पीएम नरेंद्र मोदी के वादों का 'अर्धसत्य'...
15 अगस्त 2015
पिछले साल स्वतंत्रता दिवस के मौक़े पर लाल क़िले से दिए अपने
भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई वादे किए थे और कई योजनाओं का ऐलान किया था.
एक साल बाद इन वादों पर वो कितने खरे उतरे हैं और कितनी योजनाओं पर अमल हुआ है?इन योजनाओं पर हुई कार्रवाई को सरकारी आंकड़ों के तराज़ू में तौलें, तो मोदी सरकार मोटे तौर पर अपने वादों पर खरी उतरती नज़र आती है.
कहते हैं, तस्वीरों की तरह ही आंकड़ें भी झूठ नहीं बोलते. लेकिन अकसर इन आंकड़ों के पीछे का सच दिखाई नहीं देता है.
आंकड़ों का सच
योजना शुरू हुई और इस साल जून के अंत तक देश भर में लगभग 18 करोड़ नए बैंक खाते खुले.
डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड ग़रीबों में बांटे गए, ताकि सरकारी सब्सिडी सीधे उनके खाते में जाए और वो इन कार्ड का इस्तेमाल कर सकें.
एक साल से कम समय में 18 करोड़ लोगों के बैंक खाते खोलना सराहनीय है. इन आंकड़ों से सरकार की कोशिशें स्पष्ट होती हैं.
इसे ऐसे समझा जा सकता है कि अगर 100 कुएं खोदें और 50 कुओं में पानी न हो तो इन कुओं के खोदने का क्या फ़ायदा? बिजली के खंभे लगा दें और बिजली की सप्लाई न हो, तो इससे लोगों को कोई लाभ नहीं होगा.
स्वच्छ भारत अभियान का सच
जो लोग सिर्फ़ आंकड़ों पर नज़र रखते हैं, वे सरकार की पीठ ठोंक सकते हैं. सरकारी आंकडों के मुताबिक़, लड़कों के लिए 85 फ़ीसदी स्कूलों में शौचालय बन चुके हैं, लड़कियों के लिए 91 प्रतिशत स्कूलों में टॉयलेट बन कर तैयार हैं.
लेकिन, जब आपको यह पता चले कि इनमें से लगभग 70 फ़ीसदी शौचालयों में पानी नहीं है, तो आपको मायूसी हो सकती है.
वादों का अाधा सच
लेकिन देश भर में हर साल 1.2 करोड़ लोगों को नौकरियों की ज़रूरत होगी. इसके इलावा खेती करने वाले 26 करोड़ से ज़्यादा युवाओं को इस योजना में शामिल नहीं किया गया है.
'मेक इन इंडिया'
इस योजना के तहत विदेशी निवेश तो ठीक है, लेकिन अगर योजना को कामयाब बनाना है तो बुनियादी ढांचों को ठीक करना होगा.
कारखाने और उद्योग के लिए ज़मीन चाहिए. मोदी सरकार अब तक इसमें बुरी तरह नाकाम रही है.
सरकार ने नए उद्योग और उत्पादन के लिए भूमि अधग्रहण विधेयक तैयार तो किया, पर उसे संसद में अब तक पारित नहीं करवा पाई है.
नए वादे?
कम ही लोगों को याद होगा कि नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2013 को भुज में स्वतंत्रता दिवस पर एक जोशीला भाषण दिया था. वो उस समय गुजरात के मुख्य मंत्री थे, लेकिन भाषण का लहजा प्रधानमंत्री वाला था.
उस समय उनके समर्थकों ने कहा यह अगले साल के स्वतंत्र दिवस के भाषण का एक ड्रेस रिहर्सल है.
नरेंद्र मोदी को अधिकृत रूप से भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद का उमीदवार उस समय तक घोषित नहीं किया गया था. उन्होंने उस दिन के भाषण के बाद इस पद का सेहरा अपने सिर पर ज़रूर पहन लिया था.
जोशीला भाषण
उस समय उन्हें प्रधानमंत्री बने हुए लगभग तीन महीने हो चुके थे. भारतीय जनता पार्टी में आम चुनाव में उनकी भारी जीत का नशा पूरी तरह नहीं उतरा था. हाँ, कुछ लोग यह ज़रूर कहने लगे थे कि मोदी सरकार यूपीए-3 है.
एक साल बाद मोदी के आलोचकों की तादाद काफ़ी बढ़ी है. अबकी बार नरेंद्र मोदी के वादों और उन्हें पूरा करने के बीच के कथित फ़ासलों पर भी प्रतिक्रियाएं होंगीं. मोदी तैयार हैं, तो उनके विरोधी भी सतर्क हैं.
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