अयोध्या विवाद की बरसी: अटल बोले थे-वहां नुकीले पत्थर लगे हैं, जमीन को समतल करना होगा
नई दिल्ली. अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने की 21 वीं
बरसी के मौके पर शुक्रवार को शहर में जबर्दस्त सुरक्षा व्यवस्था की गई है।
फैजाबाद जिला प्रशासन ने अयोध्या को कई सेक्टरों में बांटकर सुरक्षा
कर्मियों को तैनात किया है। शहर में आने वाले वाहनों की चेकिंग की जा रही
है।
गौरतलब है कि 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचे को
कारसेवकों ने ढहा दिया था। इस मौके को अल्पसंख्यक समुदाय काले दिन तो वहीं
कुछ हिंदू संगठन शौर्य दिवस के तौर पर मनाते हैं। अयोध्या में राम मंदिर
आंदोलन के नतीजे के तौर पर विवादित ढांचा गिरा था। इस आंदोलन से जुड़े रहे
बीजेपी के बड़े नेता और पूर्व प्रधानमंत्री ने 6 दिसंबर से एक दिन पहले 5
दिसंबर को लखनऊ में एक बहुत ही विवादित भाषण दिया था। कई लोग मानते हैं कि
अपने भाषणों के लिए मशहूर अटल के उस दिन दिए गए भाषण ने कार सेवकों को
भड़का दिया था।
उस दिन लखनऊ में अटल ने जो भाषण दिया था, उसका एक अहम अंश:
'सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है, उसका अर्थ मैं यह निकालता हूं
कि वह कार सेवा रोकता नहीं है। सचमुच में सुप्रीम कोर्ट ने हमें अधिकार
दिया है कि हम कार सेवा करें। रोकने का तो सवाल ही नहीं है। कल कार सेवा
करके अयोध्या में सुप्रीम कोर्ट के किसी निर्णय की अवहेलना नहीं होगी। कार
सेवा करके सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का सम्मान किया जाएगा और आचरण किया
जाएगा। यह ठीक है कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब तक अदालत में (इलाहाबाद
हाई कोर्ट की) लखनऊ बेंच फैसला नहीं सुना देती तक तक वहां (अयोध्या में)
कोई निर्माण नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यही कहा है कि आप वहां भजन
कर सकते हैं। कीर्तन कर सकते हैं। अब भजन एक व्यक्ति नहीं करता। भजन होता
है तो सामूहिक होता है। कीर्तन के लिए तो और भी लोगों की आवश्यकता होती है।
और भजन कीर्तन खड़े-खड़े नहीं हो सकते। कब तक खड़े रहेंगे? वहां नुकीले
पत्थर निकले हैं। उन पर तो कोई नहीं बैठ सकता। तो जमीन को समतल करना
पड़ेगा। बैठने लायक बनाना पड़ेगा। यज्ञ का आयोजन होगा। तो कुछ निर्माण भी
होगा। कम से कम वेदी तो बनेगी।'
इस भाषण के अगले दिन अयोध्या में कार सेवा के दौरान विवादित ढांचे को गिरा दिया गया था।
मीर बाकी खान ने बनवाई थी मस्जिद
इतिहास के पन्ने पलटने पर पता चलता है कि मुगल बादशाह बाबर के सेनापति
मीर बाकी खान ने 1528 ईसवी में अयोध्या में बाबरी मस्जिद की नींव रखी थी।
कई लोगों का मानना है कि मीर बाकी ने वहां मौजूद मंदिर को तोड़कर मस्जिद
बनाई थी। उपलब्ध रिकॉर्ड के मुताबिक 1853 में इस जगह को लेकर पहली बार दंगा
हुआ था। 1885 में महंत रघुवर दास ने फैजाबाद जिला कोर्ट में अपील दायर की।
जिला जज ने अपने फैसले में कहा था कि चूंकि मस्जिद का निर्माण 356 साल
पहले हो चुका है, इसलिए इस पर कोई फैसला करना मुनासिब नहीं है। आजाद भारत
में पहली बार रामजन्मू भूमि बाबरी मस्जिद विवाद 21-22 दिसंबर, 1949 की रात
को सामने आया। 21-22 दिसंबर, 1949 की रात विवादित जगह पर रामलला की मूर्ति
प्रकट होने का दावा किया गया। बाबा रामदास ने उस दौर में अयोध्या में कई
लोगों को रामलला की मूर्ति प्रकट होने की बात बताई थी। इस घटना को लेकर
विवाद होने पर 23 दिसंबर, 1949 को अयोध्या में इस मामले को लेकर एफआईआर
दर्ज की गई। रामलला विराजमान के वकील मदन मोहन पांडेय के मुताबिक एफआईआर का
नंबर 167/49 था। उस रात कई लोगों ने कहा कि विवादित जगह पर एक प्रकाश पुंज
आया। इसे कई लोगों ने भगवान का प्रकटोत्सव और उसे मुख्य जन्मस्थान बताया
गया। इस घटना के बाद गहमागहमी बढ़ गई। जिला प्रशासन ने विवादित जगह पर
लोगों के आने-जाने पर रोक लगा दी। इसके खिलाफ गोपाल सिंह विशारद 1950 में
फैजाबाद जिला अदालत चले गए। अपील में कहा गया कि हम हिंदू हैं और यह राम की
जन्मभूमि है। हिंदू हमेशा इसको राम की जन्मभूमि मानता रहा है।
चोरी से रखी गई थीं मूर्तियां?
1950 में जब गोपाल विशारद हिंदुओं को विवादित जगह पर जाने-आने की
इजाजत मांगने गए तो मुस्लिम पैरोकार भी कोर्ट चले गए। बाबरी मस्जिद एक्शन
कमिटी के अध्यक्ष और वकील जफरयाब जिलानी का कहना है कि 21-22 दिसंबर, 1949
की रात विवादित जगह पर चोरी से मूर्तियां गुंबद के नीचे रख दी गई थीं।
जिलानी के मुताबिक दरोगा ने भी अपनी रिपोर्ट में यही बात कही। उनके मुताबिक
फैजाबाद के तत्कालीन डीएम और एसएसपी ने भी 1950 में दाखिल अपने दावे में
भी यही बात कही।
राजीव गांधी ने ताला खुलवाया
अयोध्या में दो पक्षों के बीच अदालती लड़ाई के केंद्र में था अयोध्या
का प्लॉट नंबर 583, क्योंकि इसी जमीन पर विवादित ढांचा कायम था। मामला
अदालत में चल रहा था। लेकिन कई दशक बाद 1986 में फैजाबाद के जिला जज के
आदेश पर विवादित ढांचे का ताला खुलवा दिया गया। तब राजीव गांधी देश के
प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे। दरअसल जिला प्रशासन ने कोर्ट के आदेश के बाद
40 मिनट में ही ताला खुलवा दिया था। ताला खुलवाने का दूरदर्शन पर सीधा
प्रसारण किया गया था। ताला खुलवाने का फैसला उस दौर में आया था जब राजीव
गांधी शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को संसद में कानून बनाकर
पलट चुके थे। इसके चलते उन पर मुस्लिमों को बेवजह रिझाने का आरोप लगा।
राम मंदिर आंदोलन ने तेजी पकड़ी
ताला खुलने के बाद राम मंदिर आंदोलन ने तेजी पकड़ी। 1989 के फरवरी में
इलाहाबाद कुंभ में बड़ा ऐलान किया गया। कहा गया कि 9 महीने बाद नवंबर में
निर्माण के लिए शिलान्यास किया जाएगा। इसके लिए देश भर में शिला पूजन की
योजना बनाई गई। विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) की अगुवाई में गांव-गांव में
ईंटों पर राम लिखकर पूजा की जाने लगी और उन्हें इकट्ठा किया जाने लगा।
17 अक्टूबर, 1989 में वीएचपी नेताओं ने केंद्रीय गृह मंत्री बूटा सिंह
से मुलाकात की। इन नेताओं ने आश्वासन मांगा कि शिलान्यास में कोई देरी या
रुकावट नहीं होनी चाहिए। सरकार ने यह सहमति दे दी। गृह मंत्री बूटा सिंह और
उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी की मौजूदगी में
विवादित ढांचे के करीब शिलान्यास करा दिया गया। मुस्लिम संगठनों ने
शिलान्यास का विरोध किया।
शिला पूजन समारोह से देश भर में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए। 1989 में
706 दंगे हुए। इसमें कुल 1174 मौत हुई। भागलपुर में शिला पूजन जुलूस के
दौरान दंगा भड़का। यहां दो महीने तक दंगा भड़का रहा। इसमें 1000 लोग मारे
गए। दंगों के दो दिनों बाद राजीव गांधी ने भागलपुर का दौरा किया। वहां राम
शिला जुलूस पर रोक के सवाल पर राजीव गांधी ने कहा था कि इससे कानून
व्यवस्था को लेकर कोई समस्या सामने नहीं आई। हिंसा फैलने की बात सामने नहीं
आई है।
राजीव बोले थे, राम राज्य वापस लाएंगे
3 नवंबर, 1989 को फैजाबाद से तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने
अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत की। उन्होंने कहा, 'आप हमें वोट दीजिए, हम राम
राज्य वापस लाएंगे। मुझे भी हिंदू होने पर गर्व है।' उनका भाषण लिखने वाले
मणिशंकर अय्यर का कहना है कि उनके भाषण को अंतिम समय पर बदला गया। बताया
जाता है कि कांग्रेस के रणनीतिकारों ने यह तय किया था कि राजीव गांधी
राजस्थान के नागौर से पंचायती राज के मुद्दे के साथ अपने चुनावी अभियान का
आगाज करेंगे। लेकिन ऐन वक्त पर सब कुछ बदल गया। इस मामले में अय्यर का कहना
है, 'तब के मध्य स्तर के एक नेता जो अब वरिष्ठ कांग्रेसी हैं। राजीव गांधी
के पास आए और कहा कि आप इधर-उधर न भटकें। मुद्दा तो यह है। देश आप से यह
जानना चाहता है कि अयोध्या में क्या होगा। उस दिन मंच पर किसी ने राजीव को
राम राज्य के बारे में बताया होगा। वैसे राम राज्य की बात किसी कांग्रेसी
नेता की ओर से होना कोई बुरी बात नहीं है। वैसे महात्मा गांधी ने भी राम
राज्य की बात की थी।'
वीपी सिंह ने कहा था, मुझे कुछ वक्त दीजिए
1989 के आम चुनावों से पहले राजीव गांधी बोफोर्स घोटाले के आरोपों से
जूझ रहे थे। कहा जाता है कि राजीव गांधी ने इसे देखते हुए सॉफ्ट हिंदुत्व
की लाइन पकड़ ली थी। वरिष्ठ पत्रकार मधुकर उपाध्याय भी ऐसा मानते हैं।
लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों के आगे सॉफ्ट हिंदुत्व की लाइन चली नहीं।
कांग्रेस 1989 का आम चुनाव हार गई। विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में नई
सरकार बनी। इस सरकार को बीजेपी बाहर से समर्थन दे रही थी। विश्वनाथ प्रताप
सिंह ने प्रधानमंत्री बनने के बाद अयोध्या विवाद से जुड़े दोनों पक्षों को
भरोसा दिया कि उन्हें कुछ वक्त दिया जाए तो वे इस मसले का हल निकाल देंगे।
लेकिन जब तक ऐसा हो पाता साधु संतों ने 30 अक्टूबर, 1990 को मंदिर निर्माण
की घोषणा कर दी।
आडवाणी की रथ यात्रा
वीपी सिंह ने पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने के लिए मंडल कमिशन की
सिफारिशें लागू करने का ऐलान कर दिया। जानकार बताते हैं कि वीपी सिंह सरकार
के इस फैसले से बीजेपी को लगा कि कहीं इससे उसका सवर्ण वोट बैंक प्रभावित न
हो जाए क्योंकि उस सरकार को बीजेपी समर्थन दे रही थी। इसी बीच बीजेपी के
बड़े नेता लालकृष्ण आडवाणी ने 25 सितंबर, 1990 से सोमनाथ से अयोध्या तक की
10 हजार किलोमीटर की रथ यात्रा का ऐलान कर दिया। वीपी सिंह सरकार ने इस
यात्रा को शुरुआत में रोकने की कोशिश नहीं की। 23 अक्टूबर, 1990 की सुबह
उन्हें बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। उसके बाद बीजेपी ने
केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद कांग्रेस के समर्थन से
केंद्र में चंद्रशेखर की सरकार बनी। लेकिन वह सरकार ज्यादा दिनों तक टिक
नहीं पाई। 1991 में दोबारा चुनाव हुए। 1991 में कांग्रेस की सरकार बनी।
पीवी नरसिंहा राव की केंद्र में सरकार बनी।
'रामलला हम आएंगे, मंदिर यहीं बनाएंगे'
जून, 1991 कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। अगले महीने
यानी जुलाई, 1991 में वह मुरली मनोहर जोशी के साथ अयोध्या गए और वहां
उन्होंने शपथ ली, 'रामलला हम आएंगे, मंदिर यहीं बनाएंगे।' कल्याण सिंह ने
अयोध्या दौरे के 15 दिनों बाद बड़ा फैसला किया। उन्होंने कहा कि विवादित
ढांचा और उसके पास की कुल 2.77 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया जाएगा। इतना ही
नहीं, विवादित ढांचे पर राम मंदिर बनाने के लिए बने ट्रस्ट राम जन्म भूमि
न्यास को कल्याण सिंह ने एक रुपए की लीज पर 2.77 एकड़ जमीन सौंप दी।
मुस्लिम संगठनों ने इसका विरोध किया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस फैसले पर
स्टे लगा दिया। विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंघल की अगुवाई में
संगठन के नेताओं ने कल्याण सिंह से उनके सरकारी निवास पर मुलाकात की और कहा
कि कार सेवकों को मंदिर तक जाने में दिक्कत होती। वीएचपी नेताओं ने
अयोध्या में विवादित ढांचे के पास बैरिकेड हटवाने की मांग की। कल्याण सिंह
पर अयोध्या में सुरक्षा व्यवस्था में ढील देने का दबाव बनाया जाने लगा।
सुरक्षा व्यवस्था में ढील की पुष्टि उत्तर प्रदेश के तत्कालीन डीजीपी
प्रकाश सिंह ने भी की है। सरकारी ट्रैक्टरों से जमीन को समतल किया गया। 31
अक्टूबर को कुछ कारसेवक विवादित ढांचे पर चढ़ गए और भगवा झंडा फहरा दिया
गया। कल्याण सिंह ने केंद्र सरकार को राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में
भरोसा दिलाया था कि अयोध्या में सुरक्षा के इंतजाम और सख्त कर दिए गए हैं।
विवादित ढांचे पर किसी को नहीं चढ़ने दिया जाएगा। हम अदालत के आदेश को
मानने के लिए बाध्य हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पक्के निर्माण पर रोक लगा रखी थी। इसके खिलाफ
राम जन्मभूमि न्यास ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने इस
अपील पर कहा कि विवादित ढांचे की सुरक्षा की जिम्मेदारी कल्याण सिंह सरकार
की है। अधिग्रहण पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश का पालन करें। लेकिन इसके
बावजूद कल्याण सिंह सरकार ने कथित तौर पर अयोध्या में सुरक्षा व्यवस्था
ढीली कर दी। इस बीच केंद्र सरकार ने अयोध्या में केंद्रीय सुरक्षा बल भेजने
की बात कही। इस पर कल्याण सिंह ने केंद्रीय गृह सचिव को चेतावनी देते हुए
कहा कि केंद्र गृहयुद्ध जैसे हालात पैदा करना चाहता है।
इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने दोनों पक्षों से खुद ही
बात करने की योजना बनाई। लेकिन जब तक नरसिंह राव इस योजना पर अमली जामा
पहनाते विश्व हिंदू परिषद ने नई सीमारेखा तय कर दी। वीएचपी ने 9 जुलाई से
कारसेवा शुरू करने का ऐलान कर दिया गया। लेकिन 9 जुलाई से दो दिन पहले
वीएचपी ने यह कहकर सबको चौंका दिया कि विवादित ढांचा तो गिराया जाएगा और
साथ ही राम मंदिर की मरम्मत की जाएगी। यह विश्व हिंदू परिषद की नई रणनीति
थी। अब परिषद राम मंदिर निर्माण की जगह राम मंदिर मरम्मत शब्द का प्रयोग
करने लगी थी।
अयोध्या में जुट गए थे 50-60 हजार कारसेवक
अयोध्या में 9 जुलाई को 50-60 हजार कारसेवक पहुंच गए। वहां पक्का
चबूतरा बनाया जाने लगा। कल्याण सिंह सरकार ने कहा कि अगर चबूतरा बनाए जाने
का काम रोका गया तो दंगा भड़क सकता है। इस बीच बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने
राम जन्म भूमि आंदोलन से खुद को अलग कर लिया। इस बारे में आडवाणी ने
नरसिंहा राव से मुलाकात की। राव ने आडवाणी से कारसेवा रुकवाने को कहा। इस
पर आडवाणी ने कहा कि उनका धार्मिक नेताओं पर कोई नियंत्रण नहीं है। आडवाणी
ने राव से ही संत समाज से बात करने के लिए कहा। इसके दो दिन बाद साधु संतों
का एक प्रतिनिधिमंडल राव से मिला। आप कार सेवा पर रोक लगा दें। आप कहते
हैं तो हम कार सेवा रोक देते हैं। साधु संतों ने राव को मंदिर निर्माण के
लिए तीन महीने का समय देते हैं। वे नवंबर, 1992 तक इंतजार करने को तैयार
थे। इस बीच नरसिंहा राव ने बड़ी पहल की। उन्होंने राम जन्म भूमि आंदोलन से
जुड़े नेताओं और बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी के बीच बातचीत करवाने के लिए
समझौता वार्ता शुरू कराई। 30 अक्टूबर, 1992 को विश्व हिंदू परिषद के
केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल ने दिल्ली में धर्म संसद की बैठक में समझौता
वार्ता के विफल होने की घोषणा कर दी गई और पुरानी मांगें दोहराई गईं। बैठक
में 6 दिसंबर से कारसेवा प्रारंभ करने की घोषणा कर दी गई।
माधव गोडबोले ने बनाया था प्लान, लेकिन राव नहीं ले सके थे फैसला
तत्कालीन गृह सचिव माधव गोडबोले ने अपनी किताब 'अनफिनिश्ड इनिंग्स'
में लिखा है कि उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव से अयोध्या में
मौजूद विवादित ढांचे की सुरक्षा को लेकर एक योजना के बारे में बताया था।
गोडबोले के मुताबिक उस योजना के तहत 20 हजार केंद्रीय फोर्स को रेल, सड़क
और वायु मार्ग से भेजने की बात कही गई गई थी। इसके साथ ही योजना के तहत
अयोध्या में कंपनियों को भेजने और कमांडो यूनिट लगाने की भी बात की गई थी।
गोडबोले का कहना है कि उन्होंने कहा था कि नरसिंह राव 24 नवंबर को इसके
बारे में संसद में घोषणा कर सकते हैं। गोडबोले के मुताबिक राव ने उन्हें
तैयार रहने को कहा था। लेकिन राव इस मामले में अंत में फैसला नहीं कर पाए।
गोडबोले के मुताबिक फैसला न लेना भी एक फैसला था।
कल्याण सिंह ने 19 नवंबर, 1992 को पीवी नरसिंह राव से दिल्ली में
मुलाकात की। इस मुलाकात के दौरान कल्याण सिंह ने राव से कहा कि अयोध्या में
जिस जमीन का अधिग्रहण उनकी सरकार ने किया गया है, उसे मूल ढांचे से अलग
रखा जाएगा। इसलिए कारसेवा की इजाजत दी जाए। लेकिन राव तुरंत इस पर कोई
फैसला नहीं ले सके और इस बारे में कैबिनेट की मीटिंग में चर्चा की बात कही।
जब यह मुद्दा कैबिनेट की मीटिंग में उठा तो वहां इस मामले में राष्ट्रीय
एकता परिषद की बैठक बुलाने का निर्णय लिया गया। 23 नवंबर को नरसिंह राव ने
एकता परिषद की बैठक बुलाई थी। लेकिन बीजेपी ने इसका बहिष्कार कर दिया।
बीजेपी का कहना था कि केंद्र सरकार मुस्लिमों का तुष्टिकरण कर रही है। साथ
ही यह भी कहा कि अगर कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त किया गया तो कारसेवक
अयोध्या कूच कर जाएंगे। इस बीच, केंद्र सरकार ने यूपी के राज्यपाल को
दिल्ली तलब किया और उनसे प्रदेश के हालात पर रिपोर्ट मांगी। जानकार बताते
हैं कि केंद्र सरकार की कोशिश राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर राज्य में
राष्ट्रपति शासन लगाने की थी। लेकिन जिस दिन यूपी के राज्यपाल दिल्ली
पहुंचे उसी दिन यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विवादित ढांचे की सुरक्षा
को लेकर हलफनामा दे दिया। इस वजह से उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गवर्नर ने
रिपोर्ट देना मुनासिब नहीं बताया। जानकार बताते हैं कि राव सरकार की चिंता
राम मंदिर का नक्शा था, जिसमें विवादित ढांचे को मंदिर का गर्भगृह बताया
गया था।
6 दिसंबर, 1992
5 दिसंबर, 1992 को लखनऊ में बड़ी रैली हुई। वहां अटल ने विवादित भाषण
में 'जमीन समतल' करने की बात यहीं कही थी। आडवाणी ने कहा था, 'संकल्प पूरा
करने के लिए बलिदान देना होगा तो बलिदान देंगे। सरकार की कुर्बानी देनी
होगी तो कुर्बानी देंगे।' इससे कारसेवक जोश से भर गए और रैली में नारेबाजी
होने लगी। कारसेवा के तय दिन यानी 6 दिसंबर, 1992 को कारसेवा के लिए दिन
में सवा 12 बजे का मुहूर्त तय किया गया था। तय कार्यक्रम के मुताबिक पहले
रामलला की पूजा की जानी थी और फिर सांकेतिक कारसेवा।
उस दिन अयोध्या में सुबह से ही वीएचपी के नेता भाषण दे रहे थे। वरिष्ठ
पत्रकार दिबांग के मुताबिक कारसेवक अंदर घुसने लगे। वे पीएसी के जवानों से
भिड़ गए। सरयू नदी में नावों को बांधने के लिए इस्तेमाल होने वाले लंगरों
को ऊपर फेंककर गुंबद पर लोग चढ़ने लगे। वहां मौजूद रहे कई पत्रकारों के
मुताबिक इसी बीच जत्थे के जत्थे में लोग विवादित ढांचे की तरफ बढ़ने लगे।
दोपहर 12 बजे एक कम उम्र का कारसेवक विवादित ढांचे पर चढ़ गया। इसके बाद
कारसेवकों की भीड़ गुंबद पर चढ़ गई। सवा 12 बजे गुंबद तोड़ना शुरू हो गया।
इस दौरान मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, विजयराजे सिंधिया,
प्रमोद महाजन और लालकृष्ण आडवाणी पास ही रामकथा कुंज पर बने स्टेज पर मौजूद
थे। लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक आडवाणी जैसे नेता कार सेवकों को
रोकने की कमजोर कोशिश कर रहे थे। इस आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक आडवाणी ने
कार सेवकों से कहा था कि वे विवादित ढांचा को न गिराएं इससे बहुत खून
बहेगा। इससे कार सेवक और भड़क गए। उन्होंने कहा कि वे यहां हलवा पूड़ी खाने
नहीं आए हैं। वे गोली खाने आए हैं। यहां यह जानना मौजूं है कि कल्याण सिंह
सरकार ने वहां मौजूद सुरक्षा बलों को लिखित निर्देश दे रखे थे कि कोई गोली
नहीं चलाएगा। इसके बाद पहला, दूसरा और फिर तीसरा गुंबद भी धराशायी हो गया।
शाम को 7 बजे, नक्शे के मुताबिक गर्भगृह के स्थान पर रामलला, सीता और
लक्ष्मण की मूर्तियों को उसी जगह स्थापित कर दिया गया जहां नक्शे के
मुताबिक गर्भ गृह था।
उस दिन क्या कर रहे थे प्रधानमंत्री
पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन सिंह ने अपनी किताब में दावा किया था कि
6 दिसंबर, 1992 को नरसिंह राव ने कहा था कि न तो उन्हें कोई फोन अटेंड
करने को कहा जाए और न ही किसी को मिलने के लिए भेजा जाए। हालांकि, तत्कालीन
गृह सचिव माधव गोडबोले इस दावे को गलत मानते हैं। उनका कहना है कि उस दिन
दोपहर साढ़े 12 बजे से हर आधे घंटे पर प्रधानमंत्री को सूचना दी जा रही थी।
नरसिंह राव ने शाम को कैबिनेट की बैठक बुलाकर कल्याण सिंह सरकार को
बर्खास्त करने की सिफारिश राष्ट्रपति को भेज दी थी। हालांकि, कल्याण सिंह
का दावा है कि उन्होंने उससे पहले ही अपना इस्तीफा सौंप दिया था।
राव ने क्यों नहीं उठाए थे उस दिन कदम?
1999 में पत्रकार शेखर गुप्ता से बातचीत में नरसिंह राव ने 6 दिसंबर
के दिन कोई बड़ा फैसला ने लेने का बचाव करते हुए कहा था कि अयोध्या में जो
लोग कार सेवा कर रहे थे, वे भी राम-राम बोल रहे थे और जो लोग सुरक्षा में
तैनात थे अगर वे गोलियां चलाते तो वे भी लोगों के मरने पर राम-राम बोलते।
ऐसे में दोनों के एक हो जाने का खतरा था। साथ ही राव का यह भी कहना था कि
अगर वे कल्याण सिंह की सरकार को तुरंत बर्खास्त करवाते तो भी तुरंत किसी
व्यवस्था के बन पाने में समय लगता। ऐसे में कानून व्यवस्था की हालत और भी
खराब हो जाती साथ ही कोई भी जिम्मेदारी नहीं लेता।
यूपी सरकार के वकील ने कहा था, मुझे गुमराह किया गया
6 दिसंबर की शाम सुप्रीम कोर्ट ने पूरे हालात का जायजा लेते हुए मामले
की सुनवाई की। इस दौरान अयोध्या विवाद में उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से
मुकदमा लड़ रहे वकील केके वेणुगोपाल ने कोर्ट के सामने खेद जाहिर करते हुए
कहा कि उनके पक्षकार ने उन्हें गुमराह किया है।
सब मेरी जिम्मेदारी है, किसी अफसर की नहीं: कल्याण
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने विवादित ढांचा
गिराए जाने के बाद एक जनसभा में कहा था, 'किसी अधिकारी की कोई गलती नहीं
है। सब मेरी जिम्मेदारी है। 6 दिसंबर को लगभग एक बजे जब केंद्र सरकार के
गृह मंत्री एसबी चव्हाण साहब का मेरे पास फोन आया कि मेरे पास सूचना है कि
कारसेवक गुंबद पर चढ़ गए हैं। तो मैंने कहा कि मेरे पास एक कदम आगे की
सूचना है। कारसेवक गुंबद पर चढ़ गए हैं और उसे तोड़ना भी शुरू कर दिया
है(यह सुनकर भीड़ तालियां बजाती है)।'
शिलान्यास की जगह पर मंदिर की इजाजत मिलती तो...
अटल बिहारी वाजपेयी ने अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने पर कहा
था कि वे नहीं चाहते थे ढांचा टूटे। उनका कहना था कि जिस जगह पर नारायण
दत्त तिवारी के शासनकाल में शिलान्यास किया गया था, वहां मंदिर निर्माण की
इजाजत दी जाती तो शायद विवाद नहीं होता।
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