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मोदी सरकारः छमाही रिपोर्ट 6 योजनाओं की कसौटी पर
प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने आम चुनाव के दौरान मतदाताओं से कई वादे किए थे. भारत की
जनता ने उन्हें अपना मत दिया और छह महीने पहले वो प्रधानमंत्री की कुर्सी
पर बैठे.
शुरू के दिनों में जनता से उनके वादे जारी रहे, जिससे जनता की अपेक्षाएं बढ़ती चली गईं.उनके अच्छे दिन का वादा हो या काले धन को देश में 100 दिनों के अंदर वापसी का एलान- जनता ने उनपर भरोसा किया और देश भर में उम्मीद की एक नई किरण जाग उठी.
पर क्या उनके वादे पूरे हुए? क्या मोदी सरकार अपने एलानों पर अमल कर सकी?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के छह महीने पूरे होने पर उनके कुछ वादों और एलानों पर एक नज़र डाल रहे हैं.
पढ़िए विस्तार से रिपोर्ट
काले धन की वापसी
मंगलवार को संसद में काले धन की वापसी पर बहस के दौरान कांग्रेस ने उसी तरह से भाजपा नीत सरकार को आड़े हाथों लिया जैसे विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने कांग्रेस सरकार को लिया था.
राजनीति में चोला बदलता रहता है. लेकिन ये अपनी जगह सच है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काले धन को 100 दिनों के अंदर देश में वापस लाने के अपने चुनावी वादे को अमलीजामा पहनाने में नाकाम रहे.
काले धन की सूची में नामों को बाहर करने के मुद्दे से भी भाजपा नीत सरकार ठीक तरह से जूझने में विफल रही.
विशेषज्ञ कहते हैं काला धन वापस आने में कई साल लग सकते हैं. अब ये मामला सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित विशेष जांच दल के हाथों में आ गया है
मेक इन इंडिया योजना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव के दौरान और सत्ता में आने के बाद लगातार विकास की बातें करते आए हैं.मेक इन इंडिया उनका एक बड़ा सपना है.
वो भारत को चीन की तरह निर्माण का गढ़ बनाना चाहते हैं. ज़ाहिर है इसके लिए अरबों डॉलर के विदेशी निवेश की ज़रूरत है.
उन्होंने अपने अहम भाषणों में विदेशी और देसी निवेशकों से अपील की है कि वो भारत में निवेश करें. सरकार उन्हें हर तरह की सुविधाएँ देने के लिए बाध्य होगी.
फिलहाल निर्माण क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद में 15 फीसदी का योगदान है.
मोदी सरकार इस योगदान को बढ़ा कर 25 प्रतिशत करना चाहती है. सरकार ने ये अभियान अभी शुरू ही किया है. इसे अमली जामा पहनाने में समय लगेगा.
100 स्मार्ट सिटीज़
भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में स्मार्ट सिटीज़ का वादा किया था.
समझा ये जाता है कि ये प्रधानमंत्री मोदी की ख़ास और पसंदीदा परियोजना है. उनकी सरकार ने इस तरफ कदम उठाया है.
जुलाई में अपने पहले बजट में सरकार ने इस परियोजना के लिए 7,060 करोड़ रुपये रखे हैं.
सरकार का अंदाज़ा है कि इस परियोजना में हर साल 35,000 करोड़ रुपये का खर्च आएगा.
इसमें जापान, अमरीका और सिंगापुर जैसे देशों ने अहम भूमिका निभाने का वादा किया है, लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि बिजली और पीने के साफ पानी जैसे बुनियादी ढाँचे की कमी के कारण इसमें बाधाएं आ सकती हैं.
जन धन योजना
पिछड़े और ग़रीब लोगों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में शामिल करने की मोदी सरकार की ये योजना सराहनीय है.
किसानों और ग़रीब लोगों के लिए बैंक खाता खुलवाने की तरफ सरकार ने ठोस कदम उठाए हैं. सरकार चाहती है कि समाज के पिछड़े वर्ग को सीधे क़र्ज़ देने के लिए उनके नाम खाते खुलें.
इस योजना के अंतर्गत हाल तक पांच करोड़ नए बैंक खाते खोले गए हैं.
लेकिन इसके आलोचक कहते हैं कि खाते तो खुले हैं, लेकिन इनमें पैसे नहीं हैं. कुछ आलोचक ये भी कहते हैं कि खाते खोलने के साथ ग्रामीण इलाक़ों में वित्तीय ट्रेनिंग ज़रूरी है.
डिजिटल इंडिया
स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में '2019 तक डिजिटल इंडिया' का विज़न दिया था.
देश की युवा पीढ़ी ने इस एलान का भरपूर स्वागत किया था. इस योजना में ई-गवर्नेंस, सब के लिए ब्रॉडबैंड, आईटी की शिक्षा और दूसरे क्षेत्रों में इस्तेमाल तथा वाईफाई वाले शहर शामिल हैं.
सरकार ने इसके लिए शुरू में 500 करोड़ रुपये की रकम खर्च करने का इरादा किया.
इस पर काम शुरू भी हो गया है.
इसके अंतर्गत सरकार ने पेंशनरों के लिए 'जीवन प्रमाण' डिजिटल सर्टिफ़िकेट जारी करना शुरू कर दिया है.
स्वच्छ भारत अभियान
नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के अवसर पर झाड़ू उठाकर सफाई अभियान शुरू किया तो उनके आलोचक भी उनकी प्रशंसा किए बग़ैर नहीं रह सके.
आम आदमी से जुड़ने की ये बेहतरीन कोशिश थी. इस अभियान पर मोदी को जब मौक़ा मिलता है, बोलते हैं और ऐसा लगता है इस पर वो आगे भी जोर देते रहेंगे.
लेकिन आलोचक कहते हैं स्वछ भारत से मोदी केवल प्रचार चाहते हैं.
वो कहते हैं इस अभियान के बाद भी सरकारी दफ्तरों में गंदगी उसी तरह से है जैसे पहले थी और शहरों में भी पहले की तरह सफाई का अभाव है.
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