Saturday, 5 April 2014

दक्षिण में बढ़िया सड़कें, ढिंढोरा नहीं...

दक्षिण में बढ़िया सड़कें, ढिंढोरा नहीं...

 रविवार, 6 अप्रैल, 2014 को 09:14 IST तक के समाचार

गुजरात सड़कें
इस बात पर बहस हो सकती है कि रफ़्तार को विकास का समानार्थी माना जाए या नहीं पर इतना तय है कि वह एकमात्र समानार्थी शब्द नहीं है.
ज्ञात इतिहास के लिए ये कोई मुद्दा नहीं है. पहिए के अविष्कार से लेकर विमानों और रॉकेटों तक, वह हमेशा रफ़्तार के पक्ष में खड़ा रहा है और आगे भी रहेगा.
पठनीय लिखित इतिहास से ठीक पहले, सिंधुघाटी सभ्यता काल निर्धारण की बहस भी अंततः रफ़्तार और घोड़ों पर जाकर टिक जाती है. इस तर्क के साथ की वहां घोड़े पालतू जानवर की तरह मौजूद नहीं थे. होते तो उस सभ्यता की मुहर पर बैल नहीं, घोड़ों का चित्र होता. इसका संतोषजनक जवाब किसी के पास नहीं है कि सिंधुघाटी के लोग सभ्य थे तो रफ़्तार के हामी क्यों नहीं थे. घोड़े थे तो बैल प्रतीकचिह्न क्यों था?
घोड़ों के पास गठा हुआ बदन था, सुंदरता थी, रंग और आकर्षण था. इन सबसे बड़ी बात उनकी रफ़्तार थी. अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त के घोड़ों की तरह, जो धूल उड़ाते सरपट दौड़ते थे. या, बहुत बाद में, राजस्थान के महाराणा प्रताप के चेतक की मानिंद, पलभर में यहां से वहां.

सोच का फ़र्क

गुजरात सड़कें
आधुनिक सभ्यताओं में विकास को परिभाषित करने के मानक मोटे तौर पर उसे रफ़्तार के समानांतर रखते हैं. दीगर मापदंड भी हैं पर रफ़्तार सतह पर दिखती है इसलिए नज़र सबसे पहले उसी पर टिकती है.
गुजरात की सड़कों के क़सीदे पढ़ने वाले कहते हैं कि किसी को ज़रूरी काम से वडोदरा से वलसाड जाना हो तो वह अपने वाहन से तीन-साढ़े तीन घंटे में पहुंच जाता है. लगभग ढाई सौ किलोमीटर जाने के लिए अब एक दिन पहले नहीं चलना पड़ता.
पश्चिमी समुद्र तट पर दक्षिण भारत के पहले राज्य कर्नाटक में बसें इस रफ़्तार से चलती हैं कि उडुपी से 65 किलोमीटर दूर मंगलोर एक घंटे में पहुंच जाती हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि यही दूरी कार से तय करनी हो तो सवा घंटा लग सकता है.
यह गुजरात और कर्नाटक की सड़कों और सोच का फ़र्क है. एक जगह बड़े शहरों के बीच की सड़कें अच्छी हैं तो दूसरी जगह सड़क के साथ सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था भी, जिसका गुजरात में अभाव दिखता है.
कच्छ से लेकर सौराष्ट्र के बड़े क्षेत्र में स्थानीय परिवहन ज़्यादातर पुरानी मोटरसाइकिलों से बनीं फटफटिया पर निर्भर है. बसें कम हैं. इस मोटरसाइकिल फटफटिया पर पच्चीस से तीस लोग तक, कुछ खड़े-कुछ लटके, यात्रा करते हैं. महिलाओं और बच्चों को भी इसी तरह यात्रा करनी पड़ती है.
दक्षिण भारत के चारों राज्यों- कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और नवगठित सीमांध्र में बड़ी सड़कें वाक़ई अच्छी हैं. कहीं गुजरात के बराबर, कहीं बेहतर. पर प्रचार की रफ़्तार में उनका ज़िक्र दब जाता है और वे अचर्चित रह जाती हैं क्योंकि कोई उनका ढिंढोरा नहीं पीटता.

घर में बोइंग

केरल सड़कें
केरल को इसका अपवाद माना जा सकता है लेकिन इसके कारण भिन्न हैं. देश में सर्वाधिक आबादी घनत्व वाले इस राज्य में चौड़ी सड़कें बन नहीं सकती थीं. उनके दोनों तरफ़ घनी बस्तियाँ पूरे राज्य में कहीं भी साथ नहीं छोड़तीं. इसलिए रफ़्तार घट जाती है.
इन्हीं बस्तियों के कारण केरल की सड़कें संकरी हैं, और दिखती हैं लेकिन नियमों का पाबंदी से पालन करने वाले इस राज्य में ट्रैफ़िक कभी नहीं रुकता, बाधित नहीं होता. अन्य राजमार्गों की तरह वह कम गति से ही सही, चलता रहता है.
अंदरूनी सड़कों का हाल  रास्ते में आने वाले राज्यों में कहीं भी बहुत अच्छा नहीं है. लेकिन दक्षिण भारत, ऐसा लगता है, उस तरफ़ भी ध्यान दे रहा है. उसके लिए रफ़्तार के मानी बड़ी सड़कों के साथ ख़त्म नहीं हो जाते. मसलन, सीमांध्र में नेल्लोर से ओंगोल के बीच एक पतली सड़क साढ़े पांच किलोमीटर दूर आठ सौ की आबादी वाले गांव रामायापटनम को जोड़ती है.
सड़क पक्की है और उस पर गड्ढे नहीं हैं, बावजूद इसके कि ये इलाक़ा सुनामी से हुई तबाही का शिकार था. तब सब कुछ नष्ट हो गया था. जनजीवन, घर, सड़क से लेकर वनस्पतियों तक. उस पतली सड़क ने उन्हें रफ़्तार देकर फिर देश से जोड़ दिया है.
तमिलनाडु में मामल्लापुरम की सड़क ठीक है. हालांकि उसके ठीक होने की वजह महाबलिपुरम के संरक्षित स्मारक हो सकते हैं, जिन्हें देखने दूर-दूर से लोग आते हैं. सातवीं-आठवीं शताब्दी के बीच पल्लव शासकों के काल में बने ये स्मारक भी एक तरह से रफ़्तार के ही स्मारक हैं-अपने पांच विश्व प्रसिद्ध रथों के साथ.
मामल्लापुरम में रफ़्तार क़स्बे में इस तरह घुस आई है कि एक व्यक्ति ने बोइंग विमान लाकर अपने घर के बगल में खड़ा कर लिया है. यह हवाई जहाज उड़ता नहीं लेकिन पांडवों का रथ देखने आने वाले उसमें बैठकर आराम कर सकते हैं. यह एक रेस्त्रां है.

क्या हिंदुत्व के सिलेंडर की हवा निकल चुकी है?...हिंदुत्ववादी छवि से किनारा:मोदी अब तक अयोध्या में राम जन्मभूमि के विवादित स्थल राममंदिर पर माथा टेकने नहीं गए हैं

क्या हिंदुत्व के सिलेंडर की हवा निकल चुकी है?...हिंदुत्ववादी छवि से किनारा:मोदी अब तक अयोध्या में राम जन्मभूमि के विवादित स्थल राममंदिर पर माथा टेकने नहीं गए हैं

क्या हिंदुत्व के सिलेंडर की हवा निकल चुकी है?...

 रविवार, 6 अप्रैल, 2014 को 08:46 IST तक के समाचार

नरेंद्र मोदी वडोदरा
सोमवार से शुरू हो रहे आम चुनाव में भारत के सबसे बड़े विपक्षी दल, भारतीय जनता पार्टी, की जीत की संभावना जताई जा रही है. इसकी वजह प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार भाजपा नेता नरेंद्र मोदी की अद्वितीय लोकप्रियता बताई जा रही है. इस लोकप्रियता का कारण बताया जा रहा है मोदी के बारह-वर्षीय मुख्यमंत्रीकाल के दौरान गुजरात का विकास.
मोदी कहते हैं कि वह भारत से बेरोज़गारी, महंगाई, भूखमरी, ग़ुरबत और आर्थिक शिथिलता कम कर देंगे. उनके विरोधी भले ही गुजरात की तरक़्क़ी के दावे नकारें, लेकिन यह तय है कि विकासपुरुष के दावे के आधार पर ही मोदी चुनाव हारेंगे या जीतेंगे.
ध्यान देने की बात ये है कि इस चुनाव में मोदी की एक दूसरी बड़ी उपलब्धि को भाजपा बिलकुल दबा गई है. और वो है उनका प्रखर हिंदुत्ववादी परिचय जिसके चलते वह सालों से गुजरात में लोकसभा और विधानसभा चुनाव जीतते आ रहे हैं.

'हिंदू हृदय सम्राट'

उत्तरप्रदेश के वाराणसी से चुनाव लड़ रहे मोदी अब तक अयोध्या में राम जन्मभूमि के विवादित स्थल पर माथा टेकने नहीं गए हैं. और न ही उन्होंने वहां राममंदिर बनाने की चर्चा छेड़ी है जो भाजपा हर चुनाव के पहले आदतन करती रही है.
हिंदुत्ववादी छवि से किनारा करने की मोदी की वजह साफ़ है. धर्मनिरपेक्षता ख़त्म कर हिंदू राज का लक्ष्य साधने वाली इस दक्षिणपंथी विचारधारा ने भले ही गुजरात में फ़ायदा पहुंचाया हो, देश में अन्य चुनावों में वह पूरी तरह विफल हो चुकी है.
अक्तूबर 2001 में गुजरात का मुख्यमंत्री बनाए जाने से पहले मोदी भाजपा के मातृ संगठन, रा़ष्ट्रीय स्वयंसेवकसंघ (आरएसएस), की ओर से पार्टी में आए एक मंझले स्तर के नुमाइंदे थे और पर्दे के पीछे काम करते थे.
नरेंद्र मोदी, बाबा रामदेव
सितंबर 2001 में गुजरात के विधानसभा उपचुनाव में भाजपा की अप्रत्याशित हार से घबराकर भाजपा नेता और उस वक़्त के उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने मोदी को मुख्यमंत्री बना कर गुजरात भेज दिया था. सरकारी पद संभालना तो दूर मोदी ने इसके पहले चुनाव तक नहीं लड़ा था. इसलिए आडवाणी मानते थे कि मोदी उनका नुमाइंदा बन कर उनके इशारे पर चलेंगे.
लेकिन जब फ़रवरी 2002 में गोधरा शहर में एक ट्रेन में लगी आग में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के 59 कार्यकर्ताओं की मौत हो गई तो पांच महीने पहले मुख्यमंत्री बने मोदी का जीवन एक झटके में बदल गया और वह ख़ुदमुख़्तार हो गए.
दंगाइयों ने ट्रेन में आगज़नी के लिए उस मोहल्ले के मुसलमानों को ज़िम्मेदार माना जिसके पास उस रोज़ आग लगने के वक़्त ट्रेन रुकी थी. अगले दिनों दंगाइयों ने गुजरात भर में सैकड़ों मुसलमानों की जवाबी हत्याएं कर डालीं.
इस क़त्लेआम को मोदी ने हिंदुओं की प्रतिक्रिया बताया़. उन पर आरोप लगाए जाते हैं कि उन्होंने मोटे तौर पर भाजपा-विहिप के आक्रामक रुख़ का साथ दिया. इस घटनाक्रम के बाद देश ही नहीं दुनिया भर के अपने समर्थकों में मोदी हिंदू हृदय सम्राट कहलाने लगे.
आठ महीने बाद गुजरात विधानसभा चुनाव में मोदी ने भाजपा को भारी जीत दिलाई. तब से दो और विधानभा चुनाव जीत कर वो मुख्यमंत्री बने हुए हैं. लेकिन दिल्ली के ताज की तमन्ना ने मोदी को हिंदुत्ववादी मुकुट उतारने पर मजबूर कर दिया है.

वाजपेयी का समाजवाद, आडवाणी का हिंदुत्व

गोधरा ट्रेन हादसा
भाजपा के चुनावी हिंदुत्व के उतार और चढ़ाव की कहानी दिलचस्प है. अपने मूल में हिंदुत्ववादी होने के बावजूद भाजपा के राजनैतिक जीवन का पहला नारा हिंदुत्व का नहीं सहिष्णु गांधीवादी समाजवाद का था.
इस नारे को पहले भाजपा अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी ने 1980 में पार्टी की स्थापना के साथ ही दिया था. लेकिन साल 1984 के आम चुनाव में ये नारा पिट गया. भाजपा के 224 उम्मीदवारों में से सिर्फ़ दो जीते. वाजपेयी ख़ुद हार गए.
यह भाजपा का पहला औपचारिक चुनाव था. लेकिन इससे पिछली लोकसभा में भी तब के जनसंघ के 13 सांसद रहे थे. ये सांसद जनवरी 1980 के चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर चुने गए थे. उसी साल दिसंबर में भाजपा बना कर ये अलग हो गए थे.
आनन-फ़ानन में बनी जनता पार्टी ने 1977 में इंदिरा गांधी की केंद्रीय सरकार को ज़बरदस्त शिकस्त दी थी. लेकिन जब जनता पार्टी के हिंदुत्व गुट पर आरएसएस से नाता तोड़ने का दबाव पड़ने लगा तो देश की पहली ग़ैर-कांग्रेसी सरकार गिर गई.
1980 के चुनाव में इंदिरा गांधी भारी जीत के साथ वापस आईं. टूटी हुई जनता पार्टी के सभी गुटों को मुंह की खानी पड़ी थी. वाजपेयी समझते थे कि ऐसे माहौल में हिंदुत्व के नाम पर वोट नहीं मिलेंगे. इसलिए उन्होंने गांधीवादी समाजवाद का नारा दिया.
अटल बिहारी वाजपेयी फ़ाइल
लेकिन अक्तूबर 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या हो गई और आम चुनाव में उनके पुत्र राजीव गांधी ने भारी जीत हासिल की. वाजपेयी पीछे हट गए और भाजपा में उनके समकालीन हिंदुत्ववादी आडवाणी का उदय हुआ.
1986 से 1991 तक भाजपा अध्यक्ष रहे आडवाणी ने बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद को राजनीति का केंद्रबिंदु बनाया. 1989 के चुनाव में भाजपा 85 सीटें जीत कर लोकसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी. उसके समर्थन से केंद्र में सरकार बनी.
1990-91 में ही पहली बार चार राज्यों में भाजपा की सरकारें बनीं. इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण जीत रही उत्तरप्रदेश में, जहाँ अयोध्या है. मध्यप्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में आज़ादी के बाद यह कांग्रेस की पहली हार थी.

'धीमी आंच पर हिंदुत्व'

1991 के आमचुनाव से आठ महीने पहले अगस्त 1990 में आडवाणी ने रामजन्मभूमि के मुद्दे पर गुजरात से अयोध्या तक रथयात्रा शुरू की जिसकी चलते देश में सांप्रदायिक दंगे हुए. अक्तूबर में आडवाणी बिहार में गिरफ़्तार कर लिए गए. एक हफ़्ते बाद अयोध्या में बाबरी मस्जिद पर हमला करने वाले भाजपा-विहिप के दर्जनों कार्यकर्ता पुलिस गोलीबारी में मारे गए.
लालकृष्ण आडवाणी, अशोक सिंघल फ़ाइल
इस घटनाक्रम के चलते हिंदुत्व की फ़सल लहलहाने लगी. सत्ता की उम्मीद पर भाजपा ने 1984 और 1989 के मुक़ाबले 1991 में दोगुने उम्मीदवार खड़े किए. लेकिन भाजपा सिर्फ 120 सीटें जीत कर संसद में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बन पाई.
6 दिसंबर 1992 को भाजपा-विहिप के कार्यकर्ताओं ने हमला करके बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया. उसी दिन कांग्रेस की केंद्र सरकार ने भाजपा की राज्य सरकारें बर्ख़ास्त कर दीं. यहीं से हिंदुत्व की चुनावी बेवफ़ाई शुरू हो गई.
इन राज्यों में नवंबर 1993 के मध्यावधि चुनावों में भाजपा ने जीत की आशा की. लेकिन राजस्थान छोड़ कर तीनों राज्यों में उसकी बुरी हार हुई. बाबरी की परछाई 1996 के लोकसभा चुनाव पर भी पड़ी. भाजपा 161 सीटें जीत कर सबसे बड़ी पार्टी बनी लेकिन बहुमत लायक सहयोगी नहीं बटोर पाई. पहली बार प्रधानमंत्री बने वाजपेयी को 13 दिन में इस्तीफ़ा देना पड़ा.
1998 के आमचुनाव के वक़्त भाजपा को घोषणा करनी पड़ी कि वो रामजन्मभूमि मुद्दे को "धीमी आंच" पर डाल रही है. अपनी जान बचाने के लिए भाजपा हिंदुत्व की डूबती नौका से कूद पड़ी. तब से भाजपा कभी भी हिंदुत्व और रामजन्मभूमि तक लौट नहीं पाई है. क्या हिंदुत्व जिस धीमी आंच पर था उस सिलेंडर की गैस ख़त्म हो चुकी है?

ऑटो रेहड़ी वाले क्या अब भी हैं 'आप' के दीवाने?

ऑटो रेहड़ी वाले क्या अब भी हैं 'आप' के दीवाने?

 रविवार, 6 अप्रैल, 2014 को 03:27 IST तक के समाचार

ऑटो चालकों का समूह
“नमस्कार मैं अरविंद केजरीवाल बोल रहा हूं, हमारी पार्टी ने अभी दिल्ली में 49 दिन की सरकार बनाई थी...” अगर आप रेडियो सुनते हैं या फ़िर आप मोबाईल फ़ोन का इस्तेमाल करते हैं तो आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल का ये रेकॉर्डेड संदेश आपने जरुर सुना होगा.
ऐसे संदेशो के माध्यम से अरविंद केजरीवाल आजकल पिछले विधानसभा चुनाव में बनी अपनी सरकार के 49 दिनों के कार्यकाल का ब्यौरा देते सुनाई पड़ रहें हैं.
मुफ्त बिजली, पानी, भ्रष्टाचार में कमी, रेहड़ी और खुदरा व्यापारियों के हितों का ख्याल, ऑटो वालो की मदद और पुलिस के रवैये में बदलाव ऐसे ही कुछ मुद्दे हैं जिनके आधार पर अरविंद जनता से और खासतौर पर अपनी पार्टी के वोट बैंक ऑटो और रेहड़ी चालकों को लोकसभा चुनाव में उनको वोट देने की अपील कर रहे हैं.
लेकिन जिन ऑटो वालो और रेहड़ी पर सब्ज़ी बेचने वालो की वो बात कर रहें हैं क्या वो भी उनकी बात से सहमत हैं? या फ़िर अचानक इस्तीफ़ा देकर उन्हें मंझधार में छोड़ देने वाली सरकार से नाखुश हैं.
इसी सवाल का जायज़ा लेने हम दिल्ली की सड़को पर निकले. सबसे पहले हमने बात की दिल्ली में आम आदमी पार्टी के बड़े वोट बैंक यानि ऑटो चालकों से कि क्या 49 दिनों के दौरान उन्हें दिल्ली के प्रशासन में कुछ फ़र्क लगा.

आम आदमी का ऑटो

ऑटो चालक शाकिब
10 साल से ऑटो चला रहे चालक शाक़िब ने बताया “पहले बिना बात के पुलिस वाले तंग करते थे. कभी भी चालान काट देते थे. केजरीवाल आए तो पुलिस भी तमीज से बात करने लगी थी.”
25 साल तक ऑटो चलाने वाले मोहम्मद वसीम का कहना था, “10 साल तक कांग्रेस को वोट दिया साहब, किसी चीज़ की कोई सुनवाई नहीं थी, इस आदमी ने 49 दिनों में गैस के दाम 50-55 से 35 कर दिए ये छोटा काम है क्या? ”
ऑटो चालकों ने तो खुल कर केजरीवाल का समर्थन किया लेकिन पास ही खड़े कुछ पुलिसकर्मी शायद इस बात से सहमत नहीं थे. पहले तो उन्होनें ऑटो वालो को ऑटो ठीक से पार्क करने को कहा फ़िर हमसे मुखातिब होकर बोले “आप यहां भीड़ मत लगाओ.”

पुलिस की बेबसी

कुछ देर बाद नाम न बताने की शर्त पर वो बोले “ये ऑटो वाले अरविंद केजरीवाल का सरकार आने के बाद से काफ़ी बदल गए हैं. पुलिस को केजरीवाल के नाम की धौंस दिखाने लगे हैं.”
ये पूछे जाने पर की क्या पुलिस धौंस नहीं दिखाती तो उनका कहना था “पुलिस का काम है सख्त होना, गलती करें और हम सख्त भी न हों ये कहां कि बात हुई. रही पैसे लेने की बात मेरी 25 साल की नौकरी मैंने किसी से पैसे नहीं लिए और जो लेते हैं तो उनसे आप सारी पुलिस को भ्रष्ट मत बोलो”.
हमने जिन ऑटो वालो से बात की थी वो हमें मीटर से यमुना विहार ले जाने को तैयार हो गए जहां दिल्ली की नार्थ ईस्ट लोकसभा सीट से आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी प्रो. आनंद कुमार रैली के लिए आने वाले थे. रैली स्थल से कुछ दूर पर रेहड़ी पर छोले कुल्चे बेचने वाले पवन मौजूद थे जो आम आदमी पार्टी से नाखुश नज़र आए “क्या आम आदमी पार्टी साहब, इतने बड़े बड़े वादे किए और फ़िर इस्तीफ़ा दे दिया. क्या फ़ायदा हुआ इनको वोट देने का इससे अच्छा फूल पर बटन दबाते.”
पवन छोले कुल्चे
पवन को  बात करते देख भीड़ जुटने लगी और लोग बातें करने लगें. लाल मोहम्मद, जो यमुना विहार और आसपास के ईलाके में कनस्तर की फेरी लगाते हैं उनके अनुसार अरविंद का इस्तीफा सही था “वो बड़े चुनाव की तैयारी में हैं. इसके लिए छोटा पद तो छोड़ना था न. अब फ़िर आएंगे.”
लेकिन जब हम यहां से यमुना विहार के अंदरुनी ईलाकों में आगे बढे तो ऐसा लगा जैसे अरविंद केजरीवाल को कोई पसंद नहीं करता और पूरा इलाका भारतीय जनता पार्टी का गढ़ है.

हर हर मोदी

घोंडा क्षेत्र में लक्ष्मी इलेकट्रिकल्स के नाम से अपनी दुकान चलाने वाले विकास तोमर ने कहा “ अरविंद अच्छे थे लेकिम मोदी जी ने बहुत विकास किया है गुजरात में. वो देश को भी वैसा ही बना देंगे.”
लेकिन ये पूछे जाने पर कि क्या वो कभी गुजरात गए हैं जवाब ‘न’ में था “ अरे हमने टीवी में देखा था वहां खूब विकास हुआ है.”
घोंडा एक चाय विक्रेता
विकास की दुकान के बाहर भी माईक देख के भीड़ लग गई और भीड़ में से निकल कर आए चाय की दुकान चलाने वाले लीलू जिन्होने जोरों शोरों से मोदी के नाम के नारे लगाने शुरु कर दिए.
“मोदी जी के लिए मैं अपने बच्चे, अपना परिवार भी कुर्बान कर सकता हूं. 49 दिन तो क्या 49 सालों में भी कोई केजरीवाल वो नहीं दे सकता जो हमारे भाई मोदी से मिलेगा.” और फिर हर हर मोदी के नारे लगाने लगे.
लेकिन बार बार ये पूछने पर भी भीड़ में से कोई भी ये नहीं बता सका कि नार्थ ईस्ट से भाजपा प्रत्याशी हैं कौन? “जो भी हों, मोदी को लाना है!” और फ़िर मोदी के नारों का दौर शुरु हो जाता है.
हम वैसे तो आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी प्रो. आनंद कुमार की रैली के शुरु होने के इंतजार में खड़े थे लेकिन रैली आयोजक शायद हमारे जाने और भाजपा समर्थकों के हटने के इंतजार में खड़े थे. सो हमने वहां से चलना ही मुनासिब समझा.
कुछ दूर जाते ही भाजपा के नारे लगाते लीलू ने हमें रोका और कहा “ इस बार मेरा टिकट पक्का था आम आदमी से पर पता नहीं किसे दे दिया. अब तो अगला विधानसभा चुनाव निर्दलीय ही लड़ूंगा.”
सारा दिन घूमने के बाद यही समझ आया कि अरविंद की 49 दिन की सरकार को कोई भले ही कोई भूला नही हैं लेकिन उनके अचानक इस्तीफ़े को लोगों ने एक्सेपट भी नहीं किया.
भले ही अरविंद अपने रेकॉर्डेड मेसेज से 49 दिन के काम याद दिलाए लेकिन लोगों को उनसे ज्यादा उम्मीदें थी और उनके अचानक दिए इस्तीफ़े ने लोगों की उम्मादों पर पानी फ़ेर दिया. अब जनता उनका भी विकल्प ढूंढती नज़र आ रही है.

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When will the CBSE 1oth Class Result of year 2014 will be declared?

The CBSE 10th class result will be declared will be declared on the 1st week of May 2014. Last year also it was declared in the first week of May.

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About CBSE :
Central board of Secondary Education is commonly known a CBSE. The regional office is located in Delhi. Top Schools like Kendriya Vidyalaya, Jawahar Navodaya Vidyalayas are affiliated to CBSE. Due to High Quality of education, CBSE is very popular.Most of the schools in every district of every state are affiliated to CBSE.
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  1. CBSE Results 2014 

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    The result is not announced yet but the reports are suggesting that the CBSE has .... CBSE Class 10th School based examination will start after March 10, 2014 .... CBSE 12 th class results to be announced in Mid May The central board of ...
  2. CBSE 12th Results 2014 announcement | CBSE Results 2014

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    CBSE 12th class results to be announced in Mid May. The central ... This year, the board has announced the dates for the examinations of 10th and 12th class.
  3. CBSE Class 12th result expected in third week of May ...

    indiatoday.intoday.in/education/.../cbse-class-12th...2014/1/334932.html
    Jan 7, 2014 - CBSE class 12th overview. ... CBSE Class 10th Results 2014 to be declared in last week of May · CBSE Class X and XII exam Datesheet 2014 ...
  4. CBSE Exam Results 2013

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    Central Teacher Eligibility Test (CTET) - FEB 2014 - Announced on 21st MAR 2014 ... Class X Compartmental Exam Results - 2013 - Announced on 10th August 2013 ... Class XII Exam Results 2013 - Announced on 27th May 2013
  5. 12th Result 2014

    www.12thresult2014.in/
    Jan 6, 2014 - CBSE Class XII Date Sheet 2014 | CBSE 12th Date Sheet 2014 at ... march 2014 with Class 10 students and going to end on 17th April 2014 .







    1. CBSE 10th Class Result 2014 will Released in May | CBSE ...

      www.cbse-results.in › CBSE Results

      The central board of secondary education is supposed to release the result of the 10th class in its schools for the academic session of 2014 in the month of May.
    2. CBSE Results 2014

      www.cbse-results.in/
      The result is not announced yet but the reports are suggesting that the CBSE has .... CBSE Class 10th School based examination will start after March 10, 2014 ...
    3. CBSE Class 10th Results 2014 to be declared in last week ...

      indiatoday.intoday.in/.../cbse-class-10th-results-2014.../334401.html
      Jan 4, 2014 - CBSE class 10 results 2014 is expected to be declared in the last week of May 2014. The results will be declared on the official CBSE website ...
    4. CBSE 10th Result 2014: Check CBSE Results 2014 Class 10

      www.jagranjosh.com/articles-cbse-class-10-result-1357294338-1
      Central Board of Secondary Education (CBSE) 10th Result 2014: Find CBSE Results 2014 Class 10, CBSE 10th Result 2014 and more. Subscribe Jagran Josh ...
    5. CBSE Class 10th Result 2014 - Jagranjosh

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Thursday, 3 April 2014

NSA America HACKED Yahoo Mail:याहू ने निगरानी व जासूसी रोकने के लिए किए सुरक्षा उपाय

NSA America HACKED Yahoo Mail:याहू ने निगरानी व जासूसी रोकने के लिए किए सुरक्षा उपाय

Fri, 04 Apr 2014 08:10 AM (IST)

और जानें : Yahoo Security | Yahoo | NSA | Alex Stamos | Yahoo Encryption | Yahoo Inc |

सैन फ्रांसिस्को। याहू ने लोगों की ऑनलाइन गतिविधियों को सरकारी निगरानी और अन्य जासूसी से बचाने के लिए और अधिक सुरक्षा उपायों को अपनाया है।

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http://kosullaindialtd.blogspot.in/2014/03/how-nsa-plans-to-infect-millions-of_13.html 

इन सुरक्षा उपायों के बारे में बुधवार को घोषणा की गई। इनमें एक ऐसे तंत्र का विकास शामिल है जो याहू के एक डाटा सेंटर से दूसरे डाटा सेंटर में भेजी गई सूचनाओं को कूट रूप दे सकेगा। इस तकनीक को इस प्रकार से डिजाइन किया गया है ताकि बाहरी लोग याहू के डाटा सेंटर से होकर गुजरने वाले ईमेल और अन्य डिजिटल सूचनाओं को नहीं पढ़ सकें। याहू के होम पेज से किए गए सर्च संबंधी अनुरोध अब खुद ब खुद कूट रूप में बदल जाएंगे।
याहू ने जनवरी में अपने ईमेल की सुरक्षा कड़ी की थी। याहू के एक अधिकारी अलेक्स स्टैमोस ने संवाददाताओं को बताया, 'हमारे यूजर्स इस बात को मानें या नहीं मेरा मानना है कि उन्हें सुरक्षित रखना हमारी जिम्मेदारी है।'
स्टैमोस कंपनी के जासूसी रोधी अभियान के तहत लगभग एक महीने पहले ही याहू इंक से जुड़े हैं। अमेरिका के निगरानी कार्यक्रम का पर्दाफाश होने पर याहू, गूगल इंक और माइक्रोसॉफ्ट कॉरपोरेशन ने पिछले 10 महीने में ऑनलाइन सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) के पूर्व कांट्रेक्टर एडवर्ड स्नोडेन द्वार लीक किए गए दस्तावेजों से निगरानी कार्यक्रम के बारे में पता चला था।

Cobrapost-Sting: On Demolition of Babri Masjid :::: स्टिंग में दावाः योजनाबद्ध था बाबरी मस्जिद ढहाना :::: रामजन्मभूमि आंदोलन से जुड़े 23 बड़े नेताओं ने उसके प्रतिनिधि से बातचीत में यह खुलासा :::: यूं रची थी साजिश

Cobrapost-Sting: On Demolition of Babri Masjid :::: स्टिंग में दावाः योजनाबद्ध था बाबरी मस्जिद ढहाना :::: रामजन्मभूमि आंदोलन से जुड़े 23 बड़े नेताओं ने उसके प्रतिनिधि से बातचीत में यह खुलासा ::::

यूं रची थी साजिश

स्टिंग में दावाः योजनाबद्ध था बाबरी मस्जिद ढहाना

Fri, 04 Apr 2014 07:20 AM (IST)

और जानें : sting operation | Ram Janambhoomi movement | demolition of Babri Masjid | 6 December 1992 | elaborately planned | Sangh parivar | Cobrapost | claims | Sakshi Maharaj | Acharya Dharmendra | Uma Bharti | Mahant Vedanti | Vinay Katiyar | L K Advani | Kalyan Singh | former Congress PM | P V Narasimha Rao | |


नई दिल्ली। एक स्टिंग ऑपरेशन में दावा किया गया है कि बाबरी मस्जिद का ढहाया जाना योजनाबद्ध साजिश थी। कोबरा पोस्ट के मुताबिक, रामजन्मभूमि आंदोलन से जुड़े 23 बड़े नेताओं ने उसके प्रतिनिधि से बातचीत में यह खुलासा किया है।
भाजपा ने कोबरापोस्‍ट के इस स्टिंग को प्रायोजित बताते हुए इसे कांग्रेस की साजिश करार दिया है। भाजपा ने चुनाव आयोग से मांग की है कि इस पर तुरंत कार्रवाई की जाए। भाजपा ने कहा कि कोबरापोस्‍ट नाम के एक एनजीओ ने प्रायोजित स्टिंग किया है। भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहाकि पार्टी ने चुनाव आयोग से कहा है कि चुनाव से पहले इस तरह के प्रचार-प्रसार पर तुरंत रोक लगाई जाए अन्यथा सांप्रदायिक माहौल बिगड़ सकता है।
योग गुरु बाबा रामदेव ने कहा कि चुनाव के समय इस तरह मुद्दे हमेशा से ही उठते रहे हैं। सामाजिक मुद्दे को राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए। वहीं राजद नेता लालू यादव ने कहा कि जो भी स्टिंग हुआ है, वह सही हुआ है।
कोबरा पोस्ट के स्टिंग 'ऑपरेशन जन्मभूमि' के मुताबिक, साजिश को अंजाम देने के लिए प्रशिक्षण प्राप्त कारसेवकों की सेवाएं ली गई थी। इसके लिए बकायदा योजना बनाई गई थी, जिसकी जानकारी भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, तब यूपी के मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह और तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को भी थी।
कोबरा पोस्ट का दावा है कि उसके एसोसिएट एडिटर के. आशीष ने अयोध्या, फैजाबाद, टांडा, लखनऊ, गोरखपुर, मथुरा, मुरादाबाद, जयपुर, औरंगाबाद, मुंबई और ग्वालियर का दौरा कर रामजन्मभूमि आंदोलन से जुड़े बड़े नेताओं से बात की, जिसे गोपनीय रूप से रिकॉर्ड भी किया गया।
जिन लोगों से बात की गई उनमें साक्षी महाराज, आचार्य धर्मेंद्र, उमा भारती, महंत वेदांती और विनय कटियार भी शामिल हैं।
मालूम हो, भाजपा अब तक दावा करती रही है कि 06 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का ढहाया जाना महज एक घटना थी। वहां मौजूद कारसेवक बेकाबू हो गए और उन्होंने इसे अंजाम दे दिया।
स्टिंग ऑपरेशन के मुताबिक, कई माह तक योजना बनाई गई थी। लोगों को सैन्य अभियान की तर्ज पर प्रशिक्षित किया गया था। साजो-सामन निश्चित स्थानों तक पहुंचाए गए थे।
मौत के बाद ही उग्र होगा आंदोलन
रामजन्मभूमि आंदोलन से जुड़े उक्त नेताओं ने विस्तार से बताया कि किस तरह पूरी साजिश को अंजाम दिया गया। उन्होंने यह भी खुलासा किया कि 1990 में कार सेवकों पर फायरिंग के लिए पुलिस को उकसाया गया, क्योंकि बड़े नेताओं का मानना था कि जब तक कुछ हिंदुओं की मौत नहीं होगी, आंदोलन उग्र नहीं हो सकेगा।
यूं रची थी साजिश
  • जिन कार्यकर्ताओं को साजिश में शामिल किया गया था, उन्हें बाबरी ढहाने के एक माह पहले ही इस बारे में बताया गया।
  • गुजरात में सर्खेज नामक स्थान पर बजरंग दल ने जून 1992 में 38 सदस्यों का विशेष प्रशिक्षण शिविर लगाया था।
  • जिन लोगों ने वहां प्रशिक्षण दिया था, वे सेना से रिटायर थे।
  • बाद में विश्वहिंदू परिषद के शीर्ष नेताओं ने इन 38 लोगों से मुलाकात कर इनकी टीम को 'लक्ष्मण सेना' नाम दिया था।
  • यदि यह योजना किसी कारणवश नाकाम रहती तो प्लान बी भी तैयार था।
  • प्लान बी के तहत शिवसेना के लोग डायनामाइट से ढांचा गिराने की फिराक में थे।
  • इसके भी फेल होने पर पेट्रोल बम से विवादित ढांचे को गिराने का प्लान था।

इंडियन मुजाहिदीन का लगभग सफाया हो चुका है: शिंदे

इंडियन मुजाहिदीन का लगभग सफाया हो चुका है: शिंदे
पुणे, 03-04-14 11:23 PM
केंद्रीय गृहमंत्री| सुशील कुमार शिंदे| इंडियन मुजाहिदीन| संप्रग सरकार |
 
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केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने गुरुवार को कहा कि इंडियन मुजाहिदीन का लगभग सफाया हो चुका है और दावा किया कि देश में अंदरूनी सुरक्षा हालात संप्रग सरकार के तहत बेहतर हुआ है।

उन्होंने कहा कि नक्सल गतिविधि और पूर्वोत्तर में उग्रवाद कम हुआ है। शिंदे ने यहां संवाददाताओं से कहा कि आईएम के मुख्य नेताओं के पकड़े जाने के साथ इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) कैडर का लगभग सफाया हो गया है। नक्सल समस्या और पूर्वोत्तर में उग्रवाद भी कम हो रहा है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता यहां पुणे लोकसभा सीट से पार्टी उम्मीदवार विश्वजीत कदम के लिए चुनाव प्रचार करने आए थे। गौरतलब है कि 2008 से हुए कई धमाकों में भूमिका निभाने वाले आईएम के सह संस्थापक यासिन भटकल और कई अन्य शीर्ष सदस्यों को पिछले कुछ महीनों में गिरफ्तार किया गया है।


निशानी बनकर रह गए हैं कोलकाता के यहूदी...कोलकाता आने वाले पहले यहूदी शालोम कोहेन थे जो साल 1798 में सीरिया से आए थे.

निशानी बनकर रह गए हैं कोलकाता के यहूदी...कोलकाता आने वाले पहले यहूदी शालोम कोहेन थे जो साल 1798 में सीरिया से आए थे.

मैगन डेविड, यहूदियों का उपासना स्थल
भारत के कोलकाता शहर के बीचों-बीच स्थित ज्यूइश गर्ल्स स्कूल की छात्राओं के लिए ये एक व्यस्त समय है. इनमें से कई अपनी वार्षिक परीक्षा दे रही हैं.
उन सबने बड़े सलीके से स्कूल यूनिफॉर्म पहन रखी हैं. उनके स्कूल ड्रेस की ब्लाउज़ पर 'स्टार ऑफ़ डेविड' की निशानी बनी हुई है लेकिन 'सलवार कमीज़' या 'बुर्का' पहने हुईं उनकी माएँ स्कूल के बाहर घबराई हुई सी इंतज़ार कर रही हैं.
यहाँ पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चे अब मुसलमान हैं और कुछ ही लोगों को शायद यह याद हो कि आखिरी बार कब इस स्कूल में कोई यहूदी छात्र पढ़ने के लिए आया था.
दुनिया के सबसे बड़े शहरों में से गिने जाने वाले इस शहर के ज्यादातर लोगों की तरह वे भी कोलकाता के यहूदियों के बारे में बहुत कम जानते हैं. हालांकि ज़िंदगी के पाँच दशक देख चुकीं जाइल सिलिमन इसे बदलने की कोशिश कर रही हैं.
इससे पहले कि ये समुदाय पूरी तरह से लुप्त हो जाए, जाइल कोलकाता के यहूदियों के इतिहास को रिकॉर्ड कर उनका डिजिटल आर्काइव तैयार कर रही हैं.

जाइल इस समुदाय की नौजवान पीढ़ी का हिस्सा हैं. कोलकाता के यहूदी समाज के सदस्यों की ओर से भेजी गई तस्वीरों से उनका इनबॉक्स भर गया है. ये लोग अब दुनिया भर में बिखरे हुए हैं. एक वक्त था जब ये समुदाय फलता-फूलता हुआ था.

कोलकाता शहर

कोलकाता शहर का एक दृश्य. (फाइल फोटो)
कोलकाता आने वाले पहले यहूदी शालोम कोहेन थे जो साल 1798 में सीरिया से आए थे.
उनकी आर्थिक सफलता ने इराक़ से दूसरे लोगों को यहाँ आने के लिए प्रेरित किया और दूसरे विश्व युद्ध के आते-आते यहाँ पाँच हज़ार से भी ज्यादा लोग रहने लगे थे लेकिन अब यहां 25 से भी कम यहूदी रह गए हैं जो कोलकाता शहर को अपना घर मानते हैं.
जाइल कहती हैं, "जब यह साफ हो गया कि ब्रितानी भारत से चले जाएंगे तो कई लोग चले गए. उन्हें इस बात की फिक्र थी कि भारत में कल क्या होगा? और जैसे ही कुछ लोगों ने जाना शुरू किया बाकी लोग उनके पीछे हो लिए."

भारत से चले गए यहूदियों ने अपने पीछे एशिया के सबसे बड़े उपासनागृहों में से एक को कोलकाता में छोड़ दिया है.
'दी मैगन डेविड' का निर्माण साल 1880 में कराया गया था. इसके डिजाइन पर उन ब्रितानी चर्चों का गहरा असर देखा जा सकता है जो उस दौर के कोलकाता में बनाए जा रहे थे. इसमें एक मीनार भी है जो यहूदी उपासनास्थलों के लिए एक असामान्य बात है.
जाइल सिलिमन कहती हैं, "यहूदी समुदाय को बगदाद में मौजूद अपने नेताओं से इसके बारे में लिख कर इजाज़त लेनी पड़ी थी. और ये इजाज़त दी गई तो इस शर्त के साथ दी गई कि ये मीनार आस-पास की सभी इमारतों से ऊँची होगी."
जाइल सिलिमन, फ्लावर सिलिमन
जाइल अपनी माँ फ्लावर सिलिमन के साथ.
यह उपासना स्थल जो कभी कोलकाता के विविधता भरे यहूदी समाज की जिंदगी का एक प्रमुख हिस्सा हुआ करता था, अब खाली पड़ा हुआ है.

भारतीय होना

इसके गेट के बाहर सड़क पर दुकान लगाने वाले लोग सोचते हैं कि यह एक चर्च है.
जब मैंने उन्हें ये बताया कि ये वास्तव में यहूदियों के उपासना करने की जगह है तो वह चकराए हुए से दिखे. उनमें से एक ने मुझसे पूछा, "क्या तुम ये बात पक्के तौर पर कह सकते हो?"
लेकिन तभी उसका दोस्त कहता है, "वह सही है. यही वह इमारत है जिसकी देखभाल राबुल खान करते हैं."

जब आप इसके गेट से भीतर जाते हैं तो आपकी मुलाकात इस यहूदी उपासना स्थल के मुसलमान केयर टेकर से होती है. राबुल खान का परिवार पीढ़ियों से 'मैगन डेविड' की देखभाल कर रहा है.
मेरे हाथ में यहूदियों की टोपी 'किपाह' देते वक्त वह मुस्कुाए मानो उन दिनों को याद कर रहे हों जब यहाँ प्रार्थनाएँ पूरे तौर-तरीके के साथ की जाती थीं और जिसे राबुल 'नमाज़' कहते हैं.
और जब मैं वहाँ से निकल रहा था तो राबुल ने मुझे इशारे से रुकने के लिए कहा.उसने पूछा, "क्या आपको लगता है कि वे वापस आएंगे?"
मुझे समझ में नहीं आया कि किस तरह से इसका जवाब देना चाहिए. मैंने बस अपने कंधे झटक दिए. वह कहता है, "कोई बात नहीं, जब तक कि वह नहीं आते हैं मैं इस जगह की देखरेख उनके लिए करता रहूंगा."
कोलकाता वापस लौटने वालों में से एक जाइल की माँ फ्लावर सिलिमन भी हैं. उनकी उम्र 80 पार कर चुकी हैं लेकिन उनकी ऊर्जा 40 बरस के किसी व्यक्ति सरीखी है.
उन्होंने अमरीका और इसराइल में घर बनाने के लिए कोलकाता छोड़ा था लेकिन वह हमेशा अपने जन्म स्थान को याद करती रहीं. उनके लिए भारतीय होना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि एक यहूदी होना.

ऐतिहासिक विरासत

कोलकाता शहर का एक दृश्य.
वह अपनी शुरुआती जिंदगी को एक ऐसे डरे-सहमे यहूदी के तौर बयान करती है जिन्होंने खुद को एक दायरे में कैद कर रखा हो.
नौकरों को छोड़ दें तो वह जितने लोगों को जानती थीं, वे सभी यहूदी थे क्योंकि उनके माँ-बाप इस बात को लेकर सशंकित रहते थे कि वे कहीं स्थानीय लोगों के साथ घुल मिल न जाएं. लेकिन फ्लावर को ये सब पसंद न था और उन्होंने इसका विरोध करना शुरू कर दिया.

उन्होंने हिंदी सीखने पर जोर दिया न कि फ्रेंच. और जब वह दिल्ली में कॉलेज की अपनी पढ़ाई कर रही थीं तो वह भारत की आजादी की लड़ाई में शामिल हो गईं.
उन्होंने बड़ी संजीदगी के साथ याद किया कि हावड़ा रेलवे स्टेशन पर जब वह भारतीय पहनावे में पहुँची थीं. उन्होंने मुझसे कहा, "मेरी माँ घबरा गई थीं."
फ्लावर कहती हैं, "मेरी माँ के लिए तो यह कुछ ऐसा था कि उनकी बेटी मानो नर्क चली गई हो और उन्होंने मुझे साफ़ कह दिया कि जब तक कि मैं उनकी छत के नीचे रहूंगी, मैं ऐसे कपड़े हरगिज नहीं पहनूंगी."
फ्लावर और यहूदी समुदाय के छह अन्य सदस्य अपने उपासनास्थल, शमशान और स्कूलों के प्रबंधन के तौर तरीकों पर बात करने के लिए महीने में एक बार बैठक करती हैं.
यहाँ पैसे की दिक्कत नहीं है लेकिन समुदाय के इतने कम सदस्य बचे हैं कि यह सब कुछ इतना आसान नहीं रह गया है. वह लोग इस बात से भी वाकिफ हैं कि आने वाले 30 सालों में मुमकिन है कि इस शहर में एक भी यहूदी न बचे.
उन्हें लगता है कि उनके तीन उपासना स्थल और एक कब्रिस्तान इस शहर की ऐतिहासिक विरासत में उनका योगदान है.

ज़िंदा विरासत

जेविश गर्ल्स स्कूल की सेक्रेटरी जोए कोहेन.
लेकिन ज्यूइश गर्ल्स स्कूल को लेकर उन्हें भरोसा है कि उनकी यह विरासत देर तक जिंदा रहेगी.
स्कूल की सेक्रेट्री जोए कोहेन कहती हैं, "यह समुदाय दो सौ साल से भी ज्यादा पुराना है और इस शहर के लोग उनके साथ बहुत अच्छा बर्ताव करते हैं. लड़कियों के लिए स्कूल चलाकर हम कोलकाता शहर को कुछ वापस लौटा रहे हैं."

यहाँ स्कूल की फ़ीस बहुत कम रखी गई है ताकि स्थानीय मुस्लिम समुदाय के लोग अपनी लड़कियों को पढ़ा सकें. जोए कोहेन को उम्मीद है कि अगले ''दो सौ सालों'' में भी जूइश गर्ल्स स्कूल इसी मज़बूती से चलता रहेगा और कोलकाता के लिए उतना ही महत्वपूर्ण रहेगा जितना कि आज है.
आबिदा राज़ेक कभी इसी स्कूल की छात्रा हुआ करती थीं और अब वह यहीं पढ़ाती हैं.
वह कहती हैं, "मुस्लिम अभिभावक इस स्कूल को चलाने के लिए यहूदी समुदाय के बहुत आभारी है. बच्चे यहूदियों के त्यौहार मनाते हैं क्योंकि उनके लिए इसका मतलब स्कूल की एक और दिन छुट्टी होना होता है."
कोलकाता के यहूदी भले ही एक रोज़ गायब हो जाएं लेकिन इस शहर में कुछ वक्त तक ऐसे लोग मिलेंगे जो उनके त्योहार मनाते रहेंगे.




 

काप्पड़ गांव को क्या दे गया वास्को डी गामा?...और वही धूल-मिट्टी खाता गंदा-सा स्मारक स्तंभ, जिस पर लिखा है कि वास्को डी गामा 1498 में यहीं उतरा था.

काप्पड़ गांव को क्या दे गया वास्को डी गामा?...और वही धूल-मिट्टी खाता गंदा-सा स्मारक स्तंभ, जिस पर लिखा है कि वास्को डी गामा 1498 में यहीं उतरा था.

 शुक्रवार, 4 अप्रैल, 2014 को 08:42 IST तक के समाचार

केरल के कोझीकोड जिले का काप्पड़ गांव
केरल के कोझीकोड ज़िले के तटवर्ती गाँव काप्पड़ में लोग अक्सर पूछते हैं कि वास्को डी गामा उनके यहाँ आया था पर उन्हें क्या मिला.
ये सवाल उन लोगों की ओर से ज़्यादा पूछा जाता है जिनकी ज़मीन पर उस खोजी नाविक ने समंदर से निकलकर क़दम रखा था.
पश्चिमी देशों ने भारत को पहली बार काप्पड़ से ही देखा.

काप्पड़ मूलतः मछुआरों का गाँव था और है. पिछली बार भारतनामा के सिलसिले में 1998 में यहाँ आना हुआ था और पंद्रह साल बाद भी वो लगभग वैसा ही है, जैसा तब था.
कुछ नए पक्के मकान छोड़ दें तो मैं उसका एक-एक घर पहचान पा रहा था. वही घुमावदार सड़कें, वही हरे रंग की मस्जिद और वही धूल-मिट्टी खाता गंदा-सा स्मारक स्तंभ, जिस पर लिखा है कि वास्को डी गामा 1498 में यहीं उतरा था.

ख़स्ता हालत

स्मारक मुश्किल से दस वर्ग फ़ुट में बना है और ख़स्ताहाल है. रेलिंग तक टूट गई है हालाँकि अभी कुछ साल पहले वास्को डी गामा के भारत आने के पाँच सौ वर्ष पूरे हुए थे. स्थानीय लोगों के विरोध के कारण कोई जश्न नहीं हुआ. लेकिन लोग काप्पड़ में ज़रूर इकट्ठा हुए.
पाँच सौ साल से ज़्यादा के निरंतर अस्तित्व वाले काप्पड़ में वास्को डी गामा ने जिस ज़मीन पर पाँव रखे थे वह इस्माइल भाई के पूर्वजों की थी. टीपी इस्माइल ने पंचायत के कहने पर अपनी दस वर्ग फ़ुट ज़मीन प्रशासन को दे दी लेकिन घर छोड़ने को राज़ी नहीं हुए. उन्हें इसका मुआवज़ा भी नहीं मिला.

भारतनामा के समय उनका घर कच्चा था. अब वहाँ सुंदर एक मंज़िला मकान है, जिसका नक़्शा थोड़ी ज़मीन निकलने की वजह से बदलना पड़ा.
इकतालीस साल के इस्माइल भाई वास्को डी गामा के बारे में ज़्यादा नहीं जानते. उन्हें लगता है कि वो 'कोई इंग्लिशवाला' था, समुद्र से आया था. उसी की वजह से बाद में सड़क-वड़क बनी. पर उनकी ज़मीन चली गई. कहते हैं टूरिस्ट आते हैं तो दूसरे लोगों की कमाई होती है. मछुआरों को कोई नहीं पूछता. हमें क्या मिला?

ज़िंदगी की पहेली

केरल के कोझीकोड जिले का काप्पड़ गांव
पुराने रिकॉर्ड में कोझीकोड कालीकट है. इसी ज़िले में चेमनचेरी पंचायत का हिस्सा है काप्पड़. गाँव की कमाई के मुख्य साधन आम के बाग़ और मछलियाँ थीं. आज भी है. नारियल से उसे ज़्यादा कुछ नहीं मिलता. पर्यटन ने यक़ीनन काप्पड़ की शक़्ल होटल और रिज़ॉर्ट बनाकर बदली है, पर गाँव वहीं रह गया.
दिनभर नाव लेकर समुद्र में मछलियाँ पकड़ने वाले इस्माइल भाई अब समुद्र कम ही जाते हैं. सन 1983 में वे दुबई चले गए थे और कुछ बरस पहले, सौ की उम्र में पिता की मृत्यु के समय, वापस आए.
हथेलियों में पड़ी गाँठें दिखाते हुए इस्माइल कहते हैं, "अब उस तरह काम नहीं कर पाता. नहीं होता. हमें पैसे की फ़िलहाल किल्लत नहीं है. दोनों बेटियों की शादी हो गई है, बेटा बीकॉम कर रहा है और नया घर बन गया है. बस, कभी-कभी बेटियों को सोना-पैसा देने की मुश्किल होती है, पर चलता है. ऐसा तो सबके साथ होता है."

पिता की बीमारी इस्माइल की वापसी की एक वजह थी तो एक वजह ये उम्मीद भी थी कि हिंदुस्तान लौटकर काम मिलेगा, ज़िंदगी बसर हो जाएगी. ऐसा हुआ नहीं.
इस्माइल के तीन भाई और पाँच बहनें हैं. बड़े भाई यूसुफ़ ज़मीन ख़रीदने-बेचने का काम करते हैं. उन्होंने अलग घर बनवा लिया है. छोटा भाई सऊदी अरब में है. 88 साल की माँ ज़ैनब और सबसे छोटी बहन अपने दो बच्चों के साथ उन्हीं के पास रहती है. उसके पति का दो साल पहले निधन हो गया था.

उम्मीद की किरण

केरल के कोझीकोड जिले का काप्पड़ गांव के निवासी इस्माइल
इस्माइल अभी एक और घर बनाने की सोच रहे हैं. कहते हैं, "ये ज़मीन माँ की है, मैं ज़मीन और मकान छोटे भाई को दे दूंगा, जब वो लौटेगा. तब हम नए घर में चले जाएंगे."
रोज़मर्रा की कठिनाइयों के बावजूद इस्माइल का मानना है कि अब ज़िंदगी बहुत आसान है. असल मुश्किल तीस-चालीस साल पहले थी. एक तो गाँव बदहाल, दूसरे परिवार के पास खाने के लिए भी पैसा नहीं होता था. अभी वो मुश्किल नहीं है. दो वक़्त की रोटी और सालन मिलता है. मछली मिलती है. स्कूल है तो बच्चों की पढ़ाई-लिखाई की भी दिक़्क़त नहीं है. दवाख़ाना है, जहाँ डॉक्टर हफ़्ते में तीन दिन आता है. सड़कें पक्की हैं.

काप्पड़ पढ़ाई के मामले में सबको बराबर मौक़ा देता है. लड़के-लड़कियों में भेद नहीं करता. लड़कियाँ साइकिल चलाकर स्कूल जाती हैं और अपनी उम्र के लड़कों से ज़्यादा जागरुक हैं. इस्माइल के भतीजे अल्तमश और अमनाश चौदह-पंद्रह साल के हैं, पढ़ते हैं, पर नहीं जानते कि बड़ा होकर उन्हें क्या करना है. लड़कियों के पास सपने हैं, वे कुछ करना चाहती हैं.
चेमनचेरी पंचायत की कुल आबादी क़रीब चार हज़ार है और काप्पड़ की लगभग डेढ़ हज़ार. इसमें नब्बे प्रतिशत मुसलमान हैं. दस एक घर हिंदुओं के हैं लेकिन गाँव में, बक़ौल इस्माइल भाई, 'सब अमन-चैन है. कोई लफ़ड़ा नहीं. सब एक दूसरे की मदद करते हैं.'

आपसी भाईचारा

केरल के कोझीकोड जिले का काप्पड़ गांव
इस्माइल के घर के ठीक पीछे एक हिंदू परिवार रहता है. घर की मालकिन गीता से कुछ दिन पहले किसी ने ज़मीन एक करोड़ रुपए में ख़रीदनी चाही पर वो गाँव छोड़ने को राज़ी नहीं हुई.
इस्माइल कहते हैं, "यहाँ सब एक हैं. मौक़ा-ज़रूरत एक दूसरे की मदद को खड़े होते हैं, ऐसा भरोसा छोड़कर कौन जाएगा?"
राजनीतिक रूप से काप्पड़ कांग्रेस का समर्थन करने वाला गाँव हैं. महँगाई उन्हें परेशान करती है, यूपीए सरकार पर घोटालों के आरोपों की उन्हें जानकारी है, कुछ भ्रष्टाचार है पर वोट तब भी कांग्रेस को देंगे क्योंकि 'अब्बा ऐसा करते थे और अम्मी ज़िद करके वोट डालने जाती हैं, कांग्रेस के लिए.'

अख़बारों और टेलीविज़न पर ख़बरें देखने वाले इस्माइल भाई कहते हैं कि मार्क्सवादी अच्छे लोग हैं और नरेंद्र मोदी भी-'नरेंद्र मोदी अच्छा है. वो गुजरात में लफ़ड़ा किया तो अच्छा नहीं किया. लफ़ड़ा नहीं हो तो वो अच्छा है.'
इस्माइल धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता शब्द नहीं जानते पर कहते हैं, "मुस्लिम, हिंदू, ईसाई इधर एक साथ रहता है. एक ही है. दोस्त है. एक-दूसरे को सपोर्ट नहीं करेगा तो रह नहीं पाएगा इंडिया में. सपोर्ट नहीं होगा तो इंडिया किधर रहेगा."

मुशर्रफ को विस्‍फोटक से थी उड़ाने की साजिश , बम विस्‍फोट में बाल-बाल बचे मुशर्रफ

मुशर्रफ को विस्‍फोटक से थी उड़ाने की साजिश , बम विस्‍फोट में बाल-बाल बचे मुशर्रफ

बम विस्‍फोट में बाल-बाल बचे मुशर्रफ, छह किलो विस्‍फोटक से थी उड़ाने की साजिश

  Apr 03, 2014, 11:52AM IST

इस्लामाबाद। पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ पर जानलेवा हमला हुआ है। गुरुवार को इस्लामाबाद में फैजाबाद ब्रिज से गुजरते हुए उनके काफिले पर बम धमाका किया गया। मुशर्रफ को आर्म्ड फोर्सेस इंस्टीट्यूट ऑफ कॉर्डियोलॉजी से चक शहजाद वाले उनके फार्म हाउस पर ले जाया जा रहा था। इस दौरान ब्रिज को पार करते समय शक्तिशाली बम विस्फोट हुआ। धमाके में मुशर्रफ बाल-बाल बच गए।
 
डॉन न्यूज के मुताबिक, धमाके में चार से छह किलोग्राम विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया था। इसे रास्ते में पाइपलाइन में लगाया गया। पुलिस ने भी मुशर्रफ को निशाना बनाकर धमाका करने की बात मानी है। अभी तक इसमें किसी के मारे जाने की कोई खबर नहीं है।
 
फैजाबाद ब्रिज वीवीआईपी रोड पर स्थित है। धमाका फार्म से सिर्फ तीन किलोमीटर की दूरी पर हुआ। पुलिस ने बताया कि धमाका इतना शक्तिशाली था कि घटनास्थल पर एक बड़ा गड्ढा हो गया। बीते 10 मार्च को इस्लामाबाद पुलिस चीफ और गृहमंत्रालय ने चेतावनी दी थी कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) और अलकायदा,  मुशर्रफ पर हमले करने की फिराक में है। इस मामले में पंजाब गृहसचिव को खत भी लिखा गया था। हमले के बाद चक शहजाद फार्म हाउस पर सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। 
 
गौरतलब है कि मुशर्रफ, आर्मी हॉस्पिटल में दिल की बीमारी का इलाज करा रहे हैं। उन्होंने शरीफ सरकार से विदेश जाकर इलाज करवाने और शारजाह में बीमार मां को देखने के लिए देश से बाहर जाने की इजाजत मांगी थी। इसे सरकार ने खारिज कर दिया है। 
 
बीती 31 मार्च को सिंध हाईकोर्ट की तीन जजों की बेंच ने मुशर्रफ पर देशद्रोह के आरोप भी तय कर दिए हैं। हालांकि उनके देश से बाहर जाने का फैसला सरकार पर छोड़ दिया है।
 
FILE PHOTO
 
पाकिस्तानी सेना प्रमुख ने किया था मुशर्रफ का समर्थन।  

नहीं मानी गई पाक सेना प्रमुख की बात 
इससे पहले नवाज शरीफ सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के संबंध में सेना अध्यक्ष की सलाह ठुकरा दी। सेना अध्यक्ष जनरल रहील शरीफ ने सलाह दी थी कि मुशर्रफ को विदेश जाने की इजाजत दे दी जाए। ताकि वह अपनी मां और अपना इलाज करवा सकें। लेकिन पाकिस्तान सरकार ने मुशर्रफ के विदेश जाने पर लगी रोक हटाने से इनकार कर दिया।
मुशर्रफ ने इसके लिए गृह मंत्रालय को आवेदन किया था। प्रधानमंत्री शरीफ ने इस पर सेना अध्यक्ष जनरल रहील शरीफ और आईएसआई चीफ ले. जन. जहीरुल इस्लाम से मशवरा किया। दोनों ने इसे मान लेने की सलाह दी थी। लेकिन इसके विरुद्ध सरकार ने अब कहा कि मुशर्रफ का आग्रह जनहित में मंजूर नहीं किया जा सकता। क्योंकि उनके खिलाफ कई मुकदमे चल रहे हैं।
 
 
 

Wednesday, 2 April 2014

मोदी कुत्‍ता के बच्‍चे का बड़ा भाई:आजम :::: मोदी RSS का गुंडा और BJP राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष राजनाथ सिंह इसका गुलाम है:बेनी... READ FULL AND MORE...

मोदी कुत्‍ता के बच्‍चे का बड़ा भाई:आजम  

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मोदी RSS का गुंडा  और  BJP राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष राजनाथ सिंह इसका गुलाम है:बेनी


 

मोदी पर हमले तेज, बेनी ने बताया गुंडा तो आजम ने कहा कुत्‍ता के बच्‍चे का बड़ा भाई

  नई दिल्‍ली, 2 अप्रैल 2014 | अपडेटेड: 15:58 IST
टैग्स: बेनी प्रसाद वर्मा| नरेंद्र मोदी| गुंडा| आरएसएस| आजम खान| सपा| कांग्रेस| लोकसभा| चुनाव| पपी
बेनी प्रसाद वर्मा
बेनी प्रसाद वर्मा
भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार नरेंद्र मोदी पर विरोधियों के हमले तेज हो गए हैं. कांग्रेसी नेता बेनी प्रसाद वर्मा ने जहां मोदी को आरएसएस का गुंडा बताया वहीं सपा नेता आजम खान ने उन्‍हें कुत्‍ते के बच्‍चे का बड़ा भाई बताया. उत्‍तर प्रदेश के गोंडा में आयोजित एक जनसभा में बेनी प्रसाद वर्मा ने बीजेपी को जमकर आड़े हाथों लिया. बेनी ने कहा कि राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी की मौत के लिए आरएसएस और बीजेपी ही जिम्‍मेदार है. मोदी पर वार करते हुए बेनी ने कहा कि मोदी जहां आरएसएस का गुंडा हैं वहीं बीजेपी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष राजनाथ सिंह इसके गुलाम हैं.
इसके पहले बेनी ने कहा था कि मोदी के हाथों आरएसएस और बीजेपी बिक चुके हैं. यहीं नहीं बेनी ने यह भी कहा था कि बीजेपी में वही हो रहा है जो मोदी चाह रहे हैं. यह पार्टी अपने सीनियर नेताओं की भी बेइज्‍जती करने पर उतारू हो गई है.
उधर, रामपुर में समाजवादी पार्टी के सीनियर नेता आजम खान ने भी मोदी पर हल्‍ला बोला. उन्‍होंने वहां आयो‍जित एक जनसभा में कहा कि मोदी कुत्‍ते के बच्‍चे का बड़ा भाई है. आजम खान ने मोदी को गुजरात दंगों का दोषी बताते हुए कहा कि यदि यह आदमी सत्‍ता में आ गया तो पूरे देश में गुजरात जैसा माहौल बना देगा.
बेनी और खान का मोदी पर हमला तब से और तेज हो गया है जब से उन्‍हें पीएम पद का उम्‍मीदवार घोषित किया गया.


Tuesday, 1 April 2014

चीनः सरकार के ख़िलाफ़ मुकदमा दायर करने वाला पहला समलैंगिक :::: Read More About- China Red Revolution: How China kill human rights "Tiananmen Square Protests of 1989 Story"

चीनः सरकार के ख़िलाफ़ मुकदमा दायर करने वाला पहला समलैंगिक

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Read More About-

 China Red Revolution: How China kill human rights

 "Tiananmen Square Protests of 1989 Story"


जियांग
चीन के हुनान प्रांत के एक समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ता 19 वर्षीय जियांग जिआहन ने अपने दृढ़ संकल्प की बदौलत चीन की सरकार को अदालत में घसीटा है.
उनके इस कदम की वज़ह से उन्हें चीन का डॉन करार दिया जा रहा है.
हुनान सरकार के नागरिक मामलों के विभाग ने उनके समलैंगिक अधिकार संगठन को रजिस्टर करने से मना कर दिया है. उन्होंने इस निर्णय को चुनौती दी है.
चीन के समलैंगिक समुदाय द्वारा इस पर खुला विरोध जाहिर किया गया है. इस बात ने उन्हें मीडिया की सुर्खियों में ला दिया है.
चीन में 1997 तक समलैंगिकता ग़ैर-क़ानूनी था और 2001 तक इसे मानसिक विकृति के रूप में परिभाषित किया जाता रहा है.

लामबंदी

इस बात ने सतारूढ कम्युनिस्ट पार्टी की सहिष्णुता के प्रति जनता की राय को लामबंद होने का मौका दिया है.
हुनान सरकार के ख़िलाफ़ मानहानि का मुकदमा दायर किए जाने के बाद सरकारी शिन्हुआ समाचार एजेंसी ने उनके अभियान के बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट दी है.
मुकदमा दायर किए जाने के बाद उनको अपने अभियान में अभूतपूर्व समर्थन मिल रहा है.
बीबीसी के साथ एक साक्षात्कार में जियांग जिआहन ने कहा कि हुनान सरकार के पीछे हटने की संभावना कम है लेकिन वह लड़े बिना हार नहीं मानेंगे.
उन्होंने कहा, "माफी सिर्फ मेरे लिए नहीं, बल्कि चीन में सैकड़ों समलैंगिक पुरुषों और महिलाओं के लिए है."
हुनान सरकार के द्वारा संगठन को रजिस्टर करने से मना करने के बाद जियांग जिआहन ने प्रांतीय राजधानी चांग्शा में मुकदमा दायर किया है.

चीनी संस्कृति

समलैंगिक विरोध प्रदर्शन
हुनान सरकार ने अपने लिखित उत्तर की प्रति में कहा है कि समलैंगिकता के लिए पारंपरिक चीनी संस्कृति में कोई स्थान नहीं था. "आध्यात्मिक सभ्यता का निर्माण" आधुनिक चीन में एक तकिया कलाम है जिसके बारे में लोगों को लगता है कि यह पार्टी का संदेश है.
जियांग ने कहा, "मेरा मानना है कि सरकार ने (उत्तर में) जो कहा है वो चीन में समलैंगिक और समलैंगिक समुदाय की प्रतिष्ठा को धक्का पहुंचाने वाला है और मैं चाहता हूँ वे एक लिखित माफ़ीनामा जारी करे."
वह यह भी चाहते हैं कि सरकार उनके संगठन को रजिस्टर नहीं करने के अपने निर्णय को वापस ले और एक ग़ैर सरकारी संगठन के रूप में उनके समूह का पंजीकरण करे.
ग़ैर-सरकारी संगठन के रूप में पंजीकरण से उनका संगठन क़ानूनी रूप से दान प्राप्त कर सकेगा और कर छूट भी ले सकेगा.
चीन में पहले से ही कुछ ग़ैर-सरकारी संगठन समलैंगिकों के अधिकारों के संरक्षण के लिए काम कर रहे है लेकिन वे समलैंगिक संगठन के नाम पर नहीं चल रहे है.

पहला संगठन

समलैंगिक विरोध
अगर जियांग का संगठन पंजीकृत होता है तो यह समलैंगिकों के अधिकार पर काम करने वाला चीन का पहला पंजीकृत ग़ैर-सरकारी संगठन होगा.
विश्लेषकों का कहना है, जियांग का हाइ प्रोफाइल विरोध चीन में समलैंगिकता के प्रति दृष्टिकोण बदलने का एक संकेत है.
जियांग निश्चिंत है. उन्होंने कहा, "यह लंबे वक़्त तक चलने वाली एक लड़ाई है. हम क़ानून के माध्यम से समलैंगिक और समलैंगिक अधिकारों की रक्षा और अपने संगठन को रजिस्टर करने के लिए सरकार को प्रोत्साहित करने का प्रयास करते रहेंगे. "
"मैं आश्वस्त हूँ कि समलैंगिकों को पूरी तरह से चीन में स्वीकार किया जाएगा भले ही ऐसा करने में 20, 30 या 50 साल लग जाएँ."

बैंकों में अब नहीं होगा 'मिनिमम बैलेंस' का झंझट! :::: RBI ने देश के सभी बैंकों से इस अनिवार्यता को खत्म करने को कहा है :::: सेविंग्स बैंक अकाउंट में न्यूनतम बैलेंस रखने की अनिवार्यता खत्म!!!!!,ग्राहकों को फायदा,ऐसा न करने पर पेनाल्टी(750Rs) लगा करती थी

बैंकों में अब नहीं होगा 'मिनिमम बैलेंस' का झंझट! 

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RBI ने देश के सभी बैंकों से इस अनिवार्यता को खत्म करने को कहा है 

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सेविंग्स बैंक अकाउंट में न्यूनतम बैलेंस रखने की अनिवार्यता खत्म!!!!!,ग्राहकों को फायदा,ऐसा न करने पर पेनाल्टी(750Rs) लगा करती थी

  नई दिल्ली, 2 अप्रैल 2014 | अपडेटेड: 09:42 IST
टैग्स: न्यूनतम बैलेंस| आरबीआई| सेविंग अकाउंट| लोन| बैंक| रिजर्व बैंक
Reserve Bank of India
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया
बहुत जल्द बैंकों में 'मिनिमम बैलेंस' रखने के लिए आप बाध्य नहीं होंगे. एक अंग्रेजी वेबसाइट में छपी खबर के मुताबिक, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने देश के सभी बैंकों से इस अनिवार्यता को खत्म करने को कहा है. गौरतलब है कि अब तक आपको अपने बैंक अकाउंट में एक तयशुदा राशि रखनी ही होती थी और ऐसा न करने पर पेनाल्टी लगा करती थी. लेकिन आर्थिक खबरें देने वाली एक वेबसाइट के मुताबिक, रिजर्व बैंक ने कहा है कि सेविंग्स बैंक अकाउंट में न्यूनतम बैलेंस रखने की अनिवार्यता खत्म कर दी जाए. इससे ग्राहकों को फायदा होगा क्योंकि न्यूनतम बैलेंस न रखने पर उन्हें जुर्माना देना पड़ता था.
इतना ही नहीं, केंद्रीय बैंक ने सभी बैंकों से कहा है कि वे फ्लोटिंग रेट टर्म लोन का समय से पहले भुगतान करने वालों से किसी तरह की पेनाल्टी न लें. यानी अगर आप फ्लोटिंग रेट लोन को परिपक्वता समय से पहले चुकाना चाहते हैं तो आपको किसी तरह का जुर्माना नहीं देना होगा. RBI के गवर्नर रघुराम राजन चाहते हैं कि बैंक ग्राहकों के हितों की रक्षा हो. उन्होंने इसके लिए कई तरह के कदमों की सिफारिश की है.

VARUN GANDHI- सुल्‍तानपुर नुक्‍कड़ सभा में वरुण गांधी ने बांधे भाई राहुल की तारीफों के पुल :::: 'मैं सुल्तानपुर में वैसे ही काम करना चाहता हूं जैसा राहुल ने अमेठी के लिए किया है.':::: राहुल गांधी बोले- जो भाई वरुण कह रहे, सही कह रहे हैं

VARUN GANDHI- सुल्‍तानपुर नुक्‍कड़ सभा में वरुण गांधी ने बांधे भाई राहुल की तारीफों के पुल 

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'मैं सुल्तानपुर में वैसे ही काम करना चाहता हूं जैसा राहुल ने अमेठी के लिए किया है.'

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राहुल गांधी बोले- जो भाई वरुण कह रहे, सही कह रहे हैं

 

  नई दिल्‍ली, 2 अप्रैल 2014 | अपडेटेड: 09:44 IST
टैग्स: वरुण गांधी| राहुल गांधी| लोकसभा चुनाव 2014| सुल्‍तानपुर
वरुण गांधी
वरुण गांधी
सुल्‍तानपुर में लोकसभा चुनाव 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी प्रत्‍याशी वरुण गांधी का भाई प्रेम जाग उठा. उन्‍होंने राहुल की तारीफ के पुल बांध दिए. वरुण गांधी ने सुल्‍तानपुर में अपनी नुक्‍कड़ सभा में कहा, 'मैं सुल्तानपुर में वैसे ही काम करना चाहता हूं जैसा राहुल ने अमेठी के लिए किया है.' उन्‍होंने कहा कि हमें लघु उद्योग चाहिए. राहुल ने अमेठी में जैसे सेल्‍फ हेल्‍प ग्रुप तैयार किया है, यहां भी वैसे ही काम की जरूरत है.
गौरतलब है कि सुल्तानपुर से चुनाव लड़ने उतरे वरुण गांधी ने पहले ही ये बोल दिया है कि अमेठी में राहुल के खिलाफ वो कोई प्रचार नहीं करेंगे और अब भरे मंच से राहुल गांधी की तारीफ एक अलग ही रिश्ते कि कहानी बयान कर रहा है. वहीं, दूसरी ओर वरुण की मां मेनका गांधी ने राहुल की मां सोनिया गांधी पर तीखे प्रहार किये हैं.

राहुल गांधी बोले- जो भाई वरुण कह रहे, सही कह रहे हैं

रायबरेली, 2 अप्रैल 2014 | अपडेटेड: 14:53 IST

राहुल गांधी
राहुल गांधी
रायबरेली संसदीय क्षेत्र से अपनी मां कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी का नामांकन पत्र दाखिल करवाने पहुंचे कांग्रेस के राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी ने अपने भाई और सुल्‍तानपुर संसदीय क्षेत्र से बीजेपी के कैंडिडेट वरुण गांधी की तारीफ की है. सोनिया के साथ मौजूद उनके बेटे राहुल गांधी से जब यह पूछा गया कि आपके चचेरे भाई एवं पड़ोसी संसदीय क्षेत्र सुल्तानपुर से चुनाव लड़ रहे वरुण गांधी ने आपके प्रयासों से अमेठी संसदीय क्षेत्र में किए गए कार्यों की सराहना की है, तो राहुल ने कहा कि हमने अमेठी में पूरी रणनीति के तहत काम किया है. उन्होंने कहा कि हमने अमेठी संसदीय क्षेत्र में किसानों के लिए फूड पार्क के साथ साथ अन्य विकास कार्यों को काफी लंबी सोच के साथ कार्यों पर काम करने की रणनीति बनाई थी. राहुल ने कहा कि वरुण गांधी जो कह रहे हैं वह सही कह रहे हैं.
गौरतलब है कि कल सुल्तानपुर संसदीय क्षेत्र में अपनी एक चुनावी सभा में बीजेपी उम्मीदवार वरुण गांधी ने अमेठी संसदीय क्षेत्र में राहुल गांधी द्वारा किए गए विकास कार्यों की तारीफ की थी.
दिल का है मेरा नाता
अमेठी संसदीय क्षेत्र से उनके मुकाबले आम आदमी पार्टी के कुमार विश्वास और बीजेपी से स्मृति ईरानी के चुनाव मैदान में उतर कर दी जा रही चुनौती कितना असर डालेगी पर राहुल ने कहा कि अमेठी से मेरा दिल का रिश्ता है. यह अमेठी की जनता पर है कि वो कैसा रिस्पांड करती है.

मोदी की हसरत और फितरत!!!!!

मोदी की हसरत और फितरत!!!!!



 2 Apr 2014 10:00

 अंगरेजी हुकूमत को खदेड़ने के लिए गठित कांग्रेस और अन्य संगठनों के सेनानियों के बलिदान और त्याग के बदले हमें स्वराज मिला। हमने संविधान सभा के प्रस्ताव पर छब्बीस जनवरी 1950 से संघीय एकता को ध्यान में रखते हुए संसदीय प्रणाली अपनाई और कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के गठन की प्रक्रिया ऐसी बनाई, ताकि एक-दूसरे पर निगरानी और संतुलन बना रहे।
पहला आम चुनाव 1952 में हुआ और अगले लगभग पच्चीस वर्ष तक कांग्रेस पार्टी ने केंद्र में अपनी सत्ता बरकरार रखी। आपातकाल के कटु अनुभवों के बाद आम जनता ने 1977 में कांग्रेस को अपदस्थ कर मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी को सत्ता सौंपी। लेकिन सत्ता-सुख की चाह में धर्म, जाति, क्षेत्रीयता आदि भावनात्मक मुद्दों का सहारा लेकर सरकार में बैठे घटक दल आखिर बिखर गए और उसके बाद लगभग पांच माह के लिए चौधरी चरण सिंह बिना विश्वास मत प्राप्त किए कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने रहे। 1980 में मध्यावधि चुनाव होने पर शासन की कमान एक बार फिर से कांंग्रेस के हाथ में आ गई, जो इस बार 1989 तक रही।

लेकिन धीरे-धीरे कांग्रेस भी इन गुटबाजियों में उलझती चली गई। इसके नतीजे में गठबंधन सरकारों का उदय हुआ और विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, इंद्रकुमार गुजराल, एचडी देवगौड़ा और अटल बिहारी वाजपेयी गैरकांग्रेसी प्रधानमंत्री बने। राजीव गांधी की हत्या के बाद 1991 से 1996 तक पीवी नरसिंह राव कांग्रेस के प्रधानमंत्री रहे। फिर भारतीय जनता पार्टी के अटल बिहारी वाजपेयी का शासनकाल 1999 से 2004 तक पूर्णकालीन रहा, लेकिन लालकृष्ण आडवाणी की प्रधानमंत्री बनने की महत्त्वाकांक्षा ने ‘फील गुड’ का नारा देकर उनके इरादों पर पानी फेर दिया और सत्ता फिर से कांग्रेस के हाथ में आ गई और उसके अगले दस वर्ष तक उसी के पास रही।

अब भारतीय जनता पार्टी के ही अति महत्त्वाकांक्षी, अहंकारी और अदूरदर्शी गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने, पता नहीं किन कॉरपोरेट खिलाड़ियों और मीडिया के एक हिस्से का सहारा लेकर अपनी पार्टी को दिग्भ्रमित कर प्रधानमंत्री बनने का सपना संजोया है। यह भाजपा में पहली बार हुआ कि केंद्रीय नेतृत्व को दरकिनार कर, एक क्षत्रप को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। इसके लिए गुजरात में मोदी की लगातार तीन बार चुनावी सफलता का तर्क दिया गया। पर ऐसी कामयाबी अकेले मोदी को नहीं मिली है। शीला दीक्षित, नवीन पटनायक से लेकर खुद भाजपा के रमन सिंह और शिवराज सिंह चौहान इसके उदाहरण हैं। बंगाल और त्रिपुरा में वाममोर्चे की चुनावी सफलता का रिकार्ड तो और भी शानदार है। दरअसल, मोदी के जरिए जहां संघ अपना खेल खेल रहा है, वहीं संघ को साध कर मोदी अपनी हसरत पूरी करना चाहते हैं।

देश के दूसरे सबसे बड़े राजनीतिक दल की स्थिति ऐसी दिखाई दे रही है, जहां न तो जनभावना का आदर हो रहा है न ही उनके संसदीय बोर्ड की दृष्टि में कोई परिपक्वता दिखती है। आज इसी पार्टी को कभी अपनी मेहनत से सींचने वाले कद्दावर नेता चुनावी राजनीति के लिहाज से अपनी पसंदीदा जगह से चुनाव लड़ने से भी वंचित किए जा रहे हैं। वहीं प्रधानमंत्री पद पर अपनी दावेदारी ठोंकने वाले नेता वैसे कई नेताओं को अपनी मनमर्जी से जहां चाहे धकेल कर खुद उन जगहों से लड़ने की कवायद में लगे हैं। इसके लिए ऐसे चहेते उम्मीदवार उतारे जा रहे हैं, जो लोकनिष्ठा और संसदीय प्रणाली से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं।\

यह संसदीय प्रणाली है या फिर अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली? यह ध्यान रखने की जरूरत है कि इस तरह की कवायदें आखिरकार जनतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित करेंगी।
हमारे संविधान के अनुच्छेद 75 का आशय उस व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनने का अधिकार देता है, जो लोकसभा के प्रति उत्तरदायी हो, यानी जिसे लोकसभा में बहुमत पाने वाला दल अपना नेता चुने। लेकिन चुनावी प्रक्रिया शुरू होने के पहले ही स्वयंभू प्रधानमंत्री की घोषणा वास्तव में लोकतंत्र का अपमान है। जैसा कि देखा जा रहा है, ये स्वयंभू प्रधानमंत्री गुजरात के वडोदरा के अलावा उत्तर प्रदेश की वाराणसी सीट से भी चुनाव लड़ रहे हैं। बनारस में जिस प्रकार के नारे प्रचारित किए जा रहे हैं, वे अपने आप में यह सिद्ध कर रहे हैं कि मानो वहां का भाजपा प्रत्याशी कोई ‘भगवान’ हो।

वाराणसी बाबा विश्वनाथ की नगरी है। वहां एक ओर ‘हर हर महादेव’ की ध्वनि गूंजती है और दूसरी तरफ भारत के कोने-कोने से आए लोग गंगा को नमन करते हैं। आस्थावान लोगों के बीच यह धारणा है कि गंगा वहां मोक्षदायिनी त्रिवेणी स्वरूप में है। लेकिन यह बड़े दुर्भाग्य और शर्म की बात है कि हिंदुत्व के सहारे पर टिकी हुई पार्टी ने हिंदू आबादी के बीच भगवान शंकर के लिए प्रचलित ‘हर हर महादेव’ की तरह ‘हर हर मोदी’ का नारा दिया और लोगों की आस्था को चुनावी स्वार्थ के लिए भुनाने की कोशिश की।
एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में, जहां दलगत राजनीति का स्वरूप भी लोकतंत्र के सिद्धांतों पर कायम हो, वहां किसी राजनीतिक दल का सामूहिक नेतृत्व और उसकी ओर से किए गए निर्णय उस दल की विचारधारा को परिलक्षित करते हैं, न कि किसी व्यक्ति विशेष की महत्त्वाकांक्षा को। आज भारतीय जनता पार्टी में इससे उलटा हो रहाहै। 

इस पार्टी के राजनीतिक इतिहास और उसमें नेतृत्व क्षमता के स्तर पर मौजूद लोगों को देखें तो अब भी केंद्रीय स्तर पर लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, जसवंत सिंह, सुषमा स्वराज और राज्य स्तर पर संसदीय अनुभव रखने वाले शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा राजे सिंधिया जैसे लोकप्रिय और परिपक्व नेताओं की कोई कमी नहीं है। वे सभी प्रधानमंत्री जैसे पद की गरिमा का निर्वाह करने की क्षमता रखते हैं।
 
मगर भाजपा में जिस तरह का माहौल पैदा कर बुजुर्ग नेताओं की उपेक्षा की गई, वह न सिर्फ उस पार्टी, बल्कि समूचे देश के हित के लिहाज से एक गंभीर चुनौती है। इस विषय पर भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष वेद प्रताप वैदिक ने एक समाचार पत्र में प्रकाशित अपने लेख में साफ तौर पर कहा कि ‘स्वयं मोदी के लिए यह मार्ग अत्यंत कंटकाकीर्ण सिद्ध हो सकता है। मोदी ने अपने मार्ग में खुद कांटे क्यों बिछाए? क्या वे इस साधारण से गणित को भी नहीं समझते कि अगर भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो ये ही हाशिये पर पड़े नेता उनका भाग्य निर्धारण करेंगे।’

भारत के संविधान की प्रस्तावना की प्रथम पंक्ति ‘हम भारत के लोग’ के साथ ही एक सरोकार और गंभीरता जाहिर की गई है, जिसमें हमने अपने देश को संप्रभु, लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष गणराज्य घोषित किया। हालांकि हमने भारत को संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था के तीनों अंगों का गठन कर लोक प्रतिनिधित्व कानून भी बनाया।

लेकिन इस कानून के कई पहलुओं पर फिर से विचार की आवश्यकता है। आज कुल मतदाताओं के पचास फीसद से अधिक मत पाने वाले व्यक्ति संसद और विधानसभाओं में बिरले ही पहुंचते हैं। इसके नतीजे में ही संकीर्ण भावनाएं अपनी जगह बनाती हैं, जिसके कारण कई बार समाज में सौहार्द के ताने-बाने को गहरी क्षति पहुंचती है। हालांकि ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्द संविधान की प्रस्तावना में 1976 के संविधान संशोधन के बाद जोड़े गए, लेकिन हम इसके वास्तविक आशय को लेकर शायद आज भी एक खास तरह के भ्रम के शिकार हैं। सामाजिक समरसता, यानी एक समुदाय दूसरे समुदाय का पूरक हो, वही वास्तविक समाजवाद है। वहीं धर्मनिरपेक्षता उसे कहा जाना चाहिए, जहां हम धर्म से कोई अपेक्षा न करें।

संविधान में भी बाकायदा उल्लिखित है कि सभी धर्म अपने प्रचार के लिए स्वतंत्र हैं और साथ ही यह भी कहा गया है कि एक धर्म दूसरे धर्म का आदर करे। दरअसल, इसका मूल उद्देश्य यही है कि हम हर नागरिक के अस्तित्व को एक इंसान के रूप में समझें। अगर हम ऐसा नहीं समझते तो यह मानवता के साथ-साथ हमारी संस्कृति और परंपरा के भी विपरीत है। यों भी, किसी सभ्य समाज और संस्कृति में मानवता के विरुद्ध आचरण की स्वीकार्यता नहीं होती।

भ्रष्टाचार और महंगाई दरअसल असंतुलित विकास और अवमूल्यन से जुड़ी हुई समस्याएं हैं। इनसे हम तभी निजात पा सकते हैं, जब इच्छाशक्ति रखने वाली सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ बने कानूनों को सख्ती से लागू करे और महंगाई रोकने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम और खाद्य अपमिश्रण अधिनियम में कठोर दंड की व्यवस्था कर बाजार मूल्यों की त्रैमासिक समीक्षा करे।
आज इन मुद्दों पर वोट मांगने की राजनीति जरूर हो रही है, लेकिन त्याग और सेवा का लक्ष्य रख कर चुनावी भाषणों में आर्थिक, सामाजिक, आंतरिक और बाह्य नीतियों पर कोई कारगर सुझाव न पेश कर केवल प्रतिशोध, राग-द्वेष, हुंकार और अहंकार की भाषा इस्तेमाल की जा रही है। इस तरह की प्रवृत्ति एक तरह से अधिनायकवाद का सूचक है।

जिस देश की संस्कृति में मिथकों से लेकर इतिहास तक के पन्ने सक्षम नेतृत्व के अनेक उदाहरणों से भरे पड़े हैं, वहां अगर राजनेता सत्ता हथियाने के लिए अहंकार और प्रमाद से ग्रस्त होकर अपनी ऊर्जा समाज को तोड़ने में लगाएंगे तो उन्हें भारत की जनता कभी सत्ता के गलियारों में नहीं पहुंचने देगी। मौजूदा हालात हमारी सांस्कृतिक विरासत और इतिहास के कई अध्याय याद दिला रहे हैं। यहां परोक्ष रूप से ऐसा आभास हो रहा है कि शासन में पहुंचने के पहले ही जिस प्रकार की कवायद शुरू हुई है, वह गुब्बारों में हवा भरने जैसी है और उसमें धीरे-धीरे छेद बढ़ रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि मतदान नजदीक आते-आते इन गुब्बारों की हवा निकल जाए!

अगर ऐसा होता है तो देश की जनता को शायद मध्यावधि चुनाव का सामना करना पड़ सकता है। इससे बेहतर यह है कि देश के लोग अपनी परिपक्वता जाहिर करते हुए प्रतिगामी राजनीतिक ताकतों को सत्ता से दूर रखें। प्रतिगामी राजनीतिक शक्तियां नहीं चाहतीं कि राजनीति जनसमस्याओं पर केंद्रित हो। इसलिए वे हमेशा किसी ऐसे मुद्दे को हवा देने में लगी रहती हैं, जो असल मसलों से ध्यान हटा कर लोगों में भावनात्मक उबाल ला सके, चाहे वह जाति या क्षेत्र के नाम पर हो, संप्रदाय या राष्ट्र के नाम पर। ऐसे उकसावों में आकर उठाया गया कोई कदम भविष्य के लिए अफसोस की वजह बन सकता है।

खुलासा PAK पाकिस्तानी मीडिया :परवेज मुशर्रफ देश छोड़ कर भाग गया :::: देशद्रोह के आरोप तय होने के बाद मौत की सजा से बचने के लिए पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ देश छोड़ कर भाग गए हैं।

खुलासा:- BREAKING NEWS PAK 

पाकिस्तानी मीडिया :परवेज मुशर्रफ देश छोड़ कर भाग गया 

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देशद्रोह के आरोप तय होने के बाद मौत की सजा से बचने के लिए पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ देश छोड़ कर भाग गए हैं। 

क्या विशेष विमान से मध्य-पूर्व के किसी देश भाग गए मुशर्रफ!

  Apr 01, 2014, 13:46PM IST


इस्लामाबाद। देशद्रोह के आरोप तय होने के बाद मौत की सजा से बचने के लिए पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ देश छोड़ कर भाग गए हैं। पाकिस्तानी मीडिया में ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं।
अंग्रेजी अखबार डॉन का दावा है कि सोमवार रात रावलपिंडी के नूर खान एयरबेस पर एक खाड़ी देश का विशेष विमान देखा गया था, अटकलें लगाईं जा रही हैं कि मुशर्रफ इसमें बैठकर भागे हों। 
इसी बीच, मुशर्रफ के वकील सीनेटर फरोघ नसीम ने गृह मंत्रालय में उनकी ओर से आवेदन दाखिल किया है। इसमें निवदेन किया गया है कि उन्हें देश से बाहर जाने की इजाजत दी जाए। विशेष कोर्ट में देशद्रोह के आरोप तय होने के बाद वकील नसीम ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया था कि कोर्ट ने मुशर्रफ को कस्टडी में रखने का आदेश नहीं दिया है। वे अभी आजाद रह सकते हैं। 
शारजाह में उनकी मुशर्रफ की मां के अस्पताल में भर्ती होने की खबर आने के बाद अत्यधिक तनाव के कारण मुशर्रफ की हालत बिगड़ गई हैं। इससे पहले भी पूर्व फौजी तानाशाह खराब हालत के चलते सैन्य अस्पताल के आईसीयू में भर्ती रह चुके हैं।
सोमवार को सिंध हाईकोर्ट के तीन जजों की बेंच ने मुशर्रफ के खिलाफ देशद्रोह के आरोपों को सही माना है। सुनवाई के दौरान कोर्ट में पेश होने की छूट भी दी गई थी। अब कोर्ट की कार्रवाई 15 अप्रैल तक के लिए स्थगित कर दी गई है। फिर भी उनके पाकिस्तान से बाहर जाने पर रोक कायम रखी है। अब इस बात का फैसला सरकार की ओर से किया जाएगा कि वह पूर्व राष्ट्रपति को पाकिस्तान से बाहर जाने की इजाजत देती है या नहीं।
क्या है मामला 
सिंध हाईकोर्ट की तीन जजों की बेंच मुशर्रफ के खिलाफ राजद्रोह मामले की सुनवाई कर रही है। मुशर्रफ पर 2007 में शासन के दौरान पाकिस्तान में इमरजेंसी थोपने का आरोप है। विशेष कोर्ट में केस चलाने के खिलाफ भी मुशर्रफ याचिका दायर कर चुके हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि उनके खिलाफ सैन्य कोर्ट में मामले की सुनवाई की जानी चाहिए। हालांकि, कोर्ट ने उनकी इस याचिका को खारिज कर दिया।
पाकिस्तानी इतिहास का पहला मामला 
इसे इत्तेफाक ही कहेंगे कि पाकिस्तान में कई फौजी तानाशाहों ने तख्तापलट करके के देश में मार्शल लॉ लागू किया है। यह पहली बार है कि किसी फौजी तानाशाह को अदालती कार्यवाही का सामना करना पड़ रहा है।

 मुशर्रफ को पता था कहां छिपा है ओसामा...
क्या विशेष विमान से मध्य-पूर्व के किसी देश भाग गए मुशर्रफ!
चार बड़े अभियोगों का सामना करना पड़ा 
पाकिस्तान के 66 साल के इतिहास में करीब आधे वक्त तक सेना ने शासन किया है और मुशर्रफ से पहले किसी भी शासक या सैन्य कमांडर को आपराधिक अभियोग का सामना नहीं करना पड़ा है। पिछले साल मार्च में स्वनिर्वासन से लौटने के बाद मुशर्रफ को 2007 में हुई पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या तथा 2006 में बलूच राष्ट्रवादी नेता अकबर बुगती के मारे जाने सहित चार बड़े अभियोगों का सामना करना पड़ रहा है। 
मुशर्रफ को पता था कि ओसामा कहां छिपा है 
पाकिस्तान के पूर्व तानाशाह परवेज मुशर्रफ को शायद अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन और उसके छिपने के ठिकाने के बारे में जानकारी थी। न्यूयार्क टाइम्स के लिए अफगानिस्तान और पाकिस्तान से कई साल तक रिपोर्टिंग करने वाली अग्रणी ब्रिटिश पत्रकार कारलोटा गाल ने अपनी नई किताब 'द रौंग एनेमी, अमेरिका इन अफगानिस्तान 2001-2004' में यह सनसनीखेज रहस्योद्घाटन एक अवकाशप्राप्त पाकिस्तानी जनरल तलत मसूद के हवाले से किया है। 
क्या है किताब में 
गाल ने लिखा, "एक दिन जब वह इस्लामाबाद में घर में बैठे थे, रिटायर्ड जनरल तलत मसूद टेलीविजन पर मुशर्रफ के साथ एक साक्षात्कार देख रहे थे। जनरल ने कुछ कहा जो मसूद को चुभा। मुशर्रफ लादेन के बारे में बात कर रहे थे। वह बहुत ज्यादा बोल रहे थे।" वह कहती हैं कि इससे मसूद को महसूस हुआ कि पूर्व सेना प्रमुख को ओसामा के बारे में पता था और वह जानते थे कि ओसामा कहां छिपा है।