Friday, 27 September 2013

NTSE (National Talent Search Exam):Scholarship

NTSE (National Talent Search Exam):Scholarship

GOOD NEWS: अपने बच्चे को दिलाएं यह EXAM, संवर जाएगा जीवन!








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वाराणसी. भारत सरकार की ओर से मानव संसाधन विकास मंत्रालय बाल्यावस्था में टैलेंटेड बच्चों की पहचान और उसके रुची के विषयों में जिज्ञासा को प्रोत्साहित करने के लिए NTSE (National Talent Search Exam) करवाता है। यदि कोई छात्र NTSE की परीक्षा पास कर लेता है तो 11वीं से पीएचडी तक उसकों स्कॉलरशिप मिलता है। इस परीक्षा की जागरूकता को लेकर बीएचयू आयुर्वेद रस शास्त्र विभाग के प्रो. आनंद चौधरी सोशल नेटवर्किंग साइट और फोन के माध्यम से मुहीम चला रहे हैं। 
 
इस परीक्षा को NCRT पहले प्रदेश स्तर पर करवाता है। सेकेंड स्टेप में नेशनल लेबल परीक्षा होता है। पूरे देश में इस बार डेढ़ लाख के ऊपर बच्चों ने इसकी परीक्षा दी थी। इसमें काशी के पांच होनहार बच्चे चयनित हुए हैं। डॉ. चौधरी का मानना है कि कम अवेयरनेस के कारण बच्चे कम बैठते हैं। गार्जियन को चाहिये हाई स्कूल में NTSE की परीक्षा में बच्चे को जरुर बैठाए। 

GOOD NEWS: अपने बच्चे को दिलाएं यह EXAM, संवर जाएगा जीवन!
डॉ. चौधरी बताते हैं कि देश में लाखों बच्चे और उनके गार्जियन इस परीक्षा से अनभिज्ञ हैं। बच्चा अगर NTSE की परीक्षा पास कर लेता है तो 11वीं से पीएचडी तक उसकों स्कालरशिप मिलता है। क्लास 10 की परीक्षा देने वाला छात्र ही NTSE परीक्षा में बैठ सकता है। अच्छी बात ये है कि बच्चा किसी भी बोर्ड से पढ़ रहा हो वो परीक्षा में बैठ सकता है। 
 
परीक्षा फार्म आसानी से NCRT कार्यालय या जिले के राजकीय कालेजों में आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। इसका शुल्क बहुत सामान्य होता है। सितंबर माह में इसका फार्म मिलता है। नवंबर के तीसरे सप्ताह में इसके पहले चरण की परीक्षा जिले स्तर पर होती है। इसका रिजल्ट फरवरी मार्च में आ जाता है। पहले चरण में विज्ञान, गणित, सामान्य ज्ञान, सामाजिक विज्ञान से संबंधित वस्तुनिष्ठ प्रश्न पूछे जाते हैं। 

GOOD NEWS: अपने बच्चे को दिलाएं यह EXAM, संवर जाएगा जीवन!
डॉ. चौधरी बताते हैं कि ये परीक्षा है जो रुची के अनुसार छात्र का जीवन बदल सकता है। दूसरे स्टेप में NCRT राष्ट्रीय स्तर पर परीक्षा कराता है। पहले स्टेप में चयनीत चुनिंदा छात्र राज्य के एक सेंटर पर इसकी परीक्षा देते है। इसमें बौधिक योग्यता, शैक्षणिक योग्यता और भाषा से संबंधित सवाल पूछे जाते हैं। 2012-13 की परीक्षा में 1035 छात्र पूरे देश से चुने गये। इसमे बनारस के पांच बच्चे भी शामिल हैं। 
 
डॉ. चौधरी बताते हैं कि 1961 में भारत सरकार ने होनहार बच्चों के भविष्य को देखते हुए इसकी शुरुआत की। NTSE की परीक्षा पास किये छात्र को देश के शीर्ष के संस्थाओं के साथ कार्यशाला का मौका प्राप्त होता हैं। सरकार द्वारा शिक्षा के लिए छात्र वृत्ति दी जाती हैं। विषयगत रुची के अनुसार छात्र को एक्सपर्ट के जरिये प्रमोट किया जाता हैं। 
 
 
GOOD NEWS: अपने बच्चे को दिलाएं यह EXAM, संवर जाएगा जीवन!
छात्र वृत्ति कक्षा एक से पीएचडी तक दी जाती है। छात्र द्वारा किये गये शोधों का प्रेजेंटेशन यूनिवर्सिटी लेबल पर भी किया जाता हैं। गरीब छात्र इस परीक्षा का लाभ ले सकता हैं। 500 रूपये से शुरू हुआ स्कालरशिप छः हजार से ऊपर तक पहुंच जाता है। लोगों के जागरूक करने के बाद दर्जनों लोग अपने बच्चों को exam का फार्म भरवा रहे हैं। 
 
 
 
GOOD NEWS: अपने बच्चे को दिलाएं यह EXAM, संवर जाएगा जीवन!
क्या कहते है परीक्षा में पास बच्चे
 
परीक्षा में पास किये अनुसत्य ने बताया कि बहुत ही इंट्रेस्टिंग परीक्षा होता है। हाई स्कूल में अच्छी तैयारी के साथ इस परीक्षा को आसानी से दिया जा सकता है। बहुत से बच्चों को परीक्षा के बारे में मालूम ही नहीं रहता है। देश में नेशनल लेबल पर परीक्षा पास करने के बाद आईआईटी, मेडिकल कालेजों अग्रणी संस्थाओं में विद्वानों से मिलने का मौका मिलता है। 
 
 

राजन समितिः सही वक़्त नहीं, सही तस्वीर नहीं

राजन समितिः सही वक़्त नहीं, सही तस्वीर नहीं

 शुक्रवार, 27 सितंबर, 2013 को 10:06 IST तक के समाचार

रघुराम राजन
राजन समिति की रिपोर्ट में गोवा-केरल को सबसे विकसित तो बिहार-उड़ीसा को सबसे पिछड़े राज्य बताया गया है
प्रति व्यक्ति आय को देखें तो इससे विकास की सही तस्वीर सामने नहीं आती. इससे हमें शिक्षा, स्वास्थ्य की स्थिति, अनुसूचित जाति-जनजाति की स्थिति, समाज के पिछड़े वर्गों को कितनी सुविधाएं मिल रही हैं, इसका पता नहीं चलता.
रघुराम राजन समिति ने विकास के जो 10 पैमाने लिए हैं- वे दुनिया भर में अब स्वीकार्य हो गए हैं. सभी जगह यह माना जाता है कि अच्छा होगा कि हम इन्हें लेकर चलें.
इन पैमानों पर बहस हो सकती है लेकिन इनके आधार पर परिणाम ठीक हैं.
हालांकि हम इसे वस्तुनिष्ठ होकर नहीं देख सकते. अगर हम मानें कि शिक्षा ज़्यादा ज़रूरी है, एससी-एसटी की स्थिति कम. अगर हम मानें कि स्वास्थ्य ज़्यादा ज़रूरी है, गरीबी कम- तो आंकड़े बदल जाएंगे.
वैसे तो शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे सभी पैमानों पर देश भर में स्थिति बेहतर हुई है लेकिन जो राज्य आगे हैं उनमें ज़्यादा विकास हुआ है और जो पिछड़े हैं उनमें कम.
इस तरह से देखा जाए तो अंतर बढ़ा है. यह अंतर इसलिए बढ़ा है क्योंकि संसाधनों का बंटवारा अब भी अमीर प्रांतों में ज़्यादा होता है और गरीब प्रांतों में कम.

गुजरात- कम विकसित

दूसरी बात यह है कि जो प्रशासन कितना अच्छा है इससे बहुत फ़र्क पड़ता है. जिन राज्यों में प्रशासन अच्छा है वहां विकास ज़्यादा हुआ है और जहां भ्रष्टाचार है या प्रशासन कमज़ोर है वहां विकास कम हुआ है.
नरेंद्र मोदी
समिति ने गुजरात को कम विकसित राज्य करार दिया है
क्लिक करें गुजरात को कम विकसित राज्यों की श्रेणी में शामिल इसलिए किया गया है क्योंकि लगातार यह बात सामने आ रही है कि सामाजिक-आर्थिक पैमानों- जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला शिक्षा, अनुसूचित जाति-जनजाति की स्थिति को लेकर गुजरात बहुत अच्छी स्थिति में नहीं है.
चूंकि यह सारे आधार राजन समिति के इंडेक्स में हैं इसलिए गुजरात को निचले दर्जे में रखा गया है.
यह भी कहा जाता है कि गुजरात मॉडल कॉर्पोरेट का पक्ष लेता है, गरीब का नहीं. चूंकि क्लिक करें मीडिया को भी कॉर्पोरेट सेक्टर ही नियंत्रित करता है इसलिए वह गुजरात क्लिक करें मॉडल की वाह-वाही कर रहा है.

विरोध

रिपोर्ट में विशेष राज्य का दर्जा ख़त्म करने की मांग इसलिए की गई है क्योंकि समिति का मानना है कि उसने दस पैमानों के आधार पर एक विकास का एक संपूर्ण ख़ाका खींच लिया है.
इसमें जो सबसे कम विकसित राज्य हैं वो पुराने ढंग से विशेष राज्य की स्थिति में आ जाएंगे.
समिति का कहना है कि जो कम विकसित राज्य हों उनको केंद्र से ज़्यादा पैसा मिले. जितना कम विकसित उतना ज़्यादा पैसा मिले.
जो राज्य तेजी से विकास करेगा उसे प्रोत्साहन देने के लिए और ज़्यादा पैसा दिया जाए ताकि पिछड़े राज्यों को अविकास के नाम पर पैसा लेने की आदत न पड़ जाए.
समिति के एक सदस्य शैवाल गुप्ता, जो क्लिक करें बिहार से हैं, ने असहमति का लंबा पत्र भी दिया है. 50 पेज की रिपोर्ट में 10 पेज असहमति का पत्र है.
उनका कहना है कि रिपोर्ट बहुत ज़्यादा व्यक्तिपरक है. उनका कहना है कि उपभोग के अंतर के बजाय आय के अंतर को इस्तेमाल किया जाना चाहिए था.
नीतीश कुमार
बिहार के मुख्यमंत्री ने इसे अपनी जीत बताया है
आय का अंतर उपभोग के अंतर से बहुत ज़्यादा होता है. इसलिए अगर आय को आधार बनाया जाए तो राज्यों की स्थिति हुत हद तक बदल सकती है.
वैसे ये रिपोर्ट अभी अंतिम नहीं है. इसे अध्ययन के लिए वित्त मंत्रालय को दिया गया है.
उसके अलावा जब राज्य इस रिपोर्ट का अध्ययन करेंगे तो कुछ और आपत्तियां आएंगी. क्योंकि जिन्हें कम मिलेगा वो ऐतराज़ करेंगे और जिन्हें ज़्यादा मिलेगा वो समर्थन करेंगे.

संवैधानिक नहीं है

इसमें कुछ भी नया या अनोखा नहीं है. पुराने आधार को नए आधार से बदलने के सुझाव दिए गए हैं.
इन्होंने जो बातें कही हैं वो वित्त आयोग की सिफ़ारिशों में आती रही हैं. चूंकि एक संवैधानिक संस्था, वित्त आयोग, अभी मौजूद है इसलिए ऐसी समिति बनाने का कोई मतलब नहीं था.
अगर वित्त मंत्रालय को ऐसी रिपोर्ट तैयार करवानी थी तो उसे वित्त आयोग की एक उप-समिति बनवाकर रिपोर्ट बनवानी चाहिए थी.
चूंकि वित्त आयोग में सभी राज्यों और केंद्र के प्रतिनिधि होते हैं इसलिए उसकी रिपोर्ट संघीय ढांचे के ज़्यादा अनुरूप होती.
ऐसा लगता है कि वित्त मंत्रालय इस रिपोर्ट के आधार पर अब वित्त आयोग पर इसी तरह की रिपोर्ट तैयार करने के लिए दबाव बनाएगा, जो सही नहीं होगा.

क्यों 'दाग़दार' हैं भारतीय नेताओं के दामन

क्यों 'दाग़दार' हैं भारतीय नेताओं के दामन

 शुक्रवार, 27 सितंबर, 2013 को 08:14 IST तक के समाचार

‘‘हमें इस बात पर सहमति बनाने की ज़रूरत है कि कैसे आपराधिक छवि वाले व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोका जाए.’’
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को चलाने के लिए ये सबसे बुनियादी ज़रूरत है और जब भारत की सबसे ताक़तवर राजनीतिज्ञ सोनिया गांधी ने तीन साल पहले ये बात कही थी तो विपक्षी दल बीजेपी ने भी इस बात पर सहमति जताई थी.
हालांकि तबसे लेकर अब तक स्थितियां विपरीत दिशा में ही आगे बढ़ती हुई नज़र आ रही हैं. असोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म्स के मुताबिक़ भारतीय संसद के एक तिहाई सदस्य दाग़ी हैं. इसी संगठन का कहना है कि दाग़ी रिकॉर्ड वाले उम्मीदवारों का चुना जाना ज़्यादा आसान होता है क्योंकि उनके पास वोट ख़रीदने के लिए नाजायज़ पैसा है.
मंगलवार को भारतीय मंत्रिपरिषद ने इस बात का पूरा इंतज़ाम कर लिया कि क़ानून बनाने वाले ख़ुद क़ानून की पकड़ से बच निकलें.
कैबिनेट ने एक क्लिक करें अध्यादेश के ज़रिए सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को पलट दिया है कहा गया था कि अगर किसी नेता को दो साल या उससे ज़्यादा की सज़ा होती है तो उसे चुनाव लड़ने के अयोग्य क़रार दिया जाए.
सरकार का तर्क है इसका मक़सद है कि शासन पर ‘विपरीत असर’ ना पड़े.

अभूतपूर्व तेज़ी

सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को पलट दिया है कहा गया था कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि किसी नेता को दो साल या उससे ज़्यादा की सज़ा होती है तो उसे चुनाव लड़ने के अयोग्य करार दिया जाए.
शायद सरकार सही है. दाग़ी राष्ट्रीय औऱ स्थानीय नेताओं के अयोग्य साबित होने से, जिनमें से कई पर हत्या, बलात्कार और धोखाधड़ी का आरोप है, नाज़ुक राजनैतिक गठबंधनों को नुक़सान पहुंचा सकता है जिससे क़ानून पारित करवा पाना और भी मुश्किल हो जाएगा.
सो अक्सर नकारेपन के आरोप झेलने वाली कैबिनेट ने इस बार अभूतपूर्व तेज़ी दिखाते हुए क़दम उठाया है.
ये तेज़ी शायद उन दो महत्वपूर्ण मामलों के लंबित नतीजों को देखते हुए दिखाई गई है जिनमें कुछ प्रमुख नेता शामिल हैं.
एक मामला पूर्व रेलवे मंत्री और कांग्रेस के सहयोगी दल के नेता लालू प्रसाद यादव का है जिन पर चारा घोटाले में शामिल होने का आरोप है.
वहीं दूसरे मामले में कांग्रेस सांसद राशिद मसूद का नाम है जिन्हे क्लिक करें भ्रष्टाचार के मामले में दोषी ठहराया गया है औऱ फ़ैसला अगले हफ्ते आना है. बीबीसी ने जब उनसे बात करने की कोशिश की तो उनके दफ्तर से जवाब आया कि उनकी तबीयत ख़राब है.
दाग़ी नेताओं के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले चंद लोगों में शामिल हैं सांसद बैजयंत पांडा जिन्होने सरकार के क़दम पर टिप्पणी करते हुए टविटर पर लिखा ‘‘पता नहीं इस पर ख़ुश हुआ जाए या रोया जाए.’’
केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री मिलिंद देवड़ा ने कैबिनेट अध्यादेश की आलोचना की है.
हालांकि इसके ख़िलाफ़ आवाज़ भी उठ रही है लेकिन ज़्यादा नहीं. भारतीयों को इस तरह के छल की आदत पड़ गई है.
16 दिसंबर को हुए दिल्ली बलात्कार कांड के बाद आई वर्मा कमेटी रिपोर्ट को तो भुला ही दिया गया है जिसमें यौन अपराधों के दोषी नेताओं को निकालने की बात कही गई थी. बलात्कार के दोषी छह नेता अपने पदों पर बने हुए हैं.
विपक्षी दल बीजेपी का कहना है कि वह कैबिनेट अध्यादेश का विरोध करेगी लेकिन उसका अपना दामन भी कम दाग़दार नही है. पार्टी के दाग़ी सासंदों और और विधायकों की संख्या कांग्रेस से कहीं ज़्यादा है.
ख़ासकर चुनावों से ठीक पहले तो कोई भी पार्टी ठोस सुधारों का जोखिम तो नहीं उठा सकती भले ही पहले उसने कितनी ही आवाज़ क्यों ना उठाई हो.
ऐसा नहीं है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में ही नेताओं पर सवालिया निशान हैं. ब्रिक्स देशों के दूसरे सदस्य देश जैसे ब्राज़ील में भी देश चलाने वालों पर अपराध करने के आरोप हैं.
अंतर ये है कि ब्राज़ील में राजनैतिक ताक़त के खुले दुरूपयोग ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया है.
लेकिन भारतीय सांसद बैजयंत पांडा कहते हैं कि ‘‘सभी लोकतांत्रिक देशों को इस तरह के दौर से गुज़रना पड़ता है. अमरीका को देखिए.’’
वे मानते हैं कि वोटर बदलाव की मांग करेंगे और ‘‘यह निर्लज्जता का अंतिम दौर है.’’

वो पांच अर्थव्यवस्थाएं जो भारी संकट में हैं

वो पांच अर्थव्यवस्थाएं जो भारी संकट में हैं

 शुक्रवार, 27 सितंबर, 2013 को 09:49 IST तक के समाचार

अमरीकी डॉलर
अमरीकी अर्थव्यवस्था अब सामान्य होने लगी है.
अमरीका के संघीय बैंक फ़ेड रिज़र्व के उपायों से देश की अर्थव्यवस्था अब सामान्य होने लगी है लेकिन इससे तेज़ी से उभरती दुनिया की पांच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं.
मोर्गन स्टेनली ने जिन्हें "द फ्रेजाइल फ़ाइव" (पांच कमज़ोर अर्थव्यवस्थाएं) कहा है, वो देश तब सबसे ज़्यादा संकट में होंगे जब फ़ेड रिजर्व अर्थव्यवस्था में पैसा डालना बंद कर देगा.
यह पांच देश हैं इंडोनेशिया, दक्षिण अफ़्रीका, ब्राज़ील, तुर्की और भारत.
इन पांचों में क्या बात समान है? इनमें समानता यह है कि इन सबके चालू खाते का घाटा, जो व्यापार में अंतर को नापता है, बहुत ज़्यादा है.
इसका मतलब यह हुआ कि यह देश विदेशों से होने वाले वित्तपोषण पर निर्भर हैं.

वापसी

ये देश बाहर से आने वाले पैसे का दिल खोलकर स्वागत करते रहे और अब जबकि आसानी से मिलने वाले पैसे का दौर ख़त्म हो रहा है, क्लिक करें निवेशक भी वापस जा रहे हैं.
मैंने पहले भी क्लिक करें मुद्रा की इस विख्यात वापसी के बारे में लिखा है.
इसके अलावा विदेशी निवेशक राजनीतिक खतरों को लेकर भी आशंकित हैं क्योंकि इन पांचों देशों में अगले साल चुनाव होने वाले हैं. इससे अनिश्चितता बढ़ती है.
शायद राहत की बात यह है कि इन अर्थव्यवस्थाओं के पास इस आसानी से उपलब्ध धन की अपरिहार्य वापसी से निपटने के लिए कुछ समय है.

अपरिहार्य

रुपया
भारत सहित उभरती अर्थव्यवस्थाएं फ़ेड रिज़र्व के फ़ैसले से काफी हद तक प्रभावित होंगी.
पहले के संकटों के विपरीत, जब पैसा तेजी से बाहर चला गया था, इस बार पैसे पर "अचानक विराम" नहीं लग रहा.
आखिर आर्थिक संकट को शुरु हुआ पांच साल हो गए हैं और क्लिक करें फ़ेड रिज़र्व अर्थव्यवस्था में हमेशा पैसा नहीं डाल सकता.
तो आसानी से आने वाले पैसे का वक़्त अगले महीने भी ख़त्म हो सकता है, दिसंबर में भी या शायद जनवरी में जब फ़ेड रिज़र्व के चेयरमैन बेन बर्नान्के अपना पद छोड़ेंगे.
अब अहम सवाल यह है कि क्या बाकी दुनिया को अपनी अर्थव्यवस्थाओं के इस अपरिहार्य के लिए तैयार होने का पर्याप्त समय मिला है.

पाकः आखिर शरीफ से क्या गलती हुई?

पाकः आखिर शरीफ से क्या गलती हुई?

 शुक्रवार, 27 सितंबर, 2013 को 11:20 IST तक के समाचार

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ
पाकिस्तान की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं और नवाज़ शरीफ की सरकार को लगता है कि लकवा मार गया है. तीन महीने पहले ही तो नवाज़ शरीफ उम्मीदों की लहर पर सवार होकर चुनाव जीते थे. लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर नवाज़ शरीफ से कहाँ चूक हो गई?
जब नवाज़ शरीफ प्रधानमंत्री बने थे उस वक़्त लोगों को लग रहा था कि वो पाकिस्तान को बड़ी मुश्किलों से निजात दिलाएंगे. ये मुश्किलें थीं बेकाबू चरमपंथ, चौतरफा संकट, गिरती हुई अर्थव्यवस्था, बिजली की कमी और कमजोर विदेश नीति.

इसके बजाय जोर पकड़ते चरमपंथ को लेकर लोगों की बढ़ती नाराज़गी के बोझ तले नवाज़ शरीफ बुरी तरह से लड़खड़ा गए हैं. मुल्क की आर्थिक हालत खस्ता है और उनकी सरकार लाचार दिख रही है.
यहाँ तक कि नौकरशाही के वरिष्ठ पद खाली हैं. सार्वजनिक निगमों के प्रमुखों की नियुक्ति नहीं की गई है और अमरीका और ब्रिटेन जैसे महत्वपूर्ण देशों में राजदूतों की तैनाती का इंतजार किया जा रहा है.
हालांकि सेना और चुनी हुई सरकार की साझीदारी को लेकर चल रही बातचीत के बहुत कम नतीजे सामने आए हैं. पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार इस बातचीत से सेना और चुनी हुई सरकार के एक ही जुबान में बात करने की उम्मीद की जा रही थी.
पाकिस्तान के राजनेताओं, विशेषज्ञों और सेना से हफ्तों तक चले लंबे सलाह मशविरे के बाद नवाज शरीफ ने नौ सितम्बर को पाकिस्तानी तालिबान की चुनौती से निपटने की रणनीति की घोषणा की.
इस नीति का पाकिस्तान के सभी राजनीतिक दलों ने समर्थन भी किया लेकिन ज्यादातर विशेषज्ञों और सेना ने इसे खारिज कर दिया.
शरीफ की सरकार ने तालिबान को चरमपंथी संगठन घोषित करने के बजाय साझीदार घोषित कर कहा कि तालिबान से बिना शर्त बातचीत के दरवाजे खोले जाएंगे. सरकार की ओर से बुलाई गई एक सर्वदलीय बैठक में भी अमरीका और नैटो को पाकिस्तान में चरमपंथ के लिए जिम्मेदार ठहराया गया.

तालिबान से बातचीत

इस पर तालिबान ने 30 से ज्यादा माँगों की अपनी सूची पेश की जिसमें पाकिस्तान में इस्लामी शरिया कानून लागू करना और देश के कबाइली इलाके से सेना वापस बुलाने जैसी माँगें भी शामिल थीं.
15 सितंबर को देश के सुदूर उत्तर-पश्चिमी इलाके में हुए जानलेवा बम धमाके में मेजर जनरल सनाउल्लाह खान नियाजी और एक कर्नल की मौत हो गई. तालिबान ने इन हमलों की जिम्मेदारी ली और ठीक इसी दिन चार अलग अलग हमलों में सात सैनिक मारे गए.

तालिबान लड़ाके
इससे पहले सेना प्रमुख जनरल परवेज़ कयानी ने नवाज़ शरीफ को आत्मसमर्पण करने वाली रणनीति न अपनाने के लिए चेताया था. अब उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कहा है कि सेना तालिबान को शांति की शर्तें तय करने की इजाजत नहीं देगी. कयानी ने कहा, "किसी को इस बात पर संदेह नहीं होना चाहिए कि हम चरमपंथियों को इस बात का मौका देंगे कि वे हमें अपनी शर्तों पर मजबूर करें."
इसके बाद रविवार को पेशावर के एक चर्च में धमाका हुआ जिसमें 80 लोग मारे गए और तकरीबन 130 लोग घायल हो गए. इस हमले ने भी शरीफ की कोशिशों को पलीता लगा दिया.
पश्चिमी देशों को अपनी योजना से प्रभावित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की बैठक में जाते वक्त नवाज़ शरीफ को कुछ बड़े बदलाव करने थे.
लंदन पहुँचते ही उन्होंने पहली बार कहा कि मुमकिन है तालिबान के साथ बातचीत का विचार सभी लोगों को पसंद न आए. लेकिन इसके बाद उनका अगला कदम क्या होगा ये उनके करीबी सहयोगी भी नहीं कह सकते हैं.
विशेषज्ञों ने उन्हें बताया था कि चरमपंथ से मुकाबले के लिए व्यापक रणनीति में बातचीत का सुनियोजित विकल्प, ताकत का इस्तेमाल, आर्थिक विकास और दूसरे उपायों में शामिल किया जा सकता है.
अब इस बात की उम्मीद की जा रही है कि तालिबान अपने हमलों में इजाफा करेंगे क्योंकि उन्हें लगता है कि सरकार कमजोर है, मछली की तरह छटपटा रही है और डरी हुई है.
बलूचिस्तान प्रांत में अलगाववादियों के साथ बातचीत शुरू करने के मसले पर भी इसी दिशाहीनता और धीमी रफ्तार ने नवाज़ शरीफ को अपना वादा पूरा करने से रोक रखा है.
कराची का हाल भी कुछ कुछ ऐसा ही है. इस बंदरगाह शहर को सशस्त्र गुटों ने बेहाल कर रखा है. हालांकि उनसे निपटने की सुरक्षा बलों की कार्रवाई चल रही है लेकिन इसके नतीजे आने अभी बाकी हैं.

भारत से रिश्ते

भारत के साथ रिश्ते सुधारने को लेकर सेना और नवाज़ शरीफ के बीच भी कोई सहमति नहीं दिखाई देती है कि इसे कितनी तेजी से आगे बढ़ाया जाए.
नवाज़ शरीफ ने जून में ही भारत से संपर्क करने की कोशिश की थी लेकिन भारत की ओर से कहा गया कि उन्हें कुछ मुद्दे सुलझाने होंगे.
इनमें भारत के लिए 'सर्वाधिक वरीयता वाले देश' के दर्जे की माँग, मुंबई हमलों में कथित तौर पर शामिल लश्कर-ए-तैयबा के सात चरमपंथियों की जल्द सुनवाई और हाफिज़ सईद पर लगाम लगाने की माँग शामिल हैं.
भारत ने पाकिस्तान को पहले ही 'सर्वाधिक वरीयता वाले देश' का दर्जा दे रखा है.

भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
भारत की सशर्त बातचीत की पेशकश को पाकिस्तान की सेना ज्यादा तवज्जो नहीं देती. सेना का कहना है कि भारत कश्मीर जैसे विवादास्पद मुद्दों सहित बाकी तमाम मसलों पर समग्र बातचीत की शुरुआत करे. सेना ने नवाज़ शरीफ से कहा है कि वो जरूरत से ज्यादा तेजी से भारत को लेकर आगे बढ़ रहे हैं.
हालांकि 10 साल के अंतराल के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर गोली-बारी का सिलसिला जारी है. इस साल, ऐसी झड़पों में दोनों देशों के दर्जनों सिपाही और आम लोग मारे गए हैं.
हाफिज सईद पर खुफिया एजेंसियों का तगड़ा नियंत्रण है और सितंबर की शुरुआत में उन्हें राजधानी इस्लामाबाद में भारत विरोधी एक बड़ी रैली करने की इजाजत दी गई.
इस बीच लंबी हिचकिचाहट के बाद भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने न्यूयॉर्क में चल रही संयुक्त राष्ट्र की बैठक के दौरान नवाज शरीफ से मिलने पर सहमत हो गए हैं लेकिन भारतीय विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा है कि "हमें कुछ नतीजे चाहिए."

भारतीय जूरी को ऑस्कर की समझ नहीं: रितेश बत्रा

भारतीय जूरी को ऑस्कर की समझ नहीं: रितेश बत्रा

 शुक्रवार, 27 सितंबर, 2013 को 08:17 IST तक के समाचार

लंच बॉक्स
भारत की ओर से ऑस्कर पुरस्कारों के लिए भेजी जाने वाली फ़िल्मों को लेकर विवाद होना अब कोई नई बात नहीं रह गई.
पिछले साल अगर लोगों ने 'बर्फ़ी' पर ऊंगली उठाई तो इस साल कुछ लोग इस बात से ख़फ़ा हैं कि 'लंच बॉक्स' के बजाए गुजराती फ़िल्म 'द गुड रोड' को ऑस्कर के लिए भारत की आधिकारिक फ़िल्म के रुप में क्यों भेजा जा रहा है.
 'लंच बॉक्स' के निर्देशक रितेश बत्रा से और पूछा कि क्या उनकी फ़िल्म 'लंच बॉक्स' और ज्ञान कोरिया की फ़िल्म 'द गुड रोड' के बीच छिड़ गई है एक जंग.
रितेश कहते हैं, ''जब भी कभी ऐसा कोई विवाद होता हैं तो फ़िल्मकारों को आगे कर दिया जाता है लेकिन वास्तव में यह सिस्टम की असफलता है. हमारी जूरी को इस बात की समझ ही नहीं है कि किस तरह की फ़िल्म को ऑस्कर पुरस्कारों के लिए भेजा जाए.''

अपार सफलता

निम्रत कौर
फ़िल्म में निम्रत कौर के अभिनय को खूब सराहा जा रहा है.
 रितेश कहते हैं, ''लंच बॉक्स को ऑस्कर में भेजने की चर्चा हमने नहीं शुरू की थी. ये फ़िल्म टेलुराइड फ़िल्म फ़ेस्टिवल में दिखाई गई और फिर हम टोरंटो गए. वहां दर्शकों ने इस फ़िल्म को बहुत पसंद किया.''
अपनी बात को पूरा करते हुए वो कहते हैं, ''इतना ही नहीं पिछले 21 सालों से ऑस्कर के पूर्वानुमान कर रहे जाने माने फ़िल्म समीक्षक स्कॉट फ़ाइनबर्ग ने कहा कि अगर भारत ऑस्कर में लंच बॉक्स को भेजता है तो यह विदेश फ़िल्मों की श्रेणी में अग्रणी रहेगी. टेलूराइड और टोरंटो फ़िल्म महोत्सव को रोड टू दि ऑस्कर कहा जाता है. हम तो ऑस्कर की इस रोड पर सही जा रहे थे. लेकिन देसी जूरी ने हमारी राह ही रोक दी.''
रितेश मानते हैं कि ऑस्कर के लिए नाम भेजने वाली कमेटी ने इन बातों पर विचार ही नहीं किया. और जूरी के इस क़दम से लंच बॉक्स का ही नहीं बल्कि दि गुड रोड का भी नुक़सान हुआ है.

अभियान ज़रूरी है

लंच बॉक्स
लंच बॉक्स में इरफ़ान खान और नवाज़ूद्दीन सद्दीकी के बीच की केमिस्ट्री को बहुत पसंद किया जा रहा है
लंच बॉक्स का नुक़सान हुआ ये तो माना लेकिन दि गुड रोड का क्या नुक़सान हुआ है? बीबीसी के इस सवाल का जवाब देते हुए रितेश कहते हैं, ''ऑस्कर में फ़िल्म के लिए एक अभियान चलाना पड़ता हैं. हमारी फ़िल्म को सोनी पिक्चर्स ने ख़रीदा है और वो हमारे लिए ऑस्कर में अभियान चलाने के लिए भी तैयार थे. सोनी का रिकार्ड बहुत अच्छा रहा है. वो एक अमरीकी वितरक भी है. पिछले साल उन्होंने आमोर को प्रमोट किया था. आमोर ने ऑस्कर जीता. क्या एनएफ़डीसी द गुड रोड के लिए अभियान चलाएगा?''
रितेश कहते हैं कि उनकी फ़िल्म भारत के लिए ऑस्कर जीत सकती थी लेकिन उन्हें आगे नहीं जाने दिया.
रितेश को जूरी से भले ही कितनी ही शिकायत क्यों न हो लेकिन वो ये बात स्वीकारते ज़रा नहीं हिचके कि ज्ञान कोरिया की फ़िल्म द गुड रोड एक बहुत ही अच्छी फ़िल्म है.

ऑस्कर की ज़रूरत

लंच बॉक्स
लंच बॉक्स को समीक्षकों और दर्शकों दोनों का ही प्यार मिल रहा है.
रितेश बत्रा ये मानते हैं कि भारत को ऑस्कर की ज़रूरत है. रितेश कि इस सोच के पीछे कोई ख़ास वजह?
इस सवाल का जवाब देते हुए रितेश कहते हैं, ''कुछ लोग सोचते हैं कि हमें ऑस्कर जैसे किसी पुरस्कार की ज़रूरत नहीं है. लेकिन मुझे लगता है कि भारत को ऑस्कर की ज़रूरत इसलिए है ताकि हमारी फ़िल्मों के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार खुले.''
वो कहते हैं, ''आर्जनटीना में बनने वाली फ़िल्मों के साथ ठीक यही हुआ. उनकी एक फ़िल्म ने जब ऑस्कर जीता तो उनकी फ़िल्में विश्व भर में जाने लगी.''

'पाकिस्तान आइडल' का चरमपंथियों से सामना

'पाकिस्तान आइडल' का चरमपंथियों से सामना

 गुरुवार, 26 सितंबर, 2013 को 16:46 IST तक के समाचार

पाकिस्तान आइडल
'अमरीकन आइडल' कार्यक्रम के पाकिस्तानी संस्करण के निर्माता इस कार्यक्रम को चरमपंथ प्रभावित क्षेत्रों तक ले जाने की योजना बना रहे हैं.
यह एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है क्योंकि पश्चिमोत्तर ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह प्रांत की राजधानी पेशावर, दक्षिण पश्चिमी प्रांत बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा जैसे शहरों में संगीतकारों को इस्लामी चरमपंथी समूहों से मौत की धमकियां मिलती रहती हैं.
हालांकि कार्यक्रम निर्माताओं का मानना है कि क्वेटा और पेशावर के संगीत को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता इसलिए उन्होंने वहां शुरुआती ऑडिशन करने का फ़ैसला किया है.
ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह में संगीत की शानदार परंपरा क्षेत्र में तालिबान के उदय के कारण दब गई थी.

रक्तरंजित मंच

ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह में साल 2002 में धार्मिक गठबंधन मुत्ताहिदा मजलिस-ए-अमल की सरकार बनने के बाद वहां संगीत पर सार्वजनिक रूप से क्लिक करें पाबंदी लगा दी गई. सिनेमाघरों पर ताले लगा दिए गए. और संगीत से जुड़ी चीज़ें बेचने वाली दुकानें जबरन बंद करा दी गईं.
पाकिस्तान आइडल
सभी तस्वीरें फ़ेसबुक और जियो टीवी के सौजन्य से
ऐसे में बहुत से कलाकारों ने या तो अपने संगीत की शैली बदल ली या फिर इस पेशे को ही छोड़ दिया. कुछ तो देश छोड़कर चले गए और दूसरे देशों में जाकर राजनीतिक शरण की मांग की. जो क्षेत्र में और पेशे में क़ायम रहे उन्हें धमकियां मिलती रहीं.
जनवरी, 2009 में क्लिक करें तालिबान ने एक पख़्तून गायिका और नर्तकी की हत्या कर दी और उनके शव को बिजली के खंभे से टांग दिया. कुछ महीने बाद उसी कबाइली इलाक़े में एक गायिका की गोली मारकर हत्या कर दी गई.
बताया जाता है कि सरकारी टीवी पर कार्यक्रम पेश कर चुकीं पेशावर की एयमन उदास की हत्या उन्हीं के रिश्तेदारों ने की क्योंकि वो नहीं चाहते थे कि वे संगीत के क्षेत्र में रहें. एक अलगाववादी समूह के लिए एलबम रिकॉर्ड करने वाले एक बलूच गायक इसी अगस्त में मृत पाए गए थे.
क्लिक करें पेशावर और क्वेटा में हाल ही के वक्त की कुछ सबसे हिंसक घटनाएं हुई हैं. इसी 22 सितंबर को पेशावर में एक चर्च के बाहर हुए दोहरे आत्मघाती बम हमले में 80 से ज़्यादा लोग मारे गए थे.
पिछले महीने क्लिक करें क्वेटा में एक अंत्येष्टि के दौरान हुए आत्मघाती विस्फ़ोट में 30 से ज़्यादा पुलिसकर्मी मारे गए थे.

बुर्क़ा एवेंजर

पाकिस्तान आइडल
माना जा रहा है कि 'जियो एंटरटेनमेंट' चैनल इस साल के अंत में 'पाकिस्तान आइडल' कार्यक्रम को पेश करेगा.
चैनल के प्रबंध निदेशक आसिफ़ रज़ा मीर कहते हैं कि नेटवर्क को क्वेटा और पेशावर में ख़तरों का अंदेशा है.
वह कहते हैं, "हम अपने प्रतिभागियों, जजों और कर्मचारियों को सुरक्षा प्रदान करेंगे."
चेंज डॉट ओआरजी वेबसाइट पर एक अपील जारी की जा चुकी है, "जियो टीवो को पाकिस्तान आइडल का प्रसारण करने से रोको क्योंकि यह हमारी धार्मिक मान्यताओं के ख़िलाफ़ है."
जियो नेटवर्क अगस्त में भी उस समय चर्चा में आया था जब उसने एक एनिमेटेड सिरीज़ बुर्क़ा एवेंजर शुरू की थी.
इसमें बुर्क़ा पहने एक शिक्षिका उन बदमाशों का मुक़ाबला करती हैं जो लड़कियों के उस स्कूल का विरोध करते हैं जिसमें वह पढ़ाती हैं.
इस एनिमेटेड सिरीज़ को तालिबान के लिए एक चुनौती के रूप में देखा गया जो पाकिस्तान के कबाइली इलाक़ों में स्कूलों पर हमला कर रहा है.

मार्टिन लूथर किंग की भी जासूसी हुई थी

मार्टिन लूथर किंग की भी जासूसी हुई थी

 गुरुवार, 26 सितंबर, 2013 को 15:17 IST तक के समाचार

किंग, जॉनसन और यंग
वियतनाम युद्ध में अमरीका की भूमिका को लेकर हुए भारी विरोध के वक्त अमरीका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) ने मानवाधिकार कार्यकर्ता मार्टिन लूथर किंग और प्रसिद्ध मुक्केबाज मोहम्मद अली की जासूसी की थी, गुप्त सूची से हटाए गए दस्तावेज़ों से ये पता चला है.
दस्तावेजों के मुताबिक एनएसए ने न्यूयॉर्क टाइम्स और वॉशिंगटन पोस्ट के पत्रकारों के अलावा दो सीनेटरों की भी जासूसी की थी. बाद में एनएसए के कुछ अधिकारियों ने इस जासूसी को "अशोभनीय" करार दिया था.
'मिनारेट' नाम के इस अभियान का पता तो 1970 के दशक में चल गया था लेकिन इस अभियान में जिन लोगों के फोन टैप किए गए, उनके नाम अब तक गुप्त रखे गए थे.
एक सरकारी पैनल के जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के पक्ष में फैसला देने के बाद इन गोपनीय दस्तावेजों को प्रकाशित किया गया.
विश्वविद्यालय का क्लिक करें नेशनल सिक्योरिटी आर्काइव सरकार के गोपनीय कामों पर नज़र रखने वाला शोध संस्थान है. संस्थान का कहना है कि एनएसए की निगरानी सूची को देखकर वे अचंभित रह गए.
इस सूची में मार्टिन लूथर किंग और व्हिटनी यंग के अलावा मुहम्मद अली, न्यूयॉर्क टाइम्स के पत्रकार टॉम विकर और वॉशिंगटन पोस्ट के स्तंभकार आर्ट बुचवाल्ड के नाम शामिल थे.
एनएसए ने अमरीका के दो वरिष्ठ सीनेटरों- डेमोक्रेट सीनेटर फ्रैंक चर्च और रिपब्लिकन सीनेटर होवार्ड बेकर के दूसरे देशों को किए गए फोन कॉल की भी निगरानी की.

विरोध का डर

स्नोडन, खुफिया, एजेंसी, निगरानी
अमरीकी खुफिया एजेंसियों के जानकारी इकट्ठा करने के तरीकों के बारे में एडवर्ड स्नोडन ने खुलासा किया था.
एनएसए की निगरानी में शामिल किए गए अधिकतर वे लोग थे जिन्होंने वियतनाम में अमरीकी हस्तक्षेप की आलोचना की थी.
साल 1967 के विरोध प्रदर्शन को देखते हुए राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने अमरीकी खुफिया एजेंसियों से इस बात की जांच करने को कहा था कि क्या कुछ प्रदर्शनों की आग को विदेशी सरकारें भड़का रही हैं.
"एनएसए के घरेलू निगरानी कार्यक्रम को लेकर हाल ही के रहस्योद्घाटन जितने भी चौंकाने वाले लगें, अब तक ऐसे सबूत नहीं मिले हैं कि आज की सिग्नल इंटेलीजेंस कोर ने व्हाइट हाउस के राजनीतिक दुश्मनों की निगरानी के लिए इस तरह का कोई कदम उठाया हो. "
मैथ्यू एड और विलियम बर, शोधकर्ता
एनएसए ने युद्ध के विरोधियों की सूची तैयार करने और उनके टेलीफोन टैप करने में दूसरी खुफिया एजेंसियों से मिलकर काम किया.
साल 1969 में रिचर्ड निक्सन के राष्ट्रपति बनने के बाद भी यह कार्यक्रम जारी रहा. जब निक्सन प्रशासन वाटर गेट घोटाले में फंसा हुआ था उसी दौरान साल 1973 में अमरीकी अटॉर्नी जनरल एलियट रिचर्डसन ने इस निगरानी कार्यक्रम को बंद कर दिया.
ये ताज़ा रहस्योद्घाटन उस वक्त हुए हैं जब एनएसए के विवादित निगरानी कार्यक्रमों को लेकर बहस चल रही है.
हाल में अमरीकी खुफिया एजेंसियों के दुनिया भर के लोगों के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के तरीकों के बारे में एडवर्ड स्नोडन ने खुलासा किया था.
बुधवार को इन दस्तावेजों को प्रकाशित करने वाले शोधकर्ता मैथ्यू एड और विलियम बर ने कहा कि अभी की तुलना में वियतनाम युद्ध के वक्त की जा रही जासूसी काफी व्यापक थी.

ब्लैकबेरी ख़रीदने चला कौन है यह भारतीय?

ब्लैकबेरी ख़रीदने चला कौन है यह भारतीय?

 बुधवार, 25 सितंबर, 2013 को 11:31 IST तक के समाचार

जब दुनिया भर के विश्लेषक ब्लैकबेरी के दिन बीतने की बात कर रहे हैं तब इस स्मार्टफ़ोन पर अरबों रुपयों का दांव एक भारतीय ने लगाने का फ़ैसला किया है.
क़रीब 294 अरब रूपए में क्लिक करें ब्लैकबेरी को ख़रीदने का प्रस्ताव देने वाली कंपनी फ़ैयरफ़ैक्स फ़ाइनेंशियल होल्डिंग्स के संस्थापक, अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं प्रेम वत्स.
63 साल के प्रेम वत्स का जन्म 1950 में हैदराबाद में हुआ था. उनका बचपन हैदराबाद में ही गुज़रा. बाद में आईआईटी मद्रास से उन्होंने केमिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की.
इसके बाद वत्स 1972 में लंदन चले गए. इसके बाद पिता के कहने पर वे कनाडा पहुंचे और वहीं से वेस्टर्न यूनिवर्सिटी से एमबीए की डिग्री ली.
इसके बाद प्रेम ने कनाडा के फ़ाइनेंस सेक्टर में अपने क़दम जमाने शुरू किए जो आज मज़बूती से जमे हुए हैं. 1985 में उन्होंने फ़ेयरफैक्स फ़ाइनेंशियल होल्डिंग्स की कमान संभाली.

कनाडा का 'वॉरेन बफ़ेट'

उन्हें लोग कनाडा का वॉरेन बफ़ेट कह कर बुलाते हैं. इसकी वजह यह है कि प्रेम ने अब तक निवेश का वही तरीक़ा अपनाया है जो वॉरेन बफ़े की ख़ासियत रही है. अमरीकी अरबपति कारोबारी वॉरेन बफ़ेट ने बर्केशायर हाथवे इंक की स्थापना कर बीमा कंपनियों में निवेश करके भारी मुनाफ़ा कमाया.
ठीक उसी तर्ज़ पर प्रेम वत्स उन कंपनियों में निवेश करते रहे हैं जिसमें दूसरे इंवेस्टर निवेश करने से घबराते हैं. प्रेम वत्स ने अब तक अपने करियर में डाउन मार्केट और आउट ऑफ़ स्टॉक कंपनियों में ज्यादा निवेश किया है.

ब्लैकबेरी पर भरोसा

प्रेम वत्स हमेशा से ब्लैकबेरी का बचाव करते रहे. उन्हें इस बात का भरोसा है कि क्लिक करें ब्लैकबेरी अभी भी बाज़ार में ज़ोरदार वापसी कर सकती है.
उनकी कंपनी फ़ेयरफ़ैक्स फ़ाइनेंशियल ब्लैकबेरी की तीसरी सबसे बड़ी निवेशक थी. इस साल अगस्त तक प्रेम वत्स ब्लैकबेरी के निदेशक मंडल में शामिल थे.
उन्होंने ब्लैकबेरी पर नियंत्रण के मुद्दे पर कहा है, "इस सौदे से ब्लैकबेरी, इसके उपभोक्ताओं और कर्मचारियों के लिए एक नया अध्याय खुलने वाला है."
हालांकि प्रेम वत्स के सामने बेहद मुश्किल चुनौती है.
एक दौर था जब वाटरलू, ओंटारियो स्थित ब्लैकबेरी के फ़ोन का अपना जादू था. ख़ास तौर पर बीबीएम (ब्लैकबेरी मैसेजिंग) तो बेहद लोकप्रिय हुआ था, क्योंकि इसमें निजी ई-मेल की पुख्ता सुरक्षा गारंटी थी.

मुश्किल चुनौती

लेकिन ब्लैकबेरी अपनी बढ़त को क़ायम नहीं रख सका. ऐपल के आईफ़ोन और गूगल के एंड्रायड ऑपरेटिंग सिस्टम पर चलने वाले स्मार्ट फ़ोन के सामने ब्लैक बेरी पिछड़ता गया.
फ़ोन की ब्रिकी में गिरावट के चलते ब्लैकबेरी को एक अरब डॉलर के नुक़सान का अनुमान है. पिछले सप्ताह ही कंपनी ने 4500 कर्मचारियों की छंटनी का फ़ैसला लिया था.
ऐसे में प्रेम वत्स के लिए आने वाले दिन बेहद चुनौती भरे हो सकते हैं.

लो प्रोफ़ाइल प्रेम

वैसे प्रेम वत्स की एक बड़ी ख़ासियत ये भी है कि वो बेहद कम आमदनी में अपना गुज़ारा चला लेते हैं. दूसरे अरबपतियों के मुक़ाबले में वे अपनी कंपनी से कम वेतन लेते हैं. यही वजह है कि तमाम उपलब्धियों और कंपनी को मोटा मोनाफ़ा दिलाने के बाद भी प्रेम वत्स कनाडा के सबसे अमीर आदमियों में 102वें नंबर पर आते हैं. 2012 के वित्तीय साल में उनका कुल वेतन 6.22 लाख डॉलर (क़रीब 40 करोड़ रुपए) रहा था.
इतना ही नहीं दुनिया के जाने माने निवेशक होने के बाद भी वे बेहद लो प्रोफ़ाइल में रहना पसंद करते है. 1985 से फ़ेयरफ़ैक्स की कमान संभालने के बाद अगले 15 सालों तक उन्होंने कभी मीडिया से बात नहीं की. 2001 से पहले वे निवेशकों की बैठकों में शामिल होने से बचते रहे.

सटीक होगा दांव?

लेकिन बाज़ार के आकलन और निवेश के मसले पर प्रेम वत्स का अंदाज़ा सही बैठता रहा. 1987 में दुनिया भर के शेयर बाज़ारों में आई गिरावट, 1990 में जापान का संकट और 2008 के आर्थिक मंदी के दौरान उनका अंदाज़ा हमेशा सटीक साबित हुआ.
ऐसे में कारोबारी दुनिया में यही सवाल तैर रहा है कि क्या इस बार प्रेम वत्स का दांव सटीक साबित होगा?

माथे पर उगी नाक

माथे पर उगी नाक

 शुक्रवार, 27 सितंबर, 2013 को 10:48 IST तक के समाचार

चीन में डॉक्टरों ने सर्जरी के ज़रिए एक मरीज़ के माथे पर नाक उगाई है. मरीज़ की असली नाक पिछले साल एक सड़क हादसे में क्षतिग्रस्त हो गई थी.
मरीज़ के माथे पर जब नई नाक पूरी तरह से उग जाएगी, तब उसे एक बार फिर सर्जरी के ज़रिए नाक के वास्तविक स्थान पर प्रत्यापित कर दिया जाएगा.
सड़क हादसे के बाद 22 वर्षीय शिओलियन ने अपनी चोटिल नाक की देखभाल ठीक से नहीं की थी जिस वजह से उनकी नाक संक्रमित हो गयी थी.
संक्रमण इतनी बुरी तरह से फैल गया था कि डॉक्टर उनकी नाक नहीं बचा पाए थे.

प्रयोग

इसके बाद क्लिक करें चीन के फूजियान प्रांत में डॉक्टरों ने फैसला किया कि शिओलियन के लिए नई क्लिक करें नाक ही उगा दी जाए.
फूज़ाउ के एक अस्पताल में डॉक्टरों ने यह प्रयोग किया.
शिओलियन के माथे की त्वचा की निचली परतों में कोशिकाओं और उन्हीं के सीने की क्लिक करें हड्डियों के अंश से बनी नाक के ढांचे को प्रत्यापित किया गया.
सर्जनों का कहना है कि शिओलियन की दूसरी नाक पूरी तरह से ठीक है और कुछ ही दिनों में उसे माथे से हटाकर सही जगह पर प्रत्यापित कर दिया जाएगा.

'दाग़ी नेताओं' पर अध्यादेश को फाड़ दोः राहुल

'दाग़ी नेताओं' पर अध्यादेश को फाड़ दोः राहुल

 शुक्रवार, 27 सितंबर, 2013 को 15:01 IST तक के समाचार

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने 'दांग़ी सांसदों और विधायकों' पर लाए गए यूपीए सरकार के अध्यादेश को 'बकवास' करार देते हुए कहा है कि इसे फ़ाडकर फेंक देना चाहिए.
दिल्ली में आनन फानन में बुलाई गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा कि कांग्रेस समेत सारी पार्टियों को राजनीति के नाम पर ऐसा करना बंद करना चाहिए.
यूपीए सरकार कुछ दिन पहले अध्यादेश लेकर आई है जिसमें कहा गया है कि कुछ शर्तों के तहत अदालत में दोषी पाए जाने के बाद भी सांसदों और विधायकों को अयोग्य क़रार नहीं दिया जा सकेगा.
इससे पहले क्लिक करें केंद्रीय संचार राज्य मंत्री मिलिंद देवड़ा ने क्लिक करें 'दाग़ी' नेताओं को राहत देने वाले सरकार के अध्यादेश की आलोचना की थी.

बंद करने होंगे समझौते

राहुल गांधी ने शुक्रवार को एक संक्षिप्त संवाददाता सम्मेलन के दौरान कहा कहा, "इस अध्यादेश के बारे में मेरी राय यह है कि यह पूरी तरह से बेतुका है और इसे फाड़कर फेंक देना चाहिए. अध्यादेश के बारे में यह मेरी व्यक्तिगत राय है."
इसके बाद उन्होंने अपने इस बयान को एक बार फिर दोहराया.
"इस अध्यादेश के बारे में मेरी राय यह है कि यह पूरी तरह से बेतुका है और इसे फाड़कर फेंक देना चाहिए."
राहुल गांधी, कांग्रेस उपाध्यक्ष
राहुल गांधी ने कहा, "इस देश में लोग अगर वास्तव में भ्रष्टाचार से लड़ना चाहते हैं तो हम ऐसे छोटे समझौते नहीं कर सकते हैं."
राहुल गांधी का कहना था कि जब हम एक छोटा समझौता करते हैं तो हम हर तरह के समझौते करने लगते हैं.

सरकार की गलती

अपनी बात रखते हुए राहुल गांधी बोले, "इस क्लिक करें अध्यादेश के लिए मेरे संगठन में जो दलील दी जा रही है वह यह है कि 'हमें ऐसा करने की ज़रूरत इसलिए है क्योंकि इस पर एक राजनीतिक सहमति है.' अब समय आ गया है कि इस बेतुके काम को रोका जाए."
उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि "कौन क्या कर रहा है, इससे मुझे मतलब नहीं है. मुझे इससे मतलब है कि क्लिक करें कांग्रेस पार्टी क्या रही है? मुझे इसमें रुचि है कि मेरी सरकार क्या कर रही है और जहां तक इस अध्यादेश का सवाल है तो मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि मेरी सरकार ने गलत किया है."

प्रधानमंत्री की बारी

राहुल गांधी के इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए एक समाचार चैनल से भाजपा के वरिष्ठ नेता क्लिक करें अरुण जेटली ने कहा कि प्रधानमंत्री के फैसले को बेतुका कहा गया है और अब देखना है कि प्रधानमंत्री अपने फैसले का बचाव किस तरह करते हैं.

पाकिस्तान में भूकंप के बाद उग आया नया टापू

पाकिस्तान में भूकंप के बाद उग आया नया टापू

 शुक्रवार, 27 सितंबर, 2013 को 01:15 IST तक के समाचार

पाकिस्तान के लोगों के लिए मंगलवार का दिन दहशत पैदा करने वाला था. इस दिन आए तेज भूकंप ने लोगों को झकझोर कर रख दिया वहीं इस भूकंप के बाद तटीय शहर ग्वादर से मात्र एक किमी की दूरी पर समुद्र में एक टापू बन जाने से वे अचंभित हो गए.
इसके बाद सूचना पाकर इस टापू पर पहुंचे एक स्थानीय पत्रकार बहराम बलोच और उनके कुछ साथी बुधवार की सुबह इस टापू पर उतरे.
उन्होंने कहा, ''अंडे के आकार का यह टापू करीब 250 से 300 फीट लंबा और पानी की सतह से करीब 60-70 फीट ऊपर है.''
इसकी सतह खुरदुरी है और अधिकतर क्षेत्र में कीचड़ है. कुछ क्षेत्रों में रेत में है. इसके एक क्षेत्र में ठोस चट्टान है और वहीं पर बलोच और उनके दोस्त उतरे थे.
बलोच ने बताया कि सतह पर मरी हुई मछलियां हैं जबकि दूसरे इलाके में गैस के उड़ने की आवाज सुनी जा सकती है. हालांकि इस गैस से मीथेन जैसी महक नहीं आ रही है. लेकिन माचिस की जलती तिल्ली को इस गैस के संपर्क में लाया गया तो उसमें आग लग गई. बड़ी मुश्किल से आग को बुझाया जा सका.
इस घटना के बाद ग्वादर में एक घटना की चर्चा जोरों पर है. बुजुर्गों के मुताबिक करीब 60 से 70 साल पहले एक ऐसी ही घटना हुई थी जिसमें एक टापू का निर्माण हुआ था जिसे ज़लाला कोह नाम दिया गया था. इस कहानी को पूरी तरह से गलत नहीं करार दिया जा सकता है, क्योंकि 1945 में एक ग्वादर से 100 किमी पूरब में इसी तटीय क्षेत्र में भूकंप आया था, जिसे मक्रान कहा जाता है.
पूरब से पश्चिम तक करीब 700 किमी लंबे मक्रान तट को भूकंप की दृष्टि से ख़तरनाक ज़ोन माना जाता है.
कराची स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओसिनोग्राफी के महानिदेशक राशिद तब्रेजा ने कहा कि इस क्षेत्र में भूकंपीय गतिविधियों के कारण ऊर्जा के उत्सर्जन को देखते हुए समुद्र के तल में ज्वलनशील गैस होने की बात को बल मिलता है. उन्होंने कहा, ''मक्रान तट के पास समुद्र के तल में भारी मात्रा में गैस दबा हुआ है.''
ग्वादर के पास 1945 के बाद से यह चौथा द्वीप है. पिछले 15 साल में इस तरह से बना यह तीसरा टापू है. साल 1999 और फिर 2010 में ओरमाना के तट पर हिंगोल नदी के डेल्टा के बिल्कुल नीचे एक किमी के दायरे में ये टापू बने थे.
इस क्षेत्र के एक सबसे चर्चित ज्वालामुखी चंद्रगुप हिंगोल नदी के करीब यहीं पर स्थित है. यह हिंदुओं का एक पवित्र स्थल है. यहां पर हिंग्लाज के गुफा में स्थित मंदिर में वे हर साल अप्रैल में पूजा करते हैं

Now Voter has right to Reject voting: SC Order

Now Voter has right to Reject voting: SC Order


  • Supreme Court on Friday directed the Election Commission to include negative voting in the electronic voting machines (EVMs) by allowing voters to select none among the options. File photo
    The Hindu Supreme Court on Friday directed the Election Commission to include negative voting in the electronic voting machines (EVMs) by allowing voters to select none among the options. File photo
  • Supreme Court on Friday directed the Election Commission to include negative voting in the electronic voting machines (EVMs) by allowing voters to select none among the options. File photo
    The Hindu Supreme Court on Friday directed the Election Commission to include negative voting in the electronic voting machines (EVMs) by allowing voters to select none among the options. File photo
In a landmark verdict, the Supreme Court on Friday held that citizens have right to cast negative vote rejecting all candidates contesting polls, a decision which would encourage people not satisfied with contestants to turn up for voting.
The apex court directed the Election Commission to provide ‘none of the above options’ at the end of the list of candidates in electronic voting machines (EVMs) and ballot papers to allow voters to reject those contesting polls.
A bench headed by Chief Justice P Sathasivam said that negative voting would foster purity and vibrancy of elections and ensure wide participation as people who are not satisfied with the candidates in the fray would also turn up to express their opinion rejecting contestants.
It said that the concept of negative voting would bring a systemic change in the election process as the political parties will be forced to project clean candidates in polls.
The bench noted that the concept of negative voting is prevalent in 13 countries and even in India, parliamentarians are given an option to press the button for abstaining while voting takes place in the House.
The court said right to reject candidates in elections is part of fundamental right to freedom of speech and expression given by the Constitution to Indian citizens.
It said that democracy is all about choice and significance of right of citizens to cast negative voting is massive.
With the concept of negative voting, the voters who are dissatisfied with the candidates in the fray would turn up in large number to express their opinion which would put unscrupulous elements and impersonators out of the polls, it said.
The bench, while reading out the operative portion of the judgement, did not throw light on a situation in case the votes cast under no option head outnumber the votes got by the candidates.
It said that secrecy of votes cast under the no option category must be maintained by the Election Commission. 



सुप्रीम कोर्ट ने मतदाताओं को दिया सभी उम्मीदवारों को ठुकराने का हक

सुप्रीम कोर्ट ने मतदाताओं को दिया सभी उम्मीदवारों को ठुकराने का हक 
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद अहम फैसले में देश के मतदाताओं को यह अधिकार दे दिया है कि वे अब मतदान के दौरान सभी प्रत्याशियों को ठुकरा सकेंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, यदि मतदान का अधिकार सांविधिक अधिकार है, तो उम्मीदवार को नकारने का अधिकार संविधान के तहत अभिव्यक्ति का मौलिक अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि नकारात्मक मतदान से चुनावों में सर्वांगीण बदलाव होगा और राजनीतिक दल स्वच्छ छवि वाले प्रत्याशियों को ही टिकट देने के लिए मजबूर होंगे।

यह मामला चुनावों में वोटरों को मिलने वाले विकल्प में किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देने को जोड़े जाने का है। इसके मुताबिक ईवीएम मशीन में एक बटन इस बात के लिए होगा कि अगर वोटर को मौजूदा उम्मीदवारों में से कोई भी पसंद नहीं हो तो, वह किसी को भी अपना वोट नहीं देकर विरोध दर्ज कर सकेगा।

इसका कोई असर चुनाव के नतीजों पर नहीं होगा। इसके साथ ही यह सवाल भी उठने लगे हैं कि अगर किसी को भी वोट नहीं वाले पक्ष में आधे से ज्यादा वोट पड़े चुनाव दोबारा कराए जाने चाहिए। हालांकि अभी इस बात की मांग अभी नहीं जोड़ी गई है, लेकिन आगे चलकर यह मसला भी उठ सकता है। सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला ऐसे वक्त में आया है, जब आगामी महीनों में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और अगले वर्ष लोकसभा चुनाव भी होने हैं।

मतदाताओं को मिला 'राइट टू रिजेक्ट'

भारत की सुप्रीम कोर्ट
अदालत ने यह फ़ैसला ग़ैर सरकारी संगठन पीयूसीएल की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाते हुए मतदाताओं को 'राइट टू रिजेक्ट' यानी की सभी उम्मीदवारों को ख़ारिज करने का अधिकार दे दिया.
भारत की शीर्षस्थ अदालत ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि वह इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर एक ऐसा बटन लगाए जिसके जरिए मतदाता सभी उम्मीदवारों को खारिज कर सके. यानी मशीन में 'इनमें से कोई नहीं' का विकल्प होना चाहिए.
अदालत ने कहा है कि यह व्यवस्था इस साल होने वाले विधानसभा क्लिक करें चुनावों से ही शुरू की जाए.
फ़ैसला सुनाते हुए क्लिक करें अदालत ने कहा कि मतदाताओं को यह विकल्प देना लोकतंत्र और देश चलाने के लिए बेहतर लोगों का चुनाव करने के लिए जरूरी था.
अदालत ने यह फ़ैसला पीपुल्स यूनियन फ़ॉर सिविल लिबर्टी (पीयूसीएल) की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया.


क्या खुद को टीवी न्यूज़ का अमिताभ समझने लगे हैं दीपक चौरसिया ?

क्या खुद को टीवी न्यूज़ का अमिताभ समझने लगे हैं दीपक चौरसिया ?


इंडिया न्यूज़ पर नोक - झोक
इंडिया न्यूज़ पर नोक – झोक
इंडिया न्यूज़ पर जीनियस का टेस्ट लाइव, इसी नाम से शो लेकर आए हैं, देश के “नं.4″ न्यूज़ चैनल के दीपक चौरसिया। मौका खुशी का था तो कौटिल्य पंडित (इंडिया का गूगल बॉय) और उसके दादा से केक कटाया। साथ ही ऐलान किया. न्यूज़ टीवी के अनोखे शो जीनियस का टेस्ट लाइव का।
इस शो के दौरान दीपक, कौटिल्य से सवाल पूछेंगे। एक सवाल की कीमत होगी दो हज़ार रुपये।
शो मे दीपक बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन और उनके शो कौन बनेगा करोड़ पति की नकल करने मे लगे हैं, बोलने का अंदाज़, उन्हीं के तरह कुछ सवालो के जवाब के बाद चेक काटना, जिस सीट पर कौटिल्य बैठे उसको रेड सीट (लाल सवाल वाली सीट दीपक ने शो के दौरान बोला ) पुकारना, सब केबीसी और अमिताभ की तरह करने की कोशिश न जाने क्यों कर रहे हैं दीपक?
सवाल बस यही है कि क्या चौथे नंबर पर आने कि खुशी मे खुद को टीवी न्यूज़ का अमिताभ समझने लगे हैं दीपक चौरसिया?

हिंदुस्तान का GOOGLE BOY है 6 साल का कौटिल्य

हिंदुस्तान का GOOGLE BOY है 6 साल का कौटिल्य

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हिंदुस्तान का GOOGLE BOY है 6 साल का कौटिल्य














नई दिल्ली: कहते हैं होनहार वीरवान के होत चिकने पात। हरियाणा के करनाल जिले के कोहण्ड गांव का रहने वाल करीब छह साल बालक कौटिल्य अद्भुत दिमाग का धनी है। कौटिल्य देश-विदेश के भूगोल और सामान्य ज्ञान के बारे में ऐसे बताता है कि बड़े-बड़े के छक्के छूट जाएंगे।

इस बालक की उम्र अभी सिर्फ 5 साल आठ महीने ही है, लेकिन उससे कहीं से कुछ भी पुछ लो, वह उस सवाल का एक दम सटीक जवाब देता है। कौटिल्य को दुनिया के देश और प्रदेश की जानकारी जुबानी याद है।

पहली क्लास में पढ़ने वाला कौटिल्य से किसी भी नदी, पहाड़, राज्य, नामचीन हस्तियों आदि के बारे में पूछने पर, वह पलक झपकते ही उसका जवाब दे देता है। उससे किसी भी देश के बारे में पूछें, वह तुरंत बता देता है। कौटिल्य के इस ज्ञान से उसके परिवार वाले भी हैरान हैं। उसे खगोलशास्त्र के बारे में भी पूरी जानकारी है। कौटिल्य बड़े होकर नाम कमाना चाहता है।

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Wednesday, 25 September 2013

ब्रिगेडियर हैडः बारह सौ पाक सैनिकों को किया था ढेर

ब्रिगेडियर हैडः बारह सौ पाक सैनिकों को किया था ढेर

twelve hundred soldiers pile of pakistan

वर्ष 1965 के भारत-पाक युद्ध में छह जाट रेजीमेंट के कमान अधिकारी ब्रिगेडियर डीई हेड के नेतृत्व में जांबाजों ने कड़ा मुकाबला करते हुए पाकिस्तानी सेना के बारह सौ सैनिकों को ढेर कर दिया था।

हालांकि सेना को युद्ध में 263 जवानों को खोना पड़ा। हेड को उनकी वीरता के लिए जहां भारत सरकार ने महावीर चक्र से नवाजा था, वहीं प्रदेश सरकार ने उन्हें वर्ष 2010 में ‘प्राइड आफ गढ़वाल’ सम्मान से अलंकृत किया।



कमीशन अधिकारी के रूप में कैरियर की शुरूआत
27 नवंबर 1926 को बंगलूरू में जन्मे डीई हेड ने वर्ष 1947 में भारतीय सेना की जाट रेजीमेंट में बतौर कमीशन अधिकारी के रूप में कैरियर की शुरूआत की। वर्ष 1953 में बैरिस्टर मुकुंदी लाल की बेटी शीला के साथ वह विवाह बंधन में बंधे।

सेवानिवृत्त होने पर वह कोटद्वार आ गए
वर्ष 1978 में सेवानिवृत्त होने पर वह कोटद्वार आ गए। ससुर बैरिस्टर मुकुंदीलाल का स्वास्थ्य खराब होने से बंगलूरू की संपत्ति बेचकर वह स्थायी रूप से कोटद्वार में बस गए।



यहां उन्होंने 1983 में गढ़वाल पूर्व सैनिक लीग की स्थापना की। उनके तीन पुत्र वाल्टर हेड, माइकल हेड और नार्मन हेड हैं जो इस वक्त विदेश में रहते हैं।

मकबूल फिदा हुसैन ने बनाई थी तस्वीर
प्रसिद्ध चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन ने ब्रिगेडियर डीई हेड से प्रभावित होकर उनकी तस्वीर बनाई थी। यह तस्वीर भारत-पाक युद्ध से एक दिन पहले ही तैयार की गई थी।



लिखी थी कई पुस्तकें
लेखन क्षेत्र में भी डीई हेड का कोई जवाब नहीं था। उन्होंने बैटल आफ डोगराई नामक पुस्तक लिखी थी। वहीं एक और पुस्तक लिखकर लोगों को सेना से जुड़ा साहित्य दिया। फिलवक्त ब्रिगेडियर हेड ने अपने जीवन यात्रा पर पुस्तक लिखी है, जो अभी बाजार में नहीं आई है। वह अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में भी सेना का उत्साहवर्द्धन करने के लिए दुर्गम स्थानों में पहुंचते रहे।

लाहौर जीतकर एक आदेश के आगे हार गए ब्रिगेडियर हेड

Head was lost to Lahore an order
हम लोग उन्हें कर्नल हेड के नाम से ही बुलाते थे। कर्नल हेड, बैरिस्टर मुकुंदीलाल के दामाद थे और आयरिश मूल के थे।

आजादी के बाद उन्होंने आयरलैंड लौटने की जगह भारतीय सेना में ही बने रहना ठीक समझा और यहीं रुक गए।



नैनीताल में हमारे पारिवारिक बैंक दुर्गा साह-मोहनलाल साह बैंक में मेरे पिता स्व. कुंदन लाल साह ने उनसे मेरी भेंट यह कहकर कराई थी कि ये कर्नल हेड हैं जिन्होंने 65 की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना का सफाया कर दिया था।

वह गोरे थे और उनके बाल हल्के भूरे
इस बैंक में उनका संभवत: खाता था या मेरे कका मदन लाल साह के मित्र होने के नाते उनसे मिलने आए थे। वह गोरे थे और उनके बाल हल्के भूरे थे।



इससे आगे की कहानी पिताजी के आग्रह पर कर्नल साहब ने खुद सुनाई। ‘हमारी सेनाएं लाहौर के दरवाजे तक पहुंच गई थीं बस एक आदेश का इंतजार था और लाहौर हमारा होता’।



दूतावास खाली कराने शुरू कर दिए
कर्नल डेस्मेंड हेड से युद्ध का वह विवरण सुनकर मुझे रोमांच हो उठा था। उन्होंने बताया ‘साह साहब (मेरे पिता) लाहौर पर भारतीय कब्जे के अंदेशे से तमाम देशों ने अपने दूतावास खाली कराने शुरू कर दिए थे।’

मुझे साफ याद है उन्होंने कहा था अमेरिका ने जब अपना दूतावास खाली कराया तो हम से अनुमति ली, क्योंकि हमारी अनुमति के बिना कोई भी हवाई जहाज लाहौर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से नहीं उड़ सकता था।



सेना की विजय यात्रा पर राजनीतिक विराम
इससे आगे की कहानी सब को पता है। ताशकंद समझौता कराके पाकिस्तान बच गया और हमारी सेनाओं को लाहौर के दरवाजे से लौटना पड़ा।

यह वृतांत मुझे आज भी याद है और शायद हमेशा रहेगा उस मलाल के साथ जो कर्नल हेड के चेहरे पर उस दिन मुझे दिखा था। भारतीय सेना की विजय यात्रा पर राजनीतिक विराम और एक नासूर को बड़े होने देने का मलाल।

एलएलबी कोर्स के लिए उम्र की बाधा हटी

एलएलबी कोर्स के लिए उम्र की बाधा हटी

no age bar for llb course

आयु अधिक होने के कारण विधि की शिक्षा प्राप्त करने से वंचित हुए लोगों के लिए अच्छी खबर है।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने एलएलबी कोर्स में दाखिला लेने के लिए आयु सीमा के प्रतिबंध को हटा लिया है। इससे अब इच्छुक लोग किसी भी आयु के हों पाठ्यक्रम में दाखिला ले सकेंगे।

बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष अजय शुक्ला के मुताबिक उनकी ओर से उठाई गई मांग पर बीसीआई ने लीगल एजूकेशन रूल्स 2008 के शेड्यूल तीन क्लाज 11 को वापस ले लिया है।

इस नियम के द्वारा तीन वर्षीय विधि पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए अधिकतम आयुसीमा तीस वर्ष और पांच वर्षीय विधि पाठ्यक्रम के लिए अधिकतम आयु बीस वर्ष निर्धारित की थी।

बार काउंसिल के इस नियम से अधिक आयु में एलएलबी करने के इच्छुक लोग वंचित रह जा रहे थे।

हाईकोर्ट ने इस संबंध में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए बीसीआई के इस नियम पर रोक लगा थी, जिसे सुप्रीमकोर्ट में एसएलपी दाखिल कर चुनौती दी गई थी लेकिन अब बीसीआई ने स्वयं नियमों में परिवर्तन करते हुए यह व्यवस्था समाप्त कर दी है।

संशोधित नियमावली को राजकीय गजट में प्रकाशित करने के लिए सरकार को भेजा गया है।

बीसीआई के इस निर्णय का अजय शुक्ला और उपाध्यक्ष जानकी शरण पांडेय के अलावा अन्य बार काउंसिल सदस्यों ने भी स्वागत किया है।

कल्याण सिंह:'बेलगाम मंत्री आजम पर लगे रासुका'

कल्याण सिंह:'बेलगाम मंत्री आजम पर लगे रासुका'

kalyan statement about azam

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने मुजफ्फरनगर दंगों के लिए सपा सरकार को कसूरवार बताते हुए कैबिनेट मंत्री आजम खां पर रासुका (एनएसए) लगाने की मांग की है।

उन्होंने दो टूक कहा कि सपा अपने इस बेलगाम मंत्री पर लगाम कस दे तो प्रदेश में एक भी दंगा नहीं होगा। पूर्व मुख्यमंत्री ने मोदी को देश का भविष्य बताते हुए कहा कि हमारी सरकार आई तो मुजफ्फर नगर में सपा सरकार द्वारा सताए जा रहे लोगों को पूरा इंसाफ मिलेगा।

पूर्व सीएम कल्याण सिंह ने सर्किट हाउस में पत्रकार वार्ता के दौरान कहा कि मुजफ्फरनगर में एक लड़की से छेड़छाड़ का विरोध करने पर दो भाई मारे गए। पुलिस ने कातिलों को पकड़ा भी लेकिन आजम ने फोन करके छुड़वा दिया।

उन्होंने कहा कि सरकार में आने पर भाजपा मुजफ्फरनगर के बेगुनाहों पर ठोके जा रहे मुकदमे वापस लेगी।

जम्मू: थाने-आर्मी कैंप पर आतंकी हमला, 6 जवान शहीद

जम्मू: थाने-आर्मी कैंप पर आतंकी हमला, 6 जवान शहीद

terrorists attack on police station in kathua

जम्मू-कश्मीर में एक बार फिर आतंकवादियों ने दहशत का खेल खेला है। जम्मू में कठुआ जिले के हीरानगर पुलिस थाने पर आतंकियों ने हमला किया है।

गुरुवार तड़के 5:30 बजे हुए इस हमले में पुलिस के 6 जवानों के शहीद होने की खबर है। इसके अलावा 3 लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं। घायलों को नजदीकी अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

आतंकी पुलिस की वर्दी पहनकर ऑटो में बैठकर आए थे। हमले के बाद आतंकी पुलिस थाने में सीज किए हुए एक ट्रक में बैठकर फरार हो गए।

ट्रक के जरिए आतंकी जम्मू से 40 किमी दूर सांबा पहुंचकर आर्मी कैंप में घुस गए। यहां आतंकियों के हमले में सेना के 2 जवान शहीद हो गए।

आर्मी कैंप में 3 आतंकवादी घुसे हुए हैं। सुरक्षाबलों ने इस क्षेत्र को घेर लिया है। सुरक्षाबलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़ जारी है।

हमले के बाद पूरे जम्मू और कश्मीर में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया है। कठुआ जिले की सारी सड़कों को सील कर दिया गया है।

भाजपा के कार्यकर्ता महाकुंभ:कहां गई गिनीज बुक और कहां गए टोपी-बुर्के

भाजपा के कार्यकर्ता महाकुंभ:कहां गई गिनीज बुक और कहां गए टोपी-बुर्के

modi bjp rally karyakarta mahakumbh in bhopal
भोपाल में भाजपा के कार्यकर्ता महाकुंभ में जोर-शोर से किए जाने वाले कई दावे झूठे साबित हो गए।

दिन में मंच से घोषणा कर दी गई कि सभा में उपस्तिथि प्रमाणित करने के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के लोगों को बुलाया गया है। बाद में इस घोषणा की कोई पुष्टि नहीं हो सकी।

सूत्रों के मुताबिक गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के लिए एक माह पहले आवेदन करना पड़ता है और एक निश्चित धनराशि भी जमा करनी पड़ती है।

न ही प्रदेश इकाई ने कोई आवेदन किया था और न ही धनराशि जमा की गई थी। बाद में गिनीज बुक की ओर से ऐसे कोई लोग नहीं पाए गए।

तादाद के मामले में भी जो सात लाख कार्यकर्ता आने के दावे किए जा रहे थे, वे गलत साबित हुए।

पहले कहा जा रहा था कि करीब सात लाख कार्यकर्ता आएंगे। जिनमें प्रदेश के 53,714 पोलिंग बूथ से आने वाले कार्यकर्ता शामिल होंगे।

शाम को मुश्किल से ढाई-तीन लाख लोगों के आने की बात की जा रही थी।

कांग्रेस के प्रवक्ता अभय दुबे ने दावा किया कि सरकारी कर्मचारियों को लोगों को लाने का टारगेट दिया गया था। सरकारी तंत्र के जरिए जुटाए गए लोग भाजपा के कार्यकर्ता नहीं थे।

प्रदेश में सोयाबीन के सीजन को देखते हुए किसानों और मजदूरों को लाना असंभव काम था।

मुसलमानों की तादाद के बारे में भी जो दावे किए जा रहे थे, उन पर भी सवालिया निशान है।

भाजपा के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के हिदायतुल्ला शेख ने कहा कि उनका जो अनुमान था उसी हिसाब से कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया है।

अकेले भोपाल से 5,000 मुस्लिम कार्यकर्ता आने का दावा शेख कर रहे हैं, लेकिन वहां मुसलमानों की बहुत कम तादाद नजर आ रही थी।

यह अनुमान था कि टोपी और बुर्के पर उठे विवाद के बाद मुसलमान इस रैली से किनारा कर सकते हैं।

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Tuesday, 24 September 2013

दिग्विजय सिंह का आरोप, भाजपा(नरेंद्र मोदी) ने खरीदे 10 हजार बुर्के

दिग्विजय सिंह का आरोप, भाजपा(नरेंद्र मोदी) ने खरीदे 10 हजार बुर्के
इंदौर, एजेंसी 24-09-13 02:14 PM
 
कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर भोपाल में होने वाले महाकुंभ के लिए 10 हजार बुर्के खरीदने का आरोप लगाया है। मध्य प्रदेश दौरे पर पहुंचे दिग्विजय ने मंगलवार को संवाददाताओं से चर्चा करते हुए खरीदे गए बुर्के की एक रसीद भी दिखाई। उन्होंने भाजपा पर आरोप लगाया कि इंदौर से 10 हजार बुर्के खरीदने का आदेश दिया गया था। इन बुर्कों की कीमत 44 लाख रुपये है, इनमें से 42 लाख रुपये का भुगतान किया जा चुका है। दिग्विजय ने आरोप लगाया कि बुर्कों को दिलीप बिल्डकॉन कंपनी से ताल्लुक रखने वाले देवेंद्र जैन ने खरीदा है। इंदौर से खरीदे गए बुर्के मुस्लिम महिलाओं को दिए जाएंगे। गौरतलब है कि भोपाल में भाजपा ने 25 सितंबर को कार्यकर्ता महाकुंभ का आयोजन किया है। इस महाकुंभ में हिस्सा लेने भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी भी पहुंच रहे हैं। महाकुंभ में भाजपा ने 50 हजार मुसलमानों के आने का दावा किया है जिनमें पांच हजार मुस्लिम महिलाएं भी होंगी। दिग्विजय सिंह ने जिस व्यक्ति पर बुर्का खरीदने का आरोप लगाया है वह एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का भाई भी है, वहीं दिलीप बिल्डकॉन और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नजदीकी किसी से छुपी नहीं है। दिलीप बिल्डकॉन के मालिक दिलीप सूर्यवंशी के यहां आयकर विभाग का छापा पहले ही पड़ चुका है।

स्वामी का खुलासा, राम जेठमलानी की दो पत्नी और कई गर्लफ्रेंड

स्वामी का खुलासा, राम जेठमलानी की दो पत्नी और कई गर्लफ्रेंड

Updated on: Tue, 24 Sep 2013 02:03 PM (IST)
Jethmalani
स्वामी का खुलासा, जेठमलानी की दो पत्नी और कई गर्लफ्रेंड
नई दिल्ली। एक सनसनीखेज खुलासे में भाजपा के नेता सुब्रह्माण्यम स्वामी ने दावा किया है कि जानेमाने वकील और पूर्व कानून मंत्री राम जेठमलानी की दो पत्नियां और कई गर्लफ्रेंड हैं। इसलिए उनका आचरण कानून के खिलाफ है।

स्वामी ने आरोप लगाते हुए कहा कि समान नागरिक संहिता की बात करने वाले जेठमलानी की खुद की दो पत्नियां और कई गर्लफ्रेंड है। स्वामी ने कहा कि मैं उनकी आलोचना नहीं कर रहा हूं यह उनका अधिकार है, लेकिन कानून की दुहाई देने वाले जेठमलानी खुद कानून के खिलाफ काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक समान नागरिक संहिता की बात करने पर मैंने यह बात छेड़ी है।

सुब्रह्माण्यम स्वामी मराठी पत्रकार संघ द्वारा आयोजित समारोह में एक पुस्तक के विमोचन के अवसर पर समान नागरिक संहिता विषय पर बोलते हुए यह टिप्पणी की। गौरतलब है कि जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रह्माण्यम स्वामी ने हाल ही में 2014 के लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए भाजपा में शामिल हुए हैं।

अब जनसंख्या बढ़ाने को पैसा देगी भारत सरकार

अब जनसंख्या बढ़ाने को पैसा देगी भारत सरकार

now government will give money for increase population in india

खास-खास

भारत में 1941 में इस समुदाय की संख्या 1,15,000 थी, उसके बाद से इस समुदाय की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। 2001 में तो इस समुदाय की संख्या घट कर 69,601 और वर्ष 2011 में लगभग 55,000 रह गई।
देश में पारसी समुदाय की घटती जनसंख्या पर केंद्र सरकार चिंतित है। पारसी समुदाय को बचाने का जिम्मा अब अल्पसंख्यक मंत्रालय ने संभाला है।

कम होती जनसंख्या को देखते हुए सरकार ने विलुप्त होने की कगार पर खड़े बेहद समृद्ध माने जाने वाले पारसी समुदाय को बचाने का जिम्मा अब अल्पसंख्यक मंत्रालय ने संभाला है।

इस समुदाय की लगातार घटती संख्या से चिंतित मंत्रालय ने सोमवार को ‘जियो पारसी’ योजना की शुरुआत की। योजना के तहत पारसी समुदाय के विवाहित जोड़ों में जन्म दर बढ़ाने के हर संभव प्रयास किए जाएंगे। खासतौर पर पारसियों के गढ़ माने जाने वाले मुंबई में ऐसे जोड़ों को मुफ्त और बेहतरीन चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई जाएगी।

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के रहमान खान ने इस योजना का उद्घाटन करते हुए पारसी समुदाय की घटती संख्या पर चिंता जाहिर की।

उन्होंने कहा कि हालात नहीं बदले तो दुनिया का सबसे बेहतरीन समुदाय विलुप्त हो जाएगा। दरअसल भारत में ही नहीं दुनिया भर में यह समुदाय संख्या की दृष्टि से लगातार सिमटता जा रहा है।

हालत यह है कि भारत में अब बमुश्किल 55,000 पारसी ही बचे हैं। इनमें भी विवाहित जोड़ों के औसतन एक बच्चा भी नहीं है।

विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा कॅरियर बनाने के चक्कर में देर से विवाह की प्रवृत्ति की वजह से है। इसी कारण देश और दुनिया में हर क्षेत्र में पारसी समुदाय ने अपनी प्रतिभा का लोहा तो मनवाया, मगर जनसंख्या में लगातार पिछड़ते चले गए।

अब मंत्रालय इस योजना के तहत पारसी समुदाय से संपर्क स्थापित कर जन्म दर बढ़ाने की कोशिशों में जुटेगा। बकौल रहमान खान बांबे पारसी पंचायत की सहायता से विवाहित जोड़ों को जन्म दर बढ़ाने के लिए बेहतरीन चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने के साथ-साथ जागरूकता अभियान चलाया जाएगा।