Tuesday, 19 November 2013

Is Sachin Tendulkar, Greater One from These Personalities For Bharat Ratna...???Waiting List For Bharat Ratn

Is Sachin Tendulkar, Greater One from These Personalities For Bharat Ratna...???Waiting List For Bharat Ratn



 सचिन को भारत रत्‍न पर बढ़ा बवाल! 8 कारण, सचिन क्यों नहीं हैं 'भारत रत्न'

Waiting List For Bharat Ratn

1- Bhagat Singh
2- Chandr Shekhar Azad
3-
Ram Manohar Lohia
4- Atal Bihari Vajpayee
5- Subhash Chandra Bose
6- Ravindra Nath Taigore
7- Dhyan Chand
8- Srinivash Ramanujan
9- Homi j Bhabha
10- Munshi Prem Chand
11- Jagadish Chandra Bose
12- Verghese Kurien
13- Kashi Ram
14- Mahatma Gandhi


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8 कारण: सचिन क्यों नहीं हैं 'भारत रत्न लायक', सचिन को भारत रत्‍न पर बढ़ा बवाल!

8 कारण: सचिन क्यों नहीं हैं 'भारत रत्न लायक',

सचिन को भारत रत्‍न पर बढ़ा बवाल!





नई दिल्ली. बीते शनिवार को बेहद भावुक भाषण देकर (जिसे सुन पत्‍नी अंजली आंसू नहीं रोक पाई थीं) क्रिकेट से रिटायर हुए सचिन तेंडुलकर को भारत रत्न दिए जाने के फैसले पर बवाल बढ़ता जा रहा है। बिहार में मुजफ्फरपुर की स्‍थानीय अदालत में इस मामले में याचिका दायर कर सचिन को भारत रत्‍न दिए जाने के फैसले को चुनौती दी गई है। इसमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे और खेलमंत्री जितेंद्र सिंह पर आरोप लगाए गए हैं। सचिन पर भी धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया है। याचिका स्थानीय वकील सुधीर कुमार झा ने लगाई है। इसमें कहा गया है कि देश के सर्वोच्च सम्मान के लिए हॉकी के जादूगर ध्यानचंद से पहले सचिन का चयन करने से लोग आहत हुए हैं। इस मामले पर अगली सुनवाई 10 दिसंबर को होगी। सुधीर ने जदयू नेता शिवानंद तिवारी को मामले में गवाह बनाया है। 
सचिन देश के पहले खिलाड़ी हैं, जिन्हें देश के सबसे ऊंचे नागरिक सम्मान यानी भारत रत्न से नवाजा जाएगा। यह खबर सुन कर सचिन नि:शब्‍द हो गए थे और पत्‍नी अंजली तो खुशी से उछल पड़ी थीं। सचिन का बतौर क्रिकेटर कद देश के किसी भी अन्य खिलाड़ी से कहीं ऊपर है। इसके लिए वे हम सभी की ओर से हमेशा ही सम्मान के हकदार रहेंगे। लेकिन जो पुरस्कार राष्ट्रपिता कहे जाने वाले महात्मा गांधी को नहीं मिला, वह सचिन तेंडुलकर जैसे खिलाड़ी को दिए जाने के ऐलान से कई तरह के सवाल भी खड़े हो गए हैं। ये सवाल सचिन और बीसीसीआई द्वारा पहले किए गए कबूलनामे और हरकतों की वजह से भी उठ रहे हैं।

सचिन को बतौर क्रिकेटर 'भारत रत्‍न' दिया गया है, लेकिन सचिन ने इनकम टैक्‍स विभाग को बताया था कि वह मुख्‍य रूप से बतौर एक्‍टर कमाई करते हैं और इस आधार पर उन्‍होंने आयकर में छूट भी हासिल की थी। यही नहीं, बीसीसीआई सुप्रीम कोर्ट में कह चुका है कि वह एक निजी संस्‍था है और उसके द्वारा चुने गए खिलाड़ी देश के लिए नहीं, बल्कि उसकी ओर से खेलते हैं। सचिन ने इंटरनेशनल क्रिकेट के मैदान से विदाई के वक्त अपनी पूर्व और मौजूदा फर्म को याद किया जो उनके व्यवसायिक हितों की रक्षा करती रही है। ऐसा करते हुए सचिन भावुक भी हो गए थे। इन परिस्थितियों में सवाल उठता है कि क्‍या सचिन ने देश की वाकई सेवा की है? क्या सचिन ने अपने खेल के एवज में सैकड़ों करोड़ रुपए नहीं कमाए हैं? क्या उनके खेल से भारतवासियों के जीवन में कोई असरदार सकारात्मक बदलाव आया है? और भी कई सवाल हैं, जो सचिन को भारत रत्न दिए जाने के फैसले को कठघरे में खड़ा करते हैं।

किसके लिए खेलते हैं सचिन, देश या बीसीसीआई के लिए?
सचिन तेंडुलकर को भारत रत्न दिए जाने को लेकर सरकार का कहना है कि यह पुरस्कार क्रिकेट में उनके योगदान को देखते हुए दिया गया है। लेकिन सवाल उठता है कि सचिन किसके लिए खेलते हैं? क्या वे देश के लिए खेलते हैं? जवाब है-नहीं। वे बीसीसीआई के खेलते हैं। बीसीसीआई ने कोर्ट में हलफनामा देकर कई बार साफ किया है कि वह एक प्राइवेट संस्था है और उसकी टीम भारत का आधिकारिक तौर पर प्रतिनिधित्व नहीं करती है। 
दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड बीसीसीआई सुप्रीम कोर्ट के सामने कई बार कह चुका है कि वह एक प्राइवेट बॉडी है। हलफनामे के मुताबिक बीसीसीआई तमिलनाडु सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत रजिस्टर्ड है और इस पर सरकार की ओर से बनाए गए नियम कानून लागू नहीं होते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि खेल के नियम, सेलेक्शन, मैदान का चुनाव और इकट्ठा की गई रकम के इस्तेमाल को लेकर देश के आम लोग कोर्ट के सामने कभी सवाल नहीं उठा पाएंगे।  
सचिन एक प्राइवेट संस्था के लिए जीवन भर खेलते रहे जिसका एकमात्र उद्देश्य खजाना भरना था और इसकी अगुवाई कारोबारी और राजनेता करते रहे हैं। भले ही सचिन यह कहते हों, हम सभी भाग्यशाली हैं कि हमें देश की सेवा करने का मौका मिला। लेकिन क्या बीसीसीआई का हलफनामा सचिन की बात को झूठ नहीं साबित करता है?
सचिन का कुबूलनामा-मैं क्रिकेटर नहीं, एक्टर हूं 
सचिन तेंडुलकर ने अपने 200 वें और आखिरी टेस्ट मैच के खत्म होने पर कहा था कि वे खुद भाग्यशाली मानते हैं कि उन्होंने देश की सेवा की है। लेकिन कुछ साल पहले 2 करोड़ रुपए का इनकम टैक्स बचाने के लिए सचिन (पढ़ें: इनकम टैक्स के पचड़े में फंसे थे सचिन) ने खुद को क्रिकेटर नहीं बल्कि अभिनेता बताया था। दरअसल, नाटककार, संगीतकार, अभिनेता और खिलाड़ियों को सेक्शन 80 आरआर के तहत आयकर में छूट मिलती है। सचिन का कहना था कि वे पेशेवर क्रिकेटर नहीं हैं। उन्होंने अपने पेशे के बारे में बताया था कि वे एक्टर हैं। क्रिकेट से हुई कमाई को उन्होंने आय के अन्य साधनों में दिखाया था। इस पर आयकर विभाग के अधिकारी ने कहा था कि अगर आप क्रिकेटर नहीं हैं, तो आखिर कौन क्रिकेटर है?  
दरअसल, सचिन को 2001-02 और 2004-05 के बीच ईएसपीएन स्टार स्पोर्ट्स, पेप्सीको और वीजा के जरिए 5,92,31,211 रुपए की कमाई पर 2,08,59,707 रुपए आयकर देना था। लेकिन सचिन ने इनकम टैक्स कमिश्नर के दावे को चुनौती दी थी। जिसके बाद ट्राइब्यूनल ने अपने फैसले में कहा था कि कोई व्यक्ति दो पेशे में भी हो सकता है और वह दोनों पेशे के तहत आयकर में छूट की मांग कर सकता है। लेकिन सवाल उठता है कि जो व्यक्ति सिर्फ आयकर बचाने के लिए खुद को क्रिकेटर नहीं बल्कि एक्टर बताने लगे, क्या वह भारत रत्न का हकदार हो सकता है? जबकि सचिन ने संन्यास के वक्त कहा था कि वे क्रिकेट के बिना जीवन की कल्पना तक नहीं कर सकते। सरकार ने भी उनके नाम का ऐलान करते वक्त बतौर क्रिकेटर उनके योगदान को ही भारत रत्न का आधार माना था। सरकार की ओर से जारी प्रेस रिलीज में कहा गया था, 'सचिन तेंडुलकर निस्संदेह शानदार क्रिकेटर हैं। एक ऐसे लीजेंड खिलाड़ी जिसने पूरी दुनिया में लाखों लोगों को प्रेरित किया। 16 साल की उम्र से तेंदुलकर ने 24 वर्षों तक देश के लिए क्रिकेट खेला है। खेल जगत में वो भारत के सच्चे अंबेसडर रहे हैं। उनके द्वारा बनाए गए रिकॉर्ड्स अद्वितीय हैं।' लेकिन विडंबना है कि सचिन खुद को क्रिकेटर नहीं मानते।
फरारी से मुनाफाखोरी? 
सचिन तेंडुलकर के साथ कई विवाद भी जुड़े हुए हैं। इनमें फरारी तोहफे में लेने और बाद में उसे बेचकर मुनाफा कमाने का मामला अहम है। फिएट कंपनी ने मशहूर फॉर्मूल वन कार ड्राइवर माइकल शूमाकर के हाथों सचिन को डॉन ब्रेडमैन की 29 शतक लगाने के रिकॉर्ड की बराबरी करने पर फरारी-360 मॉडेनो कार तोहफे में दिलवाई थी। लेकिन यह मामला तब विवादों में घिर गया जब सचिन ने 1.13 करोड़ रुपए की इंपोर्ट ड्यूटी से छूट की मांग की। इसे माफ भी कर दिया गया। लेकिन दिल्ली कोर्ट ने इस पर आपत्ति जताई। कोर्ट ने केंद्र सरकार और सचिन को नोटिस जारी किया। विवाद बढ़ता देख फिएट कंपनी ने खुद इंपोर्ट ड्यूटी चुकाना अच्छा समझा। लेकिन सचिन ने कुछ समय बाद यह कार सूरत के एक कारोबारी को बेच दी। महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी ने इस मुद्दे पर ट्वीट कर कहा था, जब सचिन को फरारी गिफ्ट के रूप में चाहिए थी, तब उन्होंने इंपोर्ट ड्यूटी से छूट मांगी थी, लेकिन अब जब उन्होंने कार बेच दी है, तो क्या उनसे मुनाफे पर टैक्स मांगा जाएगा?
सरकार ने सचिन से बेहतर ध्यानचंद को माना था, फिर भी किए गए दरकिनार  
केंद्र सरकार ने 82 सांसदों, यूपीए सरकार के कुछ मंत्रियों और खेल मंत्रालय की सिफारिश को दरकिनार करते हुए ध्यानचंद को भारत रत्न सम्मान से इस साल नहीं नवाजा है। केंद्रीय खेल मंत्रालय ने इस वर्ष अगस्त में सरकार को सिफारिश की थी कि हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न दिया जाए। केंद्रीय खेल मंत्री जितेंद्र सिंह ने संसद के मॉनसून सत्र में इस बात की जानकारी दी थी। खेल मंत्रालय ने अपनी सिफारिश में कहा था कि वह स्वर्गीय ध्यानचंद को सचिन के ऊपर प्राथमिकता देते हुए उन्हें भारत रत्न देने के लिए सिफारिश कर रहा है। खेल मंत्रालय ने उस समय अपनी सिफारिश में कहा था कि भारत रत्न के लिए एकमात्र पसंद ध्यानचंद ही हैं। मंत्रालय ने कहा था कि हमें भारत रत्न के लिए एक नाम देना था और हमने ध्यानचंद का नाम दिया है। सचिन के लिए हम गहरा सम्मान रखते हैं लेकिन ध्यानचंद भारतीय खेलों के लीजेंड हैं इसलिये यह तर्कसंगत बनता है कि ध्यानचंद को ही भारत रत्न दिया जाए क्योंकि उनके नाम पर अनेक ट्रॉफियां दी जाती हैं।
ध्यानचंद को आधुनिक भारतीय खेलों का सुपरस्टार माना जाता है। वे 1948 में रिटायर हो गए थे। सरकार ने उन्हें 1956 में पद्म भूषण पुरस्कार से नवाजा था। सचिन की तुलना जिस महान बल्लेबाज सर डॉन ब्रेडमैन से की जाती है, उसी ब्रेडमैन ने 1935 में एडिलेड में ध्यानचंद के खेल को देखकर कहा था, 'ये क्रिकेट के खेल में जैसे रन बनाए जाते हैं, वैसे ही गोल करते हैं।' कहा जाता है कि बर्लिन में 1936 में उनके खेल को देखकर हिटलर खुद को रोक नहीं पाया था और उन्हें जर्मन सेना में कर्नल का पद देने की पेशकश कर डाली थी, जिसे ध्यानचंद ने ठुकरा दिया था। दिसंबर, 2011 में 82 सासंदों के अलावा यूपीए सरकार के कई मंत्रियों ने प्रधानमंत्री कार्यालय को चिट्ठी लिखकर ध्यानचंद को भारत रत्न दिए जाने की मांग की थी।  
विश्वनाथन आनंद, लिएंडर पेस भी दरकिनार
शतरंज की दुनिया के बड़े नाम विश्वनाथन आनंद और टेनिस के शानदार खिलाड़ी लिएंडर पेस को भी अब तक भारत रत्न जैसा पुरस्कार नहीं मिला है। आनंद ने वर्ल्ड चैंपियनशिप पांच बार और चेस ऑस्कर छह बार जीता है। तेंडुलकर से तीन साल बड़े आनंद भारत के एकमात्र शतरंज खिलाड़ी हैं, जिन्होंने सभी फॉर्मेट-टूर्नामेंट, मैच, नॉकआउट और रैपिड में वर्ल्ड चैंपियनशिप जीती है। वहीं, लिएंडर पेस सचिन से कुछ हफ्ते छोटे हैं। डेविस कप में लिएंडर का रिकॉर्ड जोरदार है। उन्होंने हेनरी लेकॉन्ते, गोरान इवनसेविच, वेन फरेरा और जेरी नोवाक जैसे खिलाड़ियों को डेविस कप में हराया है। 1996 में वे अटलांटा ओलिंपिक के सेमीफाइनल तक पहुंचे थे और उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल जीता था। पेस सबसे ज्यादा उम्र में ग्रैंडस्लैम जीतने वाले खिलाड़ी भी हैं। इन दोनों खिलाड़ियों को सचिन से पहले अर्जुन अवॉर्ड मिला था। आनंद देश के सबसे बड़े खेल पुरस्कार यानी राजीव गांधी खेल रत्न से सम्मानित होने वाले पहले खिलाड़ी हैं। लेकिन इन दोनों महान खिलाड़ियों को भारत रत्न के काबिल नहीं समझा गया।
वाजपेयी, कर्पूरी ठाकुर की भी दावेदारी! पर नहीं मिला सम्मान
यूपीए सरकार के मानव संसाधन मंत्री, कांग्रेस की सहयोगी नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारुख अब्दुल्ला, मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी और जेडीयू अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न दिए जाने की मांग उठा रहे हैं। लेकिन यूपीए सरकार ने अपने 9 साल से ज्यादा के कार्यकाल के दौरान अटल को यह सम्मान नहीं दिया। संयुक्त राष्ट्र में पहली बार हिंदी में भाषण और पोखरण परमाणु विस्फोट जैसी बातें अटल को अन्य नेताओं की कतार से बहुत अलग खड़ा करता है। गौरतलब है कि अटल बिहारी की सरकार ने 1998 में चिदंबरम सुब्रमण्यम को भारत रत्न से सम्मानित किया था। चिदंबरम इंदिरा गांधी की कैबिनेट में कृषि मंत्री थे। हरित क्रांति में उनके योगदान को देखते हुए अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने उन्हें दलगत राजनीति से ऊपर उठकर भारत रत्न से सम्मानित किया था। जेडीयू प्रखर समाजवादी चिंतक और नेता राम मनोहर लोहिया और बिहार में समाजवाद की अलख जगाने वाले सामाजिक क्रांति के नायक माने जाने वाले कर्पूरी ठाकुर जैसे नेताओं को भी भारत रत्न दिए जाने की मांग की है। लेकिन लगता है कि केंद्र सरकार इन बातों से सहमत नहीं है। 

भारत रत्न लेकिन फिर भी बेच रहे हैं प्रॉडक्ट?  
भारत रत्न के लिए सचिन तेंडुलकर के नाम का एलान हो गया है। लेकिन टीवी, प्रिंट और रेडियो में वे कई कमर्शियल प्रॉडक्ट का प्रचार कर रहे हैं। क्या भारत रत्न पुरस्कार के लिए चुने गए शख्स को ऐसा करना शोभा देता है? क्या वह व्यवसायिक हितों के लिए किसी खास प्रोडक्ट का प्रचार कर सकता है? लेकिन सचिन ऐसा कर रहे हैं। क्या यह भारत रत्न जैसे सम्मान का अपमान नहीं है? 2014 तक सचिन के साथ प्रचार के लिए कई कंपनियों के करार हैं। क्या सरकार इन करारों की अवधि के बारे में जानती है? अगर उसे इसके बारे में पता है तो उसने इंतजार क्यों नहीं किया? क्या सचिन से अपने प्रोडक्ट के लिए प्रचार कराने वाले कारोबारी घराने उन्हें मिलने जा रहे भारत रत्न जैसे पुरस्कार का परोक्ष रूप से मुनाफा कमाने के लिए इस्तेमाल नहीं करेंगे? अगर ऐसा हो रहा है तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है? सरकार या सचिन?  

विज्ञापन को लेकर भी विवादों के घेरे में रहे हैं सचिन 
इस देश में सचिन की ब्रैंड वैल्यू कितनी है, इसका अंदाजा सभी को है। सचिन जब कोई बात कहते हैं तो लोग सुनते हैं और मानते हैं। ऐसे में जब वे किसी प्रोडक्ट के बारे में प्रचार करते हैं, तो उसका लोगों पर काफी असर हो सकता है। क्या इस बात के मद्देनजर सचिन को प्रोडक्ट का प्रचार करने का फैसला लेने से पहले उसकी विश्वसनीयता के बारे में नहीं सोचना चाहिए? लेकिन शायद सचिन ने इस बारे में सोचना लाजिमी नहीं समझा। तेंडुलकर सहारा इंडिया परिवार के क्यू शॉप विज्ञापन में अन्य क्रिकेटरों के साथ नजर आते हैं। सचिन पिछले साल सहारा के क्यू शॉप के विज्ञापन में अंतिम संस्कार करते हुए नजर आए थे। विज्ञापन की खराब विषय वस्तु की तीखी आलोचना हुई और उसके फिल्मांकन पर सवाल उठे। इस बारे में बीसीसीआई को शिकायतें मिलीं। यह विज्ञापन तब सामने आया था जब बाजार नियामक सेबी ने गैरकानूनी तरीके से पैसे इकट्ठा करने को लेकर सहारा इंडिया परिवार की खिंचाई की थी। सेबी ने विज्ञापनों में सार्वजनिक अपील की थी कि लोग क्यू शॉप में निवेश न करें। लेकिन इसके बावजूद सचिन समेत देश के कई क्रिकेटर क्यू शॉप का विज्ञापन करते रहे। क्यू शॉप कानूनी पचड़े में भी फंस चुका है। हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने क्यू शॉप के खिलाफ आदेश दिया था। सेबी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट को बताया था कि वह क्यू शॉप की गैरकानूनी गतिविधियों की जांच कर रहा है। उत्तराखंड सरकार ने क्यू शॉप विज्ञापनों पर गुमराह करने का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई थी। 
भारत रत्न यानी फायदे ही फायदे  
भारत रत्न सिर्फ एक मेडल या प्रशस्ति पत्र नहीं है। इसके साथ शानदार आर्थिक फायदे भी जुड़े हैं। नियमों के मुताबिक भारत रत्न पुरस्कार जीतने वाले व्यक्ति को प्रधानमंत्री के वेतन के बराबर या आधी राशि बतौर पेंशन दी जाती है। भारत रत्न पाने वाला शख्स भारत में कहीं भी विमान और रेल में फर्स्ट क्लास की यात्रा मुफ्त कर सकता है। उसे जरुरत पड़ने पर जेड श्रेणी की सुरक्षा दी जा सकती है। उसके किसी रिश्तेदार को सरकारी नौकरी दी जा सकती है। स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस समारोह में वह व्यक्ति विशेष अतिथि के तौर पर आमंत्रित होता है।

Other: Waiting For Bharat Ratn

1- Bhagat Singh
2- Chandr Shekhar Azad
3- Ram Manohar Lohia
4- Atal Bihari Vajpayee
5- Subhash Chandra Bose
6- Ravindra Nath Taigore
7- Dhyan Chand
8- Srinivash Ramanujan
9- Homi j Bhabha
10- Munshi Prem Chand
11- Jagadish Chandra Bose
12- Verghese Kurien
13- Kashi Ram
14- Mahatma Gandhi


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Bharat Ratna

Bharat Ratna


Bharat Ratna
Bharat Ratna.jpg
Award Information
Type Civilian
Category National
Description An image of the Sun along with the words "Bharat Ratna", inscribed in Devanagari script, on a peepul leaf
Instituted 1954
Last awarded 2013
Total awarded 43
Awarded by Government of India
Ribbon IND Bharat Ratna BAR.png
First awardee(s) Sarvepalli Radhakrishnan, Sir C.V. Raman, C. Rajagopalachari
Last awardee(s) Bhimsen Joshi
Award rank
None ← Bharat RatnaPadma Vibhushan
Bharat Ratna (Jewel of India[1] or Gem of India[2] in English) is the Republic of India's highest civilian award.
Until 2011, the official criteria for awarding the Bharat Ratna stipulated it was to be conferred "for the highest degrees of national service. This service includes artistic, literary, and scientific achievements, as well as "recognition of public service of the highest order."[3][4] In December 2011, the Government of India modified the criteria to allow sportspersons to receive the award; since then, the award may be conferred "for performance of highest order in any field of human endeavour."[5]
Any person without distinction of race, occupation, position or sex is eligible for the award. The recommendations for an award of the "Bharat Ratna" are made by the Prime Minister of India to the President of India; a maximum of three awards may be made in a given year. [5] The holders of the Bharat Ratna rank 7th in the Indian order of precedence; however, the honour does not carry a monetary grant. The honour does not confer any pre- or post-nominal titles or letters; recipients are constitutionally prohibited from using the award name as a title or post-nominal . However, if they desire, recipients may state they are Bharat Ratna awardees in their curriculum vitae, on letterheads or on business cards.[5]

History

The order was established by Rajendra Prasad, President of India, on 2 January 1955.[6] The original statutes of January 1954 did not make allowance for posthumous awards (and this perhaps explains why the decoration was never awarded to Mahatma Gandhi), though this provision was added in the January 1966 statute.[citation needed] Subsequently, there have been twelve posthumous awards, including the award to Netaji Subhas Chandra Bose in 1992, which was later withdrawn due to a legal technicality, the only case of an award being withdrawn. The award was briefly suspended from 13 July 1977 to 26 January 1980. There is no formal provision that recipients of the Bharat Ratna should be Indian citizens. Bharat Ratna has been one award to a naturalised Indian citizen, Mother Teresa (1980), and to two non-Indians, Khan Abdul Ghaffar Khan (1987) and Nelson Mandela (1990). The awarding of this honour has frequently been the subject of litigation questioning the constitutional basis of such.
Sachin Tendulkar is the youngest person alive at the time of receiving the award (at the age of 40). Dhondo Keshav Karve is the eldest person alive at the time of receiving the award (age 100) and Vallabhbhai Patel is the eldest overall (posthumously at the age of 75).

Specifications

The original specifications for the award called for a circular gold medal, 35 mm in diameter, with the sun and the legend "Bharat Ratna" (in Devanagari) above and a floral wreath below. The reverse was to carry the state emblem and motto. It was to be worn around the neck from a white ribbon. There is no indication that any specimens of this design were ever produced and one year later the design was altered. The decoration is in the form of a peepal leaf, about 5.8 cm long, 4.7 cm wide and 3.1 mm thick. It is of toned bronze. On its obverse is embossed a replica of the sun, 1.6 cm in diameter, below which the words Bharat Ratna are embossed in Devanagari script. On the reverse are State emblem and the motto, also in Devanagari. The emblem, the sun and the rim are of platinum. The inscriptions are in burnished bronze.
The award is attached to a 2-inch-wide (51 mm) white ribbon, and is designed to be worn around the recipient's neck.

List of recipients


Name Image Birth / Death Awarded Notes
1. Chakravarti Rajgopalachari C Rajagopalachari Feb 17 2011.JPG 1878–1972 1954 Independence activist, last Governor-General
2. C. V. Raman Sir CV Raman.JPG 1888–1970 1954 Physicist
3. Sarvepalli Radhakrishnan Radhakrishnan.jpg 1888–1975 1954 Philosopher, India's First Vice President (1952-1962), and India's Second President(1962-1967)
4. Bhagwan Das
1869–1958 1955 Independence activist, author, Founder of Kashi Vidya Peeth
5. Mokshagundam Visvesvarayya Mokshagundam Visvesvarayya small.jpg 1861–1962 1955 Civil engineer, Diwan of Mysore
6. Jawaharlal Nehru Bundesarchiv Bild 183-61849-0001, Indien, Otto Grotewohl bei Ministerpräsident Nehru cropped.jpg 1889–1964 1955 Independence activist, author, first Prime Minister
7. Govind Ballabh Pant
1887–1961 1957 Independence activist, Chief Minister of Uttar Pradesh, Home Minister
8. Dhondo Keshav Karve
1858–1962 1958 Educator, social reformer
9. Bidhan Chandra Roy
1882–1962 1961 Physician, Chief Minister of West Bengal
10. Purushottam Das Tandon
1882–1962 1961 Independence activist, educator
11. Rajendra Prasad Rajendra Prasad closeup.jpg 1884–1963 1962 Independence activist, jurist, first President
12. Zakir Hussain
1897–1969 1963 Independence activist, Scholar, third President
13. Pandurang Vaman Kane
1880–1972 1963 Indologist and Sanskrit scholar
14. Lal Bahadur Shastri
1904–1966 1966 Posthumous, independence activist, second Prime Minister
15. Indira Gandhi Indira2.jpg 1917–1984 1971 Third Prime Minister
16. V. V. Giri
1894–1980 1975 Trade unionist and fourth President
17. K. Kamaraj
1903–1975 1976 Posthumous, independence activist, Chief Minister of Tamil Nadu State
18. Mother Teresa MotherTeresa 090.jpg 1910–1997 1980 Catholic nun, founder of the Missionaries of Charity
19. Vinoba Bhave Gandhi and Vinoba.jpg 1895–1982 1983 Posthumous, social reformer, independence activist
20. Khan Abdul Ghaffar Khan Khan Abdul Ghaffar Khan.jpg 1890–1988 1987 First non-citizen, independence activist
21. M. G. Ramachandran MGR with K Karunakaran (cropped).jpg 1917–1987 1988 Posthumous, film actor, Chief Minister of Tamil Nadu
22. B. R. Ambedkar Ambedkar Barrister.jpg 1891–1956 1990 Posthumous, Chief architect of the Indian Constitution,Crusader against Untouchablity, Dalit Icon, Social Reformer, Historian, politician, economist, and scholar
23. Nelson Mandela Nelson Mandela-2008 (edit).jpg b. 1918 1990 Second non-citizen and non-Indian recipient, Leader of the Anti-Apartheid movement
24. Rajiv Gandhi Rajiv Gandhi (cropped).jpg 1944–1991 1991 Posthumous, Sixth Prime Minister
25. Vallabhbhai Patel Sardar patel (cropped).jpg 1875–1950 1991 Posthumous, independence activist, first Home Minister
26. Morarji Desai Morarji Desai 1978.jpg 1896–1995 1991 Independence activist, fourth Prime Minister
27. Abul Kalam Azad Maulana Abul Kalam Azad.jpg 1888–1958 1992 Posthumous, independence activist, first Minister of Education
28. J. R. D. Tata Jehangir Ratanji Dadabhoy Tata, three-quarter length portrait, seated, facing slightly right, 1992-crop.jpg 1904–1993 1992 Industrialist and philanthropist
29. Satyajit Ray SatyajitRay.jpg 1922–1992 1992 Filmmaker
30. A. P. J. Abdul Kalam AbdulKalam.JPG b. 1931 1997 Aeronautical Engineer,11th President of India
31. Gulzarilal Nanda
1898–1998 1997 Independence activist, interim Prime Minister
32. Aruna Asaf Ali
1908–1996 1997 Posthumous, independence activist
33. M. S. Subbulakshmi Ms subbulakshmi.jpg 1916–2004 1998 Carnatic classical singer
34. Chidambaram Subramaniam
1910–2000 1998 Independence activist, Minister of Agriculture
35. Jayaprakash Narayan
1902–1979 1999 Posthumous, independence activist and politician
36. Ravi Shankar Ravi Shankar 2009 crop.jpg 1920–2012 1999 Sitar player
37. Amartya Sen Amartya Sen NIH.jpg b. 1933 1999 Economist
38. Gopinath Bordoloi Gopinath Bordoloi.jpg 1890–1950 1999 Posthumous, independence activist, Chief Minister of Assam
39. Lata Mangeshkar Lata Mangeshkar - still 29065 crop.jpg b. 1929 2001 Playback singer
40. Bismillah Khan Bismillah at Concert1 (edited).jpg 1916–2006 2001 Hindustani classical shehnai player
41. Bhimsen Joshi Pandit Bhimsen Joshi (cropped).jpg 1922–2011 2008 Hindustani classical singer
42. C. N. R. Rao[7][8] CNRrao2.jpg b. 1934 2014
(announced)
Scientist
43. Sachin Tendulkar[7][8] Sachin at Castrol Golden Spanner Awards (crop).jpg b. 1973 2014
(announced)
Cricketer

Living recipients

Indian recipients
Foreign recipients

Controversies

Subhas Chandra Bose

The Indian government issued a communique in 1992 that Bharat Ratna would be conferred on Subhas Chandra Bose posthumously. The Supreme Court of India later cancelled this communique following a public interest litigation filed against the posthumous nature of the award due to the mystery surrounding the death of Subhas Chandra Bose. The government gave an affidavit that in deference to the sentiments expressed by the public and the Bose family, the government did not proceed to confer the award.[9]

Abul Kalam Azad

When[when?] the award was offered to freedom fighter and India's first Minister of Education, Abul Kalam Azad, he promptly declined it saying that it should not be given to those who have been on the selection committee. Later he was awarded posthumously in 1992.[10]

Bharat Ratna Ek Majak!!!:Bhupesh Mandal



 सचिन को भारत रत्‍न पर बढ़ा बवाल! 8 कारण, सचिन क्यों नहीं हैं 'भारत रत्न'

Friends suna ha kisi congress neta(tendulkar) ko bharat ratn mila ha...oh atal jinye bahut dubhagy ki baat ha jo aap ush desh-India ki ledership karke gaye jahan itne murkh neta han.
OHHH!!!!! sorry sayad kisi ne kuch bola hai.kya? tendulkar ji khiladi-cricketer han!!! neta nahi!!!!!!...
oh!!!! my god tab to ma sahi kah raha tha.yahan sach ma neta murkh he han.
kyonki ek player k tour pa hum bharat ko kai Olympic medal dilane wale ‪#‎dhyanchand‬ ko kaese ignore kar sakte han...‪#‎mericon‬(5 time world champion-boxing) , ‪#‎viswanathananand‬(chess) ...etc list to bahut lambi ha.sayad aapke ye bharat ratn ishma bhee test ki tarah 18 ran ma he aayenge aapke ye neta ji...
really jish award ko abdul kala,Tagore,raman,radhakrishnan,pant ji,sastri ji...jaese logon ko diya gaya hai...ushki ab koi garima nahi rahi...
i think now our democracy is going to dangerous route...
god bless you my India.

Note: ye meri apni swatantr tippdi ha recently awarded bhart ratn par.agar kisi ko ishse dukh pahunche to ma maphi chata hun.mera irada kisi ko dukh pahuchaneka ka nahi ha.ma to bash itna chata hun ki ish award ki garima bani rahi...thanks

I think two persons are more in waiting for bharat ratn:... 1-Atal and 2-dhyanchand



Other: Waiting For Bharat Ratn

1- Bhagat Singh
2- Chandr Shekhar Azad
3- Ram Manohar Lohia
4- Atal Bihari Vajpayee
5- Subhash Chandra Bose
6- Ravindra Nath Taigore
7- Dhyan Chand
8- Srinivash Ramanujan
9- Homi j Bhabha
10- Munshi Prem Chand
11- Jagadish Chandra Bose
12- Verghese Kurien
13- Kashi Ram
14- Mahatma Gandhi


Is Indian politics going to wrong way?

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नंगे पांव हिटलर के देश को हराया, जब मरे तो सरकार ने सुध नहीं ली हॉकी के जादूगर ध्यानचंद की

नंगे पांव हिटलर के देश को हराया, जब मरे तो सरकार ने सुध नहीं ली हॉकी के जादूगर ध्यानचंद की

नई दिल्ली, 19 नवम्बर 2013 | अपडेटेड: 18:41 IST
टैग्स: ध्यानचंद| भारत रत्न| हिटलर
हॉकी के जादूगर और इस खेल के दुनिया के अब तक के सबसे बड़े खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद
आज पूरे देश में सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न मिलने के बाद बहस हो रही है कि हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को यह सम्मान क्यों नहीं. क्या ध्यानचंद के वक्त इतना मीडिया होता, टीवी युग होता, तो यह अनदेखी मुमकिन थी. क्या था ध्यानचंद का जादू और उनका करियर. क्यों हिटलर उन्हें अपनी सेना में कर्नल बनाना चाहता था. ब्रिटेन उनसे हारने के बाद अपनी टीम को ओलंपिक में ही नहीं भेजता था और क्यों पचास की उम्र के बाद ही ध्यानचंद को न चाहते हुए भी खेलना पड़ा और आखिर में कैसे वह एम्स में कमोबेश गुमनामी की हालत में मरे...ये सब हुआ 1926 से 1947 के दौर में. 21 बरस. जी सचिन के 24 तो ध्यानचंद के 21 बरस. सचिन के कुल जमा 15921 रन. तो ध्यानचंद के 1076 गोल. ध्यानचंद ने किया कर्नल से वादा, आगे किसी से नहीं हारेंगे
पहली बार 1928 में भारतीय हॉकी टीम ओलंपिक में हिस्सा लेने ब्रिटेन पहुंचती है और 10 मार्च 1928 को एर्मस्टडम में फोल्कस्टोन फेस्टिवल. ओलंपिक से ठीक पहले फोल्कस्टोन फेस्टिवल में जिस ब्रिटिश साम्राज्य में सूरज डूबता नहीं था उस देश की राष्ट्रीय टीम के खिलाफ भारत की हॉकी टीम मैदान में उतरती है और भारत ब्रिटेन की राष्ट्रीय हॉकी टीम को इस तरह पराजित करती है कि अपने ही गुलाम देश से हार की कसमसाहट ऐसी होती है कि ओलंपिक में ब्रिटेन खेलने से इंकार कर देता है. हर किसी का ध्यान ध्यानचंद पर जाता है, जो महज 16 बरस में सेना में शामिल होने के बाद रेजिमेंट और फिर भारतीय सेना की हॉकी टीम में चुना जाता है और सिर्फ 21 बरस की उम्र में यानी 1926 में न्यूजीलैड जाने वाली टीम में शरीक होता है और जब हॉकी टीम न्यूजीलैड से लौटती है तो ब्रिटिश सैनिकअधिकारी ध्यानचंद का ओहदा बढाते हुये उसे लांस-नायक बना देते हैं क्योंकि न्यूजीलैंड में ध्यानचंद की स्टिक कुछ ऐसी चलती है कि भारत 21 में से 18 मैच जीतता है. 2 मैच ड्रा होते हैं और एक में हार मिलती है और हॉकी टीम के भारत लौटने पर जब कर्नल जार्ज ध्यानचंद से पूछते हैं कि भारत की टीम एक मैच क्यों हार गयी तो ध्यानचंद का जबाब होता है कि उन्हें लगा कि उनके पीछे बाकी 10 खिलाडी भी हैं. अगला सवाल, तो आगे क्या होगा. जवाब आता है कि किसी से हारेंगे नहीं. इस प्रदर्शन और जवाब के बाद ध्यानचंद लांस नायक बना दिए गए.
हिटलर के सामने क्या करेगा भारत का ध्यानचंद
तो बर्लिन ओलंपिक एक ऐसे जादूगर का इंतजार कर रहा है, जिसने सिर्फ 21 बरस में दिये गये वादे को ना सिर्फ निभाया बल्कि मैदान में जब भी उतरा अपनी टीम को हारने नहीं दिया। चाहे एमस्टर्डमम में 1928 का ओलंपिक हो या सैन फ्रांसिस्को में 1932 का ओलंपिक. और अब 1936 में क्या होगा जब हिटलर के सामने भारत खेलेगा. क्या जर्मनी की टीम के सामने हिटलर की मौजूदगी में ध्यानचंद की जादूगरी चलेगी. जैसे-जैसे बर्लिन ओलंपिक की तारीख करीब आ रही है वैसे-वैसे जर्मनी के अखबारो में ध्यानचंद के किस्से किसी सितारे की तरह यह कहकर चमकने लगे हैं कि ‘चांद’का खेल देखने के लिए पूरा जर्मनी बेताब है क्योंकि हर किसी को याद आ रहा है 1928 का ओलंपिक. आस्ट्रिया को 6-0, बेल्जियम को 9-0, डेनमार्क को 5-0, स्वीटजरलैंड को 6-0 और नीदरलैंड को 3-0 से हराकर भारत ने गोल्ड मेडल जीता तो समूची ब्रिटिश मीडिया ने लिखा कि यह हॉकी का खेल नहीं जादू था और ध्यानचंद यकीनन हॉकी के जादूगर हैं. लेकिन बर्लिन ओलंपिक का इंतजार कर रहे हिटलर की नज़र 1928 के ओलंपिक से पहले प्रि ओलपिंक में डच, बेल्जियम के साथ जर्मनी की हार पर थी. और जर्मनी के अखबार 1936 में लगातार यह छाप रहे थे जिस ध्यानचंद ने कभी भी जर्मनी टीम को मैदान पर बख्शा नहीं चाहे वह 1928 का ओलंपिक हो या 1932 का तो फिर 1936 में क्या होगा.क्योंकि हिटलर तो जीतने का नाम है. तो क्या बर्लिन ओलपिंक पहली बार हिटलर की मौजूदगी में जर्मनी की हार का तमगा ठोकेगी.और इधर मुंबई में बर्लिन जाने के लिये तैयार हुई भारतीय टीम में भी हिटलर को लेकर किस्से चल पड़े थे. पत्रकार टीम के मैनेजर पंकज गुप्ता और कप्तान ध्यानचंद से लेकर लगातार सवाल कर रहे थे इस खास मुकाबले के बारे में.
ध्यानचंद के स्वागत को 24 घंटे के लिए रोक दिया गया जहाजों का ट्रैफिक
1928 में जब ओलपिंक में गोल्ड लेकर भारतीय हॉकी टीम बंबई हारबर पहुंची थी तो पेशावर से लेकर केरल तक से लोग विजेता टीम के एक दर्शन करने और ध्यान चंद को देखने भर के लिये पहुंचे थे.उस दिन बंबई के डाकयार्ड पर मालवाहक जहाजों को समुद्र में ही रोक दिया गया था. जहाजों की आवाजाही भी 24 घंटे नहीं हो पायी थी क्योंकि ध्यानचंद की एक झलक के लिये हजारों हजार लोग बंबई हारबर में जुटे और ओलंपिक खेल लौटे ध्यानचंद का तबादला 1928 में नार्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस वजीरिस्तान [फिलहाल पाकिस्तान] में कर दिया गया, जहां हाकी खेलना मुश्किल था. पहाड़ी इलाका था. मैदान था नहीं. लेकिन ओलंपिक में सबसे ज्यादा गोल [5 मैच में 14 गोल] करने वाले ध्यानचंद का नाम 1932 में सबसे पहले ओलंपिक टीम के खिलाडियों में यह कहकर लिखा गया कि सेंट फ्रांसिस्को ओलंपिक से पहले प्रैक्टिस मैच के लिये टीम को सिलोन यानी मौजूदा वक्त में श्रीलंका भेज दिया जाए. दो प्रैक्टिस मैच में भारत की ओलंपिक टीम ने सिलोन को 20-0 और 10-0 से हराया. ध्यानचंद ने अकेले डेढ दर्जन गोल ठोंके और उसके बाद 30 जुलाई 1932 में शुरु होने वाले लास-एंजेल्स ओलंपिक के लिये भारत की टीम 30 मई को मुंबई से रवाना हुई.
फाइनल में अमेरिका के खिलाफ दो दर्जन गोल हुए
लगातार 17 दिन के सफर के बाद 4 अगस्त 1932 को अपने पहले मैच में भारत की टीम ने जापान को 11-1 से हराया.ध्यानचंद ने 3 गोल किए.फाइनल में मेजबान देश अमेरिका से भारत का सामना था और माना जा रहा था कि मेजबान देश को मैच में अपने दर्शकों का लाभ मिलेगा. लेकिन फाइनल में भारत ने अमेरिकी टीम के खिलाफ दो दर्जन गोल ठोंके. जी हां, भारत ने अमेरिका को 24-1 से हराया. इस मैच में ध्यानचंद ने 8 गोल किए. लेकिन पहली बार ध्यानचंद को गोल ठोंकने में अपने भाई रुप सिंह से यहां मात मिली क्योंकि रुप ने 10 गोल ठोंके. लेकिन 1936 में तो बर्लिन ओलंपिक को लेकर जर्मनी के अखबारों में यही सवाल बड़ा था कि जर्मनी मेजबानी करते हुए भारत से हार जाएगा या फिर बुरी तरह हारेगा और ध्यानचंद का जादू चल गया तो क्या होगा. क्योंकि 1932 के ओलंपिक में भारत ने कुल 35 गोल ठोंके थे और खाए महज 2 गोल थे. और तो और ध्यान चंद और उनके भाई रुपचंद ने 35 में से 25 गोल ठोंके थे. तो बर्लिन ओलंपिक का वक्त जैसे जैसे नजदीक आ रहा था, वैसे वैसे जर्मनी में ध्यानचंद को लेकर जितने सवाल लगातार अखबारों की सुर्खियों में चल रहे थे उसमें पहली बार लग कुछ ऐसा रहा था जैसे हिटलर के खिलाफ भारत को खेलना है और जर्मनी हार देखने को तैयार नहीं है. लेकिन ध्यानचंद के हॉकी को जादू के तौर पर लगातार देखा जा रहा था और 1932 के ओलंपिक के बाद और 1936 के बर्लिन ओलंपिक से पहले यानी इन चार बरस के दौरान भारत ने 37 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले जिसमें 34 भारत ने जीते, 2 ड्रा हुये और 2 रद्द हो गये. यानी भारत एक मैच भी नहीं हारा. इस दौर में भारत ने 338 गोल किये जिसमें अकेले ध्यानचंद ने 133 गोल किए. बर्लिन ओलंपिक से पहले ध्यानचंद के हॉकी के सफर का लेखा-जोखा कुछ इस तरह जर्मनी में छाने लगा कि हिटलर की तानाशाही भी ध्यानचंद की जादूगरी में छुप गई.
पहले ही प्रैक्टिस मैच में दी जर्मनी को पटखनी
बर्लिन ओलंपिक की शान ही यही थी कि किसी मेले की तरह ओलंपिक की तैयारी जर्मनी ने की थी. ओलंपिक ग्राउंड में ही मनोरंजन के साधन भी थे और दर्शकों की आवाजाही भी जबरदस्त थी. ओलपिंक शुरु होने से 13 दिन पहले 17 जुलाई 1936 को जर्मनी के साथ प्रैक्टिस मैच भारत को खेलना था. 17 दिन के सफर के बाद पहुंची टीम थकी हुई थी. बावजूद इसके भारत ने जर्मनी को 4-1 से हराया और उसके बाद ओलंपिक में बिना गोल खाए हर देश को बिलकुल रौंदते हुए भारत आगे बढ़ रहा था और जर्मनी के अखबारों में छप रहा था कि हॉकी नहीं जादू देखने पहुंचें. क्योंकि हॉकी का जादूगर ध्यानचंद पूरी तरह एक्टिव है. भारत ने पहले मैच में हंगरी को 4-0, फिर अमेरिका को 7-0, जापान को 9-0, सेमीफाइनल में फ्रांस को 10-0 से हराया और बिना गोल खाए हर किसी को हराकर फाइनल में पहुंचा. यहां सामने थी हिटलर की टीम यानी जर्मनी की टीम. फाइनल का दिन था 15 अगस्त 1936.भारतीय टीम ने खाई तिरंगे की कसम, नहीं डरेंगे हिटलर से
भारतीय टीम में खलबली थी कि फाइनल देखने एडोल्फ हिटलर भी आ रहे थे और मैदान में हिटलर की मौजूदगी से ही भारतीय टीम सहमी हुई थी. ड्रेसिंग रुम में सहमी टीम के सामने टीम के मैनेजर पंकज गुप्ता ने गुलाम भारत में आजादी का संघर्ष करते कांग्रेस के तिरंगे को अपने बैग से निकाला और ध्यानचंद समेत हर खिलाडी को उस वक्त तिंरगे की कसम खिलाई कि हिटलर की मौजूदगी में घबराना नहीं है. यह कल्पना के परे था. लेकिन सच था कि आजादी से पहले जिस भारत को अंग्रेजों से मु्क्ति के बाद राष्ट्रीय ध्वज तो दूर संघर्ष के किसी प्रतीक की जानकरी पूरी दुनिया को नहीं थी और संघर्ष देश के बाहर गया नहीं था, उस वक्त भारतीय हॉकी टीम ने तिरंगे को दिल में लहराया और जर्मनी की टीम के खिलाफ मैदान में उतरी.हिटलर स्टेडियम में ही मौजूद था.
हाफ टाइम के बाद ध्यानचंद ने उतारे जूते
टीम ने खेलना शुरु किया और गोलों का सिलसिला भी फौरन शुरू हो गया. हाफ टाइम तक भारत 2 गोल ठोंक चुका था. 14 अगस्त को बारिश हुई थी तो मैदान गीला था और बिना स्पाइक वाले रबड़ के जूते लगातार फिसल रहे थे. ध्यानचंद ने हाफ टाइम के बाद जूते उतार कर नंगे पांव ही खेलना शुरु किया. जर्मनी को हारता देख हिटलर मैदान छोड़ जा चुका था. उधर नंगे पांव खेलते ध्यानचंद ने हाफ टाइम के बाद गोल दागने की रफ्तार बढ़ा दी थी. इस मैच में भारत ने 8-1 से जर्मनी को हराया.
रात भर सो नहीं पाए ध्यानचंद हिटलर को मिलने के ख्याल से
फाइनल के अगले दिन यानी 16 अगस्त को ऐलान हुआ कि विजेता भारतीय टीम को मेडल पहनाएंगे हिटलर.इस खबर को सुनकर ध्यानचंद रात भर नहीं सो पाए.भारत में जैसे ही ये खबर पहुंची यहां के अखबार हिटलर के अजीबोगरीब फैसलों के बारे में छाप कर आशंका का इंतजार करने लगे.बहरहाल, अगले दिन हिटलर आए और उन्होंने ध्यानचंद की पीठ ठोंकी.उनकी नजर ध्यानचंद के अंगूठे के पास फटे जूतों पर टिक गई.ध्यानचंद से सवाल जवाब शुरू हुआ. जब हिटलर को पता चला कि ध्यानचंद ब्रिटिश इंडियन आर्मी की पंजाब रेजिमेंट में लांस नायक जैसे छोटे ओहदे पर है, तो उसने ऑफर किया कि जर्मनी में रुक जाओ, सेना में कर्नल बना दूंगा. ध्यानचंद ने कहा, नहीं पंजाब रेजिमेंट पर मुझे गर्व है और भारत ही मेरा देश है.हिटलर ध्यानचंद को मेडल पहनाकर स्टेडियम से चले गए. ध्यानचंद की सांस में सांस आई.
देश के दबाव में खेलते रहे पचास के पार तक
बर्लिन से जब हाकी टीम लौटी तो ध्यानचंद को देखने और छूने के लिये पूरे देश में जुनून सा था.रेजिमेंट में भी ध्यानचंद जीवित किस्सा बन गए. उन्हें 1937 में लेफ्टिनेंट का दर्जा दिया गया. सेना में वह लगातार काम करते रहे और जब 1945 में दूसरा विश्व युद्ध खत्म हुआ, तो ध्यानचंद की उम्र हो चुकी थी 40 साल. उन्होंने कहा कि अब नए लड़कों को आगे आना चाहिए और मुझे रिटायरमेंट लेना चाहिए. मगर देश का उन पर ऐसा न करने का दबाव था. और 1926 में अपने कर्नल से कभी न हारने का जो वादा उन्होंने किया था, उसे 1947 तक बेधड़क निभाते रहे.
51 बरस की उम्र में 1956 में आखिरकार ध्यानचंद रिटायर हुये तो सरकार ने पद्मविभूषण से उन्हें सम्मानित किया और रिटायरमेंट के महज 23 बरस बाद ही यह देश ध्यानचंद को भूल गया. इलाज की तंगी से जूझते ध्यानचंद की मौत 3 दिसबंर 1979 को दिल्ली के एम्स में हुई. उनकी मौत पर देश या सरकार नहीं बल्कि पंजाब रेजिमेंट के जवान निकल कर आए, जिसमें काम करते हुये ध्यानचंद ने उम्र गुजार दी थी और उस वक्त हिटलर के सामने पंजाब रेजिमेंट पर गर्व किया था जब हिटलर के सामने समूचा विश्व कुछ बोलने की ताकत नहीं रखता था. पंजाब रेजिमेंट ने सेना के सम्मान के साथ ध्यानचंद को आखिरी विदाई थी.
मौका मिले तो झांसी में ध्यानचंद की उस आखिरी जमीन पर जरुर जाइएगा, जहां टीवी युग में मीडिया नहीं पहुंचा है. वहां अब भी दूर से ही हॉकी स्टिक के साथ ध्यानचंद दिख जाएंगे. और जैसे ही ध्यानचंद की वह मूर्ति दिखायी दे तो सोचिएगा कि अगर ध्यानचंद के वक्त टीवी युग होता और हमने ध्यानचंद को खेलते हुये देखा होता तो ध्यानचंद आज कहां होते. लेकिन हमने तो ध्यानचंद को खेलते हुए देखा ही नहीं.

सचिन को भारत रत्न देने के खिलाफ मामला दायर

सचिन को भारत रत्न देने के खिलाफ मामला दायर

sachin tendulkar bharat ratna case major dhyan chand

बिहार के मुजफ्फरपुर की एक अदालत में क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न सम्मान के लिए चुने जाने को चुनौती देते हुए प्रधानमंत्री और गृहमंत्री पर लोगों की भावना से खिलवाड़ करने का आरोप लगाया गया है।

एक स्थानीय वकील सुधीर कुमार ओझा ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में दाखिल मामले में सचिन को भी आरोपी बनाया है। सचिन पर धोखाधड़ी, बेईमानी, जानबूझकर अपमानित करने जैसे कई आरोप लगाए गए हैं।

याचिका में कहा गया है कि महान हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद को दरकिनार कर सचिन को चुनना देश के लोगों की भावना को चोट पहुंचाने वाला है।

इसमें ध्यानचंद के नाम को हटाकर सचिन तेंदुलकर का नाम जोड़े जाने को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे, खेलमंत्री जितेंद्र सिंह और खेल मंत्रालय के सचिव को आरोपी बनाया गया है।

'सचिन को भारत रत्न देने में की गई जल्दबाजी'
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के वरिष्ठ नेता मोहम्मद सलीम ने कहा है कि केंद्र सरकार ने सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न सम्मान देने में जल्दबाजी की।

हालांकि, उन्होंने कहा कि इस मसले पर राजनीति नहीं की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि जहां तक सचिन को भारत रत्न देने के बारे में सरकार की घोषणा का सवाल है तो इसमें थोड़ी जल्दबाजी दिखती है। लेकिन, ऐसे सम्मानों को राजनीति में नहीं घसीटा जाना चाहिए।

शनिवार को मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में अपने करियर का अंतिम मैच खेलने वाले सचिन को उसी दिन सरकार ने भारत रत्न देने की घोषणा की। भारत रत्न से सम्मानित होने वाले सचिन देश के पहले खिलाड़ी होंगे।

Saturday, 16 November 2013

C. N. R. Rao will be awarded the Bharat Ratna, as declared by the Government of India on 16 November, 2013.

 C. N. R. Rao will be awarded the Bharat Ratna, as declared by the Government of India on 16 November, 2013.

 

C. N. R. Rao

From Wikipedia,

C. N. R. Rao
Chintamani Nagesa Ramachandra Rao 03682.JPG
Born 30 June 1934 (age 79)
Bangalore, British India (present-day Karnataka, India)
Residence India
Nationality Indian
Fields Chemistry
Institutions Indian Space Research Organization
Indian Institute of Science
University of Oxford
University of Cambridge
University of California, Santa Barbara
Jawaharlal Nehru Centre for Advanced Scientific Research
Alma mater Banaras Hindu University
Purdue University
Known for Solid-state chemistry
Materials science
Notable awards Hughes Medal (2000)
India Science Award (2004)
(FRS)(1984)
Abdus Salam Medal (2008)
Dan David Prize (2005)
Legion of Honor (2005)
Padma Shri
Padma Vibhushan
Chintamani Nagesa Ramachandra Rao, also known as C.N.R. Rao (born 30 June 1934), is an Indian chemist who has worked mainly in solid-state and structural chemistry. He currently serves as the Head of the Scientific Advisory Council to the Prime Minister of India. On 16th November 2013,Government of India announced to give the Bharat Ratna, the highest civilian award to him along with famous cricket player Sachin Tendulkar.

Early life and education

CNR Rao was born in Bangalore of father Hanumantha Nagesa Rao, and mother Nagamma Nagesa Rao. He obtained his bachelors degree from Mysore University in 1951, obtaining a masters from Banaras Hindu University two years later, and obtained his Ph.D. in 1958 from Purdue University. In 1961 he received DSc from Mysore University. He joined the faculty of Indian Institute of Technology Kanpur in 1963.[1] He has received Honorary Doctorates from many Universities such as Bordeaux, Caen, Colorado, Khartoum, Liverpool, Northwestern, Novosibirsk, Oxford, Purdue, Stellenbosch, Universite Joseph Fourier, Wales, Wroclaw, Notre Dame, Uppsala, Aligarh Muslim, Anna, AP, Banaras, Bengal Engineering, Bangalore, Burdwan, Bundelkhand, Delhi, Hyderabad, IGNOU, IIT-Bombay, Kharagpur, and Delhi, JNTU, Kalyani, Karnataka, Kolkata, Kuvempu, Lucknow, Mangalore, Manipur, Mysore, Osmania, Punjab, Roorkee, Sikkim Manipal, SRM, Tumkur, Sri Venkateswara, Vidyasagar, and Visveswaraya Technological University.[2][3]

Profession

Rao is currently the National Research Professor and Linus Pauling Research Professor and Honorary President of the Jawaharlal Nehru Centre for Advanced Scientific Research in Bangalore, India. He is the founding President of the Jawaharlal Nehru Centre for Advanced Scientific Research. He was appointed Chair of the Scientific Advisory Council to the Indian Prime Minister in January 2005, a position which he had occupied earlier during 1985–89. He is also the director of the International Centre for Materials Science (ICMS).
Earlier, he served as a faculty member in the Department of Chemistry at the Indian Institute of Technology Kanpur from 1963 to 1976 and as the Director of the Indian Institute of Science from 1984 to 1994. He has also been a visiting professor at Purdue University, the University of Oxford, the University of Cambridge and University of California, Santa Barbara. He was the Jawaharlal Nehru Professor at the University of Cambridge and Professorial Fellow at the King's College, Cambridge during 1983-1984.[2]
Rao is one of the world's foremost solid state and materials chemists. He has contributed to the development of the field over five decades.[3] His work on transition metal oxides has led to basic understanding of novel phenomena and the relationship between materials properties and the structural chemistry of these materials.
Rao was one of the earliest to synthesize two-dimensional oxide materials such as La2CuO4. His work has led to a systematic study of compositionally controlled metal-insulator transitions. Such studies have had a profound impact in application fields such as colossal magneto resistance and high temperature superconductivity. Oxide semiconductors have unusual promise. He has made immense contributions to nanomaterials over the last two decades, besides his work on hybrid materials. He is the author of around 1500 research papers. He has authored and edited 45 books.[3][4]
Rao serves on the board of the Science Initiative Group.

Controversies

He has been accused of indulging and allowing plagiarism. In December 2011, C. N. R. Rao apologized to 'Advanced Materials'[5][6] – a peer-reviewed journal, for reproducing text of other scientists in his research paper.[7] His collaborator and the other senior author of the paper Prof. S. B. Krupanidhi accused a co-author PhD student at IISc for the mistake, “These sentences were part of the introduction of the paper, which was written by our student, that neither of us (namely, the senior authors, Rao and Krupanidhi) paid attention to”.
The PhD student took the responsibility for the incident and issued an apology.[8][9] Later C.N.R. Rao offered to withdraw the article from the journal, but the editor let the publication stay as it is.[10] C.N.R. Rao claimed to have never indulged in plagiarism.[10] Later few more instances of plagiarism by Prof. Rao and his collaborators were reported.[11] Prof Rao was criticised by an Indian scientist for these incidents and passing the responsibility to the junior scientists.[12] It was argued that it was unethical from Prof Rao to claim correspondent authorship in an article in which according to Prof Rao himself, he has no significant role.

Awards

He will be awarded the Bharat Ratna, as declared by the Government of India on 16 November, 2013. He was awarded the Hughes Medal by the Royal Society in 2000, and he became the first recipient of the India Science Award, instituted by the Government of India, for his contributions to solid state chemistry and materials science, awarded in 2004.[13]
He has won several international prizes and is a member of many of the world's scientific associations, including the U.S. National Academy of Sciences, American Academy of Arts and Sciences, the Royal Society (London; FRS, 1982), French Academy, Japanese Academy, Serbian Academy of Sciences and Arts and the Pontifical Academy.
He was awarded Dan David Prize in 2005,[14] by the Dan David Foundation, Tel Aviv University, which he shared with George Whitesides and Robert Langer.[15] In 2005, he was conferred the title Chevalier de la Légion d'honneur (Knight of the Legion of Honour) by France, awarded by the French Government. He had also been given the honours Padma Shri and Padma Vibhushan by the Indian Government and Karnataka Ratna by the Karnataka state government. He is a foreign fellow of Bangladesh Academy of Sciences.[16] He was also awarded an honorary Doctor of Science by the University of Calcutta in 2004.[17]
Dr Rao has also been conferred with China's top science award for his important contributions in boosting Sino-India scientific cooperation.[18] The award was given by Chinese Academy of Sciences (CAS) in January 2013, which is China's top academic and research institution for natural sciences.