Saturday, 7 March 2015

UTTARAKHAND का दुर्भाग्य :( - FL2((विदेशी मदिरा के थोक केंद्र)) से उपभोक्ताओं को अच्छी गुणवत्ता की शराब मिल सकेगी:CM हरीश रावत :::: क्या उत्तराखंड में कभी शराब बन्द होगी?:: बुनियादी मुद्दे-अस्पताल,डॉक्टर,,स्कूल,कॉलेज,मास्टरों के खाली पद,बेरोजगार,स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, पानी,आपदा?

UTTARAKHAND का दुर्भाग्य :( 
FL2((विदेशी मदिरा के थोक केंद्र)) से उपभोक्ताओं को अच्छी गुणवत्ता की शराब मिल सकेगी:CM हरीश रावत
क्या उत्तराखंड में कभी शराब बन्द होगी?

बुनियादी मुद्दे-अस्पताल,डॉक्टर,,स्कूल,कॉलेज,मास्टरों के खाली पद,बेरोजगार,स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, पानी,आपदा?
एफएलटू पर वार-पलटवार बढ़ी तकरार
March 7, 2015
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विपक्ष का सवाल:एक व्यक्ति को कारोबार क्यों देना चाहती है सरकार? सीएम बोले, कोई धांधली है तो करा ले मेरी संपत्ति की जांच
देहरादून:शराब कारोबार में एफएलटू (विदेशी मदिरा के थोक केंद्र) को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच तकरार और ज्यादा बढ़ गई है। नेता विपक्ष अजय भट्ट ने इस मुद्दे पर एक बार फिर सरकार को कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया है। उन्होंने सवाल दागा कि आखिर सरकार एक व्यक्ति के हाथों में कारोबार क्यों देना चाहती है? आखिर ये क्या धांधली है? विपक्ष के सवाल पर मुख्यमंत्री ने कहा कि यदि एफएलटू में धांधली जैसी कोई बात है तो विपक्ष उनकी संपत्ति की जांच करा ले। इस पर भट्ट का कहना है कि उन्होंने मुखिया पर नहीं बल्कि सरकार की मंशा पर सवाल उठाया है। बहरहाल इस मसले पर सरकार और विपक्ष के बीच खासी जंग छिड़ गई है। विपक्ष का आरोप
नेता विपक्ष अजय भट्ट का आरोप है कि सरकार आबकारी नीति में एफएलटू लाकर इस कारोबार को एक व्यक्ति के हवाले कर देना चाहती है। उनकी मानें तो इसमें बड़ा खेल हुआ है। उनका कहना है कि सरकार के इस कदम से शराब व्यवसाय में सिंडिकेट बन जाएगा। सवाल किया कि पिछले साल जब आबकारी नीति तय हो गई थी तो उसमें एफएलटू का नया प्रावधान क्यों जोड़ गया?
मुख्यमंत्री का जवाब
मुख्यमंत्री ने विपक्ष के सवालों का जवाब दिया कि एफएलटू सरकार इसलिये ला रही है  ताकि इस व्यवसाय पर सिंडीकेट को खत्म किया जा सके। उन्होंने कहा कि नई नीति से न सिर्फ सिंडीकेट टूटेगा बल्कि सरकार की आमदनी भी बढ़ेगी। सबसे खास उपभोक्ताओं को अच्छी गुणवत्ता की शराब मिल सकेगी।
विपक्ष का पलटवार
लेकिन विपक्ष ने मुख्यमंत्री के इस तर्क को यह कहकर खारिज कर दिया कि भाजपा सरकार से पूर्व एफएलटू की व्यवस्था थी। इस व्यवस्था से राज्य में एक व्यक्ति का पूरे कारोबार पर कब्जा था। घटिया गुणवत्ता की शराब बेची गई। सरकार का राजस्व भी नहीं बढ़ा। आपराधिक घटनाएं हुईं। इन सब पर काबू पाने के लिये नीति बदली गई और जिलों में कई एफएलटू दिये गए। इससे गुणवत्ता में सुधार आया और राजस्व वृद्धि हुई।
तीन कारोबारियों का कब्जा
मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार सुरेन्द्र कुमार ने भाजपा पर यह कहकर निशाना साधा कि पूर्व भाजपा सरकार से चली आ रही नीति के तहत शराब के 80 फीसदी से अधिक कारोबार पर तीन शराब व्यवसायियों का कब्जा है और नेता प्रतिपक्ष इन तीनों के हितों की लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने भाजपा और शराब माफिया से रिश्तों का भी खुलासा किया।
सरकार पर गुमराह करने का आरोप
नेता विपक्ष ने इस आरोप को सिरे से खारिज करते हुये कहा कि सरकार गलत तथ्य पेश करके जनता को गुमराह कर रही है। उन्होंने सवाल किया कि आबकारी नीति में ये शर्त है कि एफएलटू उसी कंपनी को दिया जाएगा जिसकी शराब की फैक्ट्री होगी। उन्होंने कहा कि जिन तीन व्यवसायियों पर सरकार सवाल उठा रही है, उनमें से किसी की भी राज्य में फैक्ट्री नहीं है। सवाल यह है कि सरकार ने इनका एफएलटू क्यों जारी रखा?

इस बार तो शराब पी जाएगी पब्लिक के मुद्दे

देहरादून: इस महीने की 11 तारीख से विधान सभा का बजट सत्र शुरू होने जा रहा है। लेकिन इस सत्र में जनसरोकारों से जुड़े मुद्दे उठ पाएंगे, इसकी उम्मीद कम ही है। जिस तरह से ऐन सत्र से पहले सरकार और विपक्ष शराब के मुद्दे पर तेवर दिखा रहे हैं, उससे यही अंदेशा गहरा रहा है कि इस बार ‘पब्लिक’ के मुद्दों को शराब पी जाएगी। दुर्भाग्य से जब भी बजट सत्र आता है तो उसमें जनता से जुड़े मुद्दे हाशिये पर चले जाते हैं और जिन मुद्दों को विपक्ष गुब्बारे की तरह फूलाता है, सत्र के समापन के साथ ही उसकी हवा भी निकल जाती है। 

सिडकुल भूमि घोटाला इसकी ताजा बानगी है। पिछले बजट सत्रों के दौरान विपक्ष ने इस मुद्दे पर कई दिन तक सदन की कार्यवाही ठप रखी। लेकिन जब सत्र संपन्न हो गया तो विपक्ष ने इस मुद्दे पर रहस्यमय ढंग से चुप्पी साध ली। विपक्ष के इस रवैये ने सरकार का काम और भी आसान कर दिया और वह जनसरोकारों से जुड़े जिन सवालों पर घिर सकती थी, उनकी कभी बारी आई ही नहीं। सदस्यों के लिये बेहद अहम माने जाने वाले प्रश्नकाल विपक्ष और सरकार के आपसी घमासान की भेंट चढ़ गए। राज्य की नीतियों से जुड़े विधेयक बिना किसी सारगर्भित चर्चा के कानून बन गए और दुर्भाग्य से ये परंपरा टूटती दिखाई नहीं दे रही है।

 11 मार्च से सत्र शुरू होने जा रहा है। लेकिन ऐन सत्र से पहले शराब के मुद्दे पर विपक्ष और सरकार के बीच घमासान शुरू हो गया है। दोनों इस मुद्दे पर फिर उलझते दिखाई दे रहे हैं। विपक्ष ने सदन के भीतर सरकार से हिसाब चुकता करने का संकेत कर दिया है। सरकार ने भी जिस अंदाज में पलटवार किया है, उससे साफ है कि वह भी दो-दो हाथ करने को तैयार है। रोचक तथ्य यह है कि शराब के जिस कारोबारी पोंटी चड्ढा के हित-अहित को लेकर ये लड़ाई लड़ी जा रही है, वो इस दुनिया में भी नहीं है।

यह बड़ा सवाल है कि क्या एक बार फिर शराब सरीखे मुद्दे के लिये विधान सभा सत्र की कुर्बानी दी जाएगी? क्या शराब राज्य के बुनियादी सवालों से भी बड़ा मुद्दा हो गई है? पिछले एक दशक से पहाड़ की जनता सरकारों से चीख-चीख कर सवाल पूछ रही है कि आखिर उनके गांव के अस्पताल में डॉक्टर कब आएंगे? स्कूल, कॉलेज और तकनीकी संस्थानों में खाली मास्टरों के खाली पदों को कब भरा जाएगा? खस्ताहाल सड़कों की स्थिति कब सुधरेगी? क्या सूबे की जनता को अपने प्रतिनिधि पर इतना भी अधिकार नहीं है कि वह उनकी आवाज सदन के भीतर उठाए? उन पर पूरा अधिकार है। 


मगर उन्हें कभी सिडकुल भूमि घोटाले तो कभी शराब के मुद्दों से फुरसत मिले तो वह जन सरोकारों के मसलों पर ध्यान केंद्रित करें। इस बार भी कई ज्वलंत सवाल हैं जिनके सरकार से जवाब मांगे जाने चाहिए। मसला चारधाम यात्रा मार्ग की खराब स्थिति का है, बेरोजगारों के भत्ते का है, खाद्यान्न से खाली राशन की दुकानों का है, बिना लैंड यूज चेंज किये बिल्डर के नाम भूमि करने का है, आपदा से बेघर और बर्बाद हुये लोगों का है, स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, पानी से जुड़े सैकड़ों के मुद्दे हैं जिन पर सरकार जवाब मांगा जाना चाहिए, लेकिन सरकार और विपक्ष के बीच छिड़ी जंग यही संकेत दे रही है कि जनसरोकारों से जुडेÞ मुद्दों को एक अकेली शराब पी जाएगी।





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