Saturday, 18 April 2015

Nuclear Tension: परमाणु हथियार प्रतिद्वंद्विता - परमाणु तनाव के साए में दक्षिण एशिया (#India #China #Pakistan #iran #rusia #USA)

Nuclear Tension:

परमाणु हथियार प्रतिद्वंद्विता - परमाणु तनाव के साए में दक्षिण एशिया

18 अप्रैल 2015
ईरान और दूसरे देशों के बीच परमाणु समझौता
ईरान और दुनिया के छह प्रमुख देशों के बीच परमाणु समझौते के बाद दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी परमाणु हथियारों का प्रसार रोकने की बात उठ रही है.
दक्षिण एशिया एक अस्थिर इलाक़ा है और यहां सैन्य और परमाणु शक्ति को लेकर होड़ बढ़ गई है.
इस इलाके में हथियारों की यह प्रतिद्वंद्विता, मध्य-पूर्व के देशों में परमाणु हथियारों के प्रयोग के ख़तरे की आशंका के बीच दब सी गई है.

पढ़ें लेख विस्तार से

पाकिस्तानी टैंक
विशेषज्ञों के अनुसार भारत, पाकिस्तान और चीन के बीच परमाणु क्षमता में एक दूसरे से आगे निकलने की दौड़ जैसी शुरू हो गई है.
चीन भले ही तकनीकी रूप से दक्षिण एशिया में नहीं शामिल किया जाता हो, लेकिन उसकी सीमाएँ भारत और पाकिस्तान दोनों से जुड़ी हैं.
विश्लेषकों के अनुसार, इन देशों के बीच ऐसी होड़ का अंजाम ख़तरनाक हो सकता है. इन देशों के बीच परस्पर अविश्वास और युद्ध के इतिहास से मामला और भी ज़्यादा पेचीदा बन जाता है.
पहले पाकिस्तान की बात करें. आर्थिक और राजनीतिक रूप से असुरक्षित होने के बावजूद पाकिस्तान हथियारों के मामले में भारत से होड़ करने में लगा रहता है.
माना जाता है कि पाकिस्तान दुनिया के उन देशों में से है जिसके परमाणु हथियारों के जख़ीरे में दुनिया में सबसे तेज़ बढ़ोतरी हुई है.
एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक दशक में पाकिस्तान ने अपनी मिसाइलों की संख्या तीन गुना बढ़ा ली है.
पाकिस्तानी सत्ताधारी वर्ग के लिए परमाणु शक्ति भारत के राजनीतिक और सैन्य ताक़त का एक तरह का जवाब है.

पाकिस्तान की नीति

पाकिस्तानी सेना
परमाणु युद्ध के बारे में पाकिस्तान की कोई आधिकारिक नीति नहीं है, लेकिन सरकारी बयानों में 'अंकुश' और 'डर बनाए रखने (डिटरेंस)' की बात कही जाती है.
पाकिस्तान ने हाल ही में चीन से आठ पनडुब्बियों की ख़रीद को मंजूरी दी है. रिपोर्टों से यह साफ़ नहीं है कि इनमें परमाणु मिसाइल इस्तेमाल करने की क्षमता है या नहीं.
कहा जा रहा है कि अरबों का यह सौदा चीन के सबसे बड़े रक्षा सौदों में से एक है.
इस सौदे के बाद हिंद महासागर में दबदबे की होड़ और बढ़ जाएगी. यह ऐसा इलाक़ा है जो क्षेत्र में प्रतिद्वंद्विता और तनाव का मुख्य स्रोत है.
यह सौदा इसी प्रतिद्वंद्विता के एक पहलू पर रोशनी डालता है.
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान अपने आधे हथियार चीन से आयात करता है.
चीन और पाकिस्तान दशकों से एक दूसरे के क़रीबी रहे हैं. दोनों की नज़दीकी की बड़ी वजह है दोनों का भारत के प्रति संदेह.
ख़बरों के अनुसार, पाकिस्तान ने हाल ही में एक मिसाइल का परीक्षण किया है जो परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है.

हमले की क्षमता

चीन का टैंक
पाकिस्तान के पास पहले से ही मध्यम-दूरी की शाहीन-3 मिसाइल है, जिसकी मारक क्षमता क़रीब 1700 मील मानी जाती है. यानी भारत आसानी से इसकी जद में आ सकता है.
न्यूयॉर्क टाइम्स के एक हालिया लेख में कहा गया है कि पाकिस्तान कम दूरी के रणनीतिक परमाणु हथियार विकसित कर रहा है.
भारत और पाकिस्तान के बीच 1947, 1965 और 1971 में हुए तीन युद्धों को देखते हुए, इन दोनों देशों के बीच प्रतिद्वंद्विता को किसी को भी कम करके नहीं देखना चाहिए.
विश्लेषकों के अनुसार, भारत के पास 110 मिसाइलें हैं और वो अपने परमाणु कार्यक्रम को जारी रखे हुए है, हालांकि थोड़ी धीमी रफ़्तार से.
कुछ रिपोर्टों के अनुसार, भारत ने इस मामले में मिलीजुली रणनीति अपनाई है, जिसमें कम दूरी और लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें, परमाणु पनडुब्बियां और क्रूज़ मिसाइलें शामिल हैं.
भारत ने अपने पहले परमाणु हथियार का साल 1974 में परीक्षण किया था. परमाणु हथियार के मामले में भारत की 'पहले हमला नहीं करने' की रणनीति है. वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हाल ही में इसे दोहराया है.

चीन के हथियार

भारतीय टैंक
सुरक्षा, भारत की परमाणु नीति का प्रमुख हिस्सा है. चीन की परमाणु क्षमता भारत के लिए चिंता का विषय है.
चीन के पास ज़्यादा विकसित हथियार हैं और उसकी सेना भी भारत से बड़ी है. अपने पुराने दुश्मन पाकिस्तान की चीन से परंपरागत नज़दीकी भी भारत के लिए चिंता का विषय है.
एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन के पास क़रीब 250 मिसाइलें हैं. इनमें कम दूरी, मध्यम दूरी और लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें शामिल हैं.
चीन ज़मीन, हवा और समुद्र तीनों जगहों से परमाणु हथियार प्रयोग करने वाले सिस्टम में रुचि रखता है.
चीन ने कोरिया युद्ध के मद्देनज़र 1950 के दशक में चीन ने परमाणु हथियारों में रुचि लेनी शुरू की थी.
माना जाता है कि उसने 1964 में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था. विश्लेषकों के अनुसार, चीन अपनी परमाणु क्षमता को विकसित करता जा रहा है.
चीन ने हमेशा कहा है कि उसकी परमाणु क्षमता रक्षा के लिए है और उसकी 'पहले हमला न करने' की नीति है.
हालांकि चीन परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) और व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) पर हस्ताक्षर कर चुका है.

बढ़ती चुनौती

भारत और पाकिस्तान
परमाणु हथियारों को लेकर दक्षिण एशिया में मची होड़ पहले से ही कई तरह की समस्याओं से जूझ रहे इस क्षेत्र में अस्थिरता के एक बड़े कारण के रूप में देखा जा रहा है.
ये इलाक़ा सीमा विवादों और सीमापार चरमपंथ से जूझ रहा है. दुनिया के दूसरे देशों के दख़ल देने की संभावना भी सीमित है, क्योंकि भारत और पाकिस्तान दोनों ही एनपीटी में शामिल नहीं हैं.
वहीं पाकिस्तान को चरमपंथी समूहों से लगातार चुनौती मिलती रही है. पाकिस्तानी अधिकारी जोर देकर कहते हैं कि उनके परमाणु हथियार सुरक्षित हैं, लेकिन ये आशंका बार-बार जताई जाती है कि परमाणु हथियार चरमपंथियों के हाथों में पड़ सकते हैं.
दुनिया के 90 प्रतिशत परमाणु हथियार रूस और अमरीका के पास हैं. फिर भी परमाणु शक्ति संपन्न तीनों देशों के कारण दक्षिण एशिया आने वाले समय में दुनिया का ध्यान शायद ज़्यादा खींचेगा.

1 comment:


  1. Thank you for good, Good post. I was very interested in the article, it's quite inspiring I should admit. I like visiting you site since I always come across interesting articles like this one. Great Job, I greatly appreciate that. Do Keep sharing! Regards.
    best assignment service

    ReplyDelete