Thursday 26 December 2013

अहमदाबाद कोर्ट का नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट,जाकिया जाफरी ने कहा-फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत हाई कोर्ट में जाऊंगी

अहमदाबाद कोर्ट का नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट,जाकिया जाफरी ने कहा-फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत  हाई कोर्ट में जाऊंगी

 

नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट सही, नहीं चलेगा दंगों का केस, अहमदाबाद कोर्ट का फैसला

नई दिल्ली, 26 दिसम्बर 2013 | अपडेटेड: 18:04 IST
टैग्स: गुजरात दंगा| नरेंद्र मोदी| जाकिया जाफरी| गुलबर्ग सोसाइटी हत्याकांड| 2002 दंगा
नरेंद्र मोदी
नरेंद्र मोदी
बीजेपी के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को बड़ी राहत देते हुए अहमदाबाद की मजिस्ट्रेट अदालत ने उस एसआईटी रिपोर्ट को बरकरार रखा है जिसमें 2002 के गुजरात दंगों के मामले में मोदी को क्लीन चिट मिली थी. कोर्ट ने जाकिया जाफरी की याचिका को खारिज कर दिया. इसके साथ साफ कर दिया कि मोदी पर दंगों का केस नहीं चलेगा. मोदी ने इस फैसले के बाद ट्वीट किया, सत्यमेव जयते! Truth alone triumphs. हालांकि मजिस्ट्रेट बीजे गनात्रा ने यह भी कहा है कि जाकिया जाफरी को इस फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में जाने का पूरा अधिकार है.
आपको बता दें कि एसआईटी ने 2002 के सांप्रदायिक दंगा मामले में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और 58 अन्य को क्लीनचिट दी है. जिसे चुनौती देते हुए जाकिया जाफरी ने याचिका दी थी.
अब तक क्या-क्या हुआ?
जाकिया जाफरी ने आरोप लगाया था कि मोदी ने सीनियर मंत्रियों, अधिकारियों और पुलिस के साथ मिलकर राज्य में दंगे होने दिए. जाकिया द्वारा लगाए गए इन आरोपों की जांच सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित SIT टीम ने मार्च 2008 में शुरू की. चार साल के बाद एसआईटी ने फरवरी 2012 में कहा कि मोदी व अन्य आरोपियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं जिसके दम पर केस चलाया जा सके. SIT ने जांच खत्म करने की बात कहकर क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी.
आपको बता दें कि कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी अहमदाबाद के गुलबर्ग सोसाइटी के उन 58 लोगों में थे जिनकी हत्या उग्र भीड़ ने 28 फरवरी 2002 को कर दी. SIT ने 2010 में मोदी से पूछताछ की थी जो करीबन 9 घंटे तक चली.
2011 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि इसकी सुनवाई अहमदाबाद की अदालत ही करेगी. अप्रैल 2011 में गुजरात पुलिस के निलंबित पुलिस अधिकारी संजीव भट्ट ने दावा किया कि एक मीटिंग में मोदी ने उन्हें और अन्य पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि हिंदू दंगाइयों को साबरमती एक्सप्रेस में मारे गए 59 कारसेवकों की मौत का बदला लेने दिया जाए. हालांकि SIT ने कहा कि संजीव भट्ट की गवाही विश्वसनीय नहीं है क्योंकि राज्य सरकार द्वारा निलंबित किए जाने के कारण उनके मन में दुर्भावना हैं. SIT ने यह भी आरोप लगाया था कि याचिका राजनीति से प्रेरित है जिसे सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के कहने पर दायर किया गया.

नरेंद्र मोदी पर आए मजिस्ट्रेट कोर्ट के फैसले पर जाकिया जाफरी ने कहा- हिम्मत नहीं हारने वाली

नई दिल्ली, 26 दिसम्बर 2013 | अपडेटेड: 18:15 IST
टैग्स: जाकिया जाफरी| नरेंद्र मोदी| नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट| 2002 गुजरात दंगे| मजिस्ट्रेट कोर्ट| एसआईटी रिप
जाकिया जाफरी
जाकिया जाफरी
अहमदाबाद की अदालत द्वारा नरेंद्र मोदी को क्‍लीन चिट दिए जाने के फैसले पर याचिकाकर्ता जाकिया जाफरी ने कहा है कि वो हार नहीं मानने वाली हैं और एक न एक दिन मोदी की हकीकत सबके सामने आ जाएगी. मोदी को बड़ी राहत देते हुए अहमदाबाद की मजिस्ट्रेट कोर्ट ने उस एसआईटी रिपोर्ट को बरकरार रखा है, जिसमें 2002 के गुजरात दंगों के मामले में मोदी को क्लीन चिट मिली थी. क्या बोलीं जाकिया जाफरी
जाकिया जाफरी ने मीडिया से कहा, 'आज तो जज साहब ने फैसला सुनाया, मैंने सुन लिया. मैं हिम्मत हारने वाली नहीं हूं. केस को आगे लाऊंगी. हाई कोर्ट में जाऊंगी. आज जो मेरे को रिजल्ट मिला है, उससे आप समझ ही सकते हैं कि कितना न्याय हुआ. अभी नहीं तो फिर कभी. सही चीज सामने आएगी ही. जो सबूत हमने कोर्ट के सामने रखे, वो भले ही अभी कोर्ट को महत्वपूर्ण न लगे हों. मगर उम्मीद है कि बड़ी अदालत में इस पर ध्यान दिया जाएगा.'
क्या बोले वकील
हमें नहीं पता कि मिस्टर श्रीकुमार, राहुल शर्मा और संजीव भट्ट ने जो सबूत जुटाए थे, उन्हें अदालत ने माना भी है या नहीं. अभी हमने विस्तार से अदालत का फैसला नहीं पढ़ा है. मगर हमें लगता है कि जिस तरह के सबूत अदालत में दाखिल किए गए थे, वह नरेंद्र मोदी को गुनहगार ठहराने के लिए पर्याप्त थे. इसी यकीन के साथ हम ऊंची अदालत में जाएंगे. नरेंद्र मोदी 20-25 दिन सुकून से जी सकते हैं. तब तक हम फिर से मामला फाइल कर देंगे और आखिरी हद तक इस लड़ाई को जारी रखेंगे.


मोदी को घेरने की तैयारी में केंद्र सरकार, जासूसी कांड की जांच के लिए बनेगा आयोग

मोदी को घेरने की तैयारी में केंद्र सरकार, जासूसी कांड की जांच के लिए बनेगा आयोग

नई दिल्ली, 26 दिसम्बर 2013 | अपडेटेड: 14:00 IST
टैग्स: नरेंद्र मोदी| बीजेपी| जासूसी कांड| गुजरात| अमित शाह
नरेंद्र मोदी
नरेंद्र मोदी
केंद्र सरकार ने बीजेपी के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की मुश्किल बढ़ा दी है. कैबिनेट ने फैसला किया है कि गुजरात जासूसी कांड की जांच होगी. इसके लिए जांच आयोग के गठन को मंजूरी दे दी गई है. आपको बता दें कि मोदी के करीबी अमित शाह के इशारे पर गुजरात में कथित तौर पर एक महिला की जासूसी कराई गई. खबरों के मुताबिक, गुजरात पुलिस ने एक महिला आर्किटेक्ट पर अवैध तरीके से नजर रखी और इस क्रम में फोन टैपिंग नियमों का उल्लंघन किया. खबरों में कहा गया कि उक्त महिला जब गुजरात से बाहर जाती थी तो केंद्र सरकार की अनुमति लिए बिना ही उसके फोन टैप किए जाते थे.
जासूसी कांड की जांच के लिए बनाए जाने वाले जांच आयोग की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज करेंगे. फिलहाल इस जांच के लिए कोई समय सीमा नहीं तय की गई है पर इतना तय है कि इस जांच पर अंतिम रिपोर्ट लोकसभा चुनावों से पहले आ जाएंगे.
बीजेपी ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है. बीजेपी प्रवक्ता निर्मला सीतारमण ने इसे अपने राजनीतिक विरोधियों को दबाने की कांग्रेसी साजिश करार देते हुए कहा, ‘इमरजेंसी के समय जो मानसिकता थी वही आज भी चल रही है. विधानसभा चुनावों में करारी हार मिलने के बावजूद कांग्रेस सीखती नहीं है. यह राजनीतिक साजिश है. मोदी के खिलाफ कांग्रेस कैसे आगे बढ़ें यह उन्हें समझ में नहीं आ रहा है. इसलिए मोदी को निशाना बना रही है कांग्रेस.’

बीजेपी नेता और राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने इसे संघीय ढांचे पर हमला बताया है और कहा है कि बीजेपी इसे कोर्ट में चुनौती देगी.

The Central Government has announced the setting up a Commission of Inquiry to probe the allegations of alleged snooping by the Gujarat Government. This action is politically motivated. The Congress Party has not learnt from the drubbing it got in the elections recently. It has continued with its strategy of fighting Narendra Modi not politically but through investigative agencies and now through a Commission of Inquiry.

The Gujarat Government has already set up a Commission of Inquiry to inquire into this issue. The setting up of a parallel Commission by the Central Government ostensibly on the pretext of this issue covering more than one State is without any basis. This action legally is a suspect and liable for challenge. I am sure it will be legally challenged in courts. The setting up of this Commission violates the federal structure of the Constitution. It is an affront to the States.

I hope other Chief Ministers also join in the protest against this action.

Wednesday 25 December 2013

पाकिस्तान के साथ जारी रहेगा परमाणु सहयोग: चीन

पाकिस्तान के साथ जारी रहेगा परमाणु सहयोग: चीन

 बुधवार, 25 दिसंबर, 2013 को 17:04 IST तक के समाचार

पाकिस्तान के साथ परमाणु सहयोग के मसले पर चीन ने कहा है कि दोनों देशों के बीच परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में नज़दीकी सहयोग जारी रहेगा. साथ ही चीन ने यह भी जोड़ा है कि यह सहयोग "शांतिपूर्ण उद्देश्य" के लिए है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा है कि परमाणु ऊर्जा के मसले पर चीन और पाकिस्तान के बीच जारी सहयोग शांतिपूर्ण उद्देश्य और स्थानीय लोगों की भलाई के लिए है.
क्लिक करें पाकिस्तान के कराची शहर में बन रहे परमाणु बिजली संयंत्र को चीन की मदद के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच असैनिक परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में कई वर्षों से सहयोग का रिश्ता है.
चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने हुआ चुनयिंग के हवाले से बताया है, "यह सहयोग पूरी तरह से शांतिपूर्ण उद्देश्य के लिए है, अंतरराष्ट्रीय दायित्वों के अनुरूप है और इसमें अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के सुरक्षा उपायों का पूरा ख्याल रखा गया है."

शांतिपूर्ण उद्देश्य

पाकिस्तान परमाणु हथियार सम्पन्न देश है.
पीटीआई के मुताबिक पाकिस्तान के साथ क्लिक करें चीन का बढ़ता परमाणु व्यापार और सहयोग भारत के साथ ही पश्चिमी देशों की चिंता की प्रमुख वजह है, क्योंकि ऐसी आशंकाएं जताई जा रही हैं कि नए संयंत्र के चालू होने से पाकिस्तान के पुराने रिएक्टर हथियारों के लिए यूरेनियम तैयार कर सकते हैं.
लेकिन हुआ चुनयिंग का कहना है कि इस सहयोग से क्लिक करें पाकिस्तान में बिजली की किल्लत दूर करने में मदद मिलेगी और यह स्थानीय लोगों के हित में है. उन्होंने कहा कि चीन अपनी क्षमता के मुताबिक सहायता मुहैया कराता रहेगा.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री क्लिक करें नवाज शरीफ ने पिछले महीने करीब साढ़े नौ अरब डॉलर के इस संयंत्र के बारे में जानकारी दी थी लेकिन अधिकारियों ने इस बारे में थोड़ी ही जानकारी दी है कि वे इस योजना के लिए धन का इस्तेमाल कैसे करेंगे.

चीन से आर्थिक मदद

समाचार एजेंसी रॉयटर्स को मिले दस्तावेजों से पता चलता है कि चीन की राष्ट्रीय परमाणु सहयोग संस्था (सीएनएनसी) ने इस परियोजना में मदद के लिए कम से कम साढ़े छह अरब डॉलर बतौर कर्ज देने का वादा किया है.
इस परियोजना के तहत दो रिएक्टर होंगे, जिनमें से प्रत्येक की क्षमता 1,100 मेगावाट होगी.
रॉयटर्स के मुताबिक सरकार की ऊर्जा टीम में शामिल दो सदस्यों और इस सौदे के साथ करीब से जुड़े तीन सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है. हालांकि इस बारे में सीएनएनसी की टिप्पणी नहीं मिल सकी.
पाकिस्तानी परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष अंसार परवेज़ ने रॉयटर्स को बताया, "एक परमाणु बिजली संयंत्र का संचालन करने की पाकिस्तान की क्षमता पर चीन को पूरा भरोसा है."
उन्होंने कहा, "पाकिस्तान में परमाणु बिजली संयंत्रों का प्रदर्शन और क्षमता गैर-परमाणु संयंत्रों के मुकाबले काफी बेहतर रहा है."

सहयोग पर सवाल

परवेज़ ने हालांकि आर्थिक मदद का अधिक ब्यौरा देने से मना कर दिया लेकिन इतना कहा कि यह संयंत्र 2019 में तैयार होगा और इसके तहत बनने वाले प्रत्येक रिएक्टर की क्षमता पाकिस्तान की कुल स्थापित परमाणु बिजली क्षमता से अधिक होगी.
पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान ने 2004 में यह स्वीकार किया कि उन्होंने उत्तर कोरिया, ईरान और इराक को परमाणु तकनीक दी.
रॉयटर्स ने बताया है कि समझौते के मुताबिक चीन ने इस ऋण पर बीमा प्रीमियम के तौर पर ढाई लाख डॉलर माफ कर दिए हैं.
पाकिस्तान और चीन दोनों देशों के पास परमाणु हथियार हैं और उनके बीच बढ़ते सहयोग से भारत की चिंताएं बढ़नी स्वभाविक है.
इससे पहले 2008 में अमरीका ने परमाणु आपूर्ति के लिएक्लिक करें भारत के साथ समझौता किया था, जिस पर पाकिस्तान और चीन ने चिंता जताई थी.
पाकिस्तान भी अमरीका के साथ ऐसा ही समझौता करना चाहता था लेकिन अमरीका इसके लिए तैयार नहीं हुआ. इसकी बड़ी वजह यह रही क्योंकि पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान ने 2004 में यह स्वीकार किया था कि उन्होंने उत्तर कोरिया, ईरान और इराक को परमाणु तकनीक दी.

चीन: अपनों के बीच बेगाने हुए माओत्से तुंग

चीन: अपनों के बीच बेगाने हुए माओत्से तुंग

 गुरुवार, 26 दिसंबर, 2013 को 01:31 IST तक के समाचार

अमरीकी नागरिक सिडनी रिडेनबर्ग ने चीन में उस समय 35 साल गुजारे जब वहां बेहद उथल-पुथल मची हुई थी और माओत्से तुंग सहित कई दूसरे प्रमुख चीनी नेताओं के साथ उनकी गहरी दोस्ती थी. यहां हम चीन के गृह युद्ध, साम्यवाद के शुरुआती दिनों और माओ के दर्शन के बारे में उनके नज़रिए को रख रहे हैं.
चीन की किसी भी दूसरी चीज़ की तरह ही माओ की भूमिका भी विरोधाभाषी अध्ययन का विषय है. वो कमोबेश एक ऐसा विराट व्यक्तित्व थे जो बीजिंग की पहचान पर हावी रहे और यह प्रभाव फिलहाल तो कम होता नहीं दिखाई दे रहा है.
चीनी जनवादी प्रजातंत्र की स्थापना करने वाले क्लिक करें माओ की पहचान जार्ज वाशिंगटन की तरह है. वो अपने समय में एकता के महान सूत्रधार थे.
लेकिन आज उनकी पार्टी के नए सदस्यों सहित चीन के युवा मुश्किल से ही उनके लेखन, उनके सिद्धान्तों, उनकी महान सफलताओं और भयानक भूलों के बारे में कुछ जानते हैं.

उहापोह का दौर

शी जिगपिंग और उनके प्रमुख साथियों ने चेतावनी दी थी कि सोवियत की तर्ज पर माओवाद को उदार बनाने से काफी भ्रम फैल सकता है और इससे मौजूदा शासन कमजोर होगा.
इसके साथ ही वो 1950 के दशक के 'ग्रेट लीफ फॉरवर्ड' या 1966 से 1976 तक चली क्लिक करें सांस्कृतिक क्रांति जैसे भयानक माओवादी रोमांच से भी नहीं गुजरना चाहेंगे. सत्ता के अहंकार में किए गए इन सामाजिक प्रयोगों में करोड़ों निर्दोष लोगों की मौत हो गई थी.
स्टालिन के विपरीत माओ ने किसी को जेल में नहीं डाला और निश्चित रूप से वो भयानक अत्याचार के पक्ष में नहीं थे.
लेकिन वो अच्छी तरह से जानते थे कि वो एक बड़े सामाजिक प्रयोग में शामिल हैं, जिसने लाखों लोगों की जान जोखिम में डाल दी है और नतीजों को लेकर वो खुद भी बहुत अधिक आशावान नहीं थे.
उन्होंने वामपंथी अमरीकी लेखक अन्ना लुईस स्ट्रांग से 1958 में इस बात को स्वीकार किया था. स्ट्रांग उस समय माओ की सफलताओं पर केंद्रित एक किताब लिख रहीं थीं.

इंतजार कीजिए!

जब उन्होंने माओ से बात की तो उन्होंने कहा, "इस बारे में लिखने से पहले अभी पांच साल और इंतजार कीजिए." स्ट्रांग बताती हैं कि वो नतीजों को लेकर आश्वस्त नहीं थे.
तो क्या शी जिनपिंग माओवाद की समीक्षा कर रहे हैं? या इसी कारण चॉन्गचिंग में पार्टी के पूर्व प्रमुख क्लिक करें बो शिलाई के महत्व को कम किया गया.
दोनों ही सवालों का उत्तर है ''नहीं.''
बो गरीबों का समर्थन हासिल करने के लिए एक लोकप्रिय नेता की तरह समतावादी नारों का इस्तेमाल कर रहे थे.
जहां तक शी जिनपिंग की बात है, तो उनकी सुधारवादी नीतियां सीधे माओवादी अर्थशास्त्र के विपरीत हैं, लेकिन उन्होंने चीन की समस्याओं का विश्लेषण और उनके समाधान के लिए कुशलता के साथ माओवादी द्वंद्वात्मकता के तर्क का इस्तेमाल किया है.
वो माओ के नेतृत्व की सकारात्मक उपलब्धियों को स्वीकार करते हैं.

संघर्ष के दिन

इस तरह हम एक बेहद रोचक मोड़ पर आ जाते हैं. मोटेतौर पर पश्चिमी विद्वानों ने माओ के विश्लेषणों और दर्शन की अनदेखी की है. हालांकि अब खुद चीन में ही उनकी अनदेखी की जा रही है.
जब मैं सितंबर 1945 में चीन आया, उस दौर को याद कीजिए.
दो विरोधी दल कुओमिटांग (केएमटी) राष्ट्रवादी और क्लिक करें चीन के कम्युनिस्ट अपने सैन्य बलों को तैयार कर रहे थे. दोनों ही गरीबों के हितों के नाम पर एक खुनी गृह युद्ध के लिए खुद को तैयार कर रहे थे.
राष्ट्रवादी पक्ष के पास हट्टे-कट्टे और अच्छी तरह से प्रशिक्षित सैन्य टुकड़ी थी, जिसके पास हवाई सहायता और टैंक डिवीजन, भारी तोपखाने और मोटर आधारित परिवाहन प्रणाली थी. उनकी संख्या कम्युनिस्टों के मुकाबले कई गुना थी.
संचार के सभी प्रमुख साधनों पर उनका नियंत्रण था और मंचूरिया के बाहर सभी प्रमुख शहरों पर उनका ही प्रभाव था.
उन्हें हथियार और धन के रूप में अमरीका की मदद हासिल थी. हर लिहाज से उनकी श्रेष्ठता जगजाहिर थी.

दर्शन के शिक्षक

कम्युनिस्ट पक्ष की बात करें तो साधनविहीन ही दिखते थे. नवंबर 1946 में यनन से 40 किलोमीटर दूर कम्युनिस्ट की 359वीं ब्रिगेड से मिलने गया, जिसका कमांडर वांग जेन मेरा दोस्त था.
359वीं ब्रिगेड का लंबा इतिहास रहा है और उसने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान एक अमरीकी एयरबेस तैयार करने में मदद भी की थी.
यनन में उन्हें मार्च करते हुए देखकर मैं चकित रह गया. वो पुराने कपड़ों में एक भीड़ की तरह दिखाई दे रहे थे. उनमें से ज्यादातर तरुण थे.
प्रत्येक दस्ते में कुछ लोगों के पास ही जूते थे और ज्यादातर के पास खुद तैयार की गई घास की चप्पलें थीं. दस लोगों में पांच या छह के पास जापानी राइफल थी. बाकी बरछी-भाला लिए हुए थे.
यह दृश्य देखकर मेरा दिल दहल उठा: ये कैसे जीत सकेंगे?
इसके बावजूद वो जीते. आखिर क्यों? एक श्रेष्ठ, अधिक वैज्ञानिक सोच के कारण, जिसने कुशल और अधिक लोकप्रिय नीतियों (जैसे भूमि सुधार) को बढ़ावा दिया.
क्लिक करें माओ खुद को हमेशा एक प्राथमिक स्कूल का शिक्षक बताते थे. वास्तव में वो मानवता के इतिहास में दर्शन के एक महान शिक्षक थे.

मिस्र ने मुस्लिम ब्रदरहूड को आतंकी संगठन घोषित किया

मिस्र ने मुस्लिम ब्रदरहूड को आतंकी संगठन घोषित किया
काहिरा, एजेंसी
First Published:25-12-13 10:28 PM

मिस्र की सैन्य समर्थित सरकार ने मुस्लिम ब्रदरहूड को आतंकवादी संगठन घोषित किया है।
मिस्र के उच्च शिक्षा मंत्री होसाम ईशा ने कहा कि कैबिनेट ने मुस्लिम ब्रदरहूड को आतंकवादी संगठन घोषित किया है। सामाजिक सदभावना मंत्री अहमद अल बोरेई ने कहा कि सरकार ब्रदरहुड की सभी गतिविधियों को प्रतिबंधित करेगी।

रेडक्लिफ जिसने खींची थी भारत-पाकिस्तान के बीच बंटवारे की रेखा

रेडक्लिफ जिसने खींची थी भारत-पाकिस्तान के बीच बंटवारे की रेखा

 गुरुवार, 26 दिसंबर, 2013 को 07:29 IST तक के समाचार
 
 
बंटवारे की फाइल फोटो
साल 1947 का वो समय जब आनन फानन में ब्रिटेन से बुलाए गए सिरील रेडक्लिफ से कहा गया था कि भारत के दो टुकड़े करने है.... रेडक्लिफ न कभी भारत आए थे, न यहाँ की संस्कृति की समझ थी, बस भारत को बांटने का ज़िम्मा उन्हें सौंप दिया गया था. क्या गुज़रा होगा रेडक्लिफ़ के दिलो-दिमाग़ में.. इसी की कल्पना पर आधारित नाटक 'ड्राइंग द लाइन' लंदन में चर्चा में है.
नाटक के लेखक हॉवर्ड ब्रेंटन कुछ साल पहले भारत आए थे. वहाँ केरल में उनकी मुलाक़ात एक युवक से हुई जिसके पास पाकिस्तान में उनके पुश्तैनी घर की चाबियाँ आज भी हैं.
ये किस्सा सुनने के बाद हॉवर्ड के मन में भारत के बंटवारे को लेकर कई सवाल उठे और ख़ासकर उस शख़्स को लेकर जिसे विभाजन रेखा खींचने का ज़िम्मा सौंपा गया था.
कहते हैं कि रेडक्लिफ़ ने वो सब दस्तावेज़ और नक्शे जला दिए थे जो क्लिक करें बंटवारे के गवाह थे और इस बारे में ज़्यादा बात नहीं की. इतिहासकारों के मुताबिक भारत और पाकिस्तान में हुई सांप्रादियक हिंसा के कारण लाखों लोगों की मौत हो गई थी.
क्या रेडक्लिफ़ को इस पूरी घटनाक्रम को लेकर ग्लानि थी, क्या वे ख़ौफ़ज़दा या नाराज़ थे? इन्हीं काल्पनिक सवालों का जवाब ढूँढने की कोशिश इस नाटक में की गई है.
रेलक्लिफ़
ये नाटक भले ही इतिहास की एक त्रासदी को दर्शाता है जिसमें बंटवारे की रेखा अपने साथ ग़ुस्सा, बेबसी, कटुता का सैलाब लेकर आई. लेकिन नाटक में कई मुश्किल परिस्थितियों को भी कभी कभी तंज़ और व्यंग्य के पुट में दिखाया गया है.
मिसाल के तौर पर नाटक के एक दृश्य पर नज़र डालिए
पहला व्यक्ति (रेडक्लिफ़ से)- नक्शे पर आपने जो लकीर खींची है वो फिरोज़पुर की रेलवे लाइन है. आपने रेलवे लाइन के बीचों बीच सीमारेखा खींच दी है. एक रेल भारत में हो जाएगी और दूसरी पाकिस्तान में.
रेडक्लिफ़ (नक्शे पर खींची रेखा मिटाते हुए)- तो हम सीमारेखा को थोड़ा दक्षिण की ओर कर देते हैं.
पहला व्यक्ति- लेकिन यहाँ तो हिंदुओं के खेत हैं
रेडक्लिफ़- तो सीमारेखा को उत्तर की ओर कर देते हैं.

कैसे पाकिस्तान को मिला लाहौर

भारत के वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नय्यर विभाजन के समय सियालकोट में रहते थे. वे उन चंद लोगों में से थे जिन्होंने बाद में रेडक्लिफ़ से लंदन में मुलाक़ात की थी.
बंटवारे की फाइल फोटो
रेडक्लिफ़ से जुड़े अपने अनुभव बाँटते हुए कुलदीप नय्यर ने बताया, “मैं जानना चाहता था कि कैसे उन्होंने विभाजन की लाइन खींची. उन्होंने कोई बात मुझसे छिपाई नहीं.”
बकौल कुलदीव नय्यर रेडक्लिफ़ ने आपबीती सुनाते हुए कहा था, “मुझे 10-11 दिन मिले थे सीमा रेखा खींचने के लिए. उस वक़्त मैंने बस एक बार हवाई जहाज़ के ज़रिए दौरा किया. न ही ज़िलों के नक्शे थे मेरे पास. मैंने देखा लाहौर में हिंदुओं की संपत्ति ज़्यादा है. लेकिन मैंने ये भी पाया कि पाकिस्तान के हिस्से में कोई बड़ा शहर ही नहीं था. मैंने लाहौर को भारत से निकालकर पाकिस्तान को दे दिया. अब इसे सही कहो या कुछ और लेकिन ये मेरी मजबूरी थी. पाकिस्तान के लोग मुझसे नाराज़ हैं लेकिन उन्हें ख़ुश होना चाहिए कि मैने उन्हें लाहौर दे दिया.”
बंटवारे के कारण लाखों लोगों की जान गई. क्या रेडक्लिफ़ को इसे लेकर अफ़सोस था. कुलदीप नय्यर ने बताया कि इस बारे में रेडक्लिफ़ से कोई सीधी बात नहीं हुई लेकिन उन्हें बातचीत से ऐसा लगा कि रेडक्लिफ़ संवेदनशील इंसान थे और उन्हें काफ़ी ग्लानि महसूस हुई.

रेडक्लिफ़ कभी भारत नहीं लौटे

नाटक 'ड्राइंग द लाइन' में रेडक्लिफ़ का किरादर निभाने वाले ब्रितानी अभिनेता टॉम बियर्ड का भी मानना है कि वे शालीन और बिना पक्षपात करने वाले इंसान थे लेकिन अंतत वो शायद अपने काम को ठीक से अंजाम दे नहीं पाए.
नाटक की रिहर्सल के दौरान टॉम ने बताया, "मेरे ख़्याल से रेडक्लिफ़ पूरा काम सही तरीके से करना चाहते थे. उन्हें बहुत ही जटिल काम में झोंक दिया गया था, समय बहुत ही कम था उनके पास. रेडक्लिफ़ न्यायपूर्ण काम करना चाहते थे. पर वो कर नहीं पाए. वो इससे टूट जाते हैं, बिखर जाते हैं. दरअसल शुरू में उन्हें अंदाज़ा ही नहीं था कि ये कितना बड़ा काम है और इसका मानवीय-राजनीतिक असर क्या हो सकता है."
नाटक में काम करने वाले कलाकार मानते हैं कि 60 से भी ज़्यादा साल पहले हुए बंटवारे का खमियाज़ा आज की पीढ़ियाँ भी झेल रही हैं. भारतीय मूल के पॉल बेज़ली ने जिन्ना का किरदार निभाया है.
बंटवारे की फाइल फोटो
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "विभाजन की औपनेविशक विरासत का बोझ आज भी लोग उठा रहे हैं. कश्मीर को देखिए, वो आज युद्धक्षेत्र जैसा है. पाकिस्तान और भारत कई युद्ध लड़ चुके हैं. हज़ारों लोग दो ऐसे देशों की लड़ाई में मारे जा चुके हैं जो दो पीढ़ी पहले तक एक थे. जहाँ भी औपविेशवाद होता है, वो अपने निशां छोड़ ही जाता है. बस उस ताकत की जगह कोई नई शक्ति ले लेती है."
भारत और पाकिस्तान के लोगों के लिए ये नाटक इसलिए अहम है क्योंकि रेडिक्लिफ़ ही वो शख़्स थे जिनकी खींची एक रेखा ने रातों रात एक देश के दो टुकड़े कर दिए जबकि ब्रितानियों के लिए ये नाटक इतिहास की सबक की तरह है कि कैसे एक घटना लाखों लोगों की जान जाने की वजह बन गई.
बंटवारे के बाद लाखों की संख्या लोग अपना घर छोड़ सीमा के आर-पार जाने को मजूबर हुए लेकिन इस बीच सिरील रेडक्लिफ़ कभी भारत लौटकर नहीं आए.

ज़किया जाफ़री की याचिका पर:क्या मोदी को क्लीन चिट सही? फैसला आज

ज़किया जाफ़री की याचिका पर:क्या मोदी को क्लीन चिट सही? फैसला आज

 गुरुवार, 26 दिसंबर, 2013 को 06:52 IST तक के समाचार

नरेंद्र मोदी
गुजरात दंगों में मारे गए कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफ़री की विधवा ज़किया जाफ़री की याचिका पर अहमदाबाद मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत गुरुवार को फैसला सुना सकती है.
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित विशेष जाँच टीम (एसआईटी) ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देते हुए मामला बंद करने की रिपोर्ट सौंपी थी.

ज़किया जाफ़री ने इसे अदालत में चुनौती दी है. इससे पहले दो दिसंबर को कोर्ट ने अपना फैसला 26 दिसंबर तक के लिए टाल दिया था.
ज़किया जाफ़री की याचिका पर उनके वकीलों और एसआईटी के वकील की जिरह मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट बीजे गणात्रा के सामने पांच महीने तक चली.
जिरह पूरी होने के बाद ज़ाफरी के वकील ने 18 सितंबर को अदालत को लिखित हलफ़नामा दिया था जबकि एसआईटी ने अपना लिखित हलफनामा 30 सितंबर को दिया था.
पहले मजिस्ट्रेट 28 अक्टूबर को फैसला सुनाने वाले थे लेकिन बाद में इसके लिए दो दिसंबर की तारीख़ रखी गई.

क्या है मामला?

गुजरात में अल्पसंख्यकों के खिलाफ़ दंगा (फ़ाइल फोटो)
गुलबर्ग सोसाइटी में दंगे के दौरान मारे गए एहसान जाफ़री की पत्नी ज़किया जाफ़री ने आरोप लगाया था कि मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और 62 अन्य लोगों ने गुजरात में हुई हिंसा को बढ़ावा दिया.
एहसान जाफ़री 2002 के दंगे में गुलबर्ग सोसायटी में हुई हिंसा में मारे गए 69 लोगों में शामिल थे. गुजरात में साल 2002 के दंगों में 1,000 से ज़्यादा लोग मारे गए थे, जिनमें ज़्यादातर मुसलमान थे.

साबरमती एक्सप्रेस में लगी आग में हिंदुओं के मारे जाने के बाद गुजरात में दंगे भड़के थे. इन दंगों पर एसआईटी की अंतिम रिपोर्ट में नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी गई थी और कहा गया था कि उनके ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत नहीं हैं.
जाफ़री ने याचिका दायर कर एसआईटी की मामला बंद करने की रिपोर्ट पर आपत्ति जताई थी. इस रिपोर्ट में मोदी को किसी भी तरह के षड्यंत्र में शामिल होने से बरी कर दिया गया था.
जाफ़री की शिकायत पर जांच पूरी करने के बाद एसआईटी ने आठ फरवरी, 2012 को जांच रिपोर्ट दायर की थी जिसमें कहा था कि आठ साल बीत जाने के कारण सबूत जुटाने में परेशानी के बावजूद, जो भी साक्ष्य जुटाए जा सके, उनसे यह साबित नहीं हो सका कि साल 2002 के दंगों के षड्यंत्र के आरोप जिन लोगों पर लगाए गए थे, वे इनमें शामिल थे.
हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस रिपोर्ट पर एक स्वतंत्र राय लेने के लिए वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन को अदालत की सहायता के लिए नियुक्त किया था.

क्या कहा ज़किया ने?

ज़ाकिया ज़ाफरी
ज़ाकिया ने मोदी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने की माँग की थी.
ज़किया जाफ़री कई सालों से इस मामले में क़ानूनी लड़ाई लड़ रही हैं.
आठ फरवरी 2012 को एसआईटी ने मामला बंद करने की रिपोर्ट सौंपी थी जिसके ख़िलाफ़ ज़किया जाफ़री ने 15 अप्रैल, 2013 में याचिका दायर की थी.

इस याचिका में उन्होंने एसआईटी की रिपोर्ट ख़ारिज करने और मोदी और अन्य लोगों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाख़िल करने की मांग की थी.
एसआईटी के वकील आरएस जमुआर ने मामला बंद करने की रिपोर्ट का बचाव और ज़किया जाफ़री की याचिका को ख़ारिज किए जाने की मांग करते हुए कहा था कि जाँच के दौरान ज़किया जाफ़री के आरोपों के पक्ष में कोई प्रत्यक्ष या परिस्थितिजन्य सबूत नहीं मिला है.
गुलबर्ग सोसायटी में हुई हिंसा की जाँच एसआईटी अलग से कर ही रही थी लेकिन ज़किया जाफ़री ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर अनुरोध किया था कि इस हत्याकांड के लिए मोदी सहित 62 लोगों के ख़िलाफ़ नामजद रिपोर्ट दर्ज की जाए और उनकी भूमिका की जाँच की जाए

'रईस लोगों की बिजली-पानी कैसे काटेगी सरकार'

'रईस लोगों की बिजली-पानी कैसे काटेगी सरकार'

 बुधवार, 25 दिसंबर, 2013 को 17:16 IST तक के समाचार

अरविंद केजरीवाल
दिल्ली में जिन वादों के साथ आम आदमी पार्टी सत्ता में आ रही है, उनमें प्रत्येक परिवार को हर दिन 700 लीटर साफ़ पानी मुहैया कराना भी शामिल है.
दिल्ली जैसे महानगर में हर परिवार को शर्तिया तौर पर हर रोज़ 700 लीटर पानी दे पाना क्या वाकई संभव होगा.
संवाददाता मोहनलाल शर्मा ने यही सवाल जब एक गैर सरकारी संगठन हज़ार्ड्स सेंटर के निदेशक दुनु रॉय के सामने रखा तो उन्होंने कहा कि दिल्ली में पर्याप्त पानी है, हालाँकि सिर्फ पर्याप्त पानी होने से बात नहीं बनेगी.
दुनु राय कहते हैं, ''लेकिन जिन लोगों को हर दिन 700 लीटर से अधिक पानी मिल रहा है, उन्हें मिल रहे पानी में कटौती करनी होगा.''
वह कहते हैं, ''अब आम आदमी पार्टी की सरकार ये कटौती कर पाती है या नहीं, ये एक प्रशासनिक मुद्दा है जो काफ़ी मुश्किल काम है.''

कैसे होगी कटौती?

सवाल ये भी है कि कटौती होगी तो कैसे होगी?
दुनु रॉय इसका भी जबाव देते हैं, ''जहां बड़े लोग, रईस लोग रहते हैं, बड़े होटल हैं वहां कटौती करनी होगी. वहां इन लोगों को गोल्फ कोर्स के लिए, बगीचे के लिए, गाड़ियां धोने के लिए जो पानी मिलता है, उस पर पाबंदी लगानी होगी. पानी के मीटर तो लगाने ही होंगे, साथ ही लगातार नज़र भी रखनी होगी कि कहां कितना पानी खर्च हो रहा है.''
दिल्ली, बिजली
वह कहते हैं कि ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई भी करनी होगी लेकिन दिल्ली जल-बोर्ड की व्यवस्था में ऐसा हो पाएगा या नहीं, ये देखने वाली बात है.
दुनु रॉय ये भी कहते हैं कि कड़ी कार्रवाई के दम पर ऐसी व्यवस्था करना संभव है.

मुद्दा बिजली का

आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में बिजली की मौजूदा दरों में पचास फ़ीसद तक कटौती करने की बात कही है.
क्या दरों में इतनी कटौती करना वाकई मुमकिन और मुनासिब होगा, इस सवाल के जबाव में दुनु रॉय कहते हैं, ''संभव तो है लेकिन इसकी वजह से अर्थशास्त्र की विद्या गड़बड़ा जाएगी. बिजली उत्पादन पर जितनी लागत आती है, कीमत उससे कम तो नहीं रखी जा सकती.''
"बिजली की दरों में कटौती की वादा पूरा किया तो बिजली की कीमत उसकी लागत से नीचे चली जाएगी. इसका मतलब है कि लगातार घाटा होगा और इस घाटे की भरपाई कहां से होगी, ये देखने वाली बात होगी."
डुनु रॉय
वे कहते हैं, ''बिजली की दरों में कटौती की वादा पूरा किया तो बिजली की कीमत उसकी लागत से नीचे चली जाएगी. इसका मतलब है कि लगातार घाटा होगा और इस घाटे की भरपाई कहां से होगी, ये देखने वाली बात होगी.''
बिजली कंपनियों के ऑडिट के मुद्दे पर वे कहते हैं कि इससे धांधली तो सामने आएगी और जो पैसा इधर से उधर हुआ है, वो सब पकड़ में आ जाएगा.
दुनु रॉय के मुताबिक, ''लेकिन कटु सत्य ये है कि बिजली उत्पादन की कीमत को कम करना आर्थिक रूप से संभव नज़र नहीं आता, बिजली वितरण की कीमत अलग बात है.''
बिजली चोरी के मुद्दे पर वे कहते हैं कि छोटी चोरियां तो पकड़ में आ जाती हैं लेकिन बड़ी चोरियां पकड़ में नहीं आती हैं, इन्हें पहले पकड़ना जरूरी है.

क्या है दक्षिण सूडान का संकट?

क्या है दक्षिण सूडान का संकट?

 बुधवार, 25 दिसंबर, 2013 को 18:31 IST तक के समाचार

दक्षिण सूडान में जारी जातीय हिंसा में 500 से ज़्यादा लोगों के मारे जाने की ख़बर है.
दक्षिण सूडान के राष्ट्रपति सल्वा कीर ने इस हिंसा को सेना की ओर से तख्तापलट की कोशिश बताया है.
उनके मुताबिक पूर्व उपराष्ट्रपति रायक माचर के विश्वस्त सैनिकों ने तख्तापलट की कोशिश की है लेकिन माचर ने इन आरोपों से इनकार किया है.
इस पूरे मामले को समझने के लिए कुछ पहलुओं को जानना जरूरी है.

दक्षिण सूडान कहाँ है?

दक्षिण सूडान दुनिया के सबसे नए देशों में एक है. यह अफ्रीका महाद्वीप के केंद्र में स्थित है और इसकी सीमा छह देशों से सटी है.
यह प्राकृतिक तेल के लिहाज से संपन्न देश है. पिछले कुछ सालों से यहां गृह युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है. वैसे यह दुनिया के सबसे कम विकसित इलाकों में शामिल है. यहां केवल 15 फ़ीसदी नागरिकों के पास मोबाइल फ़ोन मौजूद है. स्पेन और पुर्तगाल के संयुक्त क्षेत्रफल से भी बड़े इलाके में सड़कें कहीं-कहीं ही नजर आती हैं.
यही वजह है कि यहां परिवहन और कारोबार का मुख्य जरिया नील नदी है. दक्षिण सूडान में आज भी लोगों की संपन्नता की निशानी उनके मवेशियों की संख्या होती है.

देश में तनाव क्यों है?

2011 में सूडान से अलग होने के लिए दक्षिण सूडान के लोगों ने बड़े पैमाने पर मतदान किया. सरकार की मुख्य चिंता तेल उत्पादन को लेकर थी, इसी साल अप्रैल में सूडान की राजधानी खार्तूम से हुए समझौते के बाद तेल उत्पादन शुरू हुआ.
हालांकि दक्षिण सूडान में छोटे सशस्त्र विद्रोही लड़ाकों का गुट मौजूद था, जिनके बीच संघर्ष होते रहते थे. लेकिन अब तक ये सब राजधानी जुबा से दूर दराज होता रहता था.
फिर जुलाई में सत्तारूढ़ एसपीएलएम पार्टी में आंतरिक संघर्ष उभरा जब बहुसंख्यक डिंका समुदाय से प्रतिनिधि राष्ट्रपति सल्वा कीर ने अपने डिप्टी रायक माचर को बर्खास्त कर दिया था, जो दूसरे बड़े समुदाय नुएर के प्रतिनिधि हैं.

क्या देश में तख्तापलट की कोशिश हुई?

यह अभी साफ नहीं है. राजनीतिक मतभेद ने बाद में जातीय हिंसा का रूप ले लिया. राष्ट्रपति सल्वा कीर के मुताबिक तख्तापलट की कोशिश हुई और इसके लिए उन्होंने माचर को जिम्मेदार ठहराया है. माचर इन दिनों छिपकर रह रहे हैं.
माचर ने आरोपों का खंडन किया है लेकिन पिछले दिनों उन्होंने भ्रष्टाचार के आरोपों से निपटने के मामले में नाकाम रहने के लिए राष्ट्रपति कीर की सार्वजनिक तौर पर आलोचना की थी.
माचर ने जुलाई में कहा था कि वह पार्टी अध्यक्ष पद के लिए भी कीर को चुनौती देंगे.

क्या देश में गृह युद्ध जैसे हालात हैं?

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष ग्रेरार्ड अरॉड ने इसकी चेतावनी देते हुए कहा था कि देश में डिंका और नुएर समुदाय के लोगों के बीच में पूरी तरह युद्ध जैसे हालात हैं.
देश में जारी हिंसा के चलते करीब 80 हज़ार लोग अपने-अपने घरों को छोड़ चुके हैं और जातीय हिंसा में बड़े पैमाने पर कत्लेआम की ख़बर है. माचर का समर्थन कर रही सेना ने देश के मुख्य शहर बोर और तेल उत्पादक प्रांत यूनिटी स्टेट की राजधानी बेंतू पर कब्ज़ा कर लिया है.
देश पूरी तरह से बंदूकों से पटा हुआ है और जनजातीय समूहों के बीच हिंसक झड़प का पुराना इतिहास रहा है. देश के राजनेता भी इन झड़पों को कायम रखने में यकीन रखते हैं ताकि उनकी सत्ता बनी रहे.

अब तक क्या किया गया है?

दुनिया भर के राजनेताओं ने दक्षिण सूडान के नेताओं से शांति कायम करने की अपील की है. संयुक्त राष्ट्र की महासचिव बान की मून ने राजनीतिक दल के नेताओं को किसी भी अत्याचार के लिए ज़िम्मेदार ठहराया है.
देश में तेल उत्पादन घटने से विश्व के तेल बाज़ार पर भी असर पड़ने की आशंका है. कई विदेशी नागरिकों ने देश छोड़ दिया है.
अफ्रीकी मध्यस्थता करने वालों ने कीर के साथ बातचीत करने के लिए सहमति जताई है. माचर ने तब तक शांति वार्ताओं में शामिल होने से इनकार किया है जब तक गिरफ्तार किए दस राजनेताओं को रिहा नहीं किया जाता है.
संयुक्त राष्ट्र ने देश में साढ़े सात हजार सैनिकों को तैनात किया है और ज़्यादा सैनिकों की तैनाती का अनुरोध किया गया है.

6 Easy Ways to Make Money Online: Affiliate marketing as business online : Online B2B Business Program

6 Easy Ways to Make Money Online

- Learn how affiliate marketing can skyrocket your bottom line. 












A staggering $2.1 billion in affiliate marketing fees were paid to blog and website owners in 2008. This finding in a recent study by Jupiter Research confirms what many savvy Internet marketers have known for a while: Affiliate marketing has become one of the top business opportunities online because the startup costs are so low and the income you generate can be mind-blowing.
Affiliate marketing involves having your own site and sending your traffic to someone else's site to buy their products or services. For every sale initiated by a link from your site, you earn a percentage--an affiliate sales commission.
Affiliate marketing can be done on a part-time basis, and many are so successful that they've made it their full-time job. Equally exciting, you can get in the game in just a few hours. But how successful you are is based on the amount of time and effort you devote. Here are six tips to get you started:








1. Create a website or blog
To start as an affiliate marketer, you must have a site on which to place links to the products or services you recommend. There are many inexpensive website services such as Hostgator and GoDaddy. It's also easy to set up a free blog through services such as Google's Blogger blog network. I also use Namecheap for domains and Hostnine (get a reseller account) for hosting.


2. Decide your product/service niche
Affiliate marketers help companies and entrepreneurs sell everything from jewelry and cell phones to website services and how-to e-books. Choose an area you're familiar with or one you're enthusiastic about learning. You'll be more likely to do the work and less likely to get bored before the money starts rolling in.

 
3. Find products and services to promote
Many affiliate networks exist to connect merchants with affiliate site publishers who can help sell their goods. Companies such as:
  • Clickbank, E-junkie and PayDotCom lead the pack in connecting the creators of e-books and software with affiliates to help sell their digital download products.
  • Commission Junction is popular for those who want to sell more traditional wares ranging from travel services to janitorial franchises.
  • Google AdSense, which doesn't require your involvement to result in a sale. Your income is realized on a pay-per-click basis, just for leading your traffic to click to a merchant's site. PPC affiliate programs pay a lot less than programs where your referral must result in a sale. Keep in mind that a site peppered with ads and no authority or trust can look and feel like spam, and you won't get good results.

4. Affiliate site content
There are two main approaches or business models to choose from when setting up an affiliate marketing site:
  • Resource Sites These sites are focused on offering lots of how-to articles and posts, and then provide affiliate links or banner ads to click for more details. Frequently adding fresh related content is vital because it gives people a reason to return to your site--and click some of your money-making links.
  • Review Sites You've tried the products in your niche, now you write them up and rate them to help your site visitors decide what to buy. For each product you review, you provide a link or banner ad that clicks through for sales on your merchant partner's site. Less frequent content updates are necessary--just tweak your site about once a week to let the search engines know your site's still alive, and always try to build links.

    <insert ad here>


5. Affiliate sites must attract lots of targeted traffic to succeed
Most people visiting your website or blog won't click your affiliate links. That's why it's crucial to employ a mix of marketing tactics to increase traffic--highly targeted traffic--to your site.
There are four main ways to get more site exposure and attract more potential customers:
  • Paid Advertising This is most effective when your ad copy headline, call-to-action message and graphics come together just right to compel people to click through and buy.
  • Free Advertising Sites like Craigslist and US Free Ads are but two of many popular places that accept links and banner ads for free. These tend to be affiliate marketing sites themselves, earning the owner money whenever you click their ads.
  • Article Marketing This popular marketing method offers several benefits. You're building credibility as a reliable source in your niche, gaining a higher search engine ranking by increasing the number of links leading to your site, and pulling traffic to your site. Work in an organic manner and don't spam using software engines. Ezinearticles is a great place to begin.
  • E-mail Marketing Every visitor to your site is valuable, so capturing their names and e-mail addresses to stay in touch is important. Many people might not buy your affiliate products until the third or fourth time they hear from you. So it's crucial to place an opt-in subscription box on your site for people to start receiving a weekly or monthly newsletter from you. My personal favorite is aweber, but many quality ones exist.


6. Learn the ropes in forums
These are online communities of likeminded people who exchange insights and ideas. Join at least one of these free affiliate marketing forums to benefit from advice shared by other newbies, intermediates and gurus alike:
  • Digital Point Huge, with about 25,000 active members. An excellent place to learn affiliate marketing tips, plus other techniques that impact your success such as link building and SEO.
  • aBestWeb One of the largest affiliate marketing forums, with nearly 100 sub-forums. Covers the broadest range of affiliate marketing-specific subjects, with heavy participation by numerous go-getter merchants and serious affiliates.
  • Warrior Forum A killer networking forum for beginners and advanced alike. Set up a profile, start participating, ask questions and promote as well.


To do well, read all you can about the opinions, tool and strategies of both experts and peers. But before you even start, choose a niche about which you're passionate. The more you truly enjoy what you're immersed in, the more likely you are to transform your affiliate marketing and money-making venture into a huge success.
Jon Rognerud is Entrepreneur.com's SEO columnist, an SEO consultant and the author of The Ultimate Guide to Search Engine Optimization, available from Entrepreneur Press. He has more than 20 years experience building marketing and web projects, including creating content and application solutions at Yahoo!/Overture.





Need help starting an online business with little or no money.?






start with affiliate marketing without money for investment, you can easy sign up program for affiliate marketing then start marketing product that you choose to people need it, when people buy it from you then you make commission.

you think affiliate marketing as business online, need work to marketing your product, when you have many traffic can create profits from you business online.

there are many skill to guarantee success business online, most important is skill marketing.

however you start step by step to guarantee success with your effort.

choose niche that you love but don't many competition, you can easy make money more

then choose product good for people, product that people want buy it. this step also important

then you need use your skill to marketing product or service to many people to increase ability buy from you.

simple for success if you follow system

niche need help ready spend money + create offer + generate traffic

so you can complete business online with profits

hope this helpful with you



Regards: Bhupesh Kumar Mandal

कश्मीर फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामले में कोर्ट मार्शल के आदेश

कश्मीर फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामले में कोर्ट मार्शल के आदेश

 बुधवार, 25 दिसंबर, 2013 को 15:41 IST तक के समाचार

भारतीय कश्मीर में सैनिक
सेना की जाँच में छह लोगों को मुठभेड़ के लिए ज़िम्मेदार माना गया
भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर में साल 2010 में हुए माछिल फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामले में सेना ने छह अधिकारियों के ख़िलाफ़ कोर्ट मार्शल के आदेश दिए हैं. एक कर्नल, एक मेजर और चार अन्य अधिकारियों के ख़िलाफ़ कोर्ट मार्शल की प्रक्रिया जल्द ही शुरू होगी.
अप्रैल 2010 में हुई माछिल मुठभेड़ में सेना पर तीन स्थानीय युवकों की हत्या का आरोप था. इस मुठभेड़ के मामले में स्थानीय पुलिस ने भी जुलाई 2010 में 11 सैन्य अधिकारियों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर की थी.
29 अप्रैल 2010 की रात को मोहम्मद शफ़ी, शहज़ाद अहमद और रियाज़ अहमद की हत्या कर दी गई थी. परिजनों की शिकायत पर स्थानीय पुलिस ने 27 अप्रैल को ही तीनों युवकों की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की थी.
इस फ़र्ज़ी मुठभेड़ के बाद जम्मू कश्मीर में व्यापक प्रदर्शन भी हुए थे.
बीबीसी संवाददाता रियाज़ मसरूर ने एक विश्वसनीय सैन्य सूत्र के हवाले से कहा, "पुलिस जाँच में मुठभेड़ के फ़र्ज़ी साबित होने के बाद सेना ने अपनी अदालती जाँच शुरू की थी, जिसमें पाया गया कि छह सैनिकों ने अपनी सीमाओं को लाँघा. उनमें दो अधिकारी शामिल थे. अब इन सैनिकों की नौकरी जा सकती है और इन्हें जेल हो सकती है."
हालांकि श्रीनगर में सेना की 15वीं वाहिनी के प्रवक्ता कर्नल एनएन जोशी ने कहा है कि सेना मुख्यालय को ऐसे किसी आदेश के बारे में जानकारी नहीं है.

मानवाधिकार उल्लंघन के मामले

"पुलिस जाँच में मुठभेड़ के फ़र्ज़ी साबित होने के बाद सेना ने अपनी अदालती जाँच शुरू की थी, जिसमें पाया गया कि छह सैनिकों ने अपनी सीमाओं को लाँघा. उनमें दो अधिकारी शामिल थे. अब इन सैनिकों की नौकरी जा सकती है और इन्हें जेल हो सकती है"
विश्वसनीय सैन्य सूत्र
इस मामले की पुलिस जाँच में पहले ही साबित हो चुका है कि कुछ सैन्य अधिकारियों ने प्रोन्नति और मेडल पाने के लिए तीन कश्मीरी मज़दूरों को अग़वा किया और फिर उन्हें पाकिस्तानी चरमपंथी बताकर फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मार दिया.
इन युवकों के परिजनों ने पुलिस को बताया था कि सेना के लिए काम कर रहा एक स्थानीय व्यक्ति इन युवकों को सेना में नौकरी का लालच देकर अपने साथ ले गया था. वहाँ से उन्हें नियंत्रण रेखा के नज़दीक स्थित माछिल गाँव में ले जाकर मार दिया गया था.
पुलिस जाँच में एक कर्नल और दो मेजरों समेत कुल 11 लोगों को फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामले में अभियुक्त बनाया गया था लेकिन सेना की आंतरिक जाँच में सिर्फ़ छह लोगों को ही मुठभेड़ के लिए ज़िम्मेदार माना गया.
कश्मीर में तैनात एक शीर्ष सैन्य कमांडर का कहना है कि पिछले बीस सालों में सामने आए मानवाधिकार उल्लंघन की 1524 शिकायतों में से सिर्फ 42 को ही सही पाया गया है. हालाँकि स्थानीय मानवाधिकार संगठन सेना के इन दावों को भ्रामक क़रार देते हैं.
जून 2010 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कश्मीर यात्रा से पहले हुई इस मुठभेड़ में आरोपों का सामना कर रहे मेजर उपेंद्र को निलंबित कर दिया गया था जबकि कर्नल को कमांड से हटा दिया गया था.

#NSA -मेरा मक़सद पूरा हुआ: एडवर्ड स्नोडेन

#NSA -मेरा मक़सद पूरा हुआ: एडवर्ड स्नोडेन

 मंगलवार, 24 दिसंबर, 2013 को 19:54 IST तक के समाचार

एडवर्ड स्नोडन के समर्थन में रैली
अमरीकी सरकार के इलेक्ट्रॉनिक निगरानी कार्यक्रम की जानकारी लीक करने वाले राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी यानी एनएसए के पूर्व कांट्रेक्टर क्लिक करें एडवर्ड स्नोडेन ने कहा है कि उनका मक़सद पूरा हो गया है.
स्नोडेन ने क्लिक करें वॉशिंगटन पोस्ट अख़बार को बताया, "निजी संतुष्टि की बात करें तो अभियान पहले ही पूरा हो चुका है. मैं पहले ही जीत चुका हूं."
30 साल के एडवर्ड स्नोडेन का ये इंटरव्यू रूस में हुआ जहां इस वर्ष एक अगस्त से उन्हें अस्थाई शरण मिली हुई है. उनकी ओर से लीक जानकारी के बाद अमरीका ने अपनी निगरानी नीति पर फिर से विचार किया है.
मई के अंत में स्नोडेन, अपने साथ गुप्त दस्तावेज़ लेकर अमरीका से भाग निकले थे. अमरीका में उन पर जासूसी के आरोप हैं.
स्नोडेन ने अख़बार को बताया, "याद रखिए, मेरा मक़सद समाज को बदलना नहीं था. मैं समाज को मौका देना चाहता था कि वो तय करे कि क्या वो बदलना चाहता है?"

सुधारों का सुझाव

पिछले सप्ताह एक केंद्रीय जज ने व्यापक तौर पर टेलिफ़ोन जानकारी जुटाने को ग़ैर-क़ानूनी घोषित किया था और राष्ट्रपति की एक सलाहकार समिति ने सुधारों का सुझाव दिया था.
"निजी संतुष्टि की बात करें तो अभियान पहले ही पूरा हो चुका है. मैं पहले ही जीत चुका हूं."
एडवर्ड स्नोडन
न्यायाधीश और सलाहकार समिति ने कहा था कि इस बात के बहुत कम सबूत हैं कि गुप्त जानकारी कार्यक्रम से किसी आतंकी षड्यंत्र को रोका जा सका हो.
इसके कुछ दिन बाद, साल के आखिर में होने वाले अपने पत्रकार सम्मेलन में राष्ट्रपति ओबामा ने भी इशारा किया कि क्लिक करें एनएसए के निगरानी कार्यक्रम की समीक्षा हो सकती है.
राष्ट्रपति ओबामा ने कहा था, "सामने आई जानकारी और इस कार्यक्रम के बारे में आम जनता की चिंताओं के मद्देनज़र कोई और तरीका भी अपनाया जा सकता है."
लेकिन राष्ट्रपति ओबामा ने एडवर्ड स्नोडेन पर दस्तावेज़ लीक कर "अनावश्यक नुकसान" करने का आरोप लगाया. ओबामा ने कहा कि समिति के सुझावों के बारे में जनवरी में "स्पष्ट घोषणा" करेंगे.

हज़ारों की जासूसी

एडवर्ड स्नोडेन ने वॉशिंगटन पोस्ट को बताया कि उनके पास ये जानने का कोई तरीका नहीं था कि आम जनता उनके दृष्टिकोण का समर्थन करती है या नहीं.
एनएसए मुख्यालय, फ़ोर्ट मीड, मैरीलैंड
एनएएसए ने व्यापक तौर पर लोगों के फ़ोन कॉल और ईमेल की जासूसी की थी.
अमरीका और ब्रिटेन ने जिन लोगों और संस्थाओं पर निगरानी रखी, उसके बारे में और जानकारी पिछले सप्ताह द गार्डियन, द न्यूयॉर्क टाइम्स और डर श्पीगल अख़बारों में छपी थीं.
इन अख़बारों के मुताबिक ऐसे करीब एक हज़ार लोगों और संस्थाओं की सूची में यूरोपीय संघ के आयुक्त, एक प्रधानमंत्री समेत कुछ इसराइली अधिकारी और कुछ मानवाधिकार संस्थाएं शामिल थीं.
गूगल, माइक्रोसॉफ़्ट और याहू जैसी अमरीकी कंपनियां, अमरीकी सरकार की ओर से इकट्ठा की गई जानकारी को रोकने के लिए कदम उठा रही हैं.
इस वर्ष अक्तूबर में जब ये बात सामने आई कि एनएसए ने क्लिक करें जर्मनी की चांसलर क्लिक करें एंगेला मर्कल के फ़ोन की जासूसी की थी तो दोनो देशों के बीच राजनयिक मतभेद पैदा हो गए थे.
इसी तरह ब्राज़ील की राष्ट्रपति डिल्मा रूसेफ़ भी इस बात से नाराज़ थीं कि ईमेल और टेलिफ़ोन कॉलों की जानकारी इकट्ठा करने के लिए एनएसए ने ब्राज़ील की सरकारी तेल कंपनी पेट्रोब्रास के कंप्यूटर नेटवर्क में सेंध डाली थी.

केजरीवाल 28 दिसंबर को लेंगे दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ

केजरीवाल 28 दिसंबर को लेंगे दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ

 बुधवार, 25 दिसंबर, 2013 को 14:25 IST तक के समाचार

अरविंद केजरीवाल
आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल 28 दिसंबर को दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग से चिट्ठी मिलने के बाद ये तारीख़ तय हो गई है.
केजरीवाल दिल्ली के रामलीला मैदान में शपथ लेंगे.
आम आदमी पार्टी को दिल्ली विधानसभा चुनाव में 28 सीटें मिली हैं जबकि बीजेपी को 31 और कांग्रेस को आठ सीटें मिलीं. एक सीट बीजेपी की सहयोगी शिरोमणि अकाली दल को, एक जनता दल यूनाइटेड को और एक निर्दलीय के पास गई है.
बीजेपी ने बहुमत नहीं होने की बात कहते हुए सरकार बनाने से इनकार कर दिया था.
इसके बाद कांग्रेस पार्टी ने आम आदमी पार्टी को बिना शर्त समर्थन देने का ऐलान किया. तब 'आप' ने इस बारे में जनता से राय लेने के बाद अल्पमत की सरकार बनाने का फ़ैसला किया है.
दूसरी ओर दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने से पहले ही उसे कांग्रेस के समर्थन पर बयानबाज़ी तेज़ हो रही है.
आम आदमी पार्टी के नेता योगेंद्र यादव ने कहा है कि दिल्ली में सरकार बनाने के लिए उनका कांग्रेस से कोई गठबंधन नहीं हुआ है. इसलिए कांग्रेस जब चाहे, आम आदमी पार्टी की सरकार से समर्थन वापस ले सकती है.
दिल्ली में मुख्यमंत्री का पद संभालने जा रहे अरविंद केजरीवाल ने भी इसी तरह की बात की है.
"दिल्ली सरकार कानून बना सकती है. लेकिन अब मुझे बताया जा रहा है कि केंद्र सरकार ने कोई आदेश जारी किया है कि अगर दिल्ली सरकार कोई कानून पारित करेगी तो उसे केंद्र सरकार की अनुमति लेनी होगी. ये आदेश तो गलत है. इस बारे में हम बात कर रहे हैं."
अरविंद केजरीवाल, नेता 'आप'
दूसरी तरफ़ कांग्रेस ने समर्थन के मुद्दे पर मतभेदों के बावजूद आम आदमी पार्टी की सरकार को समर्थन देने की बात दोहराई है

'कुछ लोग ख़ुश नहीं'

इससे पहले कांग्रेस नेता जनार्दन द्विदी ने मंगलवार को कहा कि आम आदमी पार्टी को सर्मथन देने की बात पर कांग्रेस में मतभेद है. उनका कहना था कि कुछ लोगों का ख़्याल है कि समर्थन देना सही नहीं है.
दूसरी तरफ़ आम आदमी पार्टी के सरकार बनाने के दावे के बाद पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता शीला दीक्षित ने बयान दे दिया कि आप को समर्थन बिना शर्त नहीं है.
इसके बाद ही ये अटकलें शुरू हो गई हैं कि कांग्रेस के समर्थन से बन रही सरकार कितने दिन चल पाएगी और क्या केजरीवाल सरकार वो सब वादे पूरा कर पाएगी जो उसने जनता से किए हैं - मसलन बिजली की दर कम करना.
विश्लेषक कह रहे हैं कि बिजली की दर कम करने का मतलब होगा कांग्रेस के फैसले पर सवाल क्योंकि बिजली की दरें तो पिछली हुकूत की रज़ामंदी से ही बढ़ी थीं.

'नहीं मांगा समर्थन'

योगेंद्र यादव ने कहा, "ये हमने बार-बार कहा है कि हमने समर्थन मांगा नहीं है. ये उनका अधिकार है, ये उनका निर्णय है. इसलिए हर कोई उसका सम्मान करेगा."
इससे पहले केजरीवाल ने कहा कि जिन 18 मुद्दों को उनकी पार्टी ने कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी को भेजे ख़त में उठाया था उन्हें विधानसभा में रखा जाएगा, जो विधायक इन पर समर्थन देने चाहते हैं, वो सामने आएं.
इन मुद्दों में वीआईपी कल्चर बंद करना, जनलोकपाल बिल पारित करना, दिल्ली में 'स्वराज' की स्थापना, दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा, महिलाओं को सुरक्षा के लिए विशेष बल बनाना और झुग्गी बस्तियों में रहने वालों को पक्के मकान देना जैसी बातें शामिल हैं.
केजरीवाल ने कहा, "हमारा न किसी से गठबंधन है और न किसी से बातचीत हुई है. जो दिल्ली का विधायक हमें समर्थन देना चाहता है, वो साथ आए."
आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने कहा कि उनकी पार्टी में किसी तरह का मतभेद नहीं है.

'नहीं कोई मतभेद'

दिल्ली चुनाव
दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला
केजरीवाल ने इस बात से भी इनकार किया कि उनकी पार्टी के विधायक विनोद कुमार बिन्नी मंत्रियों की संभावित सूची में नाम न आने से नाराज़ हैं. उन्होंने पार्टी में मतभेद को मीडिया की मनघडंत ख़बर बताया.
शपथ ग्रहण के लिए समाजसेवी अन्ना हज़ारे को निमंत्रण भेजने पर केजरीवाल ने कहा कि वो इस बारे में अन्ना से खुद बात करेंगे.
स्वराज और लोकपाल के मुद्दे पर उन्होंने कहा, "ये मुद्दा बड़ा ही दिलचस्प है, संविधान में लिखा है कि दिल्ली सरकार कानून बना सकती है. लेकिन अब मुझे बताया जा रहा है कि केंद्र सरकार ने कोई आदेश जारी किया है कि अगर दिल्ली सरकार कोई कानून पारित करेगी तो उसे केंद्र सरकार की अनुमति लेनी होगी. ये आदेश तो गलत है. इस बारे में हम बात कर रहे हैं."

यूपी के इंजीनियरों से AAP को मिला दिल्ली में सस्ती बिजली का फार्मूला

यूपी के इंजीनियरों से AAP को मिला दिल्ली में सस्ती बिजली का फार्मूला

नई दिल्‍ली, 25 दिसम्बर 2013 | अपडेटेड: 15:16 IST
टैग्स: दिल्ली सरकार| बिजली| आम आदमी पार्टी| अरविंद केजरीवाल
अरविंद केजरीवाल
अरविंद केजरीवाल
बिजली के बिल को आधा करने के चुनावी वादे के साथ दिल्ली में सरकार बनाने जा रही आम आदमी पार्टी (AAP) को सस्ती बिजली का फॉर्मूला मिल गया है. अरविंद केजरीवाल के बुलावे पर दिल्ली गए राज्य विद्युत परिषद संघ के उपाध्यक्ष मोहम्मद फिरोज और ऑल इंडिया पॉ़वर इंजीनियर फेडरेशन के महासचिव शैलेंद्र दुबे ने कई ऐसे रास्ते सुझाए हैं जिस पर चलकर दिल्ली को आधे दर पर बिजली मुहैय्या कराई जा सकती है. यूपी के तकनीकी विशेषज्ञों की अरविंद केजरीवाल के साथ बैठक पिछले हफ्ते दिल्ली में हुई. बैठक में शामिल हुए मोहम्मद फिरोज ने बताया कि तमाम गुणा-गणित के बाद जो परिणाम सामने आए हैं, उस हिसाब से दिल्ली वालों को आसानी से आधे रेट पर बिजली दी जा सकती है. दिल्ली में एक यूनिट बिजली के लिए औसतन साढ़े आठ रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं जबकि नए फार्मूले पर काम करने से यह खर्च घटकर चार से साढ़े चार रुपये प्रति यूनिट हो जाएगा.
दिल्ली में वर्तमान में बिजली का रेट सात से 11 रुपये यूनिट है. दिल्ली सरकार को भाखड़ा नांगल डैम से हाइड्रो बिजली 30 पैसे प्रति यूनिट मिलती है. इसके अलावा नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (NTPC), जो कि केंद्र सरकार का है, इससे दिल्ली को 2.35 रुपये यूनिट की दर पर बिजली मिल रही है. इसके बावजूद प्राइवेट कंपनियों से साढ़े सात से साढ़े आठ रुपये यूनिट बिजली खरीदी जा रही है.
शैलेंद्र दुबे कहते हैं कि दिल्ली में डिमांड साढ़े पांच से छह हजार मेगावाट बिजली की है जबकि सरकारी पूल से ही दिल्ली को साढ़े आठ हजार मेगावाट बिजली मिलती है. बिजली डिमांड से ज्यादा मिल रही है तो प्राइवेट कंपनियों से बिजली खरीदने की क्या जरूरत. इसके बावजूद तीन हजार मेगावाट की खरीद प्राइवेट कंपनियों से दिखाई जा रही है. इंजीनियर मोहम्मद फिरोज का कहना है कि पूरा खेल इसी में हो रहा है. दिल्ली में जो कंपनी वितरण व्यवस्था देख रही है, उसकी कुछ उत्पादन इकाइयां भी हैं. ट्रांसफार्मर आदि वह अपनी इकाइयों से खरीदती है. 100 का सामान 75 रुपये में पड़ता है लेकिन खरीद 300 रुपये में दिखाई जाती है.
प्राइवेट कंपनियों से बिजली खरीद और महंगे उपकरण पर जो खर्च दिखाया जाता है, उसकी वसूली आम जनता से की जाती है और इसी वजह से बिजली महंगी हो गई है. अगर प्राइवेट कंपनियों से बिजली खरीद बंद कर दी जाए और उपकरण सरकार सीधे अपने स्रोतों से खरीदे तो बिजली की कीमत घटकर 3.95 रुपये प्रति यूनिट हो जाएगी. अगर जनता को यह बिजली 4.65 रुपये प्रति यूनिट की दर से भी दी जाए तो आय बढ़ेगी और बिजली की कीमत आधी हो जाएगी.



डरबन में अंतिम टेस्ट खेलेंगे जैक कैलिस,कैलिस ने की टेस्ट से संन्यास की घोषणा

डरबन में अंतिम टेस्ट खेलेंगे जैक कैलिस,कैलिस ने की टेस्ट से संन्यास की घोषणा

नई दिल्ली, 25 दिसम्बर 2013 | अपडेटेड: 16:44 IST
टैग्स: जैक कैलिस| रिटायरमेंट| टेस्ट मैच| साउथ अफ्रीका
 
जैक कैलिस
 
ज़ाक कैलिस
दक्षिण अफ़्रीका के बहुचर्चित ऑलराउंडर ज़ाक कैलिस ने अंतरराष्ट्रीय टेस्ट क्रिकेट से संन्यास ले लिया है.
वे भारत के ख़िलाफ़ दूसरे टेस्ट के बाद टेस्ट क्रिकेट नहीं खेलेंगे.
दक्षिण अफ़्रीका क्रिकेट बोर्ड ने इसकी घोषणा की है. भारत और दक्षिण अफ़्रीका के बीच दूसरा क्रिकेट टेस्ट गुरुवार से डरबन में खेला जाएगा.
क्रिकेट बोर्ड के मुताबिक़ ज़ाक कैलिस एक दिवसीय मैच खेलना जारी रखेंगे और उनका लक्ष्य 2015 का विश्व कप भी है.

वनडे में दिखेगा अभी दम

ज़ाक कैलिस
कैलिस ने अपने बयान में कहा है, "ये आसान फ़ैसला नहीं था. ख़ासकर ऐसे समय जब जल्द ही ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ टेस्ट सिरीज़ होने वाली है और टीम भी अच्छा प्रदर्शन कर रही है. लेकिन मेरा मानना है कि टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कहने का ये सही समय है."
कैलिस ने कहा कि उन्होंने अभी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा नहीं कहा है और वे एक दिवसीय मैच खेलना जारी रखेंगे.
उन्होंने कहा कि अगर वे फ़िट रहें, तो अगला विश्व कप क्रिकेट खेलना चाहेंगे.
कैलिस ने अभी तक 165 टेस्ट मैच खेले हैं और 44 शतकों की मदद से 13174 रन बनाए हैं.

कैलिस के टेस्ट करियर पर एक नज़र

टेस्ट मैच 165
रन 13174
सर्वश्रेष्ठ 224
औसत 55.12
शतक 44
अर्धशतक 58
कैच 199
विकेट 292
 
 
साउथ अफ्रीका के ऑलराउंडर खिलाड़ी जैक कैलिस ने फर्स्ट क्लास और टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने का ऐलान कर दिया है. वे वनडे में खेलते रहेंगे. उनकी इच्छा है कि वे 2015 का वर्ल्डकप भी खेलें. ये जानकारी बुधवार को 'क्रिकेट साउथ अफ्रीका' ने ट्वीट की. जैक कैलिस भारत के खिलाफ अपना अंतिम टेस्ट मैच खेलेंगे. यह टेस्ट मैच कल से डरबन में शुरू हो रहा है. सचिन तेंदुलकर के बाद कैलिस ने सबसे ज्यादा टेस्ट शतक लगाए हैं.
इस मौके पर जैक कैलिस ने कहा, 'संन्यास का फैसला लेना आसान नहीं था, लेकिन मुझे लगता है कि यही संन्यास का सबसे सही समय है. मैं इसे गुडबॉय की तरह नहीं देखता. मुझमें अब भी खेलने और साउथ अफ्रीका टीम के लिए कुछ करने की भूख है. यदि मैं फिट रहा और मेरा खेल अच्छा रहा तो टीम के लिए 2015 का विश्वकप खेलूंगा.'
जैक कैलिस का टेस्ट रिकॉर्ड कुछ इस तरह है- बैटिंग-
मैच खेले - 165
रन बनाए - 13174
एवरेज - 55.12
शतक - 44
अर्धशतक - 58
सर्वश्रेष्ठ स्कोर - 224
चौके लगाए - 1475
छक्के जड़े - 97
कैच लपके - 199
बॉलिंग-
मैच - 165
गेंदें फेंकी - 20166
रन दिए - 9499
विकेट लिए - 292
एक पारी में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 54 रन देकर 6 विकेट
एक मैच में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 92 रन देकर 9 विकेट
इकॉनमी रेट - 2.82
चार विकेट - 7 बार
पांच विकेट - 5 बार


Monday 23 December 2013

एके-47 राइफ़ल के जनक क्लाशनिकोव का निधन

एके-47 राइफ़ल के जनक क्लाशनिकोव का निधन

-साल 1947 आवटोमैट कलाशनिकोवा(AK 47) मॉडल

 मंगलवार, 24 दिसंबर, 2013 को 07:39 IST तक के समाचार

मिखाइल कलाशनिकोव
कलाशनिकोव की डिज़ाइन की गई राइफ़ल पूरी दुनिया में सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होने वाला हथियार है.
क्लाशनिकोव राइफ़ल का आविष्कार करने वाले मिखाइल क्लाशनिकोव का निधन हो गया है. वे 94 साल के थे.
क्लाशनिकोलव ने जिस ऑटोमैटिक राइफ़ल को डिज़ाइन किया वो दुनिया का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला हथियार है.
दूसरी बंदूकों के मुकाबले बेहद साधारण होने की वजह से इसे बनाना काफ़ी आसान था और इसकी देखरेख भी आसान थी.
हालांकि क्लाशनिकोव को रूसी सरकार से सम्मान मिला था लेकिन उन्होंने इस हथियार से बहुत कम ही पैसा कमाया. एक बार उन्होंने कहा था कि उन्होंने घास काटने वाली कोई मशीन डिज़ाइन की होती तो उनके पास ज़्यादा पैसे होते.
मिखाइल क्लाशनिकोव को अंदरूनी रक्तस्त्राव की वजह से नवंबर में अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
क्लाशनिकोव का जन्म रूस के पश्चिमी साइबेरिया में 10 नवंबर 1919 को हुआ था.

जीवन

कलाशनिकोव, राइफ़ल
कलाशनिकोव राइफ़ल का इस्तेमाल दुनिया की कई सेनाओं ने किया है.
1938 में वो रूसी सेना में भर्ती हो गए थे. अक्तूबर 1941 में द्वितीय विश्वयुद्ध में टैंक का गोला लगने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था.
जर्मनी के एसॉल्ट राइफ़ल बनाने में महारत हासिल करने से रूस की सेना को अकसर जर्मन हथियारों को झेलने में मुश्किल होती थी.
जब क्लाशनिकोव अस्पताल में थे उसी दौरान उनसे एक रूसी सैनिक से कहा कि रूसी सेना ऐसी बंदूक क्यों नहीं बना लेती जो जर्मन हथियारों का मुकाबला कर सके.
इसके बाद क्लाशनिकोव ने एक मशीन गन बनाई. उन्होंने कहा था, "इसे आवटोमैट कलाशनिकोवा कहा गया यानी क्लाशनिकोव का ऑटोमैटिक हथियार."
शुरुआती मॉडल में कई दिक्कतें थीं लेकिन साल 1947 में उन्होंने आवटोमैट कलाशनिकोवा मॉडल को पूरा कर लिया. बोलने में मुश्किल होने की वजह से इसे संक्षिप्त कर एके 47 कहा जाने लगा.
बाद में इस राइफ़ल का इस्तेमाल दुनिया भर की कई सेनाओं और लड़ाकू गुटों ने किया.

परवेज़ मुशर्रफ के ख़िलाफ़ देशद्रोह का मुकदमा आज से

परवेज़ मुशर्रफ के ख़िलाफ़ देशद्रोह का मुकदमा आज से

 मंगलवार, 24 दिसंबर, 2013 को 07:31 IST तक के समाचार

परवेज़ मुशर्रफ
पाकिस्तान के पूर्व सैन्य शासक परवेज़ मुशर्रफ के ख़िलाफ़ मंगलवार से देशद्रोह के आरोपों में मुकदमा शुरू होगा.
वह इस्लामाबाद में विशेष न्यायालय के सामने पेश होंगे. इससे पहले अदालत ने उनकी इस याचिका को ख़ारिज कर दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि केवल सैन्य अदालत में ही उनका मुकदमा चल सकता है.
यह अभियोग उन पर वर्ष 2007 में संविधान को निलंबित कर आपातकाल लगाने के मामले में चलाया जा रहा है.
कई अन्य मामलों में ज़मानत पा चुके परवेज़ मुशर्रफ़ ने कहा, "मुझ पर सभी आरोप राजनीति से प्रेरित हैं."
70 वर्षीय क्लिक करें मुशर्रफ पर इसके अलावा हत्या और न्यायालय पर बंदिशें लगाने के भी आरोप हैं.
पाकिस्तान में पहली बार किसी पूर्व सैन्य शासक पर देशद्रोह का मुक़दमा चलाया जा रहा है.

असफल दलील

क्लिक करें परवेज़ मुशर्रफ ने एक सैन्य तख्तापलट में 1999 में सत्ता हासिल की थी और वह 2008 तक देश के राष्ट्रपति रहे. इसके बाद एक लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार ने उन्हें इस्तीफ़ा देने पर मजबूर कर दिया.
"मैंने जो भी किया वह पाकिस्तान के और पाकिस्तान की जनता की भलाई और कल्याण के लिए था"
परवेज़ मुशर्रफ
इसके तुरंत बाद वह देश से बाहर चले गए थे.
सोमवार को उनके वकील ने यह दलील दी थी कि 2007 में सेना प्रमुख होने के कारण मुशर्रफ के ख़िलाफ केवल एक सैन्य अदालत को ही उन पर मुकदमा चलाने का अधिकार प्राप्त है.
लेकिन इस्लामाबाद के उच्च न्यायालय ने उनकी यह दलील ख़ारिज कर दी. न्यायालय ने जजों और वकीलों की नियुक्ति पर उठाई गई आपत्ति को भी ख़ारिज कर दिया.
2008 में इस्तीफ़ा देने के बाद परवेज़ मुशर्रफ़ स्वघोषित निर्वासन के तहत दुबई और लंदन में रहे.

'मैं भागूँगा नहीं'

इस साल में मार्च में आम चुनावों में हिस्सा लेने के लिए वो पाकिस्तान लौटे लेकिन उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया.
परवेज़ मुशर्रफ
2008 में इस्तीफ़ा देने के बाद परवेज़ मुशर्रफ़ स्वनिर्वासन में दुबई और लंदन में रहे
वह अपने शासन काल से संबंधित बहुत से आरोपों का सामना भी कर रहे हैं.क्लिक करें
पिछले हफ़्ते परवेज़ मुशर्रफ ने अपने नौ साल के शासन काल के दौरान किए गए कार्यों का बचाव किया था.
उन्होंने कहा, "मैंने जो भी किया वह पाकिस्तान के और पाकिस्तान की जनता की भलाई और कल्याण के लिए था."
उन्होंने पाकिस्तान के एक निजी टीवी चैनल एआरवाई से कहा, " मैं सभी मुकदमों का सामना करूँगा, मैं भागूंगा नहीं."

Listen AIR FM Rainbow 102.6 Online

Listen AIR FM Rainbow 102.6 Online

Listen AIR FM Rainbow 102.6 online from here that always with you wherever you go can listen music from you favorite AIR FM Rainbow 102.6 blog/website. This site is let you listen AIR FM Rainbow 102.6 online on net while chatting with friends having headphone you can easily listen big online even during office hours you can also enjoy AIR FM Rainbow 102.6. 


DIRECT LINK OF RADIO:
 OR



HOME PAGE OF OFFICIAL WEBSITE OF AIR(ALL INDIA RADIO): 

Sunday 22 December 2013

#NSA :इस्राइल ने कहा कि कथित अमेरिकी फोन टैपिंग अस्वीकार्य

#NSA :इस्राइल ने कहा कि कथित अमेरिकी फोन टैपिंग अस्वीकार्य
यरूशलम, 
First Published:22-12-13 07:05 PM

अमेरिका की एक जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे इस्राइली जासूस जोनाथन पोलार्ड की रिहाई की एक बार फिर मांग किए जाने के बीच इस्राइल ने अपने देश के प्रधानमंत्री की कथित अमेरिकी फोन टैपिंग को अस्वीकार्य बताया है। इस्राइल के खुफिया मामलों के मंत्री युवाल स्टेनीत्ज ने बताया कि हमारा अमेरिका और ब्रिटेन के साथ अलग तरह का खुफिया संबंध रहा है, यह करीब-करीब एक खुफिया समुदाय है।

स्टेनीत्ज ने शनिवार को कहा कि इस तरह की स्थिति में मुझे लगता है कि यह अस्वीकार्य है। उन्होंने न्यूयार्क टाइम्स की एक खबर पर यह बात कही, जिसमें एनएसए के व्हीसलब्लोअर (भंडाफोड़ करने वाले) एडवर्ड स्नोडेन ने इस बात का खुलासा किया है कि अमेरिकी और ब्रिटिश खुफिया विभाग ने 2008 से 2011 के बीच तत्कालीन इस्राइली प्रधानमंत्री एहुद ओलमर्ट और रक्षामंत्री एहुद बराक के बीच हुई फोन पर बातचीत की टैपिंग की।

स्टेनीत्ज ने कहा कि हम अमेरिकी राष्ट्रपति या व्हाइट हाउस की जासूसी नहीं करते। नियम स्पष्ट कर दिए गए हैं। हमने इस विषय पर कुछ वादे किए हैं और हम उनका सम्मान करते हैं। वाशिंगटन स्थित दूतावास में 1980 के दशक के शुरूआत में राजनयिक रह चुके नाशमन शाई ने कहा कि इस्राइल और अमेरिका 1985 में वाशिंगटन में पोलार्ड की गिरफ्तार के बाद एक दूसरे की जासूसी नहीं करने पर राजी हुए थे।

गौरतलब है कि अमेरिकी नौसेना के पूर्व विश्लेषक पोलार्ड ने अरब देशों में जासूसी के बारे में हजारों दस्तावेज इस्राइल को सौंपे थे। 29 साल पहले पोलार्ड को उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी और अब इस्राइल की अमेरिका द्वारा जासूसी किए जाने की खबर सामने आने पर उसकी रिहाई की फिर से मांग की जा रही है।