Saturday 3 August 2013

'अम्मा' बनी 'अन्नपूर्णा', मात्र आठ रुपये में भरपेट भोजन

'अम्मा' बनी 'अन्नपूर्णा', मात्र आठ रुपये में भरपेट भोजन

Updated on: Sun, 04 Aug 2013 10:23 AM
Amma canteen
'अम्मा' बनी 'अन्नपूर्णा', मात्र आठ रुपये में भरपेट भोजन
चेन्नई। योजना आयोग की गरीबी की नई परिभाषा के अनुसार गांव में 27 और शहर में 33 रुपये खर्च करने वाले गरीब नहीं हैं। इसपर कुछ राजनेताओं द्वारा सहमति जताने और 12 रुपये, पांच रुपये और एक रुपये में भी भर पेट खाना मिलने वाली बात कहे जाने के बाद पूरे देश में उबाल आ गया। लेकिन लोगों को क्या पता कि चेन्नई में ऐसा संभव है और वह भी वहां की मुख्यमंत्री जयललिता की योजना की वजह से।

चेन्नई में ही डेढ़ लाख लोगों को एक रुपये में नाश्ता और आठ रुपये में लंच दिया जा रहा है, वह भी अच्छी गुणवत्ता वाला। यह योजना राज्य के नौ और शहरों में शुरू हो गई है।
अम्मा यानी जयललिता कैंटीन सुबह साढे़ सात खुलती है, लेकिन लोगों की कतारें सुबह छह बजे से लगनी शुरू हो जाती है। दस बजे तक एक रुपये में नाश्ते में इडली और पोंगल दिया जाता है। दोपहर 12 बजे से तीन बजे तक लंच में तीन रुपये में दही-चावल और पांच रुपये में सांभर-चावल। दोनों मिलाकर भरपेट भोजन और खर्च सिर्फ आठ रुपये। शहर में ऐसी 200 कैंटीन हैं, जहां लोग सस्ते में लजीज खाने का लुत्फ उठा रहे हैं।
जयललिता ने इसी साल फरवरी में ऐसी 50 कैंटीन शुरू की थी। लोकप्रिय हुई तो एक ही महीने में इन्हें सारे 200 वार्डो में शुरू करना पड़ा। मकसद था कम आमदनी वालों को कम कीमत में अच्छा भोजन। मगर यहां ड्राइवर, सिक्योरिटी गार्ड, हेल्पर, मजदूर तबके के लोग ही नहीं आते, अच्छे-खासे खाते-पीते घरों के लोग भी कार साइड में लगाते नजर आएंगे।
अम्मा कैंटीन की देखरेख का जिम्मा नगर निगम के हाथों में है। जयललिता ने इस महत्वाकांक्षी स्कीम का जिम्मा 1988 बैच के आईएएस अफसर विक्रम कपूर को सौंपा, जो निगम में कमिश्नर हैं। आइआइएम बेंगलूर से प्रबंधन करने वाले कपूर बताते हैं कि चेन्नई में गरीबी की रेखा के नीचे 20 फीसद आबादी यानी करीब छह लाख लोग हैं। इनमें से हम हर दिन डेढ़ लाख लोगों को भोजन दे रहे हैं। हरेक व्यक्ति को कवर करने के लिए कुल एक हजार कैंटीन शुरू करने की योजना है। अगले महीने रिव्यू के बाद यह काम शुरू हो जाएगा।
अभी एक इडली की लागत एक रुपये 86 पैसे है। हर दिन का खर्च करीब 14 लाख और आमदनी नौ लाख रुपये। बाकी पैसा सरकार से सब्सिडी के रूप में मिल रहा है। योजना को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ऐसी मशीनें लगने वाली हैं, जिनसे एक घंटे में तीन हजार इडली बन सकेंगी। कपूर कहते हैं कि तब एक इडली की लागत एक ही रुपये होगी। हम यह सिद्ध करेंगे कि पांच रुपये में पौष्टिक भोजन संभव है। सितंबर में चावल के अलावा चपाती भी मेनू में जुड़ जाएगी। यह स्कीम चेन्नई के बाहर नौ और शहरों-तिरुचिरापल्ली, मदुरई, वेल्लोर, कोयंबटूर, सलेम, तिरुनेलवेली, त्रिपोर, तूतिकोरिन और इरोड में फैल चुकी है

आईएएस दुर्गाशक्ति का निलंबन रद्द कर सकता है केंद्र

आईएएस दुर्गाशक्ति का निलंबन रद्द कर सकता है केंद्र

4 अगस्त 2013 12:28 AM 
centre may cancel the suspension of durgashakti
देश में ईमानदारी के साथ नारी शक्ति की नई पहचान बनीं उत्तर प्रदेश की युवा आईएएस अधिकारी दुर्गाशक्ति नागपाल के निलंबन के मामले में अब नया राजनीतिक मोड़ आ गया है।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने खुद इस मामले में दखल देते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर कह दिया है कि महिला अफसर के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए।

साथ ही सोनिया ने अफसरों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करने की बात कही है। सोनिया के मनमोहन को लिखे खत के बाद केंद्र सरकार दुर्गाशक्ति के निलंबन को रद्द करने पर गंभीरता से विचार कर रही है।

केंद्र के इस रुख को देखते हुए इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा रहा कि अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए यूपी सरकार खुद ही दुर्गाशक्ति का निलंबन रद्द कर दे।

केंद्र के पास निलंबन को रद्द करने का पूरा अधिकार
केंद्रीय कार्मिक राज्यमंत्री नारायण सामी ने अमर उजाला से बातचीत में कहा कि दुर्गाशक्ति नागपाल के निलंबन पर उत्तर प्रदेश सरकार ने तीन दिन बीत जाने के बावजूद अब तक कोई रिपोर्ट नहीं भेजी है और केंद्र के पास युवा आईएएस अधिकारी के निलंबन को रद्द करने का पूरा अधिकार है।

नारायणसामी ने कहा कि भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की कैडर कंट्रोलिंग अथॉरिटी होने के नाते कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने बीते बृहस्पतिवार को अखबारों और मीडिया की खबरों को देखकर अखिलेश सरकार से नागपाल के निलंबन का कारण और पूरी घटना का ब्यौरा मांगा था।

लेकिन अपने फैसले के पक्ष में अजीबोगरीब तर्क दे रही सपा सरकार ने केंद्र के इस निर्देश की अब तक कोई सुध नहीं ली है। नारायणसामी ने कहा कि कार्मिक विभाग के नियम के मुताबिक अगर नागपाल के निलंबन के पीछे का कारण तर्कसंगत नहीं हुआ तो उनके पास राज्य सरकार के इस फैसले को खारिज करने का पूरा अख्तियार है।

सामी के मुताबिक इसके लिए दुर्गाशक्ति को विभाग के पास अर्जी देनी होगी जिसे तकनीकी तौर पर मेमोरियल कहा जाता है। डीओपीटी आईएएस अधिकारी के निलंबन के कारणों की जांच करेगा। इस क्रम में राज्य सरकार को भी पूरी रिपोर्ट सौंपनी होगी।

निलंबन का सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ने से कोई संबंध नहीं
उच्चपदस्थ सरकारी सूत्रों के मुताबिक आईबी की खुफिया रिपोर्ट से भी यह साफ हो गया है कि नागपाल के निलंबन का ग्रेटर नोएडा के गांव में सांप्रदायिक माहौल बिगड़ने से कोई संबंध नहीं है।

केंद्र को इस बारे में भी कोई शंका नहीं कि यह निलंबन रेत माफिया के दबाव में दिया गया है जिन पर इस महिला युवा अधिकारी ने अपना शिकंजा मजबूत कर लिया था।

लिहाजा डीओपीटी ने मामले को गंभीरता से लेते हुए आगे की कार्रवाई करने का मन बना लिया है। अधिकारी के मुताबिक हालांकि कोई भी कार्रवाई नियमों और उचित प्रक्रिया के तहत ही की जाएगी।

लेकिन केंद्र सरकार उदाहरण कायम करना चाहती है जिससे ईमानदार आईएएस अधिकारियों को अपने सही काम के लिए परेशान नहीं होना पड़े।

दो पत्र और लिखें सोनिया : सपा
सपा नेता नरेश अग्रवाल ने कहा है कि सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री को दो पत्र और लिखने चाहिए। एक पत्र उन्हें आईएएस अफसर अशोक खेमका के बारे में लिखना चाहिए, जिनका हरियाणा के सीएम ने तबादला कर दिया था।

वह दूसरा पत्र दो आईएएस अफसरों के बारे में लिखें, जिन्हें राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने निलंबित कर दिया था। दोनों ही मामलों में जमीन सौदों को लेकर रॉबर्ट वाड्रा का नाम उछला था।

ऑपरेशन ब्लूस्टार के ज़ख़्म अब भी क्यों हरे?

ऑपरेशन ब्लूस्टार के ज़ख़्म अब भी क्यों हरे?

 रविवार, 4 अगस्त, 2013 को 08:18
लंदन में सिख समुदाय से ताल्लुक रखने वाले चार लोगों को भारतीय सेना के एक सेवानिवृत्त लेफ़्टिनेंट जनरल पर हमला करने के आरोपों में दोषी क़रार दिया गया.
रिटायर हो चुके लेफ़्टिनेंट जनरल कुलदीप सिंह बरार ने ही वर्ष क्लिक करें 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार का नेतृत्व किया था.
पिछले साल सितंबर में जब 78 वर्षीय क्लिक करें कुलदीप सिंह बरार पर हमला हुआ तो भारतीय इतिहास की एक बेहद विवादास्पद घटना फिर से सुख़िर्यों में आ गई. इसी मामले में लंदन में चार लोगों को दोषी ठहराया गया है.
क्लिक करें ऑपरेशन ब्लू स्टार के ज़रिये स्वर्ण मंदिर में छिपे क्लिक करें चरमपंथियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की गई थी जो क्लिक करें सिख अलगावादियों को प्रोत्साहन दे रहे थे.
सिख अलगाववादी अपने लिए पंजाब में एक स्वतंत्र राज्य क्लिक करें खालिस्तान की मांग कर रहे थे.
स्वर्ण मंदिर के पवित्र परिसर में हुई इस सैन्य कार्रवाई से दुनिया भर में रहने वाले सिख समुदाय के लोग भड़क उठे और उन्होंने इस परिसर को अपवित्र करने का आरोप सेना पर लगाया.
भारत सरकार के मुताबिक इस घटना में क़रीब 400 लोग मारे गए जिनमें 87 सैनिक थे.

कई बार हत्या की कोशिश

लेफ़्टिनेंट जनरल बरार
लंदन में हुआ था लेफ़्टिनेंट जनरल बरार पर हमला. उस वक्त उनके साथ सुरक्षा कर्मी नहीं थे
हालांकि सिख समूहों में इन आंकड़ों को लेकर मतभेद है. उनका कहना है कि इस सैन्य कार्रवाई में हज़ारों लोग मारे गए थे जिनमें काफ़ी तादाद में श्रद्धालु भी थे जो वहां सिखों के पांचवे गुरू अर्जुन देव जी की पुण्यतिथि के सालाना आयोजन के मौके पर आए थे.
इस कार्रवाई में मंदिर के काफ़ी हिस्से क्षतिग्रस्त हो गए और सिखों ने इस घटना को अपने धर्म पर हमला समझ लिया.
ऑपरेशन ब्लू स्टार की परिणति तत्कालीन क्लिक करें प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के तौर पर हुई. उन्हें उनके एक क्लिक करें सिख बॉडीगार्ड ने इस सैन्य कार्रवाई के लिए ज़िम्मेदार समझते हुए प्रतिशोध में मौत के घाट उतार दिया.
इस घटना के तीन दशक बाद सिखों के एक समूह ने क्लिक करें लेफ़्टिनेंट जनरल बरार से बदला लेने का मौका ढूंढ लिया जो छुट्टियां बिताने के लिए अपनी पत्नी मीना के साथ लंदन में थे.
हैरानी की बात थी कि लंदन में लेफ़्टिनेंट जनरल बरार अपनी पत्नी के साथ बिना किसी सुरक्षा इंतज़ामात के घूम रहे थे जब उन पर हमला कर दिया गया.
लेफ़्टिनेंट जनरल बरार ने भारत से वीडियो लिंक के जरिये अदालत को कहा कि साल 1984 से ही उनकी हत्या करने की कई दफ़ा कोशिश की गई और कई चरमपंथी सिख वेबसाइटों की सूची में भी उन्हें निशाने पर लेने के लिए सबसे ऊपर रखा गया है.

चरमपंथियों के विरोध

स्वर्ण मंदिर
ब्लू स्टार की कार्रवाई में स्वर्ण मंदिर परिसर क्षतिग्रस्त हो गया था
साउथवॉर्क क्राउन कोर्ट की जूरी को लेफ़्टिनेंट जनरल बरार ने कहा, “ऑपरेशन ब्लू स्टार सिख समुदाय के ख़िलाफ़ नहीं बल्कि उन चरमपंथियों के विरोध में था जो बड़े पैमाने पर लोगों को मार रहे थे.”
उन्होंने कहा कि उन्होंने चरमपंथियों को कई दफ़ा चेतावनी भी दी थी लेकिन जब उन्हें उनसे कोई जवाब नहीं मिला तब उनके पास मंदिर में जाने के अलावा और कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा.
उन्होंने कहा, “मैंने सैनिकों से कम से कम बलप्रयोग करने और मंदिर को क्षतिग्रस्त नहीं करने के लिए कहा था लेकिन जब सैनिकों पर चारों तरफ़ से हमले किए जाने लगे तब उन्होंने अपनी कार्रवाई तेज़ कर दी.”
लेफ़्टिनेंट जनरल बरार ने कहा, “आप बैठकर अपनी मौत का इंतजार नहीं कर सकते हैं. हमें अपनी सुरक्षा की वजह से कार्रवाई करनी पड़ी.”
उन पर हमला करने वाले 34 साल के मनदीप सिंह संधू, 36 वर्षीय दिलबाग सिंह जो लंदन में रहते हैं वे ऑपरेशन ब्लू स्टार के वक्त बेहद कम उम्र के थे लेकिन उनके मन में प्रतिशोध की भावना बनी हुई थी.

बदले की भावना


अदालत में यह कहा गया कि दिलबाग सिंह के परिवार के दो सदस्य उनके पिता और भाई 1984 के बाद से ही लापता हैं जो भारतीय सेना की कार्रवाई के वक्त मंदिर परिसर में ही मौजूद थे.
जब सिंह संधू और दिलबाग सिंह को मालूम चला कि लेफ़्टिनेंट जनरल बरार और उनकी पत्नी लंदन में मौजूद हैं तो उन्होंने एक अभियान शुरू कर दिया जिसके तहत उनकी गतिविधियों पर नजर रखी जा सके.
पश्चिमी लंदन के 38 वर्षीय उनके एक दोस्त हरजित कौर ने तो लेफ़्टिनेंट जनरल बरार और उनकी पत्नी का पीछा एक कैसिनो, रेस्त्रां और एक बस तक किया.
30 सितंबर की रात को उन्हें होटल से कुछ ही दूरी पर मौजूद एक शांत सड़क पर उन दोनों पर हमला हुआ.
अदालत की सुनवाई में यह कहा गया कि क्लिक करें हमलावरों ने उनकी पत्नी को एक दीवार की तरफ़ ढकेल दिया और उनकी तीन लोगों ने उनके पति को घेर लिया.
लेफ़्टिनेंट जनरल बरार ने अदालत को कहा, “मैं जोर से चिल्लाया, तुम लोग कौन हो? जाओ यहां से! मैंने उनसे लड़ने लगा.”
जनरैल सिंह भिंडरावाला
‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ में जनरैल सिंह भिंडरावाला की अगुआई में सैकड़ों सशस्त्र चरमपंथी मारे गए.
तीनों हमलावरों ने उनसे हाथापाई कर उन्हें ज़मीन पर गिरा दिया और चौथे व्यक्ति ने उनका गला काटने की कोशिश की.
उन्होंने कहा, “मैंने यह कभी नहीं सोचा था कि मैं अपनी पत्नी और बच्चों को फ़िर से देख पाऊंगा.”

विरोध जताने की कार्रवाई

हालांकि रात के अंधेरे का फ़ायदा उठाते हुए हमलावर भाग निकले और पास के एक पब में आए लोगों ने लेफ़्टिनेंट जनरल बरार की मदद की जो ख़ून से लथपथ हो चुके थे.
उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां उनका एक ऑपरेशन हुआ. उनके चेहरे और गले पर धारदार हथियार से हमला किया गया था.
दिलबाग सिंह ने यह स्वीकार किया कि उन्होंने लेफ़्टिनेंट जनरल बरार का पीछा किया था लेकिन उनका मकसद लंदन में उनकी मौजूदगी के प्रति विरोध जताना था.
मनदीप सिंह संधू ने कोई प्रमाण देने से इनकार कर दिया. कौर ने भी इन आरोपों को ख़ारिज़ किया.
लेकिन इन तीनों लोगों को गंभीर रूप से शारीरिक क्षति पहुंचाने का दोषी माना गया है. चौथे हमलावर बरजिंदर सिंह संघा भी इसके लिए पहले दोषी ठहराए गए हैं.

महिलाओं पर अत्याचार :नाबालिग बेटी का हुआ अपहरण, परिवार 205 दिन से अनशन पर

नाबालिग बेटी का हुआ अपहरण, परिवार 205 दिन से अनशन पर

  शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश), 3 अगस्त 2013 | अपडेटेड: 14:57 IST



महिलाओं पर अत्याचार
महिलाओं पर अत्याचार
शाहजहांपुर में एक परिवार का 205 दिन का अनशन उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था के हालात बयां कर रहा है. यहां एक मां अपने मासूम बच्चों के साथ अपनी अपहृत नाबालिग बेटी की बरामदगी के लिए कलेक्ट्रेट में अनशन पर बैठी है. बेबस परिवार आत्महत्या करने की बात कर रहा है. उसका कहना है कि उनकी मौत के जिम्मेदार मुख्यमन्त्री समेत पुलिस और प्रशासन होगा. कलेक्ट्रेट में डीएम कार्यालय के बाहर बैठे तीन बच्चे और उनकी मां पिछले 205 पांच दिनों से अनशन पर हैं, क्योंकि इन बच्चों की नाबालिग बहन का अपहरण कर लिया गया है. कई महीने बीत जाने के बाद भी उसकी बरामदगी नहीं की जा सकी. मां सिर्फ अपनी उस 14 साल की बेटी पूजा की बरामदगी चाहती है जिसका सात महीने पहले अपहरण कर लिया गया था. इस परिवार की 14 साल की बेटी को 9 अक्टूबर 2012 को अगवा कर लिया गया था. पुलिस ने तीन लोगों के खिलाफ अपहरण का मामला भी दर्ज किया, लेकिन 205 दिन बीत जाने के बाद भी इनकी बेटी का कोई सुराग नहीं लग सका.
परिवार का आरोप है कि स्थानीय पुलिस सिर्फ खानापूर्ती ही कर रही है. पुलिस की इसी बेरुखी से नाराज ये परिवार अपने बच्चों समेत कलेक्ट्रेट में अपनी बेटी की बरामगी को लेकर डटी हुई है. बेटी मिलने की परिवार की आस अब टूटती नजर आ रही है.
परिवारजनों का कहना है कि अगर पूजा की जल्द ही बरामदगी नहीं की गई तो वे आत्महत्या कर लेंगे, जिसके जिम्मेदार प्रदेश के मुखिया अखिलेश यादव और पुलिस प्रशासन के अधिकारी होंगे.
पूजा की मां आरती ने कहा कि कई दिन हो गये हमें बैठे, हमारी कोई सुनवाई नहीं हुई. इससे अच्छा तो हम मर जाएं. गरीबों की कोई सुनने वाला नहीं है. मेरी लड़की अभी तक नहीं मिली है, उसका जिम्मेदार प्रशासन है.
ये परिवार पुलिस की चौकी से लेकर डीजीपी और मुख्यमन्त्री तक अपनी गुहार लगा चुका है, लेकिन अभी तक पूजा नहीं मिली है. प्रदेश के मंत्री की मानें तो कानून-व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त है और लड़की की बरामदगी के लिए भी प्रयासरत है, लेकिन बरामदगी होगी भी या नहीं ये उन्हें भी नहीं मालूम. फिलहाल जिले के नए पुलिस अधीक्षक ने मामले की जांच नए सिरे से करने के आदेश दिए हैं.
शाहजहांपुर के पुलिस अधीक्षक सैयद वसीम अहमद ने कहा कि यह मामला जब से उनके संज्ञान में आया, वे पूरी तरह प्रयास कर रहा हूं कि लड़की को बरामद किया जाये.
प्रदेश के पिछड़ा वर्ग राज्य मन्त्री राम मूर्ति सिंह वर्मा ने कहा कि पुलिस प्रशासन पूरी तरह से मामले में लगा है और उन्होंने खुद भी कई बार जाकर उन लोगों की खैर खबर ली है.
समाजसेवी फकीरे लाल भोजवाल का कहना है कि कानून-व्यवस्था पूरी तरह से फेल है. बड़ी मुश्किल से रिपोर्ट दर्ज हुई. पुलिस कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर रही.


BREAKING NEWS FROM 29 JULY TO TILL DATE(2 August)

नरेंद्र मोदी से खफा हुआ अकाली दल

: Fri, 02 Aug 2013
Akali
नरेंद्र मोदी से खफा हुआ अकाली दल
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। गुजरात के कच्छ में सालों से रह रहे सिख किसानों को बेघर करने के नरेंद्र मोदी सरकार के फरमान से राजग के अहम सहयोगी शिरोमणि अकाली दल के तेवर तल्ख हो गए हैं। पार्टी की दिल्ली इकाई ने एलान किया है कि किसी भी कीमत पर सिख किसानों को उनकी जमीन से बेदखल नहीं होने दिया जाएगा। इसके साथ ही मोदी को नसीहत दी कि देश का प्रधानमंत्री बनने से पहले वे किसानों के प्रति अपना फर्ज निभाएं। प्रभावित किसानों का कहना है कि यदि वे गुजरात के लिए बाहरी हैं तो फिर मोदी भी दिल्ली के लिए बाहरी हुए। इस आधार पर देश उन्हें कैसे अपना नेता मानेगा?
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी व अकाली दल दिल्ली के प्रधान मनजीत सिंह जीके ने गुरुवार को संवाददाता सम्मेलन में कहा कि 1960 से कच्छ इलाके में बसे हुए पंजाब के पांच हजार सिख किसानों को गुजरात का नागरिक मानने से इन्कार करते हुए उनकी जमीन अधिग्रहण करने का तुगलकी फरमान जारी किया गया है। इसके खिलाफ किसान गुजरात हाई कोर्ट में मुकदमा जीत चुके हैं, परंतु, गुजरात सरकार ने सारे नियम कायदों को ताक पर रखकर उच्चतम न्यायालय में अपील दायर कर दी है। इस तरह से गुजरात सरकार भारतीयों के मन में घृणा फैलाकर उन्हें बांटने का काम कर रही है।

 

 

एडवर्ड स्नोडेन ने मॉस्को एयरपोर्ट 'छोड़ा'

उन्हें शेरेमेत्येवो एयरपोर्ट के ट्राज़िंट ज़ोन से रूस के इलाक़े में जाने के लिए ज़रूरी काग़ज़ात मिल गए हैं.

 गुरुवार, 1 अगस्त, 2013 को 18:53
एडवर्ड स्नोडेन
अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए के पूर्व कॉन्ट्रैक्टर एडवर्ड स्नोडेन ने मॉस्को एयरपोर्ट छोड़ दिया है. उनके वकील ने बीबीसी को ये जानकारी दी है.
स्नोडेन जून से ही मॉस्को एयरपोर्ट में रुके हुए थे.
स्नोडेन के वकील अनातोली कुशेरेना ने कहा कि उन्हें शेरेमेत्येवो एयरपोर्ट के ट्राज़िंट ज़ोन से रूस के इलाक़े में जाने के लिए ज़रूरी काग़ज़ात मिल गए हैं.
एयरपोर्ट प्रेस ऑफिस ने बीबीसी को बताया कि एडवर्ड स्नोडेन स्थानीय समय के मुताबिक दोपहर 2 बजे (भारतीय समय के मुताबिक दोपहर क़रीब 3.30 बजे) एयरपोर्ट से रवाना हुए. एयरपोर्ट पर मौजूद मीडिया को भी उनके एयरपोर्ट से निकलने का पता नहीं चल सका.

स्नोडेन को शरण?

मॉस्को से बीबीसी के संवाददाता डेनियल सैंडफर्ड के मुताबिक अभी ये साफ़ नहीं हो पाया है कि स्नोडेन को अस्थायी शरण मिली है या नहीं.
बराक ओबामा
अमरीका का कहना है कि स्नोडेन ने ख़ुफ़िया जानकारी लीक की
अगर स्नोडेन को अस्थायी शरण मिलती है तो वो रूस में एक साल तक रुक सकेंगे और इसके बाद वो फिर से शरण के लिए अर्ज़ी दे सकेंगे. बीबीसी संवाददाता का कहना है कि इस बात की संभावना है कि उन्हें शरण मिल जाएगी.
अमरीका का आरोप है कि एडवर्ड स्नोडेन ने इलेक्ट्रॉनिक निगरानी कार्यक्रम से जुड़ी जानकारी लीक की.
स्नोडेन ये जानकारी लीक करने के बाद 23 जून को हांगकांग से मॉस्को गए थे.
स्नोडेन के ख़ुफ़िया जानकारी लीक करने के बाद पूरी दुनिया में राजनयिक तनाव बढ़ा.
बीबीसी संवाददाता का कहना है कि अमरीका अब इस बारे में कड़ी प्रतिक्रिया दे सकता है.
अमरीका के अटॉर्नी जनरल एरिक होल्डर ने मॉस्को को भरोसा दिलाया था कि अगर स्नोडेन को अमरीका प्रत्यर्पित किया जाता है तो उन्हें मौत की सज़ा नहीं दी जाएगी लेकिन रूस सरकार का कहना है कि वो स्नोडेन को नहीं सौंपने वाले हैं.

 

 

 

Edward Snowden leaves Moscow airport, gets refugee status in Russia

Edward Snowden leaves Moscow airport, gets refugee status in Russia
Moscow: Fugitive former US spy agency contractor Edward Snowden slipped quietly out of Moscow's Sheremetyevo airport today after Russia granted him temporary asylum, ending more than a month in limbo in the transit area.

A Russian lawyer who has been assisting Snowden said the American, who is wanted in the United States for leaking details of secret government intelligence programmes, had gone to a secure location which would remain secret.

After weeks staying out of sight from hordes of reporters desperate for a glimpse of him, Snowden managed to slip away in a taxi without being spotted. Grainy images of his passport showed he had been granted asylum for a year from July 31.


"He is the most wanted man on planet Earth. What do you think he is going to do? He has to think about his personal security. I cannot tell you where he is going," his lawyer, Anatoly Kucherena, told Reuters.

"I put him in a taxi 15 to 20 minutes ago and gave him his certificate on getting refugee status in the Russian Federation," he said. "He can live wherever he wants in Russia. It's his personal choice."

He said Snowden was not going to stay at any embassy in Moscow, although three Latin American countries have offered to shelter him. Snowden was well, he added.

Snowden was accompanied by Sarah Harrison, a representative of the anti-secrecy group WikiLeaks, which confirmed he had left the airport.

"We would like to thank the Russian people and all those others who have helped to protect Mr. Snowden. We have won the battle - now the war," WikiLeaks said on Twitter.

30-year-old Snowden arrived in Moscow from Hong Kong on June 23. Nicaragua, Bolivia and Venezuela have offered him refuge but there are no direct commercial flights to Latin America and he was concerned the United States would intercept his flight to prevent him reaching his destination.

Snowden's case has caused new strains in relations between Russia and the United States which wants him extradited to face espionage charges.

The White House has signalled that President Barack Obama could consider boycotting a planned summit with Russian President Vladimir Putin in Moscow in early September.

But a senior Kremlin official said ties between Russia and the United States would not suffer because of what he said was a "relatively insignificant" case.

"Our president has ... expressed hope many times that this will not affect the character of our relations," Yuri Ushakov, Putin's top foreign policy adviser, told reporters.

He said there was no sign that US President Barack Obama would cancel the planned visit in

 

'बेशर्म' पाकिस्तानः कैप्टन सौरभ कालिया की शहादत पर बोला सफेद झूठ


  इस्लामाबाद, 1 अगस्त 2013 | अपडेटेड: 04:58

पाकिस्तान का झूठ एक बार फिर दुनिया के सामने आ गया है. कारगिल जंग के दौरान शहीद हुए कैप्टन सौरभ कालिया के बारे में पाकिस्तान ये कहता रहा कि उनका शव गड्ढे में मिला था, लेकिन इंटरनेट पर तेजी से फैल रहे एक वीडियो से जाहिर हो गया है कि कैप्टन कालिया और उनके 5 साथी, पाकिस्तानी सैनिकों की बेरहमी का शिकार हुए थे.

 भारत के वीर सपूत कैप्टन सौरभ कालिया की शहादत को लेकर पाकिस्तान अब तक बोलता आ रहा है, लेकिन पाकिस्तानी सैनिक के यू ट्यूब पर पोस्ट हुए वीडियो ने इस झूठ की पोल खोल दी है.
कैप्टन सौरव कालिया ने करगिल में पाकिस्तानी सैनिकों की बड़ी घुसपैठ का सामना किया था. 5 मई 1999 को कैप्टन कालिया और उनके 5 साथियों को पाकिस्तानी फौजियों ने बंदी बना लिया था. 20 दिन बाद वहां से भारतीय जवानों के शव वापस आए तो अटॉप्सी रिपोर्ट से पता चला कि भारतीय जवानों के साथ पाकिस्तान में हद दर्जे की बेरहमी की गई थी. उन्हें सिगरेट से जलाया गया था. उनके कानों में लोहे की सुलगती छड़ें घुसेड़ी गई थीं.
पाकिस्तान की बेशर्मी देखिए, उसने कभी नहीं माना कि कैप्टन कालिया और उनकी टीम को पाक फौजियों ने शहीद किया था. उलटे पाकिस्तान ये कहता रहा कि उनके शव एक गड्ढे में पड़े मिले थे, लेकिन कारगिल जंग में शामिल रहे इस पाकिस्तानी सैनिक का बयान, सारी कहानी साफ कर देता है.
वीडियो में नायक भूले ने बताया, ‘13 मई 1990 को भारत से हमारे ऊपर हमला हुआ. भारत की ओर से छह लोग हमारी ओर बढ़ रहे थे. वे लोग रेकी गश्त पर थे. वे हमारी चौकी पर कब्जा करना चाहते थे और अगर वे सफल हो जाते तो लेह की ओर जाने वाले रास्ते पर उनका कब्जा हो जाता.’
उसने बताया, ‘उनकी योजना सफल नहीं हुई और हमने उन्हें मार गिराया.’ भूले ने बताया, ‘जब वे करीब आए तब हमने उन्हें पकड़ना चाहा लेकिन वे हमसे दूर भाग गए और तब हमने उन पर गोलीबारी शुरू कर दी.’
उसने बताया कि हमनें नियंत्रण रेखा के उस पार भारतीय बलों को आने और मृत सैनिकों के शव को ले जाने की आवाज लगाई, लेकिन उनके लोगों के पास उनके शव को ले जाने का साहस ही नहीं था.
कारगिल जंग के बाद पाकिस्तान में आयोजित सेना के एक समारोह का ये वीडियो यू ट्यूब पर शेयर किया गया है. इस कार्यक्रम में कारगिल जंग में शामिल रहे पाकिस्तानी फौजियों ने अपना तजुर्बा बयान किया है. अब इंतजार है कि इस खुलासे पर पाकिस्तान के हुक्मरान क्या सफाई देते हैं.


watch video: 


Now we have great witness for claim now pakistani army is automatically got guilty ...
Where is our government?...




 

 

ब्रैडली मैनिंग : पद छोटा लेकिन जानकारियां बड़ी थी मैनिंग के पास

 बुधवार, 31 जुलाई, 2013 को 15:27

ब्रैडली मैनिंग पर सेना के सर्वर से गोपनीय दस्तावेज चोरी करने का अपराध साबित हो गया है.
अमरीकी सेना के प्राइवेट फर्स्ट क्लास अधिकारी ब्रैडली मैनिंग पर सेना के कंप्यूटरों से हजारों वर्गीकृत दस्तावेजों को डाउनलोड करने का अपराध साबित हो गया है. मैंनिग के कंप्यूटर हैकर दोस्त ने इस बात की तस्दीक की है.
विकीलीक्स को गुप्त दस्तावेज मुहैया कराने के आरोप में ब्रैडली मैनिंग को गिरफ्तार किया गया था.
इस 25 वर्षीय सैनिक पर ख़ुफ़िया जानकारी सार्वजनिक करने के संबंध में लगे 22 आरोपों में से 20 के साबित होने के बाद अब उसे 136 साल की कैद का सामना करना होगा. हालांकि उन्हें 'शत्रु की सहायता' के सबसे गंभीर आरोप से मुक्त कर दिया गया है.
अमरीकी सेना के ख़ुफ़िया विश्लेषकों के मुताबिक मैनिंग की पहुंच अत्यधिक संवेदनशील सूचनाओं तक थी.
लेकिन प्राइवेट फर्स्ट क्लास के रूप में उसकी रैंक काफी कम थी और साथ ही वेतन भी मामूली था.
उसके दोस्त के मुताबिक वह सैन्य पेशे से असंतुष्ट था और इस कारण निष्क्रीय हो गया था.

निजी जीवन


मैनिंग का शुरुआती जीवन काफी कठिनाइयों भरा था.
साल 2009 में उसकी नियुक्ति इराक में होने के कारण उसका निजी जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ.
प्राइवेट मैनिंग कम वेतन की नौकरियों से गुजरते हुए 2007 में सेना में शामिल हुआ थे.
वह ओकलाहोमा के एक छोटे कस्बे क्रीसेंट में पले-बढ़े. बताया जाता है कि उनके पिता ने सेना में पांच साल गुजारे थे.
लेकिन जब वह छोटे थे, उनके माता-पिता के बीच तलाक हो गया था और वह अपनी मां के साथ ब्रिटेन के दक्षिण-पश्चिम वेल्स में स्थित हैवरफोर्डवेस्ट में चले गये.
मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक उनके शुरुआती दिन काफी मुश्किलों से भरे थे. अक्सर उनका मजाक उड़ाया जाता था.
वेल्स में उनके स्कूल के दिनों के एक दोस्त जेम्स क्रिकपैट्रिक ने बीबीसी को बताया कि वह काफी मजाकिया व्यक्ति था, जो हमेशा कंप्यूटरों से चिपका रहता था.
कुछ रिपोर्टों का कहना है कि वेल्स में उनका समय काफी कठिनाईयों भरा था और उसे समलैंगिक होने के कारण गालियों का सामना भी करना पड़ता था.

सेना में प्रवेश


मैनिंग को अमरीका में कई लोगों का समर्थन भी मिला.
स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद वह अमरीका लौट आया और सेना में शामिल हो गया.
उसे 2009 में इराक में नियुक्त किया गया. लेकिन फेसबुक पर उसके संदेशों से पता चलता है कि वह वहाँ जाकर खुश नहीं था.
उसकी कुछ पोस्टों से संबंधों में उसके अलगाव का पता भी चलता है.
इसके बाद अमरीकी सेना के अधिकारियों ने गोपनीय सूचनाओं की चोरी के संदेह में उसे गिरफ्तार कर लिया.
कंप्यूटर हैकर एड्रियन लामो ने स्वयं मीडिया के सामने कबूल किया कि प्राइवेट मैनिंग ने किस तरह इंटरनेट पर बातचीत के दौरान आंकड़ों की चोरी की बात स्वीकार की थी.
उनके संदेशों के ट्रांसस्क्रिप्ट के मुताबिक प्राइवेट मैनिंग ने कहा, “एक कमजोर सर्वर, कमजोर लॉगिंग, कमजोर भौतिक सुरक्षा, कमजोर खुफिया तंत्र, असावधान संकेत विश्लेषण... धावा बोलने के लिए सही मौका.”
लामो ने बताया कि इसके बाद उसने अधिकारियों को संदेश दिखाए.

चोरी के आरोप


मैनिंग को शत्रु की मदद के गंभीर आरोप से मुक्त कर दिया गया है, लेकिन उस पर 20 आरोप सही साबित हुए हैं.
जुलाई 2010 को प्राइवेट पर गोपनीय सूचनाओं की चोरी के अपराध में कई आरोप लगाए गए.
वह गोपनीयता विरोधी संगठन विकीलीक्स के उस वीडियो फुटेज को लीक करने का भी आरोपी था, जिसमे 2007 में एक अपाचे हैलीकॉप्टर के जरिए बगदाद में 12 नागरिकों को मारते हुए दिखाया गया है.
विकीलीक्स ने अफगानिस्तान युद्ध से संबंधित कई हजार दस्तावेज जारी किए हैं.
वर्ष 2011 में अमरीकी सेना ने प्राइवेट मैनिंग पर 22 आरोप लगाए जो अनाधिकृत रूप से 7,20,000 से अधिक राजनयिक और सैन्य दस्तावेजों को हथियाने और उसके वितरण से संबंधित थे.
प्राइवेट मैनिंग ने इन आरोपों से इनकार नहीं किया और फरवरी 2012 में उस पर लगाए गए 22 आरोपों में से उसे 10 में दोषी पाया गया, लेकिन शत्रु को सहायता का सबसे गंभीर आरोप साबित नहीं हो सका.
उसने अदालत को बताया कि उसने इन दस्तावेजों को इसलिए लीक किया क्योंकि वह अमरीका में सेना की भूमिका और अमरीकी विदेश नीति पर सार्वजनिक बहस शुरू करना चाहता था.
इसके बाद जुलाई 2013 में प्राइवेट मैनिंग पर 20 आरोप सही साबित हुए, जिसमें जासूसी, चोरी और कंप्यूटर धोखाधड़ी शामिल थे.
लेकिन न्यायाधीश कर्नल डेनिस लिंड ने उसे शत्रु को मदद के सबसे गंभीर आरोप से मुक्त कर दिया. साथ ही न्यायाधीश ने माना की जेल में उसके साथ किया गया व्यवहार कठोर था और इसलिए क्षतिपूर्ति के रूप में उसकी सजा में 112 दिन कम कर दिए गए.

 

 

 

मिल्खा के अलावा और भी हैं स्टार एथलीट

 बुधवार, 31 जुलाई, 2013 को 10:12
मिल्खा सिंह रोम ओलंपिक
(सभी तस्वीरें लेखक के निजी संग्रह से)
मिल्खा सिंह की ज़िंदगी पर बनी फ़िल्म 'भाग मिल्खा भाग' बाकी फ़िल्मों की ही तरह किसी को बहुत अच्छी लगी तो किसी को ठीक ठाक.
लेकिन इस बात से कोई नहीं इनकार कर सकता कि इस फ़िल्म ने उस खेल को आम जनता तक पहुंचा दिया जिसने भारत को मिल्खा के अलावा और कई स्टार दिए लेकिन वे लोगों के दिलों तक नहीं पहुंच सके.
आइए हम नज़र डालते हैं ऐसे ही कुछ खिलाड़ियों और उनके योगदान पर.

गुरबचन सिंह रंधावा

बहुत लोगों को यह पता ही नहीं कि गुरबचन सिंह रंधावा ने भी रोम ओलंपिक में हिस्सा लिया था.
उन्होंने रफेर जॉनसन और सी के यंग जैसे दिग्गज क्लिक करें एथलीटों के साथ डेकेथलन मे भाग लिया था.
वह बहुत प्रतिभावान थे और एक साथ जैवलिन, हाइ जंप, लॉन्ग जंप और हर्डल्स के राष्ट्रीय चैंपियन थे.
जब 1964 के खेलों में उन्होंने 110 मीटर हर्डल में पाँचवाँ स्थान हासिल किया तो दुनिया के बड़े-बड़े कोचों ने उनके प्रदर्शन को सराहा था.
सीआरपीएफ से डीआईजी के ओहदे से रिटायर होकर आजकल वह कोचिंग कर रहे हैं. टोकियो में दो बार उन्होंने 14 सेकेंड का समय निकाला था, जो आज भी भारतीय एथलीटों के लिए चुनौती है.

श्रीराम सिंह

मिल्खा और रंधावा 60 के दशक के हीरो थे, तो 70 का दशक श्रीराम सिंह के नाम था.
श्रीराम 1970 के बैंकाक एशियाई खेलों में 800 मीटर का रजत पदक और 1974 में तेहरान में स्वर्ण लेकर वह 1976 के मॉन्ट्रियल ओलंपिक के लिए तैयार थे.
लेकिन जब दुनिया के बाकी एथलीट यूरोप और अमरीका में प्रतियोगिताओं में भाग लेने की तैयारी कर रहे थे, श्रीराम सिंह जुलाई की भरी बारिश के बीच दिल्ली के नेशनल स्टेडियम के बाहर पानी से भरे घास के मैदान पर प्रैक्टिस कर रहे थे.
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श्रीराम सिंह अब जयपुर में रहते हैं
मॉन्ट्रियाल से पहले उन्होंने कभी टार्टेन ट्रैक पर पाँव भी नहीं रखा था लेकिन वह फाइनल में पहुँचे और 1:45.77 का समय निकाल कर सातवें स्थान पर रहे.
उसी रेस में नया विश्व रिकॉर्ड बना जिसका श्रेय रेस जीतने वेल आलबर्टू जुआंटोरना ने श्रीराम सिंह को दिया.
आज भी क्यूबा के जुआंटोरना श्रीराम को याद करते हैं.
मज़े की बात यह है कि 1:45.77 के समय से श्रीराम आज भी वर्ष 2013 की रैंकिंग में दुनिया में 57 नंबर पर हैं. यह बड़ी बात है.
उनका यह एशियाई रिकॉर्ड 32 साल तक कायम रहा और भारत का राष्ट्रीय रिकॉर्ड तो अब भी है.
ऐसे मे श्रीराम सिंह क्या किसी अन्य भारतीय एथलीट से कम हैं?
सेना से रिटायरमेंट लेकर श्रीराम एनआइएस बने और वहां से भी रिटायर होकर अब जयपुर में रहते हैं.
मॉस्को ओलंपिक में 800 मीटर का गोल्ड जीतने वेल स्टीव ओवेट के कोच हैरी विल्सन का मानना था कि अगर श्रीराम मॉन्ट्रियल से कुछ महीने पहले इंग्लैंड में उनके पास या भारत के बाहर कहीं और ट्रेनिंग कर लेते तो मॉन्ट्रियल में गोल्ड भी जीत सकते थे.

शिवनाथ सिंह

श्रीराम की ही तरह सेना के एक और एथलीट थे शिवनाथ सिंह. उन्होंने मॉन्ट्रियल खेलों मे हिस्सा लिया.
शिवनाथ सिंह मॉन्ट्रियल में मैराथन में 2 घंटे 16 मिनट और 22 सेकंड का समय निकालकर 11वें स्थान पर रहे.
रेस में 60 एथलीटों ने हिस्सा लिया था और शिवनाथ ने न्यूज़ीलैंड के जाने-माने धावक जेक फॉस्टर को भी पछाड़ दिया था.
श्रीराम की तरह मॉन्ट्रियल जाने से एक हफ़्ते पहले शिवनाथ भी दिल्ली में भागने के लिए ठीक जगह ढूंढ रहे थे जबकि दुनिया के बाकी खिलाड़ी एक महीने पहले मॉन्ट्रियल के मैराथन रूट का जायज़ा ले रहे थे.
ऐसे में शिवनाथ का प्रदर्शन हर हाल में विश्वस्तरीय था.
शिवनाथ सिंह
सेना छोड़कर वह टिस्‍को में शामिल हो गए थे लेकिन कुछ साल पहले उनकी मृत्यु हो गई.

डी वालसम्मा

भारतीय एथलेटिक्स के लिए 80 का दशक अहम रहा.
दिल्ली में 1982 में आयोजित एशियाई खेल में एम डी वालसम्मा ने महिलाओं की 400 मीटर बाधा दौड़ का स्वर्ण पदक जीता.
वालसम्मा कमलजीत संधु के बाद एशियाई खेलों में गोल्ड जीतने वाली दूसरी भारतीय महिला थीं.
ख़ास बात यह है कि वालसम्मा को देख कर ही पी टी उषा ने हर्डल्स में हिस्सा लेने का मन बनाया.
वालसम्मा ने लॉस एंजेलेस ओलंपिक में भारत की 4x400 रिले को सातवाँ स्थान दिलवाने में अहम् भूमिका निभाई.
अर्जुन अवॉर्ड और पद्मश्री से नवाज़े जाने के बाद वालसम्मा रेलवे में सीनियर कॉंमर्शियल ऑफ़िसर के रूप में काम कर रही हैं.
हालांकि उनके बाद पी टी उषा ने काफी नाम कमाया लेकिन सही मायनों में भारतीय महिला एथलीटों की क्लिक करें प्रेरणा वालसम्मा ही थीं.

शाइनी विल्सन

अंजू बॉबी जॉर्ज
पेरिस विश्व चैंपियनशिप में पदक लेने के बाद खड़ीं अंजू बॉबी जॉर्ज
पी टी उषा और शाइनी का नाम 80 के दशक में साथ लिया जाता था. दोनों केरल की थीं और दोनों का ही एशिया में दबदबा था.
लेकिन शाइनी की बदकिस्मती ही कही जा सकती थीं कि उन्हें लंबे समय तक कोई ठीक कोच ही नहीं मिला.
1984 में 800 मीटर की रेस के सेमी फाइनल में पहुंचना किसी भारतीय खिलाड़ी के लिए बड़ी बात थी.
वह रिले टीम का भी हमेशा हिस्सा रहीं लेकिन उषा के साथ होने से ज़्यादा नाम उषा का ही हुआ.
शाइनी ने 1995 में 1:59.85 का समय निकाला था. अपने उस प्रदर्शन से वह उस साल की विश्व रैंकिंग में 21 स्थान पर थीं.
ऐसे में शाइनी को विश्वस्तरीय खिलाड़ी कहना और भारत के महान एथलीटों मे गिनना गलत नहीं होगा.
शाइनी आजकल फूड कॉर्पोरेशन में जनरल मैनेजर के पद पर हैं.

अंजू जॉर्ज

ठंडे दिमाग से सोचा जाए तो अंजू बॉबी जॉर्ज का प्रदर्शन किसी भी भारतीय एथलीट से थोड़ा ज़्यादा ही होगा.
पेरिस विश्व चैंपियनशिप में काँस्य पदक, वर्ल्ड फाइनल में रजत पदक, कॉमनवेल्थ खेलों मे काँस्य पदक, दोहा एशियाई खेलों में स्वर्ण और एथेंस ओलंपिक में छठा स्थान.
ये सब ऐसे खिताब हैं जिन्हें अंजू के अलावा किसी भारतीय एथलीट ने नहीं जीता है लेकिन एथलेटिक्स में विडंबना यह है कि ट्रैक के इवेंट को ज़्यादा भाव दिया जाता है क्योंकि वह लोगों को दिखता है.
लॉन्ग जंप में जब तक बोर्ड पर अंतिम परिणाम न दिखे लोगों को मज़ा नहीं आता. वरना अंजू- मिल्खा, रंधावा या उषा से किसी भी बात मे कम नहीं हैं.
माँ बनने के बाद अंजू ने हाल ही में एथलेटिक्स छोड़ा है और बैंगलूर में कस्टम ऑफिसर हैं.

4X400m महिला रिले टीम

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भारतीय महिला रिले टीम ने सियोल एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता था
इन सितारों के साथ-साथ भारतीय महिला रिले टीम भी किसी से कम नहीं है.
रिले टीम का सिलसिला शुरू हुआ था लॉस एंजेलेस ओलंपिक खेलों से जहाँ वंदना राव, शाइनी विलसन, वालसम्मा और पी टी उषा ने फाइनल मे पहुँचकर सबको चौंका दिया था.
हालाँकि फाइनल में टीम आठवें स्थान पर रही लेकिन 3:32.49 का समय एशियाई रिकॉर्ड था.
उसके बाद इसी टीम ने सोल एशियाई गेम में स्वर्ण पदक जीता.
एशियाई स्तर पर तो भारतीय टीम ने हमेशा अच्छा प्रदर्शन किया है और विश्व रैंकिंग में रही है.

प्रवीण कुमार

प्रवीण कुमार
और अब बात एथलेटिक्स के उस सितारे की जिसने मिल्खा सिंह से बहुत पहले बॉलीवुड और टीवी की दुनिया में कदम रखा.
प्रवीण कुमार की शिकायत यह है कि उन्हें लोग एथलेटिक्स के लिए नहीं बल्कि महाभारत धारावाहिक में भीम के उनके किरदार के लिए जानते हैं.
प्रवीण कुमार डिस्कस थ्रो में कई साल नेशनल चैंपियन रहे, एशियाई चैंपियन रहे और मैक्सिको ओलंपिक भी गए लेकिन उनका कहना है कि उन्हें भीम के नाम से ज़्यादा लोग जानते हैं.
वैसे भी खेल अधिकारियों से वो इतना तंग आए कि मैक्सिको से लौटते ही उन्होंने अपना ओलंपिक का ब्लेज़र सूटकेस में रख दिया और आज तक दोबारा नहीं पहना.
ऐसे में अगर लोग भारतीय एथलीटों को भूल जाएं तो अफसोस की बात तो है ही.

 

 

मेजर जनरल कुलदीप सिंह बरार पर हमला: तीन दोषी करार (operation blue star in amritsar swaen mandir)

 गुरुवार, 1 अगस्त, 2013 को 03:29
मनदीप सिंह संधू, दिलबाग सिंह, हरजीत कौर और बरजिंदर सिंह सांगा
ब्रिटेन की एक अदालत ने भारत के पूर्व लेफ़्टिनेंट जनरल कुलदीप सिंह क्लिक करें बरार पर हुए हमले के मामले में दो पुरुषों और एक महिला को दोषी ठहराया है.
लंदन के सदर्क स्थित कोर्ट ने बर्मिंघम के 34 वर्षीय मनदीप सिंह संधू, लंदन के 37 वर्षीय दिलबाग सिंह और 39 वर्षीय हरजीत कौर को इस मामले में दोषी ठहराया है.
33 वर्षीय बरजिंदर सिंह सांगा ने इस मामले में अपना दोष पहले ही स्वीकार कर लिया था.
इन्हें क्लिक करें जनरल बरार को चाकू मारने और घायल करने के आरोप में दोषी पाया गया है. 19 सितंबर को इन सबको सज़ा सुनाई जाएगी.
जनरल बरार ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर में सैन्य कार्रवाई का नेतृत्व किया था.
पिछले साल सितंबर में छुट्टियाँ मनाने लंदन गए जनरल बरार के गर्दन में चाकू मारा गया था. वकीलों ने इसे सोच-समझकर किया गया हमला बताया.
वकीलों का कहना था कि 1984 में स्वर्ण मंदिर में हुई सैनिक कार्रवाई का बदला लेने के लिए ये हमला किया गया था.

हमला

जनरल बरार
पिछले साल 30 सितंबर को, जब बरार पर लंदन में हमला हुआ तब वह और उनकी पत्नी मीना छुट्टियाँ मना रहे थे. उन्हें चेहरे और गले पर गहरे घाव लगे थे.
बरार की अगुआई में ही सेना ने ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया था. बरार और उनकी पत्नी जब होटल लौट रहे थे तभी उन पर हमला हुआ था. भागने के दौरान हमलावरों में से एक का मोबाइल फ़ोन गिर गया जिससे पुलिस को अहम सुराग़ मिले.
स्वर्ण मंदिर के अंदर छिपे चरमपंथियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए भारतीय सेना सिखों के सबसे पवित्र स्थानों में से एक स्वर्ण मंदिर में दाखिल हुई. इस कार्रवाई में सैकड़ों लोग मारे गए.
मरने वालों में जरनैल सिंह भिंडरावाला भी थे जिनके नेतृत्व में चरमपंथी सिखों के लिए एक अलग राज्य खालिस्तान की मांग कर रहे थे.
ऑपरेशन ब्लूस्टार को लगभग 30 वर्ष हो चुके हैं. लेकिन बरार को अब भी भारत में जेड श्रेणी की सुरक्षा दी जाती है.

कौन हैं जनरल 'ब्लू स्टार' बरार?

 मंगलवार, 2 अक्तूबर, 2012 को 16:10
बहुत कम लोगों को पता है कि ऑपरेशन ब्लूस्टार का नेत़ृत्व करने वाले तीन चोटी के जनरलों में से दो सिख थे. एक थे पश्चिमी कमान के चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ लेफ़्टिनेंट जनरल रंजीत सिंह दयाल और दूसरे नवीं इनफ़ेंट्री डिवीज़न और स्वर्ण मंदिर में घुसने वाली सेना के कमांडर क्लिक करें मेजर जनरल कुलदीप सिंह बरार.
इन दोनों ने ही पश्चिमी कमान के प्रमुख जनरल सुंदर जी के साथ मिल कर ऑपरेशन ब्लू स्टार की योजना बनाई थी. उस समय भारतीय थल सेना के प्रमुख जनरल एएस वैद्य थे जिनकी चार साल बाद पुणे में सिख पृथकतावादियों ने हत्या कर दी थी.
जनरल दयाल और जनरल बरार दोनों को 'ज़ेड प्लस' की सुरक्षा दी गई थी. सुरक्षा कारणों से ही जनरल बरार ने अपने रिटायरमेंट के बाद उत्तरी भारत में न रह कर मुम्बई में रहने का फ़ैसला किया था.

1971 की लड़ाई के भी हीरो

जनरल बरार 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के भी हीरो थे. 16 दिसंबर 1971 को ढाका में प्रवेश करने वाले वह पहले भारतीय सैनिकों में से एक थे. जमालपुर की लड़ाई में असाधारण वीरता दिखाने के लिए उन्हें भारत का तीसरा सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार वीर चक्र दिया गया था.
साल 1984 में जनरल बरार मेरठ में 9 इनफ़ेंट्री डिवीजन को कमांड कर रहे थे. तीस मई को उनके पास फ़ोन आया कि उन्हें 1 जून को एक बैठक के लिए चंडीगढ़ पहुँचना है. उसी रात वे अपनी पत्नी के साथ छुट्टियाँ मनाने मनीला जाने वाले थे. जब वह चंडीगढ़ पहुँचे तो उन्हें बताया गया कि उन्हें अमृतसर जाना है. उनसे ये भी कहा गया वह अपनी मनीला यात्रा स्थगित कर दें.
ऑपरेशन ब्लू स्टार
ऑपरेशन ब्लू स्टार ने पूरे सिख समुदाय को झकझोर कर रख दिया था.
उस समय तक स्वर्ण मंदिर की पूरी घेराबंदी हो चुकी थी. पाँच जून की सुबह साढ़े चार बजे उन्होंने हर बटालियन के पास जा कर करीब आधे घंटे तक जवानों से बात की. उन्होंने उन्हें बताया कि आप ये समझिए कि आप किसी पवित्र स्थल को बर्बाद नहीं करने जा रहे हैं बल्कि उसकी सफ़ाई करने जा रहे हैं.

टैंकों का इस्तेमाल

मंदिर में घुसने के 45 मिनटों के अंदर ही उन्हें अंदाज़ा हो गया कि पृथकतावादियों की तैयारी ज़बरदस्त थी. जब काफी देर तक भारतीय सैनिक स्वर्ण मंदिर में नहीं घुस पाए तो टैंकों का इस्तेमाल करने का फ़ैसला किया गया.
शुरू में उद्देश्य था कि टैंकों की 'हेलोजेन लाइट' के ज़रिए प़ृथकतावादियों की आँखों के चौंधिया दिया जाए लेकिन पहले ही टैंक की लाइट फ़्यूज़ हो गई. जब सुबह होने लगी और फ़ायरिंग में कोई कमी नही आई तो उन्होंने तय किया कि मीनार के ऊपरी हिस्से पर टैंक से फ़ायरिंग की जाए.
टैंक भेजने से पहले उन्होंने बख़्तरबंद गाड़ियों के ज़रिए सैनिकों को अंदर पहुंचाने की कोशिश की थी लेकिन भिंडरावाले के लोगों ने उसे रॉकेट लांचर से उड़ा दिया था.
छह जून की सुबह 10 बजे तक भिंडरावाले मारे जा चुके थे और उनके साथियों का मनोबल टूट गया था. इस पूरे ऑपरेशन में भारतीय सेना के 100 जवान और करीब तीन सौ सिख विद्रोही मारे गए थे इस घटना ने पूरे सिख समुदाय को झकझोर कर रख दिया.
इस ऑपरेशन के बाद जनरल बरार के मामा ने उनसे सारे संबंध तोड़ लिए और ताउम्र उनसे बात नहीं की. बीबीसी से बात करते हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार को उन्होंने अपने जीवन की सबसे कठिन लड़ाई बताया लेकिन उनका ये भी कहना था कि हालात

 

स्नोडन को पिता से मिलवाना चाहती है एफ़बीआई

 बुधवार, 31 जुलाई, 2013 को 16:35

अमरीका के निगरानी कार्यक्रम के विरोधियों ने बर्लिन में एडवर्ड स्नोडन के पक्ष में प्रदर्शन किया
अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी के फ़रार कर्मचारी एडवर्ड स्नोडन के पिता का कहना है कि संघीय जांच एजेंसी एफ़बीआई ने उन्हें अपने बेटे से मिलने के लिए मॉस्को जाने को कहा है लेकिन अभी उन्हें विस्तृत जानकारी का इंतज़ार है.
अमरीका के इलेक्ट्रानिक निगरानी कार्यक्रम की जानकारी सार्वजनिक करने वाले एडवर्ड स्नोडन को अमरीकी प्रशासन वापिस लाने के लिए प्रयासरत हैं.
रूस के सरकारी टेलीविज़न से बातचीत में लोनी स्नोडन ने कहा है कि उन्हें एडवर्ड के बारे में कई हफ़्ते पहले कहा गया था लेकिन वो एफ़बीआई के वास्तविक इरादे जानना चाहते हैं.
लोनी का कहना है कि अमरीका में उनके बेटे को निष्पक्ष तरीक़े से न्याय मिलने की उम्मीद कम है और अगर स्नोडन की जगह वे होते तो रूस में ही टिके रहते.
अपने बेटे को सच्चा देशभक्त बताते हुए स्नोडन के पिता ने कहा अमरीका के राष्ट्रीय निगरानी कार्यक्रम की जानकारी देकर उसने अमरीकी जनतंत्र को मज़बूती प्रदान की है.
स्नोडन पिछले एक महीने से भी ज़्यादा समय से मॉस्को हवाई अड्डे के ट्राज़िंट क्षेत्र में रह रहे हैं क्योंकि उनके पास यात्रा के लिए ज़रूरी काग़ज़ात नहीं हैं.

बेटे पर गौरवान्वित

रूसी टीवी पर सीधे प्रसारित किए गए इस इंटरव्यू में लोनी ने अपने बेटे को संबोधित करते हुए कहा ''एडवर्ड उम्मीद है तुम ये देख रहे हो. तुम्हारा परिवार ठीक है. हम सभी को तुमसे प्यार है.''
''हमें उम्मीद है कि तुम सेहतमंद हो. तुम्हे बहुत जल्दी देखने की कामना करता हूं लेकिन सबसे ज़्यादा ये चाहता हूं कि तुम सुरक्षित रहो. तुम्हे एक सुरक्षित जगह मिले.''
"किसी भी अन्य माता-पिता की तरह जो अपने बच्चों से प्यार करते हैं,मैं भी अपने बेटे से प्यार करता हूं.तुमने जो भी किया है उसके लिए मैं हमेशा तुम्हारा कृतज्ञ रहूंगा"
लोनी स्नोडन,एडवर्ड स्नोडन के पिता
लोनी स्नोडन ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का भी धन्यवाद देते हुए कहा ''रूसी सरकार और राष्ट्रपति पुतिन ने मेरे बेटे को सुरक्षा देने की जो हिम्मत और ताक़त दिखाई है उसके लिए मैं उनको धन्यवाद देना चाहता हूं.''
उन्होने कहा कि ''किसी भी अन्य माता-पिता की तरह जो अपने बच्चों से प्यार करते हैं,मैं भी अपने बेटे से प्यार करता हूं. तुमने जो भी किया है उसके लिए मैं हमेशा तुम्हारा कृतज्ञ रहूंगा.''
स्नोडन 23 जून को मॉस्को हवाओई अड्डे पहुंचे थे जहां उन्होने अपने पास उपलब्ध जानकारी सार्वजनिक की थी.उन्होने रूस से ये कहते हुए अस्थायी शरण की मांग की कि वे अततः लैटिन अमरीका जाना चाहते हैं.
स्नोडन ने अमरीकी निगरानी कार्यक्रम की सूचना देकर अमरीका के परंपरागत साथियों और शत्रुओं के लिहाज से कूटनीतिक संकट पैदा कर दिया.
अमरीकी अटॉर्नी जनरल ने आश्वासन दिया है कि अगर रूस स्नोडन को प्रत्यर्पित करता है तो उसे मौत की सज़ा नहीं दी जाएगी लेकिन रूस ने उसे सौंपने की कोई इच्छा ज़ाहिर नहीं की है.















 

ममनून हुसैन होंगे पाकिस्तान के नए राष्ट्रपति

 मंगलवार, 30 जुलाई, 2013 को 19:10
ममनून हुसैन
पीएमएल-एन के प्रत्याशी ममनून हुसैन की जीत तय मानी जा रही थी.
पाकिस्तान में ममनून हुसैन नए राष्ट्रपति चुने गए हैं. 73 वर्षीय ममनून हुसैन पेशे से कपड़ा कारोबारी हैं और प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के क़रीबी रहे हैं.
उनका जन्म भारत के ऐतिहासिक शहर आगरा में हुआ था और विभाजन के बाद वे पाकिस्तान चले गए थे. सितंबर में आसिफ अली जरदारी के पद छोड़ने के बाद ममनून हुसैन राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे.
ममनून हुसैन लंबे समय से पीएमल-एन से जुड़े रहे हैं हालाँकि राष्ट्रपति पद के लिए चुने जाने के बाद उन्होंने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया. पाकिस्तान पीपुल्ज पार्टी ने चुनाव कार्यक्रम में बदलाव का विरोध करते हुए राष्ट्रपति चुनाव का बहिष्कार किया था.
क्लिक करें पाकिस्तान में राष्ट्रपति पद के चुनाव में संसद सदस्य और चार प्रांतों की विधानसभाओं के सदस्य मतदान करते हैं. पाकिस्तान में राष्ट्रपति के पास बहुत ज़्यादा अधिकार नहीं होते.
क्लिक करें पाकिस्तान में मई में हुए आम चुनाव में जीत हासिल करने के बाद पीएमएल-एन के क्लिक करें नवाज़ शरीफ़ प्रधानमंत्री बने थे. नवाज़ शरीफ़ की पार्टी ने पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली और पाकिस्तान के सबसे अधिक आबादी वाले पंजाब प्रांत की एसेंबली में बहुमत प्राप्त किया था.

विवादों भरा कार्यकाल

आसिफ अली ज़रदारी
वर्तमान राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी का कार्यकाल आठ सितंबर को पूरा हो रहा है
ज़रदारी का पाँच साल का कार्यकाल आठ सितंबर को समाप्त हो रहा है.
ज़रदारी ने पूर्व सैनिक शासक परवेज़ मुशर्रफ़ के बाद यह पद ग्रहण किया था. ज़रदारी ने 2010 में पद ग्रहण करते समय कई संवैधानिक सुधार करने के लिए सहमति जताई थी जिसके तहत राष्ट्रपति के कई अधिकारों को प्रधानमंत्री को हस्तांतरित किया जाना शामिल था.
किसी भी नागरिक सरकार के दौरान अपना कार्यकाल पूरा करने वाला पहला राष्ट्रपति होने को ज़रदारी की मुख्य उपलब्धि मानी जा रही है.
ज़रदारी के कार्यकाल के दौरान सेना और न्यायपालिका के संग हुए विवाद चर्चित रहे थे. उनकी सरकार ने तालिबानी घुसपैठ से परेशान पाकिस्तान की बढ़ती हुई क्लिक करें आर्थिक दिक्कतों को दूर करने के लिए कुछ खास प्रयास नहीं किए.


ममनून हुसैन के मन में आगरा का ख़ास मकाम

पाकिस्तान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति क्लिक करें ममनून हुसैन आगरा का नाम आते ही जज्बाती हो जाते हैं. हो भी क्यों न, इस शहर से उनका पुराना रिश्ता रहा है.
जैसा कि वे ख़ुद कहते हैं- हर इंसान जहाँ पैदा होता है या जहाँ उसकी पढ़ाई होती है, वहाँ से उसका जज़्बाती लगाव होता है.
बीबीसी के साथ विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि अगर उन्हें मौक़ा मिला तो वे भारत के साथ रिश्ते बेहतर करने के लिए अपनी ओर से पूरी कोशिश करेंगे.
"अगर मुझे मौक़ा मिला, तो मैं अपनी ओर से भरपूर कोशिश करूँगा. मेरी पैदाइश आगरा से है, मैं वहाँ से आया था, तो शायद मुझे इसमें शामिल भी किया जाए"
ममनून हुसैन
उन्होंने कहा, "अगर मुझे मौक़ा मिला, तो मैं अपनी ओर से भरपूर कोशिश करूँगा. मेरी पैदाइश आगरा से है, मैं वहाँ से आया था, तो शायद मुझे इसमें शामिल भी किया जाए."
ममनून हुसैन पाकिस्तान के नए राष्ट्रपति चुने गए हैं. सितंबर में आसिफ अली जरदारी के पद छोड़ने के बाद ममनून हुसैन राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे.
73 वर्षीय ममनून हुसैन पेशे से कपड़ा कारोबारी हैं और प्रधानमंत्री क्लिक करें नवाज़ शरीफ़ के क़रीबी रहे हैं. उनका जन्म भारत के ऐतिहासिक शहर आगरा में हुआ था और विभाजन के बाद वे पाकिस्तान चले गए थे.
ममनून हुसैन कहते हैं कि प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने तो पहले ही अपना इरादा स्पष्ट कर दिया है कि वे न सिर्फ़ हिंदुस्तान बल्कि सभी पड़ोसी देशों के साथ बेहतर रिश्ते चाहते हैं. क्योंकि वे मानते हैं कि पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते ख़राब करके कोई देश अच्छी तरह से आगे नहीं बढ़ सकता.

यादों का पिटारा

ताजमहल
राजनीति के बीच जैसे ही आगरा की बात आई, लगा जैसे उनकी यादों का पिटारा खुल गया हो.
आगरा की यादों में एकाएक खो गए ममनून हुसैन ने बताया, "जब मैं आगरा से पाकिस्तान आया था, तो मेरी उम्र साढ़े आठ साल थी. ज़ाहिर है इंसान जहाँ पैदा होता है, वहाँ से उसका जज्बाती लगाव होता है. मेरे जेहन में बचपन की बहुत सी यादें हैं."
"जब मैं आगरा से पाकिस्तान आया था, तो मेरी उम्र साढ़े आठ साल थी. ज़ाहिर है इंसान जहाँ पैदा होता है, वहाँ से उसका जज्बाती लगाव होता है. मेरे जेहन में बचपन की बहुत सी यादें हैं"
ममनून हुसैन
आगरा की बात हो और ताजमहल का ज़िक्र न आए, ऐसा कैसे हो सकता है. ममनून हुसैन ने बताया कि अक्सर सुबह के वक़्त उनके दादा उन्हें बग्घी में बैठाकर ताजमहल की सैर कराने ले जाते थे.
बातों-बातों में उन्होंने राष्ट्रपति के रूप में आगरा जाने की इच्छा भी जता दी.
उन्होंने कहा, " मेरा ख्वाहिश होगी कि मैं वहाँ जाऊँ. ताजमहल देखने का उत्साह रहता है. मैं जब पहली बार पाकिस्तान से आगरा गया, तो मुझे ऐसा लगा कि जैसे मैं ख़्वाब देख रहा हूँ, जब मैंने ताजमहल को देखा."
ममनून हुसैन के जेहन में आगरा के लिए एक ख़ास मकाम है. उनका कहना है कि अगर आगरा के लोग उनके लिए अच्छे जज़्बात रखते हैं, तो उन्हें उनका इंतज़ार करना चाहिए.

 

X-Keyscore program: Newly leaked NSA program sees 'nearly everything' you do

The X-Keyscore program, which has been revealed by NSA leaker Edward Snowden, may be the "widest-reaching" intelligence system yet uncovered.



















Edward Snowden
(Credit: The Guardian/Screenshot by CNET)
The National Security Agency has a secret program that allows it to see just about everything a person does on the Internet, according to a new report.
NSA leaker Edward Snowden, who is still holed up in a Moscow airport, has reportedly leaked to The Guardian new details on a high-powered, secret program run by the U.S. government, called X-Keyscore. 


 X-Keyscore


The Guardian, which obtained slides of a presentation the NSA reportedly gave to employees, claims that the program is the "widest-reaching" intelligence system.
According to Snowden's files on X-Keyscore, NSA employees can, with just a few clicks, obtain everything from phone numbers to e-mail addresses. The agency also can see e-mail content, full Internet activity, browser history, and an IP address. According to the files and Snowden, the NSA can essentially see everything a person is doing on the Internet without the need for a warrant.


Debate rages over whether such information is accessible and is being used in any negative ways by the U.S. government. Lawmakers have argued that accessing data is only possible when a warrant is obtained and that the government consistently follows that protocol. Other lawmakers have argued that obtaining all of that information isn't even possible.
Despite the vast amounts of data the NSA can reportedly access, it is possible that it has not used against American citizens living within the U.S. The NSA documents, in fact, show that as of 2008, the X-Keyscore platform was used to nab 300 alleged terrorists around the world. Another describes how the NSA determines identities of alleged terrorists who access Internet forums.
Snowden has quickly become a thorn in the side of the U.S. government. For his first leaks, he's been charged with espionage and has had his U.S. passport revoked. He is currently holed up in a Moscow airport awaiting a decision by the Russian government on whether it will offer him temporary asylum. If so, he'll be able to safely reach any number of South American countries that have offered him full asylum.
The U.S. government, meanwhile, has dealt with the fallout from his leaks and has been criticized by foreign governments for its allegedly more-extensive-than-previously-believed intelligence programs. If the latest reports are true, the NSA could again come under fire from those critics.
Still, with the sheer amount of data available, it's not easy for user information to be stored for long, according to The Guardian. The leaked documents suggest that each day, between 1 billion and 2 billion records are added, requiring the NSA to free up space. The actual content is only available for three to five days, and metadata is kept for 30 days, according to the documents.
To solve that issue, the NSA has created other databases where "interesting" information can be offloaded to for safekeeping, according to the report. It's not clear exactly what information is offloaded, but it could be quite a bit. Last year, 41 billion records were allegedly collected and stored in X-Keyscore over a 30-day period.

 

 

केदारनाथः रुद्रप्रयाग के एसडीएम मंदाकिनी में बहे


देहरादून 31 जुलाई 2013 6:35 PM


Rudraprayag SDM Swept Away in Mandakini river
रुद्रप्रयाग जिले में बचाव कार्य के दौरान एक बड़ा हादसा हो गया है। रुदप्रयाग के एसडीएम अजय अरोड़ा के बचाव कार्य के दौरान नदी में बहने की खबर आ रही है।

बुधवार को रुद्रप्रयाग के एसडीएम अजय अरोड़ा बचाव कार्य के लिए क्षेत्र में निकले हुए थे। जानकारी के मुताबिक पुल पार करते हुए एसडीएम मंदाकिनी नदी की चपेट में आ गए।

एसडीएम अजय अरोड़ा के मंदा‌किनी के चपेट में आने की पुष्टि गढ़वाल कमिश्नर सुबर्द्घन ने भी कर दी है। आयुक्त के मुताबिक एसडीएम अजय अरोड़ा मंदाकिनी नदी में उस वक्‍त बह गए जब वो पुल पार कर रहे थे।

आयुक्त ने बताया कि प्रशासन उनकी खोज में जुटा हुआ है लेकिन अभी तक उनका कोई पता नहीं चल सका है।

 

अखिलेश को दी वही चुनौती जिसका सामना किया था मुलायम ने

फैजाबादट 31 जुलाई 2013
vhp put challenge before akhilesh govt
बिना इजाजत परंपरागत समय से सात माह पहले ही 84 कोसी परिक्रमा के आयोजन का बिगुल फूंक विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राम मंदिर निर्माण को लेकर फिर इतिहास दोहराते दिख रहे हैं।

फर्क इतना है कि तब सूबे के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने सख्त तेवर दिखाए थे, अब प्रदेश की कमान उनके बेटे अखिलेश यादव के पास है।

फिलहाल, अखिलेश सरकार हिंदू संगठनों की मंशा भांपकर सीधे टकराव को टाल रही है।

उधर, विहिप नेताओं की चर्चा के बाद अंतरराष्ट्रीय महामंत्री चंपत राय संग एक टीम बुधवार को अयोध्या पहुंच रही है।

विहिप ने 1990 में भी अचानक सीता चबूतरा की सरयू जल से धुलाई के लिए कारसेवा करने की नई परंपरा डाल सरकार को कार्रवाई के लिए बाध्य किया था, तब तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने सख्ती दिखाई थी। सरकार व हिंदू संगठनों के टकराव का असर पूरे देश पर पड़ा था।

अब ऐसे ही हालात बनाने के लिए चैत्र रामनवमी के बाद अप्रैल माह में होने वाली परिक्रमा को सावन मेले के बाद भादों में तय करके सरकार को चुनौती दी गई है।

विहिप के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक अशोक सिंगल, कार्याध्यक्ष डॉ. प्रवीण भाई तोगड़िया समेत कई शीर्ष धर्माचार्यों ने शासन की ओर से बगैर अनुमति नई परंपराएं कायम करने पर उठाए जा रहे सवालों को सिरे से खारिज कर दिया है।

प्रांतीय प्रवक्ता शरद शर्मा ने कहा कि शीर्ष नेताओं ने पूरे मामले पर विचार किया है, साथ ही स्पष्ट कर दिया है कि 84 कोसी परिक्रमा संतों का अनुष्ठान है, नई परंपरा नहीं। संतों को धार्मिक अनुष्ठान के लिए अनुमति की जरूरत नहीं है।

कार्यक्रम का मुहूर्त ग्रह-नक्षत्र देख तय किया है। एसएसपी फैजाबाद केबी सिंह ने कहा कि प्रमुख सचिव गृह, डीजीपी समेत सुरक्षा से जुड़े महकमों के आला अफसरों ने मंगलवार को वीडियो क्रांफ्रेंसिंग करके सुरक्षा समेत तमाम पहलुओं पर खास सतर्कता के निर्देश दिए हैं।

विहिप और संघ का परिक्रमा मामला भी शासन के संज्ञान में है, समय पर उचित निर्णय लिया जाएगा।

 

अखिलेश सरकार की किरकिरी, दुर्गा का मामला पहुंचा हाईकोर्ट

लखनऊ31 जुलाई 2013
durga shakti suspension issue
निलंबित आईएएस अफसर दुर्गाशक्ति नागपाल ने मंगलवार को राजस्व परिषद में रिपोर्ट कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। निलंबन के बाद सरकार ने उन्हें राजस्व परिषद से अटैच किया है।

इस बीच मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कर्नाटक दौरे से लौटने के बाद कार्यवाहक मुख्य सचिव आलोक रंजन ने उनसे मुलाकात की। हालांकि मुख्य सचिव ने कहा कि निलंबित आईएएस अफसर केबारे में मुख्यमंत्री से उनकी कोई बातचीत नहीं हुई।

राजधानी में दिनभर इस मुद्दे पर चर्चाओं का बाजार गर्म रहा। आईएएस एसोसिएशन के सदस्यों के सोमवार को मुख्य सचिव से मिलने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि दुर्गाशक्ति राजस्व परिषद में रिपोर्ट करेंगी, लेकिन उन्होंने सोमवार को वहां रिपोर्ट नहीं की।

अलबत्ता नागपाल मंगलवार को राजस्व परिषद पहुंचीं और आयुक्त व सचिव को रिपोर्ट करने के बाद राजस्व परिषद के अध्यक्ष से मिलीं। हालांकि वह थोड़ी देर ही राजस्व परिषद में रुकीं।

अब सबकी नजर मुख्य सचिव आलोक रंजन और मुख्यमंत्री की अगली बैठक पर है, जब वे इस मामले को मुख्यमंत्री के सामने रखेंगे। रंजन उत्तर प्रदेश आईएएस एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं।

उधर, एसोसिएशन के पदाधिकारी कौशल राज शर्मा ने कहा कि हमने अपनी बात मुख्य सचिव के सामने रख दी है और अब उन्हें मुख्यमंत्री से बात करनी है।

2010 बैच की आईएएस अफसर दुर्गाशक्ति नागपाल गौतमबुद्धनगर में एसडीएम सदर के पद पर तैनात थीं। शनिवार देर रात शासन ने अचानक नागपाल को निलंबित कर राजस्व परिषद से संबद्ध कर दिया।

अखिलेश सरकार की चौरतफा किरकिरी
इस मामले में सरकार पर आईएएस एसोसिएशन के साथ ही राजनीतिक दलों का दबाव भी है। सरकार के इस फैसले की देशभर में किरकिरी हो रही है। ज्यादातर लोगों का मानना है कि सरकार को नागपाल का निलंबन वापस लेना चाहिए।

तमाम सोशल साइट पर लोग अपनी प्रतिक्रिया देने के साथ ही सरकार को घेर रहे हैं। बहरहाल अब फैसला सरकार को लेना है। हालांकि सरकार यदि तुरंत कोई फैसला लेती है तो ऐसा संदेश जाएगा कि वह दबाव में आ गई है।

लिहाजा मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री की बैठक के बाद इस मामले पर बीच का कोई रास्ता निकाला जा सकता है।

नोटिस के साथ ही देनी चाहिए चार्जशीट
प्रदेश के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि सरकार को निलंबित अफसर को नोटिस के साथ ही चार्जशीट देनी चाहिए थी, ताकि वे आगे की रणनीति तय कर सकें। अगर चार्जशीट मिल जाती है तो वे कोर्ट भी जा सकती हैं।

आईएएस दुर्गा शक्ति का मामला पहुंचा हाईकोर्ट
आईएएस अफसर दुर्गाशक्ति नागपाल केनिलंबन का मामला हाईकोर्ट पहुंच गया। एक सामाजिक कार्यकर्ता ने हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में जनहित याचिका दायर कर नागपाल जैसे अफसरों को सपोर्ट करने के निर्देश केंद्र व राज्य सरकारों को देने का आग्रह किया। याचिका पर एक अगस्त को सुनवाई हो सकती है।

याची नूतन ठाकुर ने कहा है कि अवैध खनन कराने वाले माफिया व धार्मिक स्थलों केनाम पर अवैध निर्माण कराने वालों पर हाथ डालने की सिर्फ कुछ ही अफसर हिम्मत करते हैं।

याची का कहना है कि इसी तरह गौतम बुद्ध नगर में तैनात आईएएस अफसर नागपाल को अवैध खनन व अवैध धार्मिक निर्माण के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने को लेकर मनमाने ढंग से सस्पेंड कर दिया गया।

इसको लेकर याची ने कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग केसचिव समेत सूबे के मुख्य सचिव को ऐसे अफसरों की हिफाजत किए जाने के ज्ञापन दिए हैं।

 

 

कैसे बना हैदराबाद भारत का हिस्सा

जिस समय ब्रिटिश भारत छोड़ रहे थे, उस समय यहाँ के 562 रजवाड़ों में से सिर्फ़ तीन को छोड़कर सभी ने भारत में विलय का फ़ैसला किया. ये तीन रजवाड़े थे कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद.
अंग्रेज़ों के दिनों में भी हैदराबाद की अपनी सेना, रेल सेवा और डाक तार विभाग हुआ करता था. उस समय आबादी और कुल राष्ट्रीय उत्पाद की दृष्टि से हैदराबाद भारत का सबसे बड़ा राजघराना था. उसका क्षेत्रफल 82698 वर्ग मील था जो कि इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के कुल क्षेत्रफल से भी अधिक था.

 हैदराबाद की आबादी का अस्सी फ़ीसदी हिंदू लोग थे जबकि अल्पसंख्यक होते हुए भी मुसलमान प्रशासन और सेना में महत्वपूर्ण पदों पर बने हुए थे.
उस पर तुर्रा ये भी था कि कट्टरपंथी कासिम राज़वी के नेतृत्व मे रज़ाकार हैदराबाद की आज़ादी के समर्थन में जन सभाएं कर रहे थे और उस इलाके से गुज़रने वाली ट्रेनों को रोक कर न सिर्फ़ ग़ैर मुस्लिम यात्रियों पर हमले कर रहे थे बल्कि हैदराबाद से सटे हुए भारतीय इलाकों में रहने वाले लोगों को भी परेशान कर रहे थे.

जिन्ना के समर्थन की गुहार

मोहम्मद अली जिन्ना
हैदराबाद के निज़ाम ने जिन्ना से समर्थन मांगा था
निज़ाम हैदराबाद के भारत में विलय के किस क़दर ख़िलाफ थे, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने जिन्ना को संदेश भेजकर ये जानने की कोशिश की थी कि क्या वह भारत के ख़िलाफ़ लड़ाई में हैदराबाद का समर्थन करेंगे? (के एम मुंशी, एंड ऑफ़ एन एरा)
कुलदीप नैयर ने अपनी आत्मकथा 'बियॉंन्ड द लाइंस' में लिखा है कि जिन्ना ने इसका इसका जवाब देते हुए कहा था कि वो मुट्ठी भर आभिजात्य वर्ग के लोगों के लिए क्लिक करें पाकिस्तान के अस्तित्व को ख़तरे में नहीं डालना चाहेंगे.
उधर क्लिक करें नेहरू माउंटबेटन की उस सलाह को गंभीरता से लेने के पक्ष में थे कि इस पूरे मसले का हल शांतिपूर्ण ढंग से किया जाना चाहिए.
सरदार पटेल नेहरू के इस आकलन से सहमत नहीं थे. उनका मानना था कि उस समय का हैदराबाद ‘भारत के पेट में कैंसर के समान था,’ जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता था.
पटेल को इस बात का अंदाज़ा था कि हैदराबाद पूरी तरह से पाकिस्तान के कहने में था. यहां तक कि पाकिस्तान पुर्तगाल के साथ हैदराबाद का समझौता कराने की फ़िराक में था जिसके तहत हैदराबाद गोवा में बंदरगाह बनवाएगा और ज़रूरत पड़ने पर वो उसका इस्तेमाल कर सकेगा.
इतना ही नहीं हैदराबाद के निज़ाम अपने एक संवैधानिक सलाहकार सर वाल्टर मॉन्कटॉन के ज़रिए लॉर्ड माउंटबेटन से सीधे संपर्क में थे. मॉन्कटॉन के कंज़र्वेटिव पार्टी से भी नज़दीकी संबंध थे.
जब माउंटबेटन ने उन्हें सलाह दी कि हैदराबाद को कम से कम संवैधानिक सभा में तो अपना प्रतिनिधि भेजना चाहिए तो मॉन्कटॉन ने जवाब दिया था कि अगर वह ज़्यादा दवाब डालेंगे तो वे पाकिस्तान के साथ विलय के बारे में बहुत गंभीरता से सोचने लगेंगे.

हथियारों की तलाश

पटेल
हैदराबाद में सेना भेजने के मुद्दे पर नेहरू और पटेल में गहरे मतभेद थे
और तो और उन्होंने राष्ट्रमंडल का सदस्य बनने की भी इच्छा प्रकट की थी जिसे एटली सरकार ने ठुकरा दिया था (इंदर मल्होत्रा, द हॉरसेज़ दैट लेड ऑपरेशन पोलो)
निज़ाम के सेनाध्यक्ष मेजर जनरल एल एदरूस ने अपनी किताब 'हैदराबाद ऑफ़ द सेवेन लोव्स' में लिखा है कि निज़ाम ने उन्हें ख़ुद हथियार ख़रीदने यूरोप भेजा था. लेकिन वह अपने मिशन में सफल नहीं हो पाए थे क्योंकि हैदराबाद को एक आज़ाद देश के रूप में मान्यता नहीं मिली थी.
मज़े की बात ये थी कि एक दिन अचानक वह लंदन में डॉर्सटर होटल की लॉबी में माउंटबेटन से टकरा गए. माउंटबेटन ने जब उनसे पूछा कि वह वहाँ क्या कर रहे हैं तो उन्होंने झेंपते हुए जवाब दिया था कि वह वहाँ अपनी आंखों का इलाज कराने आए हैं.
माउंटबेटन ने मुस्कराते हुए उन्हें आँख मारी. लेकिन इस बीच लंदन में निज़ाम के एजेंट जनरल मीर नवाज़ जंग ने एक ऑस्ट्रेलियाई हथियार विक्रेता सिडनी कॉटन को हैदराबाद को हथियारों की सप्लाई करने के लिए राज़ी कर लिया.
भारत को जब ये पता चला कि सिडनी कॉटन के जहाज़ निज़ाम के लिए हथियार ला रहे हैं तो उसने इन उड़ानों पर प्रतिबंध लगा दिया.
एक समय जब निज़ाम को लगा कि भारत हैदराबाद के विलय के लिए दृढ़संकल्प है तो उन्होंने ये पेशकश भी की कि हैदराबाद को एक स्वायत्त राज्य रखते हुए विदेशी मामलों, रक्षा और संचार की ज़िम्मेदारी भारत को सौंप दी जाए.

रज़ाकारों का कहर

"मैं जनरल करियप्पा के साथ कश्मीर में था कि उन्हें संदेश मिला कि सरदार पटेल उनसे तुरंत मिलना चाहते हैं. दिल्ली पहुंचने पर हम पालम हवाई अड्डे से सीधे पटेल के घर गए. मैं बरामदे में रहा जबकि करियप्पा उनसे मिलने अंदर गए और पाँच मिनट में बाहर आ गए. बाद में उन्होंने मुझे बताया कि सरदार ने उनसे सीधा सवाल पूछा जिसका उन्होंने एक शब्द में जवाब दिया."
जनरल एसके सिन्हा, भारत के पूर्व उपसेनाध्यक्ष
लेकिन इस प्रस्ताव को अमली जामा इसलिए नहीं पहनाया जा सका क्योंकि वो रज़ाकारों के प्रमुख कासिम राज़वी को इसके लिए राज़ी नहीं करवा सके.
रज़ाकारों की गतिविधियों ने पूरे भारत का जनमत उनके खिलाफ कर दिया. 22 मई को जब उन्होंने ट्रेन में सफ़र कर रहे हिंदुओं पर गंगापुर स्टेशन पर हमला बोला तो पूरे भारत में सरकार की आलोचना होने लगी कि वो उनके प्रति नर्म रुख अपना रही है.
भारतीय सेना के पूर्व उपसेनाध्यक्ष लेफ़्टिनेंट जनरल एसके सिन्हा अपनी आत्मकथा स्ट्रेट फ्रॉम द हार्ट में लिखते हैं, "मैं जनरल करियप्पा के साथ कश्मीर में था कि उन्हें संदेश मिला कि सरदार पटेल उनसे तुरंत मिलना चाहते हैं. दिल्ली पहुंचने पर हम पालम हवाई अड्डे से सीधे पटेल के घर गए. मैं बरामदे में रहा जबकि करियप्पा उनसे मिलने अंदर गए और पाँच मिनट में बाहर आ गए. बाद में उन्होंने मुझे बताया कि सरदार ने उनसे सीधा सवाल पूछा जिसका उन्होंने एक शब्द में जवाब दिया."
सरदार ने उनसे पूछा कि अगर हैदराबाद के मसले पर पाकिस्तान की तरफ से कोई सैनिक प्रतिक्रिया आती है तो क्या वह बिना किसी अतिरिक्त मदद के उन हालात से निपट पाएंगे?
करियप्पा ने इसका एक शब्द का जवाब दिया 'हाँ' और इसके बाद बैठक ख़त्म हो गई.
इसके बाद सरदार पटेल ने हैदराबाद के खिलाफ सैनिक कार्रवाई को अंतिम रूप दिया. भारत के तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल रॉबर्ट बूचर इस फैसले के खिलाफ़ थे. उनका कहना था कि पाकिस्तान की सेना इसके जवाब में अहमदाबाद या बंबई पर बम गिरा सकती है.
दो बार हैदराबाद में घुसने की तारीख तय की गई लेकिन राजनीतिक दबाव के चलते इसे रद्द करना पड़ा. निज़ाम ने गवर्नर जनरल राजगोपालाचारी से व्यक्तिगत अनुरोध किया कि वे ऐसा न करें.
राजा जी और नेहरू की बैठक हुई और दोनों ने कार्रवाई रोकने का फ़ैसला किया. निज़ाम के पत्र का जवाब देने के लिए रक्षा सचिव एचएम पटेल और वीपी मेनन की बैठक बुलाई गई.
दुर्गा दास अपनी पुस्तक इंडिया फ़्रॉम कर्ज़न टू नेहरू एंड आफ़्टर में लिखते हैं, "जब पत्र के उत्तर का मसौदा तैयार हुआ तभी पटेल ने घोषणा की कि भारतीय सेना हैदराबाद में घुस चुकी है और इसे रोकने के लिए अब कुछ नहीं किया जा सकता."

दिल्ली पर बमबारी

नेहरु और गांधी
नेहरू और राजा जी चिंतित थे कि इससे पाकिस्तान जवाबी कार्रवाई करने के लिए प्रेरित हो सकता है लेकिन चौबीस घंटे तक पाकिस्तान की तरफ से कुछ नहीं हुआ तो उनकी चिंता मुस्कान में बदल गई.
हाँ, जैसे ही भारतीय सेना हैदराबाद में घुसी, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाक़त अली ख़ाँ ने अपनी डिफ़ेंस काउंसिल की बैठक बुलाई और उनसे पूछा कि क्या हैदराबाद में पाकिस्तान कोई ऐक्शन ले सकता है?
बैठक में मौजूद ग्रुप कैप्टेन एलवर्दी (जो बाद में एयर चीफ़ मार्शल और ब्रिटेन के पहले चीफ़ ऑफ डिफ़ेंस स्टाफ़ बने) ने कहा ‘नहीं.’
लियाकत ने ज़ोर दे कर पूछा ‘क्या हम दिल्ली पर बम नहीं गिरा सकते हैं?’
एलवर्दी का जवाब था कि हाँ ये संभव तो है लेकिन पाकिस्तान के पास कुल चार बमवर्षक हैं जिनमें से सिर्फ दो काम कर रहे हैं.'इनमें से एक शायद दिल्ली तक पहुँच कर बम गिरा भी दे लेकिन इनमें से कोई वापस नहीं आ पाएगा.'
भारतीय सेना की इस कार्रवाई को ऑपरेशन पोलो का नाम दिया गया क्योंकि उस समय हैदराबाद में विश्व में सबसे ज़्यादा 17 पोलो के मैदान थे.
पांच दिनों तक चली इस कार्रवाई में 1373 रज़ाकार मारे गए. हैदराबाद स्टेट के 807 जवान भी खेत रहे. भारतीय सेना ने अपने 66 जवान खोए जबकि 97 जवान घायल हुए.
भारत की सेना की कार्रवाई शुरू होने से दो दिन पहले ही 11 सितंबर को पाकिस्तान के संस्थापक क्लिक करें मोहम्मद अली जिन्ना का निधन हो गया.
इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि पाकिस्तान के अस्तित्व में आने से पहले जिस जिन्ना को एक सफल रणनीतिकार माना जाता था, वही जिन्ना पाकिस्तान बनने के बाद अपने सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य को प्राप्त करने में विफल रहे और कश्मीर और जूनागढ़ के साथ-साथ हैदराबाद भी पाकिस्तान का हिस्सा नहीं बन पाया.

 

उत्तराखंड आपदा: गर्भवती महिलाएँ- दो ज़िंदगी बचाने की जंग

 मुनसियारी, उत्तराखंड  बुधवार, 31 जुलाई, 2013
 
आपदा के एक महीने बाद भी सड़क संपर्क न होने के चलते कस्बों और गाँवों की गर्भवती महिलाओं पर दोहरी मार पड़ रही है. दो ज़िंदगियां बचाने की जद्दोजहद में वे दुर्गम इलाकों में पैदल चलने को मजबूर हैं.
उत्तराखंड के मुनसियारी क्षेत्र से अब तक कम से कम छह गर्भवती महिलाओं को हेलिकॉप्टर के ज़रिए उन अस्पतालों में पहुंचाया जा चुका है, जहाँ प्रसव की सुविधा है.
इन दुर्गम इलाकों में स्थितियाँ गर्भवती महिलाओं के लिए डराने वाली हैं.

सुकुमा देवी की कहानी

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आठ माह की गर्भवती सुकुमा देवी को हेलिकॉप्टर से बंगापानी से निकाला गया
सड़क संपर्क टूट जाने के चलते प्रसव के समय उनके पास विकल्प है कि या तो घर पर प्रसव कराएं या फिर पहाड़ों पर घंटों लगातार चढ़ते हुए अस्पताल पहुंचें.
मुनसियारी के उप ज़िलाधिकारी अनिल कुमार शुक्ला ने बीबीसी को बताया, “हेलिकॉप्टर के ज़रिए दो गर्भवती महिलाओं को मल्ला जोहार से, एक को गोल्फा, एक को बौना से बाहर लाया गया है. इसी तरह बंगापानी में दो महिलाओं को अस्पताल पहुंचाया गया है.”
अनिल कुमार शुक्ला कहते हैं कि अब चूंकि कहीं-कहीं रास्ता भी खुलने लगा है, तो डॉक्टरों का दल वहाँ जाकर उनकी देखभाल कर रहा है.
जीतेंद्र सिंह स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं जिन्होंने बंगापानी में फँसी एक गर्भवती महिला सुकमा देवी को बाहर निकाला. वह बताते हैं कि सड़क संपर्क न होने के चलते इलाकों तक क्लिक करें पहुंचना बेहद कठिन है.
जीतेंद्र सिंह ने बताया, “दो जुलाई को जब हमारी टीम बंगापानी पहुंची तो गर्भवती सुकुमा देवी की हालत बहुत ख़राब थी. उनके दाहिने पैर में ऊपर से नीचे तक सूजन थी, वह ज़रा भी चलने की हालत में नहीं थीं.”
सुकुमा का गर्भ आठ महीने का था. “तो उनकी गंभीर हालत को देखते हुए उन्हें हेलिकॉप्टर से बाहर निकाला गया. उन्हें पिथौरागढ़ के अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहाँ से उन्हें हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल क्लिक करें ले जाया गया.”

हेलिकॉप्टर का ही भरोसा

उत्तराखंड टूटे रास्ते
दुर्गा उप्रेती, मदकोट के देवी प्रखंड के शिविर में विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की सेहत की देख-रेख करती हैं. इस शिविर में एक गर्भवती महिला है, जिनके प्रसव की तारीख करीब है.
वह कहती हैं, “ये महिला प्रसव के लिए मुनसियारी जाना चाहती है लेकिन मदकोट से मुनसियारी सिर्फ हेलिकॉप्टर क्लिक करें ही पहुंचा सकता है. वैसे शायद इसकी नौबत न पड़े क्योंकि ये उनका दूसरा बच्चा है.”
सड़क की स्थिति तो ये है कि मदकोट से जॉलजीबी तक का पूरा क्लिक करें रास्ता बनने में साल भर से कम नहीं लगेगा.
मदकोट में तो हेलिकॉप्टर उतारने की भी जगह नहीं है, वहाँ से पैदल चलकर अस्पताल पहुंचने में कम से कम 30 किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ेगा. वो भी जंगल-जंगल पहाड़ चढ़ते और उतरते हुए.
उत्तराखंड
इसी तरह, गोठी के राहत शिविर में दो गर्भवती महिलाएं थीं लेकिन इममें से एक को पिथौरागढ़ के अस्पताल ले जाया गया है.
आशा कार्यकर्ता कृष्णा फिरवाल कहती हैं, “भगवान का शुक्र है कि जब तक धारचुला से पिथौरागढ़ का रास्ता कटा रहा, तब तक इस तरह का कोई मामला नहीं हुआ.”
बलुआकोट के राहत शिविर में भी एक गर्भवती महिला थीं, जिन्हें पिथौरागढ़ में भर्ती कराया गया है.
शिविर के प्रभारी जयंत बताते हैं कि आशा कार्यकर्ताओं के साथ-साथ आपातकालीन एंबुलेंस 108 की सेवा भी ली जा रही है. ताकि गर्भवती महिलाओं को क्लिक करें तत्काल पास के अस्पलातों में ले जाया जा सके.
गर्भवती महिला के लिए इसलिए भी दिक्कतें हैं क्योंकि वे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जा नहीं सकतीं, घर पर इंजेक्शन उन्हें लग नहीं सकते. प्रसव के लिए गर्भवती महिलाओं के पास दो ही चारे हैं. या तो भगवान भरोसे गाँव में ही बच्चे को जन्म दें या फिर हेलिकॉप्टर के ज़रिए अस्पताल पहुंचें.

 

 

आईएएस दुर्गा के निलंबन पर आजम खान का अजीब बयान, कहा- राम नाम की लूट है मची लूट सके तो लूट


मुजफ्फरनगर, 30 जुलाई 2013 |
आजम खान
आजम खान
उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री व सपा के वरिष्ठ नेता आजम खान ने कहा कि आईएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति का निलंबन मुख्यमंत्री ने ही संज्ञान लेकर किया है और इस मामले पर वही आगे फैसला लेंगे. यमुना खादर में हो रहे रेत के अवैध खनन व अन्य प्राकृतिक संपदा की माफियाओं द्वारा लूट-खसोट के सवाल पर चुटकी लेते हुए मंत्री ने कहा कि कुदरत पर सबका हक है, 'राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट.' आजम खान मुजफ्फरनगर में मंगलवार को जिला योजना समिति की बैठक में भाग लेने पहुंचे थे. बैठक के बाद पत्रकारों से वार्ता में उन्होंने कहा कि नोएडा में आईएएस दुर्गा शक्ति नागपाल का निलंबन मुख्यमंत्री के स्तर से ही हुआ है.
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने खुद संज्ञान लिया था और वे आगे का फैसला भी खुद ही लेंगे. कोई तो शिकायत रही होगी ही जो मुख्यमंत्री ने यह फैसला लिया. कानून-व्यवस्था के सवाल पर उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में अपराध तो हो रहा है लेकिन साथ ही मुकदमे दर्ज कर आरोपियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई भी की जा रही है जबकि बसपा शासन में न तो अपराधियों के विरुद्ध कार्रवाई होती थी और न ही मुकदमे दर्ज होते थे.
कैराना की यमुना क्षेत्र में हो रहे रेत के अवैध खनन के मामले में उन्होंने कहा कि प्राकृतिक संपदा का दोहन हो रहा है. साथ ही कहा कि यह तो प्राकृतिक संपदा है 'राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट.' प्रदेश में बिजली की समस्या पर उन्होंने कहा कि इसका समाधान जल्द ही होगा और सभी छात्रों को छात्रवृत्ति भी समय पर बांट दी जाएगी. योजना समिति की बैठक में उन्होंने एक अरब बीस लाख रुपये के विकास कार्यों को मुजफ्फरनगर के लिए मंजूरी दी.


 

 

 

इन अफसरों को भुगतना पड़ा मंत्रियों को 'ना' कहने का खामियाजा


ग्रेटर नोएडा में अवैध खनन के खिलाफ मुहिम चलाने वाली बहादुर आईएएस अफसर दुर्गा शक्ति नागपाल को सस्पेंड कर दिया गया है. आइए नजर डालते हैं उन अफसरों पर जिन्‍हें मंत्रियों के मुताबिक ना चलने का खामियाजा भुगतना पड़ा. इन अफसरों को या तो सस्‍पेंड कर दिया गया या फिर इनके तबादले कर दिए गए.
ग्रेटर नोएडा में अवैध खनन के खिलाफ मुहिम चलाने वाली बहादुर आईएएस अफसर दुर्गा शक्ति नागपाल को सस्पेंड कर दिया गया है. दुर्गा नागपाल ने ग्रेटर नोएडा में बन रहे एक धार्मिक स्थल के निर्माण पर रोक लगा दी थी. गैर-कानूनी तरीके से इस इमारत का निर्माण किया जा रहा था.
पिछले दो दशक की नौकरी में एक आईएएस अधिकारी का 43 बार तबादला किया गया, जिसमें से 19 बार तबादले का आदेश भूपिंदर सिह हुड्डा के नेतृत्व वाली हरियाणा की मौजूदा कांग्रेस सरकार दे चुकी है.  हरियाणा कैडर के आईएएस अधिकारी अशोक खेमका पिछले साल तब सुर्खियों में आए थे, जब उन्होंने यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा और रियल एस्टेट की बड़ी कंपनी डीएलएफ के बीच करोड़ों रुपयों के एक विवादित भूमि सौदे में जमीन का म्यूटेशन रद्द कर दिया.

आईपीएस अफसर मनोज नाथ के 39 वर्ष के करियर में 40 बार तबादला हुआ है. मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार के राज में भी नाथ का एक साल में चार बार तबादला हुआ.

आईपीएस अफसर राहुल शर्मा का भी अपने 20 साल के करियर में 12 बार ट्रांसफर हुआ है. वर्ष 2002 में गोधरा दंगों के दौरान भावनगर में डिस्ट्रिक्‍ट एसपी रहे शर्मा ने शहर के मदरसे में हमला करने जा रहे हिंदुओं पर फायरिंग के आदेश दिए थे. दो महीने के अंदर इन पर गाज गिरी और इन्‍हें अहमदाबाद के पुलिस कंट्रोल रूम में जूनियर पोस्‍ट के तौर पर डीसीपी का पद दे दिया गया.
आईएएस अफसर आनंद वर्धन सिन्‍हा मार्च 2005 से अब तक एडवाइजर इन प्‍लानिंग बोर्ड के पद पर ही काबिज हैं. सिन्‍हा एक ही पद पर इतने लंबे समय तक बने रहने वाले पहले नौकरशाह हैं. उन्‍होंने यह पद तब संभाला था, जब बिहार में साल 2005 में राष्‍ट्रपति शासन लागू था.
आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर का 18 साल के करियर में 22 बार ट्रांसफर हुआ है. उन्‍होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि वह समाज के लिए कुछ करना चाहते थे, लेकिन जब-जब उन्‍होंने ऐसा करने की सोची तब-तब उनका ट्रांसफर हो गया.
भ्रष्‍टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले अधिकारियों के तबादले हुए.  कई बार उन्‍हें सस्‍पेंड कर दिया गया. यही नहीं कई अफसर ऐसे भी हैं, जिन्‍हें अपनी जान से हाथ तक धोना पड़ा. सत्‍येंद्र दुबे नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया के प्रोजेक्‍ट ऑफिसर थे. उन्‍होंने पीएमओ को अथॉरिटी में चल रहे भ्रष्‍टाचार की जानकारी दी थी, जिसके  बाद साल 2003 में उनकी हत्‍या कर दी गई.
मध्‍य प्रदेश में माइनिंग माफिया के खिलाफ कार्रवाई करने पर आईपीएस नरेंद्र कुमार की हत्‍या कर दी गई थी.
 शनमुघन मंजूनाथ इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन में मार्केटिंग मैनेजर थे. वर्ष 2005 में यूपी के लखीमपुर खीरी में एक पेट्रोल पंप के मालिक के बेटे ने उनकी हत्‍या कर दी
कर्नाटक में डिपार्टमेंट ऑफ कॉर्पोरेटिव ऑडिट डिप्‍टी डायरेक्‍टर रहे एसपी महंतेश को 16 मई 2012 में उनकी गाड़ी से बाहर निकालकर लोहे की रॉड से पीटा गया. पांच दिन अस्‍पताल में रहने के बाद महंतेश ने दम तोड़ दिया. उन्‍होंने कर्नाटक में कॉर्पोरेटिव सोसाइटी में जमीन के आवंटन में अनियमितता का खुलासा किया था.
बिहार से आरटीआई एक्टिविस्‍ट शशिधर मिश्रा और झारखंड के नियामत अंसारी को महात्मा गांधी राष्ट्रीय  ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में भ्रष्‍टाचार का खुलासा करने का खामियाजा भुगतना पड़ा, दोनों की हत्‍या कर दी गई

 

तेलंगाना को हरी झंडी, बनेगा भारत का 29वां राज्‍य

अगले लोकसभा चुनाव तक बन जाएगा तेलंगाना!

 10 साल के लिए साझा राजधानी होगी हैदराबाद

| नई दिल्ली, 30 जुलाई 2013 |


कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने अलग तेलंगाना राज्‍य के गठन को मंजूरी दे दी. कांग्रेस प्रवक्‍ता अजय माकन ने प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में इसकी जानकारी देते हुए बताया कि कांग्रेस की बैठक में सर्वसम्‍मति से तेलंगाना पर प्रस्‍ताव मंजूर कर लिया गया. तेलंगाना भारत का 29 वां राज्य होगा.








कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने अलग तेलंगाना राज्‍य के गठन को मंजूरी दे दी. कांग्रेस प्रवक्‍ता अजय माकन ने प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में इसकी जानकारी देते हुए बताया कि कांग्रेस की बैठक में सर्वसम्‍मति से तेलंगाना पर प्रस्‍ताव मंजूर कर लिया गया. तेलंगाना भारत का 29 वां राज्य होगा.

माकन ने बताया कि हैदराबाद 10 साल के लिए दोनों राज्‍यों की संयुक्‍त राजधानी होगी और हैदराबाद की कानून व्यवस्‍था की जिम्‍मेदारी दोनों राज्‍यों पर होगी. 

प्रस्‍तावित तेलंगाना राज्‍य में 10 जिले होंगे. ये जिले होंगे अदिलाबाद, निजामाबाद, करीमनगर, मेडक, रंगारेड्डी, महबूबनगर, नालगोंडा, वारंगल, खम्‍मम और हैदराबाद.


कांग्रेस कार्य समिति की करीब एक घंटे चली बैठक में पारित प्रस्ताव के अनुसार, ‘प्रस्ताव किया है कि निश्चित समय सीमा के भीतर केंद्र सरकार से भारत के संविधान के दायरे में पृथक तेलंगाना राज्य के गठन के लिए पहल करने का आग्रह किया जायेगा.’ पृथक तेलंगाना राज्य के गठन के बारे में कांग्रेस कार्य समिति और यूपीए का यह महत्वपूर्ण फैसला करीब एक सप्ताह के गहरे विचार विमर्श के बाद सामने आया है.


प्रस्ताव में कहा गया है कि, ‘यह आसान निर्णय नहीं था लेकिन यथासंभव व्यापक विचार विमर्श के बाद यह फैसला किया गया.’ केंद्रीय मंत्रिमंडल बुधवार को नये राज्य के गठन से जुड़े आर्थिक मुद्दों पर मंत्रियों के समूह के गठन पर विचार कर सकती है. बैठक के बाद कांग्रेस महासचिव और पार्टी के आंध्रप्रदेश मामलों के प्रभारी दिग्विजय सिंह ने संवाददाताओं से कहा कि नये राज्य के गठन की प्रक्रिया में चार-पांच महीने लग जायेंगे.


सिंह ने कहा कि फिलहाल तेलंगाना में दस जिलों को रखने का विचार है लेकिन और क्षेत्रों को शामिल करने के बारे में अंतिम फैसला मंत्री समूह करेगा. आंध्र प्रदेश की लोकसभा की 42 और विधानसभा की 294 सीटों में से प्रस्तावित तेलंगाना में लोकसभा की 17 और विधानसभा की 119 सीटें होने की संभावना है. सोनिया गांधी की अध्यक्षता में हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पार्टी उपध्यक्ष राहुल गांधी ने भी हिस्सा लिया. बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा कि पृथक तेलंगाना राज्य के गठन के फैसले से पूरे आंध्र क्षेत्र को मदद मिलेगी.
बैठक में सोनिया गांधी ने इस मुद्दे पर ऐतिहासिक परिपेक्ष्य पेश किया. दिग्विजय सिंह ने प्रस्ताव पेश किया जिसे सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया.

प्रस्तावित तेलंगाना राज्य में हैदराबाद, मेडक, आदिलाबाद, खम्माम करीमनगर, महबूबनगर, नलगोंडा, निजामाबाद, रंगारेड्डी और वारंगल शामिल होंगे. कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में इस बात का उल्लेख किया गया है कि यूपीए-1 सरकार के साझा न्यूनतम कार्यक्रम में मई 2004 और उसी साल संसद के संयुक्त अधिवेशन में राष्ट्रपति के अभिभाषण में सर्वसम्मति से अलग तेलंगाना राज्य के गठन की बात कही गई थी.

इसके बाद यूपीए दो के कार्यकाल के दौरान नौ दिसम्बर 2009 को तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदम्बरम ने तेलंगाना राज्य बनाने के बारे में एक बयान जारी किया था. कांग्रेस कार्य समिति में पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि दस साल के भीतर आंध्र प्रदेश के लिए नयी राजधानी का निर्माण करने में सहयोग किया जायेगा. इसमें यह भी कहा गया कि कोलावरम सिंचाई परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया जायेगा और इसके पूरा होने के लिए उचित कोष उपलब्ध कराया जायेगा.
प्रस्ताव के अनुसार आंध्र प्रदेश के पिछड़े क्षेत्रों अथवा जिलों की पहचान करके उनकी विशेष जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उनके विकास के लिए उचित कोष दिया जायेगा. अलग तेलंगाना राज्य बनने के बाद आंध्र प्रदेश सहित दोनों राज्य सरकारों को अपने अपने क्षेत्रों और जिलों में शांति और सौहार्द तथा कानून व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए सहयोग किया जायेगा.

कांग्रेस कार्य समिति ने सभी कांग्रेसजनों और आंध्र प्रदेश के तेलगू भाषी लोगों से अपील की कि वे अपना पूर्ण सहयोग दे जिससे कि इस प्रस्ताव को इस तरह लागू किया जा सके जिससे दोनों राज्यों में शांति, सौहार्द, प्रगति और खुशहाली सुनिश्चित हो सके. दिग्विजय सिंह ने संवाददाताओं के एक सवाल के जवाब में कहा कि अलग तेलंगाना राज्य बनाने का फैसला किसी राजनीतिक आवश्यकता या राजनीतिक मजबूरी के तहत नहीं किया गया है.

दोनों राज्यों के बीच संसाधनों के बंटवारे के बारे में पूछे गये एक सवाल के जवाब में सिंह ने कहा कि इस विषय पर मंत्री समूह का गठन होगा जो आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच भूमि, जल, राजस्व, परिसंपत्तियों तथा देनदारियों के मसले को देखेगा. यह प्रस्ताव ऐसे समय में आया है जब अलग गोरखालैंड और विदर्भ राज्य के गठन की मांग की जा रही है. पृथक तेलंगाना राज्य के गठन के अभियान में अग्रणी भूमिका निभाने वाली टीआरएस ने इस निर्णय का स्वागत किया है.


तेलंगाना के गठन पर मोदी ने किया सवाल, क्‍यों 9 साल तक चुप रही कांग्रेस


नरेंद्र मोदी
नरेंद्र मोदी 
तेलंगाना पर फ़ैसले को लेकर नरेंद्र मोदी ने केंद्र सरकार पर हमला बोला है. मोदी ने ट्वीट करके कहा कि जिस मुद्दे पर कांग्रेस पिछले 9 सालों से टालमटोल कर रही थी, लोगों के आंदोलन की वजह से कांग्रेस को मजबूर होकर ये फ़ैसला लेना पड़ा. मोदी ने कहा कि आंध्र प्रदेश के लोगों का सामना करने की बजाय कांग्रेस कमेटी और रिपोर्टों के पीछे छुपी हुई थी. मोदी ने सवाल उठाया कि क्या कांग्रेस इस देरी के लिए आंध्र प्रदेश के लोगों से माफ़ी मांगेगी. पढ़ें आंध्र प्रदेश के लोगों के नाम मोदी की पूरी चिट्ठी...
आंध्र प्रदेश के सभी क्षेत्रों के भाईयों एवं बहनों
नमस्कार
11 अगस्त को हैदराबाद में होने वाली एक जनसभा के जरिए मैं आप से बात करने वाला हूं. इस जनसभा में मैं आपसे तेलंगाना राज्य के मुद्दे तथा आंध्र प्रदेश के सभी क्षेत्रों के प्रति आपकी चिंताओं पर अपने विचार रखूंगा. पिछले 9 साल से कांग्रेस जिस मुद्दे से कन्नी काट रही थी, अचानक पिछले कुछ दिनों से इस मुद्दे के प्रति कांग्रेस का रुख और फैसला वाकई में चौकाने वाला है.

इसमें कोई दोमत नहीं है कि तेलंगाना राज्य के निर्माण को लेकर कांग्रेस का रवैया पारदर्शी नहीं रहा है. जो पार्टी और सरकार तेलंगाना की जनता को शुरू से ही ठगती आ रही उस पर अब भी भरोसा करना मुश्किल है. तेलंगाना राज्य के गठन का समर्थन बीजेपी शुरु से ही करती आ रही है. छोटे राज्यों के गठन के मामले में बीजेपी ही एकमात्र दल है जिसका रिकार्ड सबसे अच्छा है.
अटल जी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने ही छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड राज्य का गठन किया था. मित्रों, ये वहीं कांगेस पार्टी है जो तेलंगाना राज्य के गठन का वायदा कर चुनाव में जीत हासिल की थी और पिछले 9 सालों से यहां की जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रही थी. और जब देश में फिर से कुछ महीनों बाद चुनाव होने वाले हैं, तो आनन-फानन में कांग्रेस ने तेलंगाना राज्य के गठन की घोषणा कर दी.
कांगेस का यह कदम तेलंगाना राज्य को लेकर उसकी गंभीरता और इरादे पर सवाल खड़े करती है. 2004 और 2009 में लगातार दो साल राज्य में कांग्रेस ने चुनाव जीता. इसके वावजूद तेलंगाना राज्य के गठन की प्रक्रिया की घोषणा को आनन-फानन में केंद्र सरकार ने वापस ले लिया. जब राज्य में इसको लेकर हिंसा का दौर चल रहा था, कानून-व्यवस्था बिगड़ रही थी, युवा आत्मदाह कर रहे थे तो ये कांग्रेस मूक दर्शक बनी सब कुछ देख रही थी. बीजेपी तेलंगाना राज्य के लिए उठाए गए हर कदम का स्वागत करती है. मगर क्या वाकई में यूपीए सरकार राज्य का गठन करेगी.

ऐसे मौके पर मैं यूपीए सरकार और कांगेस नेतृत्व कुछ सवाल पूछता हूं.
 

सवाल-1. कांग्रेस पार्टी में ही इसको लेकर आमसहमति क्यों नहीं है.
सवाल-2. हैदराबाद के तेलंगाना में होने के बावजूद इस साझा राजधानी क्यों बनाई गई है. राज्य की सीमा के बाहर राजधानी बेतुका है.
सवाल-3. क्या इस फैसले को लेकर आंध्र प्रदेश और रायलसीमा के लोगों को राजी करने की क्या कोशिश की गई
सवाल-4. इस बार भी तेलंगाना के लोगों के साथ धोखा नहीं होगा. क्या इसको लेकर कोई वायदा किया गया है?
सवाल-5.  तेलंगाना की वजह से निवेश प्रभावित होने पर कई युवाओं ने आत्महत्या कर ली और माना जा रहा है कि राज्य के बंटने से यहां किसान भी मुश्किल में आ जाएंगे. तो क्‍या आंध्र के लोगों से माफी मांगेगी कांग्रेस.






 

 

 

आज हो सकता है तेलंगाना राज्य का ऐलान!

  नई दिल्ली, 30 जुलाई 2013 |

राहुल गांधी और मनमोहन सिंह
राहुल गांधी और मनमोहन सिंह
तेलंगाना अब हकीकत बनने जा रहा है. मंगलवार को सरकार और कांग्रेस दोनों ही इस बारे में फैसला करेंगी. उसके बाद ये तय हो जायेगा कि तेलंगाना राज्य को किस तरह बनाया जाये. हालांकि अब भी आंध्र प्रदेश के कई नेता तेलंगाना के विरोध में है. खुद मुख्यमंत्री किरण रेड्डी से लेकर कई केंद्रीय मंत्री तक ऐतराज जता चुके हैं.
लेकिन लगता है कि कांग्रेस ने तेलंगाना को नया राज्य बनाने का मन बन लिया है. कांग्रेस के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक मंगलवार को यूपीए समन्वय समिति की बैठक शाम चार बजे होगी और इसके बाद शाम साढ़े पांच बजे कांग्रेस कार्य समिति की बैठक होगी.
यूपीए की बैठक जहां घटक दलों की मंजूरी हासिल करने का प्रयास है, वहीं मुद्दे पर सहयोगियों का रुख पता चलने के बाद कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में अंतिम फैसला होगा. सरकार के सहयोगी भी इस मसले पर उसके साथ है तो विपक्ष बीजेपी भी खुलकर कह रही है कि तेलंगाना बनना चाहिए. यानी संसद में इसे लेकर कोई दिककत नही दिखती.
एनसीपी प्रमुख और कृषि मंत्री शरद पवार पहले ही पृथक तेलंगाना के गठन का पुरजोर समर्थन कर चुके हैं, वहीं दूसरे गठबंधन सहयोगी रालोद के नेता और नागरिक उड्डयन मंत्री अजित सिंह छोटे राज्यों के गठन के पक्षधर हैं और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों को मिलाकर हरित प्रदेश बनाए जाने की मांग करते रहे हैं.
भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने पृथक तेलंगाना के लिए अपनी पार्टी का समर्थन व्यक्त किया था. उन्होंने कहा था, ‘हम तेलंगाना का समर्थन करते हैं. राज्य के गठन के प्रति भाजपा तैयार है.’ भाजपा नेता कहते रहे हैं कि यदि भाजपा आम चुनावों के बाद सत्ता में आई तो वह तेलंगाना राज्य का गठन करेगी.
लेकिन कांग्रेस की मु्श्किलें अंदरूनी ज्यादा है. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री किरण रेड्डी ही खुद कह चुके है कि वो राज्य का बंटवारा नहीं चाहते. उनके साथ साथ केन्द्र के मंत्री पल्लम राजू और डी पुरंदेश्वरी भी बंटवारा होने पर इस्तीफे की धमकी दे चुके है.
मुश्किल हैदराबाद को लेकर भी है कि उसे किसके साथ दिया जाये. तेलंगाना के लोग हैदराबाद को अपने साथ रखना चाहते है तो बाकी आंध्रप्रदेश के लिए भी ये शहर उनके दिल के पास है. इसलिए प्रस्ताव ये है कि हैदराबाद को चंडीगढ़ की तर्ज पर संयुक्त राजधानी और केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाये. इसके अलावा तेलंगाना में रायलसीमा क्षेत्र के दो जिले अनंतपुर और कुर्नूल को मिलाकर रायल तेलंगाना बनाने का भी प्रस्ताव है.
उधर अखंड आंध्र प्रदेश के समर्थकों ने राज्य के विभाजन से जुड़े कांग्रेस नेतृत्व के कथित प्रस्ताव के खिलाफ रायलसीमा और तटीय आंध्र में अपना विरोध प्रदर्शन और तेज कर दिया. अखंड आंध्र के समर्थकों ने डी पुरंदेश्वरी (विशाखापटनम), के एस राव (इलुरू) और एल राजगोपाल (विजयवाड़ा) सहित विभिन्न कांग्रेस सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों के आवास एवं कार्यालयों के बाहर विरोध प्रदर्शन किया. सरकार को डर ये है कि इन फैसलों के बाद कही आंध्र प्रदेश में हालात और न बिगड़ जाये. इसलिए केंद्र ने अर्द्धसैनिक बलों की 25 और कंपनियों को आंध्र प्रदेश भेजा है. यानी डर तो सरकार को भी है. जाहिर है कोई भी फैसला बहुत सोच समझकर ही लेना होगा.



फॉर्मूला रेस के दीवानों के लिए बुरी खबर, 2014 से भारत में नहीं होगी फॉर्मूला वन रेस


नई दिल्ली, 29 जुलाई 2013 |
फॉर्मूला वन रेस
फॉर्मूला वन रेस
भारत से साल 2014 में फॉर्मूला वन रेस की मेजबानी छिन सकती है. इसकी कई वजह बताई जा रही हैं. एफवन के कॉमर्शियल प्रमुख बर्नी एक्लेस्टोन के मुताबिक भारत में एफ-1 रेस कराना मुश्किल है क्‍योंकि यहां सियासी दखलंदाजी की वजह से बाधा पैदा होती है. इसी के साथ उन्‍होंने यह भी बताया कि अगले साल से रूस में भी एफ-1 रेस शुरू हो रही है. उन्होंने हंगरी ग्रां पी के मौके पर बताया कि शायद अगले साल से भारत में एफ-1 रेस नहीं हो पाएगी. उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा के बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट (बीआईसी) पर ग्रां पी के आयोजन में आने वाली दिक्कतों के बारे में पूछे जाने पर एक्लेस्टोन ने कोई सीधा जवाब नहीं दिया. उन्होंने बताया कि फिलहाल आगामी कैलेंडर के लिए 22 ग्रां पी रेस में हैं. इनमें से अधिकतम 20 ग्रां पी को हरी झंडी दी जा सकती है.
गौरतलब है अगले साल से रूस और न्यूजर्सी में एफ-1 रेस शुरू होने जा रही है. इसके साथ ही 11 साल बाद ऑस्ट्रिया में भी फिर से यह रेस शुरू हो जाएगी. ये देश भी अपने वेन्यू के साथ इस चैंपियनशिप का हिस्सा बनने को बेताब हैं. खबरों के मुताबिक एफ1 के आयोजक अब एक साल में 20 रेस कराने के पक्ष में हैं और भारत में खेल के अंदर राजनीति का हस्तक्षेप और भारी भरकम टैक्स नियम इस फैसले के पीछे का सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है.
भारत में 2011 में पहली बार ग्रां पी का आयोजन हुआ था और इसे अच्छी प्रतिक्रिया मिली. इस साल भी 27 अक्टूबर को यहां एफ-1 का आयोजन किया जाएगा. भारत में आयोजित दोनों ग्रां पी रेडबुल टीम के चालक सेबेस्टियन वेट्टेल ने जीती हैं. वेट्टेल का मानना है कि बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट (बीआईसी) विश्व के चुनौतीपूर्ण सर्किट में से एक है.
भारत में फार्मूला वन के आयोजक जेपी स्पोर्टस इंटरनेशनल ने एक बयान जारी कर सफाई दी है कि आगामी साल ग्रां पी के आयोजन को लेकर मीडिया में चल रही खबरें बिल्कुल निराधार है. फॉर्मूला वन प्रबंधन के साथ हमारा समझौता है, जिसके मुतबिक 2015 तक बीआईसी पर एफ वन रेस करवाएगी.


अमेरिकी संस्थान NIH ने भारत में क्लीनिकल ट्रायल टाला

  वॉशिंगटन, 30 जुलाई 2013


अमेरिका के शीर्ष चिकित्सा अनुसंधान केंद्र ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ’ (एनआईएच) ने नियमों में सख्ती बरते जाने के मद्देनजर भारत में अपने क्लीनिकल ट्रायल को टाल दिया है. दुनिया के सर्वश्रेष्ठ स्वास्थ्य संबंधी अनुसंधान संस्थानों में से एक गिना जाने वाला एनआईएच इस तरह का निर्णय लेने वाला इकलौता संस्थान नहीं है.
निजी क्षेत्र में अनेक लोगों ने पिछले कुछ महीनों में इसी तरह के फैसले लिये हैं और वे भारत में अपने क्लीनिकल परीक्षणों की योजना को रद्द कर रहे हैं.
एनआईएच द्वारा अपने फैसले की पुष्टि किये जाने से करीब एक महीने पहले बोस्टन के यूएसए इंडिया चैंबर ऑफ कॉमर्स के लिए तैयार मैककिंसी की एक रिपोर्ट में भारत की क्लीनिकल ट्रायल नीति को देश के बढ़ते दवा उद्योग के सामने सबसे बड़ी अड़चन माना गया.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘दुनिया के और भारतीय उद्योग जगत के लोगों को जहां भारत की बौद्धिक संपदा की स्थिति पर ध्यान देने की और उसे स्पष्ट करने की जरूरत है वहीं उन्होंने इस बात को उजागर किया है कि क्लीनिकल ट्रायल का बुनियादी ढांचा और नीति यकीनन अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) के अभिनव प्रयोगों की क्षमता के लिहाज से भारत के लिए सबसे बड़ी रुकावट हैं.’ नये नियमों के बारे में चिंता जताते हुए एनआईएच ने हाल ही में एक बयान में कहा था कि वह इस महत्वपूर्ण विषय पर भारत की ओर से स्पष्टीकरण चाहता है.
एनआईएच के प्रवक्ता ने कहा, ‘एनआईएच को उम्मीद है कि भविष्य के बदलावों से अध्ययन फिर से शुरू हो सकेंगे और हम अपने नागरिकों के आपसी हितों के लिए भारत में अपने सहयोगियों के साथ साझेदारी जारी रख सकेंगे.’
हाल ही में यूएसए इंडिया चैंबर ऑफ कॉमर्स द्वारा बोस्टन में आयोजित अमेरिका-भारत बायो-फार्मा और स्वास्थ्य शिखरवार्ता 2013 में भी उद्योग जगत के विशेषज्ञों ने इसी तरह की राय जताई थी. उनका कहना था कि मौजूदा नीति और माहौल भारत में क्लीनिकल परीक्षण के लिहाज से ठीक नहीं है.
मैककिंसी की रिपोर्ट के प्रमुख लेखक अजय धनखड़ ने कहा कि क्लीनिकल ट्रायल के पीड़ितों के लिए मुआवजा संबंधी जरूरतों पर हालिया नीतियां निवेश के जोखिम को बढ़ाती हैं और बहुराष्ट्रीय तथा घरेलू दोनों फार्मास्युटिकल्स कंपनियों के लिए अस्थिरता पैदा करती हैं. हालांकि भारत के वरिष्ठ अधिकारियों ने इससे असहमति जताई.
केंद्रीय सरकारी स्वास्थ्य योजना में महानिदेशक और अतिरिक्त सचिव रवींद्र कुमार जैन ने कहा कि दवा अनुसंधान और क्लीनिकल ट्रायल के लिए नियामक पहलों का उद्देश्य पारदर्शिता, पहले ही अनुमान लगाने की क्षमता विकसित करना और कुल मिलाकर लोगों के अधिकार, कुशलता तथा सुरक्षा का ख्याल रखना है.
जैन ने कहा कि भारत में 2005 से 2012 के बीच क्लीनिकल ट्रायल में भाग लेते हुए 2,800 से ज्यादा रोगियों की मौत हो गयी जिनमें से 89 या तीन प्रतिशत से कम को सीधे तौर पर ट्रायल से जोड़ा गया. उन्होंने यह भी कहा कि इसके लिए लोगों को मुआवजा नहीं दिया जा रहा.
भारत के दवा महानियंत्रक डॉ जीएन सिंह ने कहा, ‘भारत सरकार आर्थिक मदद में सीधी भूमिका निभा रही है और हम इन संसाधनों की क्षमता बढ़ाने में घरेलू और वैश्विक साझेदारों की भूमिका की सराहना करते हैं.’


 

यूपी के मुख्य सचिव से मिलने पहुंची निलंबित IAS दुर्गा

लखनऊ, 29 जुलाई 2013

दुर्गा नागपाल
दुर्गा नागपाल
ग्रेटर नोएडा की एसडीएम के निलंबन के केस में यूपी की अखिलेश सरकार फंसती हुई दिख रही है. इस मसले पर यूपी का आईएएस एसोसिएशन भी नाराज हो गया है. एसोसिएशन के सचिव पार्थसारथी सेन शर्मा के साथ दुर्गा नागपाल ने यूपी के एक्टिंग मुख्य सचिव आलोक रंजन से मुलाकात की है. इस बीच यूपी सरकार ने इस निलंबन पर सफाई दी है कि दुर्गा सांप्रदायिक सौहार्द्र कायम रखने में नाकाम रही है.
पिछले कुछ दिनों में रेत और खनन माफिया पर दबिश डालने वाली दुर्गा शक्ति नागपाल को रविवार को ही सस्पेंड कर दिया गया था. सूत्रों से जानकारी मिली है कि दुर्गा के निलंबन को लेकर अब कोई भी फैसला मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बैंगलोर से वापस आने के बाद ही होगा.
हालांकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने विपक्ष के इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया कि आईएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल को खनन माफिया के दबाव में निलंबित किया गया है. अखिलेश ने कहा कि यह कदम इसलिए उठाया गया क्योंकि इलाके में सांप्रदायिक तनाव फैलने की आशंका थी.
उन्होंने बैंगलोर अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर कहा, ‘ऐसी कई घटनाएं हुईं जिनसे सांप्रदायिक तनाव फैल सकता है, जिसे रोकने के लिए प्रशासनिक फैसला करना जरूरी था. इसलिए यह फैसला (मजिस्ट्रेट के निलंबन का) किया गया.’
साल 2009 के बैच की आईएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल पिछले साल सितंबर में गौतमबुद्ध नगर की उप संभागीय मजिस्ट्रेट के पद पर तैनात की गई थीं. उन्‍हें एक विवादित धार्मिक स्थल (मस्जिद) की दीवार गिराने की वजह से निलंबित किया गया है. हालांकि ये निर्माण बगैर अनुमति लिए गैरकानूनी तरीके से हो रहा था.
दुर्गा ने जिले में अनधिकृत खनन के खिलाफ कार्रवाई का नेतृत्व किया था और गैरकानूनी तरीके से रेत की खुदाई करने वालों के खिलाफ दो दर्जन से अधिक प्राथमिकियां दर्ज की थी.


अखिलेश यादव! सवाल मस्जिद का नहीं कानून का है. और दुर्गा शक्ति उसी का पालन करवा रही थीं



किसको शह दे रही अखिलेश की मुस्कान
किसको शह दे रही अखिलेश की मुस्कान
कल से सब सुन पढ़ और समझ रहे हैं कि 2009 बैच की तेज तर्रार और ग्रेटर नोएडा में खनन माफिया की नकेल कसने वाली आईएएस अफसर दुर्गा नागपाल को यूपी सरकार ने सस्पेंड कर दिया. इस बारे में राज्य के युवा (अगर आप सपा समर्थक हैं, तो इसके बाद कई और विशेषण खर्च कर सकते हैं) मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सफाई है कि अधिकारी के एक कदम से सांप्रदायिक तनाव का खतरा हो गया था.ये कदम क्या था, एक अवैध निर्माण को शुरुआती दौर में ढहाया जाना, जिसे सपाई एक संप्रदाय का प्रस्तावित धर्म स्थल बता रहे हैं. खतरा तो वाकई है अखिलेश जी. मगर सांप्रदायिक तनाव का नहीं. खतरा ये है कि अब आपके इस रवैये के बाद कितने काबिल और ईमानदार अधिकारी कितनी मेहनत से और कितने दिन तक काम कर पाएंगे. मगर वे काम करेंगे. क्योंकि वे सत्ता का नहीं उस संविधान का सच बचाने के लिए काम करते हैं, जिसकी उन्होंने शपथ ली है. और रही आपके सरकारी सच या कहें कि डर की बात, तो उसकी कुछ परतें हम उघाड़ देते हैं. 1 क्या सांप्रदायिक सदभाव के नाम पर अवैध निर्माण बनाया जा सकता है
अखिलेश यादव के पिता, सपा के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने पिछले दिनों आज तक को दिए इंटरव्यू में छाती चौड़ी करके कहा था कि 1990 में मेरे सामने सवाल देश की एकता का था, इसलिए मैंने कारसेवकों पर गोली चलवाई. देश चलता है संविधान से और इस संविधान की रक्षा के लिए कानून का राज जरूरी है. कानून ये कहता है कि बिना प्रशासनिक अनुमति के कोई भी निर्माण नहीं हो सकता. मगर हो रहा था. न सिर्फ निर्माण हो रहा था, बल्कि ग्राम सभा की जमीन पर हो रहा था. यानी सरकारी जमीन पर अवैध निर्माण हो रहा था.दुर्गा शक्ति उसी को रोकने गई थीं. ये उनकी जिम्मेदारी का हिस्सा था. ये जिम्मेदारी आपकी सरकार ने उन्हें दी थी. फिर उन्होंने क्या गलत किया. और अगर आपके सांप्रदायिक सदभाव के तर्क को मानें, तो फिर इस देश में कोई कहीं भी पत्थर गाड़कर, चद्दर बिछाकर सड़क पर, सरकारी जमीन पर कब्जा कर ले और हम देखते रह जाएं. क्योंकि कुछ करेंगे तो सदभाव बिगड़ जाएगा.

2 जब सिर्फ एक दीवार ही बनी, तो उसे मस्जिद कैसे कह सकते हैं
किसी भी धर्म गुरु से बात करिए. सभी आपको बताएंगे कि जब तक धर्म स्थल पूरी तरह बनकर तैयार नहीं हो जाता और  सभी धार्मिक रीति रिवाज पूरे नहीं हो जाते, तब तक वहां प्रार्थना शुरू नहीं होती. और जब तक यह सब नहीं होता, उसे एक धर्म स्थल नहीं कहा जा सकता. ग्रेटर नोएडा के गांव में मस्जिद बनाने के इरादे से एक दीवार खड़ी की गई थी. दुर्गा शक्ति नागपाल को पता चला कि गांव में अवैध निर्माण हो रहा है, तो वह कार्रवाई करने पहुंचीं. उन्होंने निर्माण में प्रयुक्त मशीनें जब्त कीं और जो अवैध निर्माण हुआ था. यानी कि एक दीवार. उसे ध्वस्त कर दिया. सरकारी कानून भी यही कहता है.इस दौरान गांव वाले मौजूद थे, मगर किसी ने भी विरोध नहीं किया

3 तो फिर दुर्गा शक्ति के कदम से मिर्ची किसको लगी
जो उत्तर प्रदेश में रहते हैं और पिछले दस बरस में 1 बोरी भी मौरंग खरीदने बाजार गए हैं, उनसे पूछिए, जवाब मिलना शुरू हो जाएगा. अर्थशास्त्र के विद्यार्थी चाहें तो इस पर शोध कर सकते हैं कि मुलायम-मायावती-अखिलेश राज में यूपी में मौरंग और रेत की कीमतें किस दर से बढ़ी हैं. प्रदेश में कुछ बड़े घाट हैं, कुछ बड़े खनन इलाके हैं. जहां सत्ता की सरपरस्ती में काम चलता है. बताया जा रहा है कि ग्रेटर नोएडा में ऐसे ही तमाम खनन माफिया दुर्गा शक्ति नागपाल के कोड़े से पिट पिटकर खफा थे. वे किसी तरह से उन्हें यहां से चलता करना चाह रहे थे. इन दिनों अखिलेश दंगों पर सख्त कार्रवाई न करने के दाग को छुडा़ने में लगे हैं. सूबे से बाहर हैं. तो जैसे ही उन्हें खबर मिली की एक अधिकारी ने निर्माणाधीन मस्जिद की दीवार गिरा दी, तो उन्होंने खुद उनके ही शब्दों में कहें तो ‘सख्त कार्रवाई’ कर दी.मगर अब हर ओर जायज हल्ला मचा है कि ये सख्त नहीं तंत्र की सड़ी हुई और सड़ांध पैदा करने वाले गुंडा बदमाशों की रक्षक कार्रवाई है.

4 अगर मसला सिर्फ तनाव का था तो सस्पेंड क्यों किया
अब भोले भाले अखिलेश यादव की सरकार का एक और तोतला और कर्कश तर्क सुनिए. उनका कहना है कि यूपी में कहीं भी सांप्रदायिक तनाव न भड़के, इसलिए ऐसा करना पड़ा. यानी अखिलेश मानते हैं कि अधिकारी नियमों के हिसाब से काम कर रही थी, मगर इसमें एक संप्रदाय की धार्मिक भावनाएं जुडी़ थीं, इसलिए उन्हें हटाया जाना जरूरी था. मगर गौर करिए कि अखिलेश सरकार ने दुर्गा का ट्रांसफर नहीं किया. उन्हें सस्पेंड किया है. यानी बाकायदा काम न करने की सजा सुनाई है. अब एक कर्मठ अधिकारी के लिए इससे ज्यादा अपमानजनक क्या हो सकता है कि उसे काम ही न करने दिया जाए.अब लखनऊ सचिवालय में सफाई दी जा रही है कि ये फौरी कदम था और सीएम के लौटने के बाद बहाली हो सकती है

5 सरकार का रसूख कायम करना गुनाह है क्या
आप इस देश में रहते हैं. अकसर सुनते हैं, भारत सरकार, यूपी सरकार. कभी देखी है आपने ये सरकार. कभी मिले हैं इससे. क्या ये हर वक्त आपके साथ रहती है.जवाब है नहीं. सरकार कोई गुड्डा नहीं, जिसे कमर में खोंस चल दिए. सरकार एक भाव है. सुरक्षा का. अनुशासन का. एक यकीन है कि कहीं कुछ गलत नहीं होगा क्योंकि सरकार हिफाजत कर रही है. व्यवस्था कर रही है. ये सरकार दिखती तो कभी कभी है अपने अमले के जरिए, मगर इसका रसूख हर वक्त रहता है. या कहें कि रहता नहीं है, मगर रहना चाहिए. तो अधिकारी सख्त ढंग से गलत कामों को कुचल कर, सही को बढ़ावा देकर, न्याय का राज स्थापित कर दरअसल सरकार का रसूख ही तो बना रहे होते हैं. वे सरकार को मजबूत कर रहे होते हैं. मगर नहीं. सख्त प्रशासन का दावा करने वाले अखिलेश इसे नहीं समझ पाए. उन्हें चुनावी गणित इतनी प्यारी लगी कि ईमान के गणित को गड़बड़ कर एक ऐसे अधिकारी को सजा दी गई, जिसका सार्वजनिक सम्मान किया जाना चाहिए था. मगर सम्मान तो हो रहा है. सरकार न करे, जनता कर रही है. और इसीलिए इस देश में जनतंत्र है. सत्ता के सिर पर सवार.



दुर्गा निलंबनः एसआई ने खोली अखिलेश के दावे की पोल

नई दिल्‍ली 30 जुलाई 2013 11:58 AM 
police nail down cm claim over durga suspension  
आईएएस अफसर दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन को दुरुस्त ठहराते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने तर्क दिया था कि उनके आदेश से रबूपुरा में सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया था। लेकिन इस तर्क की हवा निकल गई है।

टीओआई की खबर के मुताबिक गौतम बुद्ध नगर में स्‍थानीय पुलिस ने सोमवार को इस दलील को दरकिनार करते हुए साफ किया कि इलाके में ऐसा कोई सांप्रदायिक तनाव नहीं था।

पुलिस के दावों की विश्वसनीयता इस बात से भी बढ़ती है कि राज्य सरकार को शनिवार को इस इलाके से सांप्रदायिक तनाव से जुड़ी कोई फील्ड रिपोर्ट नहीं मिली है।

गृह मंत्रालय के कुछ सूत्रों के मुताबिक किसी भी अधिकारी के खिलाफ इस तरह के गंभीर फैसलों की पहल फील्ड रिपोर्ट के आधार पर की जाती है।

रबूपुरा थाने के सीनियर सब इंस्पेक्टर अजय कुमार ने कहा, 'ऐसा कोई तनाव नहीं था। आप मीडियाकर्मियों से पूछ सकते हैं, जो गौतम बुद्ध नगर में मौजूद थे। मेरे पास इस बात पर यकीन करने की पर्याप्त वजह है कि किसी को रविवार रात तक इस तरह का धार्मिक स्‍थल की दीवार गिरने के बारे में पता ही नहीं था।'

यह पूछने पर कि क्या वहां पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे और सांप्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश करने वाले तत्वों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया है, इस पर कुमार ने कहा, 'जब कुछ हुआ ही नहीं, तो केस किसलिए?'


IAS officer Durga Shakti Nagpal, who was in news last week for clamping down on illegal sand mafia in Greater Noida, has been suspended.

The reason for the suspension of Nagpal is not clear yet.

According to sources, the Samajwadi party
leader Narendra Bhati was peeved against IAS officer's drive against illegal mining and thus complained about her to the SP leadership. The SP leader allegedly did this to settle scores with the officer.

Nagpal had led the seizure of 24 dumpers engaged in illegal quarrying and arresting 15 people last week.

This kind of action against honest officers is unacceptable.