Friday 17 April 2015

मोदी की तीन देशों की यात्रा का नतीजा, मोदी पर क्यों मेहरबान हुआ यूरोप ?

मोदी की तीन देशों की यात्रा का नतीजा, मोदी पर क्यों मेहरबान हुआ यूरोप ?

18 अप्रैल 2015
कनाडा में मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीन देशों की यात्रा का आज आख़री दिन है. कई अहम समझौतों और मुद्दों पर बात करने के बाद मोदी शुक्रवार को भारत लौटने के लिए निकल चुके हैं.
मोदी फ्रांस, जर्मनी और कनाडा के लिए नौ दिन की यात्रा पर निकले थे. फ्रांस में 4 दिन और जर्मनी में 2 दिन बिताने के बाद मोदी पहुंचे 2 दिन की कनाडा यात्रा पर, जहां से वे शुक्रवार को भारत लौटेंगे.

इन तीनों देशों में क्या-क्या किया मोदी ने, डालते हैं एक नज़र

फ्रांस के साथ हुए समझौते

फ्रांस में मोदी
यहां फ्रांसीसी प्रधानमंत्री राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद से मुलाकात की. उन्होंने मेक इन इंडिया के विषय पर बात की.
ओलांद के साथ सैन नदी के ऊपर उनकी 'नाव पे चर्चा' काफ़ी चर्चा में रही.
  • फ़्रांस से भारत 36 रफ़ाएल लड़ाकू विमान जल्द से जल्द ख़रीदेगा.
  • महाराष्ट्र में जैतापुर में परमाणु ऊर्जा प्लांट के लिए सहयोग, छह प्लांट बनाने की ओर प्रगति.
  • भारत को तीन स्मार्ट शहर बनाने में भी मदद करेगा. इनमें पॉन्डिचेरी भी शामिल है जो कभी फ़्रांस का उपनिवेश था.
  • भारत में एयरबस आने वाले सायलों में दो अरब यूरो का निवेश करेगा.
कनाडा में मोदी
  • छात्र पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी ढूंढने के लिए ज़्यादा समय तक रुक पाएंगे.
  • दोनों देशों में वीज़ा नियम आसान करने पर भी सहमति.
  • सेमी हाई स्पीड रेल के क्षेत्र में सहयोग को लेकर सहमति.
  • फ़्रांस ने कहा कि मुंबई हमलों के आरोपी ज़की-उर रहमान लखवी की रिहाई हैरान करने वाली.
  • अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में समझौता
  • स्पोर्ट्स मेडिसिन, खेल के क्षेत्र में महिला और विकलांगो की भागीदारी पर समझौता

जर्मनी के साथ हुए समझौते

जर्मनी में मोदी
  • दोनों देशों के मध्य खुले व्यापार पर समझौता.
  • शहरी विकास पर साझेदारी, भारत में वर्किंग ग्रुप बनेगा.
  • भारत में जर्मनी कंपनियों के लिए अधिक सुविधा देने पर ताकि जर्मन निवोशक अधिक निवेश कर सकें.
  • शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग, दोनों देशों के विश्वविद्यालयों के बीच साझेदारी.

कनाडा के साथ हुए समझौते

कनाडा में मोदी
  • पांच वर्षों में भारत, कनाडा से तीन हज़ार टन से ज़्यादा यूरेनियम खरीदेगा. इसका इस्तेमाल भारत के परमाणु कार्यक्रम में किया जाएगा.
  • तेल और गैस के क्षेत्र में साझेदारी बढ़ाने पर सहमति. साथ ही अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में काम करने पर सहयोग.
  • भारत में कनाडा की ग्रेंड चैलैंजेस 25 लाख केनेडियन डॉलर का निवेश करेगी.
  • टोरंटो और नई दिल्ली के बीच एयर कनाडा की सीधी उड़ानों पर सहमति.
  • आंतकवाद के ख़िलाफ़ दोनों देश मिल कर लड़ेंगे.
  • नेशनल स्किल डेवेलेपमेन्ट काउंसिल ऑफ़ इंडिया और कनाडा की शिक्षा संस्थानों और अन्य कई
  • संस्थानों के मध्य 13 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए.

मोदी पर क्यों मेहरबान हुआ यूरोप ?

फ़्रांस के राष्ट्रपति ओलांद के साथ उनके निवास एलीज़े पैलेस में मोदी
फ़्रांस के राष्ट्रपति ओलांद के साथ उनके निवास एलीज़े पैलेस में मोदी
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी फ्रांस यात्रा के दौरान पेरिस में बसे कई प्रवासी भारतीयों से मिले. उन सबके लिए ये एक बड़े सपने के पूरे होने के जैसा था.
मगर फ़्रांस के राष्ट्रपति फ़्रांसुआ ओलांद और जर्मनी की चांसलर एंगेला मर्केल के साथ जर्मनी में मुलाक़ात, शायद मोदी के लिए कुछ समय पहले तक सपने से कम नहीं था.
2002 के गुजरात दंगों को लेकर यूरोपीय देशों ने एक तरह से मोदी का नाम काली सूची में डाला हुआ था. मगर अब फ़्रांस और जर्मनी जैसे बड़े देशों में मोदी का स्वागत और सम्मान हो रहा है.

बाज़ार हावी

जर्मन चांसलर एंगेला मरकल के साथ नरेंद्र मोदी

फ़्रांस में बसे रमेश मुलभार भातीय विदेश सेवा के पूर्व अधिकारी हैं और अब एक अंतरराष्ट्रीय कंसल्टेंसी फ़र्म के प्रमुख और सीआईआई के सलाहकार हैं.
उनका मानना है कि मोदी को लेकर यूरोप के मन बदलने के पीछे एक व्यावहारिक कारण है.
वो कहते हैं, ”यूरोप को ज़रूरत है कि अपने उत्पादों के निर्यात के लिए कहीं कोई बाज़ार मिले और चीन के बाद सबसे बड़ा बाज़ार है भारत. इसमें उनकी दिलचस्पी है और भारत में रास्ते भी खुल रहे हैं. वे ज़रूर कोशिश करेंगे. अंतरराष्ट्रीय संबंधों में लोग पुरानी बातों को जल्दी भुला देते हैं."
मगर मोदी के विदेश दौरों को लेकर भारत की मीडिया में जैसा उत्साह दिखाया जाता है, क्या वैसा उत्साह उन देशों में होता है जहाँ मोदी जाते हैं?

दोनों को है ज़रूरत

फ़्रांस में एयरबस के कारखाने में मोदी
पेरिस में बसी भारतीय पत्रकार कहती हैं, "जब ओबामा या पुतिन या चीन के नेता आते हैं, तब तो यहाँ के मीडिया में काफ़ी चर्चा होती है, मगर भारत के किसी नेता के आने पर वैसी ख़बर नहीं होती. इस बार भी मोदी के आने पर फ़्रांस में ख़बर तब छपी जब उन्होंने 36 लड़ाकू विमानों की ख़रीद का सौदा किया क्योंकि ये उनके मुनाफ़े की ख़बर थी."
यानी ज़रूरत दोनों तरफ़ है, यूरोप की नज़र बाज़ार पर है, तो भारत को चाहिए अमरीका-ब्रिटेन-रूस-चीन जैसे ताक़तवर देशों को हासिल अंतरराष्ट्रीय रुतबा.
ऐसे में हैरानी की बात नहीं है कि दोनों पक्ष अपने आपसी संबंधों की गाड़ी को आगे बढ़ाकर अपने-अपने लक्ष्य तक पहुँचने की कोशिश करेंगे.

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