Wednesday, 20 May 2015

Modi Govt One Year: ‘मोदी का जादूः ख़त्म या बरक़रार?' ...BJP

Modi Govt One Year: ‘मोदी का जादूः ख़त्म या बरक़रार?' ...BJP

21 MAY 2015
मैं नरेंद्र मोदी का भक्त नहीं हूँ. क्या इसलिए कि वो हिन्दू हैं और मैं मुसलमान?
या इसलिए कि कट्टरवादी हिन्दुओं के खि़लाफ़ हमारे खून में ही अदावत है? या फिर इसलिए कि मैं एक सेक्युलर इंसान हूँ जो हिन्दू-मुस्लिम सभी कट्टरवादियों के खि़लाफ़ है?
मैं एक साल पूरे होने पर मोदी सरकार की उपलब्धियों पर एक ब्लॉग लिखने बैठा हूँ.
अब अगर उनकी अधिक तारीफ़ करूँ तो कुछ लोग कह सकते हैं कि मैं खुद को कट्टरवादी मोदी विरोधी मुस्लिम की श्रेणी में न रखने के प्रयास में उनकी अधिक प्रशंसा कर रहा हूँ.
और अगर मैं उनकी आलोचना अधिक और तारीफ़ कम करूँ तो कुछ लोग ऐसा सोच सकते हैं कि मैं स्व-घोषित मोदी विरोधी हूँ, तो इसमें हैरानी क्यों?
निष्पक्ष होकर देखें तो एक साल में 'मोदीमेनिया' काफ़ी कम हो गया है. उनका कद थोड़ा घटा है और शायद 56 इंच सीना भी अब कुछ कम फूलता है.

'वन मैन शो'

एक साल में उनके खिलाफ़ सबसे बड़ी आलोचना ये है कि वो बोलते बहुत हैं लेकिन करते कम या कुछ नहीं हैं.
उनके कुछ आलोचक ये भी कहते हैं कि वो 'वन मैन शो' हैं. देश के सिपहसालार भी वही हैं, पार्टी के मुखिया भी वही. मंत्रियों के बजाए गिने-चुने अफसरों पर निर्भर रहते हैं. सुनते सब की हैं लेकिन फैसला उनका होता है.
आप ये भी कह सकते हैं कि आदर्श ग्राम योजना, 8 करोड़ ग्रामीण परिवारों को औपचारिक बैंकिंग प्रणाली में शामिल करने की प्रक्रिया, डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया जैसी योजनाएं यूपीए सरकार की योजनाओं की नक़ल लगती हैं. या कह लें कि ये नई बोतल में पुरानी शराब की तरह है.

किसान विरोधी

सत्ता में आने के 100 दिन के अंदर काला धन देश वापस लाने का नरेंद्र मोदी का वादा भी पूरा नहीं हुआ है. महंगाई बढ़ी नहीं तो कम भी नहीं हुई है. ग़रीबी, ग़रीबों का साथ अब भी नहीं छोड़ रही.
कुछ लोग ये भी कह सकते हैं कि मोदी किसानों से ज़्यादा कॉरपोरेट इंडिया और उद्योगपतियों के हित के बारे में सोचते हैं.
इसकी मिसाल भूमि अधिग्रहण बिल है जिसे किसान विरोधी माना जा रहा है.
और हाँ, पिछले एक साल में वो प्रवासी भारतीयों के सबसे बड़े मसीहा बन कर भी उभरे हैं. उनके खिलाफ आलोचना ये भी है कि वो देश के प्रांतों से अधिक विदेशी यात्राएं करते हैं.

यूपीए सरकार

लेकिन यदि नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने से पहले के देश और समाज पर एक निगाह डाली जाए तो आज एक साल बाद उनकी उपलब्धियां सार्थक नज़र आती हैं.
अपने आख़िरी सालों में यूपीए सरकार नीतियों के मामले में पक्षाघात का शिकार रही. महंगाई चरम पर थी. विदेशी निवेश घटता जा रहा था.
आर्थिक विकास की रफ़्तार धीमी पड़ चुकी थी. घोटालों का बाज़ार गर्म था, कोई बड़े फैसले नहीं लिए जा रहे थे.
सामाजिक स्तर पर पिछली सरकार के दौर में बेरोज़गार लोगों की संख्या बढ़ती जा रही थी. शेयर बाजार दम तोड़ रहे थे.
आम लोग परेशान थे, युवा पीढ़ी मायूसी का शिकार हो चुकी थी.

विकास का सपना

बीते साल इसी माहौल में भारत में आम चुनाव हुए. नरेंद्र मोदी ने एक सपना दिखाया. खुशहाली, प्रभावी प्रशासन और विकास का सपना. जनता ने नरेंद्र मोदी को अपना भरपूर समर्थन दिया.
लेकिन क्या एक साल बाद वो सपना टूट गया?
मेरे विचार में उन्होंने पिछले एक साल में जितने भी क़दम उठाए हैं, उनसे युवाओं का मनोबल बढ़ा है, उनकी उमंगें जागी हैं. मायूसी के काले बादल छटे हैं.
डिजिटल इंडिया हो या स्किल्ड इंडिया या फिर मेक इन इंडिया. इनमें एक ऐसे भारत की नींव रखे जाने की क्षमता है जिससे पूरा समाज बदल सकता है.

मोदी की क्षमता

जब राजीव गांधी ने कंप्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक रेल टिकट रिज़र्वेशन की योजना शुरू की थी तो किसे मालूम था कि ये आज़ादी के समय से पुराने तर्ज़ पर चले आ रहे समाज को भविष्य की तरफ धकेलने की क्षमता रखती है?
जब नरसिम्हा राव ने वर्ष 1991 में विदेशी निवेश के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था को खोला तो किसे मालूम था कि कुछ सालों बाद एक रिक्शा वाले से लेकर घरों में झाड़ू लगाने का काम करने वालों के पास भी मोबाइल फोन होंगे. या भारत के कई बड़े शहरों में वातानुकूलित मेट्रो रेल नेटवर्क का जाल फैल जाएगा?
नेहरू ने देश को हैवी इंजीनियरिंग के कारख़ाने दिए, आईआईटी जैसी संस्थाएं दीं.
राजीव गांधी ने भारत को एक इलेक्ट्रॉनिक देश बनाया. नरसिम्हा राव ने अर्थव्यवस्था के उदारीकरण से भारत की ग्लोबल अलहदगी ख़त्म की.
मोदी की योजनाएं भारत को विकसित देशों की श्रेणी में ला खड़ा करने की क्षमता रखती हैं. मोदी को एक साल में नहीं पांच साल के कामकाज के आधार पर परखना चाहिए.

4 comments:

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