Saturday 31 August 2013

ओबामा बोले, पंगु हो चुकी है सुरक्षा परिषद वॉशिंगटन, एजेंसी

ओबामा बोले, पंगु हो चुकी है सुरक्षा परिषद
वॉशिंगटन, एजेंसी
First Published:01-09-13 10:38 AM

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सीरिया के खिलाफ सैन्य कार्रवाई को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को दरकिनार कर आगे बढ़ने का फैसला किया है। यही नहीं उन्होंने 15 सदस्यीय इस निकाय को पंगु करार दिया है।
ओबामा ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की इजाजत के बिना भी मैं आगे बढ़ने को लेकर सहज हूं। यह (परिषद) पूरी तरह से पंगु हो चुकी है और असद को जवाबदेह ठहराने की इच्छुक नहीं है। उन्होंने बिना किसी का नाम लिए बगैर उन देशों को जिम्मेदार ठहराया जो सीरिया के खिलाफ उनके एजेंडे को समर्थन देने के इच्छुक नहीं हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि मैं इस बात की उम्मीद नहीं करता हूं कि हमारे निर्णय से हर देश सहमत हो जाए। निजी तौर पर हमें अपने मित्रों से समर्थन मिला है। परंतु जिन्हें अंतरराष्ट्रीय समुदाय की परवाह है उन्हें हमारी कार्रवाई का खुलकर समर्थन करना चाहिए। ओबामा ने कहा कि उनका प्रशासन सीरिया के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के लिए अमेरिकी कांग्रेस की अनुमति लेगा।

सरकार ने माना बढ़ी बेरोजगारी

सरकार ने माना बढ़ी बेरोजगारी

Updated on: Fri, 30 Aug 2013 10:46 PM (IST)
UPA Government
सरकार ने माना बढ़ी बेरोजगारी
नई दिल्ली [जाब्यू]। गरीबों की संख्या में भारी कमी करने का दावा करने वाली केंद्र सरकार को यह स्वीकार करना पड़ा है कि पिछले कुछ वर्षो में बेरोजगारी भी बढ़ी है। सरकार का कहना है कि वर्ष 2011-12 में बेरोजगारी की दर 2.7 फीसदी रही है। वर्ष 2009-10 में यह दर 2.5 फीसद थी। सबसे ज्यादा बेरोजगारी ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली महिलाओं के बीच बढ़ी है। वर्ष 09-10 में इनमें बेरोजगारी की दर 2.4 फीसद थी, जो दो वर्ष बाद बढ़कर 2.9 फीसद हो गई है। हालांकि शहरी महिलाओं में बेरोजगारी इस दौरान सात से घटकर 6.6 फीसद रह गई है।


राज्यसभा में एक प्रश्न के जवाब में सांख्यिकी व कार्यक्रम क्रियान्वयन राज्य मंत्री श्रीकांत जेना ने बताया कि देश के श्रम बल में महिलाओं की संख्या में 91 लाख की कमी हुई है। राष्ट्रीय नमूना सर्वे के मुताबिक वर्ष 2009-10 में देश के कुल श्रम बल में 8.12 करोड़ महिलाएं थीं, जो वर्ष 2011-12 में घटकर 7.21 फीसद रह गई है। दूसरे शब्दों में कहें तो रोजगार खोने वालों में महिलाओं की संख्या ज्यादा है। जनसंख्या बढ़ने के बावजूद कुल कामगारों में महिला हिस्सेदारी घटने का मतलब उनके बीच बढ़ती बेरोजगारी ही है।
देश में बेरोजगारी दर :
वर्ग 2009 10 2011-12
ग्रामीण 2.1 2.3
शहरी 3.7 3.8
पुरुष 2.2 2.4
महिलाएं 3.3 3.7
कुल 2.5 2.7

केवल सात माह के आयात लायक विदेशी मुद्रा शेष

केवल सात माह के आयात लायक विदेशी मुद्रा शेष

Updated on: Tue, 19 Mar 2013 11:27 AM (IST)
Indian economy
केवल सात माह के आयात लायक विदेशी मुद्रा शेष
नई दिल्ली [अंशुमान तिवारी]। भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे खतरनाक दरार और चौड़ी हो गई है। देश के पास केवल सात महीने के आयात के लायक विदेशी मुद्रा भंडार बचा है, जो पिछले 17 साल का सबसे निचला स्तर है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अब ब्रिक देशों यानी ब्राजील, रूस और चीन में न्यूनतम है। डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट का अगला स्तर 56 रुपये आंका जा रहा है। ग्लोबल निवेशक मान रहे हैं कि इस साल यदि अंतरराष्ट्रीय बाजारों की हालत और बिगड़ी तो डॉलर-रुपया विनिमय दर गिरकर 60 रुपया प्रति डॉलर तक पहुंच सकती है।
भारत का विदेशी मुद्रा कोष अब जोखिम के बिंदु के बिल्कुल करीब है। 291 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार केवल सात महीने के आयात के लिए पर्याप्त है। भारत की तुलना में ब्राजील व रूस के पास 17 माह और चीन के पास 21 महीने के आयात लायक विदेशी मुद्रा है। विदेशी मुद्रा के मोर्चे पर जोखिम का यह स्तर इससे पहले 1996 में आया था। हालात 1991 जितने खराब नहीं हैं, जब केवल तीन सप्ताह के आयात के लायक विदेशी मुद्रा बची थी। लेकिन मौजूदा परिस्थितियों और ग्लोबल अर्थव्यवस्था से भारत के जुड़ाव को देखते हुए जोखिम 1991 की तुलना में ज्यादा बड़ा है। अंतरराष्ट्रीय बैंकरों का आकलन है कि भारत में विदेशी मुद्रा की आवक और निकासी का अंतर बताने वाला चालू खाते का घाटा इस साल जीडीपी [सकल घरेलू उत्पाद] के अनुपात में पांच फीसद तक जा सकता है। यह आंकड़ा 2012 में 4.2 फीसद था। इसलिए रुपये को लेकर आशंकाओं का सूचकांक चरम पर है।
रिजर्व बैंक की यह मौद्रिक नीति बजट से ज्यादा संवेदनशील है। केंद्रीय बैंक के लिए महंगाई से ज्यादा बड़ी चुनौती गिरता रुपया है। कमजोर घरेलू मुद्रा महंगाई को बढ़ाने में सहायक बन रही है। ब्याज दर में जोरदार कमी करने में रिजर्व बैंक की ताजा हिचक यह भी हो सकती है कि ज्यादा पूंजी आयात बढ़ाने में मददगार होगी, जो रुपये की कमजोरी में इजाफा करेगी। केंद्रीय बैंक को मंगलवार को पेश होने वाली इस नीति की मध्य तिमाही समीक्षा में बाजार को यह संकेत देना है कि रुपया और नहीं गिरेगा, गिरावट की धारणा से शेयर बाजार में विदेशी निवेश कम होगा। इससे रुपये में गिरावट का दुष्चक्र शुरू हो जाएगा।
महंगाई के मामले में स्थिति अब ज्यादा पेचीदा है। रुपये में लगातार तेज गिरावट के कारण आयातित महंगाई सबसे बड़ी चुनौती है। पेट्रो उत्पाद, खाद्य तेल, धातुएं, चीनी, कपास सहित कम से कम एक दर्जन जिंस ऐसे हैं, घरेलू बाजार में जिनकी कीमतें अंतरराष्ट्रीय मूल्यों से निर्धारित होती हैं। रुपये में गिरावट इन्हें महंगा करती है। मेरिल लिंच की एक ताजा रिपोर्ट कहती है कि रुपये में 10 फीसद की गिरावट से महंगाई एक प्रतिशत बढ़ती है। इसलिए महंगाई का प्रबंधन अब दरअसल विदेशी मुद्रा के प्रबंधन का हिस्सा हो गया है।
विशेषज्ञ मान रहे हैं कि रिजर्व बैंक रुपये की गिरावट को थामने के लिए अब बाजार में ज्यादा डॉलर नहीं छोड़ सकता। क्योंकि मौजूदा विदेशी मुद्रा भंडार के आधार पर डॉलर की कीमत 56 रुपये तक रोकी जा सकती है। यदि अगले कुछ माह में अंतरराष्ट्रीय स्थिति में ऊंच-नीच हुआ तो डॉलर 60 रुपये तक गिर सकता है।
कमजोर रुपये से प्रभावित जिंस
कच्चा तेल, कपास, तिलहन, धात्विक खनिज, बिजली , चीनी, कपड़ा, धातुएं और रसायन
क्यों घटा विदेशी मुद्रा भंडार
1. निर्यात में लगातार गिरावट, शेयर बाजारों में निवेश कम होने से विदेशी मुद्रा की आवक में कमी
2. आयात में रिकॉर्ड बढ़ोतरी और विदेशी निवेशकों की शेयरों में बिकवाली से विदेशी मुद्रा की निकासी बढ़ी
3. आयात-निर्यात का अंतर बताने वाला व्यापार घाटा 182 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर
4. लगभग 110 देशों के साथ भारत का व्यापार संतुलन नकारात्मक यानी आयात ज्यादा निर्यात कम
5. जीडीपी के अनुपात में व्यापार घाटा 11.7 फीसद पर

सरकार ने ही बिगाडे़ आर्थिक हालात: सुब्बाराव

सरकार ने ही बिगाडे़ आर्थिक हालात: सुब्बाराव

Updated on: Fri, 30 Aug 2013 11:07 AM (IST)
RBI Governor
सरकार ने ही बिगाडे़ आर्थिक हालात: सुब्बाराव
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। आर्थिक नीतियों को लेकर केंद्र सरकार पर अब तक सिर्फ विपक्ष और उद्योग जगत ही हमले कर रहा था। अब रिजर्व बैंक के निशाने पर भी सरकार आ गई है। कार्यकाल समाप्त होने से एक हफ्ते पहले आरबीआइ गवर्नर डी सुब्बाराव ने मौजूदा आर्थिक दुश्वारियों के लिए सरकार को सीधे तौर पर दोषी ठहराया है। मुंबई में गुरुवार को अपने अंतिम भाषण में सुब्बा ने एक तरह से आईना दिखाते हुए संकेतों में कहा कि अगर दो वर्ष पहले सरकार ने राजकोषीय घाटे को काबू में करने के सही कदम उठाए होते तो आज अर्थव्यवस्था के ये हालात नहीं होते।
सख्त मौद्रिक नीति को लेकर सरकार और उद्योग जगत अक्सर आरबीआइ गवर्नर की आलोचना करते रहे हैं। इसे स्वीकार करते हुए सुब्बाराव ने कहा कि सरकार ने वर्ष 2009 से वर्ष 2012 के बीच अगर चालू खाते के घाटे को कम करने के लिए कदम उठाए होते तो ब्याज दरों को लेकर यह स्थिति नहीं होती। चालू वित्त वर्ष के दौरान भी चालू खाते के घाटे के नियंत्रण को लेकर सरकार के कदमों पर संशय जताते हुए उन्होंने कहा कि इसके सामान्य स्तर से ज्यादा ही रहने के आसार हैं।
सुब्बा के मुताबिक, ब्याज दरों में वृद्धि या इसमें पर्याप्त कमी नहीं होने का असर विकास दर पर पड़ा है। मगर सिर्फ इस वजह से आर्थिक विकास दर नहीं घटी है। आपूर्ति पक्ष और गवर्नेस की कमियां भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। इसका फायदा आगे दिखाई देगा। आगे विकास दर प्रभावित न हो इसके लिए जरूरी है कि अभी महंगे कर्ज को वहन किया जाए। सबसे बड़ी बात यह है कि ब्याज दरों को लेकर रिजर्व बैंक के हाथ सरकार की गलत वित्ताीय नीतियों ने बांध दिए। वित्ताीय हालात में तेजी से सुधार होते मौद्रिक नीतियों को भी उसी हिसाब से बदला जाता।
सुब्बा ने कुछ भी अलग नहीं कहा : चिदंबरम
वित्ता मंत्री पी चिदंबरम ने सुब्बाराव की आलोचना को लेकर कहा कि इसमें कुछ भी नई बात नहीं है। उन्होंने मंगलवार को संसद में कहा था कि मौजूदा हालात के लिए विदेशी वजहों के अलावा घरेलू कारण भी जिम्मेदार हैं। वर्ष 2009-11 के दौरान लिए गए निर्णयों के चलते ही सरकार का राजकोषीय घाटा और चालू खाते का घाटा सीमा पार कर गया। यह वही वक्त था, जब प्रणब मुखर्जी वित्ता मंत्री थे। उन्होंने संसद को आश्वस्त भी किया कि वर्ष 2013-14 के दौरान चालू खाते के घाटे को 70 अरब डॉलर से ऊपर जाने नहीं दिया जाएगा। इससे रुपये को मौजूदा स्तर से नीचे लाने में मदद मिलेगी। वैसे, चिदंबरम ने बीते साल अक्टूबर में कहा कि अगर आर्थिक विकास की चुनौतियों से अकेले निपटना पड़ा तो यही सही।
''उम्मीद है कि वित्ता मंत्री एक दिन कहेंगे कि मैं अक्सर रिजर्व बैंक से परेशान हो जाता हूं। इतना परेशान कि पैदल टहलने के लिए निकल जाना चाहता हूं, भले ही अकेले जाना पड़े। लेकिन भगवान का शुक्र है कि रिजर्व बैंक मौजूद है।''
डी सुब्बाराव
गवर्नर, रिजर्व बैंक

भारत ने दुनिया का भरोसा खो दिया

भारत ने दुनिया का भरोसा खो दिया

Updated on: Thu, 29 Aug 2013 01:35 AM (IST)
rupee
भारत ने दुनिया का भरोसा खो दिया
नई दिल्ली। एक ओर देश का दिवाला निकल रहा है और दूसरी तरफ सरकार एवं विपक्ष एक-दूसरे पर ताने मारने का काम कर रहे हैं। डॉलर के मुकाबले रुपये की भारी गिरावट से भारतीय उद्योग जगत पूरी तरह से आहत हो चुका है। देश के गहराते आर्थिक संकट से न सिर्फ विदेशी निवेशकों बल्कि घरेलू उद्योगपतियों का भी भरोसा डगमगा गया है। सुस्ती भारतीय अर्थव्यवस्था को अपने शिकंजे में जकड़ती जा रही है। दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा ने कहा है कि दुनिया का भरोसा भारत से उठ गया गया है और सरकार इसे समझ ही नहीं पाई।


टाटा समूह के मानद चेयरमैन रतन टाटा ने एक इंटरव्यू में कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश को सही राह दिखाई थी। मगर पिछले कुछ समय में सरकार रास्ता भटक गई और आज देश बुरे हालात में फंस चुका है। नीतियों को लेकर सही समय पर फैसला न कर पाने की स्थिति सरकार की मुसीबत बन गई। नीतियों को बदला गया, देरी हुई और वह फंस गई। इसका नतीजा आज सामने है।
उन्होंने कहा कि सरकार विदेशी निवेशकों का रुख भांप नहीं सकी। हमने उनका भरोसा खो दिया। उन्होंने सुझाव दिया कि देश के हित में यही है कि मौजूदा नीतियों को उसी स्वरूप में तुरंत लागू किया जाए।
टाटा ने कहा कि निजी क्षेत्र के लिए बनाई गई नीतियों को कई बार बदला गया और बनने के बाद भी उन्हें लागू करने में देरी की गई। किसी न किसी कारण से सरकार लगातार भटकती रही। 1991 में हुए सुधारों को याद करते हुए रतन ने कहा कि यह वही टीम (मनमोहन की अगुवाई वाली) है, जिसने साहसी फैसले लिए थे। मगर पुराने तौर तरीकों की छाप आज बिल्कुल भी नहीं दिखाई देती। ऐसा लगता है कि कुछ लोगों के हित सरकार को परेशान कर रहे हैं। बड़े पैमाने पर देखें तो जो भी हो रहा है, वह केवल कुछ लोगों को फायदा पहुंचा रहा। इससे जनता का हित नहीं हो रहा।
उन्होंने कहा, 'मनमोहन सिंह की नेतृत्व क्षमता का आज भी वो सम्मान करते हैं। मगर मौजूदा समय में यह ऐसा नहीं है जो देश का नेतृत्व कर सके। हम उनके जिस नेतृत्व की बात करते रहे हैं, वह फिलहाल दिखाई नहीं दे रहा है।' उन्होंने कहा कि सरकार विभिन्न दिशाओं में खिंचती जा रही है। एक टीम इस दिशा में है तो सहयोगी दूसरी दिशा में भाग रहे हैं। हम एकीकृत सरकार के तौर पर दुनिया के सामने खुद को पेश ही नहीं कर रहे। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के सवाल पर उन्होंने कहा कि प्रदेश के नेतृत्व ने खुद को साबित किया है। मोदी ने गुजरात को एक मजबूत स्थिति में पहुंचाया है। हालांकि, मैं यह अनुमान लगाने की स्थिति में नहीं हूं कि वह देश के लिए क्या कर सकते हैं।

गहरे संकट में फंसी देश की अर्थव्यवस्था

गहरे संकट में फंसी देश की अर्थव्यवस्था

Updated on: Sat, 31 Aug 2013 02:45 AM (IST)
Indian Economy
गहरे संकट में फंसी देश की अर्थव्यवस्था
नई दिल्ली [जाब्यू]। अर्थव्यवस्था के गहरे संकट में फंसने की आशंका सच साबित हो रही है। सरकार की नीतिगत जड़ता और फैसले लेने में देरी के चलते चालू वित्त वर्ष 2013-14 की पहली तिमाही में आर्थिक विकास दर ने भी रुपये की तरह गोता लगा दिया है। इस अवधि में देश के सकल घरेलू उत्पाद [जीडीपी] की विकास दर घटकर मात्र 4.4 फीसद पर सिमट गई है। बीते चार साल में किसी एक तिमाही में अर्थव्यवस्था की यह सबसे कम रफ्तार है। बीते एक साल में आर्थिक हालात तेजी से खराब हुए हैं। वित्त वर्ष 2012-13 की पहली तिमाही में आर्थिक विकास दर 5.4 फीसद रही थी।

महंगे कर्ज और रुपये के गोता लगाने से न सिर्फ औद्योगिक उत्पादन व खनन क्षेत्र की रफ्तार घटाई, बल्कि सरकार के फैसलों की सुस्ती के चलते देश में होने वाले निवेश पर भी पड़ा है। बीते वित्त वर्ष के मुकाबले चालू साल की पहली तिमाही में कुल निवेश 1.4 फीसद घट गया है।
पहली तिमाही में कारखानों की सुस्ती से मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की विकास दर 1.2 फीसद नीचे आ गई है। यही हाल खनन क्षेत्र का रहा। इसकी विकास दर 2.8 फीसदी गिर गई। बीते साल मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की विकास दर में एक फीसद की कमी आई थी। खनन क्षेत्र की विकास दर 0.4 फीसद रही थी।


सरकार द्वारा जारी पहली तिमाही के जीडीपी आंकड़ों के मुताबिक कृषि से भी जीडीपी को बहुत अधिक मदद नहीं मिली और इस क्षेत्र की विकास दर 2.7 फीसद पर सिमट गई। बीते वित्त वर्ष की इस अवधि में कृषि क्षेत्र ने 2.9 फीसद की बढ़त हासिल की थी। हालांकि बीते साल की चौथी तिमाही के मुकाबले कृषि की विकास दर ने कुछ कदम आगे बढ़ाए हैं। इस अवधि में कृषि की विकास दर 1.4 फीसद रही थी।
वित्तीय और सामाजिक सेवा क्षेत्रों ने अवश्य सरकार को कुछ राहत दी है। लेकिन ऊर्जा और कंस्ट्रक्शन क्षेत्र की विकास दर ने सरकार को निराश किया है। बिजली, गैस क्षेत्र की विकास दर बीते साल के 6.2 से घटकर पहली तिमाही में 3.7 फीसद पर आ गई है। कंस्ट्रक्शन क्षेत्र की विकास दर सात फीसद से लुढ़कती हुई 2.8 फीसद पर आ टिकी है। अलबत्ता वित्तीय सेवाओं ने ठीक-ठाक विकास दर हासिल की है।
अर्थव्यवस्था में बदहाली का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि पहली तिमाही में सकल पूंजी निर्माण की रफ्तार भी धीमी हुई है। बीते साल की पहली तिमाही में पूंजी निर्माण यानी निवेश की दर 33.8 फीसद रही थी। लेकिन चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यह 32.6 फीसद पर रुक गई है। इसका मतलब है कि देश में घरेलू निवेश की रफ्तार रुक गई है। यह गिरावट निजी और सरकारी दोनों तरह के निवेश में हुई है।

संकट से निपटने को मंदिरों का सोना लेने की फिराक में सरकार

संकट से निपटने को मंदिरों का सोना लेने की फिराक में सरकार

Updated on: Sat, 31 Aug 2013 08:50 PM (IST)
BJP
संकट से निपटने को मंदिरों का सोना लेने की फिराक में सरकार
हैदराबाद। देश की मौजूदा आर्थिक दुश्वारियों के लिए विपक्ष समेत आम लोगों के निशाने पर चल रही मनमोहन सरकार की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही है। संकट से उबरने के लिए देश के स्वर्ण भंडार को गिरवी रखने संबंधी वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा के बयान को लेकर उसकी किरकिरी तो हो ही रही है। इस बीच भाजपा नेता डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने आरोप लगाया है कि सरकार मंदिरों का सोना कब्जा करने की फिराक में है। उन्होंने चेताया कि भाजपा सरकार के किसी भी ऐसे कदम का पुरजोर विरोध करेगी। डॉ. स्वामी ने इस मसले पर अदालत तक जाने की चेतावनी दी है।


डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी शनिवार को पत्रकारों से बात कर रहे थे। उनका कहना था, मीडिया में इस तरह की खबरें आ रही हैं कि रिजर्व बैंक के कहने पर राष्ट्रीयकृत बैंक मंदिर ट्रस्टों को अपना अकूत स्वर्ण भंडार बैंकों में जमा कराने के लिए राजी करने का प्रयास कर रहे हैं। बकौल डॉ. स्वामी, सरकार को मंदिरों का सोना नहीं लेना चाहिए। ऐसा करना राष्ट्र विरोधी हरकत है। हम इसका विरोध करेंगे। इसको अदालत में चुनौती देंगे। उन्होंने कहा कि सरकार विदेशी मुद्रा विनिमय संकट से उबरने के लिए अगर वास्तव में गंभीर है तो उसे विदेशी बैंकों में जमा काले धन को वापस लाने की कोशिश करनी चाहिए।


प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि सोना और कच्चा तेल के भारी आयात के चलते चालू खाते का घाटा बढ़ रहा है। उन्होंने लोगों से सोना की कमी खरीद करने का आग्रह किया है।

भारत में कारोबार करना मुश्किल

भारत में कारोबार करना मुश्किल

Updated on: Sun, 01 Sep 2013 05:39 AM (IST)
Prime Minister
भारत में कारोबार करना मुश्किल
नई दिल्ली। गोदरेज समूह के चेयरमैन आदि गोदरेज ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के संसद में दिए गए बयान पर असंतोष जताया है। गोदरेज ने कहा कि प्रधानमंत्री ने कारोबारियों की मुश्किलों से जुड़े मसलों की उपेक्षा की है। पिछली तारीख से टैक्स लगाए जाने के प्रस्ताव जैसे मामलों का प्रधानमंत्री ने अपने बयान में उल्लेख नहीं किया।
एक साक्षात्कार के दौरान गोदरेज ने कहा, 'मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री ने कुछ तथ्यों को नजरअंदाज किया है। हमारी सबसे बड़ी गलती तब हुई थी जब दो साल पहले के बजट में पिछली तारीख से टैक्स लगाने का संशोधन प्रस्ताव पेश किया गया था। प्रधानमंत्री इस सबसे बड़ी समस्या का जिक्र करना भूल गए, जिसके कारण देश में कारोबार करना मुश्किल बना हुआ है।'
गोदरेज के मुताबिक, पिछली तारीख से टैक्स लगाने के प्रस्ताव से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के बारे में बड़े पैमाने पर नकारात्मक धारणा बनी। आर्थिक चिंताओं के परिणामस्वरूप अर्थव्यस्था की आज यह हालत हुई है।
अर्थव्यवस्था की बदहाली पर चुप्पी तोड़ते हुए शुक्रवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संसद में बयान दिया था। इसमें मनमोहन ने सुधारों को वापस लेने और किसी तरह के पूंजी नियंत्रण के उपाय लागू करने की संभावना से इन्कार किया था।

30 साल बाद फिर शुरू होगा अमिताभ और रेखा का सिलसिला

30 साल बाद फिर शुरू होगा अमिताभ और रेखा का सिलसिला

Updated on: Sun, 01 Sep 2013 10:41 AM (IST)
Amitabh Bachchan
30 साल बाद फिर शुरू होगा अमिताभ और रेखा का सिलसिला
मुंबई, जागरण न्यूज नेटवर्क। एक साथ कई यादगार फिल्में देने वाले अमिताभ बच्चन और रेखा की जोड़ी 30 साल बाद बड़े पर्दे पर फिर दिखाई दे सकती है। करीब तीन दशक पहले दोनों आखिरी बार यश चोपड़ा की फिल्म 'सिलसिला' में साथ नजर आए थे।

फिल्म दो 'अनजाने' में दोनों ने पहली बार एक साथ काम किया था। उसी दौरान दोनों एक दूसरे के बेहद करीब आ गए थे। 1981 में सिलसिला के रिलीज होने के बाद दोनों ने एक दूसरे से दूरी बना ली थी। मगर यह सब अब अतीत की बातें हो गई हैं। अगर सब कुछ ठीक रहा तो फिल्म 'वेलकम' के सीक्वल 'वेलकम बैक' में दोनों साथ नजर आ सकते हैं।
सूत्रों के मुताबिक फिल्म निर्माता फिरोज नाडियाडवाला और निर्देशक अनीज बज्मी दोनों के संपर्क में हैं। अमिताभ को डॉन का किरदार ऑफर किया गया है जो 2007 में रिलीज वेलकम में फिरोज खान ने निभाया था। रेखा को फैशन डिजाइनर का किरदार ऑफर किया गया है।
बज्मी ने कहा, 'अमिताभ ने अपने फिल्मी करियर में लगभग सभी किरदार निभाए हैं, लेकिन मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि यह किरदार उनके लिए खास होगा। यह फिरोज द्वारा निभाए गए किरदार से बड़ा भी होगा।' उन्होंने रेखा को प्रस्ताव दिए जाने की पुष्टि की। उन्होंने कहा, अगले कुछ दिनों में मेरी योजना अमिताभ-रेखा से मिलने की है।
सूत्रों के मुताबिक रेखा और अमिताभ दोनों में से किसी ने भी साथ काम करने को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की है। फिल्म में दोनों के कुछ दृश्य साथ में होंगे। अमिताभ और रेखा ने 18 फिल्मों में एक साथ काम किया था।
दोनों ने कसमें वादे, मुकद्दर का सिकंदर, राम बलराम, खून पसीना, गंगा की सौगंध, मिस्टर नटवरलाल, सुहाग समेत कई हिट फिल्में दी। वेलकम में जहां अक्षय कुमार, कट्रीना कैफ, अनिल कपूर और नाना पाटेकर प्रमुख भूमिका में थे वहीं वेलकम बैक में जॉन अब्राहम और श्रुति हसन की जोड़ी दिखेगी। जबकि नाना और अनिल अलग किरदार में नजर आएंगे।

दिल्ली गैंगरेप: पीड़िता के भाई ने की नाबालिग आरोपी पर हमले की कोशिश

दिल्ली गैंगरेप: पीड़िता के भाई ने की नाबालिग आरोपी पर हमले की कोशिश

Updated on: Sun, 01 Sep 2013 09:09 AM (IST)
Delhi gangrape case
दिल्ली गैंगरेप: पीड़िता के भाई ने की नाबालिग आरोपी पर हमले की कोशिश
नई दिल्ली, जासं। वसंत विहार गैंगरेप-मर्डर मामले में आठ माह से अपने गुस्से को दबाए बैठे पीड़िता के भाई के सब्र का बांध शनिवार को बाल न्यायालय के फैसले के बाद टूट गया।

उसने फैसले से नाखुशी जताते हुए नाबालिग पर हमले का प्रयास किया, मगर समय रहते ही अदालत कक्ष में मौजूद पुलिसकर्मियों ने पीड़िता के भाई को काबू कर लिया और उसे बाहर भेज दिया।

सूत्रों के अनुसार सुबह से ही फैसले के इंतजार में बैठे पीड़िता के भाई ने जब बाल न्यायालय का फैसला सुना तो उसकी आंखों में आंसू आ गए। उसने अदालत में कहा कि वह इस फैसले से सहमत नहीं है। उन्हें इंसाफ नहीं मिला। यह कहते हुए उसने नाबालिग आरोपी की ओर बढ़ कर थप्पड़ मारने की कोशिश की, लेकिन नाबालिग पीछे हट गया और बच गया। इसके बाद पुलिसकर्मियों ने पीड़िता के भाई को पकड़ लिया। पीड़िता के भाई ने बाहर निकलकर किसी से सही ढंग से बात नहीं की। उसने केवल गिने-चुने शब्द मीडिया को कहे और वहां से चला गया। भीड़ से निकलते हुए उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे।

रविवार से मोबाइल कंपनियों के लिए नए दिशा-निर्देश

रविवार से मोबाइल कंपनियों के लिए नए दिशा-निर्देश

नई दिल्ली/इंटरनेट डेस्क | अंतिम अपडेट 31 अगस्त 2013 5:46 PM IST पर
new mobile radiation norms from September 1
रविवार से मोबाइल कंपनियों को मोबाइल ‌रेडिएशन के नए दिशा-निर्देशों पर काम करना होगा।

मोबाइल फोन और मोबाइल टावर से निकलने वाला रेडिएशन सेहत के लिए खतरा भी साबित हो सकता है। मोबाइल कंपनियों को रखना होगा इनसानों की सेहत का भी ध्यान। इसलिए मोबाइल कंपनियों को कम से कम रेडिएशन पैदा करने वाले हैंडसेट की बिक्री करनी होगी।

दूरसंचार मंत्रालय ने मोबाइल कं‌पनियों के लिए मोबाइल रेडिएशन को कम करने के लिए नए मानक तैयार किए हैं। मोबाइल कंपनियों को 1 सितंबर से नए दिशा-निर्देशों के अनुसार मोबाइल को तैयार करना होगा या इम्पोर्ट करना हो।

मोबाइल रेडिएशन के नए मानक के अनुसार 6 मिनट मोबाइल फोन इस्तेमाल के समय एसएआर (स्पेसिफिक अब्जॉर्पशन रेट) 1.6 वॉट होना चाहिए। मोबाइल कंपनियों को हैंडसेट की ‌बिक्री के समय एसएआर को दर्शाना होगा।

नए स्पेसिफिक अब्जॉर्पशन रेट के साथ भारत उन चुनिंदा देशों में से एक होगा‌, जिन देशों में एसएआर रेट मनुष्य के एक ग्राम ऊतक पर 1.6 वॉट प्रति किलोग्राम प्रति 6 मिनट के अंतराल से है।

मोबाइल फोन और मोबाइल टॉवर के रेडिएशन से सिरदर्द, सिर में झनझनाहट, लगातार थकान महसूस करना, चक्कर आना, डिप्रेशन, नींद न आना, आंखों में ड्राइनेस, काम में ध्यान न लगना, कानों का बजना, सुनने में कमी, याददाश्त में कमी, अनियमित धड़कन, जोड़ों में दर्द आदि समस्याओं की भी बात सामने आई है।

हैकरों के निशाने पर है एंड्रॉयड फोन

हैकरों के निशाने पर है एंड्रॉयड फोन

अंतिम अपडेट 30 अगस्त 2013 7:35 PM IST पर
hacking-issue-with-android  

अमे‌‌‌र‌िकी अफसरों के मुताबिक एंड्रॉयड आपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल करने वाले मोबाइल फोनों को हैकरों ने सबसे ज़्यादा निशाना बनाया है।

साल 2012 के आंकड़ों के मुताबिक हैकिंग के कुल मामलों में से 79 फीसदी मामलों में उपभोक्ता गूगल के एंड्रॉयड आपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल कर रहे थे।

सार्वजनिक सूचनाओं की वेबसाइट पब्लिक इंटेलिजेंस ने अमेर‌िकी सुरक्षा विभाग और फ़ेडरल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टीगेशन (एफबीआई) के मेमो को प्रकाशित किया है।

इसके मुताबिक नोकिया का सिम्बियन सिस्टम हैकरों के निशाने पर दूसरे स्थान पर रहा है। जबक‌ि एपल के आईओएस वाले फोन पर 0।7 फीसदी हैकिंग के हमले हुए।

एंड्रॉयड दुनिया भर में सबसे लोकप्रिय मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम है और एफबीआई के मेमो के मुताबिक बाजार में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी और ओपन सोर्स आर्किटेक्चर के चलते इस सिस्टम को ज्यादा निशाना बनाया गया है।

गूगल फोन सॉफ्टवेयर पर सवाल

एंड्रॉयड पर ज्यादातर हमले फेक मैसेज के जरिए हुए हैं। मेमो के मुताबिक गूगल के प्ले मार्केट प्लेस और रूट किट्स की फेक साइट भी बन गई हैं जिनके ज़रिए हैकर फोन का इस्तेमाल करने वालों के की वर्ड और पासवर्ड को आसानी से तोड़ देते हैं।

इस मेमो में ये भी कहा गया है कि एंड्रॉयड का इस्तेमाल करने वाले लोगों में 44 फीसदी लोग अभी भी ऑपरेटिंग सिस्टम का पुराना वर्जन इस्तेमाल करते हैं।

खासकर 2।3।3 वाला वर्जन जबकि बाज़ार में आधुनिक वर्जन 2।3।7 तक उपलब्ध हो चुके हैं। पुराने सिस्टम में तकनीकी खामियां मौजूद थीं, जिसे बाद में दूर कर लिया गया।

इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि फेडरल, स्टेट और स्थानीय अधिकारियों के बीच मोबाइल फोन के बढ़ते इस्तेमाल के चलते यह जरूरी है कि सब आधुनिक मोबाइल का इस्तेमाल करें।

एपल ने कहा है कि 60 करोड़ लोग आईफोन और आईपैड का इस्तेमाल करते हैं जिसमें 93 फीसदी उपभोक्ताओं के पास सबसे आधुनिक आईओएस 6 वर्जन मौजूद है।

इसका अगला आधुनिक वर्जन अगले महीने बाजार में आ सकता है। ये पहला मौका नहीं है जब गूगल के लोकप्रिय फ़ोन सॉफ्टवेयर पर सवाल उठाए गए हैं।

सिक्योरिटी फर्म सिमनटेक के मुताबिक बीते महीने एक मास्टर की बग, जिसके जरिए हैकर एंड्रॉयड फोन का नियंत्रण अपने कब्जे में ले लेते हैं, ने चीन में काफी नुकसान पहुंचाया है।

मोदी सरकार:हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के बाहरी किसानों की गुजरात में जमीन जब्त

मोदी सरकार:हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के बाहरी किसानों की गुजरात में जमीन जब्त

Now on Gujrat After vote if bjp win it is on Over India!

Now you have choice Kunthit leader or other!!!

 

हरियाणवियों पर कुठाराघात है मोदी सरकार का ये फरमान

 सितंबर 2013 8:02 AM IST पर
Modi Government Decree on the haryana's people
वर्षो से गुजरात में जमीन खरीदकर खेती कर रहे हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के किसानों के अरमानों पर गुजरात सरकार ने ही अघात कर दिया है।

गुजरात सरकार ने 1973 रेवन्यू विभाग का हवाला देते हुए बाहरी किसानों की गुजरात में जमीन जब्त करने के निर्देश दिए हैं।

गुजरात सरकार के रवैये के विरोध में भारतीय किसान यूनियन ने शनिवार को मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजकर हरियाणा से उच्च स्तरीय सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल गुजरात भेजने की मांग की है। ताकि गुजरात में खेतीबाड़ी करने वाले हरियाणा के किसानों को बर्बाद होने से बचाया जा सके।

मुख्यमंत्री को भेजे गए पत्र में बताया गया है कि कि पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री ने सीमा पर शहीद हुए सैनिक परिवारों को गुजरात में काफी जमीन अलॉट की गई थी।

मौजूदा समय में लगभग डेढ़ लाख एकड़ जमीन पर हरियाणा, पंजाब, राजस्थान के उन्हीं शहीद सैनिकों के परिजन तथा रिश्तेदार खेती कर रहे थे।

सिक्ख समाज ने 25 वर्षो से गुरुद्वारे का निर्माण किया हुआ है। हरियाणा के किसानों ने पांच एकड़ में धर्मशाला बनाई हुई है।

अब गुजरात सरकार ने आदेश नंबर नंबर टीएनसी/1073/58184/जे तीन अप्रैल को जारी कर 1973 रेवन्यू विभाग का हवाला देते हुए हरियाणा, पंजाब, राजस्थान के किसानों की जमीन जब्त करने के आदेश दिए हैं। बाहरी किसानों के इंतकाल रद्द किए जा रहे हैं।

गत 22 जून 2012 को हाईकोर्ट गुजरात ने किसानों के हक में फैसला दिया था। जिसके खिलाफ गुजरात सरकार सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गई। गत 26 जून 2013 को अल्पसंख्यक आयोग की टीम ने गांधी नगर व कच्छ क्षेत्र की जानकारी हासिल की।

इसके अलावा पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी किसान प्रतिनिधिमंडल ने बातचीत की। इसके अलावा पंजाब था हरियाणा के किसान प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी भेजा।

भारत में फ़तवों की मुसीबत और हकीकत?

भारत में फ़तवों की मुसीबत और हकीकत?


दारूल उलूम देवबंद, भारत
दक्षिण भारत के एक अंग्रेजी अखबार ने पिछले दिनों मुसलमानों के एक प्रमुख धार्मिक संस्थान दारूल उलूम देवबंद के एक मुफ़्ती का फ़तवा प्रकाशित किया.
इस फ़तवे में टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले बच्चों के कार्टून कार्यक्रमों और कार्टून फिल्मों को इस्लाम के खिलाफ करार दिया गया है. इतना ही नहीं फ़तवे में उन्हें देखने से मना भी किया गया है.
देवबंद का फरमान
फ़तवे में कहा गया है कि कार्टून दरअसल तस्वीरें हैं और चित्रकारी करना चूंकि भगवान के निर्माण की प्रक्रिया की नकल है इसलिए वे इस्लामी अवधारणाओं के खिलाफ हैं और उन्हें नहीं देखना चाहिए.
अतीत में कार्टून के बारे में इस तरह के फ़तवे आए हैं. कई बार उनकी आलोचनाएँ भी हुई हैं. इस बार भी अख़बारों ने एक वरिष्ठ इमाम का बयान प्रकाशित किया है जिसमें उन्होंने इस फ़तवे की आलोचना करते हुए कहा है कि ऐसे फतवों से मजहब का मजाक बनाया गया है.
इसमें कोई शक नहीं कि हर मजहब के कुछ अपने नियम कायदे होते हैं, कुछ परंपराएँ होती हैं जिन पर उनके मानने वाले अमल करते हैं.

रोज़मर्रा की जिंदगी

धार्मिक ग्रंथ कुराण
लेकिन साथ ही यह भी एक हकीकत है कि धर्म के विभिन्न पहलुओं की अक्सर कोई निश्चित व्याख्या नहीं होती. समय और परिस्थितियों के साथ कई व्याख्याएँ बदलती रहती हैं.
अभी अधिक समय नहीं गुजरा जब तस्वीर खिंचवाना इस्लाम के खिलाफ माना जाता था और आज यह रोज़मर्रा की जिंदगी का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है.

कुछ समय पहले तक उलेमा लाउड स्पीकरों के इस्तेमाल के खिलाफ फ़तवे दिया करते थे लेकिन आज भारत की लाखों मस्जिदों में अज़ानें लाउड स्पीकरों के जरिए ही लोगों तक पहुंचती हैं.
अतीत में देश के बड़े धार्मिक संस्थाओं की ओर से विवादास्पद किस्म के फ़तवे आते रहे हैं. एक दो साल पहले एक फ़तवे में विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और स्कूलों में दी जाने वाली तालीम को इस आधार पर गैर इस्लामी करार दिया गया था क्योंकि वहाँ लड़के और लड़कियां एक साथ पढ़ते हैं.
घर और कार खरीदने और पढ़ाई करने के लिए बैंकों से कर्ज लेने के खिलाफ दर्जनों फ़तवे आ चुके हैं. अभी कुछ दिनों पहले कार्यालय में मुस्लिम महिलाओं के काम करने के खिलाफ भी फ़तवा जारी हुआ था. जीन्स पहनने, परफ़्यूम के इस्तेमाल और पश्चिमी शैली के हेयर-स्टाइल के खिलाफ भी कई फ़तवे मिल जाएंगे.

जिम्मेदार संस्था

मस्जिद, नमाज
भारत एक लोकतांत्रिक देश है और देश के संविधान के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक को अपने विश्वास, विचार और पसंद के अनुसार जिंदगी जीने का अधिकार है. लोकतांत्रिक व्यवस्था में धर्म व्यक्ति का निजी मामला है.

दारूल उलूम देवबंद एक जिम्मेदार धार्मिक संस्था है. दारूल उलूम ही नहीं देश के दूसरे इस्लामी संस्थाओं ने भी लोकतांत्रिक समाज में व्यक्ति के निजी और लोकतांत्रिक अधिकारों को स्वीकार किया है.
इन संस्थाओं ने धार्मिक मामलों में अपने अंतिम और स्पष्ट अवधारणाओं के बावजूद उन्हें किसी पर थोपने की कोशिश नहीं की है. लोकतंत्र का यही तकाज़ा भी है.
देश के उलेमा और धार्मिक नेताओं को जीवन का यथार्थ स्वीकार करना चाहिए कि समय के साथ जिंदगी जीने के तौर तरीके भी बदलते हैं. जो चीजें बदलती नहीं हैं, वो समय के साथ ख़त्म हो जाती हैं.
धर्म व्यक्ति का निजी मामला है और उस पर अमल करना या ना करना उसका अपना व्यक्तिगत फैसला होता है.
भारत के मुसलमान पहले से ही कई तरह की समस्याओं से त्रस्त हैं. अनावश्यक और विवादास्पद फ़तवों से देश में भ्रम और जटिलताओं के सिवा कुछ हासिल नहीं होगा.

अमरीका में निगरानी कार्यक्रम के खिलाफ़ प्रस्ताव गिरा

अमरीका में निगरानी कार्यक्रम के खिलाफ़ प्रस्ताव गिरा

 गुरुवार, 25 जुलाई, 2013 को 12:53 IST तक के समाचार
जस्टिन अमाश
जस्टिन अमाश ने यह निगरानी कार्यक्रम के विरोध में प्रस्ताव पेश किया था.
अमरीका की प्रतिनिधि सभा ने अमरीकी नागरिकों के फोन कॉल के बारे में आँकड़े इकट्ठा करने के कार्यक्रम को जारी रखने की मंज़ूरी दे दी है. यह इस कार्यक्रम पर सदन का पहला विधायी फैसला था.
नेशनल सिक्यूरिटी एजेंसी (एनएसए) द्वारा इलेक्ट्रॉनिक जानकारी इकट्ठा करने के कार्यक्रम को रोकने का प्रयास सदन में 205 के मुकाबले 217 मतों से नाकाम हो गया.
एनएसए के मुखिया ने प्रस्तावित फेरबदल को रोकने के लिए तगड़ी लॉबिंग की थी.
सदन में वोटिंग के दौरान कंजरवेटिव और लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टियों के बीच एनएसए के जासूसी कार्यक्रम के खिलाफ़ असामन्य गठबंधन भी देखने को मिला.
एनएसए के जासूसी महाजाल के बारे में खुफ़िया जानकारियाँ लीक करने के आरोपी एडवर्ड स्नोडेन ने जानकारी सार्वजनिक की थी. एडवर्ड स्नोडेन फिलहाल मॉस्को एयरपोर्ट पर हैं और उन्होंने रूस से शरण माँगी हैं.
यदि यह संशोधन सदन में पास हो जाता तो एनएसए को अपने जासूसी कार्यक्रम के लिए फंड मिलना बंद हो जाता और फिर विशेष स्थिति में ही कॉल रिकॉर्ड उपलब्ध कराए जाते. फिलहाल एनएसए अमरीका से किए जाने वाले या अमरीका आने वाले हर फोन कॉल का रिकॉर्ड रखता है.

डर

यह संशोधन प्रस्ताव रिपब्लिकन सांसद जस्टिन अमाश ने पेश किया था. बुधवार को सदन में बहस के दौरान उन्होंने चेतावना दी कि प्रस्ताव के विरोधी उसी तर्क का इस्तेमाल करेंगे जो इतिहास में हर सरकार नागरिकों के अधिकारों के हनन को सही ठहराने के लिए करती रही है. यह तर्क है डर.
उन्होंने कहा, "वे आपको बताएंगे कि सरकार के लिए अमरीकी नागरिकों के अधिकारों का हनन करना जरूरी है क्योंकि वे हमें उन लोगों से सुरक्षित रखना चाहती है जो अमरीकी स्वतंत्रता से नफरत करते हैं."
व्हाइट हाऊस ने भी इस प्रस्ताव के खिलाफ़ लॉबिंग की थी. लेकिन फिर भी 111 डेमोक्रेट सांसदों ने इसके पक्ष में वोट किया जबकि 83 ने इसके खिलाफ़ वोट किया.

क्या है निगरानी कार्यक्रम

9/11 हमले के बाद राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के आदेश पर अमरीका की राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनएसए) ने 2001 में अमरीकी नागरिकों को फोन रिकॉर्ड रखने शुरू किए थे.

राष्ट्रपति ओबामा के कार्यकाल में भी यह कार्यक्रम जारी रहा. लेकिन इसके बारे में लोगों को कोई जानकारी नहीं थी. जून में सीएआई के पूर्व कांट्रेक्टर एडवर्ड स्नोडोन द्वारा खुफ़िया जानकारियाँ लीक करने के बाद ही इसके बारे में पता चल सका.

यह भी खुलासा हुआ कि अमरीका की एक खुफ़िया अदालत ने फोन कंपनी वेरीजोन को करोड़ों ग्राहकों को फोन कॉल रिकॉर्ड एनएसए को उपलब्ध करवाने का आदेश दिया था.

इस मेटाडाटा में फोन करने और रिसीव करने वाले नंबरों, कॉल की अवधि, समय, स्थान आदि की जानकारी होती है.

हालाँकि क्या बातचीत हुई इसके बारे में एनएसए के पास जानकारी नहीं होती है. यह निगरानी कार्यक्रम अमरीका से किए जाने वाले और यहाँ आने वाले हर कॉल पर लागू होता है.
वहीं 94 रिपब्लिकन सांसदों ने प्रस्तवा के पक्ष में और 134 ने विपक्ष में वोट किया.
स्नोडेन की ओर से कई जानकारियाँ सार्वजनिक होने के बाद एनएसए की नागरिकों की निजी जानकारी तक पहुँच के बारे में सदन में पहली बार हुई बहस काफी तीखी रही.
30 अरब डॉलर के निगरानी कार्यक्रम के बारे में डेमोक्रेटिक सांसद पीटर वेल्स ने कहा कि हम सुरक्षा मामलों में कुछ ज्यादा ही संजीदा हो रहे हैं. हालाँकि बाकियों ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ़ अमरीका की लड़ाई के लिए खुफ़िया कार्यक्रम जरूरी है.
सदन की इंटेलीजेंस कमेटी के मुखिया और रिपब्लिकन सांसद माइक रोजर्स ने कहा,"क्या 12 साल गुजरने के बाद हमारी याददाश्त इतनी बुरी हो गई है कि हम भूल गए हैं कि 11 सितंबर को क्या हुआ था."
राष्ट्रपति ओबामा के विरोध के लिए जानी जाने वाली मिनेसोटा की सांसद मिशेल बैचमैन ने भी इस मामले में उनका समर्थन किया. उन्होंने कहा, "हमें उन तथ्यों के बारे में सोचना चाहिए जो अमरीका को सुरक्षित रखेंगे."
लेकिन बुश के शासनकाल में पैट्रियट एक्ट को मूल लेखकों में से एक और रिपब्लिकन सांसद जिम सेनसेनब्रेनर ने कहा कि अब अमरीका को फोन रिकार्ड करने बंद कर देने चाहिए.

लॉबिंग

एडवर्ड स्नोडेन
एडवर्ड स्नोडेन ने जून में जासूसी कार्यक्रमों का खुलासा किया.
वोट से पहले जारी किए गए एक बयान में व्हाइट हाऊस ने अमाश के प्रस्ताव को 'कुंद दृष्टिकोण' बताते हुए इस आतंकवाद के खिलाफ़ अमरीकी प्रयासों को नुकासन पहुँचाने वाला बताया.
एनएसए के निदेशक जनरल कीथ एलेक्सेंडर ने भी वोटिंग से पहले मंगलवार को रिपब्लिकन और डेमोक्रेट सांसदों के साथ बंद कमरों में मुलाकात कर प्रस्ताव के खिलाफ़ लॉबिंग की.
एक और निगरानी कार्यक्रम प्रिज्म के तहत अमरीका दुनियाभर के इंटरनेट इस्तेमाल की अमरीका स्थित 9 बड़े सर्विस प्रोवाइडरों के सर्वरों से जानकारी इकट्ठा कर निगरानी करता है.
अमरीका का कहना है कि उसने निगरानी कार्यक्रम से 20 देशों में कम से कम 50 आतंकी हमले रोकने में मदद की है. इनमें से कई हमले अमरीका के खिलाफ़ किए जाने थे.
सीबीएस द्वारा बुधवार को किए गए एक समाचार सर्वे में इस बारे में लोगो का विभाजित मत सामने आया. 67 प्रतिशत अमरीकी नागरिकों ने सरकार द्वारा नागरिकों के फोन रिकॉर्ड करने का विरोध किया जबकि 52 प्रतिशत का मानना था कि आतंकवाद के खिलाफ़ यह जरूरी है.

3.45 लाख करोड़ रूपये अमरीकी जासूसों का सालाना 'काला बजट'

3.45 लाख करोड़ रूपये अमरीकी जासूसों का सालाना 'काला बजट'

 रविवार, 1 सितंबर, 2013 को 10:04 IST तक के समाचार

अमरीका से भागे हुए सुरक्षा विशेषज्ञ एडवर्ड स्नोडेन के द्वारा सामने लाए गए कागज़ात से पता चलता है की अमरीका में 3.45 लाख करोड़ रुपयों का बेहिसाब बजट केवल जासूसी के लिए रखा गया है.
अमरीकी अख़बार वाशिंगटन पोस्ट को स्नोडेन द्वारा दी गई फ़ाइलों से पता लगता है कि 52.6 अरब डॉलर केवल वित्तीय वर्ष 2013 का बजट है.
यह रकम अमरीका की 16 अलग-अलग गुप्तचर संस्थाएं मिल कर खर्च करती हैं. इस बजट में सबसे बड़ा हिस्सा सीआईए का है जो करीब 96 हज़ार करोड़ रुपयों के बराबर रकम अकेले खर्च करती है.
अख़बार के अनुसार इन 16 में से दो एजेंसियां बहुत बड़े पैमाने पर विदेशी कंप्यूटर नेटवर्क्स में घुसपैठ करती हैं.

'टॉप सीक्रेट'

अमरीका कभी यह नहीं बताता है कि उसने किस संस्था को किस काम के लिए कितने पैसे दिये.
अख़बार ने विस्तार से चार्ट छाप मद वार संस्थाओं का बजट बताया है. अख़बार ने यह ज़रूर कहा है कि उसने अमरीका के 'तौर तरीकों' से जुड़े कुछ दस्तावेज़ सार्वजनिक नहीं किए हैं.
अख़बार के मुताबिक़ सीआईए का बजट साल 2004 से अब तक 50 फ़ीसदी बढ़ा है.
अख़बार ने दावा किया है कि अमरीका की नेशनल सिक्योरिटी एजेन्सी या एनएसए ने चालू वित्तीय वर्ष के लिए 10.8 अरब डॉलर या 70 हज़ार करोड़ रुपयों से ज़्यादा की मांग की है.
एनएसए अमरीका की इलेक्ट्रॉनिक जासूसी करने वाली संस्था है.
सीआईए तकरीबन पांच अरब डॉलर या 32 हज़ार करोड़ रुपयों से ज़्यादा मानवीय जासूसी पर खर्च करती है. इसमें से करीब 440 करोड़ रुपए तो केवल दुनिया भर में फैले अपने जासूसों को फर्ज़ी पहचान देने में खर्च किए जाते हैं.

निगाह दोस्तों पर भी

दस्तावेजों में बारबार इस बात का ज़िक्र आता है कि चीन, रूस, ईरान और क्यूबा के आलावा इसरायल को भी अमरीका उस प्राथमिकता सूची में रखता है जिनकी जासूसी की जाती है.
अख़बार के अनुसार इन दस्तावेजों में ईरान, रूस और चीन पर जासूसी को भी बेहद कठिन काम बताया है लेकिन सबसे ज़्यादा मुश्किल उत्तरी कोरिया के मामले में पेश आई है. अमरीकी संस्थाओं को उत्तरी कोरिया के परमाणु कार्यक्रम या उसके नेता किम जोंग उन के बारे में कुछ ख़ास नहीं पता लग सका है.
अख़बार के अनुसार अमरीकी खुफिया एजेंसिया पाकिस्तान को जासूसी के लिए एक "कठिन टार्गेट" बताती हैं.
इसरायल अमरीका का पुराना साथी है, हालांकि इसरायल भी अमरीका की जासूसी कर रहा है.
अमरीकी अख़बार का कहना है कि यह सभी एजेंसियां मिल कर दसियों लाख निशानों की जासूसी करती हैं और सैकड़ों घातक हमले भी करती हैं.

पांच मुख्य ध्येय

इन संस्थाओं के पांच मुख्य ध्येय हैं: आतंकवाद से लड़ना, परमाणु और गैर परंपरागत हथियारों से विस्तार को रोकना, अमरीकी नेताओं को पूरी दुनिया घटने वाली बड़ी घटनाओं की जानकारी देना, विदेशी जासूसों से देश की रक्षा करना और दूसरे देशों की जासूसी करना

एनएसए ने अब तक इस रिपोर्ट के केवल उस एक पक्ष का खंडन किया है जिसमे कहा गया है कि अख़बारों में स्नोडेन द्वारा अमरीकी भंडाफोड़ के पहले एनएसए 4000 आतंरिक सुरक्षा में चूक के मामलों की जांच करने का मन बना रहा था.

सोनिया गांधी हैं 'इम्पोर्टेड लीडर', भेज दो वापस इटलीः उद्धव ठाकरे

सोनिया गांधी हैं 'इम्पोर्टेड लीडर', भेज दो वापस इटलीः उद्धव ठाकरे

  मुंबई, 1 सितम्बर 2013 | अपडेटेड: 09:27 IST

उद्धव ठाकरे
उद्धव ठाकरे
शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे अपने विवादित बयानों के लिए काफी चर्चा में रहते हैं. उद्धव ने कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी को इम्पोर्टेड लीडर करार दिया है और कहा कि उन्हें इटली वापस भेज देना चाहिए. इतना ही नहीं उद्धव ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार पर भी जमकर निशाना साधा. नागपुर जिले के रामटेक में शिवसेना नेताओं को संबोधित करने पहुंचे उद्धव ठाकरे ने कहा, 'सोनिया गांधी इम्पोर्टेड लीडर हैं. उन्हें इटली वापस भेज देना चाहिए.'
उद्धव ने चीन, म्यांमार घुसपैठ पर मनमोहन सिंह पर निशाना साधते हुए कहा कि मनमोहन सिंह इन देशों को करारा जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं. उद्धव ठाकरे ने शरद पवार पर वार करते हुए कहा है कि पवार को किसानों की तकलीफों में कम और आईपीएल में ज्यादा दिलचस्पी है.


5000 ढोल-नगाड़ों से गूंजा पुणे, बनाया गिनीज बुक रिकॉर्ड


5000 ढोल-नगाड़ों से गूंजा पुणे, बनाया गिनीज बुक रिकॉर्ड

  पुणे, 1 सितम्बर 2013 | अपडेटेड: 06:58 IST

5 हजार ढोल बजाने का रिकॉर्ड
5 हजार ढोल बजाने का रिकॉर्ड
पुणे में दर्ज किया गया है एक अनोखा गिनीज रिकॉर्ड. यहां एक साथ लड़के और लड़कियों ने 5 हजार ढोल बजाये जिसे देखने और सुनने के लिए भी लोगो की भारी भीड़ इकट्ठा हुई. पहले 1200 ढोल बजाने का रिकॉर्ड था जो पुणे में तोड़ा गया.पुणे में गणेश उत्सव की तयारी पूरे जोश में है और यहां 5 हजार ढोल-ताशे वालों ने एक ही जगह में एक ही समय में ढोल ताशे बजाकर एक नया वर्ल्ड रिकॉर् कायम किया. पुणे के एसपी कॉलेज ग्राउंड में ये आयोजित किया गया था.
गणेश उत्सव की तैयारियां पुणे में शुरू हो गई है और ऐसे में यहां वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बनाया गया. ढोल-ताशों को लेकर पहला वर्ल्ड रिकॉर्ड था 1200 ढोल-ताशों का. इस समय एक साथ एक समय एक जगह पर 3000 से भी ज्यादा ढोल ताशे बजाय गए. इस ग्राउंड में जहां तक नजर जाती थी वह सिर्फ सफेद और केसरिया रंग नजर आता था और जो सुनाई दे रहा था वो था ढोल की आवाज.
ढोल ताशे गणेश उत्सव से तो जुदा ही हुआ है लेकिन हमारे संस्कृति का ये एक अहम हिस्सा भी है. किसी भी सुनहरे मौके पर ढोल ताशे जरूर बजाए जाते हैं.
इस आयोजन में पुणे के अलग अलग 500 से ज्यादा ग्रुप ने हिस्सा लिया. ब्लाइंड स्कूलों के बच्चों ने भी इसमें हिस्सा लिया था.

दिल्ली गैंगरेपः गहरे हुए पीड़िता के मां-बाप के जख्म, कहा- 'हमारे साथ हुआ घिनौना खेल'

दिल्ली गैंगरेपः गहरे हुए पीड़िता के मां-बाप के जख्म, कहा- 'हमारे साथ हुआ घिनौना खेल'

| नई दिल्ली, 31 अगस्त 2013 | अपडेटेड: 21:14 IST

दिल्ली गैंगरेप पीड़िता के मां-बाप
दिल्ली गैंगरेप में पहला फैसला हो चुका है. नाबालिग को सजा तो मिली, लेकिन उसकी सजा से हर कोई असंतुष्ट है. 16 दिसंबर की रात जिस मां-बाप की बेटी के साथ इस नाबालिग ने दरिंदगी की थी, उन्होंने इस फैसले को नकार दिया है. जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने नाबालिग को तीन साल की सजा सुनाई और एक बार फिर पीड़ित छात्रा के मां-बाप के जख्म हरे हो गए.


पीड़ित छात्रा के पिता ने इस फैसले पर निराशा जताते हुए कहा, 'हमारे साथ एक बहुत ही घिनौना खेल हुआ है. एक लड़की के साथ बलात्कार भी हुआ उसका मर्डर भी हुआ और हमारी कोर्ट ने उसे छोड़ दिया.'


पीड़ित छात्रा के पिता ने नाबालिग को मिली तीन साल की सजा पर कहा, 'ये सजा नहीं बल्कि उसको एकदम बा-इज्जत छोड़ा गया है. हमारे लिए ये कोई सजा नहीं है. हमारी अर्जी मंजूर हो या नहीं, हम ऊपरी कोर्ट में जाएंगे.'


वहीं पीड़िता की मां ने कहा, 'इस फैसले को हम स्वीकार नहीं करते हैं. हम ऊपरी अदालत में जाएंगे. इस फैसले से जनता में गलत संदेश जा रहा है कि नाबालिग को सजा नहीं मिलेगी, वो चाहे किसी के साथ दरिंदगी करे या किसी को मार ही डाले.'


सीरिया को सबक सिखाना जरुरी: बराक ओबामा

सीरिया को सबक सिखाना जरुरी: बराक ओबामा

दिल्ली, 1 सितम्बर 2013 | अपडेटेड: 09:16 IST

बराक ओबामा
बराक ओबामा
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सीरिया पर हमले के फैसले का एलान किया है. ओबामा ने कहा कि वो पहले अमेरिकी कांग्रेस से अपने फैसले की मंजूरी लेंगे. हालांकि इस मामले में ओबामा ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को किनारे कर दिया. उन्होंने कहा कि सीरिया में केमिकल हमला मानवता पर हमला है, लिहाजा उसे सबक सिखाना होगा. ओबामा ने ये साफ नहीं किया है कि सीरिया में हमला कब होगा, लेकिन उन्होंने कहा कि चुने हुए ठिकानों को निशाना बनाया जाएगा. उन्होंने सीरियाई हमले को 'दुनिया के लिए चुनौती' कहा है. इस हमले से अमेरिका के सहयोगी इजराइल, तुर्की और जोर्डन को खतरा पैदा हो गया है, जबकि इस तरह के हथियार आतंकवादियों के हाथों पड़ने का भी खतरा पैदा हो गया है.
हमले के अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के ऐलान पर सीरिया ने तीखी प्रतिक्रिया जताई है. सीरिया के प्रधानमंत्री वाएल-अल-हलकी ने कहा है कि सीरियाई सेना किसी भी तरह के पश्चिमी हमले का जवाब देने के लिए तैयार है. सीरिया के सरकारी टेलीविजन के मुताबिक हलकी ने इटली में सीरियाई विस्थापितों के साथ बैठक में ये बात कही.
सीरिया पर अमेरिकी हमले की तैयारी का विरोध शुरु हो गया है. अमेरिका में व्हाइट हाउस के सामने हजारों लोगों ने प्रदर्शन किया और ओबामा सरकार के फैसले के खिलाफ नारेबाजी की.
उधर ब्रिटेन में भी सीरिया पर हमले की तैयारी का विरोध हो रहा है. ब्रिटिश संसद में सीरिया पर हमले का प्रस्ताव गिर चुका है. लंदन में लोगों ने रैली निकालकर सीरिया के खिलाफ कार्रवाई का प्रस्ताव गिरने पर खुशी जताई और अमेरिकी कार्रवाई की तैयारी की निंदा की.
दूसरी ओर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने शनिवार को कहा कि सीरियाई सरकार ने कभी भी रासायनिक हथियार का इस्तेमाल नहीं किया और दमिश्क के बाहरी इलाके में हाल ही में हुए रासायनिक हमले को भड़काऊ करार दिया.
संयुक्त राष्ट्र के निर्णय का समर्थन करेगा भारत
भारत ने युद्ध प्रभावित सीरिया में घटनाक्रमों को ‘‘परेशान करने वाला’’ बताते हुए आशा जतायी कि हिंसा से बचा जाएगा. भारत ने साथ ही चेतावनी दी कि स्थिति नियंत्रण से बाहर हो सकती है और यह उस देश के नजदीक अन्य क्षेत्रों में भी फैल सकती है.
यह पूछे जाने पर कि क्या भारत इस मुद्दे पर अमेरिका के साथ सम्पर्क में है, खुर्शीद ने कहा, ‘कूटनीतिक स्तर पर निश्चित तौर पर हमारे राजदूत अमेरिका के साथ सम्पर्क में हैं.’ खुर्शीद ने आशा जतायी कि विश्व वहां पर होने वाले घटनाक्रमों को गंभीरता से लेगा क्योंकि वहां पर 60 से 70 लाख भारतीय प्रवासी हैं. उन्होंने उम्मीद जतायी कि सीरिया सरकार वहां पर रहने वाले भारतीयों और मिशन के अधिकारियों की सुरक्षा के लिए सभी कदम उठाएगी. उन्होंने कहा कि भारत निश्चित तौर पर इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र के निर्णय का समर्थन करेगा.


EXCLUSIVE: आतंक मचाने के लिए अमेरिका से मिला भटकल को फंड!

EXCLUSIVE: आतंक मचाने के लिए अमेरिका से मिला भटकल को फंड!

नई दिल्ली, 1 सितम्बर 2013 | अपडेटेड: 10:42 IST

यासीन भटकल
यासीन भटकल
भारत में इंडियन मुजाहिद्दीन का ऑपरेशन हेड यासीन भटकल आतंक मचाने के लिए अमेरिका से फंड का इंतजाम कर रहा था. अमेरिका की खुफिया एजेंसी फेडरल ब्यूरो ऑफ इनवेस्टिगेशन (एफबीआई) ने इस बात का खुलासा किया है. एफबीआई ने इस आतंकवादी के खतों को खंगाला जिसके बाद ये जानकारी सामने आई. एफबीआई ने भटकल के खत भारतीय खुफिया एजेंसी को सौंप दिए हैं. एफबीआई को मिले भटकल के तीन खत
सूत्रों के मुताबिक भटकल ने तीन खत लिखे थे, जिन पर पता अमेरिका के न्यूजर्सी के किसी स्थान का था. जिनमें से एक खत पाकिस्तान से जबकि बाकी दोनों यूएई से भेजे गए थे. सूत्र ने बताया, 'एफबीआई को नहीं पता था कि ये खत भटकल ने लिखे हैं, लेकिन जब पता चला कि इन खतों का संबंध इंडियन मुजाहिद्दीन से है तो उन्होंने खत हमें सौंप दिए.'
अमेरिकी संगठन से मिला इंडियन मुजाहिद्दीन को फंड
खुफिया विभाग के अधिकारी के मुताबिक, 'खत उर्दू में लिखे गए हैं और इसमें न्यूमेरिक कोड्स हैं. आतंक के लिए फंड को लेकर ये खत लिखे गए थे.' सूत्रों की माने तो ऐसा शक है कि भटकल अमेरिका के कुछ संगठनों से संपर्क में था, जो इंडियन मुजाहिद्दीन को फंड देते थे. पांच साल से खुफिया एजेंसियों के साथ आंख-मिचौली खेल रहे भटकल को उसके खास असाउदुल्लाह अख्तर उर्फ 'हड्डी' के साथ नेपाल-भारत बॉर्डर से गुरुवार सुबह गिरफ्तार किया गया.
सूत्रों के मुताबिक इन खतों को देखकर साबित होता है कि भटकल पाकिस्तान और यूएई अक्सर जाता रहता था. नेपाल के पोखरा के पास भटकस का बेस था और वह अक्सर पाकिस्तान, यूएई, बांग्लादेश और भारत जाता रहता था. खुफिया एजेंसी को वो खत भी बरामद हुए हैं, जिनके जरिए भटकल ने अपने परिवार और साथियों से संपर्क किया था. खुफिया एजेंसी के अधिकारी ने एफबीआई से मिले खतों की हैंडराइटिंग इन खतों की हैंडराइटिंग से मिलाया.
भटकल ने पूछताछ में किए चौंकाने वाले खुलासे
एनआईए ने इस मामले में अपनी औपचारिक जांच शुक्रवार से शुरू की जब उसे इस आतंकी की 12 दिन की कस्टडी मिली. सूत्रों की माने तो भटकल कस्टडी में पूछताछ के दौरान झूठ बोल रहा है और किसी भी बात का खुलासा नहीं करना चाहता है. इसके के अलावा भटकल को अपने किए पर कोई पछतावा भी नहीं है. भटकल ने खुलासा किया कि पाकिस्तानी आर्मी के एक लेफ्टिनेंट कर्नल से वह लगातार संपर्क में रहता था. ये लेफ्टिनेंट कर्नल आईएसआई से भी जुड़ा हुआ है. हालांकि इंडियन मुजाहिद्दीन के भविष्य की साजिशों पर भटकल ने कुछ भी नहीं उगला है. भटकल ने बताया कि ये ऑफिसर उसका हैंडलर है और ग्रुप की तमाम गतिविधियों की जानकारी लेता रहता है.
इन सब के अलावा भटकल ने कहा कि इंडियन मुजाहिद्दीन की टॉप लीडरशिप पाकिस्तान में थी, जिसे आईएसआई और लश्कर-ए-तैयबा कंट्रोल करते थे. खुफिया एजेंसी को उम्मीद मिली है कि भटकल से मिली जानकारी के दम पर इंडियन मुजाहिद्दीन का नेटवर्क की कमर तोड़ी जाएगी. सूत्रों ने बताया कि इंडियन मुजाहिद्दीन के कम से कम चार टॉप मेंबर एजेंसी की रडार पर थे. सूत्रों की माने तो भटकल म्यांमार के रोहिनगया मुस्लिम्स के बारे में जिक्र किया. भटकल ने बोधगया ब्लास्ट में हाथ होने से इनकार किया है, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि इसके पीछे रोहिनगया मुस्लिम्स का हाथ है.


जानें आसाराम की गिरफ्तारी से पहले कब-कब क्या हुआ...

जानें आसाराम की गिरफ्तारी से पहले कब-कब क्या हुआ...

  | इंदौर, 1 सितम्बर 2013 | अपडेटेड: 09:43 IST

इंदौर आश्रम से गिरफ्तारी के बाद आध्यात्मिक गुरु आसाराम पुलिस की गाड़ी में मुंह छिपाकर निकले. अब तक पुलिस से बचते फिर रहे आसाराम को जोधपुर पुलिस ने हाई वोल्टेज ड्रामे के बाद गिरफ्तार कर ही लिया. अपने चेहरे को सफेद कपड़ों से ढके आसाराम पर काफी संगीन आरोप लगे हैं. उनके ऊपर नाबालिग लड़की का यौन शोषण करने का आरोप लगा है. आसाराम गिरफ्तार तो हो गए, लेकिन उनकी गिरफ्तारी के लिए जोधपुर पुलिस को बड़ी मशक्कत करनी पड़ी. इंदौर के आश्रम में आसाराम और उनके समर्थकों को ड्रामा काफी लंबा चला.
गिरफ्तारी से पहले जानें कब-कब क्या हुआ...
शनिवार रात को 8.30 बजेः जब जोधपुर पुलिस आसाराम के इंदौर आश्रम में पहुंची, तब तक आसाराम ने पुलिस से मिलने की जरूरत भी नहीं समझी.
शनिवार रात को 8.45 बजेः आश्रम में पुलिस आसाराम से पूछताछ की तैयारी में थी, लेकिन बतायी जा रही खराब सेहत के बावजूद आसाराम प्रवचन में जुटे थे.
शनिवार रात को 9.00 बजेः आसाराम के बेटे नारायण साईं ने पुलिस से सहयोग करने का वादा किया और फिर कुटिया में चले गए.
शनिवार रात को 10.00 बजेः जोधपुर पुलिस समझ चुकी थी कि सीधी उंगली से घी नहीं निकलेगा, लिहाजा भारी तादाद में पुलिसबल को बुलाया गया.
शनिवार रात को 11.15 बजेः पुलिस की बढ़ती तादाद को देखकर आसाराम परेशान थे. माहौल को संभालने के लिए आसाराम के वकील सामने आए और दावा किया कि सुबह से पहले कोई कार्रवाई नहीं होगी.
शनिवार रात को 11.30 बजेः जोधपुर पुलिस अब तक आसाराम को दबोचने का मन बना चुकी थी. इसीलिए पुलिस ने पूरे आश्रम की घेराबंदी कर दी और आसाराम की कुटिया में पहुंचकर पुलिस पूछताछ करने लगी.
शनिवार देर रात 12.25 बजेः जोधपुर पुलिस के सवालों का आसाराम ने सटीक जवाब नहीं दिया, जिसके बाद पुलिस ने आसाराम को गिरफ्तार कर लिया. और आश्रम से जोधपुर के लिए रवाना हो गई.


आसाराम बापू गिरफ्तार

आसाराम बापू गिरफ्तार

Updated on: Sun, 01 Sep 2013 12:43 AM (IST)
asaram bapu
आसाराम बापू गिरफ्तार
इंदौर। नाबालिग छात्रा के यौन उत्पीड़न के आरोपी कथावाचक आसाराम बापू को शनिवार देर रात जोधपुर पुलिस ने इंदौर आश्रम से गिरफ्तार कर लिया। दस गाड़ियों के काफिले के साथ आसाराम को ले जाया गया। गिरफ्तारी के वक्त करीब एक हजार पुलिसकर्मी तैनात थे।
उन पर कानूनी कार्रवाई को लेकर हाई वोल्टेज ड्रामा दूसरे दिन शनिवार को भी जारी रहा। पुलिस की गिरफ्त से बचने की पल दर पल क्षीण पड़ती आशा के बीच आसाराम भोपाल से शुक्रवार रात सड़क मार्ग से इंदौर आ गए लेकिन उनकी मौजूदगी पर तब तक पर्दा पड़ा रहा जब तक उनके आश्रम में पुलिस नहीं पहुंच गई। इधर, जोधपुर से चला पुलिस दल भी देर शाम इंदौर पहुंच गया। आसाराम के बेटे नारायण साईं ने पिता के बीमार होने की बात कहकर पुलिस के समक्ष उनकी पेशी को टालने की कोशिश की लेकिन इंदौर पहुंचे राजस्थान पुलिस के अधिकारियों ने कहा कि पूछताछ के लिए आसाराम फिट हैं। रात करीब साढ़े नौ बजे उन्होंने पूछताछ शुरू भी कर दी थी।

यौन उत्पीड़न से जुड़े सवालों से बचते घूम रहे आसाराम के लिए शनिवार का दिन मुश्किलों भरा रहा। कई घंटे तक उनकी मौजूदगी रहस्य के घेरे में रही। बाद में आसाराम के वकील ने पुष्ट कर दिया कि कथावाचक अपने इंदौर आश्रम में ही हैं। इंदौर के खंडवा रोड स्थित आश्रम के भीतर और बाहर मौजूद उनके समर्थकों का मूड भांपते हुए जिला प्रशासन ने वहां पर बड़ी संख्या में पुलिस बल की तैनाती कर दी। करीब तीन सौ पुलिसकर्मियों को आश्रम के बाहर और भीतर तैनात कर दिया गया। रात तक इसे बढ़ाकर एक हजार कर दिया गया। आश्रम के सूत्र और नारायण साईं ने आसाराम की तबीयत नासाज होने की बात कही है।

तबीयत ठीक होने पर आरोपों को लेकर पूछताछ के लिए आसाराम के तैयार होने की बात वे कहते रहे। लेकिन पुलिस पूछताछ करने पर दृढ़ बनी रही। इंदौर पहुंचे जोधपुर (राजस्थान) पुलिस के अधिकारी के अनुसार आसाराम इसके लिए पूरी तरह फिट हैं। इसलिए पूछताछ को टालने की कोई वजह नहीं है। रात में जब गिरफ्तारी के आसार बने तो अचानक पुलिस की तैनाती बढ़ गई और एंबुलेंस भी बुला ली गईं। इससे पहले शाम छह बजे मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक ने आसाराम के स्वास्थ्य का परीक्षण करके अपनी रिपोर्ट दी थी।

बापू को ट्राईजिमिनियल न्यूरोलॉजिया : नारायण
आसाराम के पुत्र नारायण सांई ने मीडिया से कहा कि बापू के 400 आश्रम और करोड़ों भक्त हैं। अगर उन्हें छिपना होता तो वे कहीं भी जा सकते थे। उन्होंने बताया कि बापू को ट्राईजिमिनियल न्यूरोलॉजिया बीमारी है। इस बीमारी की वजह से उनके चेहरे में दर्द रहता है। बापू 13 साल से इस बीमारी से परेशान हैं, लेकिन इस बारे में कभी भक्तों को नहीं बताया। सत्संग के दौरान भी कई बार बापू को दर्द उठ चुका है। उन्होंने हमेशा भजन और ध्यान से इस बीमारी पर काबू पाने का प्रयास किया।


asaram may be arrested
रेप के मामले में फंसे आसाराम पर पुलिस का शिकंजा कस गया। घंटों चले लुका छिपी के खेल के बाद पुलिस को शाम को पता चला कि आसाराम अपने इंदौर के आश्रम में ही छिपे हैं।

वहां आसाराम के समर्थकों की बड़ी संख्या में मौजूदगी को देखते हुए जोधपुर पुलिस ने आश्रम को घेरे में लिया और उनको गिरफ्तार कर ले गई।

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, पुलिस ने बताया कि आसाराम पूछताछ में सहयोग नहीं कर रहे थे। उनको गिरफ्तार करने के सिवा और कोई विकल्प नहीं बचा था।
police
इससे पहले पुलिस की टीमें दिनभर आसाराम को भोपाल से लेकर इंदौर तक तलाश करती रहीं। पुलिस का दबाव बढ़ता देख शाम को खुद आसाराम के बेटे नारायण साईं ने खुलासा किया कि आसाराम इंदौर के आश्रम में ही हैं।

वह पुलिस से भाग नहीं रहे हैं, बल्कि उनकी तबीयत खराब है। स्वास्थ्य सही होते ही वह जोधपुर जाएंगे। लेकिन जोधपुर पुलिस ने कहा है कि आसाराम का स्वास्थ्य बिलकुल ठीक है और उनसे जल्द ही पूछताछ होगी।

डीसीपी अजय लांबा ने कहा कि इंदौर मेडिकल कालेज के डॉक्टरों ने जांच के बाद आसाराम को पूरी तरह स्वस्थ पाया है।

शुक्रवार रात जोधपुर पुलिस के भोपाल पहुंचने से पहले ही आसाराम अपने आश्रम से निकल गए थे। उन्हें बेटे नारायण साई के साथ एक एसयूवी में देवास टोल नाका के सामने देखा गया।

इसके बाद आसाराम का कोई अता पता शनिवार शाम तक नहीं चला। हालांकि इंदौर में खंडवा रोड स्थित उनके आश्रम के बाहर सुबह से सैकड़ों की संख्या में समर्थक जुटने लगे। इसके बाद पुलिस ने भी वहां सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए।

इस तरह की अफवाहें भी उड़ीं कि आसाराम देवास से ही रतलाम के लिए रवाना हो गए हैं। इस बीच मामले में आरोपी आसाराम का प्रमुख सेवक शिवा शनिवार को जोधपुर पुलिस के सामने पेश हो गया।

पुलिस हिरासत में लेकर शिवा से पूछताछ कर रही है। जोधपुर पुलिस ने शिवा, छिंदवाड़ा हॉस्टल की वार्डन शिल्पी व केयर टेकर को समन देकर 29 अगस्त को बुलाया था।

पब्लिक पर फिर महंगाई की मार, पेट्रोल 2.35 रुपये और डीजल 50 पैसे प्रति लीटर महंगा

पब्लिक पर फिर महंगाई की मार, पेट्रोल 2.35 रुपये और डीजल 50 पैसे प्रति लीटर महंगा

  नई दिल्‍ली, 31 अगस्त 2013 | अपडेटेड: 23:36 IST

लगातार बेतहाशा बढ़ती महंगाई से बेहाल आम लोगों की मुसीबतों में फिर से इजाफा हो गया है. पेट्रोल और डीजल के दाम फिर से बढ़ गए हैं. पेट्रोल 2.35 रुपये प्रति लीटर और डीजल 50 पैसे प्रति लीटर महंगा हो गया है. पेट्रोल-डीजल के बढ़े हुए दाम शनिवार आधी रात से लागू होंगे. पेट्रोल के दाम बढ़ने के बाद अब दिल्‍ली में इसकी कीमत 73.63 रुपये, मुंबई में 80.96 रुपये, लखनऊ में 80.48 रुपये, पटना में 79.36 रुपये और भोपाल में 78.19 रुपये प्रति लीटर हो गई है.
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में लगातार गिरावट आने की वजह से पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाए गए हैं. पेट्रोलियम कंपनियां सरकार पर कीमतें बढ़ाने का दबाव बना रही थीं, जिससे उनका घाटा कम हो सके.
सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनी भारतीय तेल निगम (आईओसी) ने दाम में बढ़ोतरी की घोषणा की है. आईओसी ने कहा कि रुपये के अवमूल्यन और सीरिया में जारी अस्थिरता की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में वृद्धि हुई है, जिसकी वजह से यह वृद्धि की गई है.
बहरहाल, पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ने से अन्‍य जरूरी चीजों की भी कीमतें बढ़ जाएंगी, जिससे आम जनता की मुश्किलें बढ़ना तय है.

रतन टाटा:देश की लीडरशिप में कमी, तभी बढ़ रहा है आर्थिक संकट

रतन टाटा:देश की लीडरशिप में कमी, तभी बढ़ रहा है आर्थिक संकट

नई दिल्ली, 28 अगस्त 2013 | अपडेटेड: 21:53 IST

रतन टाटा
रतन टाटा
यूपीए सरकार और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की काबिलियत पर सवाल उठाते हुए टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा ने देश में बढ़ रहे आर्थिक संकट के लिए नेतृत्व में कमी को जिम्मेदार ठहराया है. रतन टाटा की माने तो  देश को एक ऐसे लीडर की जरूरत है, जो सामने से  आ कर देश का नेतृत्व करे. एक इंग्लिश न्यूज चैनल को दिए गए इंटरव्यू में रतन टाटा ने कहा, 'प्रधानमंत्री की टीम और राजनीतिक वर्ग के लोगों को जरूरत है कि वो एक दिशा में काम करें और अपने व्यक्तिगत एजेंडों को देशहित से ऊपर न रखें.'
रतन टाटा ने कहा, 'कुछ ऐसे नेता हैं, जिनकी पब्लिक लाइफ के लिए मैंने हमेशा उनकी इज्जत की है. लेकिन कुछ ऐसा हुआ है जिससे उनकी ये छवि खराब हो जाती है. हमारे पास वो नेतृत्व नहीं है, जो सामने से आकर कमान संभाले.' हालांकि उन्होंने साथ ही ये भी कहा कि वो अभी भी प्रधानमंत्री की इज्जत करते रहेंगे.
रतन टाटा के मुताबिक, 'मेरा मानना है कि वो बहुत कुछ करने में सक्षम हैं. शायद टीम एक दिशा में काम नहीं कर रही है. केंद्र एक दिशा में चल रही है और उसके सहयोगी अलग दिशा में.'
रतन टाटा की माने तो, 'हम खुद का सरकार के साथ सामंजस्य बिठा पा रहे हैं. हम खुद को अब एक देश के रूप में देखना बंद कर चुके हैं. हम पहले पंजाबी, बंगाली, तमिल हैं और बाद में इंडियन. हमें अपने देश के लिए ऐसा नहीं होना चाहिए.'
गुजरात के विकास के लिए मोदी की जमकर तारीफ
उन्होंने कहा कि मनमोहन सिंह ने देश के सम्मान को बढ़ाया है, लेकिन पिछले कुछ दिनों में हमने वो सम्मान खो दिया है. हम दुनिया का भरोसा खो चुके हैं. वहीं रतन टाटा ने गुजरात में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की तारीफ की है. लेकिन देश की राजनीति में मोदी के रोल लेकर बोलने से रतन टाटा बचते हुए नजर आए. उन्होंने कहा, 'मुझे लगता है कि उन्होंने गुजरात में अपना कुशल नेतृत्व साबित किया है. उनके नेतृत्व में गुजरात ने ऊंचाइयों को छुआ है लेकिन वो देश के लिए क्या कर सकते हैं उस पर मैं कुछ नहीं बोल सकता.'


गोदरेज:पीएम ने कुछ चीजों को नजरंदाज किया

गोदरेज:पीएम ने कुछ चीजों को नजरंदाज किया

नई दिल्ली, 1 सितम्बर 2013 | अपडेटेड: 00:04 IST

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
बुरे आर्थिक हालातों से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था के बीच सरकार पर भी लगातार प्रहार हो रहे हैं. अब देश की एक बड़ी कंपनी गोदरेज के चेयरमैन ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा है कि प्रधानमंत्री ने देश में कारोबारी हालात और कर मुद्दों से जुड़ी चिंताओं को नजरंदाज किया है. प्रमुख उद्योगपति रतन टाटा भी इससे पहले देश में कारोबारी परिस्थितियों के बारे में अपनी नाराजगी व्यक्त कर चुके हैं. उन्होंने कहा कि भारत निवेशकों का विश्वास खोता जा रहा है.
एक कार्यक्रम में गोदरेज ने कहा 'मेरा मानना है कि उन्होंने (प्रधानमंत्री) ने अपने भाषण में कुछ सच्चाइयों को नजरंदाज किया है. सबसे बड़ी गलती जो हमने की है वह दो साल पहले बजट में पिछली तिथि से किया गया कर संशोधन है. वह (प्रधानमंत्री) उस सबसे बड़ी समस्या को भूल गये. देश में कारोबारी परिवेश को बेहतर बनाने में यह बड़ी समस्या है.'
गोदरेज ने कहा कि भारत में आसानी से व्यवसाय एवं कारोबार करने की परिस्थितियां हाल में बिगड़ी हैं और यही वजह है कि देश को आर्थिक चिंताओं से जूझना पड़ रहा है जिनका वह इस समय सामना कर रहा है. उन्होंने कहा कि कर प्रावधानों में पिछली तिथि से किये गये संशोधन ने भारत के बारे में विदेशों में नकारात्मक छवि बनाई है.
प्रधानमंत्री ने शुक्रवार को ही संसद में देश की आर्थिक स्थिति के बारे में अपनी चुप्पी तोड़ते हुए विस्तृत वक्तव्य दिया था. उन्होंने आर्थिक सुधारों से पीछे हटने और पूंजी नियंत्रण लगाने की संभावनाओं से भी इनकार किया.



अमेरिकी जासूसी के मद्देनजर सरकारी दफ्तरों में 'जीमेल' पर लग सकता है बैन

अमेरिकी जासूसी के मद्देनजर सरकारी दफ्तरों में 'जीमेल' पर लग सकता है बैन

नई दिल्‍ली, 31 अगस्त 2013 | अपडेटेड: 16:07 IST

Gmail पर बैन!
लगेगा Gmail पर बैन?
भारत सरकार अपने दफ्तरों में 'जीमेल' जैसी अमेरिकी ईमेल सेवाओं के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा सकती है. बताया जा रहा है कि अमेरिका के जासूसी कार्यक्रम को ध्यान में रखते हुए सरकार ऐसी तैयारी कर रही है. इस कदम का मकसद गुप्त सरकारी सूचनाओं को किसी भी हालत में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के हाथ न लगने देना है. माना जाता है कि अमेरिकी एजेंसियों की अमेरिकी ईमेल कंपनियों के डाटा तक सीधी पहुंच है.
अंग्रेजी न्यूज वेबसाइट ग्लोबल पोस्ट पर छपी खबर के मुताबिक, सरकार ने कहा है कि वह जल्द ही अपने पांच लाख कर्मचारियों को नोटिस भेजकर कहेगी कि वे सिर्फ भारत के नेशनल इंफोर्मेटिक्स सेंटर की ओर से मुहैया कराई ईमेल सेवाओं का इस्तेमाल करें.
गूगल को नहीं दी गई है सूचना
इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट में सचिव जे सत्यनारायण के मुताबिक, 'जीमेल पर भारतीय यूजर जो डाटा डालते हैं, वह दूसरे देशों में देखा जा सकता है, क्योंकि जीमेल के सर्वर विदेश में ही हैं. हम सरकारी क्षेत्र में इस बात को रखने वाले हैं, जहां ढेर सारा गोपनीय डाटा है.' हालांकि गूगल को ऐसी कोई सूचना नहीं दी गई है.
गौरतलब है कि अमेरिकी नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी के पूर्व कर्मचारी एडवर्ड स्नोडेन ने खुलासा किया था कि अमेरिका भारत समेत दुनिया के कई देशों में इंटरनेट पर निगरानी रख रहा है.


'नए तत्व' से बदलेगी ज़िंदगी?वैज्ञानिकों को एक नए तत्व के वजूद में होने के पुख्ता सबूत मिले हैं.

'नए तत्व' से बदलेगी ज़िंदगी?

 शनिवार, 31 अगस्त, 2013 को 22:19 IST तक के समाचार

नया तत्व
वैज्ञानिकों को एक नए तत्व के वजूद में होने के पुख्ता सबूत मिले हैं.



एक नए तत्व के लिए शोधकर्ताओं को और सबूत मिले हैं. हालांकि रसायन और भौतिकशास्त्र की आधिकारिक संस्था ने इस नए तत्व की पुष्टि नहीं की है.
वैज्ञानिकों ने पहले से अपुष्ट इस नए तत्व के वजूद के पक्ष में नए सबूत पेश किए हैं. इस तत्व की परमाणु संख्या 115 मानी जा रही है.
ये तत्व बेहद रेडियोएक्टिव है और एक सेकेंड से भी कम समय तक टिकने के बाद हल्के परमाणुओं में बदल जाता है.
रूस के वैज्ञानिकों ने साल 2004 में इस बेहद भारी तत्व की खोज की थी. रसायन और भौतिकशास्त्र की आधिकारिक संस्था ने इसकी पुष्टि नहीं की है.
इस तत्व के लिए फिज़िकल रिव्यू लेटर्स नाम के जर्नल में सबूत पेश किए गए हैं.

रेडियोधर्मी पदार्थ

स्वीडन के परमाणु भौतिकी के प्रोफेसर डर्क रुडोल्फ कहते हैं, “ये एक बहुत सफल प्रयोग था और इस क्षेत्र में बीते कुछ सालों में ये सबसे अहम प्रयोग है.”
प्रोफेसर रुडोल्फ का कहना है कि इस तत्व की खोज के बाद इसकी प्रोटॉन संख्या की स्वतंत्र पुष्टि होनी है.
प्रोफेसर रुडोल्फ ने कहा, “ये खोज मानक प्रमाणों के परे है.”
शोधकर्ताओं ने एक संभावित नए तत्व का नया आइसोटोप यानी समस्थानिक बनाया जो अल्फा डिके नाम की एक रेडियोएक्टिव प्रक्रिया से दूसरे कणों में बदल गया.
शोधकर्ताओं के मुताबिक उन्होंने कुछ ऐसे आंकड़ों को भी छुआ जिनसे एक बहुत भारी परमाणु नाभिक की संरचना और गुणों के बारे में गहरी जानकारी मिलती है.
इन शोधकर्ताओं ने अमरीसियम तत्व की एक पतली फिल्म पर कैल्शियम के आयनों की बौछार की जिससे उन्हें नए तत्व के अल्फा डिके के संबंध में प्रकाश के कणों फोटॉनों को मापने में मदद मिली.
फोटॉनों की कुछ ऊर्जा एक्सरे विकिरण से संभावित ऊर्जा से मिलती है. जो नए तत्व की ‘फिंगरप्रिंट’ के तौर पर काम करती है.
ये प्रयोग जर्मनी में जीएसआई प्रयोगशाला में हुआ जहां वैज्ञानिक पहले छह नए तत्व खोज चुके हैं.
संभावित नए तत्व की इंटरनेशनल यूनियंस ऑफ प्योर एंड अप्लाइड फिज़िक्स एंड केमिस्ट्री के सदस्यों की एक कमेटी समीक्षा करेगी. ये कमेटी ये तय करेगी कि नए तत्व को मान्यता देने से पहले कुछ और प्रयोगों की सिफारिश की जाए या नहीं.

सीरियाः पुतिन ने अमरीका को सबूत पेश करने की चुनौती दी

सीरियाः पुतिन ने अमरीका को सबूत पेश करने की चुनौती दी

 शनिवार, 31 अगस्त, 2013 को 22:00 IST तक के समाचार

रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने अमरीका से कहा है कि वो संयुक्त राष्ट्र के सामने इस बात के सबूत पेश करे कि रसायनिक हमले के लिए सीरियाई सरकार ही ज़िम्मेदार है.
पुतिन ने कहा कि रासायनिक हमले करके विपक्षियों को भड़काने का कदम उठाना सीरिया की सरकार के लिए बड़ी बेवकूफ़ी होता, वो भी तब जब सीरियाई सेना विरोधियों को ख़िलाफ़ बढ़त हासिल कर रही थी.
पत्रकारों से बातचीत में पुतिन ने कहा, "अमरीका दावा करता है कि सीरिया की सरकार ने रसायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया है और उनके पास सबूत हैं. उन्हें ये सबूत संयुक्त राष्ट्र के हथियार निरीक्षकों और सुरक्षा परिषद के समक्ष पेश करने चाहिए. सबूतों को ख़ुफ़िया बताकर पेश न करना अंतरराष्ट्रीय गतिविधी में शामिल सहयोगियों के प्रति असम्मान हैं. अगर उनके पास सबूत हैं तो वे पेश किए जाने चाहिए. यदि ये सबूत सामने नहीं आते हैं तो हम यही मानेंगे कि कोई सबूत है ही नहीं."
इससे पहले अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा था कि ख़ुफ़िया रिपोर्टों के आधार पर वे सीरिया के ख़िलाफ़ सैन्य कार्रवाई पर विचार कर रहे हैं.
राष्ट्रपति पुतिन का ये बयान संयुक्त राष्ट्र के हथियार निरीक्षकों के दल के सीरिया छोड़ने के बाद आया है.
गौरतलब है राजधानी दमिश्क के नज़दीक हुए रसायनिक हमले में बच्चों समैत सैंकड़ों लोग मारे गए थे. अमरीका का मानना है कि इस रासायनिक हमले के पीछे सीरिया की सरकार है.
सीरियाई महिलाएं
हमले की संभावना से डरे हुए सीरिया नागरिक पड़ोसी देशों में शरण ले रहे हैं
दमिश्क से आ रही रिपोर्टों के मुताबिक सीरिया की सेना अपने हथियारों की स्थिति में बदलाव कर रही है. हमले की संभावना के मद्देनज़र हथियारों को रिहायशी इलाक़ों में ले जाया जा रहा है. रिपोर्टों के मुताबिक मस्जिदों और स्कूलों में भी हथियार रखे जा रहे हैं.
हमले की संभावना से दमिश्क के शहरी चिंतित हैं. नागरिक खाने के सामान का भंडारण कर रहे हैं. भारी तादाद में लोग देश भी छोड़ रहे हैं. वही सीरिया की सरकार का कहना है कि वह किसी भी हमले से देश की रक्षा करेगी.

भारतीय नागरिकों को सीरिया छोड़ने की सलाह

भारत ने अपने नागरिकों को सीरिया छोड़ने और सीरिया न जाने की सलाह दी है.
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अकबरउद्दीन ने एक बयान में कहा, "हम दमिश्क में अपने दूतावास से संपर्क में है जो वहाँ मौजूद 25-30 भारतीयों के संपर्क में हैं. सभी भारतीय नागरिक सुरक्षित हैं. इससे पहले हमने सीरिया में मौजूद सभी भारतीय नागरिकों को भारत लौटने की सलाह दी थी. एक बार फिर उन्हें वापस भारत लौटने की सलाह दी जाती है. भारतीय नागरिकों को सीरिया न जाने संबंधी सलाह अब भी प्रभाव में है."

जाँच दल ने सीरिया छोड़ा

दमिश्क के पास पिछले दिनों रासायनिक हमले से जुड़े आरोपों की जांच कर रहे संयुक्त राष्ट्र के निरीक्षकों ने सीरिया छोड़ दिया है. 21 अगस्त को दमिश्क के नज़दीक हुए रसायनिक हमले की चार दिन तक जाँच करने के बाद निरीक्षण दल लेबनान चला गया है.
सीरिया में सैन्य कार्रवाई की बढ़ती संभावनाओं के बीच संयुक्त राष्ट्र के निरीक्षकों की जाँच को बेहद अहम माना जा रहा है.
अमरीका का कहना है कि उसने सीरिया में सैन्य हस्तक्षेप के बारे में अभी कोई फैसला नहीं लिया है लेकिन वहां एक सीमित सैन्य कार्रवाई पर विचार हो रहा है.
अमरीका का कहना है कि इस बात के पर्याप्त सबूत है कि सीरिया में सरकार ने रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया जिसमें 1400 से ज्यादा लोग मारे गए.
बीबीसी संवाददाता का कहना है कि सीरिया से संयुक्त राष्ट्र के निरीक्षको के चले जाने के बाद वहां अमरीकी नेतृत्व में सैन्य कार्रवाई के लिए अब राजनीतिक और व्यवहारिक अड़चनें दूर हो गई हैं.

'धमकी स्वीकार्य नहीं'

रूस ने कहा है कि सीरिया पर बल प्रयोग की अमरीकी धमकी को स्वीकार नहीं किया जा सकता है.
रूसी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता एलेक्जेंडर लुकासेविच ने कहा कि वहां एकतरफा सैन्य कार्रवाई सीधे तौर पर अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन होगी और इससे सीरियाई संकट के राजनीतिक समाधान की कोशिशों को धक्का लगेगा.
हथियार निरीक्षक दल
संयुक्त राष्ट्र के हथियार निरीक्षकों के दल ने सीरिया छोड़ दिया है
पिछले हफ्ते दमिश्क के पास रासायनिक हथियारों के कथित इस्तेमाल के बाद सीरिया पर लगातार दबाव बढ़ रहा है. अमरीकी विदेश मंत्री जॉन कैरी के अनुसार इस हमले में 1429 लोग मारे गए.
कैरी ने कहा कि मरने वालों में 426 बच्चे भी शामिल थे. उन्होंने इन हमलों को एक ऐसा खौफ़ बताया है जो समझ से परे है.

संसद से सलाह

सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल असद की सरकार ने इन हमलों से इनकार किया है और रासायनिक हमलों के लिए विद्रोहियों को जिम्मेदार ठहराया है.
राष्ट्रपति ओबामा ने सीरिया को लेकर कहा कि इस बारे में अगले कदम पर अमरीकी सरकार को संसद से सलाह लेनी चाहिए.
वहीं तुर्की के प्रधानमंत्री रचेप तयैप एर्दोआन ने कहा है कि सीरिया में किसी भी तरह के हस्तक्षेप का मकसद राष्ट्रपति बशर अल असद को सत्ता से हटाना होना चाहिए.

हमले के पर्याप्त साक्ष्य

कैरी का कहना था कि अमरीका के पास इस बात के पर्याप्त साक्ष्य हैं कि दमिश्क में रासायनिक हमले किए गए और हमलों में 1429 लोगों की मौत हुई.
"हम जानते हैं कि रॉकेट उन्हीं क्षेत्रों से आए थे जिन पर असद सरकार का नियंत्रण है और इन रॉकेटों ने उन्हीं इलाकों को निशाना बनाया जो विरोधियों के कब्जे में हैं."
जॉन केरी, अमरीकी विदेश मंत्री
उन्होंने कहा कि असद सरकार ने इन हमलों की तैयारी तीन दिन पहले ही कर ली थी.
उन्होंने कहा, "हम जानते हैं कि रॉकेट उन्हीं क्षेत्रों से आए थे जिन पर असद सरकार का नियंत्रण है और इन रॉकेटों ने उन ही इलाकों को निशाना बनाया जो विद्रोहियों के कब्जे में हैं."
उनका कहना था, "हम जानते हैं कि इन सभी तथ्यों पर अमरीकी ख़ुफ़िया समुदाय को पूरा भरोसा है."
अमरीका लगातार सीरिया पर इस बात के लिए दबाव बनाता रहा है कि वो रासायनिक हथियारों से हमले बंद करे.

फ्रांस अमरीका के साथ

इससे पहले फ्रांस के राष्ट्रपति ने कहा था कि क्लिक करें ब्रितानी सांसदों के सीरिया पर सैन्य हमले के खिलाफ़ वोट देने के बावजूद फ्रांस का मज़बूत कदम उठाने का निश्चय नहीं बदला है.
फ्रांस के राष्ट्रपति फ़्रांसुआ ओलांद ने कहा कि सभी विकल्पों पर विचार हो रहा है और कुछ ही दिनों में हमले की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
फ्रांस के राष्ट्रपति फ़्रांसुआ ओलांद
फ्रांस के राष्ट्रपति ने कहा है कि फ्रांस का मज़बूत कदम उठाने का निश्चय नहीं बदला है.
उधर ब्रितानी संसद की वोट के नतीजे पर प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने कहा है कि उन्हें इस मुद्दे पर अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा से माफ़ी नहीं मांगनी पड़ेगी. कैमरन ने कहा कि संसद जाना, वहाँ मज़बूती से अपनी बात रखना लेकिन संसद की बात सुनना राजनीति का हिस्सा है और उन्हें उम्मीद है कि अमरीकी जनता और राष्ट्रपति ओबामा इस बात को समझेंगे.
गुरुवार को ब्रितानी सासंदों ने सीरिया के खिलाफ़ सैन्य कार्रवाई के सिद्धांत को 272 के मुकाबले 285 मतों से खारिज कर दिया था.
इससे पहले अमरीकी रक्षा मंत्री चक हेगल ने कहा था कि क्लिक करें अमरीका संभावित सैन्य कार्रवाई के लिए सहयोग जुटाने की कोशिश जारी रखेगा.
दूसरी तरफ जर्मनी ने कहा है कि वो सैन्य हस्तक्षेप में हिस्सा नहीं लेगा.
अमरीका ने सीरिया पर रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल का आरोप लगाया है लेकिन सीरिया इससे इनकार करता रहा है.

इतने बर्बर ग़ुनाह की सज़ा मात्र तीन साल: पीड़िता की मां

इतने बर्बर ग़ुनाह की सज़ा मात्र तीन साल: पीड़िता की मां

 शनिवार, 31 अगस्त, 2013 को 18:21 IST तक के समाचार

दिल्ली गैंगरेप के मामले में घटना के सामय नाबालिग अभियुक्त को तीन साल के लिए सुधार गृह भेजे जाने के फ़ैसले पर पीड़िता के परिवार ने नाराज़गी ज़ाहिर की है. परिवार का कहना है कि वो जुवेनाइल कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील करेंगे.
मृतक युवती की मां का कहना है, "जब तीन साल की सज़ा देनी थी तो पहले ही दे देते. मुझे ये फैसला मंज़ूर नहीं है."
युवती के भाई ने भी सज़ा पर असंतोष जताते हुए कहा, "तीन साल की सज़ा दी है और वो भी जब से गिरफ्तार हुआ है तब से. उसके खिलाफ जो भी चार्जेज लगे थे, सभी में उसे दोषी पाया गया है तब भी इतनी कम सज़ा. कोर्ट में उसके चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं थी, उसे देख कर कहीं से नहीं लगता था कि उसे बलात्कार और हत्या का कोई पश्चाताप भी है."
फ़ैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा, "अभियुक्त भावनात्मक और मानसिक रूप से परिपक्व है. उसे पता था कि वह क्या कर रहा है. मैं अब सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटीशन फाइल करूँगा और इस फ़ैसले को रद्द करने की अपील करूँगा."

ट्विटर पर भी गुस्सा

सोशल मीडिया में भी जुवेनाइल कोर्ट के फैसले को लेकर लोगों ने नाराज़गी प्रकट की है. ट्विटर पर इस मामले को लेकर कड़ी प्रतिक्रयाएँ आई हैं. ज़्यादातर लोगों का कहना है कि तीन साल की सज़ा बहुत कम है.
दिल्ली गैंगरेप
दिल्ली गैंगरेप के आरोपियों को फाँसी देने की माँग की जाती रही है
ट्विटर पर आई कुछ प्रतिक्रियाएँ...
अनुपम खेर @AnupamPkher
ऐसे अपराध के लिए सुधार गृह में केवल तीन साल की सज़ा.. वाह रे मेरे देश का इंसाफ़ और क़ानून. मैं अपने देश की न्याय प्रणाली पर शर्मिंदा हूँ.
रतना राजैया
जरा सोचिए, तीन साल बाद वो सड़कों पर आज़ाद घूम रहा होगा. खुदा जाने उस वक्त उसके दिमाग़ में क्या चल रहा होगा.
आरओएफएल इंडियन
नाबालिग आरोपी अब अपने करियर विकल्पों के बारे में सोच रहा होगा. उसके पास तो पहले से ही मास्टर डिग्री है.
खुशबू सुंदर
नाबालिग को सिर्फ तीन साल की सजा हुई? यह भारतीय न्याय व्यवस्था के इतिहास में दुखद दिन है. इस घिनौने अपराध के लिए उसे कठोर सजा होनी चाहिए थी.
गौरव
समझ नहीं पा रहा हूँ कि नाबालिग कौन है, बलात्कारी या फिर हमारे क़ानून.
रिक्स अरोड़ा
जब अपराध नाबालिगों जैसा नहीं है तो फिर सज़ा भी नाबालिगों जैसी नहीं होनी चाहिए. क़ानून व्यवस्था पर शर्म आ रही है.
वेणु
15 साल की उम्र में मर्जी से सेक्स संबंधी क़ानून स्वीकार्य है, लेकिन बलात्कार के लिए अपराधी नाबालिग है. यही भारत है.
पठान असीम
प्रिय भारतीय अदालतों, जो व्यक्ति किसी महिला का बलात्कार कर सकता है वह नाबालिग नहीं हो सकता भले ही वो 18 साल से कम का हो.
वत्सला शुक्ला
क्या भारत के राष्ट्रपति पीड़िता को न्याय देने के लिए कुछ कर सकते हैं. यह अपराधी नाबालिग नहीं है.

आईबीएल फाइनलः साइना ने सिंधु को हराया

आईबीएल फाइनलः साइना ने सिंधु को हराया

 शनिवार, 31 अगस्त, 2013 को 23:26 IST तक के समाचार

साइना नेहवाल, बैडमिंटन
इंडियन बैडमिंटन लीग के फाइनल में साइना नेहवाल ने पीवीसिंधु को हरा खिताब जीत लिया है. साइना ने सीधे सेटों मेंसिंधु को हरा दिया.
साइना नेसिंधु को 21-15, 21-7 से हराया.
साइना की ये लगातार सातवीं जीत है. शनिवार को हैदराबाद हॉटशाट्स और अवध वॉरियर्स के बीच खेले गए मैच में सबकी निगाहें इस पर थीं कि साइना और सिंधु में आखिरकार जीतेगा कौन.
मैच के दौरान साइना बेहद आत्मविश्वास से भरी हुई थीं, वहीं सिंधु ने मैच के दौरान कई गलतियाँ कीं और खेल पर ध्यान नहीं लगा सकीं.
जीत के बाद साइना ने अपने प्रशंसकों को धन्यवाद दिया और कहा कि उनकी वजह से ही उन्हें ये जीत हासिल हुई है.
इससे पहले हैदराबाद की टीम बुधवार को ही 'पुणे पिस्टंस' को हराकर फाइनल में पहुंच चुकी थीं जबकि अवध वॉरियर्स ने गुरुवार को मुंबई मास्टर्स को 3-2 से हराकर दमदार खेल दिखाया था.

अवध वॉरियर्स की जीत में उसकी आइकन खिलाड़ी पीवी सिंधु ने अपनी टीम को तब बराबरी दिलाई जब वे मुंबई मास्टर्स से पहला मैच हारकर पिछड़ रही थीं.
पीवी सिंधु ने मुंबई की टाइनी बोन को हराया. इससे पहले भी जब सिंधु का सामना टाइनी बोन से हुआ था तब भी बाज़ी सिंधु के हाथ ही लगी थी.

फाइनल में हैदराबाद की साइना नेहवाल उसकी सबसे बड़ी ताक़त थीं.
उन्होंने अपने पहले मैच में पीवी सिंधु को तब हराया था जब सभी का अनुमान था कि वह साइना नेहवाल पर भारी पड़ सकती हैं.
इससे पहले साइना नेहवाल विश्व बैडमिंटन चैम्पियनशिप के क्वॉर्टर फाइनल में हार गई थी जबकि पीवी सिंधु कांस्य पदक जीतने में कामयाब रही थी.

संघर्ष

पीवी सिंधु, इंडियन बैडमिंटन लीग
पीवी सिंधु ने इंडियन बैडमिंटन लीग के आखिरी दौर में आखिरकार अपनी लय हासिल कर ली और उसके बाद पीछे मुड़कर नही देखा.
क्लिक करें फाइनल में जाने की जंग
पीवी सिंधु ने इससे पहले दिल्ली में हुए मुक़ाबले में जब साइना नेहवाल का सामना किया था तो वह दोनों खिलाड़ियों के बीच हुआ पहला मैच था.