Sunday, 28 September 2014

जस्टिस एचएल दत्तू ने CJI पद की शपथ ली | मैरिज एक्ट से 'नाजायज संतान' का कंसेप्ट हटाने की तैयारी

जस्टिस एचएल दत्तू ने CJI पद की शपथ ली 

मैरिज एक्ट से 'नाजायज संतान' का कंसेप्ट हटाने की तैयारी

नई दिल्ली, 29 सितम्बर 2014
टैग्स: एच एल दत्तू| सुप्रीम कोर्ट| चीफ जस्टिस
जस्टिस एचएल दत्तू
जस्टिस एचएल दत्तू
जस्टिस एच.एल.दत्तू ने रविवार को देश के प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ ली. उन्हें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शपथ दिलाई. वह भारत के 42वें प्रधान न्यायाधीश हैं और वह दो दिसंबर 2015 तक इस पद पर बने रहेंगे. उन्होंने न्यायमूर्ति आर.एम.लोढ़ा का स्थान लिया है, जो 27 सितंबर को सेवानिवृत्त हुए हैं. शपथ ग्रहण समारोह राष्ट्रपति के दरबार हॉल में संपन्न हुआ जिसमें उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के वरिष्ठ नेता एल.के.आडवाणी, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडु, पूर्व चीफ जस्टिस आर.एम.लोढ़ा और जस्टिस ए.एस.आनंद मौजूद थे.
जस्टिस दत्तू 17 दिसंबर 2008 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त किए गए थे और इससे पहले वह केरल उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस थे.
वह 18 दिसंबर 1995 को कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त किए गए थे. इसके बाद वह 12 फरवरी 2007 को छत्तीसगढ़ के मुख्य न्यायाधीश बनाए गए. इसके तीन महीने बाद 18 मई 2007 को उनका केरल हाईकोर्ट में तबादला कर दिया गया.

मैरिज एक्ट से 'नाजायज संतान' का कंसेप्ट हटाने की तैयारी, कमेटी के सुझावों पर विचार कर रही सरकार


hindu marriage act
symbolic image
'हिंदू मैरिज एक्ट' के तहत 'नाजायज' संतान की धारणा खत्म की जा सकती है. महिला और बाल विकास मंत्रालय एक कमेटी की ऐसी सिफारिशों पर विचार कर रहा है. यूपीए सरकार के समय गठित कमेटी ने परिवार में स्त्री को मजबूत बनाने के स्तर पर कई सुझाव दिए हैं. कमेटी ने सुझाव दिया है कि कानून में 'अनाचार' के दायरे को फिर से परिभाषित किया जाए, ताकि पत्नी से 'प्रॉपर्टी' की तरह बर्ताव न किया जा सके. कमेटी ने 'क्रूरता' पर नए सिरे से विचार करने और 'नाजायज संतान' की धारणा को खत्म करने का सुझाव भी दिया है. अंग्रेसी अखबार 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने यह खबर दी है.
मौखिक तलाक पर प्रतिबंध की सिफारिश
पैनल ने 'ऑनर किलिंग' से निपटने के लिए अलग कानून बनाने की सिफारिश की है. साथ ही मुस्लिम और ईसाइयों के कानून में भी सुधार सुझाए हैं. कमेटी ने 'मौखिक, एकतरफा और तीन बार तलाक' और एक से ज्यादा शादी करने की प्रथा पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की मांग की है.

कमेटी ने अलगाव या तलाक की स्थिति में पत्नी को अनिवार्य रूप से मुआवजा दिए जाने की वकालत की है. मौजूदा कानून के मुताबिक, अगर महिला 'व्यभिचारी' साबित कर दी जाए या वह खुद पति के साथ रहने से मना कर दे तो उसे मुआवजा देना जरूरी नहीं होता. कमेटी ने इस व्यवस्था को खत्म करने की सिफारिश की है. पैनल ने हिंदू उत्तराधिकार कानून में भी महिलाओं की स्थिति को मजबूत करने के लिए कई सुझाव दिए हैं.
लिव-इन में भी लागू हों वैवाहिक कानून: कमेटी
पंजाब यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर रह चुकीं पाम राजपूत की अध्यक्षता में बनी कमेटी को यूपीए सरकार ने गठित किया था. इसने हाल ही में एनडीए सरकार की महिला-बाल विकास मंत्री मेनका गांधी को रिपोर्ट सौंपी है.

कमेटी ने कहा है कि 'लिव-इन रिलेशनशिप' के मामले भी विवाह और उत्तराधिकार कानूनों से बंधे हुए होने चाहिए. कमेटी ने कहा है कि सभी प्रासंगिक कानूनों में संशोधन करके मां को बच्चे का 'प्राकृतिक अभिभावक' घोषित किया जाना चाहिए.
कमेटी ने कहा है कि हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 16 में संशोधन करके इसमें वैवाहिक संबंधों के बिना पैदा होने वाले हर बच्चे को शामिल करना चाहिए. आगे से 'नाजायज' शब्द का इस्तेमाल किसी दस्तावेज में नहीं होना चाहिए. अगर इस सुझाव को मान लिया तो इसका मतलब है कि मां-बाप की वैवाहिक स्थिति का संतान पर कोई कानूनी असर नहीं पड़ेगा.


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