Sunday, 9 June 2013

अमरीका: ख़बर लीक करने वाले की पहचान ज़ाहिर

 सोमवार, 10 जून, 2013 को 07:16 IST तक के समाचार 
 

गार्डियन ने स्नोडेन के अनुरोध पर उनके नाम को सार्वजनिक किया है
अमरीका में निगरानी कार्यक्रम की जानकारी लीक करने वाले की पहचान ब्रिटेन के गार्डियन अखबार ने सीआईए के एक पूर्व तकनीकी कर्मचारी के रूप में ज़ाहिर की है.
अखबार के मुताबिक 29 वर्षीय एडवर्ड स्नोडेन सीआईए के पूर्व तकनीकी सहायक हैं और फिलहाल रक्षा विभाग के एक ठेकेदार बूज़ एलेन हैमिल्टन के कर्मचारी हैं.
हाल में सामने आई जानकारियों के अनुसार अमरीकी एजेंसियों ने लाखों फ़ोन रिकॉर्ड जुटाए और इंटरनेट पर लोगों के बीच हो रही चर्चाओं की निगरानी की.
गार्डियन के अनुसार स्नोडेन की पहचान उन्हीं के अनुरोध पर सार्वजनिक की जा रही है.
"मैं उस समाज में नहीं रहना चाहता जहां ऐसा काम किया गया. मैं उस दुनिया में नहीं रहना चाहता जहां मेरे सारे काम और मेरी बातें रिकॉर्ड की जाती हों"
स्नोडेन, सीआई के पूर्व कर्मचारी
अखबार ने स्नोडेन के हवाले से लिखा है कि वो बीस मई को हॉन्ग कॉन्ग चले गए और खुद को एक होटल में बंद कर लिया.
स्नोडेन ने अखबार को बताया, “मैं उस समाज में नहीं रहना चाहता जहां ऐसा काम किया गया... मैं उस जगह नहीं रहना चाहता जहां मेरे सारे काम और मेरी बातें रिकॉर्ड की जाती हों.”
स्नोडेन ने गार्डियन अखबार के ग्लेन ग्रीनवैल्ड और लॉरा पोइट्रास को बताया, “कोई भी विश्लेषक किसी भी समय किसी को भी निशाना बना सकता है. हालांकि सभी विश्लेषकों के पास ये क्षमता नहीं है लेकिन मैं अपनी डेस्क पर बैठकर किसी के भी निजी वार्तालाप को जान सकता हूं.”
ब्रितानी अखबार गार्डियन ने खबर प्रकाशित की थी कि अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी बड़े पैमाने पर क्लिक करें फोन और इंटरनेट की निगरानी कर रही है.
अखबार के अनुसार अमेरिकी खुफिया एजेंसी इस कार्यक्रम के माध्यम से लोगों के निजी वीडियो, तस्वीरें और ईमेल तक निकाल लेती है ताकि विशिष्ट लोगों पर नजर रखी जा सके.
बाद में अमरीका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी के निदेशक क्लिक करें जेम्स क्लैपर ने स्वीकार किया था कि सरकार इंटरनेट कंपनियों से उपभोक्ताओं की बातचीत के रिकॉर्ड प्राप्त करती है लेकिन उन्होंने कहा कि सूचना प्राप्त करने की नीति का लक्ष्य केवल गैर अमेरिकी लोगों के बारे में जानकारी लेना है.

अभिव्यक्ति की आज़ादी

गार्डियन अखबार के अनुसार जब एडवर्ड से पूछा गया कि उन्हें क्या लगता है, उनके साथ अब क्या होगा तो उनका जवाब था 'कुछ भी अच्छा नहीं.’
एडवर्ड ने कहा कि वह हॉन्ग कॉन्ग इसलिए गए क्योंकि वहाँ अभिव्यक्ति की आज़ादी है.
गौरतलब है कि अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस कार्यक्रम का बचाव करते हुए कहा था कि उनके प्रशासन ने सुरक्षा और गोपनीयता के बीच सही संतुलन बनाए रखा है.
राष्ट्रपति ओबामा ने कहा था कि एनएसए कार्यक्रम को मंजूरी अमरीकी संसद ने दी और संसद की खुफिया समितियां और गुप्त जासूसी की अदालतें इस कार्यक्रम की लगातार निगरानी करते हैं.
इंटरनेट कंपनियों ने इंकार किया है कि उन्होंने अमरीकी सरकार को अपने सर्वर तक पहुंचने की इजाज़त दी
राष्ट्रपति ओबामा ने कहा कि जब उन्होंने राष्ट्रपति की जिम्मेदारी उठाई थी तब दोनों कार्यक्रमों के बारे में काफी संदेह होते थे लेकिन उनकी जाँच और अधिक सुरक्षा के बाद उन्होंने फैसला किया कि यह स्वीकार्य है.
गौरतलब है कि अमरीकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने खबर दी थी कि अमरीकी खुफिया एजेंसियां इंटरनेट की नौ बड़ी कंपनियों के सर्वर से उपयोगकर्ताओं के बारे में सीधे जानकारी प्राप्त कर रही हैं. इन कंपनियों में फेसबुक, यूट्यूब, स्काइप, एप्पल, पॉल टॉक, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और याहू भी शामिल हैं.

कंपनियों का इंकार

हालांकि इन सभी कंपनियों ने इस बात से इंकार किया था कि उन्होंने अपने सर्वर तक अमरीकी सरकार की पहुंच सुनिश्चित की थी.
कहा जा रहा है कि क्लिक करें प्रिज़्म के जरिए एनएसए और एफबीआई ने ईमेल्स, वेब चैट और दूसरे संचार माध्यमों तक अपनी पहुंच बनाई.
प्रिज़्म की स्थापना साल 2007 में दूसरे देशों के लोगों के बारे में गहराई से जानकारी लेने के मकसद से की गई थी.
इन खबरों के बाद वर्ल्डवाइड वेब यानी डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू के निर्माता सर टिम बरनर्ज़ ने प्रिज़्म कार्यक्रम पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा था कि अमेरिकी सरकार की ओर से यह कदम बुनियादी मानवाधिकारों का उल्लंघन है.
उन्होंने इंटरनेट उपयोगकर्ताओं से कहा कि वह व्यक्तिगत रूप में इस मामले पर आवाज उठाएँ और विरोध करें.
दूसरी ओर फेसबुक के निर्माता मार्क ज़करबर्ग और गूगल के मालिक लैरी पेज ने अमेरिका खुफिया एजेंसी को उपभोक्ता जानकारी देने से इनकार किया था.
इससे पहले एप्पल और याहू भी किसी भी सरकारी एजेंसी को अपने सर्वर तक सीधी पहुँच देने के आरोप से इनकार कर चुके हैं.


NSA slides explain the PRISM data-collection program


Breaking News From America


Warning!!!

For those who use internet for Chatting , Social sites and mail servers...

You Know Our privacy is destroyed...?

Imagine if your sensitive private data will Leaked or some one will black-mail you for it through those data which one you think are protected from gmail, facebook ,yahoo , aol ...etc.

Through a top-secret program authorized by federal judges working under the Foreign Intelligence Surveillance Act (FISA), the U.S. intelligence community can gain access to the servers of nine Internet companies for a wide range of digital data. Documents describing the previously undisclosed program, obtained by The Washington Post, show the breadth of U.S. electronic surveillance capabilities in the wake of a widely publicized controversy over warrantless wiretapping of U.S. domestic telephone communications in 2005. These slides, annotated by The Washington Post, represent a selection from the overall document, and certain portions are redacted. Read related article.

Introducing the program

A slide briefing analysts at the National Security Agency about the program touts its effectiveness and features the logos of the companies involved.
The program is called PRISM, after the prisms used to split light, which is used to carry information on fiber-optic cables.
This note indicates that the program is the number one source of raw intelligence used for NSA analytic reports.
The seal of
Special Source Operations, the NSA term for alliances with trusted U.S. companies.

Monitoring a target's communication

This diagram shows how the bulk of the world’s electronic communications move through companies based in the United States.

Providers and data

The PRISM program collects a wide range of data from the nine companies, although the details vary by provider.

Participating providers

This slide shows when each company joined the program, with Microsoft being the first, on Sept. 11, 2007, and Apple the most recent, in October 2012.
 

Data Source Provided From : From washingtonpost.com


 

  By:  
 -Kosulla India Ltd 

 - Bhupesh Kumar Mandal   
 
-(kosullaindialtd.blogspot.com)

 http://www.greenleapdelhi.org.in/wp-content/uploads/2012/10/SavePaperSaveTrees_header11.jpg

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