Saturday 8 February 2014

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अफ़ज़ल की फाँसी के साल भर बाद घाटी की फ़िज़ा

अफ़ज़ल की फाँसी के साल भर बाद घाटी की फ़िज़ा

 रविवार, 9 फ़रवरी, 2014 को 10:01
अफ़ज़ल को फाँसी के विरोध में प्रदर्शन
नौ फ़रवरी 2013 को जब कश्मीर घाटी में लोग जागे तो उन्होंने खुद को बेहद कड़े सुरक्षा इंतज़ामों में घिरा पाया. चप्पे-चप्पे पर सुरक्षाबल तैनात थे. वजह थी संसद हमलों के दोषी अफज़ल गुरु को तिहाड़ जेल में फाँसी पर चढ़ा कर दफ़न कर दिया जाना.
अब एक साल बाद भी अफ़ज़ल गुरु को दी गई फाँसी की वैधता पर बहसें ज़ारी हैं साथ ही उनके शव को वापस लाने के लिए भी आवाज़े उठ रही हैं. तिहाड़ जेल में फाँसी पर चढ़ाकर दफ़नाए गए अफ़ज़ल गुरु पहले कश्मीरी नहीं हैं.
उनसे पहले जम्मू कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट के मक़बूल बट को भी तिहाड़ ही दफ़नाया जा चुका है. संयोगवश बट को भी फ़रवरी के महीने में ही 11 तारीख को साल 1984 में फाँसी दी गई थी.

विरोध के स्वर

भारत प्रशासित कश्मीर में सभी अलगाववादी संगठनों ने दोनों फाँसियों के विरोध और उनके शवों को वापस घाटी लाने के लिए होने वाले प्रदर्शनों की तारीख़े तय कर दी हैं.
गोष्ठियाँ आयोजित की जा रही हैं, प्रस्ताव पारित किए जा रहे हैं और सड़कों पर प्रदर्शन हो रहे हैं. लोगों से 9, 10 और 11 फ़रवरी को तीन दिन की हड़ताल रखने के लिए कहा गया है.
अफ़ज़ल गुरु को फाँसी दिए जाने की कश्मीर में व्यापक प्रतिक्रिया नहीं हुई है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इसका घाटी पर असर नहीं हुआ है. निश्चित तौर पर इसका मनोवैज्ञानिक असर हुआ है.

फाँसी का असर

अफ़ज़ल गुरू की टाइमलाइन

  • 13 दिसंबर 2001: भारत की संसद पर हमला हुआ
  • 15 दिसंबर 2001: अफ़ज़ल गुरू को दिल्ली पुलिस ने गिरफ़्तार किया
  • 18 दिसंबर 2002: पोटा अदालत ने अफ़ज़ल गुरू को फाँसी की सज़ा दी
  • 29 अक्टूबर 2003: दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरू की अपील को ख़ारिज़ कर सज़ा बरक़रार रखी
  • चार अगस्त 2005: सुप्रीम कोर्ट ने भी अफ़ज़ल गुरू की याचिका ख़ारिज़ की
  • तीन फ़रवरी 2013: भारत के राष्ट्रपति ने अफ़ज़ल गुरू की दया याचिका ख़ारिज़ की
  • नौ फ़रवरी 2013: दिल्ली की तिहाड़ जेल में अफ़ज़ल गुरू को बेहद गुपचुप तरीके से फाँसी देकर दफ़नाया गया
29 साल पहले जब मक़बूल बट को फाँसी दी गई थी तब भी कुछ होता हुआ दिखाई नहीं दिया था लेकिन इतिहास ग़वाह है कि मकबूल को फाँसी दिए जाने के बाद सैकड़ों कश्मीरी युवा नियंत्रण रेखा पार कर सैन्य प्रशिक्षण लेने पाकिस्तान चले गए थे और भारत सरकार को चुनौती देने के लिए एके 47 राइफ़लों के साथ लौटे थे.
हथियारबंद संघर्ष के पीछे मक़बूल बट की फाँसी ही इकलौती वजह नहीं थी. उसके कई अन्य कारण भी थे जैसे 1987 चुनावों में कथित घपलेबाज़ी, अफ़ग़ानिस्तान में जेहाद और ईरान में क्रांति. लेकिन बट को हुई फाँसी इन सब कारणों पर भारी थी. बंदूक उठाने वाले पहले कश्मीरी युवाओं की आँखों में भी जम्मू-कश्मीर की आज़ादी का बट देखा सपना ही था.
सिर्फ़ बट को हुई फाँसी से ही चरमपंथ की शुरूआत नहीं हुई थी लेकिन इसने कश्मीर के युवाओं को अपने इतिहास से ज़रूर जोड़ दिया था. इतिहास जानने के बाद उन्हें अहसास हुआ था कि श्रीनगर और नई दिल्ली के बीच सबकुछ ठीक नहीं हैं. इसी अहसास ने गुस्सा और अलगाव की भावना पैदा की.
अगर हम बट की फाँसी से परे देखें तो पाएंगे कि इंदिरा गाँधी और शेख़ अबदुल्ला के बीच 1975 में हुए समझौते के बाद कश्मीर ने इस तथ्य को एक तरीके से स्वीकार कर लिया था कि उसे अब भारत के साथ ही रहना है.
कश्मीर में बहुत कम ही ऐसे लोग थे जो संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों या जनमत संग्रह की बात करते थे. हालाँकि हॉकी और क्रिकेट के मैदानों में जब भारत और पाकिस्तान की टीमें आमने सामने होती थी तो नारे ज़रूर पाकिस्तान ज़िंदाबाद के लगते थे.

बदले हालात

बट को फाँसी दिए जाने के बाद हालात तेज़ी से बदले. कश्मीर की जनता ने खुद को अपनी कश्मीरी और मुस्लिम पहचान पर ज़ोर देना शुरू कर दिया. इसका नतीज़ा यह हुआ कि बट को फाँसी पर चढ़ाए जाने के तीन साल के भीतर ही मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट का गठन हो गया. फ्रंट चुनावों में उतरा लेकिन चुनावों पर घपलेबाज़ी के आरोप लगे.

अफ़ज़ल गुरू पर आरोप

  • भारतीय दंड संहिता की धारा 121 और 121ए के तहत भारत के ख़िलाफ़ युद्ध करने, युद्ध को प्रेरित करने, युद्ध के प्रयास करने और युद्ध की साज़िश रचने के आरोप.
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 122 के तहत भारत के ख़िलाफ़ युद्ध की मंशा से हथियार इकट्ठा करने के आरोप
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 302 और 307 के तहत हत्या और हत्या के प्रयास के आरोप
  • आतंकवाद रोकथाम अधिनियम (2002) की धारा 3(3) (4) और (5) के तहत चरमपंथी घटना को अंजाम देने की साज़िश रचने और मारे गए चरमपंथियों को यह जानने के बावजूद की वे चरमपंथी हैं, पनाह देने और मदद करने के आरोप.
लोकतांत्रिक प्रक्रिया से निराश युवाओं ने सीधे जंग का फ़ैसला कर लिया.
गुरु की फाँसी से पहले के कश्मीर पर एक नज़र डालते हैं. 2010 में कट्टरपंथी अलगाववादी नेता सैयद अली गीलानी के नेतृत्व में हुए 'क्विट इंडिया' प्रदर्शनों की नाकामी ने युवाओं को दोबारा सोचने पर मज़बूर कर दिया.
प्रदर्शनों में सौ से अधिक कश्मीरी युवाओं की मौत लोगों को इस भ्रम से भी बाहर निकाल दिया कि वे पत्थर फेंककर वे कश्मीर से भारत को बाहर निकाल सकते हैं.

शांतिप्रिय दौर

मक़बूल बट
मक़बूल बट को 1984 में दिल्ली की तिहाड़ जेल में फाँसी दे दी गई थी. (फ़ाइल फ़ोटो)
इसके बाद के दो साल बेहद शांतिप्रिय रहे. स्कूल खुले रहे, आर्थिक गतिविधियां चलती रहीं और घाटी पर्यटकों से भर गई. इस सबके साथ और भी कई सकारात्मक चीज़े हुईं. इसके यह मायने नहीं थे कि कश्मीरी युवाओं ने भारत के हक़ में फ़ैसला ले लिया था बल्कि वे इच्छाओं से निकलकर कुछ करने की सोचने लगे थे.
विरोध प्रदर्शनों का आकर्षण ख़त्म हो गया था. अफ़ज़ल गुरु को फाँसी पर चढ़ाए जाने के हालात ऐसे ही थे जैसे कि 80 के दशक में बट को फाँसी पर दिए जाने के दौरान थे.
ध्यान देने वाली एक बात और है. युवाओं ने जब मक़बूल बट को पहचाना, उनके जीवन को पढ़ा और पाया कि वे उदारवादी, धर्मनिर्पेक्ष और लोकतांत्रिक थे क्योंकि वे एक आज़ाद, प्रजातांत्रिक और धर्मनिर्पेक्ष कश्मीर चाहते थे.
गुरु के मामले में कहानी बिलकुल उलटी है.

ज़रूरी 'शहीद'

आज के युवाओं को बताया गया है कि अफ़ज़ल गुरु जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े थे. ये ऐसा समूह है जिसमें कश्मीरी कुछ भी नहीं है. ये एक बड़े वैश्विक जेहाद गठजोड़ का हिस्सा है. इसलिए युवा जब अफ़ज़ल गुरु को पहचानेंगे तो सीधे या परोक्ष रूप से जैश को भी पहचानेंगे.
सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों को ऊपर से देखने से ही पता चल जाता है कि कश्मीर के युवा फाँसी के बाद से ही खुद को अफ़ज़ल गुरु से जोड़ कर देख रहे हैं. फाँसी से पहले बहुत से लोग गुरु को लेकर उदासीन थे. यहाँ तक की अलगाववादी समूह तक कभी कभार प्रेस रिलीज़ भेजने के सिवा कुछ खास नहीं करते थे. लेकिन फाँसी पर चढ़ाए जाने के बाद से ही वे एक 'शहीद' बन गए हैं.
ऐसा 'शहीद' जिसकी अलगाववादियों को बहुत ज़रूरत थी.

पेट्रोल की चोरी:एक बार लीवर को फटका दिया तो आपको दो से पांच रुपए का नुकसान,ऐसे होती है पेट्रोल की चोरी, एक झटके में लग जाती है 5 रुपए की चपत

पेट्रोल की चोरी:एक बार लीवर को फटका दिया तो आपको दो से पांच रुपए का नुकसान,ऐसे होती है पेट्रोल की चोरी, एक झटके में लग जाती है 5 रुपए की चपत

Feb 09, 2014, 10:21AM IST

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जमशेदपुर. पंप पर पेट्रोल लेते वक्त सावधान रहें, सेल्समैन ने एक बार लीवर को फटका
दिया तो आपको दो से पांच रुपए का नुकसान हो सकता है। जानकारों के अनुसार, तेल
कम नापने का खेल सिर्फ रिमोट चिप से ही नहीं होता, बल्कि गाड़ी की टंकी में पेट्रोल
 भरते वक्त सेल्समैन का बार-बार लीवर दबाना और झटकना भी तेल चोरी के 
तरीकों में शामिल है। बार-बार लीवर दबाने से तेल देने वाली पाइप में वैक्यूम की
 स्थिति बन जाती है। इससे हर बार 20 से 50 मिलीलीटर पेट्रोल पाइप में रह जाता है,
जबकि मीटर की रीडिंग पूरी दिखती है। यानी, आपने सेल्समैन पर ध्यान नहीं दिया,
 तो एक लीटर में लगभग पांच रुपए तक की मार पड़ सकती है।


बातें, जिन पर ध्यान देना जरूरी
  • पेट्रोल लेने से पहले मीटर देख लें कि जीरो है या नहीं ?
  • सेल्समैन को लीवर दबा उसे लॉक कर पेट्रोल देने को कहें।
  • सेल्समैन बार-बार लीवर दबाए, तो उसे मना करें।
स्टेप, जो आपको उठाना चाहिए
  • नापी पर शक हो, तो किसी बोतल या डिब्बे में एक लीटर पेट्रोल लें और उसे सेल्समैन से नापने कहें।
  • गड़बड़ी हो, तो तत्काल शिकायत पंप के मैनेजर से करें।
  • हर पंप पर ऑयल कंपनियों के क्षेत्रीय प्रबंधक का फोन नंबर रहता है, उनसे शिकायत करें।
  • सुनवाई न हो, तो आप उपभोक्ता अदालत भी जा सकते हैं।
ऐसे होती है पेट्रोल की चोरी, एक झटके में लग जाती है 5 रुपए की चपत
नजर रखें, ऐसे होती है चोरी
पेट्रोल देते समय सेल्समैन पंप का मीटर ऑन करते हैं। इसके बाद गाड़ी की टंकी में नोजल
 डालकर वे लीवर को दबाते या झटका देते हैं। इससे वैक्यूम हो जाता है और पाइप में 20-50
 एमएल पेट्रोल रह जाता है। दूसरी ओर मीटर रीडिंग जारी रहता है।

25 एमएल कम, तो दो रुपए की मार
शहर में पेट्रोल की कीमत अभी 71.72 रुपए है। एक लीटर पेट्रोल भरते समय अगर मात्र 25
मिलीलीटर की चोरी हो, तो उपभोक्ता को लगभग दो रुपए की चपत लगती है। दिनभर में
 इस तरह सैकड़ों लोगों की जेब कटती है व हजारों रुपए की चपत लगाई जाती है। अनेक
उपभोक्ता इन बातों से अनजान हैं।

ऐसे होती है पेट्रोल की चोरी, एक झटके में लग जाती है 5 रुपए की चपत
कैसे होती है चोरी
ऐसे पेट्रोल पंप जहां मैनुअल मीटर लगे हुए हैं, वहां लीवर का खेल चलता है। लेकिन, ऐसी व्यवस्था पहले थी। अब पंप पर ऑटोमेटिक मीटर लग गए हैं। इसमें लीवर खेल की आशंका काफी कम है। यदि उपभोक्ताओं को किसी तरह का आशंका हो तो वे जांच कर सकते हैं। इसकी भी व्यवस्था पेट्रोल पंपों पर है।पंपों पर चोरी नहीं हो इसके लिए और कदम उठाए जा रहे हैं। इसका लाभ उपभोक्ताओं को शीघ्र मिलने लगेगा। प्रकाश जोशी, सेल्स प्रबंधक, भारत पेट्रोलियम

पेट्रोल की चोरी होती है यह तो गाड़ी चलाने पर ही पता चलता है। मीटर रीडिंग ठीक रहने के बाद भी माइलेज काफी कम हो जाता है। इसका मतलब है कि पेट्रोल में कहीं न कहीं गड़बड़ होती है। रूपम सक्सेना, ग्राहक

पेट्रोल की कीमत काफी बढ़ गई है। इसके बाद चोरी होती है, तो यह तो हमारी जेब पर डाका है। पेट्रोलियम कंपनियों को इस पर नजर रखने की आवश्यकता है। अंशु बनर्जी, ग्राहक

पेट्रोल पंप पर गड़बड़ी की शिकायत सुनने वाला कोई नहीं रहता है। नोजल को बार-बार दबाया जाता है। कहने के बावजूद भी कर्मचारी ग्राहकों को सहयोग नहीं करते हैं। श्रीकांत सिंह, ग्राहक

पेट्रोल पंप में ऐसी व्यवस्था रहनी चाहिए, ताकि लोग जानकारी हासिल कर सकें कि गाड़ी की टंकी में पेट्रोल ठीक मिला है या नहीं। हमारी नजर मीटर की ओर रहता है। इसका फायदा कर्मचारी उठाते हैं। विक्रमजीत प्रसाद, ग्राहक

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Friday 7 February 2014

यूरोप की एक IT कंपनी एटोस ओरिजिन 10,000 भारतीयों को देगी रोजगार

यूरोप की एक IT कंपनी एटोस ओरिजिन 10,000 भारतीयों को देगी रोजगार
 
नई दिल्ली, 7 फरवरी 2014 | अपडेटेड: 11:30
टैग्स: यूरोप| रोजगार| नौकरी| युवा| आईटी सेक्टर
नौकरी
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यूरोप की कंपनी एटोस ओरिजिन भारत में अपना काम काज बढ़ाएगी और इसके लिए वह 10,000 लोगों को रोजगार देगी. एक अंग्रेजी समाचार पत्र ने इस आशय की खबर दी है. उसके मुताबिक आईटी कंपनी एटोस ओरिजिन भारत के कार्यालय से विदेशों में अपने काम को बढ़ाएगी, इसी क्रम में वह यहां 2016 तक 10,000 लोगों को रोजगार देगी. एटोस ओरिजिन 8.5 अरब यूरो की कंपनी है. यह आईटी सेवा देने वाली कंपनी है और भारतीय कंपनियों को टक्कर देगी. इसके लिए वह बड़े पैमाने पर हायरिंग करेगी.
कंपनी ने भारत में अपना कामकाज 2010-11 में पुणे से शुरू किया था. उस समय उसके पास सिर्फ 1,000 कर्मचारी थे. वे पेरेंट कंपनी का कामकाज करते थे लेकिन अब यह अपने सेल्स और मार्केटिंग को बढ़ावा दे रही है.
कंपनी के सीईओ मिलिंद कामत ने कहा कि हमने भारत में हाल में काफी बड़ा निवेश किया है. हमने अंग्रेजी बोलने वाले इलाकों और भारत में बदलाव लाने की कोशिश की है. वह केपजेमिनी की तरह अपना काम काज बढ़ाना चाहती है जो आज भारत में बहुत बड़ी कंपनी बन चुकी है.


चुनावी दंगल के लिए ममता बनर्जी ने मांगा अन्‍ना हजारे का समर्थन, सियासत गरम

चुनावी दंगल के लिए ममता बनर्जी ने मांगा अन्‍ना हजारे का समर्थन, सियासत गरम
 
रालेगण सिद्धि, 8 फरवरी 2014 | अपडेटेड: 09:26 IST
टैग्स: अन्‍ना हजारे| ममता बनर्जी| लोकसभा चुनाव| वोट
अन्ना हजारे
अन्ना हजारे
चुनावी गहमागहमी के बीच एक बार फिर अन्ना हजारे ने अपना पासा फेंक दिया है. इसके बाद अगली चाल चलने में तेजी दिखाई है ममता बनर्जी ने. ममता अन्‍ना का समर्थन हासिल करने की कोशिश में फिलहाल दूसरी पार्टियों से आगे दिख रही हैं.कभी अन्ना हजारे राजनीतिक आंदोलन की धुरी थे. जब राजनीतिक दलों के नेता मंच पर आने को बेताब रहते थे, तब खुद अन्ना इससे सख्त परहेज करते थे. राजनीति से ऐसी दूरी ने ही उन्हें अपने सबसे प्रिय शिष्य केजरीवाल से भी दूर कर दिया. लेकिन रालेगण सिद्धि के यादव बाबा मंदिर में बैठे अन्ना हजारे क्या राजनीति से सचमुच दूर हैं?
कुछ दिनों पहले ही अन्ना हजारे ने 17 मुद्दों को लेकर सभी राजनीतिक दलों को चिट्ठी लिखी थी. लेकिन जवाबी खत मिला सिर्फ ममता दीदी की तरफ से. ममता बनर्जी ने चिट्ठी में लिखा कि अगर वे सत्ता में आती हैं, तो उन सारे मुद्दों को अमल में लाएंगी.
अन्ना हजारे भले ही राजनेता न हों, लेकिन नेताओं पर ऐसे कैसे भरोसा कर लें. उन्‍होंने लिख दिया कि अगर ममता बनर्जी शपथ-पत्र देती हैं, तो वे समर्थन करने के लिए तैयार हैं.
शपथ-पत्र को लेकर लेकर तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि अभी इस बारे में कोई जवाब देना जल्दी होगी. लेकिन एक बात तो तय है कि अन्ना की इस पहल से तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट सियासत की सुर्खियों में आ गई है.
अन्ना की चिट्ठी और ममता के जवाब के एक बात तो तय है कि ममता पीएम की रेस में आगे निकलने की होड़ में हैं. साथ ही अन्ना ने भी जता दिया है कि वे 'दिल्ली' से दूर नहीं हुए हैं.


खुलासा: AAP के नेता और DELHI के कानून मंत्री सोमनाथ भारती दुनिया के शीर्ष 200 स्‍पैमरों में और भारत के शीर्ष 3 स्‍पैमरों में शुमार थे

लासा: AAP के नेता और DELHI के कानून मंत्री सोमनाथ भारती दुनिया के शीर्ष 200 स्‍पैमरों में और भारत के शीर्ष 3 स्‍पैमरों में शुमार थे

 

बदनाम स्‍पैमर सोमनाथ भारती बोले, संदिग्‍ध साइट से मेरा वास्‍ता नहीं पर सच कुछ और ही

नई दिल्‍ली, 8 फरवरी 2014 | अपडेटेड: 11.00
 
टैग्स: स्‍पैमर| सोमनाथ भारती| संदिग्‍ध| साइट| एलएलसी
आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्‍ली के कानून मंत्री सोमनाथ भारती का विवादों से पुराना नाता रहा है. इतिहास है कि उनका पीछा ही नहीं छोड़ता. पहली नजर में भारती दुनिया के शीर्ष 200 स्‍पैमरों में हैं, लेकिन अब इनके बारे में एक और नया खुलासा हुआ है.भारती स्‍पैमर ही नहीं बल्कि स्‍कैमर भी हैं. इस बात का खुलासा प्रसिद्ध डिजिटल जर्नलिस्‍ट प्रशांतो के रॉय ने राहुल कंवल से शुक्रवार को सेंटरस्‍टेज में किया. बताया जाता है कि सोमनाथ भारती से एसोसिएट एक कंपनी पोर्नोग्राफिक डोमेन नेम बेचने के मामले में शामिल है.

हालांकि भारती ने कैमरे के सामने और लिखित में हेडलाइंस टुडे को बताया कि उनका टॉपसाइट एलएलसी से कोई लेना देना नहीं है. लेकिन दस्‍तावेज बताते हैं कि उनका यह बयान पूरी तरह से झूठा है. रिपोर्ट बताती हैं कि भारती देश के टॉप थ्री स्‍पैमर्स में शुमार थे. अमेरिका की एक अदालत में स्पैम मेल भेजने के आरोप में भारती पर मुकदमा भी चल चुका है और उन्‍होंने इस मामले को कोर्ट के बाहर करीब 5 हजार डॉलर में सेटल कर लिया था.


रिपोर्ट के मुताबिक भारती का नाम और उनकी साइट ROKSO (रजिस्‍टर ऑफ नोन स्‍पैमिंग ऑपरेसंश) में दर्ज है. वो कथित तौर पर इसको जॉन केनेडी और पॉल आंगर के नाम से आपरेट करते थे.

2004 में टॉपसाइट एलएलसी डायरेक्‍टरीज एलएलसी हो गई. बताते हैं कि मीडिया एलएलसी के भी मालिक भी ये ही थे. टॉपसाइट एलएलसी और डायरेक्‍टरीज एलएलसी मालवीय नगर के पते पर रजिस्‍टर्ड हैं. सोमनाथ की इंडियन कंपनी मैजन सॉल्‍यूशंस भी मालवीय नगर के पते पर दर्ज है.



डॉक्‍यूमेंट्स बताते हैं कि 5 सितंबर 2008 को डायरेक्‍टरीज एलएलसी का नामोनिशान मिट गया. हालांकि भारती अपने ऊपर लगाए गए इन आरोपों को सिरे से गलत बताते हुए कहते हैं कि यह उनको बदनाम करने की एक साजिश है. लेकिन सच यह है कि 2003-04 में वह कोई नेता नहीं थे, फिर उन्‍हें अमेरिका या यूके के लोग बदनाम क्‍यों करेंगे.


FIRST DAY OF MICROSOFT CEO SATYA NADELLA WITH BILL GATES...FAIL TO INSTALL WINDOWS 8.1 IN HIS OWN LAPTOP...

FIRST DAY OF MICROSOFT CEO SATYA NADELLA WITH BILL GATES...FAIL TO INSTALL WINDOWS 8.1 IN HIS OWN LAPTOP...पूरे दिन में भी विंडोज 8.1 इंस्टॉल नहीं कर पाए बिल गेट्स और माइक्रोसॉफ्ट के नए सीईओ

Feb 07, 2014, 14:14PM IST
Print More: माइक्रोसॉफ्ट

गैजेट डेस्क। काफी दिनों से चली आ रही संभावनाओं को सच करते हुए मंगलवार 4 फरवरी के दिन माइक्रोसॉफ्ट ने भारतीय मूल के सत्य नडेला (Satya Nadella) को कंपनी का नया CEO बना दिया गया। सत्य नडेला के प्रभार संभालते ही पूर्व CEO और माइक्रोसॉफ्ट के फाउंडर बिल गेट्स ने टेक्नोलॉजी एडवाइजर के तौर पर अपना पहला दिन बड़ी ही परेशानी के साथ गुजारा। दरअसल बिल गेट्स को अपने नए कम्प्यूटर पर विंडोज 8.1 अपग्रेड को इंस्टॉल करने में काफी मुश्किल हुई। 
 
The new yorker की रिपोर्ट के मुताबिक कई घंटों तक गेट्स को इस समस्या से जूझना पड़ा। लंच टाइम तक जब सिस्टम में समस्या आई तो गेट्स ने नए CEO सत्य नडेला को बुलाया और फिर दोनो दिग्गज विंडोज 8.1 को इंस्टॉल करने में जुट गए। आश्चर्य की बात तो यह है कि दोनों मिलकर भी कम्प्यूटर की गड़बड़ी को ठीक नहीं कर पाए और विंडोज 8.1 इंस्टॉल करने में नाकाम रहे।
 
नए काम के पहले ही दिन BILL GATES के सामने आई परेशानी
बिल गेट्स जब अपने कम्प्यूटर में विंडोज 8.1 इंस्टॉल करने की कोशिश कर रहे थे तब उनके सिस्टम की स्क्रीन पर एक अजीब सा एरर मैसेज डिस्प्ले हो रहा था। उस मैसेज में लिखा था कि सिस्टम कुछ गड़बड़ी के कारण विंडोज 8.1 इंस्टॉल नहीं कर सकता है और सिस्टम को री-स्टार्ट करना होगा। सूत्रों का कहना है कि बिल गेट्स हमेशा सौम्य रहने वाले इंसान हैं और उस दिन उनके कमरे से भी गुस्सा होने की आवाज आ रही थी। माइक्रोसॉफ्ट के एक अधिकारी का कहना है कि गेट्स को अपनी नई नौकरी के पहले दिन काफी अच्छा एक्सपीरियंस मिला। कुछ समय तक गेट्स विंडोज 7 पर ही काम करेंगे।
 
माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ और BILL GATES अपग्रेड नहीं कर पाए विंडो 8.1
दुनिया के सबसे अमीर लोगों में से एक बिल गेट्स फोर्ब्स मैगजीन के मुताबिक दुनिया के छठवें सबसे ताकतवर इंसान हैं। माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स के पास इतनी संपत्ति है कि अगर वह अलग से एक देश होते तो उनकी गिनती दुनिया के 63 वें सबसे अमीर देश के रूप में की जाती। एक पत्रिका को दिए अपने इंटरव्यू में बिल गेट्स का कहना था कि उन्होंने 30 की उम्र में करोड़पति बनने का सपना देखा था और वह 31 की उम्र में अरबपति बन गए थे।
 
 
माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ और BILL GATES अपग्रेड नहीं कर पाए विंडो 8.1
बिल गेट्स के पास कोई कॉलेज डिग्री नहीं है। इतना ही नहीं गेट्स 1977 में मेक्सिको में बिना ड्राइविंग लाइसेंस कार चलाने और रेड लाइट तोड़ने के जुर्म में गिरफ्तार भी हो चुके हैं। अपने काम के लिए हमेशा से गेट्स में जुनून रहा है। मंगलवार को 58 साल के गेट्स का वापस माइक्रोसॉफ्ट जाना और नए CEO सत्य नडेला के साथ टेक्नोलॉजी एडवाइजर की तरह काम करना एक निश्चित सवाल को खड़ा करता है। आखिर 58 साल के गेट्स कंपनी और नई सदी की तकनीक के लिए कितने फायदेमंद साबित होंगे? 

माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ और BILL GATES इंस्टॉल नहीं कर पाए विंडो 8.1
काम के प्रति कर्मठ होने के अलावा गेट्स का एक और अलग पहलू भी है। पिछले कई सालों से बिल गेट्स कई अलग-अलग संस्थानों को दान दे रहे हैं। factsslides के मुताबिक बिल गेट्स द्वारा दिए गए दान के पैसों से बनी दवाइयों और वैकसीन से अभी तक 60 लाख जिंदगियां बचाई जा चुकी हैं। गेट्स अब तक 28 मिलियन डॉलर्स दान में दे चुके हैं। गेट्स के पास कितना पैसा है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि गेट्स हर साल 1 मिलियन डॉलर्स ( लगभग 62505000 करोड़ रुपए) सिर्फ अपने घर का टैक्स भरते हैं। 


माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ और BILL GATES इंस्टॉल नहीं कर पाए विंडो 8.1
माइक्रोसॉफ्ट के टेक्नोलॉजी एडवाइजर के रूप में गेट्स को सत्य नडेला के साथ कंपनी की स्ट्रैटेजी पर काम करना होगा। इसके अलावा तकनीकी सुझाव और कंपनी को नडेला द्वारा बनाए गए प्लान पर सुझाव भी देने होंगे।