Monday, 13 January 2014

पोलियो: 13 जनवरी 2014 को भारत में पोलियो का एक भी मामला न मिले हुए तीन साल

पोलियो: 13 जनवरी 2014 को भारत में पोलियो का एक भी मामला न मिले हुए तीन साल

 

जहां सरकारी काम दिखा भी और हुआ भी

 सोमवार, 13 जनवरी, 2014 को 19:40 IST तक के समाचार

पिछले तीन साल से भारत में पोलियो का कोई नया मामला सामने नहीं आया है
स्वास्थ्य सेवाओं की तमाम खामियों और संसाधनों के अभाव के बावजूद भारत ने नए साल की शुरुआत एक गौरवपूर्ण उपलब्धि के साथ की है. 13 जनवरी 2014 को भारत में पोलियो का एक भी मामला न मिले हुए तीन साल हो गए हैं.
भारत की इस उपलब्धि ने पूरे दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से पोलियो मुक्त प्रमाणपत्र पाने का रास्ता बना दिया है.
दक्षिण पूर्व एशियाई देशों को पोलियो मुक्त प्रमाणपत्र जारी करने वाले अधिकारी इसी साल मार्च के आखिरी हफ़्ते में नई दिल्ली आने वाले हैं.
डब्ल्यूएचओ के एक प्रवक्ता ने बीबीसी को बताया, "यदि आयोग इस बात से संतुष्ट हो जाता है कि इस दक्षिण एशियाई क्षेत्र में कोई पोलियो वायरस नहीं है और यहां निगरानी तंत्र भी संतोषजनक है और पहले चरण के तहत जांच की सुविधाएं भी पूरी हो चुकी हैं तो डब्ल्यूएचओ की ओर से इस क्षेत्र को पोलियो मुक्त घोषित कर दिया जाएगा."
उन्होंने कहा, "भारत की उपलब्धि से पता चलता है कि यदि सही तरीके से और दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति के साथ काम किया जाए तो मौजूदा समय में पोलियो उन्मूलन की रणनीति दुनिया के कठिनतम क्षेत्रों में भी इसका ख़ात्मा कर सकती है."
"भारत की उपलब्धि से पता चलता है कि यदि सही तरीके से और दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति के साथ काम किया जाए तो मौजूदा समय में पोलियो उन्मूलन की रणनीति दुनिया के कठिनतम क्षेत्रों में भी इसका ख़ात्मा कर सकती है."
डब्ल्यूएचओ के प्रवक्ता
साल 2009 में भारत में पोलियो के 741 मामले सामने आए थे जो कि दुनिया में किसी भी देश में सबसे ज्यादा थे. ये आँकड़े वैश्विक पोलियो उन्मूलन इनीशिएटिव नामक संस्था की ओर से जारी किए गए थे.

चुनौतियों का सामना

कुछ समुदायों में पोलियो ड्रॉप को लेकर कई तरह की आशंकाएं थीं.
तमाम सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं के चलते भारत को पोलियो उन्मूलन के लिए बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा. इनमें उच्च जनसंख्या घनत्व, उच्च जन्म दर, साफ़-सफ़ाई की ख़राब व्यवस्था, डायरिया जैसी बीमारी के अलावा मुस्लिम समुदाय में पोलियो वैक्सीन को लेकर फैली भ्रांतियां भी शामिल थीं.
यूनिसेफ के भारत स्थित केंद्र के पोलियो प्रमुख निकोल ड्यूश कहते हैं, "इन गतिरोधों के बावजूद भारत ने दुनिया को ये दिखा दिया कि ऐसी बीमारियों को कैसे जीता जा सकता है."
भारत में पोलियो उन्मूलन के लिए बहुत सी बातें ज़िम्मेदार हैं जिनमें साल 2010 में पिलाई जाने वाली बाइवैलेंट वैक्सीन भी शामिल है. लेकिन जिन दो रणनितियों ने इस दिशा में सबसे ज्यादा चुनौतियों का सामना करना पड़ा उनमें छोटे स्तर पर योजनाएं बनाना और सामाजिक तौर पर लोगों को इसके बारे में जागरूक करना प्रमुख थे.
भारत सरकार ने यूनिसेफ की मदद से सामाजिक जन-जागरण के माध्यम से पोलियो उन्मूलन के लिए प्रयास किया और स्पष्ट है कि बिना व्यापक पैमाने पर सामाजिक जागरूकता के ये लक्ष्य हासिल नहीं हो सकता था. ख़ासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में साल 2001 में शुरू किया गया विशेष जागरूकता अभियान की भी इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका थी.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ ज़िलों में लोगों से ये कहा जा रहा था कि वो अपने बच्चों को पोलियो ड्रॉप न पिलाएं क्योंकि इससे उनके बच्चों में नपुंसकता आ जाएगी.
ऐसी अफ़वाहों का काफी असर भी हुआ और इन इलाकों में लोगों ने बड़े पैमाने पर पोलियो ड्रॉप्स को अपने बच्चों को पिलाने से मना कर दिया.
इसके बाद भारत सरकार और उसका सहयोग दे रहीं अन्य संस्थाओं ने इसके लिए कुछ ख़ास रणनीति अपनाने पर ज़ोर दिया. इसके बाद ''107 ब्लॉक रणनीति'' नामक एक ख़ास कार्यक्रम चलाया गया.
इसके तहत उत्तर प्रदेश और बिहार में पोलियो उन्मूलन के लिए ख़ास योजना बनाई गई. अब उन समुदायों में जागरूकता अभियान को और तेज़ करने पर ज़ोर दिया गया जहां लोग अपने बच्चों को पोलियो ड्रॉप नहीं पिला रहे थे.
गंदगी वाली जगहों पर पोलियो ड्रॉप का बहुत असर नहीं हो रहा था इसलिए लोगों को साफ़-सफ़ाई, हाथ धोने और ऐसी तमाम चीजों के प्रति लोगों को जागरूक किया गया जिससे कि डायरिया जैसी बीमारियां न हो सकें.
भारत में पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम को तब और सफलता मिलनी शुरू हुई जब इसे ग़रीब इलाकों और मुस्लिम इलाकों में ख़ासतौर पर इसमें तेज़ी लाई गई. इसके तहत सरकार ने मुस्लिम समुदाय के धर्म गुरुओं को विश्वास में लिया और अपने अभियान में उनसे सहयोग करने को कहा.
बिहार में लोगों का दूसरी जगहों पर रहना एक बड़ी समस्या थी और एक समय पोलियो के मामले यहां सबसे ज़्यादा थे. लेकिन इसके लिए यहां बार-बार पोलियो वैक्सीन देने का कार्यक्रम रखा गया ताकि जो बच्चे एक बार इसे लेने से रह जाएं उन्हें दोबारा पोलियो ड्रॉप पिलाया जा सके.

आगे क्या होगा?

हालांकि भारत में पोलियो के ख़तरनाक वायरस का ख़तरा लगभग समाप्त हो चुका है लेकिन बाहर से इसके आने का ख़तरा तो बना ही है बल्कि ये कहें कि साल 2013 से ये और बढ़ गई है क्योंकि मध्य पूर्व और कुछ अफ्रीकी देशों में इसका उभार देखने को मिला है.
इसके अलावा अफगानिस्तान, पाकिस्तान और नाइजीरिया में भी पोलियो वायरस के नए मामले सामने आए हैं.
यूनिसेफ के भारत स्थित पोलियो केंद्र के प्रमुख ड्यूश कहते हैं, "भारत को इस बारे में लगातार सतर्क रहने की जरूरत है और जब तक पूरी दुनिया से पोलियो का उन्मूलन न हो जाए तब तक हर समय ये कोशिश जारी रखनी होगी कि कोई भी बच्चा पोलियो से संक्रमित न होने पाए. इसके लिए भारत में साल 2014 और 2015 के लिए दो राष्ट्रीय स्तर के और चार क्षेत्रीय स्तर की योजनाएं बनाई गई हैं."
ड्यूश कहते हैं, "राष्ट्रीय स्तर की योजना में करीब 23 लाख पोलियो कर्मचारी करीब 17 करोड़ बच्चों को पोलियो टीका मुहैया कराएंगे. इसके तहत जागरूकता अभियान के साथ-साथ निगरानी तंत्र को भी मज़बूत बनाया जाएगा."
भारत ने पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, बर्मा और भूटान की सीमाओं पर पोलियो टीकाकरण केंद्र भी बनाए हुए हैं ताकि अंतरराष्ट्रीय सीमाएं पार करने वाले पांच साल तक के बच्चों को पोलियो ड्रॉप पिलाई जा सके.
पोलियो पर सफलतापूर्वक नियंत्रण करने का भारत को कई तरह से फ़ायदा हुआ है. राष्ट्रीय पोलियो निगरानी परियोजना से जुड़े स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक डब्ल्यूएचओ और भारत सरकार के सहयोग से पोलियो उन्मूलन के लिए जो रणनीति अपनाई गई, उसी तरह टीकाकरण की अन्य योजनाओं पर भी अपनाई जाएगी.
ये एक अच्छी ख़बर है. भारत में बड़ी संख्या में बच्चों की मौत सिर्फ इसलिए हो जाती है कि उन्हें तमाम बीमारियों के टीके नहीं सुलभ हो पाते.

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