Friday, 13 September 2013

LIVE: बीजेपी में महामंथन जारी, मोदी आ रहे हैं दिल्ली, अब तक नहीं मानें आडवाणी, पर ऐलान तय

LIVE: बीजेपी में महामंथन जारी, मोदी आ रहे हैं दिल्ली, अब तक नहीं मानें आडवाणी, पर ऐलान तय

नई दिल्ली, 13 सितम्बर 2013 | अपडेटेड: 13:55 IST

नरेंद्र मोदी और लाल कृष्ण आडवाणी
नरेंद्र मोदी और लाल कृष्ण आडवाणी
प्रधानमंत्री प्रत्याशी के तौर पर नरेंद्र मोदी के नाम की घोषणा कब की जाए, इसे लेकर बीजेपी में महामंथन जारी है. गुरुवार के मिडनाइट ड्रामा के बाद शुक्रवार सुबह का भी सूरत-ए-हाल कुछ वैसा ही रहा. पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह और संघ के संदेशवाहक के तौर पर नितिन गडकरी आम सहमति बनाने में जुटे हैं. हालांकि, अब तक पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी के मोदी के नाम पर मान जाने की खबर नहीं आई है.
आडवाणी खेमा विधानसभा चुनावों के बाद नाम के ऐलान पर अड़ा है तो मोदी समर्थक आज ही घोषणा किए जाने के पक्ष में हैं.

मोदी आ रहे हैं दिल्ली
इस बीच सूत्रों के हवाले से खबर है कि संसदीय बोर्ड की बैठक में हिस्सा लेने के लिए मोदी आज दिल्ली आ रहे हैं. वे दोपहर तीन बजे स्पेशल विमान से दिल्ली आएंगे.
बीजेपी संसदीय दल की अहम बैठक शाम 5 बजे होने वाली है. इस बैठक में पीएम उम्‍मीदवार के तौर पर औपचारिक रूप से नरेंद्र मोदी के नाम पर मुहर लगने वाली है. जानकारी के मुताबिक, बोर्ड के ज्‍यादातर सदस्‍य मोदी की दावेदारी के पक्ष में हैं.
नरेंद्र मोदी पर हमला, 'जिसने बीजेपी को बांट दिया वो क्या देश चलाएगा?'
आज सुबह कौन किससे मिला
आज सुबह सबसे पहले नितिन गडकरी राजनाथ सिंह से मिले, इसके बाद वे करीब 10.30 बजे आडवाणी के घर पहुंचे. दोनों नेताओं की बातचीत करीब डेढ़ घंटे तक चली. इस मीटिंग में बलबीर पुंज भी मौजूद थे. दूसरी तरफ अनंत कुमार ने सुषमा स्वराज से मुलाकात की. आडवाणी से यहां निकलने के बाद गडकरी सीधे सुषमा के घर पहुंचे, जहां तीनों नेताओं के बीच बैठक हुई. इसके बाद, सुषमा, गडकरी और अनंत कुमार आडवाणी से मुलाकात करने पहुंचे.
मोदी को मिला शिवसेना का समर्थन
पार्टी में मोदी के नाम नाम पर भले ही सहमति ना हो, पर मोदी ने एनडीए में सहमति बनाने की कवायद शुरू कर दी है. इस बाबत उन्होंने गुरुवार रात को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से फोन पर बात की. संजय राउत ने बताया है कि शिवसेना मोदी का दिल से समर्थन करेगी.
नरेंद्र मोदी पर BJP में 'मिडनाइट ड्रामा'
मोदी के नाम पर पार्टी में गुरुवार देर रात तक माथापच्‍ची होती रही. लालकृष्‍ण आडवाणी को मनाए जाने का सिलसिला चलता रहा, उधर पार्टी अध्‍यक्ष राजनाथ मीटिंग की रणनीति को लेकर बैठक करते रहे.
रात 10:15 बजे: मीटिंग हुई तय
अचानक खबर आई कि मोदी पर फैसला लेने के लिए बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने संसदीय बोर्ड की मीटिंग बुला ली है.
रात 10:30 बजे: सुषमा ने की अंबाला यात्रा रद्द
बीजेपी की बेहद अहम बैठक बुलाई गई थी. लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज को अंबाला जाना था. उन्होंने बिना देरी किए अपनी अंबाला यात्रा रद्द कर दी.
रात 11 बजे: आडवाणी आवास पहुंचे गडकरी
बीजेपी में कयासों का बाजार और गरम हो गया, जब नागपुर से दिल्ली पहुंचे नितिन गडकरी सीधे आडवाणी के घर पहुंच गए. संघ ने आडवाणी को मनाने का जिम्मा गडकरी को ही दिया है. करीब पौने दो घंटे तक आडवाणी के घर मंथन चलता रहा. इस मुलाकात में क्या बात हुई, यह तो नहीं पता चला लेकिन इतना तो तय है कि मोदी के लिए आडवाणी पर दबाव जारी है.
रात 11 बजे: रामलाल-अनंत राजनाथ से मिले
बीजेपी में आधी रात की कहानी जारी थी. एक तरफ आडवाणी को मनाने की कवायद चल रही थी, दूसरी तरफ राजनाथ बना रहे थे संसदीय बोर्ड की मीटिंग की रणनीति. पार्टी के दो अहम महासचिवों रामलाल और अनंत कुमार के साथ रात 11 बजे हो रही थी मंत्रणा.


दिल्ली गैंगरेप: ज्योति के चारों गुनहगारों को सजा-ए-मौत, फैसला सुन रो पड़े दरिंदे

दिल्ली गैंगरेप: ज्योति के चारों गुनहगारों को सजा-ए-मौत, फैसला सुन रो पड़े दरिंदे

  नई दिल्ली, 13 सितम्बर 2013 | अपडेटेड: 16:11 IST


आ गया ऐतिहासिक फैसला
1200 पन्नों की चार्जशीट, 86 गवाहियां और 243 दिनों की सुनवाई के बाद आखिरकार वह फैसला आ गया जिसका इंतजार पूरे देश को था. ज्योति के हत्यारे चारों दरिंदों मुकेश शर्मा, विनय शर्मा, अक्षय ठाकुर और पवन गुप्ता को दिल्ली की साकेत अदालत ने फांसी की सजा सुनाई है. अदालत ने मामले को 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' श्रेणी में रखते हुए यह फैसला सुनाया. जैसे ही जज ने फैसला सुनाया कोर्ट परिसर तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा.
फैसला सुन वकील ने पीटी मेज
जज ने फैसला सुनाने में ज्‍यादा वक्‍त नहीं लिया और कहा कि वह सीधे धारा-302 की बात कर रहे हैं. इसके ठीक बाद उन्‍होंने चारों दोषियों को फांसी की सजा सुना दी. सजा सुनते ही ज्‍योति की मां की आंखों से आंसू छलक आए, जबकि बचाव पक्ष के वकील ने गुस्‍से में अपने सामने रखी मेज पर जोर से हाथ पटका. जज फैसला सुनाकर जाने लगे और दोषियों के वकील चिल्लाते रहे कि यह अन्‍याय है. चारों दोषियों और उनके वकीलों को छोड़कर कोर्ट में मौजूद हर शख्‍स बेहद खुश था. सबने जोरदार तालियां बजाकर फैसले पर खुशी जताई.
वकील का आरोप, सरकार के दबाव में सुनाई गई सजा
कोर्ट से बाहर आने के बाद बचाव पक्ष के वकील एपी सिंह ने आरोप लगाया कि सरकार के इशारे पर यह फैसला लिया गया और इसमें सीधे गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे की भूमिका थी.


उन्‍होंने कहा, 'सरकार के इशारे पर फैसला लिया गया. तथ्‍यों और गवाहों की अनदेखी करते हुए बिना सोचे-समझे जज ने सबको फांसी की सजा सुना दी है. फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए मेरे पास तीन महीने का समय है, अग इस दौरान दिल्‍ली और देश में रेप की कोई वारदात नहीं होती तो मैं अपील नहीं करूंगा. वरना इस फैसले को तार-तार कर दूंगा.'
सरकारी वकील ने फैसले पर खुशी जताते हुए कहा कि यह पूरे देश की जनता की जीत है.  उन्‍होंने कहा, 'सही मायने में न्याय की जीत हुई है. दोषी फैसला सुनकर चुप थे. आज रूल ऑफ लॉ मजबूत हुआ है. सारे भारतवासी और 16 दिसंबर के आंदोलनकारी सब खुश हैं. इस फैसले में सबका योगदान है. डिफेंस लॉयर के आरोप बिल्कुल गलत है. पर्याप्‍त सबूत थे. धनंजय चटर्जी और कहर सिंह के केस को भी रेयरेस्ट ऑफ रेयर माना गया थो तो यह केस तो और भी दुर्दांत था. न्याय की यही मांग थी. लड़की के माता-पिता ने कहा कि मीडिया को भी धन्यवाद कीजिएगा.'
एडिशनल सेशन जज योगेश खन्ना ने  साकेत अदालत के कमरा नंबर 304 में सजा सुनाई. इससे पहले मंगलवार को ही चारों दोषियों को 13 धाराओं में दोषी करार दिया था. बुधवार को सजा पर बहस के बाद फैसला आज के लिए सुरक्षित रख लिया गया था. मामले के नाबालिग आरोपी को तीन साल की सजा सुनाई जा चुकी है, जबकि एक अन्य आरोपी राम सिंह तिहाड़ जेल में खुदकुशी कर चुका है.


आज पूरी हुई देश की मुराद
सभी आरोपियों को दोषी ठहराए जाने पर ज्योति के मां और पिता ने खुशी जताई थी. साथ ही यह भी कहा था कि फांसी से कम कोई भी सजा उनके जख्म नहीं भर सकती. फैसला सुनाए जाने से पहले और बाद में भी देश भर में दरिंदों को फांसी की मांग करते हुए प्रदर्शन हुए थे. वहीं दिल्ली गैंग रेप पर फैसला आते ही दोषी अक्षय ठाकुर के परिवार ने इस फैसले पर सवाल उठा दिया. बिहार के औरंगाबाद के रहने वाले अक्षय ठाकुर की पत्नी ने फैसले को गलत ठहराया है. पत्नी नमिता के मुताबिक इस फैसले के पहले अदालत को उसके और उसके ढाई साल के बच्चे के बारे में भी सोचना चाहिए था.
नमिता ने कहा कि वो भी भारत की बेटी है और उसके भविष्य के बारे में भी सोचना चाहिए था. उधर अक्षय ठाकुर के भाई विनय ने कहा कि वो ऊपरी अदालत से लेकर राष्ट्रपति तक इस फैसले के खिलाफ जाऐंगे.
जैसे ही ये फैसला आया परिवार में कोहराम मच गया जहां एक तरफ पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल था तो मां बार-बार बेहोश हो रही थी.


बीजेपी नेता सुषमा स्वराज, कांग्रेस नेता अंबिका सोनी और पूर्व गृह सचिव आरके सिंह समेत कई नेता और हस्तियां दोषियों को फांसी दिए जाने के पक्ष में थे. खुद गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने भी फांसी की उम्मीद जताते हुए कहा था कि भविष्य में भी ऐसे मामलों में फांसी की सजा ही होगी.


ज्योति और अवनींद्र की गवाही रही अहम
इस मामले में दो गवाहियां बेहद अहम रहीं. एक खुद ज्योति की और दूसरी उसके दोस्त और घटना के एकमात्र चश्मदीद अवनींद्र पांडेय की. मौत से पहले अस्पताल में जब ज्योति से पूछा गया था कि दोषियों के लिए वह क्या सजा चाहती है, तो उसने फांसी की मांग की थी. फिर अगले ही क्षण उसने कहा था कि दोषियों को जिंदा जला देना चाहिए.


इसके अलावा अदालत में जो सबूत पेश किए गए, उनमें शामिल हैं, वह बस जिसमें वारदात को अंजाम दिया गया था, दोषियों की बस का सीसीटीवी फुटेज, दोषियों के खून से सने कपड़े, डीएनए सैंपल, फॉरेंसिक और मेडिकल रिपोर्ट.
देश को याद रहेगा 16 दिसंबर
16 दिसंबर, 2012 की रात वसंत विहार के पास चलती बस में ज्योति के साथ गैंगरेप और दरिंदगी की गई थी, जिसके बाद आक्रोशित भीड़ ने दिल्ली और देश भर के इलाकों में कई दिनों तक जोरदार प्रदर्शन किए थे. 23 वर्षीय फीजियोथैरेपी की छात्रा ने 13 दिन तक अस्पताल में मौत से संघर्ष करते हुए सिंगापुर के अस्पताल में दम तोड़ दिया था.

घटना की रात ज्योति अपने दोस्त अवनींद्र के साथ 'लाइफ ऑफ पाई' फिल्म देखकर निकली थी. दोनों ने मुनिरका से एक चार्टर्ड बस ली थी. इसी बस में छह लोगों ने छात्रा से गैंगरेप और दरिंदगी की. ज्योति के शरीर में रॉड डाल दी गई और अवनींद्र को बुरी तरह पीटा गया. बाद में बेसुध हालत में दरिंदों ने दोनों को सड़क पर रखा और उन्हें कुचलकर मारने की कोशिश की. हालांकि वे दोनों बच गए और काफी देर बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया.


Thursday, 12 September 2013

मुजफ्फरनगर हिंसा:सीडी की जानकारी देने पर एक लाख इनाम

मुजफ्फरनगर हिंसा:सीडी की जानकारी देने पर एक लाख इनाम

लखनऊ | अंतिम अपडेट 13 सितंबर 2013 11:38 AM IST पर
police action on muzaffarnagar riots
मुजफ्फरनगर व आसपास के इलाकों में हिंसा का दौर थमने के बावजूद भड़काऊ वीडियो क्लिप व सीडी पुलिस के लिए सिरदर्द बनी हुई है।

इसके मद्देनजर डीजीपी देवराज नागर ने वीडियो क्लिप व सीडी को प्रसारित करने वालों की ठोस जानकारी देने वाले को एक लाख तक का इनाम देने की घोषणा की है।

मुजफ्फरनगर के कर्फ्यू प्रभावित तीन थानों में गुरुवार को नौ घंटे की ढील दी गई।

मुजफ्फरनगर जाने की कोशिश कर रहे भाजपा नेता कलराज मिश्र समेत कुल 12 विधायकों को और लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजित सिंह व अन्य नेताओं को रोका गया।

सरकारी आंकड़ा 43 मौतों का
इस बीच हिंसा में मरने वाली का सरकारी आंकड़ा 43 पहुंच गया। अफसरों ने माना कि इनमें से 38 की मुजफ्फरनगर में, तीन की बागपत में एक की सहारनपुर में व एक की मेरठ में मौत हुई।

यह हुई कार्रवाई
मुजफ्फरनगर में हालात सामान्य की ओर बढ़ रहे हैं इस वजह से गुरुवार को जहां पहले सात घंटे की कर्फ्यू में ढील दी जानी थी, वहां उसे बढ़ाकर नौ घंटे तक कर दिया गया था। ढील के दौरान कहीं किसी तरह की कोई अप्रिय घटना नहीं हुई।

इस बीच उपद्रवियों को चिह्नित कर उनकी धर-पकड़ का सिलसिला जारी रहा और अब तक 1700 से अधिक को गिरफ्तार करने के साथ ही 2300 से अधिक लोगों के शस्त्र लाइसेंस निरस्त करने की कार्रवाई की जा चुकी है।

धर-पकड़ की कार्रवाई के दौरान सौ से अधिक अवैध असलहे बरामद होने की बात भी स्वीकार की गई। गृह सचिव कमल सक्सेना ने कहा कि रमाला गांव में एक व्यक्ति के घर से तलाशी में एके-47 एसाल्ट राइफल के कुल 41 कारतूस बरामद हुए।

तलाशी के समय यह व्यक्ति घर में मौजूद नहीं था। गृह सचिव के मुताबिक यह व्यक्ति बीएसएफ में तैनात रहा है और अवकाश पर चल रहा है। उन्होंने संभावना जताई कि अपनी तैनाती के दौरान ही उसने इन कारतूसों को खरीदा होगा।

शुरू हुई लापता लोगों की तलाश
हिंसा के दौरान लापता होने वालों की सूचना दर्ज कराने का सिलसिला शुरू हो गया है। गुरुवार को दिन में मुजफ्फरनगर में पांच और सहारनपुर में एक व्यक्ति के लापता होने की सूचना दर्ज की गई है।

जानकारों के मुताबिक ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्र के लोग लापता हुए हैं और अभी उनके परिवार के सदस्य अधिकारियों तक अपनी सूचना नहीं पहुंचा सके हैं।

मवाना के सीओ व इंस्पेक्टर हटाए गए
हिंसा के दौरान लापरवाही बरतने के कारण मेरठ के मवाना सर्किल के सीओ वीपी सिंह को हटा दिया गया है। मवाना के ही प्रभारी निरीक्षक उदयवीर सिंह लाइन हाजिर कर दिए गए।

बागपत में दोघट थाने की बमनौली चौकी के प्रभारी तेजपाल सिंह और वाजिदपुर चौकी के प्रभारी मुनींद्रवीर सिंह को निलंबित कर दिया गया है।

इसी तरह मुजफ्फरनगर के भौराकला के थाना प्रभारी सुभाष चंद्र, शाहपुर थाने के प्रभारी इंद्रमणि वर्मा और मीरपुर के थाना प्रभारी प्रमोद सिंह को निलंबित कर दिया गया है।

दो दिन पहले इन्हें थाने से हटाया गया था और फुगाना के प्रभारी निरीक्षक ओमवीर सिरोही को निलंबित किया गया था।

दिल्ली गैंगरेपः दरिंदों ने न खाना खाया, न रात भर सोए

दिल्ली गैंगरेपः दरिंदों ने न खाना खाया, न रात भर सोए

delhi gangrape: convict didn't have food, didn't slept

वसंत विहार गैंगरेप मामले में शुक्रवार को सजा सुनाए जाने को लेकर सभी दोषियों की नींद हराम हो गई है। तिहाड़ जेल में सभी दोषी इतने बेचैन और घबरा गए है कि, वे भरपेट भोजन भी नहीं कर पा रहे हैं।

जेल प्रशासन की मानें तो, सजा तय होने के बाद दोषियों को तिहाड़ की दूसरी जेलों में स्थानांतरित किया जा सकता है। सबसे अधिक संभावना मुकेश और अक्षय को तिहाड़ जेल संख्या चार से जेल संख्या दो या तीन में भेजने की है।

जबकि विनय और पवन जेल संख्या सात में बंद है। जेल अधिकारियों के अनुसार सजा तय होने के बाद दोषियों को जेल मैन्युअल के तहत जेल में काम भी करने पड़ेंगे।

गैंगरेप मामले में दोषियों को बृहस्पतिवार दिन में अनमने मन से खाना खाया। जबकि बीती रात को जेल की सेल में करवटें बदल कर रात गुजारी।

जेल के एक अधिकारी के अनुसार, चारों दोषियों को सुरक्षित सेल में रखा गया है। सीसीटीवी से उनकी निगरानी की जा रही है। तिहाड़ जेल के प्रवक्ता सुनील गुप्ता का कहना है कि, सभी दोषी बेहद डरे हुए है।

दरिंदों ने उस रात नहीं पी थी शराब
तफ्तीश से जुड़े एक पुलिस अधिकारी ने खुलासा किया है कि कोर्ट में इस बात को रखा था कि आरोपियों ने वारदात के दौरान शराब नहीं पी रखी थी।

गिरफ्तार करने के बाद कराए गए मेडिकल जांच में भी शराब पीने की पुष्टि नहीं हुई थी।

पुलिस ने अदालत के सामने अस्पताल में उपचार के कागजात और डॉक्टरों के बयानों को मैच कराया और ये सिद्ध किया कि, आम इंसान ऐसा गंभीर अपराध नहीं कर सकता।

छात्रा के शरीर के बाहरी हिस्से पर काटने के निशान थे। पुलिस अधिकारियों के अनुसार दिल्ली पुलिस ने छात्रा के शरीर पर जो 18 गंभीर चोटों की बात अदालत में रखी थी उनमें से ज्यादातर चोटें छात्रा के शरीर के अंदरूनी हिस्से में थीं।

दक्षिण जिला पुलिस अधिकारियों के अनुसार, अदालत में मानव संरचना से जुड़ी ह्यूमन एनाटॉमी की अधिकृत किताबें रखी गई थीं।

इन किताबों के द्वारा अदालत को यह बताया गया था कि दोषियों ने छात्रा को जो चोट पहुंचाई उससे छात्रा के शरीर का कौन सा हिस्सा कितना और किस तरह क्षतिग्रस्त हुआ था। ये भी बताया गया था कि कौन-कौन सी चोटें छात्रा की मौत का कारण बनी।

'बस से न फेंकते, तो मेरी हत्या तय थी'
वसंत विहार गैंगरेप मामले से जुड़े लूटपाट मामले में गवाह ने अदालत को बताया कि यदि आरोपी उसे चलती बस से नहीं फेंकते तो उसकी हत्या भी तय थी।

पटियाला हाउस स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश दया प्रकाश के समक्ष गवाही के लिए पेश पीड़ित राम अधर ने अदालत को बताया कि मुकेश, विनय, अक्षय व पवन के अलावा दो अन्य आरोपी भी इनके साथ थे।

राम अधर ने बचाव पक्ष के उस तर्क को गलत बताया कि उसके साथ लूटपाट नहीं हुई थी। उसने इस तर्क को भी गलत बताया कि उसने पुलिस के कहने पर उनके मुवक्किलों को फर्जी मामले में फंसाया है।

गवाह ने कहा कि, आरोपियों ने उससे नगदी व मोबाइल लूट लिया था व आटो चालक के फोन से उसने अपने भाई को इस घटना की जानकारी दी थी।

उत्तराखंड :जंगल में सेक्स रैकेट का भंडाफोड़, 8 कॉलगर्ल गिरफ्तार

उत्तराखंड :जंगल में सेक्स रैकेट का भंडाफोड़, 8 कॉलगर्ल गिरफ्तार

sex racket in corbet park 
उत्तराखंड में रामनगर के बैलपड़ाव स्थित कार्बेट जंगल क्लब रिसोर्ट से पुलिस ने हाईप्रोफाइल सेक्स रैकेट का भंडाफोड़ कर आठ कॉलगर्ल, तीन दलालों और रिसोर्ट मैनेजर को गिरफ्तार किया है।

दलालों के कब्जे से 2.65 लाख रुपये नकद, मोबाइल, लैपटाप भी बरामद हुए हैं। छापा पड़ते ही देह व्यापार का सरगना और कॉलगर्ल मंगाने वाले फरार हो गए।


कॉलगर्ल को एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल ने प्रारंभिक पूछताछ के बाद फिलहाल एक स्वयंसेवी संस्था के हवाले कर दिया है। पुलिस रिसोर्ट को सील करने की तैयारी में है। देर शाम सभी लड़कियों को उनके परिजनों के सुपुर्द कर दिया गया।

दिल्ली से आई कॉलगर्ल
एसएसपी डा. सदानंद दाते का कहना है कि इस मामले की रिपोर्ट जिला प्रशासन को दी जा रही है, ताकि रिसोर्ट का रजिस्ट्रेशन तत्काल रद्द हो जाए।

पकड़ी गई युवतियों में से नेपाल मूल की दो सगी बहनें, दो विवाहित हैं। यह सभी दिल्ली और एनसीआर में रहती हैं। पुलिस की जांच में यह भी सामने आया है कि कालगर्ल को मंगाने वाले रसूखदार लोग हैं, जो लालबत्ती लगी गाड़ियों में सवार होकर यहां आए थे। बुधवार रात करीब 12 बजे एक सूचना के बाद रामनगर पुलिस ने छापा मारा।

रजिस्टर में नहीं एंट्री
सीओ प्रमोद कुमार, कोतवाल बसंतलाल विश्वकर्मा, एसओजी प्रभारी रवींद्र कुमार के नेतृत्व में रिसोर्ट की घेराबंदी की गई। इसी दौरान रिसोर्ट में कॉलगर्ल सप्लाई करने वालों का सरगना अपने अन्य दलाल साथियों और डिमांड करने वाले रसूखदारों के साथ भाग निकला।


रिसोर्ट के रजिस्टर में किसी की एंट्री नहीं है। दो अलग-अलग कमरों से युवतियों के साथ जो युवक पकड़े गए हैं, उनमें गौतम, दीपक, ललित बत्रा सभी निवासी दिल्ली शामिल हैं। इन दलालों ने सरगना का नाम विजय सिंह निवासी सेक्टर-28 फरीदाबाद बताया है।

शराब की बोतलें और नकदी बरामद
रिसोर्ट मैनेजर पंकज बोरा निवासी पश्चिमी विहार दिल्ली को भी हिरासत में लिया गया है। दलालों के कब्जे से 2 लाख 65 हजार 970 रुपये की नकदी, चार मोबाइल फोन, शराब की बोतलें, एक लैपटाप भी बरामद हुआ।




इन सभी को अनैतिक देह व्यापार एक्ट की धारा 3/7/9 के तहत निरुद्ध किया है। एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल प्रभारी डीएल वर्मा ने युवतियों से लंबी पूछताछ की। रसूखदारों और लालबत्ती लगी गाड़ियों में आने वालों के संबंध में फिलहाल कोई पुख्ता सूचना नहीं मिली है।

जंगल के बीच रिसोर्ट
यह रिसोर्ट बीच जंगल में बना है। यह ऐसे स्थान पर है जहां से जंगल की सुंदरता देखते बनती है। रिसोर्ट का प्रचार भी प्रकृति की खूबसूरती को आधार बनाकर किया गया है।

इस पूरे मामले में पुलिस की भूमिका पर भी कुछ बिंदुओं से प्रश्नचिन्ह लग रहे हैं। रेड पड़ने से पहले रिसोर्ट के मुख्य गेट पर कोई मौजूद नहीं रहा।

एप्पल के 'सस्ते' शब्द में कुछ तो है झोल, क्लिक करके जानिए..

एप्पल के 'सस्ते' शब्द में कुछ तो है झोल, क्लिक करके जानिए..

Updated on: Fri, 13 Sep 2013 11:24 AM (IST)
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एप्पल के 'सस्ते' शब्द में कुछ तो है झोल, क्लिक करके जानिए..
नई दिल्ली। कुछ दिन पहले एप्पल ने बड़े जोरशोर के साथ बाजार में सस्ता आईफोन उतारने की घोषणा कर ग्राहकों को खुश कर दिया। लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन टिक न सकी। एप्पल के इस 'सस्ते' शब्द में ही कुछ झोल हो गया है। कंपनी ने कहा कुछ लोगों ने समझा कुछ। बाजार विशेषज्ञों ने एप्पल की इस रणनीति पर कहा कि कंपनी द्वारा बाजार में उतारे गए दोनों फोन में कुछ भी नया नहीं है और सस्ते फोन का इंतजार कर रहे बाजार को नाउम्मीद करते हुए कंपनी ने आईफोन 5सी (16 जीबी) को 549 डॉलर के महंगे दाम पर लॉन्च किया है। वहीं, कंपनी के 32 जीबी वाले फोन की कीमत 649 डॉलर है। कंपनी ने न्यूयॉर्क में जिस फोन को 99 डॉलर में उतारा था वो सब्सिडी रेट पर है। साथ ही, इसे दो साल के कॉन्ट्रैक्ट पर दिया जा रहा है। बिना कॉन्ट्रैक्ट वाले फोन की कीमत इससे कहीं ज्यादा है। चीन में तो इस फोन की कीमत 700 डॉलर से भी ज्यादा रखी गई है। अगर ऐसा है तो भारत में इसकी कीमत का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता।

हालांकि, भारतीय बाजार में यह खबर फैल गई थी कि यह फोन करीब 12 हजार रुपये में मिलेगा, लेकिन ऐसा होगा नहीं। बीटीआईजी रिसर्च के वाल्टर पीसाइक ने कहा कि एप्पल के नए फोन निश्चित तौर पर बेहद प्यारे हैं। लेकिन कंपनी अभी भी महंगे फोन लांच कर रही है। उन्होंने कहा कि दुनियाभर में बहुत से ऐसे देश हैं, जहां लोग कैरियर के साथ फोन नहीं खरीदते, बल्कि सिर्फ फोन खरीदते हैं। उन्हें लक्षित करने के लिए कंपनी ने दाम में कोई कमी नहीं की है।

विशेषज्ञों ने तो यहां तक कहा कि एप्पल आईफोन काफी महंगा है जिससे हमें काफी निराशा हुई है। कंपनी अगर इसका सस्ता मॉडल लॉन्च करती, तो महंगे मॉडल की बिक्री पर इसका असर पड़ता। दूसरा, विशेषज्ञों को यह भी समझ नहीं आया कि आखिर एप्पल ने किसे लक्षित करके फोन पेश किया है। फिलहाल दो तरह के फोन मार्केट पर राज कर रहे हैं- बड़ी स्क्रीन वाले मोबाइल फोन और दूसरा कम दाम पर ज्यादा फीचर्स वाले फोन। एप्पल के आईफोन 5सी को देखने के बाद यह समझ नहीं आ रहा कि यह किसके लिए निकाला गया है।

मुजफ्फरनगर: नहर के पानी में दफन हैं अभी भी कई राज

मुजफ्फरनगर: नहर के पानी में दफन हैं अभी भी कई राज

Updated on: Fri, 13 Sep 2013 10:56 AM (IST)
muzaffarnagar riots
मुजफ्फरनगर: नहर के पानी में दफन हैं अभी भी कई राज
मुजफ्फरनगर। ग्रामीणों की कोशिश और जिद का ही आलम था कि घटना के पांचवे दिन गंगनहर में फेंका गया एक ट्रैक्टर बाहर निकाला गया। ट्रैक्टर के टायर को धारदार हथियार से काटकर गंगनहर में फेंका गया था। अभी और भी ट्रैक्टर को आसपास के गांव के लोग ढूंढ रहे हैं।

गंगनहर में ट्रैक्टर फेंके जाने की शिकायत रविवार से ही ग्रामीण पुलिस-प्रशासन के पास कर रहे थे। उनकी शिकायत के बावजूद न पुलिस और न ही प्रशासन ने कोई प्रयास किया। लेकिन बसेड़ा गांववालों ने प्रयास जारी रखा। प्रयास के तहत ही उन्हें जौली के निकट गंगनहर में गुरुवार को एक ट्रैक्टर मिला। निकाला गया तो पता चला कि वह ट्रैक्टर बहेड़ा गांव के किसी और का है। ऐसे में लोगों का गुस्सा और बढ़ गया।

महापंचायत के दिन से ही अपने गुमशुदा चाचा की तलाश में भोपा थाना पहुंचे ओंकार सिंह ने कहा कि उन सभी ने बार-बार प्रशासन और पुलिस से मांग की है कि वे नहर को एक बार के लिए सुखाएं। नहर सूखने पर ही दूध का दूध और पानी का पानी होगा। लोगों ने आरोप लगाया कि नहर में और भी ट्रैक्टर, मोटरसाइकिल और दबी लाशें मिल सकती हैं। अब तक जौली गांव के पास से ही कुल 18 ट्रैक्टर जले और डूबे अवस्था में मिले हैं।

मोदी पर घमासान: शिवराज ने राजनाथ का न्यौता ठुकराया

मोदी पर घमासान: शिवराज ने राजनाथ का न्यौता ठुकराया

Updated on: Fri, 13 Sep 2013 11:52 AM (IST)
narendra modi
मोदी पर घमासान: शिवराज ने राजनाथ का न्यौता ठुकराया
नई दिल्ली। भाजपा में कई दिनों से नरेंद्र मोदी के नाम पर चल रहे घमासान पर शुक्रवार को विराम लगने की पूरी उम्मीद है। हालांकि खुद मोदी आज होने वाली संसदीय बोर्ड की बैठक में हिस्सा नहीं लेंगे। इस बैठक के बाद पांच बजे नरेंद्र मोदी को पीएम पद का प्रत्याशी घोषित कर दिया जाएगा। हालांकि, आडवाणी का रुख पार्टी को परेशान कर रहा है। दरअसल, पूरा माहौल देखने के बावजूद संसदीय बोर्ड की बैठक में भी वह अपनी आपत्ति दर्ज करा सकते हैं।
वहीं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी आज दिल्ली आने से मना कर दिया है। सूत्रों से मिली खबर के अनुसार उन्हें संसदीय बोर्ड की बैठक में शामिल होने के लिए पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने फोन पर न्यौता दिया था। लेकिन वह जन- आशीर्वाद यात्रा के लिए उमरिया जा रहे हैं।

आज शाम होने वाली भाजपा की संसदीय बोर्ड की बैठक में सुषमा स्वराज, मुरली मनोहर जोशी के शामिल न होने की भी खबरें हैं। हालांकि पार्टी अध्यक्ष ने उन्हें बैठक में शामिल होने को कहा है। दरअसल सुषमा स्वराज के आज हरियाणा जाने का प्रोग्राम पहले से ही तय था। वहीं मुरली मनोहर जोशी को आज मध्य प्रदेश जाना है। आरएसएस पहले ही अपनी पंसद पार्टी अध्यक्ष को बता चुका है। वहीं विहिप भी मोदी के नाम पर अपनी मुहर लगा चुका है। अब फैसला राजनाथ सिंह को करना है। लेकिन राजनाथ फैसले में सबको इकट्ठा करने की कोई कसर छोड़ना नहीं चाहते हैं। लिहाजा, गुरुवार को दिनभर अलग-अलग स्तर से सर्वसम्मति बनाने की कोशिश होती रही।

राजनाथ आडवाणी और जोशी से बुधवार को ही मिल चुके थे। गुरुवार को उन्होंने सुषमा से भी लंबी चर्चा की। बताते हैं कि जोशी ने संकेत दे दिया कि वह पार्टी के फैसले के साथ खड़े हैं। सुषमा जरूर विधानसभा चुनाव तक फैसले को टालने के पक्ष में थीं, लेकिन उनका रुख आडवाणी की तरह अडिग नहीं है। ऐसे में शुक्रवार को ही मोदी को बतौर प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित करने में कोई अड़चन नहीं बची।

अफ़गानिस्तान: घर से खींचकर भारतीय लेखिका की हत्या

अफ़गानिस्तान: घर से खींचकर भारतीय लेखिका की हत्या

 गुरुवार, 5 सितंबर, 2013 को 20:43 IST तक के समाचार

चरमपंथी संगठन तालिबान से बच निकलने की अपनी चर्चित कहानी डायरी की शक्ल में लिखने वाली सुष्मिता बैनर्जी की संदिग्ध चरमपंथियों ने हत्या कर दी है.
सुष्मिता ने एक अफ़ग़ान व्यापारी के साथ शादी की थी. पक्तिका इलाक़े में उनके घर के बाहर ही उनकी हत्या कर दी गई.
1995 में नाटकीय ढंग से तालिबान की पकड़ से भाग निकलने वाली सुष्मिता का जीवन-वृत्तांत भारत में काफ़ी लोकप्रिय हुआ था जिस पर 2003 में एक फ़िल्म भी बनी थी.
सुष्मिता हाल ही में अपने पति के साथ रहने के लिए वापस अफ़ग़ानिस्तान गई थीं.
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बीबीसी के जफ़र हांड को बताया है कि सुष्मिता एक स्वास्थ्यकर्मी के तौर पर भी कर रही थीं और स्थानीय महिलाओं की ज़िंदगी को क़ैमरे में क़ैद कर रही थीं.
पुलिस का कहना है कि तालिबान चरमपंथियों ने सुष्मिता के घर पहुंचकर उनके पति और परिवारजनों को बांध दिया. इसके बाद उन्होंने सुष्मिता को बाहर ले जाकर गोली मार दी.
उनके शव को पास के एक धार्मिक स्कूल में डाल दिया गया.
हालांकि क़ाबुल में मौजूद बीबीसी संवाददाता का कहना है कि तालिबान ने इसमें अपना हाथ होने से इंकार किया है.

सुष्मिता की कहानी

"उन्होंने मुझे घर में क़ैद कर दिया और अनैतिक औरत कहा. तालिबान ने मुझे सबक सिखाने की धमकी दी. मैं जानती थी मुझे भागना होगा."
सुष्मिता बनर्जी, लेखिका, अ काबुलीवालाज़ बंगाली वाइफ़
49 वर्षीय सुष्मिता बैनर्जी का लिखा जीवन-वृत्तांत ‘अ क़ाबुलीवालाज़ बैंगॉली वाइफ़’ भारत में काफ़ी चर्चित हुआ था.
इसमें उन्होंने अपने पति जांबाज़ ख़ान के साथ अफ़ग़ानिस्तान में ज़िंदगी और वहां से भाग निकलने की यादें दर्ज की थीं.
2003 में मनीषा कोइराला अभिनीत फ़िल्म 'एस्केप फ्रॉम तालिबान' उन्हीं पर आधारित थी.
आउटलुक पत्रिका के लिए 1998 में लिखे एक लेख में भी सुष्मिता ने अपनी कहानी बयां की थी.
उनका कहना था कि 1993 में तालिबान के हावी होने से पहले तक ज़िंदगी ठीक थी. तब उनसे अपनी डिस्पेन्सरी बंद करने को कहा गया, जिसे वो घर से चलाती थीं.
सुष्मिता ने लिखा है कि वो 1994 की शुरूआत में अफ़ग़ानिस्तान से भाग निकलीं लेकिन उनके देवरों ने उन्हें पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में ढूंढ लिया जहां वो भारतीय दूतावास में शरण लेने पहुंची थीं. वे लोग उन्हें वापिस ले गए.
सुष्मिता ने अपनी कहानी में ये भी लिखा है, ‘‘उन्होंने वायदा किया कि वो मुझे भारत वापिस भेज देंगे लेकिन उन्होंने अपना वायदा पूरा नहीं किया. उल्टा उन्होंने मुझे घर में क़ैद कर दिया और अनैतिक औरत कहा. तालिबान ने मुझे सबक सिखाने की धमकी दी. मैं जानती थी मुझे भागना होगा.’’

अफ़ग़ानिस्तान: अमरीकी वाणिज्य दूतावास के बाहर हमला

अफ़ग़ानिस्तान: अमरीकी वाणिज्य दूतावास के बाहर हमला

 शुक्रवार, 13 सितंबर, 2013 को 08:18 IST तक के समाचार

पश्चिमी अफ़ग़ानिस्तान के हेरात में शुक्रवार की सुबह अमरीकी वाणिज्य दूतावास के बाहर एक भारी विस्फोट हुआ है. यह हमला तालिबान ने किया है.
तालिबान ने बीबीसी को बताया है कि एक आत्मघाती हमलावर ने कार में सवार होकर ये विस्फोट किए और इसके बाद दूसरे लड़ाकों ने भवन पर हमला बोल दिया.
विद्रोहियों और सुरक्षा बलों को बीच हुई गोलीबारी में अफगान पुलिसकर्मियों और एक स्थानीय सुरक्षाकर्मी की मौत हो गई है, हालांकि दूतावास के सभी व्यक्ति सुरक्षित हैं. हमले में महिलाओं और बच्चों सहित कुल 17 नागरिक घायल हुए हैं.
2014 में अफ़ग़ानिस्तान से विदेशी सेना की वापसी शुरू होगी.

सुरक्षा घेरे को नुकसान

"वाणिज्य दूतावास के सभी व्यक्ति सही-सलामत हैं"
प्रवक्ता, अमरीकी वाणिज्य दूतावास
अफ़ग़ान सेना के एक प्रवक्ता ने बीबीसी को बताया कि आरंभिक विस्फोट से क्लिक करें अमरीकी वाणिज्य दूतावास के बाहरी सुरक्षा घेरे को नुकसान पहुंचा. इसके चलते हमलावर परिसर के अंदर प्रवेश करने में कामयाब हो गए और दूतावास के भवन की ओर गोलियाँ दागने लगे.
नाटो की अगुवाई वाले अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बल (आईएसएएफ) ने ट्वीट किया है कि वाणिज्य दूतावास सुरक्षित है और "सभी दुश्मनों को मार दिया गया है."
ट्वीट में बताया गया है कि मौके पर आईएसएएफ और अफगान राष्ट्रीय सुरक्षा बल के जवान मौजूद हैं.
बीबीसी के डेविड लॉयन ने काबुल से बताया कि यह हमला अमरीका पर हुए क्लिक करें 9/11 हमले की बरसी को ध्यान में रखते हुए किया गया है. इससे पता चलता है कि 9/11 के 12 साल बाद भी विद्रोही अफ़ग़ानिस्तान में गड़बड़ी फैलाने की क्षमता रखते हैं.

जानमाल का नुकसान

हेरात में सुरक्षा बलों और विद्रोहियों के बीच गोलीबारी में दो अफगान सैनिक मारे गए.
हमारे संवाददाता ने बताया कि हमले में दो अफगान पुलिस और एक स्थानीय सुरक्षाकर्मी की मौत हुई है, जबकि महिलाओं और बच्चों सहित कुल 17 नागरिक घायल हुए हैं.
अमरीकी दूतावास के प्रवक्ता ने समाचार एजेंसी एपी को बताया कि, "वाणिज्य दूतावास के सभी व्यक्ति सही-सलामत हैं."
हेरात ईरान की सीमा के करीब है और यह इलाका हाल के दिनों में आमतौर से शांतिपूर्ण रहा है.
इस महीने की शुरुआत में क्लिक करें तालिबान ने पूर्वी अफगानिस्तान के तोरखम में अमरीकी छावनी पर हमला किया था. लंबे समय तक चली इस गोलीबारी की घटना में तीन विद्रोहियों की मौत हो गई थी.

'बहुत कठिन है डगर मोदी की'

'बहुत कठिन है डगर मोदी की'

 शुक्रवार, 13 सितंबर, 2013 को 07:48 IST तक के समाचार
नरेंद्र मोदी
बहुत कम नेता ऐसे हैं जिनके नाम से ही आलोचना और तारीफ़ उमड़ पड़ती है. गुजरात के मुख्यमंत्री और बीजेपी की चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष नरेंद्र मोदी भी इन नेताओं में से एक माने जाते हैं.
जितने मुखर उनके प्रशंसक हैं उतनी ही कटु आलोचना उनके विरोधी करते हैं.

सुधींद्र कुलकर्णी, भाजपा के पूर्व नेता

ये देश के हित में नहीं है क्योंकि एक ऐसा नेता जो सामाजिक रूप से ध्रुवीकरण करने वाला है और राजनीतिक रूप से भी ध्रुवीकरण करने वाला है और जो पार्टी में ही सर्वमान्य नहीं है तो ऐसा नेता देश को एक स्थिर, सुगम और असरदार सरकार कैसे दे पाएगा.
भाजपा को पसंद करने वाले कुछ युवाओं में उत्साह है इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन भारत का युवा वर्ग नरेंद्र मोदी के पीछे है ये बात ग़लत है क्योंकि देश की जनता में और युवाओं में भी एक चिंता है कि जो नेता समाज में सर्वमान्य नहीं है और देश में सर्वमान्य नहीं है क्या ऐसे नेता के हाथ में नेतृत्व सौंपना सही होगा.
सुधींद्र कुलकर्णी
बीजेपी के पूर्व नेता सुधींद्र कुलकर्णी का कहना है कि ये कहना गलत है कि पूरे देश के युवा मोदी के समर्थन में हैं.
मोदी ने अपनी छवि ईमानदारी से बदलने की कोशिश की होती तो बात अलग होती लेकिन उन्होंने पिछले चुनाव में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया इसका संदेश यही है कि मुसलमान मायने नहीं रखते. अब भाजपा पर आरएसएस का नियंत्रण बढ़ता जा रहा है.

परेश रावल, अभिनेता

मेरी राय तो ये है कि भाजपा को ये फ़ैसला पहले ही ले लेना चाहिए था क्योंकि मोदी जी ब्रांड नहीं हैं वो एक भावना हैं. जो आलोचक हैं उनके पास एक ही बात है, उनके पास है क्या आखिर बोलने के लिए.
अगर किसी की भैंस भी कम दूध देती है तो वो मोदी जी को ज़िम्मेदार ठहराता है. लेकिन अब तो दुनिया भी देख चुकी है और लोग तो बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं.
जैसा मैंने पहले भी कहा मोदी जी ब्रांड नहीं हैं एक भावना हैं. इस इमोशन की लहर पूरे देश में दौड़ रही है. लोगों को ये महसूस होना चाहिए कि वो जितनी जल्दी आएं उतना बेहतर है.

तीस्ता सीतलवाड़, सामाजिक कार्यकर्ता

जो राजनीतिक दल उनको आगे बढ़ा रहा है वो है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जो कि भाजपा की राजनीतिक रूप से रीढ़ की हड्डी है.
एक ज़िम्मेदार राजनीतिक दल ऐसे नेता को अपना उम्मीदवार बना रहा है जिस पर बहुत ही गंभीर आरोप लगे हैं.
परेश रावल
परेश रावल का कहना है कि मोदी की लहर पूरे देश में दौड़ रही है.
जिस पर आरोप हैं कि उन्होंने अल्पसंख्यकों का कत्ले आम करवाया, जिसने उनको मरवाने के बैठकर आदेश दिए.
अभी भी ये मामले कोर्ट में चल रहे हैं तो ये एक राजनीतिक दल की गैरज़िम्मेदाराना राजनीति है. सांप्रदायिकता है.

ज़फर सरेशवाला, उद्योगपति

साल 2002 से पहले गुजरात में हर दो-तीन साल में दंगे होते रहते थे. साल 2002 के बाद से जो 11 साल का पीरियड रहा है वो अच्छा रहा है. भाजपा में नरेंद्र मोदी नहीं हैं तो कौन है.
आडवाणी जी अभी 86 साल के हैं और अगले साल 87 साल के होंगे तो रिटायरमेंट भी एक चीज़ है.
हम से ज़्यादा कौन जानता है दंगों के बारे में. हमने तो दंगे भुगते हैं. हिंदुस्तान में न कोई धर्मनिरपेक्ष है न सांप्रदायिक.
मैं खुद पीड़ित हूं. मेरा साल 2002 में नुकसान हुआ. दंगे हुए तो क्या चाहिए, न्याय चाहिए.
नौ मामले थे जिनमें से सात में फैसले आ चुके हैं. 160 लोगों को उम्रकैद हुई है. मैं हवा में बात नहीं करता. हिंदुस्तान में किसी हुकूमत ने दंगों के बाद पुनर्वास का कोई काम नहीं किया.
तीस्ता सीतलवाड
तीस्ता सीतलवाड का मानना है कि मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार बनाना गैरज़िम्मेदाराना राजनीति है.
हमने तो मोदी से जो मांगा था वो उन्होंने दिया. मोदी साहब को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने में बुराई क्या है. क्यों आपत्ति होनी चाहिए.

गुलाम मोहम्मद वस्तानवी, इस्लामिक विद्वान

बीजेपी अगर मोदी के नाम का एलान करती है तो बीजेपी के अंदर ही एक बहुत बड़ा तबका है जो मोदी के खिलाफ गए हैं. मोदी के लिए कठिनाई ज़रूर है.
मैं समझता हूं कि मुल्क का एक बहुत बड़ा तबका है जो धर्मनिरपेक्ष प्रधानमंत्री चाहता है. साल 2002 की घटना देखें तो मोदी जी के हाथ खून से रँगे हुए हैं. मोदी की ये बदनामी कभी दूर नहीं हो सकती.
बीजेपी अगर मोदी को पीएम पद के लिए चुनती है तो वो अपनी कब्र खोद रही है. मैंने ये कहा था कि मुसलमान रोना बंद करें, खुद को तालीम में, व्यापार में लगाएं, ये नहीं कहा था कि मोदी को माफ़ किया जाए.
मोदी को मैंने क्लीनचिट नहीं दी थी.

दिल्ली गैंगरेप: फ़ैसले की घड़ी आज

दिल्ली गैंगरेप: फ़ैसले की घड़ी आज

 मंगलवार, 10 सितंबर, 2013 को 07:26 IST तक के समाचार

दिल्ली गैंगरेप, बलात्कार कांड, 16 दिसंबर, बलात्कार पीड़ित, फ़ैसला
नौ महीने बीत चुके. 16 दिसंबर को 'निर्भया' के साथ हुए जघन्य सामूहिक बलात्कार के लिए अभियुक्तों को सज़ा सुनाने का समय आ गया है۔
जो भी सज़ा उन्हें मिलेगी, हमें कम लगेगी۔
असल में सज़ा काफ़ी नहीं है- उसके साथ क़ानून में व्यापक बदलाव आए, तभी न्याय की नींव रखी जा सकती है.
जिस तरह अभियुक्तों में शामिल एक क्लिक करें नाबालिग़ को केवल तीन वर्ष सुधार गृह में रखने का फ़ैसला सुनाया गया है, उसे देखते हुए कोई बड़ी उम्मीद नहीं जगती.
अगर इतने जघन्य अपराध के लिए भी क़ानून बालिग़ की परिभाषा बदलने की पहल नहीं कर सका तो कुछ और बदल पाएगा, यह उम्मीद जन्म से पहले ही दम तोड़ देती है.
जब देश की राजधानी में यह कांड हुआ तो उसके ख़िलाफ़ इतना ज़बरदस्त जनरोष उभरा कि एकबारगी मन में उम्मीद जगी अब बहुत कुछ बदल जाएगा, सत्ता हिल जाएगी, बलात्कार के अपराधियों के लिए सख्त क़ानून बनेंगे, जिनका सख्ती से पालन किया जाएगा. यूँ कि उसके बाद सामूहिक बलात्कार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
पर वैसा कुछ नहीं हुआ. काफ़ी समय तक हम यही सोचकर गौरवान्वित और सन्तुष्ट होते रहे कि ऐसा सावर्जनिक और व्यापक विरोध क्लिक करें प्रदर्शन पहले कभी नहीं देखा गया था कि उसने हर अधिकारी और सत्ताधारी के भीतर अपराध बोध जगा दिया था.

क्रांतिकारी बदलाव?

यूँ कि अब बस क्रांतिकारी बदलाव आने ही वाले थे. हमने सोचा कि अब बलात्कार के केस की एफ़आईआर तुरंत दर्ज होगी; शिकायतनामा जल्द और संवेदनशील तरीके से अदालत में पहुँचेगा; अदालत क़ानून की संवेदनशील व्याख्या करेगी और अपना फ़ैसला शीघ्रतिशीघ्र सुनाएगी.
पर जिस तरह विरोध प्रदर्शन के साथ साथ दिल्ली समेत सभी छोटे बड़े शहरों में सामूहिक क्लिक करें बलात्कार होते रहे; पुलिस का रवैया पहले जैसा क्रूर और नाकारा बना रहा; सत्ताधारी अक्षम्य बयान देकर बलत्कृत स्त्रियों-बालिकाओं को बलात्कार के लिए दोषी ठहराते रहे; उसके मद्देनज़र हर नई उम्मीद ख़ुद-ब-खुद मरती चली गई.
मैंने उसी समय कुछ अप्रिय सत्यों की तरफ़ इशारा करके लिखा था कि अगर निम्नलिखित हुआ होता, तो हम कुछ बदलाव की आशा कर सकते थे. मसलन अगर दो चार वीआईपी भी कहते कि उनकी सुरक्षा व्यवस्था ज़रूरत से ज़्यादा है और उसे कम करके जनता के कमज़ोर तबकों की सुरक्षा बढ़ा दी जाए.
अगर दिल्ली के पुलिस अधिकारी प्रदर्शनकारियों से संवेदना के साथ पेश आते और उन पर लाठियाँ और अश्रु गैस बरसाने के बजाय उनसे बात करते और जाँच की गति बढ़ा देते.
अगर उन लोगों के ख़िलाफ़, जो बलत्कृत स्त्रियों को दोषी ठहराकर, बलात्कार को स्वाभाविक सिद्ध कर रहे थे, बलात्कार को बढ़ावा देने के अपराध के लिए कार्रवाई की जाती.

उम्मीद?

अगर क़ानूनविद एक स्वर में कहते कि सामूहिक तथा हिंसक बलात्कार के लिए क़ानून में उसी तरह अधिक कड़ी सज़ा का प्रावधान होना चाहिए, जैसे पूर्वनियोजित हत्या तथा यंत्रणासहित हत्या के लिए, औचक की गई हत्या से ज़्यादा कड़ी सज़ा दी जाती है.
नाबालिग़ होने से ही हिंसक बलात्कार को कोई छूट नहीं मिलनी चाहिए. जब इनमें से कोई प्रतिक्रिया उभरकर सामने नहीं आई तो उम्मीद खामख़्याली बनकर रह गई.
इस समय जो सवाल मुँह बाये हमारे सामने खड़ा है, वह यह है कि ऐसे हिंसक बलात्कार की सज़ा क्या होनी चाहिए, जिसके परिणामस्वरूप शिकार की मौत हो जाए? और उसकी सज़ा क्या हो, जिसका प्रयोजन ही हत्या रही हो?

सज़ा का प्रावधान

सामूहिक बलात्कार, एकल बलात्कार से उसी तरह भिन्न है जैसे अचानक की गई हत्या, पूर्वनियोजित हत्या से. फिर जब बलात्कार के साथ हत्या भी हो तो सज़ा वही दी जानी चाहिए जो पूर्वनियोजित हत्या के लिए दी जाती है.
या शायद उससे ज़्यादा, क्योंकि उसमें यंत्रणा भी शामिल रहती है. और पूरे विश्व में टॉर्चर के लिए अलग सज़ा का क्लिक करें प्रावधान है.
इस प्रक्रिया में कुछेक महीनों या वर्षों से बालिग़ होने में समय रहने को लेकर सज़ा को कम करना, पूरी तरह से नाइंसाफ़ी ही मानी जाएगी. इस नाइंसाफ़ी का ऐलान सरकार पहले ही कर चुकी है.
तब भला उससे न्याय की क्या उम्मीद की जा सकती है. जब सब कुछ धीमी गति से चल रहा था तो नाबालिग़ को बरी करने में इतनी गतिशीलता क्यों दिखलाई गई? मन्तव्य स्पष्ट है कि बलात्कारियों के लिए कड़ी सज़ा की उम्मीद रखना सरासर ग़लत है.
तब हम इसके सिवा क्या कह सकते हैं कि 'निर्भया' के पक्ष में जो जनरोष उभरा था, उसे असफल क्रांति का दर्जा ही देना होगा. या अब भी अदालत से कोई आशा की जा सकती है? और आने वाले समय में क़ानून बनाने वाली सरकार से? काश ऐसा कुछ हो पाए! पर काश हो पाए कहने से कुछ होता नहीं है, हम सब जानते हैं. इसलिए हमें आने वाले दिनों में संघर्ष करते रहने के लिए तैयार रहना होगा.

दिल्ली गैंगरेप: नौ महीनों की अहम तारीखों का सफ़र

दिल्ली गैंगरेप: नौ महीनों की अहम तारीखों का सफ़र

 मंगलवार, 10 सितंबर, 2013 को 11:15 IST तक के समाचार

पिछले साल 16 दिसंबर को दिल्ली में चलती बस में हुई सामूहिक बलात्कार की घटना पर अदालत आज अपना फ़ैसला सुना सकती है.
पूरे देश में व्यापक जनाक्रोश पैदा करने वाली इस घटना की सुनवाई क्लिक करें फास्ट ट्रैक कोर्ट की 130 बैठकों में पूरी हुई. इस मामले में एक क्लिक करें नाबालिग दोषी को तीन साल की सज़ा पहले ही सुनाई जा चुकी है.
इस मसले से जुड़े पूरे घटनाक्रम पर एक नज़र-

2012

  • 16 दिसंबर: दिल्ली में चलती बस में छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार.
  • 17 दिसंबर: बस ड्राइवर राम सिंह और उसके तीन साथी गिरफ़्तार.
  • 21-22 दिसंबर: एक नाबालिग़ सहित दो और लोग गिरफ़्तार.
  • 29 दिसंबर: सिंगापुर के एक अस्पताल में पीड़ित की मौत.
  • 23 दिसंबर: दिल्ली उच्च न्यायालय ने फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना की.

2013

  • 3 जनवरी: पांच अभियुक्तों के खिलाफ 33 पेज का आरोप पत्र दाखिल.
  • 7 जनवरी: कैमरे की निगरानी में मामले की सुनवाई का आदेश.
  • 21 जनवरी: विशेष फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में पांच अभियुक्तों की सुनवाई शुरू.
  • 28 जनवरी: जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने छठे अभियुक्त को नाबालिग़ घोषित किया.
  • 2 फरवरी: फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट ने पांच अभियुक्तों के खिलाफ आरोप तय किए.
  • 5 मार्च: नियमित सुनवाई शुरू.
  • 11 मार्च: तिहाड़ जेल में राम सिंह को मृत पाया गया.
  • 22 अगस्त: अंतिम दौर के लिए अभियोजन पक्ष ने दलील पेश करनी शुरू की.
  • 27 अगस्त: अंतिम दौर के लिए बचाव पक्ष ने दलील पेश करनी शुरू की.
  • 31 अगस्त: जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने नाबालिग़ को बलात्कार और हत्या का दोषी पाया.
  • 3 सितंबर: फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई ख़त्म.
  • 10 सितंबर: अदालत ने अपना फ़ैसला सुनाने के लिए 10 सितंबर की तारीख

दिल्ली गैंगरेप: 'उसकी आख़िरी ख़्वाहिश पूरी होने का दिन है'

दिल्ली गैंगरेप: 'उसकी आख़िरी ख़्वाहिश पूरी होने का दिन है'

 शुक्रवार, 13 सितंबर, 2013 को 10:45 IST तक के समाचार

'निर्भया' के आख़िरी शब्द आज भी उनकी माँ के ज़ेहन में कौंधते हैं.
बीबीसी से बातचीत के दौरान उनकी माँ ने कहा, ''लगता है किसी आहट के साथ वो वापस आ जाएगी और जब वो नहीं आती तो उसकी आख़िरी ख्वाहिश ही बेचैन कर देती है. आज उस आख़िरी ख्वाहिश के पूरा होने का दिन है.''
निर्भया की माँ ने आगे कहा, ''टूटती साँसों को जोड़कर उसने कहा था कि उसे इंसाफ़ मिलना चाहिए. आज न सिर्फ़ उसे इंसाफ़ मिल रहा है बल्कि इंसाफ़ में लोगों का नया भरोसा भी पैदा हो रहा है.''
दिल्ली की तारीख़ को स्याह करने वाले उस दिन को निर्भया की माँ यूँ याद करती हैं, "उस दिन जाते-जाते, चार बजे जब वो गई, उसने कहा, 'बॉय मम्मी, मैं दो-तीन घंटे में आ जाऊंगी', आज भी उसकी आवाज़ गूँजती है. कभी-कभी आस बंधती है कि शायद वो आ जाए."
दो-तीन घंटे में लौटने का वादा करके गई निर्भया नहीं लौटीं और न ही उनके घर की ख़ुशियाँ.
माँ याद करती है, "उस समय हम एक सामान्य परिवार थे. सामान्य तरीक़े से रहते थे. जितना था उतने में ख़ुश थे. आज सबकुछ है लेकिन सब न के बराबर है. खाने चलो तो आंसू, सोने जाओ तो आँसू, भगवान ऐसा किसी के साथ न करे."
निर्भया की आख़िरी ख़्वाहिश बयाँ करते हुए माँ कहती है, "उसने बोला था सज़ा क्या उन्हें तो ज़िंदा जला देना चाहिए. अगर उन्हें फाँसी की सज़ा हो जाती है तो शायद उसकी आख़िरी इच्छा पूरी हो जाए."
तो क्या निर्भया के अपराधियों को सज़ा मिलने से हिंदुस्तान के हालात बदलेंगे? कोई फ़र्क़ पड़ेगा या फिर सब पहले जैसे ही चलता रहेगा?
माँ उम्मीद करती है, "अगर इनको सही मायने में सज़ा मिल जाती है, तो हम पक्का तो नहीं कह सकते लेकिन फ़र्क़ ज़रूर पड़ेगा. अपराधियों को फाँसी दिए जाने का जनता में बढ़िया संदेश जाएगा. एक बार ऐसा करने से पहले लोगों के मन में ख़्याल तो ज़रूर आएगा कि हम करेंगे तो फंसेंगे."
एक बेटी के साथ दरिंदगी हुई और पूरा हिंदुस्तान खड़ा हो गया. हर दिला रोया, हर जुबाँ बोली. तो क्या ये बदलाव पूरा है. नहीं, माँ के लिए ये बदलाव अधूरा है.
बदलाव के बारे में माँ कहती है, "लगता तो नहीं है कि हिंदुस्तान बदल रहा है लेकिन बदलाव की थोड़ी सी झलक दिखती है.पहले लड़की के माँ बाप यह सोचकर बात छुपा लेते थे कि समाज में लड़की के नाम पर इसका बुरा असर पड़ेगा लेकिन अब कोई केस होता है तो तुरंत रिपोर्ट करते हैं. इतना बदलाव तो हुआ लेकिन इसके साथ यह बदलाव भी आ जाता कि कार्रवाई तुरंत होने लगे, अभियुक्त पकड़े जाने लगें और उन्हें समय से सज़ा दी जा सके तो बेहतर होता है."
निर्भया के दर्द को आवाज़ मिली तो इंसाफ़ भी मिल रहा है. लेकिन बहुतों की पीड़ा दबी रह जाती है.
ऐसी बेटियों, माओं और बहनों को हौसला देते हुए निर्भया की माँ कहती हैं, "अब ख़ामोश नहीं रहना चाहिए. कितने दिन तक वे इस चीज़ को छुपाएंगी, कितने दिन तक दबाएंगी. और कहाँ तक दबाएंगी. इसलिए उन्हें शर्माने की ज़रूरत नहीं है. उनके माँ बाप को भी शर्माने की ज़रूरत नहीं है. शर्माना तो उन मर्दों को चाहिए जो ऐसा करते हैं, उनकी आँख में शर्म होनी चाहिए. शर्म और डर छोड़कर बाहर आएं, रिपोर्ट करे, उनके ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ें. उन्हें सज़ा दिलवाएँ."
अदालत निर्भया के दोषियों को उनका अंज़ाम बता देगी. लेकिन इस अपराध के साथ निर्भया के नाम से शुरू हुई लड़ाई नहीं रुकेगी. क्योंकी माँ भरोसा करती हैं, "जिस तरह इस घटना के बाद लोग एकजुट हुए, इसे एक मिसाल बना दिया उसी तरह संघर्ष जारी रखे और ऐसी घटनाओं के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाए. हम भी कोशिश करेंगे कि जिस तरह लोग हमारे साथ खड़े रहे उसी तरह हम भी उनके साथ खड़े हो पाएं और उनके साथ आवाज़ उठाएं."

French Fukushima cartoon offends Japan

French Fukushima cartoon offends Japan

Japan to lodge complaint with French embassy over newspaper cartoon linking nuclear disaster and 2020 Olympics bid
 
Fukushima


Fukushima cartoon View larger picture
One of the Fukushima cartoons that appeared in Le Canard Enchaine
Japan is to lodge an official complaint about a cartoon in a French newspaper that links the Fukushima nuclear disaster with Tokyo's successful bid to host the 2020 Olympics.
The cartoon, which appeared on Wednesday in the satirical weekly Le Canard Enchaine, shows two sumo wrestlers – each with an extra arm or leg – with the wrecked Fukushima Daiichi nuclear power plant in the background.

At the edge of the panel, a TV announcer dressed in a hazardous materials suit says: "Marvellous! Thanks to Fukushima, sumo is now an Olympic sport."

A second image features two people in protective clothing conducting radiation tests by the side of a pool, along with the caption: "There is already a pool in Fukushima for the Olympics."
The International Olympic Committee (IOC) awarded the 2020 Games to Tokyo last weekend, despite growing concerns about the safety of the Fukushima plant.
In the runup to the IOC vote, reports emerged of leaks of highly contaminated water from storage tanks at the plant. In a separate incident last month, the facility's operator, Tokyo Electric Power, admitted that about 300 tonnes of radioactive groundwater a day was flowing into the Pacific.
Japan's prime minister, Shinzo Abe, offered personal assurances to IOC officials that the Fukushima plant was under control and that radiation leaks posed no threat to Tokyo.
The chief cabinet secretary, Yoshihide Suga, said a formal complaint would be lodged with the French embassy in Tokyo, adding that the cartoon hurt the victims of the triple disaster that struck Japan's north-east coast on 11 March 2011.
"It is inappropriate and gives the wrong impression about the issue of contaminated water at Fukushima Daiichi," Suga said. "It is extremely regrettable."
Japan's foreign ministry has been ordered to step up efforts to provide timely and accurate information about the situation in Fukushima, amid criticism from South Korea and China that it has been slow to share details about the water leaks.
This is not the first time that France – where nuclear is the primary source of energy – has offended Japanese sensibilities over Fukushima. Last October the broadcaster France 2 apologised after it screened a composite picture of the Japanese goalkeeper Eiji Kawashima with four arms. A presenter attributed Kawashima's impressive performance in Japan's shock 1-0 defeat of France in a friendly to the "Fukushima effect".
In 2011 Kawashima was targeted for abuse while playing for the Belgian club Lierse SK in a league fixture, when opposition fans chanted "Kawashima, Fukushima!" The referee temporarily halted play following protests from Kawashima, who was reportedly in tears after the match.
 
 
 

Japan protests French Fukushima cartoons



TOKYO: Japan voiced anger on Thursday over cartoons published in a French newspaper that took aim at the decision to award the 2020 Olympics to Tokyo despite the ongoing nuclear crisis at Fukushima.

Satirical weekly Le Canard Enchaine published a cartoon depicting sumo wrestlers with extra limbs competing in front of a crippled nuclear plant, which said the disaster had made it a feasible Olympic sport.

Another cartoon showed two people standing in front of a pool of water while wearing nuclear protection suits and holding a Geiger counter, saying water sport facilities had already been built at Fukushima.

Chief Cabinet Secretary Yoshihide Suga said the satirical jabs give the wrong impression about Japan. The government has repeatedly claimed the accident and its waste water problem are under control and should not affect the Olympics.

Japan is traditionally sensitive to opinions about it expressed in foreign media and has been angered that a crisis that brought such human tragedy has become the subject of caricature.

"These kinds of satirical pictures hurt the victims of the disaster," Suga told a news conference.

"This kind of journalism gives the wrong impression about the waste water problem," he said.

The government will officially lodge a protest with the French weekly, Suga said.

The incident comes after similar case less than a year ago in which French media made light of the nuclear disaster and its effects.

TV channel France 2's "We're not lying" programme showed a doctored photo of Eiji Kawashima, the goalkeeper of the Japanese national football squad, with four arms.

The show explained that it was the "Fukushima effect" that had allowed Kawashima to keep goal so effectively in Japan's shock defeat of France.

The station later expressed its regret for the gag and French Foreign Minister Laurent Fabius reportedly apologised.

While no one is officially recorded as having died as a direct result of the radiation released by the triple meltdowns at Fukushima, tens of thousands of people were forced to leave their homes. Many may never be able to return.

Unlike many European countries, Japan does not have a vigorous tradition of satire. Its cultural emphasis on the importance of social harmony also discourages public ridiculing of others.
 
 

'मोदी की उम्मीदवारी' पर बयानबाज़ी, आडवाणी पर कटाक्ष

'मोदी की उम्मीदवारी' पर बयानबाज़ी, आडवाणी पर कटाक्ष

 गुरुवार, 12 सितंबर, 2013 को 15:44 IST तक के समाचार

सुशील मोदी-नरेन्द्र मोदी (फ़ाइल)
मोदी मामले में एलके आडवाणी के खिलाफ़ सीधे तौर पर बोलने सुशील कुमार पहले बड़े बीजेपी नेता हैं.
भारतीय जनता पार्टी में एक समय लालकृष्ण आडवाणी के क़रीबी समझे जाने वाले बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि नरेंद्र मोदी मामले में आडवाणी जनता के मूड को पढ़ पाने में असक्षम रहे हैं.
बुधवार को अपने ट्विटर संदेश में सुशील कुमार मोदी ने कहा, “आडवाणी जी आम लोगों की भावनाओं को समझने में नाकाम रहे हैं. आडवाणीजी ने खुद ही अटल बिहारी वाजपेयी का नाम प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के लिए सुझाया था. अब उन्हें ऐसा ही नमो (नरेंद्र मोदी) के लिए करना चाहिए.”
बिहार बीजेपी विधायक दल के नेता सुशील मोदी ने गुरूवार को टेलीविज़न चैनल सीएनएन-आईबीएन को दिए गए एक इंटरव्यू में कहा कि उन्होंने अपने चार दशक के राजनीतिक सफ़र में किसी नेता के लिए इस तरह का अपार समर्थन नहीं देखा है और लोग चाहते हैं कि मोदी की उम्मीदवारी की घोषणा जल्द से जल्द की जाए .

अंतरकलह

पिछले दिनों ऐसी ख़बरें आती रही हैं कि भारतीय जनता पार्टी में प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी पर भारी अंतर कलह है और लालकृष्ण आडवाणी और उनके गुट के माने जाने वाले कुछ नेता गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी की घोषणा का विरोध कर रहे हैं.
इस गुट का ये कहना है कि नरेंद्र मोदी के नाम की घोषणा नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों के बाद किए जाए.
जबकि समाचार है कि बीजेपी के पैतृक संगठन राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ भी चाहता है कि प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के लिए नरेंद्र मोदी के नाम की घोषणा जल्द से जल्द की जाए.
बुधवार को बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह और लालकृष्ण की दिल्ली में हुई एक भेंट के बारे में भी यही कहा गया कि ये प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी पर उलझ गई गुत्थी को सुलझाने की एक और कोशिश थी.

बयान

समचार एजेंसियों ने सूत्रों के हवाले से ये भी दावा किया है कि आडवाणी का ये तर्क है कि विधानसभा चुनावों से पहले नरेंद्र मोदी के नाम की घोषणा से पार्टी को नुकसान होगा.
उनका कहना है कि गुजरात के मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा से वोटरों में सीधा बंटवारा हो जाएगा जो पार्टी के लिए ठीक नहीं होगा.
आडवाणी के विरोधी धड़े और कुछ राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि आडवाणी के विरोध के पीछे उनकी अपनी महत्वकांज्ञा है. उन लोगों का कहना है कि वो ख़ुद प्रधानमंत्री पद पाने का सपना रखते हैं इसलिए पार्टी के जरिए किसी और के नाम का एलान किए जाने का विरोध कर रहे हैं.
हालांकि बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी का कहना है कि एलके आडवाणी पर इस तरह का आरोप लगाना ग़लत है.
अपने ट्वीट में सुब्रह्मण्यम स्वामी ने लिखा है, "साल 1996 में आडवाणी प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे पसंदीदा उम्मीदवार थे. लेकिन तब उन्होंने एक बलिदान दिया था. ये कहना ग़लत होगा कि इस मामले में उनकी प्रधानमंत्री पद पाने की इच्छा है."
हालांकि पार्टी के प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नक़वी ने कहा कि पार्टी में इस बात को लेकर किसी तरह का मतभेद नहीं है और उम्मीदवार के नाम की घोषणा जल्द की जाएगी.
फिलहाल कहा जा रहा है कि इस मामले पर एलान शुक्रवार को हो सकता है.

वह शख्स, जिसने 9/11 की 'साज़िश' रची

वह शख्स, जिसने 9/11 की 'साज़िश' रची

 गुरुवार, 12 सितंबर, 2013 को 18:50 IST तक के समाचार

अमरीका बनाम मोहम्मद के मामले को शताब्दी का मुकदमा बताया जा रहा है.
न्यूयार्क में जब क्लिक करें 9/11 की 12वीं बरसी पर मृतकों के रिश्तेदार इकट्ठे हुए तब वहां से 1,400 मील दूर एक शख्स अपने मुक़दमे का इंतजार कर रहा था. वो दावा करता है कि वह हमलों का मास्टरमाइंड था.
अगस्त की एक सुबह क्यूबा के ग्वांतानामो में अदालत के कमरे में ख़ालिद शेख़ मोहम्मद दाखिल होते हैं. दरवाजा एक क्षण के लिए खुलता है और फर्श पर सूरज की रोशनी बिखर जाती है.
गैलरी से तीन कांच की प्लेटों के पीछे से लौरा और कैरोलीन ओगोनोवस्की उन्हें देखती हैं. ये दोनों अमरीकी क्लिक करें एयरलाइंस फ्लाइट 11 के 50 वर्षीय पायलट जॉन ओगोनोवस्की की बेटियां हैं.
ये वो पहला जहाज़ था जो 11 सितंबर 2001 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की इमारत से टकराया था.
टॉम और जोएन मीहान भी वहां थे, उन्होंने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में बेटी 26 वर्षीय कॉलीन बार्को को खोया. रोजमेरी डिलार्ड के 54 वर्षीय पति एडी उस जेट में थे, जो पेंटागन पर गिरा.
अदालत का कमरा शांत था.
गैलरी में मौजूद किसी ने उनके हाव-भाव पर कहा कि वह छोटे कद का भारी भरकम शख्स था. पहले उन्होंने दोनों हाथों से पगड़ी ठीक की. वह यूं चल रहा था मानो लगा स्टार वार्स का कोई चरित्र हो.
उन पर आतंकवाद के साथ 2,976 लोगों की हत्या का भी आरोप है.
अदालत के चित्रकार जैनेट हैम्लिन ने कहा, ''उनकी आवाज ऊंची थी.''

अमरीका बनाम मोहम्मद

मोहम्मद और अन्य चार प्रतिवादी, वालिद बिन अताश, अमार अल-बलूची (उन्हे अबद अल-अज़ीज अली के नाम से भी जाना जाता है), रम्जी बिनालशीभ और मुस्तफा अहमद अल-हावसावी पर आर्थिक मदद करने और उन आतंकियों को क्लिक करें प्रशिक्षित करने का आरोप है, जिन्होंने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर, पेंटागन और पेनसिल्वेनिया की ओर जेट उड़ाए.
" अगर हम कोई और देश होते तो उन्हें सामने खड़ा करते और गोली से उड़ा देते"
कैप्टन रॉबर्ट डूरंड, गुआंतनामो जेल के प्रवक्ता
उन पर आतंकवाद के साथ 2,976 लोगों की हत्या का भी आरोप है जिस पर उन्हे फांसी की सजा सुनाई जा सकती है.
अमरीका बनाम ख़ालिद शेख़ मोहम्मद के मामले को शताब्दी का मुकदमा बताया जा रहा है. इस पूरे प्रकरण के केंद्र में हैं अल क़ायदा के सदस्य.
ख़ालिद शेख़ मोहम्मद के खिलाफ़ चल रही कानूनी कार्यवाही अदालत के कमरे में मौजूद लोगों को न केवल उन्हें देखने बल्कि अल कायदा को समझने का भी मौका दे रही हैं.
48 वर्षीय ख़ालिद शेख़ मोहम्मद एक मैकेनिकल इंजीनियर हैं. माना जा रहा है कि अल कायदा द्वारा अमरीका पर हमलों के मास्टर माइंड वही थे.
अमरीकी फौजों के इराक में दाखिल होने से तीन हफ्ते पहले उन्हें पाकिस्तान में एक मार्च 2003 में पकड़ा गया.
उस समय अमरीकी डरे हुए थे. वो अनुमान लगा रहे थे कि अल कायदा कब दोबारा हमला कर सकता है.
तभी पेंटागन के अधिकारी इराक़ पर सैन्य कार्रवाई की तैयारियां कर रहे थे. बुश प्रशासन के अधिकारियों को क्लिक करें सद्दाम हुसैन और अल कायदा के बीच संपर्क के बारे में बताया गया.

प्रमाण

उप राष्ट्रपति डिक चेनी ने एक टेलीविजन इंटरव्यू में कहा, ''जो प्रमाण मिले वो जबरदस्त हैं.''
वर्ष 2009 में अमरीकी अटॉर्नी जनरल एरिक होल्डर ने घोषणा की कि ख़ालिद शेख़ मोहम्मद का ट्रायल न्यूयॉर्क में होगा.
उसी दौरान अमरीका में सुरक्षा को लेकर भावनात्मक तौर पर बहस ज़ोर पकड़ रही थी कि क्या अल कायदा गंभीर खतरा है.
उसके बाद राष्ट्रपति क्लिक करें बराक ओबामा औऱ उनके अधीनस्थों ने देश को इस डर से बाहर निकालने की हरसंभव कोशिश की. हालांकि तब कोई नहीं मान रहा था कि खतरा खत्म हो गया.
कंजरवेटिव नाराज हो रहे थे, कह रहे थे कि ख़ालिद शेख़ मोहम्मद अमरीका के लिए खतरा है. उन पर सैनिक अदालत में मुकदमा चलाया जाए.
होल्डर को इस योजना पर विराम लगाना पड़ा. अभियोग पक्ष ने वर्ष 2011 में ख़ालिद शेख़ मोहम्मद के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया.
तब से वे लोगों की नजरों में हैं. जेल में रहते हुए उन्होनें वैक्यूम क्लीनर को फिर से ईजाद करके दिखाया.
9/11 कमीशन रिपोर्ट के लेखकों के अनुसार, अल कायदा में ख़ालिद शेख़ मोहम्मद की छवि समय के साथ बदलती चली गई. 90 के दशक में उनकी लोकप्रियता चरम पर थी.
ख़ालिद शेख़ मोहम्मद के सहयोगी उन्हे बुद्धिमान, कार्यदक्ष और जल्दी आपा खोने वाला बताते हैं.
पूर्व सीआईए अफसर और 'अंडरस्टैंडिंग टेरर नेटवर्क' के लेखक मार्क सेगमन कहते हैं, ''बहुत ऊंचा उठने की उनकी छवि 9/11 हमलों के बाद बनी. जब ख़ालिद शेख़ मोहम्मद गिरफ्तार हुए तो उन्हे शहीद का दर्जा मिल गया.''
वैसे लंबे समय से अल कायदा के लोगों से संवाद नहीं होने से संगठन पर उनका प्रभाव खासा कम हो चुका है.

ट्रायल में देर

अभियोजन पक्ष चाहता है कि ट्रायल एक साल में शुरू हो जाए.
उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही कैंप जस्टिस नामक परिसर में एक धातु से बनी बिल्डिंग में हो रही है.
अभियोजन पक्ष चाहता है कि ट्रायल एक साल में शुरू हो जाए. लेकिन बचाव पक्ष के वकील बाउक कहते हैं कि इस मामले से जुड़े कानूनी मामलों को सुलझाने में कहीं ज्यादा समय लगेगा.
मोहम्मद के वकील का कहना है कि जब उन्हे सीआईए द्वारा रोमानिया और पोलैंड में संचालित गुप्त ठिकानों पर रखा गया तब खासी यातनाएं दी गईं.
पूछताछ में सबूत उगलवाने के लिए निर्ममता भी दिखाई गई. उनके वकील का कहना है कि इन वजहों से उनके खिलाफ लगाए गए आरोप निरस्त किए जाने चाहिए.
पिछले महीने जब ख़ालिद शेख़ मोहम्मद अदालत के कमरे में दाखिल हुए तो धूप का चश्मा लगाए थे. कोर्टरूम में वह सुकून में लग रहे थे.
"मौत का सौदागर हूं और मुख्य आरोपी, जो अब शहीद होना चाहता है", जैसा कि उन्होंने वर्ष 2008 में दावा किया. उन्होंने अदालत को विस्तार से अल कायदा में खुद के मास्टर माइंड होने के बारे में बताया. कोर्ट ने उन्हे शांति से सुना.

इमेज

अल कायदा के 'पब्लिक रिलेशन डायरेक्टर' ख़ालिद शेख़ मोहम्मद ने कोशिश की कि उनकी इमेज अल कायदा सरीखी दिखे, जिसके लिए उन्होनें दाढी को लाल-नारंगी रंग में रंगा. कुर्ता पहनने के साथ मिलिट्री स्टाइल में जैकेट पहनी, जिससे लगे कि वह लड़ाका हैं.
मोहम्मद का जन्म कुवैत शहर के उपनगर में एक धार्मिक परिवार में हुआ. वह पाकिस्तान के नागरिक हैं, हालांकि उनके रिश्तेदार बलूचिस्तान से ताल्लुक रखते हैं.
11 या 12 साल की उम्र में उन्होंने टीवी पर मुस्लिम ब्रदरहुड के प्रोग्राम देखने शुरू कर दिए. इसके बाद रेगिस्तान में चलने वाले कैंपों में हिस्सा लिया. जिहाद में दिलचस्पी दिखाई.
अमरीकी रक्षा विभाग की दिसंबर 2006 की रिपोर्ट के अनुसार, परिवार ने उन्हें पढाई के लिए अमरीका भेजा.
उत्तरी कैरोलीना एग्रीकल्चर एंड टैक्निकल स्टेट यूनिवर्सिटी से वर्ष 1986 में इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद वह अफगानिस्तान में युद्ध मोर्चों पर हाइड्रॉलिक ड्रिल्स लगाने का काम करने लगे.
रक्षा विभाग के अनुसार, उस समय वह अमरीका समर्थक मुजाहिदीन की मदद कर रहे थे. उन्होनें कहा, "बाद में मैं अमरीका का दुश्मन बन गया".
9/11 कमीशन रिपोर्ट के लेखकों का कहना है कि उन्होंने अमरीका में रहने के दौरान ऐसा कुछ नहीं देखा जिससे वह अमरीका विरोधी हो गए बल्कि उनका कहना था कि इसकी वजह अमरीका की इसराइल संबंधी नीतियां थीं.

मुस्लिम ब्रदरहुड

अल कायदा के लोगों से संवाद नहीं होने से संगठन पर उनका प्रभाव खासा कम हो चुका है.
जिहाद के मुस्लिम ब्रदरहुड ब्रांड से वह काफी प्रभावित रहे. सरकार के दस्तावेजों के अनुसार, वह हिंसा का सहारा लेना चाहते थे. उन्होंने खुद 2001 हमलों के लिए लक्ष्य तय किए.
9/11 कमीशन रिपोर्ट के लेखकों के अनुसार, उन्होंने 10 कामर्शियल जेट विमानों को हाईजैक करने की योजना बनाई थी. एक जेट वह खुद उड़ाना चाहते थे.
इन हमलों के कई महीने बाद में वाल स्ट्रीट जनरल पत्रकार डैनियल पर्ल एक आतंकी अहमद उमर सईद शेख से इंटरव्यू कर पाने में सफल हो गए.
शेख लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के पूर्व छात्र थे और कराची में रह रहे थे. इसके बाद पर्ल का अपहरण कर लिया गया और सिर उड़ा दिया गया.
ख़ालिद शेख़ मोहम्मद ने अदालत में कहा, "ये हत्या उन्होंने चाकू से की थी".
पाकिस्तान में गुप्त ठिकाने पर उन्होंने एक पत्रकार को बताया कि हमले की योजना इस तरह तैयार की गई थी कि ज्यादा से ज्यादा लोग मारे जाएं और अमरीका को उसी की ज़मीन पर तमाचा लगाया जा सके.
हमले के सात महीने बाद उन्हें रावलपिंडी में पकड़ा गया और पोलैंड ले जाया गया.

असद ने की रासायनिक हथियार सौंपने की पुष्टि

असद ने की रासायनिक हथियार सौंपने की पुष्टि

 गुरुवार, 12 सितंबर, 2013 को 19:36 IST तक के समाचार

असद
सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद ने रूसी टीवी पर इसकी पुष्टि की है कि उनके देश के रासायनिक हथियार अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण में दे दिए जाएँगे.
राष्ट्रपति असद ने रोसिया 24 नाम के चैनल को बताया कि ये फ़ैसला रूस की पहल के कारण हुआ है न कि अमरीका की सैनिक कार्रवाई के डर से.
उनका बयान ऐसे समय में आया है, जब रूस और अमरीका के विदेश मंत्री जिनेवा में अहम बातचीत की तैयारी कर रहे हैं.
अमरीका सीरिया पर आरोप लगाता रहा है कि उसने दमिश्क के बाहरी इलाक़े में नागरिकों पर ज़हरीली गैस से हमला किया, जिनमें सैकड़ों लोगों की मौत हो गई.
सीरिया इन आरोपों से इनकार करता रहा है और इसके लिए विद्रोहियों को ज़िम्मेदार बताता है.

तीन चरणों वाला प्रस्ताव

राष्ट्रपति बशर अल असद ने रूस के सरकारी टीवी चैनल रोसिया 24 को बताया, "सीरिया अपने रासायनिक हथियार अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण में रूस के कारण रख रहा है. अमरीकी धमकी से हमारा फ़ैसला प्रभावित नहीं है."
रूस के विदेश मंत्री सर्जेई लवारोफ़ ने अपने देश के प्रस्ताव को तीन चरणों में रखा था.
  1. रूस रासायनिक हथियार कन्वेंशन में शामिल हो, जो हथियारों के उत्पादन और इस्तेमाल को ग़ैर क़ानूनी मानता है
  2. सीरिया ये बताए कि उसके रासायनिक हथियार कहाँ रखे हुए हैं और अपने कार्यक्रम की भी जानकारी दे.
  3. विशेषज्ञ ये फ़ैसला करेंगे कि क्या विशेष क़दम उठाए जाएँगे.
क़ज़ाख़्तान की यात्रा पूरा कर रहे लवारोफ़ ने कहा, "मुझे पूरा भरोसा है कि सीरिया में शांति स्थापित होने की संभावना है. हम इसे मौक़े को हाथ से निकलने नहीं दे सकते."
उन्होंने रासायनिक हथियारों के ख़ात्मे का ज़िक्र नहीं किया. माना जा रहा है कि रूस और सीरिया के बीच बातचीत में यह ऐसा मुद्दा है, जो रूकावट पैदा कर सकता है.
रूस के विदेश मंत्री लवारोफ़ जिनेवा में अमरीकी विदेश मंत्री जॉन केरी से इस योजना पर चर्चा करने वाले हैं.

वोडाफोन के 20 लाख उपभोक्ताओं के निजी विवरण वाले डाटा चोरी

वोडाफोन के 20 लाख उपभोक्ताओं के निजी विवरण वाले डाटा चोरी

Updated on: Thu, 12 Sep 2013 08:11 PM (IST)
Vodafone
वोडाफोन के 20 लाख उपभोक्ताओं के निजी विवरण वाले डाटा चोरी
बर्लिन। सेलफोन और ब्राडबैंड प्रदाता वोडाफोन के डाटा को जर्मनी में बड़े पैमाने पर निशाना बनाया गया है। यहां उसके 20 लाख उपभोक्ताओं के डाटा चोरी हो गए जिसमें उनके व्यक्तिगत विवरण शामिल हैं।
गुरुवार को जारी एक बयान में कंपनी के प्रवक्ता एलेक्जेंडर लीनहोस ने कहा कि कंपनी के ही सिस्टम एडमिनिस्ट्रेटर ने ये डाटा उड़ाए हैं। इसे अंजाम देने वाले की पहचान नहीं हो पाई है। चोरी हुए डाटा में उपभोक्ताओं के नाम, पते, जन्मतिथि और बैंक विवरण हैं। हालांकि क्रेडिट कार्ट की जानकारी और पासवर्ड की चोरी नहीं हो पाई। इस घटना पर खेद व्यक्त करते हुए वोडाफोन ने अपने उपभोक्ताओं को आगाह किया है कि चोरी हुए डाटा का फायदा उठाने के मकसद से आने वाली अनचाही कॉल या ईमेल के प्रति सतर्क रहें। जर्मनी में कंपनी के 3.2 करोड़ से ज्यादा सेलफोन और करीब 30 लाख ब्राडबैंड के उपभोक्ता हैं।

बागपत: कारतूसों का जखीरा देख खुफिया एजेंसियां भी दंग

बागपत: कारतूसों का जखीरा देख खुफिया एजेंसियां भी दंग

Updated on: Thu, 12 Sep 2013 12:00 PM (IST)
Mujaffarnagar Riots
बागपत: कारतूसों का जखीरा देख खुफिया एजेंसियां भी दंग
बागपत। रमाला थाना क्षेत्र के किरठल गांव में पुलिस को सर्च अभियान के दौरान एके-47 के 41 कारतूस बरामद हुए हैं, जिसके बाद पुलिस ही नहीं खुफिया एजेंसियों के भी कान खड़े हो गए। सवाल यह है कि कहीं किरठल में एके-47 रायफल तो नहीं है और यदि यह हथियार है तो वह कहां से आया है और कौन लेकर आया है? गौरतलब है कि किरठल गांव में दो संप्रदायों के बीच गहरा तनाव है।

मंगलवार की रात फायरिंग होने के बाद बुधवार दिन में भी गांव में फायरिंग व पथराव हुआ। पुलिस बल के साथ मिलकर अभियान चलाकर संप्रदाय विशेष के लोगों के घरों की तलाशी लेनी शुरू की तो रोजुद्दीन के घर में तमंचों के कारतूस के अलावा एके-47 के 41 कारतूस बरामद होते ही पुलिस के साथ-साथ खुफिया एजेंसियों के भी कान खड़े हो गए हैं। पुलिस ने शक के आधार पर तलाशी लेकर रायफल बरामद करनी चाही तो वह बरामद नहीं हो सकी।

सीओ राजेश सोनकर ने बताया कि कि जिस घर से एके 47 के कारतूस बरामद हुए हैं उस घर का कोई सदस्य बीएसएफ में कार्यरत बताया गया है, जो इन कारतूस को लाया था। जांच कराई जा रही है।
सर्च अभियान बीच में ही बंद क्यों किया गया
पुलिस ने किरठल गांव में तलाशी अभियान शुरू किया, लेकिन संप्रदाय विशेष के लोगों ने पुलिस पर पथराव कर दिया। उसके बाद फिर पुलिस ने तलाशी अभियान चलाया। इस दौरान एके 47 के कारतूस बरामद हुए, लेकिन पुलिस ने बीच में ही तलाशी अभियान रोक दिया। सूत्रों का कहना है कि सर्च अभियान को बंद करने के लिए ऊपर से दबाव था।
अरुण कुमार, एडीजी कानून व्यवस्था ने बताया कि किरठल गांव में दो संप्रदाय के लोग आमने-सामने आ गए थे। सीओ का गनर पथराव में घायल हुआ है। वहां तलाशी में एके-47 के 41 कारतूस, नाइन एमएम के 17 कारतूस, पिस्टल का एक कारतूस, एक बंदूक और चाकू आदि बरामद किए गए हैं। घर से एके 47 के कारतूस बरामद होना गंभीर मामला है। जांच के बाद कड़ी कार्रवाई की जाएगी। 40 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

भटकल से पूछताछ में बड़ा खुलासा, देश में 10-12 आत्मघाती आतंकी मौजूद

भटकल से पूछताछ में बड़ा खुलासा, देश में 10-12 आत्मघाती आतंकी मौजूद

नई दिल्‍ली, 12 सितम्बर 2013 | अपडेटेड: 11:51 IST
आतंकी यासीन भटकल का सनसनीखेज खुलासा
आतंकी यासीन भटकल का सनसनीखेज खुलासा
इंडियन मुजाहिदीन के आतंकी यासीन भटकल ने पूछताछ के दौरान एक बड़ा खुलासा किया है. सूत्रों के अनुसार भटकल ने कहा है कि भारत में तीन-चार महिला आत्‍मघाती दस्‍ते सहित 10-12 हमलावर मौजूद हैं, जो आने वाले त्‍योहारों के मौकों पर हमला करने की फिराक में हैं.
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार एनआईए और आईबी की एक संयुक्‍त टीम ने यासीन भटकल और उसके साथ गिरफ्तार किए गए आतंकी असदुल्‍ला अख्‍तर उर्फ हड्डी को आमने-सामने बैठाकर पूछाताछ की. इस दौरान भटकल ने कहा कि सारे आत्‍मघाती हमलावरों को आईएसआई ने ट्रेनिंग दी है. इस खुलासे के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने सारे राज्‍यों का अलर्ट कर दिया है.
इससे पहले भटकल की हिरासत कोर्ट ने और 7 दिन के लिए बढ़ा दी है. जांच एजेंसी ने कोर्ट को बताया कि भटकल के लैपटॉप से तकरीबन 300 पन्नों के ईमेल मिले हैं. इसलिए इन्हें डीकोड करने के लिए थोड़ा और वक्त चाहिए.
सूत्रों के मुताबिक भटकल के साथी असदुल्ला ने एनआईए को हैदराबाद में अपने ठिकानों के बारे में बताया है. गौरतलब है कि भटकल को नेपाल बॉर्डर से गिरफ्तार किया गया था, जिसके बाद से लगातार उससे पूछताछ की जा रही है.

Indian media worried over falling education standards

Indian media worried over falling education standards

Newspapers have urged the government to reform India's higher education system 
Newspapers have urged the government to reform India's higher education system
Media are worried over the falling standards of higher education in the country after a study revealed that no Indian university is in the list of the world's top 200 institutions.
The Quacquarelli Symonds (QS) World University Rankings published on Tuesday ranked 800 universities from 76 countries on the basis of four criteria - research, teaching, employability and internationalisation.
Even the elite Indian Institutes of Technology (IITs), which are counted among the country's finest universities, could only manage a ranking of 222, the Hindustan Times reports.
The ratings are "an unpleasant surprise" to those who think that Indian higher education is world-class, the paper says in an editorial, adding that "there's little doubt that the absence of truly exemplary institutions of learning is terrible news for a country that aspires to be a world leader".
The Indian Express says that the government "has failed to act upon the infirmities in Indian institutions, in upgrading their curriculum, producing and recruiting the needed faculty, and regulating admissions - and allowing them enough autonomy to do so".
The paper, however, hopes that the government's decision to allow foreign universities to set up campuses in India will raise educational standards.
"The hope touched off by this move must encompass domestic educational providers too, by drawing attention… to the grave problems that inhibit state-funded universities from achieving their potential," it says.
The Tribune is also optimistic, saying that the "huge gap in demand and supply" in higher education will be addressed by the coming of foreign private universities.
Moving on to foreign affairs, India has decided to fund a power project in Liberia, the Zee News website reports.
In a press statement during a visit by Liberian President Ellen Johnson Sirleaf, Prime Minister Manmohan Singh on Wednesday said that India has been helping Liberia's development efforts and that "our decision to sign a line of credit agreement of $144m (£91m)… to fund a power transmission and distribution project in Liberia will further enhance our engagements".
Staying with foreign affairs, Indian Foreign Minister Salman Khurshid will have an "informal meeting" with his Pakistani counterpart Sartaj Aziz on the sidelines of the Shanghai Cooperation Organization meet in Kyrgyzstan on Friday, The Times of India reports.
"The engagement in Bishkek is expected to lay the groundwork for the proposed meeting later this month between PM Manmohan Singh and his counterpart Nawaz Sharif in New York where the two PMs will participate in the 68th session of the United Nations General Assembly," the report adds.
Curfew relaxed in Muzzafarnagar In domestic news, the riot-hit northern Indian town of Muzaffarnagar was "largely calm" after a curfew was relaxed for four hours on Wednesday, the DNA reports.
"Tens of thousands of men and women poured onto the streets for panic buying of essential commodities when authorities relaxed curfew… When the four hours got over, the otherwise bustling Muzaffarnagar again became a ghost town, taken over by soldiers and other security forces," the paper said.
At least 38 people have been killed since clashes erupted between Hindus and Muslims on Saturday.
Meanwhile, Bollywood and the south Indian film industry are all set to come together for a celebration marking 100 years of Indian cinema, the Deccan Herald reports.
Politicians and the "creme de la creme" from the Hindi, Tamil, Kannada, Telugu and Malayalam film industries will converge in Chennai for the four-day festival which starts on 21 September, the paper says.
And finally, the Reserve Bank of India (RBI) has appealed to people to refrain from using currency notes to make garlands, a common practice at weddings and political rallies.
Bank notes "should be respected as they are a symbol of the sovereign and the public should not misuse them," an RBI statement says.
Controversial Dalit leader Mayawati was criticised in 2010 for accepting a huge garland made entirely of 1,000-rupee notes.

जिन्ना : किस मोड़ पर खड़ा है जिन्ना के ख़्वाबों का पाकिस्तान?

किस मोड़ पर खड़ा है जिन्ना के ख़्वाबों का पाकिस्तान?

 गुरुवार, 12 सितंबर, 2013 को 09:19 IST तक के समाचार

मोहम्मद अली जिन्ना और महात्मा गाँधी
पाकिस्तानी अपने राष्ट्र निर्माता मोहम्मद अली जिन्ना की मौत के 65 साल बाद भी उनके नज़रिए और खोए हुए भाषणों को खोज रहे हैं.
पाकिस्तानियों को इस बात पर यक़ीन करने के लिए प्रेरित किया जाता रहा है कि जिन्ना ने पाकिस्तान का निर्माण इस्लाम के नाम पर एक धार्मिक देश के रूप में किया था. हालाँकि कई लोग इससे असहमत हैं और मानते हैं कि जिन्ना एक मुसलमानों की बहुसंख्यक आबादी वाले धर्मनिरपेक्ष देश का निर्माण करना चाहते थे.

तालिबानी चरमपंथ और इस्लामी अतिवाद के इस दौर में पिछले कुछ सालों से जिन्ना के इन दोनों नज़रियों पर बहस तेज़ हुई है. इस बहस के केंद्र बिंदु में 1947 में आज़ादी से कुछ दिन पहले दिए गए जिन्ना के भाषण भी हैं. इन भाषणों के प्रतिलेख पाकिस्तान में मौज़ूद हैं लेकिन स्पष्ट आवाज़ में इनकी रिकॉर्डिंग वहाँ उपलब्ध नहीं हैं.
वैसे तो पाकिस्तान की सरकारी रेडियो सर्विस 'रेडियो पाकिस्तान' के पास टूटी हुई आवाज़ में इन भाषणों की कुछ पुरानी रिकॉर्डिंग हैं. इनमें पाकिस्तान के गठन से तीन दिन पहले 11 अगस्त को कराची में संविधान सभा के समक्ष दिया गया जिन्ना का महत्वपूर्ण भाषण नहीं है.
पाकिस्तान के उदारवादियों के लिए यह एक महत्वपूर्ण भाषण था जिसमें जिन्ना ने बेहद स्पष्ट शब्दों में अपने सपनों के देश के बारे में जिक्र करते हुए कहा था कि जो देश वो बनाएंगे वह एक सहिष्णु समावेशी और धर्मनिरपेक्ष देश होगा.

इस भाषण में जिन्ना ने कहा था, "आप स्वतंत्र हैं. पाकिस्तान में आप अपने मंदिरों में जाने के लिए स्वतंत्र हैं, आप अपनी मस्जिदों में जाने के लिए स्वतंत्र हैं या आप अपने किसी भी अन्य प्रकार के पूजास्थल में जाने के लिए स्वतंत्र हैं. आप चाहे जिस भी धर्म, जाति या पंथ के हों, देश को इस बात से कोई मतलब नहीं होगा."

छेड़छाड़

मोहम्मद अली जिन्ना, लॉर्ड माउंटबेटन और श्रीमति माउंटबेटन
दस्तावेज़ बताते हैं कि उस वक़्त जिन्ना के करीब रहने वाले कट्टरपंथी धार्मिक नेताओं को उनका यह भाषण अच्छा नहीं लगा था और उन्होंने इसे अगले दिन के अख़बारों से लगभग गायब करा दिया था. पाकिस्तान की अगली सैन्य सरकारों पर तो जिन्ना के इन भाषणों को नज़रअंदाज़ करने और अधिकारिक दस्तावेज़ों से हटवाने के प्रयास करने तक के आरोप लगे.

पाकिस्तान के कुछ नेता जिन्ना के उस भाषण से इतना असहज क्यों थे? बहुत से लोग मानते हैं कि ये उनकी भारत विरोधी और हिंदू विरोधी विचारधारा के ज़रिए सत्ताकेंद्र बनाने की नीतियों के ख़िलाफ़ थी.
1970 और 1980 के दशक में जब पाकिस्तान का इस्लामीकरण हो रहा था और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर नए कठिन क़ानून लागू किए जा रहे थे तब उस भाषण के विवादित हिस्सों को आम लोगों की पहुँच से दूर ही कर दिया गया. ये जिन्ना की छवि बदले जाने का दौर था.
उन्हें एक पश्चिमी सोच वाले धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति के बजाए एक इस्लामवादी नेता के रूप में स्थापित किया जा रहा था और इसी बीच जिन्ना के उस ऐतिहासिक भाषण की संभावित ऑडियो रिकॉर्डिंग गायब हो गई. जिन्ना के पाकिस्तान के विचार को और भी अव्यवस्थित कर दिया गया.

देश के कट्टरपंथी सवाल करने लगे कि क्या क़ायद-ए-आज़म ने वे शब्द कहे भी थे या नहीं या कहे थे तो क्या उस वक़्त वे अपने होशो-हवास में थे और अगर कहे थे तो क्या उनके शब्दों का कोई और अर्थ भी हो सकता है. रेडियो पाकिस्तान के पूर्व महानिदेशक मुर्तज़ा सोलांगी इसे जानबूझकर इतिहास मिटाने का आपराधिक मामला मानते हैं.
हालाँकि वे पूरे विश्वास के साथ ये दावा नहीं करते हैं कि पाकिस्तान के पास उस ऐतिहासिक भाषण की ऑडियो रिकॉर्डिंग कभी थी भी या नहीं. हालाँकि इस भाषण की कॉपी हासिल करने के अपने पिछले कुछ सालों के प्रयासों के बाद वे ये दावा ज़रूर करते हैं कि यदि ये रिकॉर्डिंग कभी थी तो इसे पाकिस्तान ने जानबूझकर नष्ट कर दिया होगा.

भारत में आरटीआई

मोहम्मद अली जिन्ना
इस ऑडियो की खोजबीन में सोलांगी ने लंदन में बीबीसी से संपर्क किया. उन्हें बताया गया कि बीबीसी के अभिलेखों में जिन्ना के भाषणों के टेप नहीं है. फिर उन्होंने भारत में आल इंडिया रेडियो से संपर्क किया. आल इंडिया रेडियो ने उन्हें बताया कि उनके पास भाषण का ऑडियो है.
लेकिन इन भाषणों को उपलब्ध कराने में भारत ने दो साल का वक़्त और लिया. आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल के प्रयासों से एआईआर को इन्हें सार्वजनिक करने के लिए मजबूर होना पड़ा. इसलिए जब हाल ही में आल इंडिया रेडियो ने पाकिस्तान रेडियो को जिन्ना के 1947 में दिए गए दो भाषणों की असली रिकॉर्डिंग दी तब इसे एक कामयाबी के रूप में देखा गया.

हालाँकि सोलांगी को निराशा ही हाथ लगी क्योंकि उन दो भाषणों में 11 अगस्त 1947 को दिया गया भाषण नहीं था. जो रिकॉर्डिंग भारत ने पाकिस्तान को उपलब्ध करवाईं वे पहले से ही पाकिस्तान रेडियो के आर्काइव में थी. सोलांगी कहते हैं कि बस अब ये रिकॉर्डिंग बेहतर आवाज़ में हैं.
जो दो भाषण दिए गए हैं उनमें वर्तमान भारत की सीमाओं में दिया गया जिन्ना का अंतिम भाषण भी शामिल है. इस जिन्ना ने तीन जून 1947 को दिल्ली में दिया था. दूसरी रिकॉर्डिंग 14 अगस्त 1947 को संविधान सभा के समक्ष दिए गए जिन्ना के प्रचलित भाषण की है. इस भाषण को आल इंडिया रेडियो को साउंड इंजीनियरों ने रिकॉर्ड किया था.
उन्हें इस भाषण को रिकॉर्ड करने के लिए दिल्ली से कराची बुलाया गया था क्योंकि तब जन्म ले रहे पाकिस्तान के पास ऐसे भाषण को रिकॉर्ड करने के लिए रेडियो स्टेशन उपलब्ध नहीं था. माना जाता रहा है कि आल इंडिया रेडियो के इंजीनियरों ने कराची में दिए गए जिन्ना के दोनों भाषणों को रिकॉर्ड किया था. इनमें 11 अगस्त को दिया गया वह ऐतिहासिक भाषण भी शामिल था.
सोलांगी कहते हैं, "उन्होंने पहले मुझसे कहा था कि उनके पास 11 अगस्त के भाषण की रिकॉर्डिंग भी है लेकिन अब वे इस बारे में गोलमोल जबाव दे रहे हैं. बाकी लोगों से उन्होंने कहा कि ये उनके पास नहीं है. इसलिए अभी हम पुख़्ता तौर पर ये नहीं कह सकते कि ये रिकॉर्डिंग उनके पास है या नहीं."

इस्लामी पहचान

कराची में जिन्ना की मजार
कुछ पाकिस्तानी शक करते हैं कि इसका संबंध भारत में प्रचलित बँटवारे और उसके दौरान हई हिंदू-मुस्लिम हिंसा के लिए जिन्ना को ज़िम्मेदार बताने वाली धारणा से भी हो सकता है. जिन्ना को भारत का विभाजन कराने वाला व्यक्ति बताया जाता रहा है.

हालाँकि यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कि यदि भाषण की रिकॉर्डिंग है तो फिर जब भारत के अधिकारियों ने बाकी दो भाषण उपलब्ध करवा दिए तो फिर 11 अगस्त की रिकॉर्डिंग उपलब्ध क्यों नहीं करवाई. इस्लामाबाद स्थित थिंक टैंक 'जिन्ना इंस्टीट्यूट' के निदेशक रज़ा रूमी मानते हैं कि भारतीय अधिकारी जानबूझकर ऐसा कर रहे हैं.
वे कहते हैं, "भारतीय अफ़सरशाही में मौज़ूद लालफीताशाही के मद्देनज़र जिन्ना के रिकॉर्डिंग माँगने की गुज़ारिश का काग़ज़ों में खो जाना कोई चौंकाने वाली बात नहीं होगी. जिन्ना के 11 अगस्त के भाषण की रिकॉर्डिंग भारत और पाकिस्तान के इतिहास के छात्रों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो सकती हैं."
यदि ये रिकॉर्डिंग कभी मिल भी गईं तो क्या ये पाकिस्तान में हाशिये पर रह रहे उदारवादी लोगों को कट्टरपंथियों और धार्मिक अतिवादियों से बहस जीतकर पाकिस्तान को गहरी इस्लामी पहचान से मुक़्त करने में मदद कर पाएंगी?
सोलांगी कहते हैं, "यह धार्मिक कट्टरपंथियों को इस बात पर राज़ी करने के लिए नहीं है कि जिन्ना एक अलग तरीके का पाकिस्तान चाहते थे बल्कि ये खंडित इतिहास को सुधारकर लोगों को यह सोचने देने के लिए है कि वे किस तरह का पाकिस्तान चाहते हैं."

जिन्ना, भारत, विभाजन, आज़ादी!

गांधी और जिन्ना
भारत में जिन्ना विभाजन के ज़िम्मेदार समझे जाते रहे हैं
बात जुलाई 2006 की है जब जसवंत सिंह ने अपनी आत्मकथा “ए कॉल टू ऑनर: इन सर्विस ऑफ़ इमर्जेंट इंडिया” में ज़िक्र किया कि नरसिंह राव के काल में प्रधानमंत्री निवास में एक ऐसा भेदी भी था जो अमरीकियों को ख़ुफ़िया जानकारी दिया करता था.
इस बात पर एक हंगामा खड़ा हो गया. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जसवंत सिंह को चैलेंज किया कि वह उस घर के भेदी का नाम बताएं.
जवाब में मनमोहन सिंह को जसवंत सिंह की ओर से बिना हस्ताक्षर का एक पत्र भेजा गया जिसमें यह स्वीकार किया गया कि उन्होंने प्रधानमंत्री हाउस में अमरीकी जासूस की मौजूद की बात सिर्फ़ शक और अनुमान की बुनियाद पर की थी.
हालांकि अगर जसवंत सिंह चाहते तो वह पारंपरिक राजनेता के तौर पर ये कह कर भी जान छुड़ा सकते थे कि वह जल्द ही या उचित समय पर अमरीकी जासूस का नाम बताएंगे.
जसवंत सिंह की गणना उन गिने चुने वरिष्ठ राजनेताओं में होती है जिन्हें हमेशा वित्त, रक्षा और विदेश मंत्रालय जैसे संवेदनशील मंत्रालय मिलते रहे हैं.
वर्ष 2001 में उन्हें बेहतरीन सांसद के पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया.

बिना पढ़े ही...

इस स्तर का आदमी जब भारत में मोहम्मद अली जिन्ना जैसे विवादास्पद व्यक्तित्व के बारे में अपनी ताज़ा किताब ‘जिन्ना, भारत, विभाजन, आज़ादी’ में परंपरा से हट कर कोई बात करता है और जिन्ना को सेक्युलर, एक महान भारतीय और विभाजन का ज़िम्मेदार होने से ख़ारिज करने का ऐलान करता है तो उस पर फ़ौरन प्रतिक्रिया के बजाए किताब को पढ़ कर उस पर सकारात्मक और नकारात्मक राय क़ायम करना ज़्यादा उचित होता.
भारतीय जनता पार्टी की जिस कमेटी ने 30 साल से पार्टी में शामिल जसवंत सिंह जैसे सीनियर आदमी के निष्कासन का फ़ैसला किया है उससे क्या ये आशा रखी जा सकती है कि उस कमेटी ने फ़ैसला देने से पहले 17 अगस्त को रिलीज़ होने वाली इस किताब को शुरू से आख़िर तक पढ़ा होगा?
जसवंत सिंह ने अपनी ताज़ा किताब की ऐडवांस कॉपी जिन लोगों को भेजी उनमें लालकृष्ण आडवाणी भी शामिल हैं. ये बात इसलिए भी समझ में आती है क्योंकि एलके आडवाणी ने 2005 में कराची में मोहम्मद अली जिन्ना के मज़ार पर हाज़री देने के बाद कहा था कि जिन्ना उन लोगों में शामिल हैं जो न सिर्फ़ सेक्युलर थे बल्कि उन्होंने अपने हाथों इतिहास रचा.
आडवाणी ने जिन्ना के 11 अगस्त 1947 के भाषण का भी हवाला दिया जिसमें उन्होंने राष्ट्र और निजी विश्वास को अलग अलग ख़ानों में रखने की बात की थी.
हिंदुत्व के स्तंभ और “जो हिंदू मत पर बात करेगा वही देश पर राज करेगा” जैसे नारों के तले जीवन भर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का जाप करने वाले भाजपा अध्यक्ष के मुंह से जिन्ना के सेक्युलर और इतिहास रचने वाले व्यक्ति होने की बात आरएसएस के लिए एक बम से कम न थी.
और इससे भी ज़्यादा हैरान करने वाली बात ये थी कि आडवाणी ने ये कहते हुए भाजपा के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया कि जिन्ना के बारे में वह अपने विचारों पर क़ायम हैं.
भारतीय अखंडता का झंडा उठाने वाली आरएसएस की ओर से आडवाणी की जो ले दे हुई वह तो अपनी जगह है लेकिन सेक्युलर कांग्रेस भी आडवाणी की निजी राय का बोझ न सह सकी और उसके प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने जिन्ना को सेक्युलर कहने वाले आदमी के बयान पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अब आडवाणी को ये भी बताना चाहिए कि उनके अनुसार सेक्युलर शब्द का क्या अर्थ है.

निजी राय

मज़े की बात तो ये है कि आडवाणी को भाजपा ने लोक सभा के पिछले चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश किया और भाजपा की हार के बाद वह संसद में विपक्ष के नेता हैं, जबकि जसवंत सिंह को पार्टी से निकाल दिया गया. हालांकि जसवंत सिंह कहते ही रह गए कि ये किताब उनकी निजी राय और शोध है और इसका भाजपा की नीति या पक्ष से कोई लेना देना नहीं है.
कोई ये भी नहीं कह सकता है कि आडवाणी का मांसिक संतुलन ठीक नहीं है या जसवंत सिंह सठिया गए हैं. उनमें से एक की ख्याति उग्रवादी विचारधारा के लिए है और दूसरे की शोहरत ख़ुद भाजपा में ही एक उदारवादी प्रजातांत्रिक की है.
विचार और पृष्ठभूमि के इतने बड़े अंतर के बावजूद अगर ये दोनों नेता मोहम्मद अली जिन्ना के बारे में एक जैसे विचार रखते हैं तो जिन्ना के जीवन के कुछ पहलू तो ज़रूर ऐसे होंगे जो छह दशक बीत जाने के बाद भी ऐसे तजुर्बेकार और कट्टर राजनीतिक विचार रखने वाले व्यक्तियों का विचार बदल रहे हैं.
अच्छी बात ये है कि कम से कम भारत में शैक्षणिक और शोध कार्य उस वयस्कता के स्तर पर पहुंच रहे हैं जहां अहं और राजनीतिक मसलेहत को एक ओर रख कर अपने विरोधियों पर भी ईमानदारी या परंपरा से हट कर गंभीरता से शोध की कोशिश हो रही है.
जबकि पाकिस्तान में आज भी अगर कोई ज़िम्मेदार शोधकर्ता विभाजन, गांधी, नेहरू या मुजीब को परंपरागत विचारधार से अलग होकर तथ्यों की कसौटी पर रख कर परखने की कोशिश करे तो उसे स्वयं को ग़द्दार, देश द्रोही, भारतीय एजेंट या रॉ का एजेंट कहलवाने और भर्त्सनापूर्ण बयानों और प्रदर्शन के लिए मानसिक रूप से तैयार रहने की ज़रूरत है.


जिन्ना का भाषण भारत से 'गायब'

 शनिवार, 9 जून, 2012 को 15:22 IST तक के समाचार

पाकिस्तान ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन मोहम्मद अली जिन्ना का भाषण ढूंढ रहा है.
भारत के सरकारी रेडियो ‘ऑल इंडिया रेडियो’ यानी एआईआर ने बीबीसी को बताया है कि उसके पास पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के वर्ष 1947 में दिए गए भाषण की रिकॉर्डिंग नहीं है.
पाकिस्तान के सरकारी प्रसारक, पाकिस्तान ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन ने एआईआर से वो ऐतिहासिक भाषण मांगा था जिसमें जिन्ना ने कहा था कि बिना किसी सरकारी दखल के लोग किसी भी मजहब के अनुयायी बने रह सकते हैं और पाकिस्तान एक धर्मनिरपेक्ष देश रहेगा जिसमें सभी को अपने मजहब के पालन की छूट होगी.
जिन्ना ने पाकिस्तान के बनाए जाने की घोषणा के तीन दिन पहले संविधान सभा को संबोधित किया था.
वहीं ऑल इंडिया रेडियो के महानिदेशक एल डी मंड्लोई ने बीबीसी को बताया, “एक विशेष तिथि पर की गई रिकॉर्डिंग के बारे में मुझे पाकिस्तान ब्रोडकास्टिंग कॉर्पोरेशन से फोन आया था, लेकिन हमारे पास वो टेप नहीं है.”

बीबीसी से गुजारिश

मंड्लोई ने कहा कि वो अब इसकी जानकारी प्रसार भारती को देंगे और ये सूचना पाकिस्तान को दी जाएगी.
"आप अपने मंदिरों में जाने के लिए आजाद हैं, आप अपने मस्जिदों में या और पूजा के किसी भी स्थान में जाने के लिए पाकिस्तान में आजाद हैं."
मोहम्मद अली जिन्ना का भाषण
पाकिस्तान के अधिकारियों के मुताबिक उन्होंने इस रिकॉर्डिंग के लिए पहले बीबीसी से संपर्क किया था.
पाकिस्तान ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन के महानिदेशक मुर्तजा सोलंगी ने भारत की समाचार एजंसी पीटीआई को बताया कि बीबीसी भी अपने आर्काइव में इस रिकार्डिंग को नहीं ढूंढ पाया.
सोलंगी ने कहा, “ये भाषण उन लोगों के लिए बहुत जरूरी है जो अपने देश पाकिस्तान को, एक आधुनिक, बहुलवादी और लोकतांत्रिक देश बनाना चाहते हैं.”

पाकिस्तान में भी नहीं मिला

भाषण में जिन्ना ने कहा था कि, “आप आजाद हैं; आप अपने मंदिरों में जाने के लिए आजाद हैं, आप अपने मस्जिदों में या और पूजा के किसी भी स्थान में जाने के लिए पाकिस्तान में आजाद हैं.”
उन्होंने कहा था कि, “आप किसी भी मजहब, जाति या संप्रदाय से ताल्लुक रखते हों, सरकार का इससे कोई लेनादेना नहीं है.”
पाकिस्तान ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन के महानिदेशक मुर्तजा सोलंगी के मुताबिक वर्ष 1947 में भारत का वो हिस्सा जो अब पाकिस्तान है, वहां के रेडियो स्टेशन्स में रिकॉर्डिंग की उचित सुविधाएं नहीं थीं, इसलिए वे जिन्ना का ये भाषण रिकॉर्ड नहीं कर पाए.


क़ायदेआज़म जिन्ना का घर बम धमाके में तबाह

 शनिवार, 15 जून, 2013 को 15:42 IST तक के समाचार

ज़्यारत रेसीडेसी,पाक
जिन्ना दो महीने तक इस मकान में रहे थे.
पाकिस्तान में अधिकारियों का कहना है कि बलूचिस्तान प्रांत में स्थित देश के संस्थापक क्लिक करें मोहम्मद अली जिन्ना का घर बम धमाके में जलकर तबाह हो गया है.
प्रांत के अतिरिक्त डिप्टी कमिश्नर नसीब काकड़ ने बीबीसी को बताया कि पिछली रात ज़्यारत टाउन में क़रीब के पहाड़ियों से कुछ हथियारबंद हमलावर क्लिक करें मोहम्मद अली जिन्ना के घर 'ज़्यारत रेसिडेंसी' में दाख़िल हो गए और बम फ़ेकने के अलावा फ़ायरिंग भी करने लगे.
इस हमले में वहां मौजूद एक सुरक्षाकर्मी की मौत हो गई.
अधिकारी के अनुसार बम फटने से आग लग गई जिसके कारण इमारत पूरी तरह तबाह हो गई.

धरोहर जलकर ख़ाक

यहां तक की मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली चीज़ें जिन्हें राष्ट्रीय धरोहर का सम्मान हासिल था वे भी पूरी तरह जलकर ख़ाक हो गईं.
ज़्यारत रेसीडेसी,पाक
चरमपंथियों के बम हमले में ये जलकर ख़ाक हो गया.
अधिकारी के अनुसार घर के क़रीब एक लाइब्रेरी भी मौजूद थी हालांकि उसे आग से किसी तरह का नुक़सान नहीं हुआ.
पुलिस के अनुसार हमलावर भागने में कामयाब हो गए और बम निरोधक दस्ते ने चार बमों को निष्क्रिय कर दिया.
बलूचिस्तान की ज़्यारत रेसिडेंसी एक ख़ूबसूरत इलाक़े में बना हुआ पर्यटक स्थल है. मोहम्मद अली जिन्ना अपनी मौत से पहले यहां रहा करते थे.
इस इमारत की तामीर 1892 में की गई थी. तब ब्रितानी अफ़सर छुट्टियों के दौरान यहां रहा करते थे.
1947 में पाकिस्तान बनने के बाद मोहम्मद अली जिन्ना उसके पहले गवर्नर जनरल बने.
1948 में ख़राब स्वास्थ्य के कारण जिन्ना बलूचिस्तान के इसी घर में रहने लगे थे और अपनी ज़िंदगी के आख़िरी दो महीने उन्होंने इसी घर में गुज़ारे थे.
उनकी मौत के बाद पाकिस्तान सरकार ने इस घर को 'क़ायद-ए-आज़म रेसिडेंसी' के नाम से राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर दिया गया था. हर साल गर्मियों के मौसम में देश भर से कई पर्यटक इसके दर्शन करने आते हैं.