a 'lucky peanuts' wish from the NASA to Indian Space Research Organisation on its ambitious mission to Mars. As the ISRO geared up for the Mars Orbit Mission (MOM) 'Mangalyaan', NASA wished the Indian space agency with lucky peanuts on its Facebook page, for the MOM scheduled for launch on November 5 from Andhra Pradesh's Sriharikota. The good wishes message titled 'lucky peanuts' was posted on the ISRO's recently created MOM Facebook page, on Thursday, by NASA's Jet Propulsion Lab (JPL). NASA sends lucky peanuts to ISRO as good luck for Mars mission NASA sends lucky peanuts to ISRO as good luck for Mars mission "As you prepare for your launch to Mars, do not forget one of the few, but important action: pass around the peanuts!" a post by JPL on ISRO's MOM Facebook page read. The American NASA/JPL is also providing communications and navigation support to this mission to the Red Planet with their deep space network facilities. Illustrating the tradition of peanuts for Mars Mission at JPL, the post read: "It goes back to the 1960s with the very first missions we sent to the moon. We had seven mission attempts to go the moon before we succeeded, and on the seventh one, they had passed out peanuts in the control room." "Ranger 7, which in July 1964 became the first US space probe to successfully transmit close images of the moon's surface back to the earth, made the peanuts into a tradition at JPL," it added. Stating that ever since, it has been a long standing tradition to hand out peanuts "whenever we launch and whenever we do anything important like land on Mars", the post by JPL read: "We use all the luck we can get!" Giving away another traditional secret to ISRO, followed during the launch that has proved lucky to NASA, the post said "For MSL, (Mars Science Laboratory) we put a label on the jar that says "dare mighty things." "This phrase was taken from Theodore Roosevelt's quote, "Far better it is to dare mighty things, to win glorious triumphs even though checkered by failure, than to rank with those timid spirits who neither enjoy nor suffer much because they live In the grey twilight that knows nether victory nor defeat."" The post greeted ISRO and its Scientist's with slogans "GO MOM!!!" "GOOD LUCK MOM!" "DARE MIGHTY THINGS". ISRO's MOM joined Facebook on October 22 and has received more than 11,850 likes in a short span. To update people with the daily developments about India's Mars Orbit Mission, IRSO has opened the Facebook page. "Our website has daily updates of the developments taking place in the project. Despite this, there were requests from the people and media personnel to have a Facebook page that could give daily updates on the mission," said a senior Institute of Space Research Organisation (ISRO) officer. The officer said many were of the opinion that receiving Facebook updates on their phone and tablets is easier when one does not have access to laptops or desktops to get the information on the mission. He also said this offered a faster means of communication, with wider following than making people visit the website and browse through the web-pages. The Facebook page "ISRO's Mars Orbiter Mission" also has over 12,300 likes and over 10,000 are talking about the misson. The page can also be acessed by visiting ISRO's webiste, if one is not on Facebook. The page not only has updates but also carries informative pieces about the different stages involved in the mission.

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Monday 4 November 2013

सऊदी अरब में अवैध अप्रवासी कामगारों की धरपकड़ :(

सऊदी अरब में अवैध अप्रवासी कामगारों की धरपकड़ :(

 मंगलवार, 5 नवंबर, 2013 को 05:54 IST तक के समाचार

सऊदी अप्रवासी मज़दूर
सऊदी अरब में रोजगार के क्लिक करें नए नियम लागू होने के बाद लागू की गई आम माफ़ी की अवधि समाप्त हो जाने के बाद प्रशासन अवैध रूप से रह रहे अप्रवासी कामगारों की धरपकड़ कर रहा है.
पिछले तीन महीनों में करीब दस लाख बांग्लादेशी, क्लिक करें भारतीय, नेपाली, पाकिस्तानी, यमनी और अन्य देशों से आए अप्रवासी सऊदी अरब छोड़कर जा चुके हैं.
रविवार को समय सीमा समाप्त होने से पहले करीब चालीस लाख कामगारों ने सऊदी अरब में काम करने का परमिट हासिल किया.
इंडोनेशिया के अधिकारियों के मुताबिक करीब चार हज़ार इंडोनेशियाई नागरिक जेद्दा में हिरासत में रखे गए हैं. ये लोग प्रत्यर्पण का इंतज़ार कर रहे हैं.
ये लोग एक अपना सारा सामान लेकर एक फ्लाईओवर के नीचे इकट्ठा हो गए और खुद को प्रशासन के हवाले कर दिया.

आधी कामगार आबादी

एक अनुमान के मुताबिक सऊदी अरब में करीब 90 लाख अप्रवासी कामगार रहते हैं. ये सऊदी अरब में कार्यरत कुल लोगों की आधी संख्या के बराबर हैं. अप्रवासी कामगार सऊदी अरब के दफ़्तरों और उद्योगों में कार्यरत हैं तथा मज़दूरी भी करते हैं.
अरब देशों में सऊदी अरब सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. लेकिन सऊदी नागरिकों में बेरोजगारी की दर 12 प्रतिशत है और प्रशासन अब इसे कम करने की कोशिशें कर रहा है.
सरकार ने पहले कहा था कि यदि कोई अवैध प्रवासी पकड़ा जाता है तो उसे क़ैद, जुर्माना हो सकता है या उसे वापस भी भेजा जा सकता है.
"मुझे कर्ज़ चुकाने के लिए अपनी कार और घर बेचना पड़ा. सबकुछ इतनी जल्दी हुआ है कि मैं इस बदलाव के लिए तैयार भी नहीं था, कभी-कभी मुझे आत्महत्या का भी ख्याल आता है."
सऊदी अरब से भारत लौटे स्वामीनाथन
हुकूमत ने कहा है कि क़ानून का उलंघन करने वाली कंपनियों पर भी जुर्माना लगाया जाएगा.
सऊदी अरब के उपश्रम मंत्री मिफ़रिज़ अल हक़बानी ने बीबीसी अरबी रेडियो के कार्यक्रम में कहा, "श्रम मंत्रालय ने उन कंपनियों की पहचान कर ली है जो श्रम क़ानूनों का उल्लंघन कर रही हैं. ये वे कंपनियां हैं जिनके कामगारों के पास कराम करने का परमिट नहीं है और वो बिना परमिट के लोगों को काम दे रही हैं. हम कंपनियों में जाकर कामगारों के दस्तावेज़ों का निरीक्षण करते हैं."

भारत पर असर

नए श्रम क़ानूनों का भारत के अप्रवासी कामगारों पर व्यापक असर पड़ रहा है. सऊदी अरब में बीस लाख से अधिक अप्रवासी भारतीय काम करते हैं. इनमें से करीब एक लाख लोग अवैध रूप से सऊदी अरब में थे.
सऊदी अरब में भारत के दूतावास के मुताबिक रविवार को समयसीमा समाप्त होने से पहले अवैध रूप से रह रहे 95 प्रतिशत भारतीय प्रवासी वापस लौट चुके हैं.
इंडोनेशियाई अप्रवासी कामगार
इंडोनेशिया के अप्रवासी कामगरों ने खुद को प्रशासन के हवाले कर दिया.
भारतीय दूतावास ने दम्माम के तहरील में नागरिकों की मदद के लिए हेल्पलाइन भी शुरू की है. दूतावास के मुताबिक अब तक दस लाख से ज़्यादा अप्रवासी भारतीय सऊदी में रहने के लिए दी गई रियायतों का फ़ायदा उठाकर अपने दस्तावेज़ ठीक करवा चुके हैं.
सऊदी अरब से भारत लौटने वालों में एक स्वामीनाथन ने कहा, "मुझे कर्ज़ चुकाने के लिए अपनी कार और घर बेचना पड़ा. सबकुछ इतनी जल्दी हुआ है कि मैं इस बदलाव के लिए तैयार भी नहीं था, कभी-कभी मुझे आत्महत्या का भी ख्याल आता है."
अप्रवासी कामगारों की वापसी का असर भारत की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा. विदेशों में रह रहे भारतीयों ने पिछले साल करीब 70 अरब डॉलर भारत भेजे थे.

शोषण

मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने सऊदी अरब की श्रम प्रणाली की आलोचना करते हुए कहा है कि यहाँ कामगारों का शोषण किया जाता है.
ह्यूमन राइट्स वॉच के मुताबिक, "सऊदी अरब में लागू कफ़ाला प्रणाली के तहत कामगार ज़मानत देने वाली कंपनी यानी जो उसे लेकर जाता है उसके साथ बंध जाता है. कामगार को नौकरी बदलने या देश छोड़कर जाने के लिए उसकी अनुमति की ज़रूरत होती है. जिसका स्पॉनसर ग़लत इस्तेमाल करते हैं और कामगार के पासपोर्ट और वीज़ा को अपने पास जब्त कर लेते हैं. अप्रवासियों से जबरदस्ती काम करवाया जाता है और उनकी तनख्वाह भी रोक ली जाती है."

क़ानून जो छीन रहा है लोगों की रोटी


खाड़ी से बेरोजगार होकर लौटे चंद्रन अपने परिवार के साथ.
क्लिक करें सऊदी अरब में तकरीबन 20 लाख भारतीय काम करते हैं और इनमें से एक बड़ा तबका ऐसा है जो छोटे मोटे काम करने वाले श्रमिकों की श्रेणी में आता हैं.
लेकिन अब सऊदी अरब ने अपने देश में नए श्रम क़ानून को लागू कर दिया है.
नए 'निताकत क़ानून ' यानी कि श्रम क्लिक करें क़ानून के मुताबिक सऊदी अरब से संचालित हर कंपनी में कम से कम 10 प्रतिशत कर्मचारी स्थानीय नागरिक होने चाहिए.
इस नए क़ानून के चलते कई क्लिक करें भारतीयों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ रहा है.
सऊदी अरब की सरकार ने नए काननों को क्लिक करें कड़ाई से लागू करना शुरू कर दिया है जिसकी वजह से हज़ारों की तादाद में भारतीय नागरिक सऊदी अरब से निकलकर वापस आने को मजबूर हो रहे हैं.

चंद्रन की कहानी

सऊदी अरब के नए कानून का सीधा असर केरल की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है.
क्लिक करें केरल के मालाबार के क्लिक करें इलाके में रहने वाले चंद्रन बीस सालों तक रियाद में वेल्डर का काम करते थे. मगर अब वो बेरोज़गार हैं.
नए क़ानून के लागू होने के बाद उन्हें वापस भेज दिया गया है. चंद्रन को मलाल है कि अपनी इकलौती बेटी के भविष्य के लिए कुछ भी जोड़ नहीं पाए हैं.
केरल के मलाबार के तट पर पिछले कुछ महीनों से ऐसी कहानियों का सैलाब सा आ गया है.
चंद्रन रोज़ रोज़गार की तलाश में निकलते हैं. मगर उन्हें अपने जिले मल्लापुरम में काम नहीं मिल रहा है. चंद्रन का तनाव बढ़ता जा रहा है.
बीबीसी से बात करते हुए चंद्रन कहते हैं, "मैं बीस सालों से सऊदी अरब में काम कर रहा था. मुझे अब वापस भेज दिया गया है. मेरे पास न तो घर है और न पूँजी. यहाँ मेरी बीवी और बेटी किराए के मकान में रहते हैं. मैं अब क्लिक करें बेरोज़गार हूँ. यहाँ काम करने की कोशिश की, मगर काम नहीं मिल रहा है. मुझे समझ नहीं आ रहा कि अब क्या करूं."

जिम्मेदारी किसकी?

अब्दुल रज्जाक
अब्दुल केरल में नई नौकरी की तलाश में भटक रहे हैं.
लेकिन लौटना उतना आसान भी नहीं है क्योंकि सऊदी अरब में काम कर रहे कई भारतीयों के पास वैध वीज़ा नहीं है.
सऊदी सरकार ने भारतीय कामगारों को तीन जुलाई तक देश छोड़ने को कहा है.
इस अवधि के बाद जो लोग वहां काम करते पाए जाएंगे, उन्हें क्लिक करें जेल भेज दिया जाएगा.
मलयाली अख़बारों के स्तम्भकार सीके अब्दुल अज़ीज़ कहते हैं, "भारत सरकार और सऊदी अरब में मौजूद भारतीय उच्चायोग ग़ैर ज़िम्मेदाराना रवैया अपनाए हुए है."
वो कहते हैं, "कौन वहां काम कर रहे भारतीय कामगारों के लिए जवाबदेह है ? ज़ाहिर है इन हमारी सरकार. मगर वो अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं. कई कामगारों को सही वीज़ा नहीं होने की वजह से जेल में डाल दिया गया है. मगर वो अब वहां से वापस कैसे लौटेंगे. उनके टिकट कौन देगा. इस बात पर भारत सरकार ने अभी तक अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है."

सऊदी सरकार की चेकिंग

केएनए खादर
सत्तारूढ़ गठबंधन के प्रवक्ता खादर के मुताबिक सरकार इस दिशा में कोशिश कर रही है.
मल्लाप्पुरम के ही रहने वाले अब्दुल रज्ज़ाक भी मदीना के एक अस्पताल में एक्स-रे टेक्नीशियन थे. अब उनकी जगह सऊदी नागरिक ने ले ली है.
उन्हें भी 15 सालों की नौकरी के बाद अचानक भारत वापस भेज दिया गया है.
पन्नीगंगरा गाँव में अपने पिता के घर पर वो इस सोच में डूबे रहते हैं कि अब वो क्या करेंगे. केरल में रोज़गार के ज्यादा अवसर नहीं हैं.
बातों बातों में वो कहते हैं, "वहां सऊदी सरकार की जाँच चल रही है. सब काम करने वाले लोगों के लाइसेंस चेक किये जा रहे हैं. हमारे पदों पर सऊदी नागरिकों को रख लिया गया है. अब यहाँ मैं नौकरी ढूंढ रहा हूँ मगर ये उतना भी आसान नहीं है. मेरे पास ज्यादा पैसे जमा नहीं हैं. परिवार के सारे लोग बहुत उदास है क्योंकि मैं वापस आ गया हूँ."
रज्ज़ाक का कहना है कि उन्होंने वापस लौटकर अपने जिले के कई अस्पतालों में आवेदन दिया है. मगर कहीं से उन्हें कोई बुलावा नहीं आया है.

सरकारी की परेशानियां

सऊदी अरब से अब तक सात हज़ार लोग वापस भेजे भी जा चुके हैं. जिनमे से सबसे ज्यादा मालाबार के इलाके के लोग हैं.
देश के दूसरे राज्य मसलन बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में भी सऊदी अरब से कामगारों के लौटने का सिलसिला शुरू हो गया है.
बड़ी तादाद में कामगारों की वापसी ने केरल की सरकार की परेशानियां बढ़ा दी हैं.
"ये मामला काफी गंभीर है. जिन लोगों को जेल में भरा जा रहा है, उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है. सिर्फ वीज़ा की शर्तों का उल्लंघन हुआ है. केरल की सरकार ऐसे कामगारों की रिहाई के लिए सऊदी अरब पर दबाव डाल रही है."
केएनए खादर, सत्तारूढ़ गठबंधन के प्रवक्ता
राज्य सरकार का दावा है कि वो वापस लौटे कामगारों की मदद की हर मुमकिन कोशिश कर रही है.
केरल की यूडीएफ़ गठबंधन के प्रवक्ता केएनए ख़ादर मानते हैं कि इतने बड़े पैमाने पर सऊदी अरब से कामगारों की वापसी ने राज्य के सामने बड़ी समस्या खड़ी कर दी है.
सरकार के सामने उससे बड़ी चिंता है कि श्रम क़ानून के उल्लंघन के आरोप में सऊदी अरब की जेलों में भरे जा रहे भारतीय कामगार.
खादर का कहना है, "ये मामला काफी गंभीर है. जिन लोगों को जेल में भरा जा रहा है, उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है. सिर्फ वीज़ा की शर्तों का उल्लंघन हुआ है. केरल की सरकार ऐसे कामगारों की रिहाई के लिए सऊदी अरब पर दबाव डाल रही है."
केरल के एक बड़े इलाक़े की अर्थव्यवस्था खाड़ी में नौकरियों पर निर्भर है.
इस राज्य में हज़ारों लोगों का सपना अरब सागर के उस पार जाकर पैसे कमाने का होता है लेकिन सऊदी अरब के नए निताकात क़ानून के बाद अब ये ख़्वाब बिखरता हुआ नज़र आ रहा है.

क्या कामयाब होगा भारत का मंगल अभियान?

क्या कामयाब होगा भारत का मंगल अभियान?

 मंगलवार, 5 नवंबर, 2013 को 07:58 IST तक के समाचार

मंगल मिशन
बंगलुरू के 500 से अधिक वैज्ञानिक 10 करोड़ डॉलर के मंगल अभियान पर दिन रात काम कर रहे हैं
इसरो के अंतरिक्ष कार्यक्रम के तहत भारत मंगलवार को अपना यान मंगल ग्रह पर भेज रहा है. भारत का यह मंगल अभियान वहां जीवन की तलाश करेगा.
साथ ही ये भी जानने की कोशिश होगी कि वहां वायुमण्डल का ख़ात्मा किस तरह से हुआ.
इस कार्यक्रम पर चर्चा के साथ ही एक बहस भी छिड़ गई है. कोई इसे अंतरिक्ष कार्यक्रम के क्षेत्र में भारत की ऊंची छलांग मान रहा है तो कोई संभ्रांत तबक़े का भ्रामक अभियान मात्र. सवाल है कि यह अभियान भारत और दुनिया के लिए क्या मायने रखता है?
हालांकि मंगल ग्रह पर एक छोटा मानवरहित उपग्रह भेजे जाने को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है.
अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा तो भारत सफल मंगल मिशन शुरू करने वाले चंद देशों में शामिल हो जाएगा. ऐसा होने पर भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो अमरीका, रूस और यूरोपीय यूनियन की अंतरिक्ष एजेंसी के बाद चौथी ऐसी एजेंसी बन जाएगी जो मंगल पर यान भेजने में कामयाब होगी.

10 करोड़ डॉलर का मिशन

भारत का 1350 किग्रा का रोबोटिक उपग्रह लाल ग्रह की 2000 लाख किलोमीटर की 10 महीने की यात्रा पर रवाना होगा. इसमें पांच ख़ास उपकरण मौजूद हैं जो मंगल ग्रह के बारे में अहम जानकारियां जुटाने का काम करेंगे.
मंगल मिशन
भारत का मंगलयान उपग्रह. बाएं से दाएं पल्लव बागला और इसरो प्रमुख के राधाकृष्णन
इसमें वायुमंडल में जीवन की निशानी और मीथेन गैस का पता लगाने वाले सेंसर, एक रंगीन कैमरा और ग्रह की सतह और खनिज संपदा का पता लगाने वाला थर्मल इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर जैसे उपकरण शामिल हैं.
साल 2008 में चंद्रमा से जुड़ा भारत का मानवरहित चंद्रयान अभियान बेहद सफल रहा था. इस अभियान से ही चांद पर पानी की मौजूदगी का पहला पुख़्ता प्रमाण मिला था.
भारतीय उपग्रह संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के राधाकृष्णन का कहना है कि साल 2008 के उस अभियान के बाद भारत का मंगल अभियान (मार्स मिशन) अब अपनी स्वाभाविक गति से आगे बढ़ रहा है.
इसरो के लिए काम करने वाले बंगलुरू के 500 से अधिक वैज्ञानिकों ने इस 10 करोड़ डॉलर अभियान पर दिन रात काम किया है. मंगल अभियान की औपचारिक घोषणा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पिछले साल अगस्त में ही कर दी थी कि भारत लाल ग्रह पर एक अंतरिक्ष यान भेजेगा.
"मैं पिछले 15 महीनों से लगातार काम कर रहा हूं. इस बीच मैंने एक दिन की भी छुट्टी नहीं ली है. बंगलुरू के इसरो सैटेलाइट सेंटर में ही सो जाता हूं. "
सुब्बा अरुणनः परियोजना प्रमुख

एशियाई देशों के बीच अंतरिक्ष दौड़

परियोजना प्रमुख सुब्बा अरुणन बताते हैं कि वे पिछले 15 महीनों से मंगल मिशन के लिए लगातार काम कर रहे हैं, इस बीच उन्होंने एक दिन की भी छुट्टी नहीं ली है. यहां तक की वो बंगलुरू स्थित इसरो सैटेलाइट सेंटर में ही सोते हैं.
वे कहते हैं कि घर केवल 'एक या दो घंटा' के लिए ही जाना हो पाता है.
कहीं भारत का मंगल अभियान एशियाई देशों के बीच एक नए अंतरिक्ष दौड़ या कहें, होड़ की शुरूआत तो नहीं है?
भारत मंगल अभियान को अपने प्रतिद्वंदी चीन को ग्रह तक पहुंचने की दौड़ में पीछे छोड़ देने के एक अवसर के रूप में देखता आया है, ख़ासकर तब जब मंगल जाने वाला पहला चीनी उपग्रह 'राइडिंग ऑन अ रशियन मिशन', 2011 के नवंबर में असफल हो गया था. जापान का साल 1998 का ऐसा ही प्रयास विफल रहा था.

वैज्ञानिक उद्देश्य

मंगल मिशन
साल 1960 से अब तक लगभग 45 मंगल अभियान शुरू किए जा चुके हैं.
चीन ने अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत को लगभग हर तरीक़े से पछाड़ रखा है. चीन के पास ऐसा रॉकेट है जो भारत के रॉकेट के मुक़ाबले चार गुना ज़्यादा वज़न उठा सकता है.
"भारत का मंगल मिशन सुपरपावर बनने के उसके भ्रामक खोज को पूरा करने वाले मिशन का हिस्सा है."
ज्यां द्रेजः अर्थशास्त्री और कार्यकर्ता
इसी तरह साल 2003 में, चीन अपना पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष यान सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर चुका है, जो भारत के लिए अब तक अछूता रहा है. चीन ने साल 2007 में अपना पहला चंद्र अभियान शुरू किया था. इस मामले में भी वह भारत से आगे है.
साल 1960 से अब तक लगभग 45 मंगल अभियान शुरू किए जा चुके हैं. और इनमें से एक तिहाई असफल रहे हैं.
हालांकि भारत का दावा है कि उसका मंगल अभियान पिछली आधी सदी में ग्रहों से जुड़े सारे अभियानों में सबसे कम ख़र्चे वाला है. मगर कुछ लोग ने इसके वैज्ञानिक उद्देश्य पर सवाल उठ रहे हैं.
दिल्ली साइंस फ़ोरम नामक थिंक टैंक के डॉ. रघुनंदन का कहना है, "यह अभियान उच्च गुणवत्ता वाला नहीं है. विज्ञान से जुड़े इसके उद्देश्य भी सीमित हैं."
मंगल अभियान इसरो
तो दूसरी ओर अर्थशास्त्री-कार्यकर्ता ज्यां द्रेज़ ने कहा कि यह अभियान "सुपरपावर बनने के भारत के भ्रामक खोज को पूरा करने वाले मिशन का हिस्सा है."
इन बातों को ख़ारिज़ करते हुए एक बड़े सरकारी अधिकारी का कहना है, "हम 1960 के दशक से ही सुनते आ रहे हैं कि भारत जैसे ग़रीब देश को अंतरिक्ष अभियानों की ज़रूरत ही नहीं है."
वे आगे कहते हैं, "अगर हम बड़े सपने देखने की हिम्मत नहीं करेंगे तो बस मज़दूर ही बने रह जाएंगे. भारत आज इतना विशाल देश है कि उच्च तकनीक उसके लिए बेहद ज़रूरी है."
'मार्स एक्सप्रेस' के अलावा जिसे यूरोप के 20 देशों का प्रतिनिधित्व हासिल है, कोई भी देश पहली बार में मंगल अभियान में सफल नहीं रहा है


'देश को जोड़ने के लिए था अंतरिक्ष कार्यक्रम'

 गुरुवार, 31 अक्तूबर, 2013 को 07:41 IST तक के समाचार

भारत, अंतरिक्ष, कार्यक्रम
भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में हर तरह के लोग शामिल रहे हैं.
जब अंतरिक्ष विभाग में ये चर्चा हो रही थी कि मंगल ग्रह वग़ैरह की बात करें या नहीं तो वहां जो इंजीनियर दोस्त हैं उनका कहना था कि हम तंग आ गए हैं, रोज़-रोज़ वही ट्रांसपॉन्डर, उपग्रह बना कर. कब तक ये करते रहेंगे. ये वो लोग हैं जो नई चीज़ें करते हैं और जिन्हें नई चीज़ें करने में मज़ा आता है.
वो बहुत उत्साही लोग हैं और इंजीनियर जो काम कर सकते हैं वो है धरती की इस हलचल से दूर जाना, कहीं और की यात्रा करना. ऐसे लोग निश्चित तौर पर हैं.
मेरी ख़ास दिलचस्पी अंतरिक्ष में इस वजह से थी कि मैं खगोल विज्ञान में दिलचस्पी रखता था.

कॉस्मिक किरणों में मेरी बहुत दिलचस्पी थी. मेरी तरह ही कॉस्मिक किरणों में दिलचस्पी रखने वालों में एक व्यक्ति थे विक्रम साराभाई.

'साराभाई का सपना'

एपीजे अब्दुल कलाम
भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम इसरो से लंबे समय तक जुड़े रहे.
वो बड़े सपने देखने वालों में से थे. वो बहुत महान आदमी थे. उन्होंने अहमदाबाद में फ़िज़िकल रिसर्च लैबोरेट्री की स्थापना की.
हम कॉस्मिक किरणों पर बात करते थे. वो हमारी पीढ़ी के उन लोगों में से थे जो देश के लिए नए काम करने में यक़ीन रखते थे.
उन्हें एक चीज़ सूझी कि हम उपग्रह भेजेंगे, क्योंकि हम कॉस्मिक किरणों का अध्ययन करते हैं तो उपकरणों को बलून से बांध कर अंतरिक्ष में भेजते हैं. अंतरिक्ष में जाने पर हम कॉस्मिक किरणों का अध्ययन बेहतर कर सकते हैं.
जब मैं बलून से उपकरणों को भेजता हूं तो वो 1-2 हज़ार फ़ीट तक जा सकते हैं, वातावरण से ऊपर जा सकते हैं और धरती को देख सकते हैं लेकिन अगर मैं अंतरिक्ष में जाऊं तो न सिर्फ़ धरती के बड़े हिस्से को देख सकता हूं बल्कि बाहरी ग्रहों को भी देख सकता हूं.
फिर आप सोचते हैं कि आप बाहर हैं और रेडियो है तो सिग्नल दुनिया के बड़े हिस्से तक पहुंच सकते हैं. लेकिन उपग्रह हो तो धरती के चारों ओर घूमेंगे और उन्हें अगर इक्वेटर पर सही ऊंचाई पर रखा जाए तो ये स्टेशनरी होंगे.

साराभाई ये समझते थे. हम अक्सर इस के बारे में बात करते थे. उन्होंने मुझसे कहा कि तुम जानते हो कि हम संचार के लिए क्या कर सकते हैं. हम पूरे भारत को एक साथ जोड़ सकते हैं.

'अंतरिक्ष से भारत एक होगा'

ये सोचा नहीं लोगों ने कि भारत को एक करने के लिए अंतरिक्ष में जाना ज़रूरी है. वहां से सिग्नल ब्रॉडकास्ट करेंगे तो सारे भारत में एक साथ पहुंच जाएगा.
फिर जो मेरे जैसे लोग होते हैं वो कहते हैं कि शिक्षा में भी इसका इस्तेमाल हो सकता है क्योंकि शिक्षा वो नहीं है कि लोग आपकी बात सुनते रहें, शिक्षा तो वो भी है कि आप लोगों से बात कर सकें.
विक्रम साराभाई
विक्रम साराभाई को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक माना जाता है.
शुरू में ही जो बड़ा प्रोजेक्ट था तो साराभाई के मन में आता था कि ऐसा करना चाहिए. सब लोग कहते थे कि कैसे करें, हमारे पास सामान ही नहीं, तो वो कहते थे कि कुछ दोस्त हैं उनके साथ मिल कर करेंगे.
वो अच्छे वैज्ञानिक भी थे और रोमांटिक भी थे. हम लोग बात करते थे कि बड़ा मज़ा आएगा. कृषि के विकास के लिए, लोगों से बात करने के लिए इस्तेमाल कर सकेंगे.
एक बार उनके मन में आया कि अंतरिक्ष कार्यक्रम होना चाहिए. मैं अंदाज़ा लगा रहा हूं कि ऐसा हुआ होगा क्योंकि साराभाई दोस्ताना शख़्सियत के आदमी थे और प्रधानमंत्री से मिले होंगे.
प्रधानमंत्री से उन्होंने कहा कि कितना अच्छा हो अगर हम एक ऐसा एंटीना बना सकें कि पूरे देश से बात कर सकें. और हम देख सकें कि तूफ़ान आने वाला है तो किधर जाएगा. बरसात कितनी होगी, कहां होगी.
इंदिरा जी ने उनसे कहा कि कैसे करोगे. उन्होंने कहा कि एक उपग्रह हुआ तो उसके ज़रिए कभी तो हो सकता है.

नए प्रयोग

इंदिरा जी ने कहा कि किसी के पास है ऐसा सैटेलाइट. साराभाई ने कहा कि नहीं है. वो भी बनाएंगे, हम भी बनाएंगे. वो भी सीखेंगे, हम भी सीखेंगे.
तो बाद में साराभाई ने अपने दोस्तों से जाकर कहा कि छोटा सा प्रोजेक्ट है, श्रीमति गांधी ज़रा मान जाएं तो. दोस्तों ने पूछा क्या है. उन्होंने कहा कि अमरीकी दोस्त हैं जो प्रायोगिक सैटेलाइट बना रहे हैं.
कोशिश कर रहे हैं कि क्या सैटेलाइट से ब्रॉडकास्ट कर सकते हैं, अभी तक किसी ने किया नहीं है. टेलीविज़न सिग्नल ब्रॉडकास्ट कर सकते हैं क्या.
सतीश धवन, कलाम
सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल के विकास में कलाम (बाएं) का अहम योगदान था.
मैं प्रस्ताव दे देता हूं अपने दोस्तों को कि आपके सैटेलाइट में एक ट्रांसपॉन्डर लगाएंगे. ये वो वक़्त था कि साराभाई ने श्रीमति गांधी को उत्साहित कर दिया.
इंदिरा जी ने साराभाई से पूछा कि महंगा तो नहीं है, उन्होंने कहा नहीं 20-30 करोड़ से 50 करोड़ रुपए लगेंगे. इंदिरा जी ने कहा उतना तो हो सकता है.
उस प्रयोग को मंज़ूरी मिली. हमारा नासा से क़रार हुआ. क़रार ये था कि ग्राउंड सिस्टम हम बनाएंगे और टेस्ट करेंगे एक साथ.
बाद में आकलन करेंगे. और प्रोग्राम बनाएंगे, लोगों से बात करेंगे. काम शुरू हुआ ही था कि साराभाई की मौत हो गई. बहुत कम उम्र में वो चल बसे.
सतीश धवन से कहा गया कि वो इसरो का काम संभालें. एक मीटिंग में वो मेरा हाथ पकड़कर बोले कि यार आना इधर.

कॉलेज की इमारत से काम

ये प्रोग्राम करना है तो एप्लीकेशंस भी होना चाहिए. एक एप्लीकेशंस सेंटर भी बनाना पड़ेगा. तुम टीआईएफ़आर से पांच साल की छुट्टी ले लो.
मैंने कहा कि यार मेरा काम बढ़िया चल रहा है. मुझसे कहते हैं कि ऐसा काम फिर कौन करेगा. तुम्हें अहमदाबाद में रहना होगा, तुम अहमदाबाद आ जाओ.
हमने अहमदाबाद में एक कॉलेज की ऊपरी मंजिल में स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (सैक) शुरू किया. नासा से बातचीत करने की ज़िम्मेदारी थी, अर्थ स्टेशन, रिसीविंग स्टेशन, लो नॉइज़ एम्पीफ़ायर भी बनाने थे.
एक वक्त ऐसा था कि 800-900 इंजीनियर थे. तीन-चार समाजशास्त्री भी आ गए. उन्हें ये देखना था कि कैसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं, क्या करते हैं.
सतीश धवन
विक्रम साराभाई के निधन के बाद सतीश धवन ने अंतरिक्ष कार्यक्रम को बखूबी संभाला.
एक क़िस्म के नए विषयों पर बात हुई जिन पर पहले सोच नहीं सकते थे. ज़्यादा वक्त था नहीं, दो-तीन साल में सब शुरू करना था.
बाद में ये कार्यक्रम चला, सफल हुआ. समझ आने लगा कि इसका कुछ फ़ायदा होगा. दुनिया में कहीं भी सैटेलाइट ब्रॉडकास्टिंग नहीं था, अमरीका में भी नहीं था.
लोग कहते थे कि पागल हो क्या ऐसे मुल्क में कर रहे हो. ऐसे लोगों से साराभाई का कहना होता था कि देखिए इसकी ज़रूरत सबसे ज़्यादा हम को है. हमारे दूरदराज़ के इलाक़ों में संपर्क साधने का कोई ज़रिया नहीं है. हम कर पाएं तो उसका कितना फ़ायदा होगा.

'तकनीकी रूप से सफल'

किस तरह से काम हुआ, क्या सीखा उस दौरान उसकी तो कहानी बहुत लंबी है. कार्यक्रम बनाने थे तो तय हुआ कि दूरदर्शन ही बना सकता है.
हमने कहा कि कार्यक्रम तो बनाने हैं क्योंकि हमें दिलचस्पी है. बच्चों के लिए विज्ञान के कार्यक्रम बनाने थे. उन्होंने कहा कि तुम्हें बनाने होंगे ऐसे कार्यक्रम, हमें तो पता नहीं है.
फिर हमने बहुत सारे लोगों से कहा कि एक महीने सिर्फ़ यही लिखो कि क्या कार्यक्रम बनाएंगे. एफ़टीआईआई से आई प्रोड्यूसरों की नई पौध को उत्साहित किया कि ऐसे कार्यक्रम बनाने हैं.
टीआईएफ़आर के वैज्ञानिकों को लेकर दोनों की टीम बनाई. दोस्तों को चिट्ठी लिखकर पूछा कि प्रोग्राम कैसे बनाएं. एमआईटी के प्रोफ़ेसर फ़िलिप मॉरीसन ने मदद की.
अहमदाबाद में स्टूडियो क्या किसी ने टेलीविज़न तक नहीं देखा था. मुंबई में प्रोग्राम बनाने थे.
मैंने बीएमसी की मुख्य शिक्षाधिकारी माधुरी शाह को फ़ोन कर के कहा कि हमें एक कमरा ही दे दो. मैंने उनके साथ काम किया था तो उन्होंने कहा कि यश तुम्हारे लिए सब कर सकते हैं. उसी शाम लोग भेज दिए और प्रोग्राम बनने लगे.
नैस्कॉम के चेयरमैन रहे किरण कार्णिक उस वक्त सैक में थे उन्हें मुंबई भेजा गया. आख़िर जो प्रोग्राम बने वो तकनीकी रूप से बहुत सफल हुए.
ये वो वक्त था जब भारत सरकार ने फ़ैसला किया कि अंतरिक्ष कार्यक्रम होना चाहिए. सैन्य ज़रूरतों के लिए नहीं, सामाजिक ज़रूरतों के लिए.
इस सब के बाद रॉकेट, उपग्रह बने. आज भारत के इंजीनियर सब काम कर लेते हैं. उम्मीद है कि भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम आगे भी सफल होगा.

National Pride-India Ready to Jump in Mars-Launching Time:2.38 p.m. on Tuesday

National Pride-India Ready to Jump in Mars-Launching Time:2.38 p.m. on Tuesday


Mars mission countdown begins

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India 10.18am 05-11-2013

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--:::GOOD LUCK INDIA:::--
--:::WE ARE READY FOR PRIDE:::--
  • PSLV-C25 stands majestically in the Mobile Service Tower at the Satish Dhawan Space Research centre in Sriharikota. Photo: K. Pichumani
    The Hindu PSLV-C25 stands majestically in the Mobile Service Tower at the Satish Dhawan Space Research centre in Sriharikota. Photo: K. Pichumani 
  • Technicians inspect the Polar Satellite Launch Vehicle (PSLV-C25) at the Satish Dhawan Space Center at Sriharikota, Andhra Pradesh, on Wednesday. India’s Mars orbiter mission is scheduled to be launched by the above vehlcle on Nov. 5.
    AP Technicians inspect the Polar Satellite Launch Vehicle (PSLV-C25) at the Satish Dhawan Space Center at Sriharikota, Andhra Pradesh, on Wednesday. India’s Mars orbiter mission is scheduled to be launched by the above vehlcle on Nov. 5.

PSLV-C25 to lift off from Sriharikota at 2.38 p.m. on Tuesday

India’s ambitious mission to Mars moved ahead smoothly on Sunday with the 56.5- hour countdown beginning at 6.08 a.m. at the Sriharikota spaceport. If the countdown progresses without any “hold,” the four-stage Polar Satellite Launch Vehicle (PSLV-C25) will lift off from the first launch pad at 2.38 p.m. on Tuesday (November 5) and put the 1,350-kg Mars Orbiter in a long, elliptical earth-orbit. That will signal the first step of the spacecraft’s 300-day odyssey to the Red Planet.
“All is well. The countdown is progressing smoothly. Everything is fine,” Director of Vikram Sarabhai Space Centre (VSSC) in Thiruvananthapuram S. Ramakrishnan told The Hindu from Sriharikota around 7 p.m. on Sunday.
“We are relaxed,” said M.Y.S. Prasad, Director of Satish Dhawan Space Centre (SDSC) at Sriharikota.
Both Mr. Ramakrishnan and Dr. Prasad said separately that the filling of the PSLV-C25’s fourth stage with liquid propellants was completed just minutes ahead of 7 p.m. on Sunday. The second stage would be filled with liquid propellants on Monday. The first and third stage were filled with solid propellants.
K. Radhakrishnan, Chairman of Indian Space Research Organisation (ISRO), said the cost of the Mars mission was about Rs.460 crores. This included building the spacecraft and the ground radar stations and augmenting the capacity of ISRO’s Deep Space Network Station at Byalalu, near Bangalore.

Criticism
Asked about the criticism that a “poor” country like India is wasting money on sending a spacecraft to Mars, Dr. Radhakrishnan said, “We want to tell this country that Mars has a relevance…Science leads to understanding… Some people ask, “Why are you spending Rs.460 crores?” Others will say that Rs.460 crores is only some four rupees per head in this country. Then some others will say it is only the price of an aircraft. So there are different ways of looking at it…We want to tell this country that this is a complex mission.”
M. Annadurai, Programme Director of Indian Remote-sensing Satellites and Small Satellites Systems, ISRO, called the Mars Orbiter Mission “a logical extension of Chandrayaan-1.” “The mission profile is similar to that of the moon mission. The powerful PSLV-XL , which put Chandrayaan-1 into orbit, will swing into action in the Mars mission also.
After the Chandrayaan-1 mission in 2008, ISRO chose to head towards Mars because there are several similarities between the Earth and Mars. They include solid surfaces, seasons, the duration of their day and the polar ice caps. Also, if water exists on Mars, there may be microbial life on the planet.
After India established itself among world leaders in building application-oriented remote-sensing, communication, weather and surveillance satellites, which were “our bread and butter missions,” it was “a natural corollary” that India should turn its attention to science satellites, ISRO scientists said. Hence Chandrayaan-1, the Mars mission, Chandrayaan-2 in 2016, Astrosat for study of cosmic sources and Aditya-1 to study the solar corona. 


Suspenseful 43 minutes
Unlike the previous PSLV missions, which lasted about 18 minutes to put remote sensing satellites into orbit, the flight duration of PSLV-C25 will last a suspenseful 43 minutes before the rocket’s fourth stage puts the spacecraft into orbit. “This is the speciality of the mission,” said B. Jayakumar, Vehicle Director. As Mr. Jayakumar and R. Hutton, Associate Vehicle Director, stood a couple of hundred metres in front of the Mobile Service Tower encasing the four-stage PSLV-C25 on October 30, they asserted that “the PSLV is a rain-proof vehicle.”
Besides the 43-minute flight, yet another missionspeciality is the 25-minute coasting phase between the third stage burn-outand the fourth stage ignition. A third speciality is that it is only 37seconds after the fourth stage burn-out that the spacecraft will be injected into orbit.
V. Seshagiri Rao, Associate Director, SDSC, said several ground stations, including two ship-borne radars in the South Pacific Ocean, would track the vehicle and its positional information would be received every 100 milliseconds. 


Mars Orbiter Mission: Those five minutes are crucial



Mars orbiter spacecraft must be set off between 2.38 p.m. and 2.43 p.m. today

The Mars orbiter spacecraft has just five minutes for getting launched on Tuesday — or it slips into the next day.
It must be set off between 2.38 p.m. and 2.43 p.m.
And the mission has an overall deadline, until November 19, this year. The next best time is not for another 26 months.
“We are on the threshold of a complex mission. If there is a hold during automatic launch sequence there then we will not have it on that day. We can have a maximum of only five minutes. Each day, the launch time advances by 6-9 minutes. We hope that it will make it [on Tuesday],” K. Radhakrishnan, chairman, Indian Space Research Organisation (ISRO) told The Hindu recently.
ISRO scientists, having missed the earlier date of October because a tracking ship reached its watch post near Fiji late, have their calendar laid out for each of the remaining days.
“There is just one opportunity in a day. For each lift-off time, we need to have a new steering programme ready, a new trajectory design, and all this has been done,” he said.
“In earlier missions we worried about only one trajectory and made only a minor change in the steering programme. This total trajectory design is for each lift-off time, which is one big challenge for the Polar Satellite Launch Vehicle (PSLV).”
The flight on the four-stage PSLV-C25 lasts 43 minutes, more than double the time taken for its routine launches which need about 20 minutes, with a long coasting for the last stage.
Mr. Radhakrishnan said now they were concentrating on the launch on Tuesday and then on December 1, when the spacecraft should be put in the trajectory to Mars. Post-lunch, it will be a series of post-midnight exercises for scientists tracking the spacecraft from ISRO Telemetry, Tracking and Command Network (ISTRAC). On Thursday morning, ISTRAC in Bangalore will start increasing its elliptical orbit in phases by firing its motors six times.
Dr. Radhakrishnan said the first orbit raising exercise was crucial and would happen on Thursday at 1.15 a.m.
The remaining orbit expansions would all be done around 2 a.m. on November 8, 9, 11 and 16, until the spacecraft’s apogee (farthest point from Earth in its elliptical orbit) reaches 1.92 lakh km.
The sixth and last Earth-bound manoeuvre is slated for December 1 at 12.42 a.m.
The trickiest time will be in September 2014, when the spacecraft will be near Mars. The scientists have to slow down the spacecraft and bring it into an elliptical orbit going around Mars.

Sunday 3 November 2013

चीन:तियेनएनमेन चौक इतना अहम क्यों है?

चीन:तियेनएनमेन चौक इतना अहम क्यों है?

 शुक्रवार, 4 नवंबर, 2013 को 14:53 IST तक के समाचार

तियानेमन चौक, बीजिंग
चीन की राजधानी बीजिंग में 28 अक्तूबर को एक कार अचानक लोगों की भीड़ से टकरा गई थी जिससे पांच लोगों की मौत हुई और 38 ज़ख़्मी हो गए. लेकिन जहां ये घटना हुई वो चीन में सबसे ज़्यादा संवेदनशील जगह मानी जाती है.
ये घटना राजनीतिक तौर पर बहुत ही संवेदनशील समय में हुई क्योंकि कुछ ही हफ़्तों में चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी एक अहम बैठक करने वाली है जिसमें कम्युनिस्ट पार्टी नए सुधारों का ख़ाका पेश करेगी.

आधिकारिकर तौर पर इस बैठक को 18वी पार्टी कांग्रेस की तीसरी बैठक कहा जा रहा है. इसी बैठक के साथ ही चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, जिन्होंने पिछले साल के आख़िर में सत्ता संभाली थी, दुनिया के सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश की कमान पूरी तरह से संभालेंगे.
चूंकि ये घटना तियेनएनमेन चौक के सामने हुई थी इसलिए इस घटना ने एक राजनीतिक कहानी की शक्ल ले ली. ऐसा तियेनएनमेन चौक के राजनीतिक अहमियत की वजह से हुआ.

'स्वर्गीय शांति नहीं'

तियानेमन चौक, बीजिंग
तियेनएनमेन चौक वाक़ई में दुनिया में अपने आप में इकलौता है. तियेनएनमेन शब्द का मतलब होता है "स्वर्गीय शांति का दरवाज़ा".
लेकिन सच्चाई तो ये है कि ये जगह चाहे कुछ भी हो लेकिन स्वर्गीय शांति तो नहीं ही हो सकती है.
डॉक्टर सन-यात-सेन की अगुवाई में साल 1911 में हुई क्रांति से पहले ये चौक चीन में एक खेल का मैदान था.
1911 में हुई क्रांति के समय चीन के आख़िरी बादशाह को हटाए जाने के बाद से इस चौक का इस्तेमाल राजनीतिक कार्यों के लिए होने लगा.
लेकिन इस चौक ने असल में राजनीतिक हैसियत तब हासिल की जब साल 1949 में एक ख़ूनी गृह युद्ध के बाद कम्युनिस्ट पार्टी ने चीन में सत्ता हासिल की.
एक अक्तूबर 1949 को तियेनएनमेन चौक में जमा जनता के सामने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के तत्कालीन चेयरमैन माओ ने चीनी गणराज्य की स्थापना की घोषणा की थी.
उस वक़्त जो लोग एक नए चीन का सपना देखते थे उनके लिए तियेनएनमेन चौक 'मक्का' था, धरती पर सबसे पवित्र जगह.
कम्युनिस्ट पार्टी के शासन के पहले दशक में इस चौक को कई बार बढ़ाया गया और इस तरह इसने अपना मौजूदा आकार, 4.40 लाख वर्ग मीटर, यानी फ़ुटबॉल के क़रीब 70 मैदान तक पहुंचा.
इस मैदान में एक साथ छह लाख लोग जमा हो सकते हैं.

'राजनीति के लिए अहम'

चीन, तियानेमन चौक, प्रदर्शन
तियानेमन चौक में 1989 में हुए प्रदर्शन को दबाने के लिए चीन सरकार ने टैंक भेजे थे.
ये लोगों के लिए आराम करने या एक दूसरे से मिलने-जुलने की जगह नहीं है. न यहां कोई बेंच है, न पेड़ और न ही धूप या बारिश से बचने के लिए कोई जगह. यहां कोई टॉयलेट भी नहीं है.
कम्युनिस्ट पार्टी ने इस चौक को नया आकार इसीलिए दिया था ताकि ये सिर्फ़ राजनीतिक काम में इस्तेमाल किया जा सके.
अगर ऐसा कोई वीडियो कैमरा होता जो तियेनएनमेन चौक में साल 1949 से अब तक हुई घटनाओं को रिकॉर्ड कर सकता तो ये चीन में तब से हुई घटनाओं का भी पूरा और विस्तृत रिकॉर्ड होता क्योंकि इतिहास का हर मोड़ या तो यहां देखा गया या महसूस किया गया.
लेकिन तियेनएनमेन चौक पूरी दुनिया में एक ऐसी घटना की वजह से मशहूर हुआ जो यहां साल 1989 में हुई थी.
चार जून 1989 को चीन की सरकार ने यहां सैनिक और टैंकों को भेजा ताकि छात्रों की अगुवाई वाले एक लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शन को कुचला जा सके.
इसका अंत कई लोगों की मौत और ज़ख़्मी होने के साथ हुआ.

समस्या ज़ाहिर करने की जगह

तियानेमन चौक, बीजिंग
तियानेमन चौक पूरी तरह से खुला हुआ है, धूप-बारिश से बचने के लिए कोई जगह नहीं है.
पहले ये काफ़ी खुला हुआ था और बीजिंग के निवासी यहां शाम में आया करते थे. कुछ लोग यहां पतंग उड़ाया करते थे. लेकिन अब इसे क़िले की तरह बना दिया गया है. अब इसे लोहे की दीवारों से घेर दिया गया है और इसके चार कोनों में बनी अंडरग्राउंड सुरंगों से ही यहां पहुंचा जा सकता है. यहां सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं. और पुलिसकर्मी चौबीसों घंटे इसकी निगरानी करते हैं.
तियेनएनमेन चौक ने ऐसी भूमिका हासिल कर ली है जिसकी न तो योजना थी और न ही कम्युनिस्ट पार्टी ने कभी ऐसी इच्छा की थी.
ये लोगों के लिए अपनी समस्याएं ज़ाहिर करने की जगह बन चुका है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और कम्युनिस्ट पार्टी के विरोधियों ने इस जगह का इस्तेमाल पार्टी को खुली चुनौती देने के लिए किया है.
ऐसे समय जब कम्युनिस्ट पार्टी अपने राज की वैधता को लेकर संकट से जूझ रही है, उस पर सामाजिक स्थिरता को बनाए रखने की धुन सवार है.
कम्युनिस्ट पार्टी को डर है कि तियेनएनमेन चौक में अगर कोई प्रदर्शन या विरोध होता है तो उसे पार्टी की कमज़ोरी के तौर पर समझा जाएगा. इसीलिए वो इस चौक पर प्रदर्शन रोकने के लिए सभी तरीक़े आज़माने को तैयार है.
ये साफ़ नहीं है कि तियेनएनमेन चौक में जो घटना हुई वो हादसा थी या किसी तरह का राजनीतिक संदेश देने की कोशिश. एक चीज़ ज़रूर साफ़ है, तियेनएनमेन चौक में सुरक्षा और बढ़ा दी जाएगी.

चीन:खुलते ही बंद हो गई चीनी सर्च इंजन की शापिंग पोर्टल

चीन:खुलते ही बंद हो गई चीनी सर्च इंजन की शापिंग पोर्टल

 रविवार, 4 नवंबर, 2013 को 22:53 IST तक के समाचार

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चीनी सर्च इंजन के शॉपिंग पोर्टल को कथित रूप से कॉपीराइट मामलों को लेकर बंद कर दिया गया है.
चीनी दैनिक अख़बार की वेबसाइट साउथ-पेसिफ़िक में 31 अक्टूबर को छपी ख़बर का शीर्षक था, "कॉपीराइट के चलते बाएडू के ई-मेल बंद कर दिए गए हैं."
चीनी सर्च इंजन बाएडू ने गुरूवार को ही ऑनलाइन शॉपिंग मॉल शुरू किया था लेकिन क्लाउड कंप्यूटिंग से चलने वाली ईमेल को 24 घंटे से भी कम वक्त में संदिग्ध कॉपीराइट मसले के चलते बंद कर दिया गया.
यह ईमेल यूज़र्स को इलेक्ट्रॉनिक फ़ाइलों के आदान-प्रदान की सुविधा देती थी - जिसमें विडियो, तस्वीरें, डॉक्यूमेंट्स और म्यूज़िक शामिल हैं. यूज़र्स ट्रांजेक्शन सूचनाएं और टिप्पणियां भी पोस्ट कर सकते थे. सभी ट्रांज़ेक्शन बाएडू के पेमेंट प्लेटफॉर्म बाएफ़ुबाओ के ज़रिए की जाती थीं.


पहले भी ऐसा हुआ है

इससे पहले बाएडू ने अपने क्लाउड कंप्यूटिंग ऑपरेटिंग सिस्टम के बारे में ब्यौरा देते हुए एक बयान में कहा था कि इलेक्ट्रॉनिक फ़ाइलों के कॉपीराइट उसके पास नहीं हैं और न ही वह इनकी जांच के लिए बाध्य है.
सर्च इंजन का कहना था कि संभावित यूज़र्स को सम्मान पर आधारित प्रणाली के आधार पर कॉपीराइट संसाधनों को बेचना होगा.
बाएडू ने कहा था कि अगर कोई कॉपीराइट संबंधी शिकायत आती है तो संबंधित इलेक्ट्रॉनिक संसाधन को रोक दिया जाएगा.
चीनी वेब यूज़र्स
बाएडू पर पहले भी कॉपीराइट उल्लंघन का मामला उठ चुका है.
हालांकि इस बयान की कॉपीराइट विशेषज्ञों ने आलोचना की थी. उन्हें लगता था कि बाएडू की कंप्यूटिंग-आधारित ई-मेल यूज़र्स को काफ़ी आज़ादी देती हैं जिससे कॉपीराइट्स के उल्लंघन की आशंका है.

बाएडू को पहली बार कॉपीराइट के मामलो में से नहीं जूझना पड़ रहा है.
वर्ष 2005 में यूनिवर्सल म्यूज़िक, वार्नर म्यूज़िक और सोनी बीएमजी जैसी संगीत कंपनियों ने बाएडू पर केस कर दिया था कि वह उनके कॉपीराइट का उल्लंघन कर संगीत को डाउननलोड करने दे रहा है.
उस केस में संगीत कंपनियां जीत गई थीं और बाएडू को कॉपीराइट वाले गानों के लिए रॉयल्टी देने पर सहमत होना पड़ा था.
साल 2011 में हान-हान के नेतृत्व में जाने-माने क्लिक करें चीनी लेखकों ने बाएडू पर वेंकू साहित्यिक कोष के ज़रिये अपने काम को "चुराने" का आरोप लगाया था. इस कोष से यूज़र्स मुफ़्त में साहित्यिक सामग्री डाउनलोड कर सकते थे.

प्रोफ़ेसर डीएन झा इतिहासकार:मोदी ने इतिहास का इस्तेमाल अपने हितों के लिए किया:('राजनेता बोलने से पहले इतिहास समझें')

प्रोफ़ेसर डीएन झा  इतिहासकार:मोदी ने इतिहास का इस्तेमाल अपने हितों के लिए किया:('राजनेता बोलने से पहले इतिहास समझें')

 सोमवार, 4 नवंबर, 2013 को 08:09 IST तक के समाचार

नरेंद्र मोदी
राजनेता इतिहास का इस्तेमाल अपने हितों के लिए करते हैं. राजनेता ऐसी बातें कह देते हैं जिनका कोई ऐतिहासिक आधार नहीं होता. हमारे पास जो ऐतिहासिक साक्ष्य हैं उनसे वो बातें कभी नहीं सिद्ध हो सकती हैं.
जैसे मोदी ने पटना में अपने भाषण में इतिहास का जिक्र किया उसमें सारी की सारी बातें ग़लत हैं. उनकी बातों का गंभीर इतिहास में कोई जगह नहीं है.

मोदी ने कहा कि चाणक्य का युग स्वर्ण युग था.

चाणक्य चंद्रगुप्त मौर्य का बौद्धिक अभिभावक और गुरू ज़रूर था, उसने देश के बड़े हिस्से एकीकरण किया लेकिन देश का असली एकीकरण अशोक के समय में हुआ, हालांकि अशोक के राज्य में भी सुदूर दक्षिण के राज्य शामिल नहीं थे.
एक राष्ट्र के रूप में भारत की परिकल्पना पहले जमाने में थी ही नहीं, न ही मौर्य काल में न ही गुप्त काल में.
मुगल काल के बाद ब्रिटिश काल में इस तरह की भावना आई. खासतौर पर साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई शुरू होने के बाद यह भावना प्रबल होती गई.

'स्वर्णकाल'






"चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में जिक्र किया है राजस्व एकत्रित करने के लिए अंधविश्वास वाली चीजों का प्रयोग किया जा सकता है जैसे कि कहीं कोई मूर्ति लगा दी और वहाँ जो लोग चढ़ावा आए उसे लेकर राजकोष में डाल दिया जाए"



डीएन झा, इतिहासकार

यह कहना ग़लत है कि चंद्रगुप्त का समय स्वर्णकाल था. उसके समय में कृषि उत्पादों पर एक बटा चार हिस्सा कृषि करके रूप में देना होता था यानी वह एक शोषणकारी राज्य था.
अकाट्य तथ्य है कि अशोक जब लुंबिनी गए तो उसने स्थानीय लोगों को राहत देने के लिए कर की दर घटा कर एक बटा छह की थी.
इससे पता चलता है कि उसके पहले कर की दर इससे ज़्यादा थी.
चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में जिक्र किया है राजस्व एकत्रित करने के लिए अंधविश्वास वाली चीजों का प्रयोग किया जा सकता है.
जैसे कि कहीं कोई मूर्ति लगा दी और वहाँ जो लोग चढ़ावा आए, उसे लेकर राजकोष में डाल दिया जाए.
पतंजलि के योगसूत्र से भी इस बात की पुष्टि होती है कि मौर्यों ने ऐसा किया था.
"मोदी ने कहा कि बिहार के लोगों ने सिकंदर को मार भगाया जबकि सिकंदर कभी बिहार गया ही नहीं."



डीएन झा, इतिहासकार

चाणक्य के समय को स्वर्ण काल कहना इसलिए भी गलत है क्योंकि उस समय सामाजिक एकीकरण नहीं हुआ था. उसके समय तक जाति प्रथा काफी मजबूत हो चुकी थी.
अपने अर्थशास्त्र में नए गाँव बसाने के संदर्भ में चाणक्य ने लिखा है कि किसी गाँव में शूद्रों की आबादी ज़्यादा होना अच्छी बात है क्योंकि उनका शोषण करना आसान है.
तो ऐसे में चाणक्य का समय मोदी के लिए स्वर्णकाल हो सकता है लेकिन दूसरे लोगों के लिए नहीं हो सकता है.


'स्वर्णकाल'






"चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में नए गाँव बसाने के संदर्भ में चाणक्य ने लिखा है कि किसी गाँव में शूद्रों की आबादी ज़्यादा होना अच्छी बात है क्योंकि उनका शोषण करना आसान है.उसके समय तक जाति प्रथा काफी मजबूत हो चुकी थी."



डीएन झा, इतिहासकार




सिकंदर कभी नहीं बिहार गया

मोदी ने कहा कि बिहार के लोगों ने सिकंदर को मार भगाया जबकि सिकंदर कभी बिहार गया ही नहीं.
अगर इतिहास को गांधी मैदान में बैठकर गढ़ा जाए तभी ऐसी बातें निकल सकती हैं. नशे में इतिहास लिखा जाए तभी ऐसी बातें लिखी जा सकती हैं.
जहाँ तक साक्ष्यों की बात है तो सिकंदर ने सबसे प्रमुख लड़ाई पंजाब में झेलम के किनारे पोरस से लड़ी थी. उसके बाद उसकी सेना वापस चली गई. पूरब की तरफ तो वो कभी बढ़ा ही नहीं.

पर्दा प्रथा

प्रतिभा पाटिल
इसी तरह एक बार प्रतिभा पाटिल ने कह दिया था कि मुसलमानों के इस देश में आने के बाद उनकी सेनाओं से हिन्दू औरतों को बचाने के लिए पर्दा प्रथा शुरू हुई.
हमारे यहाँ जो संस्कृति या प्राकृत साहित्य उसमें कई जगह ऐसी चर्चा है जिसमें जिक्र है कि औरतें पर्दा कर रही हैं.
संस्कृत में तो एक शब्द ही है अवगुंठन जिसका अर्थ होता ही है घूंघट.
संस्कृत नाटकों और ऐतिहासिक उपन्यासों में अंतःपुर का ज़िक्र है. अंतःपुर का मतलब है कि आइसोलेशन या आंतरिक स्थान है यानी एक तरह का पर्दा पहले भी था.
इसलिए पर्दा प्रथा को मुसलमानों से नहीं जोड़ना चाहिए था. इससे लोगों का दृष्टिकोण सांप्रदायिक हो गया.
नेताओं को यदि इतिहास के तथ्यों का प्रयोग करना भी है तो उन्हें इसके पहले गंभीर इतिहासकारों की सलाह लेकर ऐसा करना चाहिए, नहीं तो वो लाखों लोगों को ग़लत इतिहास बताते रहेंगे.

कहा जा सकता है कि ये सब गैर-जिम्मेदार राजनेता हैं. देश को ग़लत दिशा में ले जा रहे हैं.

ग़रीबी बढ़ती जा रही है. पैसे वालों का धन बढ़ता जा रहा है. साफ है कि देश बहुत सुखी या अच्छे रास्ते पर नहीं जा रहा है.
मुझे उम्मीद नहीं है कि आने वाले समय में कोई इतिहासकार इस समय को अच्छा युग कहेगा. कम से कम फिलहाल तो यही लगता है.
(इतिहासकार डीएन झा प्राचीन भारत के इतिहास के जानकार हैं. यह लेख बातचीत बीबीसी संवाददाता राजेश जोशी से की गई बातचीत पर आधारित है.)