DECISION: बहुओं ने शौचालय(TOILET) के लिए छोड़ा ससुराल
शौचालय ना होने की वजह से कुशीनगर के खेसिया गांव की छह बहुएं सोमवार को अपने मायके चली गईं।
उनमें से एक बहू गुड़िया ने कहा, "हमारे घर में शौचालय था इसलिए जब ससुराल में शौच के लिए बाहर जाना पड़ता था तो बहुत परेशानी होती थी। इसलिए हम अपने पति रमेश शर्मा से झगड़ा कर के चले आए हैं।"
गुड़िया के पति दिहाड़ी पर मजदूरी करते हैं। गुड़िया का मायका कुशीनगर के पड़ोस के जिले देवरिया के पांडे गांव में है। उन्होंने बताया कि उसके घर के शौचालय का पुनर्निर्माण हो रहा था लेकिन बारिश का पानी भर जाने से काम रुका हुआ है।
जो अन्य पांच बहुएं अपने मायके गई हैं, वे हैं नीलम शर्मा, सकीना, सीता, नजरुम निसा और कलावती।
उनमें से एक बहू गुड़िया ने कहा, "हमारे घर में शौचालय था इसलिए जब ससुराल में शौच के लिए बाहर जाना पड़ता था तो बहुत परेशानी होती थी। इसलिए हम अपने पति रमेश शर्मा से झगड़ा कर के चले आए हैं।"
गुड़िया के पति दिहाड़ी पर मजदूरी करते हैं। गुड़िया का मायका कुशीनगर के पड़ोस के जिले देवरिया के पांडे गांव में है। उन्होंने बताया कि उसके घर के शौचालय का पुनर्निर्माण हो रहा था लेकिन बारिश का पानी भर जाने से काम रुका हुआ है।
जो अन्य पांच बहुएं अपने मायके गई हैं, वे हैं नीलम शर्मा, सकीना, सीता, नजरुम निसा और कलावती।
खेसिया गांव की कहानी
महिलाओं की समस्याओं को उठाने वाली आशिमा परवीन कहती हैं कि यह सभी नई बहुएं हैं जिनकी शादी डेढ़-दो साल पहले हुई थी।
उन्होंने बताया, "गांव में नई दुल्हन का बाहर निकलना वैसे ही मुश्किल होता है। इस बरसात के मौसम में जब चारों तरफ़ पानी भरा हो तो शौच के लिए जाना मुसीबत ही है।"
आशिमा ने बताया कि गांव से बाजार आठ किलोमीटर दूर है और लौटते समय अंधेरा होने पर औरतों को खुले में ही शौच के लिए जाना पड़ता है।
वे कहती हैं, "ऐसे में जब आती-जाती गाड़ियों की रोशनी पड़ती है तो औरतें खड़ी हो जाती हैं। यह देख कर हमें बहुत दुख होता था और हमने शौचालय बनवाने की मांग भी उठाई।"
उन्होंने बताया, "गांव में नई दुल्हन का बाहर निकलना वैसे ही मुश्किल होता है। इस बरसात के मौसम में जब चारों तरफ़ पानी भरा हो तो शौच के लिए जाना मुसीबत ही है।"
आशिमा ने बताया कि गांव से बाजार आठ किलोमीटर दूर है और लौटते समय अंधेरा होने पर औरतों को खुले में ही शौच के लिए जाना पड़ता है।
वे कहती हैं, "ऐसे में जब आती-जाती गाड़ियों की रोशनी पड़ती है तो औरतें खड़ी हो जाती हैं। यह देख कर हमें बहुत दुख होता था और हमने शौचालय बनवाने की मांग भी उठाई।"
'लोगों में नहीं होता कोई असर'
कुशीनगर के जिलाधिकारी लोकेश एम मानते हैं कि खेसिया
गांव में शौचालय नहीं है। लेकिन वो कहते हैं कि इस समस्या के दो पहलू हैं।
पहला तो पैसे की दिक्कत। एक शौचालय बनवाने के लिए केवल दस हजार रुपये ही
मिलते हैं।
इसमें राज्य सरकार की तरफ से 4,500 रुपये और बाकी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना से केंद्र का अंश होता है। दूसरा पहलू है कि गांव वालों को शौचालय का इस्तेमाल करने के लिए लोगों प्रेरित करना।
उन्होंने बताया, "यहां कितने नुक्कड़ नाटक किए गए। गांव वालों को समझाया गया कि वे शौचालय का प्रयोग करें लेकिन कोई असर नहीं होता है। 90 फीसदी गांव के लोगों के पास मोबाइल है लेकिन वो शौचालय का इस्तेमाल नहीं करते हैं।"
इसमें राज्य सरकार की तरफ से 4,500 रुपये और बाकी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना से केंद्र का अंश होता है। दूसरा पहलू है कि गांव वालों को शौचालय का इस्तेमाल करने के लिए लोगों प्रेरित करना।
उन्होंने बताया, "यहां कितने नुक्कड़ नाटक किए गए। गांव वालों को समझाया गया कि वे शौचालय का प्रयोग करें लेकिन कोई असर नहीं होता है। 90 फीसदी गांव के लोगों के पास मोबाइल है लेकिन वो शौचालय का इस्तेमाल नहीं करते हैं।"
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