Saturday, 8 August 2015

माननीय नेताओं के नाम खुला पत्र : सेवा में: नरेंद्र मोदी - प्रधानमंत्री, भारत हरीश रावत - मुख्यमंत्री, उत्तराखंड विजय बहुगुणा - विधायक, सितारगंज भगत सिंह कोशयारी - सांसद, नैनीताल

माननीय नेताओं के नाम खुला पत्र : 

सेवा में:

नरेंद्र मोदी - प्रधानमंत्री, भारत
हरीश रावत - मुख्यमंत्री, उत्तराखंड
विजय बहुगुणा -  विधायक, सितारगंज
भगत सिंह कोशयारी -
सांसद, नैनीताल

विषय :
पाडा गांव ( शक्तिफार्म-सितारगंज) से सिडकुल मार्ग मै पुल ना होने से उफनती नदी के रासते रोजगार के लिए जाने वाला एक और बहा.


संबंधित,
मुझे नहीं पता की आप चारों माननीय नेता उत्तराखंड के इस क्षेत्र के लिए क्या योगदान कर रहे हैँ. यहाँ पाडा गांव ( शक्तिफार्म-सितारगंज) से शिडकुल मार्ग से सिडकुल नौकरी करने के लिए लोग उफनती बरसाती नदी को पार करके जाते हैं मगर पुल ना होने के कारण हर साल बरसात में 8 से 9 लोग इस नदी में बह जाते हैं जबकी रोजगार में जाने के लिए इस नदी को प्रतीदिन लगभग 10 हजार लोग अपनी जान को खतरे में डालकर नदी को पार करते हैं.मगर आप चारों की मूक कार्य शैली के कारण इस क्षेत्र के लोगों को आये दिन अपनी जान से हाथ धोना पड रहा है.

अनुरोध,
मेरा आप सभी से सादर अनुरोध है की यहां पाडा गांव से सिडकुल के बीच एक पुल बनवाकर आये दिन होने वाली इन मौत की घटनाओं को समाप्त करें.
 

मैंने इस क्षेत्र और भारत का नागरिक होने के कारण आप सभी को इस विकराल समस्या से अवगत करवा दिया और अब बाकी मैं इसे अब आप चारों के विवेक पर छोड़ता हूँ.मै उम्मीद करता हूँ कि आप चारों मेरे इस पत्र को पढ़कर इसके समाधान के लिए कुछ प्रशासनिक निर्णय लेंगे.जिससे इस क्षेत्र को इन होने वाली मौतों से छुटकारा मिलेगा.

धन्यवाद

द्वारा :
भूपेश कुमार मंडल
('कोशुला इंडिया' के संस्थापक और सॉफ्टवेयर इंजीनियर / डीबीए)


पता:
गांव: पाडा गांव (गोविंद नगर), डाक घर: शक्तिफार्म,
तहसील: सितारगंज, जिला: यू एस नगर,
राज्य: उत्तराखंड, पिन कोड: 263151


 
वेबसाइट: http://www.kosullaindia.com
ब्लॉग: kosullaindialtd.blogspot.in
फोन: +91 9716015884 , +91 9311464711
ईमेल: bhupeshmandal84@gmail.com


Twitter location: https://twitter.com/bhupeshmandal
Google+ location: https://plus.google.com/+BhupeshKumarMandal
Facebook location: https://www.facebook.com/bhupesh.mandal


 


#FarmersSuicide : किसान आत्महत्या के घटते आंकड़ों की कहानी ; किसान आत्महत्या: 5 बदतर राज्यों की तस्वीर ; कैसे तैयार होते हैं आंकड़े? ; किसानों की आत्महत्या के आंकड़े कैसे कम हुए?

#FarmersSuicide : किसान आत्महत्या के घटते आंकड़ों की कहानी ; किसान आत्महत्या: 5 बदतर राज्यों की तस्वीर ; कैसे तैयार होते हैं आंकड़े? ; किसानों की आत्महत्या के आंकड़े कैसे कम हुए?

8 August 2015

किसान आत्महत्या के घटते आंकड़ों की कहानी


थिंकस्टॉक इमेज

किसानों की आत्महत्या के आंकड़ों में बड़े पैमाने पर हेरफेर की शुरुआत छत्तीसगढ़ में 2011 में हुई.
राज्य के आंकड़ों के मुताबिक़, 2006 से 2010 के बीच हर साल औसतन 1,555 किसानों ने आत्महत्याएं की थीं. 2011 में यह संख्या शून्य हो गई. 2012 में ये महज़ चार बताई गई. 2013 में ये फिर से शून्य हो गई.

पश्चिम बंगाल ने भी इसी तरीक़े को 2012 में अपना लिया. इसके बाद दूसरे राज्यों में भी आंकड़ों के हेरफेर का सिलसिला शुरू हो गया. दरअसल किसानों की आत्महत्या राजनीतिक तौर पर नुकसान पहुंचाने वाला मुद्दा बन गया है.
ऐसे में एनसीआरबी के ओर से किसानों की आत्महत्या को नए फ़ॉरमेट में बताने से राज्य सरकारों के लिए किसानों की आत्महत्या को कम करके बताना और आसान हो गया है. जो नई कैटेगरी, सब-कैटेगरी शामिल की गई हैं, वह इस तरह से हैं - भूमि वाले किसान, ठेके पर खेती करने वाले किसान, खेतिहर मज़दूर इत्यादि.

कोई बड़ा बदलाव नहीं


फ़ाइल फोटो
एनसीआरबी के मुताबिक नए सिरे से कोई नया वर्ग नहीं बनाया गया है, बस 19 सालों से प्रकाशित सूची में थोड़ा बदलाव किया गया है.

खेती-किसानी में स्वरोजगार का वर्ग ऐसा ही एक वर्ग है. पहले कभी खेतिहर मज़दूरों को एनसीआरबी के आंकड़े या फिर कहीं और भी, स्वरोजगार में शामिल नहीं माना गया. दरअसल खेतिहर मज़दूरों की सबसे बड़ी पहचान ही यही है कि उनका स्वरोजगार नहीं है. वे काम की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह तक भटकते रहते हैं.
बहरहाल, नए फॉरमेट का असर 2014 के आंकड़ों पर भी पड़ा है. अखिल भारतीय किसान सभा की उपाध्यक्ष माला रेड्डी कहती हैं, "एनसीआरबी ने 2014 में, ठेके पर खेती करने वालों को खेतिहर मज़दूर मान लिया है."
ठेके पर खेती करने वाले किसानों के अलावा किसानों की आत्महत्या के नवीनतम आंकड़ों में दूसरी मुश्किलें भी हैं. मसलन "अन्य" वर्ग में आत्महत्या के मामले में भारी बढ़ोतरी देखने को मिली है.

दांव पर विश्वसनीयता


फ़ाइल फोटो
बीते 19 सालों से एनसीआरबी के आंकड़ों से सटीक आंकड़े भले नहीं मिलते हों, लेकिन मोटा मोटी अंदाज़ा मिल जाता था. लेकिन अब यह विश्वसनीयता भी दांव पर है.
सरकार ने किसानों की आत्महत्या को नए सिरे से क्यों वर्गीकृत किया? क्या इन आंकड़ों से सरकार को शर्मसार होना पड़ता था? या फिर सरकार द्वारा एकत्रित आंकड़े ही तस्वीर को बढ़ा चढ़ाकर पेश करने वाले होते थे?

एनसीआरबी का कहना है कि फॉरमेट में बदलाव एक रूटीन प्रक्रिया है. एजेंसी की ओर से कहा गया है, "विभिन्न साझेदारों के अनुरोध को देखते हुए यह एक नियमित प्रक्रिया है." लेकिन सरकार या किसी दूसरी एजेंसी की ओर से फॉरमेट में बदलाव का कोई आधिकारिक अनुरोध का रिकॉर्ड नहीं मिलता. हालांकि ऐसा लगता है कि एजेंसी ने कृषि मंत्रालय के 2013 के अनुरोध के मुताबिक यह बदलाव किया है. उस वक्त शरद पवार देश के कृषि मंत्री थे.
इस बदलाव के पीछे क्या तर्क हो सकता है - पहले सारी कैटेगरी एक ही जगह थी, तो अब हम सबको अलग अलग करके इसे तर्कसंगत बना रहे हैं. पहले के आंकड़ों में सभी किसान नहीं थे. लेकिन यह तर्क काम नहीं करेगा क्योंकि 2013 के आंकड़ों में खेती किसानी में स्वरोजगार अलग से स्पष्ट था.
खेतिहर मज़दूर स्वरोजगार के दायरे में नहीं आ सकते. संसद में सालों तक उठने वालों सवालों के बीच सरकार ने केवल किसानों की आत्महत्या के एनसीआरबी के आंकड़ों का हवाला दिया है, किसी दूसरे वर्ग की आत्महत्याओं को उसमें शामिल नहीं किया है.

किसका है फ़ायदा?


फ़ाइल फोटो
किसानों की लगातार बढ़ती मुश्किलों (आत्महत्या उसका एक पहलू भर है) पर सरकार की प्रतिक्रिया क्या है? सरकार का ध्यान समस्या का सामना करने पर नहीं है बल्कि किसानों की आत्महत्या के आंकड़ों को नगण्य ठहराने के लिए हथकंडे अपनाने पर है.
किसानों की आत्महत्या के मामलों को शून्य बताना उसी हथकंडे का हिस्सा है. इस साल आंकड़ों के साथ खेल कहीं ज़्यादा बेहतर तरीके से हुआ है. इसकी एक वजह तो यह है कि अगर हम आंकड़ों को नहीं जानेंगे तो कोई समस्या नहीं रहेगी.
गिनती के तरीके को बदलिए, आंकड़े ही बदल जाएंगे. और देश भर में चुप्पी भी देखने को मिलेगी.

किसान आत्महत्या: 5 बदतर राज्यों की तस्वीर



भारत के महराष्ट्र, तेलंगाना सहित आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में किसानों की आत्महत्या के सबसे ज़्यादा मामले रिपोर्ट होते हैं.
बीते एक दशक से देश भर में होने वाली किसानों की आत्महत्या में दो तिहाई हिस्सेदारी इन्हीं राज्यों की है.
नए तौर तरीकों से किसानों की आत्महत्या के मामले की गिनती के बावजूद 2014 में किसानों की कुल आत्महत्या में 90 फ़ीसदी से ज़्यादा मामले इन्हीं पांच बड़े राज्यों में सामने आए हैं.

बीते 20 साल में महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा 63,318 तक पहुंच गया है. बीते साल देश भर में किसानों की कुल आत्महत्या में 45 फ़ीसदी से ज़्यादा मामले इस राज्य में दर्ज़ किए गए.

आत्महत्याएं घटी नहीं हैं


इन पांच राज्यों में "अन्य" वर्ग में आत्महत्या के मामले में भारी बढ़ोत्तरी देखने को मिली है. 2014 के 12 महीनों में इस वर्ग में होने वाली मौत तो दोगुनी से भी ज़्यादा हो गई है.
2013 में पूरे भारत में "अन्य" वर्ग में होने वाली आत्महत्या के 24,809 मामले दर्ज हुए थे, जो 2014 में बढ़कर 41, 216 हो गए हैं. अन्य वर्ग में होने वाली आत्महत्या के मामले इतने ज़्यादा हैं जबकि इस वर्ग से 15,735 मौतों को हटाकर एक नई कैटेगरी दिहाड़ी मज़दूरों की बनाई गई है.
2014 में देश में आत्महत्या के सभी मामलों में एक तिहाई हिस्सेदारी (लगभग 31.3 फ़ीसदी) इसी अन्य वर्ग की है. पांच बड़े राज्यों में यह आंकड़ा 16,234 का रहा है, जबकि 2013 में इसकी संख्या 7,107 थी.

बदलते आंकड़ों का सच

इसके अलावा "अन्य" में एक स्वरोजगार वाला वर्ग भी बनाया गया है. इससे आंकड़े किस कदर प्रभावित होते हैं, इसे समझने के लिए किसानों की आत्महत्या और स्वरोज़गार के मामलों को जोड़कर देखकर देखना होगा.

छत्तीसगढ़ का ही उदाहरण देखिए, 2009 में यहां किसानों की आत्महत्या के 1,802 मामले दर्ज हुए थे जबकि स्वरोजगार के अन्य वर्ग में यह संख्या 861 थी.
2013 में जैसे ही किसानों की आत्महत्या के मामले शून्य दर्ज किया गया, स्वरोजगार के मामलों में आत्महत्या की संख्या 2077 हो गई. छत्तीसगढ़ में 2013 में, सभी आत्महत्याओं में अन्य एवं स्वरोजगार की हिस्सेदारी 60 फ़ीसदी तक थी.

किसान आत्महत्या: कैसे तैयार होते हैं आंकड़े?



किसानों की आत्महत्या से जुड़े सालाना आंकड़े राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) जारी करता है. लेकिन ये आंकड़ों जिस तरह से जुटाए जाते हैं, वह समस्या को कहीं ज़्यादा गंभीर बना रहे हैं.
दरअसल, एनसीआरबी आकंड़ा संग्रह करने की मशीनरी नहीं हैं, बल्कि यह राज्य सरकारों से मिले आंकड़ों को एकत्रित करके उसे टेबुलर फॉर्म में जारी करती है. इस लिहाज से देखें तो एनसीआरबी का इन आंकड़ों में अपना कोई हित नहीं है.
हालांकि इन आंकड़ों को पेश करने के तौर तरीकों में बदलाव से राज्य सरकारों को आंकड़ों में हेरफेर करने का प्रोत्साहन जरूर मिलता है. राज्यों में बैठे अधिकारियों के लिए आंकड़ों में हेरफेर का काम आसान हो जाता है.
एनसीआरबी के मुताबिक आंकड़े पुलिस स्टेशनों के आधिकारिक आंकड़ों पर आधारित होते हैं. अप्राकृतिक मौतों के मामले ज़िला स्तरीय क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो में दर्ज किए जाते हैं. जिसे पहले राज्य क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो तक भेजा जाता है और उसके बाद उसे नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो भेजा जाता है.

कांस्टेबल की भूमिका अहम

लेकिन हकीकत यह है कि किसी भी राज्य के किसी भी ज़िले के पुलिस स्टेशन में सबसे निचले पायदान वाला कांस्टेबल यह तय करता है कि मरने वाला कौन था- किसान था, या फिर ठेके वाला किसान था या फिर खेतिहर मज़दूर था. यह जानकारी जुटाना सर्वे करने के लिए प्रशिक्षित लोगों के लिए भी मुश्किल काम है.

एनसीआरबी ने यह भी बताया है कि बीते साल उसके प्रशिक्षकों ने राज्य के क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अधिकारियों को एक महीने तक कठोर प्रशिक्षण दिया है. यह वैसे लोग थे जो राज्य की राजधानियों में स्थित थे, इनमें स्थानीय स्तर के पुलिस स्टेशन पर तैनात पुलिसकर्मी नहीं थे.
एनसीआरबी की ओर से कहा गया है, "हमने राज्यस्तरीय कर्मचारियों से अनुरोध किया था कि वे जिला स्तरीय और पुलिस स्टेशन के स्तर पर अधिकारियों को प्रशिक्षण दें." लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या राज्य क्राइम ब्यूरो के अधिकारी ऐसा कर पाते हैं? ऐसा कभी नहीं हो पाता है?
हमने महाराष्ट्र के विदर्भ और कर्नाटक के मांड्या जैसे इलाकों के पुलिस स्टेशन से संपर्क किया. इन इलाकों में किसानों की आत्महत्या के ज़्यादा मामले सामने आए हैं. यहां के पुलिसकर्मी चकित थे. आंध्र प्रदेश पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, "हमें तो ऐसी किसी भी ऐसे सर्कुलर की जानकारी नही है जिसमें हमें आंकड़े संग्रह करने या फिर उसे कैसे करने के बारे में कहा गया है."

तहसीलदार की ज़िम्मेदारी

तेलंगाना के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, "इस तरह के वर्गीकरण का काम पुलिस कांस्टेबल का नहीं है बल्कि यह काम तहसीलदार का है. कोई किसान है अथवा नहीं है, इसका फ़ैसला राजस्व विभाग करता है. एफ़आईआर की कॉपी तहसीलदार के पास जाती है. पुलिसकर्मी आत्हत्या की वजह को लिखते हैं."

इसका मतलब है कि वर्गीकरण का काम या तो राजस्व विभाग करता है या फिर राज्य की राजधानी में स्थित स्टेट क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो. जब कोई संदेह होता है तब तेलंगाना के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के मुताबिक, "इंट्री अन्य के वर्ग में किया जाता है." ऐसा हज़ारों मामलों में होता है.
किसानों की आत्महत्या से सबसे ज़्यादा प्रभावित राज्य महाराष्ट्र के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से जब जानकारी मांगी गई तो उन्होंने केवल 2006 में जारी राज्य सरकार के सर्कुलर का जिक्र किया जिसमें खेती पर संकट की बात शामिल थी. एक अधिकारी ने कहा, "उस सर्कुलर के मुताबिक़ किसी भी किसान की आत्महत्या करने पर उसे ज़िला अधिकारी के पास सूचित करना था." उस अधिकारी ने हमें सर्कुलर की प्रति भी भेजी.
कर्नाटक पुलिस का कहना है कि वह आंकड़ों के नई वर्गीकरण व्यवस्था से चक्कर में पड़ गई है. स्थानीय पुलिस स्टेशनों में एफ़आईआर में इन चीजों के उल्लेख के लिए निर्देश नहीं दिए गए हैं. मध्य प्रदेश के शीर्ष पुलिस अधिकारी ने कहा कि क्षेत्र में तैनात कांस्टेबल को ये आंकड़े एकत्रित करने हैं, इसके बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है.

नई प्रक्रिया की मुश्किल

एनसीआरबी की रिपोर्ट से भी ज़ाहिर होता है कि नई प्रक्रिया से उलझन पैदा हो रही है.
इस रिपोर्ट के दूसरे पैराग्राफ़ में किसानों की आत्महत्या के मामले में लिखा गया है, "किसानों में वे लोग शामिल हैं जिनके पास भूमि भी हो और वे खेतों में काम भी करते हैं. इनमें वो भी शामिल हैं जो अपने खेतों में मज़दूरों से काम कराते हैं. इनमें खेतिहर मज़दूर शामिल नहीं हैं." ऐसे में खेतिहर मज़दूर स्व-रोजगार में कैसे शामिल हो सकता है?

जरा उन किसानों पर भी ध्यान दीजिए, जो दूसरों की जमीन पर ठेके पर खेती करते हैं. ज़मीन के किराए के तौर पर एक शुल्क चुकाने के साथ वे अनाज का एक हिस्सा में मालिक को देते हैं. भारत में ठेके पर खेती अमूमन गैर आधिकारिक तौर पर ही होते हैं, उनका कोई दस्तावेज़ या आंकड़ा नहीं रखा जाता है. यही वजह है कि इन किसानों को बैंक से कर्ज भी नहीं मिल पाता.
ऐसे किसान महाजनों के कर्जे में फंसे होते हैं और आत्महत्या करने के लिए मज़बूर होते हैं. लेकिन पहचान निश्चित नहीं होने से ऐसे किसानों को आत्महत्या करने वालों की श्रेणी में शामिल नहीं किया जाता.
नए प्रावधान के तहत ऐसे किसानों की आत्महत्या को गिन पाना और भी मुश्किल हो जाएगा. एनसीआरबी के नई उप सूची में भी इन किसानों को शामिल करने में मुश्किल होगी. यह नवीनतम आंकड़ों में जाहिर भी हुआ है. पूरे भारत में 2014 के दौरान 6,710 खेतिहर मज़दूरों ने आत्महत्या की है. जो किसानों की आत्महत्या से एक हज़ार से भी ज़्यादा हैं.

पूरी प्रक्रिया में समस्या

अब आंध्र प्रदेश का ही उदाहरण ही लीजिए. आंकड़ों के मुताबिक 2014 में राज्य भर में केवल 160 किसानों ने आत्महत्या की है, जबकि इसी दौरान इससे तीन गुणा ज़्यादा खेतिहर मज़दूरों ने आत्महत्या की है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की प्रतिक्रिया के मुताबिक, "यह माना जाता है कि संबंधित पुलिस स्टेशन को अप्राकृतिक मौत के छानबीन के दौरान मृतक के बारे में ये जानकारी लिखनी चाहिए यह खेतिहर मज़दूर था या किसान." हालांकि ब्यूरो समस्या को भांपते हुए यह भी कह रहा है, "ब्यूरो संबंधित राज्यों से स्पष्टीकरण मांगेगा."
दरअसल, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो को मालूम है कि पूरी प्रक्रिया में समस्या है. वरिष्ठ अधिकारी भी मानते हैं कि ठेके पर खेती करने वाला वही किसान गिना जाएगा, जिसके आंकड़े दर्ज होंगे. लेकिन साथ ही वह कहते हैं, "प्रत्येक राज्य में ठेके पर खेती को लेकर किसी विस्तृत अध्ययन को लेकर फिलहाल एनसीआरबी का कोई इरादा नहीं है."

किसानों की आत्महत्या के आंकड़े कैसे कम हुए?



महज आंकड़ों की बात करें तो भारत में 1995 से 2014 के बीच किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा तीन लाख पार कर चुका है.
लेकिन साल 2014 के आंकड़ों को पिछले 19 साल के आंकड़े के साथ मिलाकर नहीं देखा जा सकता, क्योंकि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने किसानों की आत्महत्या की गिनती के तरीक़े में बदलाव किया है.
ये नए तरीक़े का असर है कि 2014 में किसानों की आत्महत्या के मामले कम हो गए. यह आंकड़ा 5,660 पर आ कर टिक गया. साल 2013 में यह 11,772 का था. तो यह गिरावट कैसे दर्ज की गई?

पड़ताल करने पर पता चलता है कि एनसीआरबी ने किसानों की आत्महत्या के ज़्यादातर मामलों को नए वर्ग में शिफ्ट कर दिया है.
यह इससे भी ज़ाहिर होता है कि एक तरफ किसानों की आत्महत्या के मामले कम हुए हैं तो दूसरी तरफ़ अन्य वर्ग में दर्ज आत्महत्या के मामले बढ़े हैं. यह आप बीबीसी हिंदी के ग्राफिक्स में भी देख रहे हैं.

आंकड़ों पर सवाल


किसान आत्महत्या
एनसीआरबी ने 2014 में हज़ारों भूमिहीन किसानों की आत्महत्या के मामले को खेतिहर मज़दूर वर्ग में प्रदर्शित किया है. इससे भी किसानों की आत्महत्या के मामले को कम दर्शाने में मदद मिली है.
एनसीआरबी ने खुद ही माना है कि उसके नए आकंड़ों की विश्वसनीयता की जांच नहीं हो सकी है. एजेंसी ने टालमटोल के अंदाज़ में कहा है कि वे इस डाटा का निरीक्षण करेंगे.
इसके साथ ही निचले स्तर के पुलिस स्टेशनों के पुलिसकर्मियों को भी नए तौर तरीक़ों का प्रशिक्षण नहीं दिया गया है. इनसे ही आंकड़े एकत्रित कराए जाते हैं.

इसके अलावा इन आंकड़ों के मुताबिक 2014 में 12 राज्यों और छह केंद्र शासित प्रदेशों में किसी किसान ने आत्महत्या नहीं की. इनमें खेती-किसानी वाले तीन बड़े राज्य - पश्चिम बंगाल, राजस्थान और बिहार, शामिल हैं.

आंकड़ें जारी, जांच बाद में

2010 में कोई भी बड़ा राज्य ऐसा नहीं था, जिसमें किसानों ने आत्महत्याएं नहीं की थीं. तब तीन केंद्र शासित प्रदेशों में किसी किसान की आत्महत्या का मामला सामने नहीं आया था.

बहरहाल, अब इन तीनों राज्यों की ओर से यही कहा जा रहा है कि इनके लाखों किसानों में एक भी किसान ने 2014 में आत्महत्या नहीं की यानी किसी भी कारण से किसी किसान ने आत्महत्या नहीं की.
2014 में एनसीआरबी ने दुर्घटना से होने वाली मौत और आत्महत्या के मामलों के लिए किस तरह से जानकारी जुटाई है, इसको लेकर भी स्पष्टता का अभाव है. आत्महत्या की वजह वही बताए जा रहे हैं, जिसका हवाला सरकारें हमेशा से देती रही हैं - ये आत्महत्याएं तनाव की वजह से हो रही हैं.
किसानों की आत्महत्या की वजहों को लेकर तब भी स्पष्टता का अभाव है जबकि 1995 से अब तक 3, 02, 116 किसान आत्महत्या कर चुके हैं.

बहरहाल, आंकड़ों की प्रस्तुति पर उठते सवालों के बीच यह भी एक हक़ीक़त है कि 2014 में खेती-किसानी के सभी मामलों में आत्महत्या की संख्या 12, 360 है जो 2013 की तुलना में अधिक ही है, कम नहीं.

इतने कम समय में आंकड़ों में इतना ज़्यादा अंतर चौंकाने वाला है. इस मसले पर ख़ुद एनसीआरबी ने भी कहा है कि वह संबंधित राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से स्पष्टीकरण मांगेगा. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या स्पष्टीकरण से तस्वीर साफ़ हो जाएगी?


Friday, 7 August 2015

Supreme Court(SC) to Centre and UP govt: Provide better facilities at Ram Janma Bhoomi on Subramaniam Swamy(@Swamy39) pilgrims; केन्द्र और प्रदेश सरकार राम जन्‍मभूमि स्‍थल पर बेहतर सुविधा मुहैया कराये: सुप्रीम कोर्ट

Supreme Court(SC) to Centre and UP govt: Provide better facilities at Ram Janma Bhoomi on Subramaniam Swamy() pilgrims; केन्द्र और प्रदेश सरकार राम जन्‍मभूमि स्‍थल पर बेहतर सुविधा मुहैया कराये: सुप्रीम कोर्ट



Ram Janam Bhumi and Babri Masjid in Ayodhya(News Profile)



The Supreme Court on Friday asked the Centre and the Uttar Pradesh government to provide better amenities to pilgrims at ‘Ram Janma Bhoomi’ site near the structure, which once stood as Babri Masjid.
A bench consisting Justices AR Dave and Kurian Joseph said, “Let us do something. If possible, do something for the upkeep of the place and provide facilities for visitors.”
Even in the past, while responding to a petition filed by the BJP leader Subramanian Swamy, the court had asked the Centre to file its response on facilities for the pilgrims.

Subramaniam Swamy had submitted that pilgrims, who are devotees of Lord Rama, are deprived of even basic facilities like drinking water and toilets and face difficulty due to inadequate arrangements made by both the Centre and UP government.
Additional Solicitor General Maninder Singh said that the Centre would consider the plea made by Swamy.
Swamy had said the status quo order passed by the apex court in 1996 was limited to prohibit building of any structure at the disputed site.
In his application, he had sought an order from the apex court to “ameliorate the lot of millions of Hindu pilgrims who make the pilgrimage to the site of the ‘Ram Janma Bhoomi’ at Ayodhya, to have a ‘darshan’ and perform ‘pooja’.”



केन्द्र और प्रदेश सरकार राम जन्‍मभूमि स्‍थल पर बेहतर सुविधा मुहैया कराये: सुप्रीम कोर्ट

Supreme_Court_of_India_PTI_0_0_0_0_0_0_0_0_0_0_0_0_0_0
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र व उत्तर प्रदेश सरकार को अयोध्‍या में विवादास्‍पद ढांचे के पास राम जन्‍मभूमि स्‍थल पर सुविधाओं की कमी की ओर ध्यान दिलाया। कोर्ट ने दोनों ही सरकारों से अयोध्या में राम जन्मभूमि के विवादित स्थल के समीप यात्रियों के लिए बेहतर सुविधा मुहैया कराने पर विचार करने के लिए कहा है।
न्यायमूर्ति एआर दवे व कुरियन जोसफ की पीठ ने कहा कि कुछ तो कीजिए। अगर मुमकिन हो, इस स्थान को बेहतर रखने और आगंतुकों को सुविधाएं देने की दिशा में कुछ कीजिए। हमें कुछ करना चाहिए।
इससे पहले, न्‍यायालय ने श्रद्धालुओं को सुविधाएं देने के संबंध में भाजपा नेता सुब्रमण्‍यम स्‍वामी की याचिका पर केन्‍द्र से जवाब देने को कहा। सुब्रमण्‍यम स्‍वामी ने न्‍यायालय को बताया कि अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थल पर भगवान राम के दर्शन व पूजा के लिए लाखों तीर्थयात्री पहुंचते हैं।
भगवान राम के अनुयायी तीर्थयात्रियों को पेयजल और शौचालय जैसी आधारभूत सुविधाएं भी नहीं मिल रहीं हैं और अपर्याप्‍त प्रबंधों के कारण उन्‍हें कठिनाई झेलनी पड़ रही है। उन्होंने शीर्ष अदालत द्वारा पारित 1996 में यथास्थिति बनाए रखने के आदेश का भी उल्लेख किया।

Modi Govt notice to 3 channels On Broadcasting for Yakub’s four mercy petitions ; and saying "Explain why you shouldn’t face action for Yakub coverage"

Modi Govt notice to 3 channels (   ) On Broadcasting for Yakub’s four mercy petitions ; and saying "Explain why you shouldn’t face action for Yakub coverage"

Sources said the I&B ministry obtained video clips of the Chhota Shakeel phone-in and Yakub’s lawyer’s statement from the Electronic Media and Monitoring Centre to get the quotes which have been cited in the notice.

 
 http://images.indianexpress.com/2015/07/yakub-memon2.jpg
 Yakub Memon
 
For the first time since it took charge, the NDA Government has issued separate show-cause notices to ABP News, NDTV 24×7 and Aaj Tak alleging that these three private news television channels showed disrespect to the judiciary and the President of India by airing certain content on the day 1993 Mumbai blasts convict Yakub Memon was hanged. The Union Information & Broadcasting Ministry has asked these channels to explain within 15 days why action should not be taken against them for broadcasting such content.

The content includes phone-in interviews of Chhota Shakeel on Aaj Tak and ABP News in which he claimed Yakub Memon was innocent and said that four mercy petitions were dismissed in a single day. He also alleged that justice had not been done and that he did not believe the court. NDTV 24×7 had aired an interview of Yakub Memon’s lawyer who spoke about how many countries have done away with the death penalty.
The show-cause notices to the channels invoke at least three sections including Section 1(d), Section 1(g) and Section 1(e) of Rule 6 of the Programme Code prescribed under the Cable Television Network Rules, 1994.
Section 1(d) states that no programme should be carried which contains anything “obscene, defamatory, deliberate, false and suggestive innuendos and half-truths.” Section 1(e) states that no programme should be carried in the cable service which is “likely to encourage or incite violence or contains anything against maintenance of law and order or which promote anti-national attitudes. Section 1(g) bars channels from carrying content which “contains aspersions against the integrity of the President and Judiciary”.

Yakub Memon’s hanging on July 30 came hours after an unprecedented late-night opening of the Supreme Court that eventually rejected a final plea for a stay on his execution. That order came 12 hours after the same bench had dismissed another writ petition by Yakub challenging the validity of the death warrant. Justices Dipak Misra, P C Pant and Amitava Roy also rejected objections raised by Justice Kurian Joseph a day earlier and said there was no legal lacuna in dealing with Yakub’s curative petition which was dismissed on July 21.

Sources said the I&B ministry obtained video clips of the Chhota Shakeel phone-in and Yakub’s lawyer’s statement from the Electronic Media and Monitoring Centre (EMMC) to get the quotes which have been cited in the notice.
At least three orders prohibiting transmission of channels for a period ranging from one day to 30 days have been issued by the Government so far. NDTV Good Times and TLC were taken off air for a day for content described as adult and Al-Jazeera was prohibited for five days after it did not show Jammu & Kashmir as an integral part of India in the country’s map.

Once the channels reply to the show-cause notice, an inter-ministerial committee, which includes officials from the Home, External Affairs and Defence ministries, will review their response and decide on the next step.

IS का प्रवक्ता बनने की चाह रखने वाला पत्रकार गिरफ्तार | भारत का ये पत्रकार 'ज़ुबैर अहमद ख़ान' #ISIS का प्रवक्ता बनना चाहता है

IS का प्रवक्ता बनने की चाह रखने वाला पत्रकार गिरफ्तार | भारत का ये पत्रकार 'ज़ुबैर अहमद ख़ान' #ISIS का प्रवक्ता बनना चाहता है
ज़ुबैर अहमद ख़ान , स्वयंभू पत्रकार

मुंबई पुलिस उस व्यक्ति को ढूंढ़ रही है जो ख़ुद को इस्लामिक स्टेट कहने वाले चरमपंथी संगठन का प्रवक्ता बनने की ख़्वाहिश रखता है.
पत्रकार ज़ुबैर अहमद ख़ान ने याक़ूब मेमन को दी गई फांसी के ख़िलाफ़ फ़ेसबुक और ट्विटर पर पोस्ट भी लिखे थे.

अबू बक़र को ख़त


ज़ुबैर अहमद ख़ान का फ़ेसबुक पोस्ट
ज़ुबैर अहमद ने 29 जुलाई को अपने फ़ेसबुक पेज पर इस्लामिक स्टेट के प्रमुख अबू बक़र अल बग़दादी के नाम लिखे संदेश में इस्लामिक स्टेट का प्रवक्ता बनने और उसके लिए पत्रकार के रूप में काम करने की इच्छा जताई है.उन्होंने अपनी पढ़ाई-लिखाई का पूरा हवाला भी दिया था.
ख़ान ने यह दावा भी किया कि भारत सरकार, पुलिस और हिंदू चरमपंथी मुसलमानों पर अत्याचार करते हैं और उन्होंने इसका अध्ययन किया है.
बाद में 30 जुलाई को पोस्ट किए गए संदेश में ख़ान ने याक़ूब मेमन को शहीद क़रार देकर उनकी काफ़ी तारीफ़ भी की थी.

'नागरिकता छोड़ेंगे'


याक़ूब मेमन की फांसी का विरोध
ख़ान ने 1 अगस्त को लिखे पोस्ट में दावा किया था वे 4 अगस्त को दिल्ली स्थित इराक़ी दूतावास जाकर इस्लामिक स्टेट के सरकारी प्रवक्ता या सरकारी पत्रकार के पद पर अपनी बहाली के लिए अर्जी भी देंगे.उन्होंने यह भी कहा है कि वे भारत की नागरिकता छोड़ देंगे.
इस पोस्ट के इंटरनेट पर वायरल होने के बाद लाखों लोगों ने प्रतिक्रियाएं दर्ज की थीं. सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों ने मुंबई क्राइम ब्रांच को आगाह भी किया था.

तलाश जारी


ज़ुबैर अहमद ख़ान , स्वयंभू पत्रकार
मुंबई पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर इसकी पुष्टि की.उन्होंने कहा, “इस जानकारी के बाद ज़ुबैर खान का फ़ेसबुक और ट्विटर अकाउंट ब्लॉक कर दिया गया है. कुछ लोगों ने ये पोस्ट प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के फ़ेसबुक और ट्विटर अकाउंट पर भी शेयर किए हैं.”
अधिकारी ने कहा, “मामले की गंभीरता को देखते हुए हमने खान को ढूंढने के लिए विशेष दस्ते बनाकर उन्हें देश के अलग अलग हिस्सों में भेजा है.”
ख़ान के प्रोफाइल के मुताबिक़ वे ‘इंटरनेशनल पीस’ नामक पत्रिका के मुख्य संपादक हैं. उन्होंने सिक्किम मनिपाल यूनिवर्सिटी से पढ़ाई पूरी की है.

IS का प्रवक्ता बनने की चाह रखने वाला पत्रकार गिरफ्तार

जुबैर अहमद (फोटो- गूगल प्लस अकाउंट से ली गई है)
जुबैर अहमद (फोटो- गूगल प्लस अकाउंट से ली गई है)

याकूब मेमन को शहीद बताकर भारत की नागरिकता छोड़ खूंखार आतंकी संगठन आईएस का प्रवक्ता बनने की चाहत रखने वाले जुबैर को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। टीवी रिपोर्ट्स की मानें तो खुद को पत्रकार बताने वाले नवी मुंबई के जुबैर अहमद खान को दिल्ली के वसंत विहार इलाके से शुक्रवार सुबह पकड़ा गया है।

जुबैर मुंबई में अचानक गायब हो गया था। कल मुंबई पुलिस ने उसकी पत्नी से पूछताछ की थी। सूत्रों की मानें तो जुबैर चार अगस्त की सुबह से दिल्ली में था। उसने दिल्ली आने से पहले फेसबुक पर स्टेटस लिखा था कि वह इराक दूतावास में जाकर आईएस का सरकारी प्रवक्ता बनने के लिए बात करेगा।

सूत्रों के मुताबिक, जुबैर खाड़ी के एक देश के दूतावास में वीजा लेने वसंत विहार पहुंचा था। जब उसके बारे में जानकारी मिली, तो उसे पकड़ कर वसंत विहार थाने ले आया गया। खबर लिखे जाने के समय पुलिस के अलावा खुफिया विभागों के अफसर भी जुबैर से पूछताछ कर रहे थे। यह पता लगाने की कोशिश है कि आईएस में उसके संपर्क सही में हैं या उसने यह सब किसी और इरादे से किया? उसकी मानसिक हालत की जांच भी जरूरत के हिसाब से कराई जा सकती है।
जुबैर के इस पोस्ट के पहले भी जुबैर ने कई विवादित पोस्ट्स किए थे, जिसमें उसने आईएस के आका बगदादी के नाम खुला खत लिखते हुए आतंकी संगठन का सरकारी प्रवक्ता बनने की ख्वाहिश जताई थी।


इतना ही नहीं, इस पोस्ट में उसने आतंकी याकूब मेमन को शहीद बताया था। कुछ लोगों ने जुबैर के इन पोस्ट्स की जानकारी मुंबई क्राइम ब्रांच को दी थी। उसके बाद, पुलिस ने उसे बांद्रा तक ट्रेस भी किया गया था। क्राइम ब्रांच के कुछ अधिकारी उसे गिरफ्तार करने गए थे, लेकिन वह फरार हो चुका था।


फेसबुक, ट्विटर, गूगल प्लस से लेकर पिनट्रेस्ट जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर जुबैर के ऐसी तमाम पोस्ट नजर आती हैं, जिनसे उसके आईएस प्रेम और आतंक समर्थन की तस्दीक होती हैं। पुलिस ने बताया कि जुबैर ने फेसबुक पर एक कई आपत्तिजनक पोस्ट्स की थीं। आईएस चीफ बगदादी को लिखी एक पोस्ट में उसने आईएस का प्रवक्ता बनने की ख्वाहिश जाहिर की थी।

Thursday, 6 August 2015

'I'm the unfortunate father': Pakistani man admits Udhampur terrorist Naved is his son


'I'm the unfortunate father': Pakistani man admits Udhampur terrorist Naved is his son


Aug 7, 2015
In a development which may leave Islamabad red-faced, a Pakistan-based man on Thursday identified himself as the father of Mohammad Naved, the only terrorist captured alive after the Udhampur terror attack.
When NEWS contacted a man called Mohammad Yakub using a phone number disclosed to interrogators by Naved, he said, "You are calling from India. We’ll be killed. I am the unfortunate father."
Mohammad Yakub, in his conversation with NEWS, also said that the terror group Lashkar-e-Taiba (LeT) wanted him and Naved dead. "I’ll be killed. The Lashkar is after us and the fauj is after us.... They probably wanted him dead and not caught alive. Please spare him,"  Yakub as saying.
The report added that the call to Yakub was made at 1.22 pm and lasted for a minute and 20 seconds.
NEWS also reportedly contacted Yakub. "We are troubled by the developments," NEWS quoted Yakub as saying and reported that he told them not to call him up again.
Earlier on Thursday, Pakistan had rejected India's assertion that Naved was of Pakistani-origin and asked India to refrain from making "accusations".
"We have also seen media reports and I will not offer any comment on that issue. We expect the Indian authorities to share information with us on the claims that are being made in the media," Pakistan Foreign Office spokesperson Syed Qazi Khalilullah had said on the arrest of the terrorist in India.
also see
"We have said many a times that making immediate accusations on Pakistan is not correct. These things should be based on facts. We expect that whenever Pakistan is being accused of something, it will be accompanied with correct evidence," he had said.
Khalilullah had said that the Indian claim was baseless. "We have repeatedly asked India to refrain from accusations."
Separately, a Pakistan government source  as saying, "National Database and Registration Authority (NADRA) record shows Indian claims of an arrested person, Usman Khan (Mohammed Naved Yakub), originating from Pakistan are totally baseless."
In yet another terror attack suspected to be originating from Pakistan, two BSF constables were killed on the crucial Jammu-Srinagar highway on Wednesday, but one of the two LeT terrorists involved was captured alive like Ajmal Kasab in the 2008 Mumbai terror strike.

Judge who rejected Yakub Memon's mercy plea gets threat letter...

Judge who rejected Yakub Memon's mercy plea gets threat letter...


  • New Delhi
  • Updated: Aug 07, 2015

A file photo of 1993 Mumbai blasts convict Yakub Memon.

The judge who led the Supreme Court bench that rejected 1993 Mumbai blasts convict Yakub Memon's last mercy petition against hanging has received a threatening letter.
Justice Dipak Misra received an anonymous letter which says he will be targeted even if his security is increased, TV channels reported.
The Delhi Police have registered a case and are investigating the letter.
Soon after Yakub Memon was hanged in the early hours of July 30, security for justice Misra and his two colleagues-Amitav Roy and Prafulla Pant was increased. The three-member Supreme Court bench had rejected Memon's last-minute appeal to stop his hanging, in an unprecedented hearing that took place in the Supreme Court in the middle of the night.
Yakub -- brother of prime accused Tiger Memon -- and 11 others were sentenced to death by a special TADA court in July 2007 for the dozen explosions that ripped through India's financial capital, killing 257 people and leaving more than 1,000 injured.
The only well-educated member of the Memon family was found guilty of criminal conspiracy, arranging money for buying vehicles used by the bombers and organising air tickets to Dubai for some of them.

Tiger Memon called up family shortly before Yakub hanging: Reports

Tiger Memon called up family shortly before Yakub hanging: Reports


  • New Delhi
  • Updated: Aug 07, 2015

Tiger Memon, Yakub's brother along with underworld don Dawood Ibrahim and his brother Anees Ibrahim, are considered to be the key conspirators behind the 1993 blasts. Tiger Memon has been absconding since the blasts that killed 257 people while Indian authorities believe he is in Pakistan.


Shortly before 1993 Mumbai blasts accused Yakub Memon was hanged, his brother and prime accused in the case, Tiger Memon rang up the family, reports said Friday.
The news reported quoting sources that Tiger Memon called on the family landline in the early hours of July 30 just one-and-half hour before the execution.
The number was being monitored by a wing of the Mumbai Police and the officials listening in identified Tiger's voice.
The call was confirmed by security officials in Mumbai and Delhi but senior Mumbai police officials, Yakub Memon's lawyer and members of the Memon family refused to comment.
The report said that instead of grieving for his brother, Tiger talked about revenge in the conversation with his mother and another family member.
Mushtaq Tiger Memon, one of the prime accused in the 1993 Mumbai bomb blasts case, is a member of terrorist Dawood Ibrahim's gang. He is wanted by the Interpol and CBI.
Tiger's role in the blasts had been confirmed by the special court after the conviction of the others accused in the case.
His younger brother Yakub Memon was hanged in the Nagpur Central Jail on July 30 for providing llogistical support to the bombers.

#WeakModiSarkar: मोदी जी, कोई एक्शन नहीं सिर्फ़ जुमलेबाज़ी... चरमपंथी हमलोें में तेज़ी, ट्रेन दुर्घटनाओं की बढ़ती संख्या (क्या हम वाकई बुलेट ट्रेन के लिए तैयार हैं?) और संस्थानों में अपनी मर्ज़ी की नियुक्तियों

#WeakModiSarkar:

मोदी जी, कोई एक्शन नहीं सिर्फ़ जुमलेबाज़ी...

चरमपंथी हमलोें में तेज़ी, ट्रेन दुर्घटनाओं की बढ़ती संख्या (क्या हम वाकई बुलेट ट्रेन के लिए तैयार हैं?) और संस्थानों में अपनी मर्ज़ी की नियुक्तियों

6 अगस्त 2015 

नरेंद्र मोदी
ट्विटर पर नरेंद्र मोदी सरकार की कथित नाकामियों पर बहस छिड़ी हुई है और #WeakModiSarkar हैशटैग ट्रेंड कर रहा है.
लोग चरमपंथी हमलोें में तेज़ी, ट्रेन दुर्घटनाओं की बढ़ती संख्या और संस्थानों में अपनी मर्ज़ी की नियुक्तियों जैसी बातों को लेकर मोदी सरकार की आलोचना कर रहे हैं.
@RotduBhakt ने लिखा, "मोदी जी. कोई काम नहीं. सिर्फ़ पब्लिसिटी. कोई एक्शन नहीं सिर्फ़ जुमलेबाज़ी."
@ShankhPaad ने ट्वीट किया, "कमज़ोर मोदी सरकार के उदाहरण. पांच महीने में छह बड़े रेल एक्सीडेंट. क्या हम वाकई बुलेट ट्रेन के लिए तैयार हैं."
सोनिया गांधी, राहुल गांधी
@GauravPandhi का कहना है, "जब हमारे देश पर हमले होते हैं. जब हमारे सैनिक मारे जाते हैं, तब योग और सेल्फ़ी दोनों ही काम नहीं आते. समझे आप."
@ashishksaini ने ट्वीट किया, "चरमपंथी गतिविधियों को देखकर लगता है कि वह मोदी सरकार में टूरिज्म पर भारत आ रहे हैं."
‏अविनाश तंज कसते हुए कहते हैं, "ऐसी सरकार जो कांग्रेस के 25 सांसदों को लोकसभा से बाहर फिकवा दे वो काहे की कमज़ोर सरकार."
जम्मू कश्मीर में बीएसएफ़ के काफिले पर हमले करने में कथित तौर पर शामिल एक चरमपंथी के पकड़े जाने का ज़िक्र करते हुए @Akashiyc ने लिखा, "गांव के लोगों ने खूंखार चरमपंथी को पकड़ा और बीजेपी के नेता अपनी पीठ थपथपा रहे हैं."

समर्थन

नरेंद्र मोदी
हालांकि कई लोग मोदी सरकार के समर्थन में भी ट्विटर पर मोर्चा खोल चुके हैं.
रविकांत लिखते हैं, "#WeakModiSarkar, कांग्रेस के समर्थकों का चलाया प्रोपगेंडा है और कुछ नहीं."
@sudhirbharg लिखते हैं, "मोदी के नेतृत्व में भारत में ज़बरदस्त आर्थिक प्रगति हो रही है. कौन कहता है कि ये कमज़ोर सरकार है."
@Karan_naraK ने ट्वीट किया, "कांग्रेसी और आप समर्थकों की मिली भगत है ये #WeakModiSarkar ट्रेंड.

Wednesday, 5 August 2015

Non-bailable arrest warrant issued against Lalit Modi

Non-bailable arrest warrant issued against Lalit Modi

A special court for Prevention of Money Laundering Act here today issued a non-bailable arrest warrant (NBW) against former IPL boss Lalit Modi in connection with a case of money laundering following a plea by the Enforcement Directorate.
“Your (ED’s) application is allowed,” said Special Judge P R Bhavake while issuing the NBW.
ED had moved the special court last week seeking NBW against Modi after he did not respond to summons sent to him.
According to ED sources, this warrant will be sent to the Ministry of External Affairs which in turn will be sending it to the United Kingdom. Lalit Modi left the country shortly after the ED began its probe against him in 2009.
However, getting the NBW order did not come easy for the probe agency as the judge first questioned ED’s delay in seeking the NBW and later raised the jurisdictional issue too.
The court also wanted to know why the agency was not arresting him and had sought the NBW, and whether a warrant can be issued during the investigation.
Last month, the court had issued Letters Rogatory (LR) to Singapore and Mauritius, seeking assistance in the case.
BCCI had registered an FIR in Chennai against Lalit Modi in 2010 under the IPC with regard to a deal between MSM Singapore (which owns the channel Sony) and WSG media, a sports marketing and event management company.
In 2008, BCCI awarded 10-year media rights to WSG for USD 918 million. WSG then entered into a deal with MSM to make Sony the official broadcaster. The contract was replaced later with a nine—year deal where MSM paid USD 1.63 billion.
In 2009, the ED started a probe under the Foreign Exchange Management Act (FEMA) to investigate allegations that payment of Rs. 425 crore facilitation fees by MSM Singapore to WSG Mauritius was made in an unauthorised manner.
Yesterday, ED’s lawyer Hiten Venegoankar said that since Lalit Modi was not available in India, hence an NBW should be issued. Modi had not complied with the summonses issued to him since 2009, he had claimed.
The judge had asked if Lalit Modi was an accused before the court as ED had not filed a charge sheet against him. For issuance of NBW, the person should be an accused before the court, judge Bhavake had said.
The ED lawyer said the case was at the stage of pre—investigation and the Supreme Court had said in a previous ruling that NBW can be issued during investigation.

Former Pakistan investigator blames LeT for 26/11

Former Pakistan investigator blames LeT for 26/11

August 5, 2015
In this November 26, 2008 photo, a gun-wielding Ajmal Kasab walks through the Chatrapathi Shivaji Terminal railway station in Mumbai. A former FIA official has admitted to Pakistan's involvement in Mumbai terror attacks.

In this November 26, 2008 photo, a gun-wielding Ajmal Kasab walks through the Chatrapathi Shivaji Terminal railway station in Mumbai. A former FIA official has admitted to Pakistan's involvement in Mumbai terror attacks.

Former chief of Pakistan's Federal Investigation Agency Tariq Khosa says, "Pakistan has to deal with the Mumbai mayhem, planned and launched from its soil."

Former Pakistani investigator Tariq Khosa’s statement that there is evidence to link the Lashkar-e-Taiba (LeT) to 26/11 Mumbai attacks has reinforced New Delhi’s position on cross-border terrorism.
Coming ahead of the meeting of the National Security Advisers proposed for later this month, the revelations were made in a piece written by Mr. Khosa who led the probe into the 26/11 attacks, in the Pakistani newspaper Dawn. The former head of the Federal Investigation Agency has referred to seven pieces of evidence to show the attacks were planned in Pakistan. For instance Ajmal Kasab was a Pakistani national.
Evidence of Pakistan complicity piling up: ex-Foreign Secretary
Former Pakistani investigator, ex-head of the Federal Investigation Agency, Tariq Khosa pointed out in his Dawn article that the casings of the explosive devices used in Mumbai were recovered from training camps in Sindh, the fishing trawler that brought the attackers near Mumbai was traced to Pakistan, the money trail was linked to the arrested accused and the communications through Voice over Internet Protocol gave away the masterminds orchestrating the violence from Pakistan.
Welcoming the revelations made by Mr. Khosa, former Foreign Secretary Lalit Mansingh told . that India must now “place these facts on the table” during the meeting of the NSAs.
“Pakistan has always been in denial, but evidence of its complicity is now piling up. As the NSAs’ meeting will centre on terrorism, India must confront Pakistan as these revelations reinforce our case,” Mr. Mansingh said.
Mr. Khosa’s reference to the trial of the Mumbai case having dragged on for far too long has also found a resonance in India.
“Dilatory tactics by the defendants, frequent change of trial judges, and assassination of the case prosecutor as well as retracting from original testimony by some key witnesses have been serious setbacks for the prosecutors,” he has said in his piece.
Former bureaucrat and a distinguished fellow at the Institute of Peace and Conflict Studies Rana Banerji said the judiciary in Pakistan should expedite the trial, which has been hanging fire.
Describing Mr. Khosa as a person of “impeccable reputation”, Mr. Banerji said these revelations have been made before and were useful for India to present its case at international fora.
On how these revelations will play out ahead of the NSAs’ meet, he said some sections of the army and the intelligence in Pakistan seem upset by the disclosure as Islamabad is now “dilly dallying” on the dates for the meeting put forth by India.
Citing the December 16, 2014 attacks carried out by the Tehreek-i-Taliban Pakistan, Mr. Khosa had suggested that “both India and Pakistan admit their mistakes and follies and learn to co-exist while trying to find solutions to their thorny issues through peaceful means.”

Ban only on sites promoting child porn, says Centre

Ban only on sites promoting child porn, says Centre

August 5, 2015
Department of Telecommunication had blocked 857 websites citing they contain pornographic material. Photo for illustrative purpose.

Department of Telecommunication had blocked 857 websites citing they contain pornographic material. Photo for illustrative purpose.
Following massive uproar over its move to ban 857 pornography sites, the Union government on Tuesday said the ban would be lifted. However, sites that promoted child porn would continue to be prohibited.
The government on Friday asked Internet service providers to restrict “open and free” access to 857 porn websites to protect Indian cultural fabric. On Monday, 
“The government has decided that the ban will be partially lifted. The Supreme Court petition pertained to child pornography, so sites promoting it will continue to be under the ban. A communication will soon be sent out to Internet services providers. Other considerations will be looked into after court hearing,” a source in the Telecom Ministry said.
The decision was taken at a high-level meeting called by Telecom Minister Ravi Shankar Prasad and attended by IT Secretary R.S. Sharma and Additional Solicitor-General Pinky Anand.
“The action taken by the government was basically to comply with the observation of the Supreme Court when it asked the department to take action on the list of alleged porn sites provided by the petitioner,” Mr. Prasad said.
‘Serious issue’
“The issue is definitely serious and some steps need to be taken,” Chief Justice H.L. Dattu had remarked while hearing a public interest litigation petition by advocate Kamlesh Vashwani to block porn websites. “The Centre is expected to take a stand … let us see what stand the Centre will take.”
He had directed the government to reply in four weeks. The next hearing in the Supreme Court on this matter is scheduled for August 10.
The Telecom Department is working on a long-term policy, which could include the setting up a regulatory body or an ombudsman to regulate such sites, a top Ministry source had told . “The government must stay away from the whole process [dealing with obscene/explicit content online] … One of the ideas is to set up a regulatory body or let there be an ombudsman to take a call or such issues.”

Live: Rescue and relief ops over; govt. announces compensation

Live: Rescue and relief ops over; govt. announces compensation

Updated: August 5, 2015 15:07 IST

Over 250 passengers rescued; Railway Ministry orders inquiry, says reported death toll needs to be verified.

At least 29 passengers, including 11 women and five children, were killed and 25 others injured when several coaches of two trains, one heading to Mumbai and another to Varanasi, derailed over a railway bridge in Harda district and plunged into the swollen Machak river.
Here's a list of trains diverted, cancelled and short terminated: 

Helpline numbers:





CSTM 022-22694040
Itarsi 07572 241920
LTT 022-25280005
Bina 07580 222052
Thane 022-25334840
Harda 9752460088
Kalyan 0251-2311499
Bhopal 0755 4001609
Live updates: 
 
12:23 pm: “Twenty-nine bodies, including those of 13 men, 11 women and five children, have been recovered so far from the mishap site,” says Madhya Pradesh government spokesman Anupam Rajan.
12:10 pm: 12 passengers were killed and 25 sustained injuries in the accident: Railway Minister Suresh Prabhu
11:50 am:
11:04 am: Over 250 passengers have been rescued.
10:16 am: The rescue and relief operations are over. Saxena said some trains are diverted and few have to be cancelled to regulate traffic. Railway Ministry spokesperson Anil Kumar Saxena said setting right the affected tracks would take time and officials are working hard towards it.
9:50 am: Mr. Saxena says the reported death toll has to be verified, as some of them might be due to floods. The official death toll stands at 12 with 25 injured.
9:40 am: Chief Minister Shivraj Singh Chouhan to visit the spot of accident today.
9:25 am: Madhya Pradesh government spokesman Anupam Rajan says: “Twenty four bodies, including nine men, 10 women and five children, have been recovered so far from the mishap site between Khirkiya and Harda, about 160 km from Bhopal.”
8:59 am: President Pranab Mukherjee condoles loss of lives.
8:27 am:
8:19 am: Railways announce a compensation of Rs. 2 lakh to the kin of the deceased; Rs. 50,000 to persons who are grievously injured and Rs. 25,000 for persons with minor injuries.
8
:03 am: Railway Minister Suresh Prabhu tweets:
7:52 am:
Here's a list of trains diverted, cancelled and short terminated:
Up trains diversion:
 
Short terminated up trains:

Up train cancelled:

Down train cancelled:
7:44 am:
7:33 am: Commissioner Railway Safety (Central Zone) to conduct the probe, says Railways.
7:32 am: Inquiry ordered into mishap.
7:30 am: 20 people killed in twin train derailments in Harda: MP govt.
7:23 am: Teams rushed to assist in rescue, relief work. Govt. providing necessary emergency services: MoS Home Affairs Kiren Rijiju
7:20 am: “Nearly 25 passengers suffered injuries,” the PRO said.
7:00 am: Relief trains have reached the spot.
Harda Collector Rajnish Shrivastava said that derailment took place near Khirkiya and Harda station on Machak river. 

Some bogies and engines of both the trains are in water, he said.
Hoshangabad Divisional Commissioner V.K. Batham said that Janata Express also derailed at the same spot on its way to Mumbai from Jabalpur. 

A relief train carrying collector, SP, doctors and other railway staff is on the way, he said.
Railway Minister Suresh Prabhu tweeted:
Cause of derailment
 
“According to reports, there was a possible burst in a nearby dam, which caused sudden flow of water on the tracks and that resulted in the derailment,” Railway Board Chairman A.K. Mittal said.
Several passengers have been rescued and sent to the nearest station, he said.
“We will call for an inquiry into the incidents and will also take remedial measures to prevent such incidents in future,” he said. 

Meanwhile, Railway Board member (traffic) Kundan Sinha said the tracks have been breached because of the flow of excessive water and the particular section has been closed for any train movement.
The accident relief train has reached the spot and several passengers have been brought to a nearby station, Mr. Sinha added.