Modi Govt One Year: ‘मोदी का जादूः ख़त्म या बरक़रार?' ...BJP
21 MAY 2015मैं एक साल पूरे होने पर मोदी सरकार की उपलब्धियों पर एक ब्लॉग लिखने बैठा हूँ.
अब अगर उनकी अधिक तारीफ़ करूँ तो कुछ लोग कह सकते हैं कि मैं खुद को कट्टरवादी मोदी विरोधी मुस्लिम की श्रेणी में न रखने के प्रयास में उनकी अधिक प्रशंसा कर रहा हूँ.
और अगर मैं उनकी आलोचना अधिक और तारीफ़ कम करूँ तो कुछ लोग ऐसा सोच सकते हैं कि मैं स्व-घोषित मोदी विरोधी हूँ, तो इसमें हैरानी क्यों?
निष्पक्ष होकर देखें तो एक साल में 'मोदीमेनिया' काफ़ी कम हो गया है. उनका कद थोड़ा घटा है और शायद 56 इंच सीना भी अब कुछ कम फूलता है.
'वन मैन शो'
उनके कुछ आलोचक ये भी कहते हैं कि वो 'वन मैन शो' हैं. देश के सिपहसालार भी वही हैं, पार्टी के मुखिया भी वही. मंत्रियों के बजाए गिने-चुने अफसरों पर निर्भर रहते हैं. सुनते सब की हैं लेकिन फैसला उनका होता है.
आप ये भी कह सकते हैं कि आदर्श ग्राम योजना, 8 करोड़ ग्रामीण परिवारों को औपचारिक बैंकिंग प्रणाली में शामिल करने की प्रक्रिया, डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया जैसी योजनाएं यूपीए सरकार की योजनाओं की नक़ल लगती हैं. या कह लें कि ये नई बोतल में पुरानी शराब की तरह है.
किसान विरोधी
कुछ लोग ये भी कह सकते हैं कि मोदी किसानों से ज़्यादा कॉरपोरेट इंडिया और उद्योगपतियों के हित के बारे में सोचते हैं.
इसकी मिसाल भूमि अधिग्रहण बिल है जिसे किसान विरोधी माना जा रहा है.
और हाँ, पिछले एक साल में वो प्रवासी भारतीयों के सबसे बड़े मसीहा बन कर भी उभरे हैं. उनके खिलाफ आलोचना ये भी है कि वो देश के प्रांतों से अधिक विदेशी यात्राएं करते हैं.
यूपीए सरकार
अपने आख़िरी सालों में यूपीए सरकार नीतियों के मामले में पक्षाघात का शिकार रही. महंगाई चरम पर थी. विदेशी निवेश घटता जा रहा था.
आर्थिक विकास की रफ़्तार धीमी पड़ चुकी थी. घोटालों का बाज़ार गर्म था, कोई बड़े फैसले नहीं लिए जा रहे थे.
सामाजिक स्तर पर पिछली सरकार के दौर में बेरोज़गार लोगों की संख्या बढ़ती जा रही थी. शेयर बाजार दम तोड़ रहे थे.
आम लोग परेशान थे, युवा पीढ़ी मायूसी का शिकार हो चुकी थी.
विकास का सपना
लेकिन क्या एक साल बाद वो सपना टूट गया?
मेरे विचार में उन्होंने पिछले एक साल में जितने भी क़दम उठाए हैं, उनसे युवाओं का मनोबल बढ़ा है, उनकी उमंगें जागी हैं. मायूसी के काले बादल छटे हैं.
डिजिटल इंडिया हो या स्किल्ड इंडिया या फिर मेक इन इंडिया. इनमें एक ऐसे भारत की नींव रखे जाने की क्षमता है जिससे पूरा समाज बदल सकता है.
मोदी की क्षमता
जब राजीव गांधी ने कंप्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक रेल टिकट रिज़र्वेशन की योजना शुरू की थी तो किसे मालूम था कि ये आज़ादी के समय से पुराने तर्ज़ पर चले आ रहे समाज को भविष्य की तरफ धकेलने की क्षमता रखती है?नेहरू ने देश को हैवी इंजीनियरिंग के कारख़ाने दिए, आईआईटी जैसी संस्थाएं दीं.
राजीव गांधी ने भारत को एक इलेक्ट्रॉनिक देश बनाया. नरसिम्हा राव ने अर्थव्यवस्था के उदारीकरण से भारत की ग्लोबल अलहदगी ख़त्म की.
मोदी की योजनाएं भारत को विकसित देशों की श्रेणी में ला खड़ा करने की क्षमता रखती हैं. मोदी को एक साल में नहीं पांच साल के कामकाज के आधार पर परखना चाहिए.