Friday, 1 November 2013

कैसे करती हैं अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसियाँ आपकी जासूसी?

कैसे करती हैं अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसियाँ आपकी जासूसी?

 शुक्रवार, 2 नवंबर, 2013 को 12:52 IST तक के समाचार

ग़ैर क़ानूनी गतिविधियों का पर्दाफ़ाश करने वाले यानी विसलब्लोअर एडवर्ड स्नोडेन के लीक दस्तावेज़ बताते हैं कि अमरीका ने किस तरह से बड़े पैमाने पर पूरी दुनिया में ख़ुफ़िया अभियान चलाया हुआ है जिसमें सहयोगी देशों में गुपचुप बातचीत सुनना भी शामिल है.
हालांकि इस मामले के सामने आने के बाद अमरीकी सीनेट की ख़ुफ़िया कमेटी ने वादा किया कि वह देश के सबसे बड़े ख़ुफ़िया संगठन नेशनल सिक्युरिटी एजेंसी (एनएसए) के निगरानी कार्यक्रम की समीक्षा करेगा.
लीक दस्तावेज़ों के अनुसार आईए जानते हैं उन ख़ास तरीक़ों के बारे में, जिनका इस्तेमाल जासूसी एजेंसी करती रही है

1. इंटरनेट कंपनी के डाटा तक पहुंच

जून में लीक दस्तावेज़ों से पता लगा कि किस तरह क्लिक करें एनएसए की 'पीछे के दरवाज़े' से बड़ी टेक्नोलोजी कंपनियों तक पहुंच है.
फ़ाइलें बताती हैं कि एजेंसी की पहुंच नौ इंटरनेट कंपनियों तक थी, जिसमें फ़ेसबुक, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और याहू जैसी कंपनियां शामिल हैं. ऑनलाइन संवाद पर नज़र रखने का काम निगरानी प्रोग्राम 'प्रिज़्म' के ज़रिए किया जाता है.
दावा है कि इस प्रोजेक्ट में एनएसए ब्रिटेन के जीसीएचक्यू स्टेशन के साथ मिलकर ई-मेल, चैट लॉग्स, स्टोर डाटा, वॉएस ट्रैफ़िक, फ़ाइल ट्रांसफ़र और सोशल नेटवर्किंग डाटा तक पहुंच रखता था.
हालांकि कंपनियां एजेंसी को सर्वर पर सीधी पहुंच की सुविधा देने से इनकार करती हैं.
कुछ विशेषज्ञ 'प्रिज़्म' की असली ताक़त को लेकर सवाल भी करते हैं. डिजिटल फ़ोरेंसिक प्रोफ़ेसर पीटर सोमर बीबीसी से कहते हैं ये पहुंच 'बैकडोर' की बजाए 'कैटफ़्लैप' की तरह है, जिसमें ख़ुफ़िया एजेंसी किसी तय टारगेट के लिए सर्वर को टैप करके जानकारियां इकट्ठा करती थी.

2. फ़ाइबर ऑप्टिक केबल्स की टैपिंग

जून में जीसीएचक्यू से लीक दस्तावेज़ों के संबंध में 'गार्डियन' अख़बार में रिपोर्ट प्रकाशित की जिससे पता लगा कि ब्रिटेन ने ग्लोबल संचार में इस्तेमाल होने वाले फ़ाइबर ऑप्टिक केबल्स की टैपिंग की और हासिल डाटा को एनएसए से साझा किया.
दस्तावेज़ों का दावा है कि जीसीएचक्यू एकसाथ 200 फ़ाइबर ऑप्टिक केबल्स पर पहुंच रखता था, यानी रोज़ 60 करोड़ बातचीत को मॉनिटर करने में सक्षम था.
इंटरनेट और फ़ोन इस्तेमाल की जानकारियों को 30 दिनों तक स्टोर किए जाने के बाद इन्हें वहां से हटाकर विश्लेषित किया जाता था.
जीसीएचक्यू ने यद्यपि इस पर कोई टिप्पणी से मना कर दिया लेकिन ये ज़रूर कहा कि वह क़ानूनों के प्रति ईमानदार है.
अक्तूबर में इतालवी साप्ताहिक 'एल' एस्प्रेसो' में प्रकाशित रिपोर्ट में दावा किया गया कि जीसीएचक्यू और क्लिक करें एनएसए की नज़र समुद्र में बिछे तीन केबल्स पर थी, जिसके टर्मिनल इटली में थे, ये कमर्शियल और मिलिट्री डाटा को बीच में रोकते थे.
सिसली में मौजूद इन केबल्स के नाम सीमीवी3, सीमीवी4 और फ़्लैम यूरोपा-एशिया हैं.

3. फ़ोन बातचीत को छिपकर सुनना

अक्तूबर में जर्मन मीडिया ने रिपोर्ट छापी कि अमरीका ने जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल के फ़ोन को एक दशक से कहीं ज़्यादा समय से बग के ज़रिए टैप कर रखा था-ये ख़ुफ़िया निगरानी कुछ महीनों पहले बंद की गई.
'डेर श्पीगल' मैगज़ीन ने विसलब्लोअर एडवर्ड स्नोडेन के दस्तावेज़ों को उद्धृत करते हुए कहा, ''अमरीका वर्ष 2002 से ही मर्केल के मोबाइल की जासूसी में लगा था.''
दस्तावेज़ों के आधार पर मैगज़ीन ने दावा किया कि इस फ़ोन से होने वाली बातचीत को बीच में सुनने वाली ईकाई बर्लिन स्थित अमरीकी दूतावास में थी-इस तरह का ऑपरेशन दुनियाभर में 80 जगहों पर चलाया जा रहा था.
खोजी पत्रकार डंकन कैम्पबेल ने ब्लॉग में बताया है कि किस तरह आधिकारिक भवन के बाहर खिड़की रहित इलाक़ा भी 'रेडियो खिड़की' हो सकता है. ये 'बाहरी खिड़कियां' एक ख़ास पदार्थ से बनाई जाती हैं-जो बिजली से संचालित नहीं होतीं-बल्कि इनसे रेडियो सिग्नल्स गुज़र सकते हैं और इन्हें प्राप्त कर इनका विश्लेषण करने वाले यंत्र अंदर लगे होते हैं.
हालांकि बाद की रिपोर्ट्स बताती हैं कि उनकी नज़र चांसलर के दो फ़ोनों पर थी-एक वो फ़ोन, जिसका इस्तेमाल वो पार्टी मामलों के लिए करती थीं और दूसरा था कोड डिवाइस से इस्तेमाल किया जाने वाला सरकारी फ़ोन.
सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार स्टैंडर्ड मोबाइल फ़ोन का कूट सिस्टम आसानी से भेदा जा सकता है, क्योंकि उनका सिस्टम साफ़्टवेयर की भाषा में मैसेज क्रिएट करने के प्रोग्राम से अलग होता है.
बर्लिन में अमरीकी दूतावास की इस खिड़की रहित कमरे से सुनी जाती चांसलन मार्केल की बातचीत
एनएसए जर्मन चांसलर के फ़ोन को बग करने के साथ ही जर्मनी और फ्रांस के दसियों लाख लोगों के ई-मेल्स के साथ टेलीफ़ोन कॉल्स पर नज़र रखता था. ब्राज़ील व मैक्सिको के राष्ट्रपतियों के फ़ोन पर भी उसने कुछ यूं ही नज़र रखी.
'गार्डियन' ने बाद में रिपोर्ट दी कि क्लिक करें एनएसए दुनियाभर के 35 नेताओं के फ़ोन पर नज़र रखता था, जिनके नंबर उन्हें अमरीका के किसी और अधिकारी द्वारा दिए जाते थे. इस रिपोर्ट के स्रोत भी एडवर्ड स्नोडेन ही थे.

4. लक्ष्यीकृत जासूसी

'डेर श्पीगल' में जून में प्रकाशित रिपोर्टों में दावा किया गया कि एनएसए यूरोप और अमरीका में यूरोपीय यूनियन नेताओं की भी जासूसी कर रहा था.
मैगज़ीन का कहना है कि स्नोडेन के लीक दस्तावेज़ ज़ाहिर करते हैं कि अमरीका ने वाशिंगटन स्थित यूरोपीय यूनियन के आंतरिक कंप्यूटर नेटवर्क के साथ न्यूयॉर्क स्थित यूएन ऑफ़िस के 27 सदस्यीय ब्लॉक की भी जासूसी की.
आरोप है कि एनएसए ब्रसेल्स की एक बिल्डिंग से गुपचुप बातचीत सुनने का ऑपरेशन चला रहा था, जहां यूरोपीय यूनियन काउंसिल के मंत्री और काउंसिल के लोग रहते हैं.
जुलाई में 'गार्डियन' ने दस्तावेज़ों के ज़रिए फिर दावा किया कि 38 दूतावासों और मिशन को क्लिक करें अमरीकी जासूसी ऑपरेशन में टारगेट किया गया था.
टारगेट किए जा रहे देशों में फ़्रांस, इटली और ग्रीस के साथ अमरीका के ग़ैर यूरोपीय सहयोगी जापान, दक्षिण कोरिया और भारत भी शामिल थे. यही नहीं यूरोपीय यूनियन के न्यूयार्क और वाशिंगटन स्थित दूतावास और मिशन भी निगरानी पर थे.
दस्तावेज़ की फ़ाइलें ये भी बताती हैं कि किस तरह संदेशों को बीच में रोकने के लिए 'असाधारण विविधता वाले' जासूसी तरीक़ों का इस्तेमाल किया गया. इसमें बग्स, ख़ास एंटेना और वायर टेप शामिल थे.

किस तरह से डाटा तक प्रिज़्म की पहुंच

माइक्रोसॉफ़्ट – माइक्रोसॉफ़्ट की कुछ साइट्स ई-मेल पते, नाम, घर या कार्यस्थल का पता या टेलीफ़ोन नंबर इकट्ठा करती हैं. कुछ सेवाओं में साइन-इन करने के लिए ईमेल और पासवर्ड की ज़रूरत होती है.
माइक्रोसॉफ़्ट वेब-ब्राउजर्स के ज़रिए भी साइट्स पर आने वालों की जानकारी इकट्ठा करता है, साथ ही आईपी एड्रेस, साइट एड्रेस और विज़िट टाइम और कुकीज़ के ज़रिए विज़िटर्स की जानकारी मुहैया कराती है.
याहू- जब कोई यूज़र याहू के प्रोडक्ट्स या सेवाओं को साइन-इन करता है तो ये उसकी पर्सनल जानकारियां इकट्ठा करने लगता है. जिसमें नाम, एड्रेस, जन्मस्थान, पोस्टकोड और पेशा संबंधी जानकारियां शामिल हैं.
ये यूज़र के कंप्युटर से भी जानकारियां लेता है, जिसमें आईपी एड्रेस शामिल है.
गूगल- गूगल अकाउंट्स में साइन-इन करने के लिए पर्सनल विवरण मांगे जाते हैं, जिसमें नाम, ईमेल एड्रेस और फ़ोन नंबर शामिल हैं. गूगल का ईमेल-जीमेल-हर 10 जीबी क्षमता के अकाउंट धारक के ईमेल संपर्क और मेल संबंधी सारी जानकारियां स्टोर करता है.
इसमें सर्च संबंधी जानकारी, आईपी एड्रेस, टेलीफ़ोन लॉग जानकारी और कुकीज़ से हासिल हर अकाउंट की जानकारी स्टोर की जाती है. चैट बातचीत भी रिकॉर्ड होती है बशर्ते यूज़र ने ऑफ़ द रिकॉर्ड विकल्प नहीं चुना हो.
फ़ेसबुक-फ़ेसबुक में साइन-इन करने के लिए व्यक्तिगत जानकारियां देने की ज़रूरत होती है, मसलन-नाम, ईमेल एड्रेस, जन्मतिथि और लिंग. ये स्टेटस अपडेट, फ़ोटो और शेयर हो रहे वीडियो, वॉल पोस्ट्स, दूसरी पोस्ट्स पर कमेंट्स, मैसेज और चैट बातचीत को इकट्ठा करता है.
इसमें दोस्त के नाम, उनके ई-मेल विवरण भी रिकॉर्ड किए जाते हैं. साथ ही जीपीएस और लोकेशन संबंधी जानकारियां भी स्टोर की जाती हैं.
पालटॉक- ये तुरंत चैट, वॉयस और वीडियो मैसेजिंग सर्विस है. इसमें यूज़र को ई-मेल समेत कांटैक्ट जानकारियां उपलब्ध करानी पड़ती हैं.
कंपनी यूज़र के व्यवहार को ट्रैक करने के लिए कुकीज छोड़ती है, ताकि एडवरटाइज़िंग के मद्देनज़र उन्हें टारगेट किया जा सके.
यूट्यूब – गूगल स्वामित्व वाले यूट्यूब से भी डाटा जुटाए जाते हैं. इसमें यूज़र को अपने गूगल अकाउंट के ज़रिए लॉग-ऑन करना पड़ता है. यहां भी उसकी गतिविधि रिकॉर्ड की जाती है.
स्काइप-स्काइप माइक्रोसॉफ़्ट का अंग है. इसकी तुरंत मैसेजिंग सर्विस से इस साल माइक्रोसॉफ़्ट मैसेंजर को बदला गया है.
यहां भी यूज़र को व्यक्तिगत जानकारियां उपलब्ध करानी पड़ती हैं. यहां भी यूज़र के डाटा और कांटैक्ट लिस्ट रिकॉर्ड होती है.

Thursday, 31 October 2013

'अमरीका ने हैक की' याहू, गूगल की जानकारियां

'अमरीका ने हैक की' याहू, गूगल की जानकारियां

 गुरुवार, 31 अक्तूबर, 2013 को 09:01 IST तक के समाचार

अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी के पूर्व अधिकारी एडवर्ड स्नोडन की तरफ से लीक हुई ताज़ा जानकारी में पता चला है कि अमरीका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) गोपनीय जानकारियाँ निकालने के लिए याहू और गूगल की डाटा सूत्रों को हैक करती रही हैं.
वॉशिंगटन पोस्ट पर छपे दस्तावेज़ों के अनुसार इन दोनों इंटरनेट कंपनियों के नेटवर्कों से लाखों रिकॉर्ड रोज़ाना चोरी किए जाते थे.
हालांकि एनएसए के निदेशक का कहना है कि उनकी पहुंच गूगल और याहू के कंप्यूटरों तक नहीं थी.
जनरल कीथ एलेक्ज़ेंडर ने ब्लूमबर्ग टीवी को बताया, "हमें किसी अमरीकी कंपनी के सर्वर तक पहुंच कर उसमे से जानकारियां निकालने की अनुमति नहीं है."
लेकिन संवाददाताओं का कहना है कि एलेक्ज़ेंडर इन आरोपों का सीधे तौर पर खंडन भी नहीं कर रहे हैं.

'डाटा रूट हैक'

स्नोडन के ताज़ा ख़ुलासे के अनुसार सर्वर हैक करने की जगह एनएसए गोपनीय जानकारियां उसी समय हासिल कर लेता है जब वो डाटा के रूप में ऑप्टिकल फ़ाइबर केबल के ज़रिए किसी नेटवर्क डिवाइस से सर्वर तक यात्रा कर रहा होता है.
एजेंसी ने जो जानकारियां जुटाई थी उसमें मेटा डाटा से लेकर टेक्स्ट, ऑडियो और वीडियो तक शामिल थे, जिसे बाद में एनएसए के प्रोग्राम 'मसक्यूलर' ने प्रोसेस किया.
एनएसए के पास गूगल और याहू के यूज़रों की जानकारियां निकालने के लिए एक 'वैध' रास्ता, ख़ुफ़िया कार्यक्रम 'प्रिज़्म' पहले से मौजूद है.
ताज़ा ख़ुलासे एडवर्ड स्नोडन के दस्तावेज़ों से मिले हैं जो ख़ुद इस वक्त रूस की शरण में हैं और अमरीका को उनकी तलाश है.
ये जानकारियां उस वक्त लीक की गईं हैं जब जर्मनी की चांसलर एंगेला मर्केल के मोबाइल फ़ोन से ख़ुफ़िया जानकारियां चुराए जाने के दावे पर चर्चा के लिए जर्मन दूत वॉशिंगटन पहुंचे हैं.

अमरीका के मित्र देश 'ख़फ़ा'

जर्मनी की ख़ुफ़िया एजेंसियों के प्रमुख अगले हफ्ते वॉशिंगटन में अमरीकी एजेंसियों के प्रमुख लोगों से मिलेंगे.
अमरीका के ख़ुफ़िया कार्यक्रम के प्रमुख ने दुनिया के बड़े नेताओं की जानकारियां जुटाने की प्रक्रिया का बचाव तो किया है, लेकिन अमरीका के जिन मित्र देशों के नेताओं की ख़ुफ़िया जानकारियां जुटाई गई, वो अमरीका के इस रवैये से ख़फ़ा हैं.
स्पेन के प्रधानमंत्री मेरियानों राजॉय ने कहा कि अगर एनएसए ने स्पेन की भी जानकारियां इकठ्ठा की हैं तो ये 'बहुत ग़लत बात है जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता.'
हालांकि जनरल एलेक्ज़ेंडर कहते हैं' "एक बात जो कही जा रही है कि एनएसए ने यूरोप में लाखों फ़ोन कॉल रिकॉर्ड किए, वो बिल्कुल ग़लत है."
एजेंसी ने इतालवी मीडिया के उन आरोपों को भी ख़ारिज किया जिसमें दावा किया गया था कि वेटिकन से भी ख़ुफ़िया सूचनाएं जुटाई गई थी.

इसराइल का सीरिया पर हवाई हमला

इसराइल का सीरिया पर हवाई हमला

 शुक्रवार, 1 नवंबर, 2013 को 11:05 IST तक के समाचार

इसराइल को इस साल सीरिया में कई हमलों के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है.
एक अमरीकी अधिकारी के मुताबिक़ इसराइल के एक विमान नेक्लिक करें सीरिया के तटीय शहर लटाकिया के पास हमला किया है.
अमरीकी अधिकारी ने कहा कि हमले में रूस निर्मित मिसाइलों को निशाना बनाया गया जो कि लिबनानी चरमपंथी गुट हिज़बुल्लाह के लिए थीं.
लटाकिया को राष्ट्रपति बशर अल-असद का गढ़ माना जाता है, और यह सीरिया का एक महत्वपूर्ण तटीय शहर है.
इसराइल को सीरिया में इस साल अब तक तीन बार हवाई हमले करने के आरोप में व्यापक रूप से सूचित किया जा चुका है.

आधिकारिक बयान नहीं

समयसीमा से पहले ही ओपीसीडब्ल्यू यानी ऑर्गनाइज़ेशन फ़ॉर द प्रॉहिबिशन ऑफ़ केमिकल वेपंस द्वारा क्लिक करें रासायनिक हथियार बनाने वाले उपकरणों को नष्ट करने की घोषणा के तुरन्त बाद इस हमले को अंजाम दिया गया है.
अमरीकी अधिकारी के मुताबिक़ इसराइली हमला बुधवार रात से गुरुवार तक चला.
गुरुवार को लटाकिया में विस्फोट होने की ख़बरें आईं थीं लेकिन इसकी वजह स्पष्ट नहीं की जा सकीं थीं.

ब्रिटेन के एक मानवाधिकार कार्यकर्ता के मुताबिक़ स्नूबर जब्लेह में वायुसेना के शिविर में धमाकों की कई आवाज़ें सुनाईं दीं.
इसराइल और सीरिया की तरफ़ से इस बारे में अभी तक कोई बयान नहीं आया है.
नाम न बताने की शर्त पर एक अमरीकी अधिकारी ने समाचार एजेंसी एपी को बताया कि इसराइली हमले में रूस निर्मित एसए-125एस मिसाइलों को निशाना बनाया गया था.
ओपीसीडब्ल्यू के निरीक्षकों ने सीरिया में फैले 23 में 21 ऐसे स्थानों का दौरा किया जहाँ रासायनिक हथियारों को तैयार किया जाता था.

इसराइल ने क्या कहा?

इसराइल ने एक बार फिर ये दोहराया है कि अगर उसे लगता है कि सीरिया के पारंपरिक या रासायनिक हथियारों को चरमपंथियों और मुख्य रूप से हिज़बुल्लाह को हस्तांतरित किया जाता है, तो वह कार्रवाई करेगा.
रूस, सीरिया संघर्ष के दौरान सीरिया में लगातार हथियारों की पूर्ति कर राष्ट्रपति बशर-अल-असद का प्रमुख समर्थक रहा है.
असद ने क्लिक करें इसराइल द्वारा भविष्य में किए जाने वाले किसी भी हमले का जबाव देने का वादा किया था.
ओपीसीडब्ल्यू द्वारा रासायनिक हथियारों के उपकरणों को नष्ट करन के बाद सीरिया के उप विदेश मंत्री फ़ैसल मकदाद ने बीबीसी से कहा था कि सीरिया की सरकार मध्य पूर्व में हथियारों को व्यापक रूप से नष्ट करने में पूरी तरह साथ थी.
सीरिया में अभी भी 1,000 टन से ज़्यादा ख़तरनाक रसायन मौजूद हैं जिन्हें ख़त्म किया जाना बाक़ी है.
संयुक्त राषट्र के मुताबिक़ 2011 में बशर अल-असद के ख़िलाफ़ शुरु हुई बग़ावत के बाद से सीरिया में अब तक एक लाख लोग मारे जा चुके हैं और 20 लाख से ज्यादा लोग देश से पलायन कर चुके हैं.

Sunday, 27 October 2013

गोधरा कांड:नरेंद्र मोदी पर फैसला,मजिस्ट्रेट कल सुना सकते हैं-जकिया जाफरी की याचिका

गोधरा कांड:मजिस्ट्रेट कल सुना सकते हैं नरेंद्र मोदी पर फैसला-जकिया जाफरी की याचिका

अहमदाबाद, 27 अक्टूबर 2013 | अपडेटेड: 21:21 IST
टैग्स: जकिया जाफरी| गोधरा कांड| नरेंद्र मोदी| दंगे| याचिका


नरेंद्र मोदी
नरेंद्र मोदी
सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त एसआईटी की मामले को बंद करने की रिपोर्ट के खिलाफ जकिया जाफरी की याचिका पर यहां की अदालत सोमवार को फैसला सुना सकती है. यह मामला वर्ष 2002 के दंगों में कथित षड्यंत्र के सिलसिले में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और अन्य को क्लीनचिट देने से संबंधित है. जाफरी की याचिका पर उनके वकीलों एवं विशेष जांच दल (एसआईटी) के वकील की जिरह मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट बी. जे. गणात्रा के समक्ष पांच महीने तक चली, जिसके बाद जाफरी के वकील ने 18 सितम्बर को अदालत को लिखित हलफनामा दिया.
एसआईटी ने 30 सितम्बर को लिखित हलफनामा दिया और मजिस्ट्रेट गणात्रा ने कहा कि वह 28 अक्टूबर को फैसला सुनाएंगे.
जकिया जाफरी के पति और पूर्व सांसद एहसान जाफरी 2002 के दंगे में गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार में मारे गए 69 लोगों में शामिल थे. जाफरी ने याचिका दायर कर एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट पर आपत्ति जताई. क्लोजर रिपोर्ट में मोदी को किसी भी तरह के षड्यंत्र में शामिल होने से बरी कर दिया गया था.
जाफरी की शिकायत पर जांच पूरी करने के बाद एसआईटी ने आठ फरवरी 2012 को जांच रिपोर्ट दायर की थी, जिसमें कहा था कि आठ वर्ष बीत जाने के कारण साक्ष्य जुटाने में परेशानी के बावजूद जो भी साक्ष्य जुटाए जा सके, उनसे यह साबित नहीं हो सका कि 2002 के दंगों के षड्यंत्र के आरोप जिन लोगों पर लगाए गए थे वे इनमें संलिप्त थे.


Thursday, 24 October 2013

UP Police Constable Exam Postponed 2013 new Revised Date after 10 november :::: UP Police Result 2014, UP Police Constable Results at http://111.118.182.232/OperatorResult/Login.aspx , uppolice.up.nic.in , https://uppolice.gov.in/index.aspx :::: UP Police Constable Physical Exam Date 2014 New Schedule Information

UP Police Constable Exam Postponed 2013 new Revised Date after 10 november

UP Police Constable Physical Exam Date 2014 New Schedule Information

Tuesday, 1 Aug 2014

UP Police Result 2014, UP Police Constable Results at http://111.118.182.232/OperatorResult/Login.aspx , uppolice.up.nic.in , https://uppolice.gov.in/index.aspx

UP Police Result 2014, UP Police Constable Results at http://111.118.182.232/OperatorResult/Login.aspx , uppolice.up.nic.in , https://uppolice.gov.in/index.aspx , www.111.118.182.206 , http://111.118.182.204/constablePETResult :::: UP Police Constable Merit List & Cut Off 2014

 

UP Police Result 2014, UP Police Constable Results at http://111.118.182.232/OperatorResult/Login.aspx , uppolice.up.nic.in , https://uppolice.gov.in/index.aspx  http://111.118.182.204/constablePETResult

 

Friday, 25 October 2013

State Government of Uttar pradesh / Up Police Recruitment and Promotion board prpb published the Notification about the postponement of the Constable Pre exam 2013. this is really very shocking news to all candidates who applied for the constable posts , downloaded there admit card and did a hard work for the preparation of written examination. according official GO / Shashnadesh No prpb:1-1 (28)/2013 , dated 20, 2013 UPP constable exam cancel up to further information. UP PRPB constable written exam was schedule to held on 27 October 2013 at various examination.  Reason behind the cancellation of written exam also mentioned in the GO that Due to Accident of Vehicle which was used in transportation of Question paper this is exam is postpones. Few Question paper also loosed in this accident. That’s why maintaining  the transparency  Board decided to postpone this examination.
Next date of written exam will be published very soon on the official website of Up Police. Candidates will be also informed about the revised exam date. we will also inform you when Updated New Dates of written exam will be publish online.
Candidates are advised to retain there admit card safely.
Candidates can also see this notification via downloading the GO in PDF file

1 - पुलिस आरक्षी एवं समकक्ष पदों पर सीधी भर्ती-2013 प्रारम्भिक लिखित परीक्षा का स्थगन Visible upto :10/11/2013'
http://prpb.gov.in/View_Notices.aspx?ID=news&N=25

this notice will be retain on the official website www.prpb.gov.in till the 10 November 2013 so most probably new exam date will be publish after the 10 November 2013  . let see what happened with this vacancy. Applicants are very suspected about this vacancy and about there because.






sites up police:
http://prpb.gov.in/View_Notices.aspx?ID=news&N=25
http://uppbpb.gov.in/
http://www.prpb.gov.in/


Your most well come
Dear subscribe it by mail for more touch regularly. also share it with those one who are sincere and want to growup good knowledge. ok tc n be happy

WANT TO DONATE FOR SITE?

 

DONATE! GO TO LINK: http://kosullaindialtd.blogspot.in/p/donate.html 





उत्तर प्रदेश पुलिस में पुलिस आरक्षी एवं समकक्ष पदों पर सीधी भर्ती-2013

प्रारम्भिक लिखित परीक्षा का स्थगन


सूचना/ विज्ञप्ति
उ0प्र0 पुलिस आरक्षी एवं समकक्ष पदों पर सीधी भर्ती के लिए दिनांक 27-10-2013 को आयोजित की जाने वाली प्रारम्भिक लिखित परीक्षा सम्बन्धित प्रश्न पत्रों के परिवहन के समय आकस्मिक दुर्घटनावश कुछ प्रश्न पत्रों की क्षति हो जाने के कारण परीक्षा की शुचिता बनाये रखने के उद्देश्य से बोर्ड द्वारा स्थगित कर दी गयी है। आगामी तिथि की सूचना शीघ्र प्रकाशित की जायेगी। आगामी तिथि पर बोर्ड द्वारा पूर्व प्रेषित प्रवेश पत्रों का प्रयोग प्रस्तावित है। अतः अभ्यर्थी अपने-अपने प्रवेश पत्रों को सुरक्षित रखें । 

 























UP Police Result 2014, UP Police Constable Results at http://111.118.182.232/OperatorResult/Login.aspx , uppolice.up.nic.in , https://uppolice.gov.in/index.aspx

June 23, 2014

UP Police Result 2014 now declare after a long time, candidates can get their result from the official portal of UP Police  uppolice.up.nic.in OR https://uppolice.gov.in/index.aspx


up police results 2014

UP Police Result 2014 Declared:-

 Click Here for result:  http://111.118.182.232/OperatorResult/Login.aspx




UP Police Result 2014:- Uttar Pradesh Police Department is to be declared the UP Police Constable Result 2014 today on 20th June 2014. Candidates who had appeared in UP Police Exam, they can get their result at the official website  uppolice.up.nic.in
The Uttar Pradesh Police is the largest police force in the world which has started in 1861. The Uttar Pradesh recruitment written examination is conducted by the Uttar Pradesh Police Recruitment and Promotion Board (UPPRRP). The Uttar Pradesh Police recruitment and promotion board provides jobs  various fields like Sub-inspector, Men Constable, Women Constable , jailer and other posts in the department.up police results 2014

UP Police Result 2014 Declared:-

 Click Here for result:  http://111.118.182.232/OperatorResult/Login.aspx

 

 

The Uttar Pradesh Police conducts the various examinations every year. A large number of candidates have appeared in the examinations. After examination, the candidates are waiting their UP Police Result 2014. The UP Police Constable Result is to be declared on today 20th June 2014 at the official portal. The candidates can check their UP Police result 2014 on the official website which is www.uppolice.up.nic.in or http://111.118.182.232/OperatorResult/Login.aspx or https://uppolice.gov.in/index.aspx

UP Police Result Check Here : http://111.118.182.232/OperatorResult/Login.aspx

The UP Police Result is very important for further process of recruitment to the candidates. The candidates can check their UP Police result by entering their registration number and by name on the official website. The candidates are advised to keep in touch for more information about Results of UP Police. Best of Luck to all the candidates for their respective results.  The UP Police Written Exam Result are given below.
UP Police Constable Results
The Uttar Pradesh Police Exam pattern has three modes which are written test, physical test and personal interview. The written exam has four sections which are general knowledge, numerical ability, mental ability and reasoning. Each section carries 50 marks. There are multiple choice questions in the written paper. The candidates who clears the written examination is eligible for a personal interview then shortlisted candidates give the physical test to the UP Police recruitment and promotion Board.

UP Police 2014 Result Available:-

Get UP Police Constable Result from here, visit official portal and check their result, result is now available at www.uppolice.up.nic.in




Tuesday, 29 July 2014


UP Police Constable Merit List PET Dates 2014 UP Police Cutoff Marks Results 2014

UP Police Constable Merit List PET Dates 2014 UP Police Cutoff Marks Results 2014

Uttar Pradesh Police Recruitment and Promotion Board, Lucknow has released The UP Police Constable Exam Results 2014 on its official website http://prpb.gov.in/. UP Police Recruitment and Promotion Board was issued notification for recruitment of 41,610 Constable and fireman Posts. UP Police Constable written Exam was held on 15th December 2013. All those attended candidates can check their UP Police constable Results, Physical (PET) Exam Date/ Schedule 2014.


Large numbers of candidates have applied the UP Police Constable 41610 posts. Candidates who are appeared the UP Police Constable Exam, they can check their UP Police Constable Results & Merit List 2014. Candidates who are qualified the UP Police Constable Exam, they will be called for Physical (PET) Exam 2014.

How to Check UP Police Constable Results 2014:
1. Log on the official site prpb.gov.in.
2. Search the UP Police constable Results link and click it.
3. Entre your Roll No and Date of Birth.
4. Click on submit button
5. Save the pdf file and then now check it for your roll number.

Click Here to get UP Police Constable Results 2014

Click Here to get UP Police Constable PET Exam Dates




यूपी: आया सिपाही भर्ती का रिजल्ट, यहां देखिए

result announced for constable recruitment in up
यूपी पुलिस में 41,610 पदों पर सिपाही भर्ती के लिए हुई लिखित परीक्षा का रिजल्ट सोमवार शाम सवा चार बजे घोषित कर दिया गया।

यूपी पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड के चेयरमैन ने प्रेस कांफ्रेंस करके जानकारी दी कि परीक्षा में कुल 4,30,879 अभ्यर्थी उत्तीर्ण हुए हैं।

करीब 18 लाख ने दी थी परीक्षा

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दरअसल, कुल 22,24,687 अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था। आवेदन पत्रों की जांच करने के बाद 21,62,379 को कॉल लेटर भेजे गए थे। प्रा‌रंभिक लिखित परीक्षा 15 दिसंबर 2013 को यूपी के 75 जिलों के 4236 ‌केंद्रों पर करवाई गई थी।

इस परीक्षा में 17,89,985 लोगों ने भाग लिया था। इनकी ओएमआर शीट वेबसाइट पर डाल दी गई थी। बाकी सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद परीक्षा परिणाम घोषित कर दिया गया है।




यहां देखिए अपना रिजल्ट

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यह रिजल्ट देखने के लिए आप वेबसाइट http://prpb.gov.in या http://uppbpb.gov.in और यूआरएल http://111.118.182.204/constablePETResult/ पर जा सकते हैं।

यहां पर रिजल्ट 28 जुलाई से 5 अगस्त तक देखा जा सकता है। सितंबर माह में फिजिकल फिटनेस करवाया जाएगा। इसकी तारीख का एलान बाद में किया जाएगा।

 

UP Police Constable Physical Exam Date 2014 New Schedule Information



UP Police Constable Physical Exam Date 2014: Uttar Pradesh Police Department has announced the result for UP Police Constable Posts on 28th July 2014. Now all the candidates need to check UP Police Constable Physical Exam Date 2014 New Schedule Information.

All those job grabbers who have qualify the examination they need to follow the further process of UP Police to recruit the aspirants as Constable. You need to prepare for race, measure your height as per requirement.
Applicants will have to visit the official website of UP Police and check New Schedule Information of PET exam and then look forward for other searching. At present a dream to become police man is possessed by many aspirants but a few get it.
Job researchers will be recruited on the basis of qualify in UP Police Selection Process 2014 and finally pass in medical exam. The result of all the rounds will be considered at the time of joining.
New Schedule Information Details: Dear job appliers there will a little bit difference is all candidates race, height marks. Candidates from all category need to score minimum marks as stated by the organization.
This detail is also disclosed for the applicants that what should be the minimum height and time duration and length of race to be run. There are more steps in the New Schedule Information, to read that keep visiting our web pages.
Now all candidates will have to make a habit to visit the website. We are providing instructions to all the aspirants for this PET. They can just follow the steps one by one and can get their scheme of test.
For this each and every qualifier should read the official notification offered by this department for the assistance of the applicants. Read it out carefully and get a post named as UP Police Constable.
How to Check UP Police Constable Physical Exam Schedule 2014: Dear job finders you need to follow below steps for easy going the link of searching:
  • Hey appliers first of all go to the official website of Uttar Pradesh Police that is www.uppbpb.gov.in
  • On the home page go to the option as “Physical Exam Schedule 2014”
  • Choose the appropriate link and open in new tab.
  • After this step carry on for the upcoming PET.

Reminder: Dear candidates to get PET Exam date please visit Official Website.

Download UP Police Constable Result 2014 @ uppolrecpro.gov.in , http://uppbpb.gov.in/ Exam Results 2014 :::: UP Police Result 2014, UP Police Constable Results at http://111.118.182.232/OperatorResult/Login.aspx , uppolice.up.nic.in , https://uppolice.gov.in/index.aspx , www.111.118.182.206 :::: UP Police Constable Merit List & Cut Off 2014 

For more go on link: http://kosullaindialtd.blogspot.in/2013/12/download-up-police-constable-result.html






UP VDO( GRAM VIKASH ADHIKARI) EXAM DATE DECLARED DOWNLOAD YOUR ADMIT CARD CLICK : http://www.gvaup.in/#

UP Gram Vikas Adhikari Recruitment 2013 – 2014 Rural Development Officer Vacancies: 

 




Gram Vikas Vibhag, Uttar Pradesh has issued a recruitment notification for the recruitment of Gram Vikas Adhikari Vacancies. Online applications are invited from Indian candidates for filling up vacant post of Village Development Officer posts.
शासनादेश संख्या-3110/38-3-2013-5(अधि0)/2012 दिनांक 23.07.2013 द्वारा ग्राम्य विकास
विभाग में ग्राम विकास अधिकारियों (वेतनमान रू 5200-20200, ग्रेड पे-2000) के रिक्त पदों पर भर्ती
 
 
Organization Name: Gram Vikas Vibhag, Uttar Pradesh
Name of Posts: Gram Vikas Adhikari (Village Development Officer)
Advt. no.: Advertisement Number 3110/38-3-2013-5
 

महत्वपूर्ण तिथियाँ

# Publishing of Merit List/Interview List :03-03-2014 to 6-03-2014
# Date for Download Admit Card              :08-03-2014 to 11-03-2014
# Date of Interview                                     :13-03-2014 to 15-03-2014.
# Date of Final Result                                  :Just after the Interview:


                        Click BELOW 

                      For Know your:

 UP Gram Vikas Adhikari Exam Date- ग्राम्य विकास अधिकारी परीक्षा तिथि

 

WEB SITE NO 1:  http://gvaup.in/#

OR

WEB SITE NO 2: http://rd.up.nic.in/

 

 
for more full details about vdo up exam or download vdo up admit card go on link: http://kosullaindialtd.blogspot.in/2014/02/up-vdo-gram-vikash-adhikari-exam-date.html

 




उत्तर प्रदेश ग्राम पंचायत अधिकारी मेरिट सूची 2014 - VDO साक्षात्कार सूची - UP Gram Panchayat Adhikari Merit List 2014 – VDO Interview List



UP Gram Panchayat Adhikari Admit Cards - VDO Village Development Officers Call Letters 2014 The online registration is almost finished and admit cards for the recruitment of 30000 posts in UP gram Panchayat are soon to be released. As stated in the official notification, the admit cards/call letters will be available. According to that, you will be able to get your call letters after 15th August 2014.
                                            
On 6th September 2013 Panchayati Raj board released a notification regarding various posts for recruitment in UP gram panchayat. The number of posts were very high so huge number of candidates showed their interest and send their applications before the last date.

UP Gram Panchayat Adhikari Admit Cards Release Date :

As written in the official notifications call call letters will be released after the 15th August 2014 and candidates will be able to download them right after that upto 25th August 2014. All participants who applied for the posts are eligible for the interview process that is going to be conducted first as the post doesn’t include any written exam.
In order to get your Admit cards for Interview process to may follow these steps :
  1. Open the website of Panchayati Raj Department : panchayatiraj.up.nic.in/.
  2. Go to the section of News and events.
  3. Find notification regarding call letters or Admit cards.
  4. Click on the link and enter your details like Name & Registration number.
  5. Submit to get it.


उत्तर प्रदेश ग्राम पंचायत अधिकारी - ऑनलाइन पंजीकरण समाप्त हो गया है 2014 कॉल लेटर्स जल्द ही जारी हो रहे हैं उत्तर प्रदेश ग्राम पंचायत में 30000 पदों की भर्ती के लिए कार्डलेटर्स स्वीकार करते हैं. सरकारी अधिसूचना में कहा गया है, कॉल लेटर्स, आप 15 अगस्त 2014 के बाद  प्राप्त करने में सक्षम हो जाएगा. 



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Tuesday, 8 October 2013

VIRUS SITES: ये हैं दुनिया की 13 सबसे खतरनाक वेबसाइट्स, एक क्लिक और काम तमाम

VIRUS SITES: ये हैं दुनिया की 13 सबसे खतरनाक वेबसाइट्स, एक क्लिक और काम तमाम


दुनिया बहुत बदल गई है। एक दशक पहले तक लोग कम्प्यूटर पर काम करते समय वायरस से नहीं डरते थे। पहले अगर वायरस या मालवेयर का खतरा होता था तो सिर्फ करप्ट फ्लॉपी डिस्क या फिर किसी ई-मेल अटैचमेंट के जरिए। लेकिन अब जमाना बदल गया है। इंटरनेट पर कई ऐसी वेबसाइट हैं जिनपर सिर्फ क्लिक करने से आपके कम्प्यूटर की बैंड बज सकती है। दुनिया की कुछ सबसे ज्यादा देखी जाने वाली वेबसाइट्स इतनी खतरनाक हो सकती हैं कि एक क्लिक पर आपके सिस्टम को खराब कर सकती हैं। आज आपको बताने जा रहा है ऐसी ही कुछ वेबसाइट्स के बारे में।
 
ये हैं दुनिया की 13 सबसे खतरनाक वेबसाइट्स, एक क्लिक और काम तमाम
 
Ucoz.com
 
ग्लोबल मालवेयर रैंकिंग- 14
 
यह एक फ्री वेबहोस्टिंग साइट है। इसमें कंटेंट मैनेजमेंट सिस्टम का काम होता है। इस वेबसाइट में मौजूट मॉड्यूल का इस्तेमाल अलग से एक नई वेबसाइट बनाने के लिए किया जा सकता है। इस वेबसाइट को एक ऑनलाइन फोरम, ब्लॉग, या ऑनलाइन शॉपिंग साइट कहा जा सकता है। जुलाई 2012 तक Ucoz.com की मदद से करीब 1 मिलियन वेबसाइट बनाई जा चुकी थी।
 
 
ये हैं दुनिया की 13 सबसे खतरनाक वेबसाइट्स, एक क्लिक और काम तमाम
 
 
Sapo.pt
ग्लोबल मालवेयर रैंकिंग- 13
 
यह एक पुर्तगाली वेबसाइट है। SAPO का पुर्तगाल के टेलिकॉम सर्विस प्रोवाइडिंग में बड़ा हाथ है। यह एक इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर है जिसने 1995 में एक सर्च इंजन भी लॉन्च किया था। इस वेबसाइट के जरिए साइट होस्टिंग भी की जाती है।
 
 
ये हैं दुनिया की 13 सबसे खतरनाक वेबसाइट्स, एक क्लिक और काम तमाम
 Blogspot.de
 
ग्लोबल मालवेयर रैंकिंग- 11
 
यह जर्मनी की एक ब्लॉगिंग वेबसाइट है। F-secure के हिसाब से इस साइट पर लॉगइन करने से भी आपका सिस्टम मालवेयर की चपेट में आ सकता है। 
 
 
 
4shared.com
 
ग्लोबल मालवेयर रैंकिंग- 10
 
ऑनलाइन फाइल शेयरिंग और स्टोरेज के लिए इस्तेमाल की जाती है। 15 GB फ्री वेब स्पेस और आसानी से रजिस्ट्रेशन हो जाने के कारण यह वेबसाइट लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है। इस वेबसाइट पर कई सारी फाइल्स एक साथ भेजी जा सकती हैं। इसी के साथ डाउनलोड भी बहुत जल्दी हो जाता है। 
 
Sendspace.com
 
ग्लोबल मालवेयर रैंकिंग- 9
 
यह वेबसाइट किसी भी फाइल को भेजने के काम आती है। Sendspace.com ऐसी सुविधा देती है जिसके तहत सिर्फ अपने डेस्कटॉप से ड्रेग करके आप फाइल्स सीधे अपलोड कर सकते हैं। इस साइट पर काम करना आसान है शायद इसीलिए यह मालवेयर होस्टिंग के लिए भी एक आदर्श साइट बन गई है।
 
 
Comcast.net
 
ग्लोबल मालवेयर रैंकिंग- 8
 
Comcast.net ऑनलाइट टीवी देखने की सुविधा देती है। इसी के साथ ई-मेल, बिलिंग और न्यूज सबस्क्रिप्शन जैसी कई यूटिलिटी सर्विस भी। इस वेबसाइट पर गेम (फुटबॉल, बास्केटबॉल) आदी के स्कोर्स भी पता चल जाते हैं। इस वेबसाइट पर कई तरह के वायरस होस्ट किए जाते हैं।
 
 
Google.com
 
ग्लोबल मालवेयर रैंकिंग- 7
 
दुनिया की सबसे चर्चित वेबसाइट और सर्च इंजन गूगल भी इस लिस्ट में शामिल है। गूगल मालवेयर होस्टिंग का केंद्र बनता जा रहा है। गूगल का इस्तेमाल लगभग हर देश में होता है। जी-मेल, सोशल नेटवर्किंग, गूगल प्लस जैसी सुविधाओं के कारण गूगल बहुत आगे बढ़ गया है और यही कारण है कि हैकर्स इस सबसे आसान जरिए को चुनते हैं।
 
 
Fc2.com
 
ग्लोबल मालवेयर रैंकिंग- 6
 
फाइल होस्टिंग और ब्लॉग होस्टिंग के लिए यह सबसे अच्छी साइट है। इस वेबसाइट पर फ्रीरेंटल डोमेन, सर्वर, ब्लॉग जैसी कई सुविधाएं मिलती हैं। इस वेबसाइट पर काम करते समय ध्यान बरतना जरूरी है। 
 
 
Hotfile.com
 
ग्लोबल मालवेयर रैंकिंग- 5
 
हॉटफाइल कॉरपोरेशन द्वारा बनाई गई यह वेबसाइट वन क्लिक सिस्टम पर काम करती है। इसका मतलब यह है कि ये वेबसाइट सिर्फ एक क्लिक में फाइल होस्टिंग की सुविधा देती है। यूजर्स 400 MB तक की फाइल को एक बार में अपलोड कर सकते हैं। अगर आप इस वेबसाइट के रजिस्टर्ड यूजर नहीं है तो आपको फाइल डाउनलोड करने के लिए 15 सेकंड का इंतजार करना पडेगा और एक CAPTCHA कोड भी डालना होगा।
 
 
Dropbox.com
 
ग्लोबल मालवेयर रैंकिंग- 4
 
दुनिया की सबसे प्रसिद्ध फाइल होस्टिंग वेबसाइट में से एक ड्रॉपबॉक्स भी मालवेयर के लिए बदनाम है। इस साइट पर क्लाउड-स्टोरेज के द्वारा काम किया जाता है। ड्रॉपबॉक्स का सिंक्रोनाइजेशन इतना अच्छा है कि इस पर एक बार फाइल शेयर करने पर किसी भी कम्प्यूटर पर इसे खोला जा सकता है।
 
 
 
Cloudfront.net
 
ग्लोबल मालवेयर रैंकिंग- 3
 
इस वेबसाइट पर कंटेंट होस्टिंग और कई तरह की डिलिवरी सर्विसेज का काम किया जाता है। अमेजन की यह साइट क्लाउड फ्रंट कंपनी द्वारा दी जाने वाली कई वेबसर्विसेज में से एक कंटेंट डिलिवरी के लिए जानी जाती है। 
 
Letitbit.net
 
ग्लोबल मालवेयर रैंकिंग - 2
 
रशिया की यह वेबसाइट फाइल होस्टिंग का काम करती है। इस वेबसाइट पर फ्री और कमर्शियल दोनों तरह की सर्विसेज दी जाती हैं। इस साइट पर अगर आप लॉगइन करने का सोच रहे हैं तो अपना एंटी वायरस दुरुस्त कर लें।
 
 
Mail. Ru
 
ग्लोबल मालवेयर रैंकिंग- 1
 
दुनिया की नंबर वन मालवेयर होस्टिंग वेबसाइट है मेल.रू। इस वेबसाइट ने इतनी तेजी से तरक्की कर ली थी कि 2000 तक मार्केट पोजीशन के हिसाब से यह रशिया की नंबर वन वेबसाइट बन गई थी। इस वेबसाइट पर दुनिया में सबसे ज्यादा वायरस मिलते हैं। 
 
 
 
 
 
 
 

Sunday, 6 October 2013

BREAKING NEWS:चैनलों में छंटनी-पत्रकारों को नौकरी से निकाला, न्यूज चैनलों के न्यूजरूम में घबराहट,बेचैनी और आतंक का माहौल:Network-18(IBN,IBN 7,CNN,AWAJ) 350 Employee,NDTV 100 Employee, AAJ TAK-TV TODAY 24 Employee, Out Look 120 Employee, Other Small channel Approx 250 employee Are fired

BREAKING NEWS:चैनलों में छंटनी-पत्रकारों को नौकरी से निकाला, न्यूज चैनलों के न्यूजरूम में घबराहट,बेचैनी और आतंक का माहौल:Network-18(IBN,IBN 7,CNN,AWAJ)  350 Employee,NDTV 100 Employee, AAJ TAK-TV TODAY 24 Employee, Out Look 120 Employee, Other Small channel Approx 250 employee Are fired


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चैनलों में छंटनी पत्रकारों को नौकरी से निकाला, न्यूज चैनलों के न्यूजरूम में घबराहट,बेचैनी और आतंक का माहौल:

Network-18(IBN,IBN 7,CNN,AWAJ)  350 Employee,
NDTV 100 Employee, 
AAJ TAK-TV TODAY 24 Employee, 
Out Look 120 Emplyee, 
Other Small channel Approx 250 employee  are fired




पत्रकारों की छंटनी मुद्दा क्यों नहीं है?
इन दिनों न्यूज चैनलों के अंदर काम करनेवाले पत्रकारों में घबराहट, बेचैनी और आतंक का माहौल है. हालाँकि चैनलों को देखते हुए आपको बिलकुल अंदाज़ा नहीं लगेगा लेकिन सच यह है कि चैनलकर्मियों में इन दिनों अपनी नौकरी की सुरक्षा, वेतन और सेवा शर्तों और भविष्य को लेकर असुरक्षाबोध बहुत अधिक बढ़ गया है.
इसकी वजह यह है कि पिछले कुछ महीनों में न्यूज चैनलों में पत्रकारों और गैर पत्रकार कर्मियों (जैसे कैमरामैन, वीडियो एडिटर, रिसर्चरों आदि) की लगातार छंटनी हो रही है. लेकिन महीने भर पहले जिस तरह से नेटवर्क-१८ समूह (सी.एन.एन-आई.बी.एन, आई.बी.एन-७, सी.एन.बी.सी, आवाज़) से एक झटके में ३५० से ज्यादा पत्रकारों और गैर पत्रकार कर्मियों की छंटनी हुई है, उससे यह घबराहट और बेचैनी बहुत ज्यादा बढ़ गई है.
हालाँकि सबकी खबर लेनेवाले किसी भी चैनल पर आपने यह ‘खबर’ नहीं देखी होगी या इक्का-दुक्का अखबारों और कुछ स्वतंत्र मीडिया पोर्टलों को छोड़कर मुख्यधारा के ज्यादातर अखबारों ने भी इस ‘खबर’ को छापने लायक नहीं समझा.
ध्यान देनेवाली बात यह है कि ये वही न्यूज चैनल या अखबार हैं जिन्होंने कुछ साल पहले किंगफिशर एयरलाइन में कोई १५० एयर हास्टेस और एयरलाइन कर्मियों की छंटनी को सुर्खी बनाने में देर नहीं की थी. सवाल यह है कि न्यूज चैनलों/अखबारों के लिए टी.वी पत्रकारों/कर्मियों की इतनी बड़ी संख्या में छंटनी की ‘खबर’ एयरलाइन कर्मियों की छंटनी की खबर की तुलना में कम महत्वपूर्ण क्यों है कि उसे १० सेकेण्ड की फटाफट खबर या स्क्रोल के लायक भी नहीं माना गया?
यही नहीं, जब कुछ युवा पत्रकारों ने टी.वी-१८ के पत्रकारों की मनमानी छंटनी के विरोध में पत्रकार एकजुटता मंच (जर्नलिस्ट सोलिडारिटी फोरम) गठित करके सी.एन.एन-आई.बी.एन के फिल्म सिटी, नोयडा स्थित दफ्तर पर प्रदर्शन किया तो उसकी भी कोई ‘खबर’ चैनलों में दिखाई नहीं दी या किसी अखबार में नहीं छपी.
हैरानी की बात यह है कि कोई १५० से ज्यादा युवा और वरिष्ठ पत्रकारों ने इस प्रदर्शन में हिस्सा लिया और वे नारे लगाते हुए पूरे फिल्म सिटी के इलाके में घूमे लेकिन चैनलों/अखबारों ने इसे ‘खबर’ लायक नहीं माना. मजे की बात यह है कि फिल्म सिटी में ज्यादातर हिंदी/अंग्रेजी न्यूज चैनलों के दफ्तर हैं और उस दिन चैनलों के न्यूज रूम में पत्रकारों-संपादकों के बीच दबे-छुपे इसी प्रदर्शन की चर्चा हो रही थी.
लेकिन इसका पर्याप्त कवरेज तो दूर, किसी टी.वी बुलेटिन या अखबारों ने नोटिस तक नहीं लिया. गोया ऐसा कोई विरोध प्रदर्शन हुआ ही नहीं हो. हालाँकि पत्रकारों की ओर से लंबे अरसे बाद ऐसा कोई विरोध प्रदर्शन हुआ था जिसमें टी.वी के पत्रकारों/कर्मियों ने छंटनी के खिलाफ आवाज़ उठाई थी.
हैरानी की बात नहीं है कि नेटवर्क-१८ समूह के बाद अंग्रेजी बिजनेस न्यूज चैनल ब्लूमबर्ग टी.वी में भी लगभग ४० पत्रकारों की छंटनी हुई लेकिन इक्का-दुक्का अखबारों को छोड़कर इसकी ‘खबर’ कहीं नहीं छपी या दिखी. बात सिर्फ दो चैनलों की नहीं है. नेटवर्क-१८ से पहले पिछले एक साल में एन.डी.टी.वी के मुंबई ब्यूरो और दिल्ली मुख्यालय से लगभग १०० पत्रकारों/टी.वी कर्मियों और टी.वी टुडे (आज तक, हेडलाइंस टुडे) में लगभग दो दर्जन से अधिक पत्रकारों को नौकरी गंवानी पड़ी है.
यही नहीं, पिछले वर्षों में शुरू हुए छोटे-मंझोले न्यूज चैनलों में से कई बंद हो गए हैं या कई मरणासन्न हालत में हैं जिनके कारण कम से कम २५० से ज्यादा पत्रकारों/कर्मियों को बेरोजगार होना पड़ा है. लेकिन यह टी.वी न्यूज चैनलों तक सीमित परिघटना नहीं है. अखबारों/प्रिंट मीडिया में भी छंटनी का दौर पिछले एक साल से अधिक समय से जारी है.
पिछले दिनों ‘आउटलुक’ समूह ने कई पत्रिकाएं बंद करने और कुछ की समयावधि बढ़ाने की घोषणा की और इसके कारण कोई १२० से ज्यादा पत्रकारों की छंटनी कर दी गई है. इसी तरह ‘दैनिक जागरण’ और ‘दैनिक भास्कर’ जैसे देश के सबसे ज्यादा बिकने और कमाई करनेवाले अखबारों में दर्जनों पत्रकारों को नौकरी गंवानी पड़ी है. नेटवर्क-१८ समूह की ओर से प्रकाशित ‘फ़ोर्ब्स’ पत्रिका में भी संपादक सहित कई पत्रकारों से जबरन इस्तीफा ले लिया गया.
जैसे इतना ही काफी नहीं हो. पिछले सालों में खासकर २००८ के वैश्विक आर्थिक संकट के बाद कई चैनलों और अखबारों में पत्रकारों के वेतन में सालाना इजाफा (इन्क्रीमेंट) नहीं हुआ या आसमान छूती महंगाई की तुलना में बहुत कम इन्क्रीमेंट हुआ और कुछ मीडिया समूहों में तो वेतन बढ़ोत्तरी तो दूर उल्टे उसमें कटौती कर दी गई.
यही नहीं, चैनलों/अखबारों से पत्रकारों की छंटनी के कारण बचे पत्रकारों/टी.वी कर्मियों का काम का बोझ बढ़ गया है, उनके काम के घंटे बढ़ गए हैं, छुट्टियाँ घट गईं है और दबाव-तनाव बढ़ गया है. लेकिन नौकरी जाने के भय से कोई पत्रकार इसका विरोध करने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है. गरज यह कि पिछले डेढ़-दो वर्षों में कुलमिलाकर न्यूज मीडिया और खासकर न्यूज चैनलों में काम करने की स्थितियां बाद से बदतर हुई हैं. पत्रकारों की नौकरियां जाने के साथ उनमें असुरक्षा बोध बहुत ज्यादा बढ़ गया है.
इसके बावजूद दुनिया भर की खबर देनेवाले न्यूज मीडिया और खासकर न्यूज चैनलों में खुद उसमें काम करनेवाले पत्रकारों की छंटनी, काम करने की बदतर होती परिस्थितियां, बढ़ता असुरक्षा बोध और तनाव कोई ‘खबर’ नहीं है.
इसी तरह आपने श्रमजीवी पत्रकारों का वेतन तय करने के लिए सरकार की ओर से गठित जस्टिस मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने में हुई देरी और फिर सरकार की ओर से जारी अधिसूचना के खिलाफ बड़े अखबारों के मालिकों के सुप्रीम कोर्ट जाने के बारे में भी बहुत ज्यादा खबरें नहीं पढ़ी होंगी. क्या यह कोई संयोग या अपने बारे में बात न करने का संकोच है? क्या यह पत्रकारों की खुद पर थोपी गई सेल्फ-सेंसरशिप है?
लेकिन अगर ऐसा होता तो पिछले दो-तीन सालों में न्यूज चैनलों/अखबारों के अंदर का हालचाल बतानेवाले मीडिया वेब पोर्टल इतने लोकप्रिय नहीं होते और यहाँ तक कि चैनलों/अखबारों के दफ्तरों में सबसे ज्यादा पढ़े जानेवाले पोर्टल्स में से एक नहीं होते.
इसी तरह आप सोशल मीडिया में न्यूज मीडिया के कामकाज और उसमें काम करनेवाले पत्रकारों की स्थिति पर खुद पत्रकारों की नियमित टिप्पणियां, चर्चाएं और आक्रोश पढ़ और देख सकते हैं. इसके बावजूद न्यूज मीडिया में खुद उसमें काम करनेवाले पत्रकारों की समस्याओं, मुश्किलों और तकलीफों के बारे रिपोर्ट और चर्चा करने के लिए जगह नहीं है तो ऐसा क्यों है? क्या यह ‘चुप्पी का षड्यंत्र’ है?
असल में, इस ‘चुप्पी के षड्यंत्र’ की वजह न्यूज मीडिया के स्वामित्व के पूंजीवादी ढाँचे में है. यह किसी से छुपा नहीं है कि बड़ी कारपोरेट पूंजी और छोटी-मंझोली पूंजी की मीडिया कंपनियों में काम करनेवाले पत्रकारों की मौजूदा स्थिति के लिए मीडिया कम्पनियाँ और उनका प्रबंधन जिम्मेदार है.
चाहे पत्रकारों की नियुक्ति की अपारदर्शी व्यवस्था हो या संविदा पर नियुक्ति के साथ जुड़ा नौकरी का अस्थायित्व हो या कंपनी के पक्ष में झुकी सेवाशर्तें हों या वेतन/प्रोन्नति/इन्क्रीमेंट तय करने के मनमाने तौर-तरीके हों- इसकी जिम्मेदारी मीडिया कम्पनियों की है.
इसी तरह सामूहिक छंटनी का फैसला भी कंपनियों का है. लेकिन वे हरगिज नहीं चाहती हैं कि उनके चैनलों और अखबारों में इसकी रिपोर्ट की जाए या उसपर चर्चा हो क्योंकि वे पत्रकारों की नौकरी, सेवाशर्तों और कामकाज की परिस्थितियों को सार्वजनिक मुद्दा नहीं बनने देना चाहते हैं.
यही नहीं, मीडिया कंपनियों के बीच एक अघोषित सहमति है कि वे एक-दूसरे के बारे में खासकर उनके यहाँ काम करनेवाले पत्रकारों/कर्मियों की समस्याओं, शोषण और उत्पीडन को रिपोर्ट नहीं करेंगे. इसकी वजह स्पष्ट है. आपने अंग्रेजी का मुहावरा सुना होगा- ‘कुत्ता, कुत्ते को नहीं खाता है’ (डाग डज नाट ईट डाग).
मीडिया कम्पनियाँ एक-दूसरे के बारे में खासकर पत्रकारों की स्थिति के बारे में इसलिए रिपोर्ट या चर्चा नहीं करती हैं क्योंकि कल उनकी कंपनी में काम करनेवाले पत्रकारों की बदतर स्थितियों के बारे में कोई दूसरा चैनल/अखबार रिपोर्ट कर सकता है. उन्हें पता है कि सभी न्यूज मीडिया कंपनियों में पत्रकारों की स्थिति कमोबेश एक जैसी ही है. इसलिए वे उसे छुपाने और सार्वजनिक चर्चा का मुद्दा बनने देने से रोकने के लिए हर कोशिश करते हैं.
यह कैसी आजादी है जिसमें विरोध की भी इजाजत नहीं है?
इससे यह भी साफ़ होता है कि जिस प्रेस की स्वतंत्रता या अभिव्यक्ति की आज़ादी की दुहाईयाँ दी जाती हैं, वह वास्तव में पत्रकारों की आज़ादी नहीं है बल्कि वह उन चैनलों/अखबारों के मालिकों की आज़ादी है. वे ही पत्रकारों की आज़ादी का दायरा और सीमा तय करते हैं.
चूँकि मीडिया कंपनियों के मालिक नहीं चाहते हैं कि उनकी कंपनियों में पत्रकारों के शोषण और उत्पीडन का मामला सामने आए, इसलिए पत्रकार चाहते हुए भी इसकी रिपोर्ट नहीं कर पाते हैं. जिन अखबारों में अपवादस्वरूप कभी-कभार इसकी रिपोर्ट छपती भी है तो वह ज्यादातर आधी-अधूरी और तोडमरोड कर छपती है.
उदाहरण के लिए, नेटवर्क-१८ और अन्य चैनलों से पत्रकारों/कर्मियों की बड़ी संख्या में छंटनी के ताजा मामलों को ही लीजिए. कुछेक अख़बारों में छपी ख़बरों के मुताबिक, नेटवर्क-१८ ने अपने न्यूजरूम के ‘पुनर्गठन’ के तहत कुल पत्रकारों/कर्मियों में से लगभग तीन सौ से चार सौ लोगों यानी ३० फीसदी की छंटनी कर दी है.
इस छंटनी के तहत जो पत्रकार/कर्मी एक साल से कम से सेवा में थे, उन्हें छंटनी के एवज में एक महीने की तनख्वाह और जो उससे ज्यादा समय से नौकरी में थे, उन्हें तीन महीने की तनख्वाह दी गई. इसके लिए कारण बताया गया कि कंपनी अपने विभिन्न चैनलों के न्यूजरूम को एकीकृत कर रही है और इस पुनर्गठन के कारण एक ही तरह के काम कर रहे पत्रकारों/कर्मियों की जरूरत खत्म हो गई है.
इसके अलावा यह कंपनी की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने का रोना रोते हुए कहा गया कि अर्थव्यवस्था की मौजूदा खराब हालत के मद्देनजर स्थिति और बदतर हो सकती है. इस कारण कंपनी के लिए खर्चों में कटौती करना अनिवार्य हो गया था. इस मजबूरी में उसे इतने लोगों को निकलना पड़ा है. नेटवर्क-१८ इसे छंटनी के बजाय न्यूजरूम का पुनर्गठन और कर्मचारियों की संख्या को उचित स्तर (राईटसाइजिंग) पर लाना बता रहा है.
अन्य चैनलों/अखबारों ने भी पत्रकारों की छंटनी करते हुए यही तर्क और बहाने पेश किये हैं. वैसे ये तर्क नए नहीं है. मीडिया से इतर दूसरे उद्योगों और सेवा क्षेत्र की कंपनियों में लगभग इन्हीं तर्कों के आधार पर श्रमिकों/कर्मचारियों की छंटनी, ले-आफ, वेतन-इन्क्रीमेंट में कटौती, और तालाबंदी होती रही है.
लेकिन दूसरे उद्योगों/कंपनियों और न्यूज मीडिया उद्योग में फर्क यह है कि जहाँ संगठित क्षेत्र के अधिकांश उद्योगों/कारखानों/कंपनियों में श्रमिक/कर्मचारी यूनियनें हैं, वहीँ इक्का-दुक्का अखबारों को छोड़कर अधिकांश अखबारों में अब पत्रकार यूनियनें नहीं हैं और न्यूज चैनलों में तो किसी भी न्यूज चैनल में कोई यूनियन नहीं है.
हैरानी की बात नहीं है कि जहाँ दूसरे उद्योगों में छंटनी/ले-आफ आदि के विरोध में यूनियनें खड़ी हो पाती हैं, प्रबंधन के खिलाफ आंदोलन करती हैं और पीड़ित श्रमिकों/कर्मचारियों को कानूनी मदद से लेकर मानसिक सहारा देती हैं, वहीँ न्यूज मीडिया में यूनियनों के न होने के कारण पत्रकारों/कर्मियों की कोई सुनवाई नहीं है, प्रबंधन के मनमाने फैसलों का कोई विरोध नहीं है और प्रबंधन के सामने पत्रकारों/कर्मियों की समस्याओं और मुद्दों को उठानेवाला कोई सामूहिक मंच नहीं है.
यही नहीं, न्यूज मीडिया कंपनियों के छंटनी जैसे मनमाने फैसलों का पीड़ित पत्रकार/कर्मी इसलिए भी विरोध नहीं कर पाते हैं क्योंकि उन्हें डर लगता है कि उन्हें आगे कोई मीडिया कंपनी नौकरी नहीं देगी. असल में, न्यूज मीडिया उद्योग न सिर्फ छोटा उद्योग (दो दर्जन से भी कम कम्पनियाँ) है बल्कि उनकी एच.आर नीति में भी कोई बुनियादी फर्क नहीं है.
कहने की जरूरत नहीं है कि वे सभी न सिर्फ पत्रकारों/मीडियाकर्मियों के यूनियनों या सामूहिक हित के मंच की विरोधी हैं बल्कि उन्होंने अपनी-अपनी कंपनियों में सुनिश्चित किया है कि वहां कोई यूनियन न बनने दिया जाए. उनके बीच इस मुद्दे पर अघोषित सहमति है कि ऐसी किसी गतिविधि को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए और अगर कोई पत्रकार/कर्मी यूनियन बनाने या आंदोलन करने जैसी पहल करता है तो उसे कोई कंपनी भविष्य में नौकरी न दे.
नतीजा यह कि छंटनी और कामकाज की बदतर परिस्थितियों को लेकर बढ़ती बेचैनी और गुस्से के बावजूद किसी भी न्यूज मीडिया कंपनी में कोई बोलने के लिए तैयार नहीं है. इक्का-दुक्का अपवादों को छोड़ दिया जाए तो छंटनी के सभी मामलों में पीड़ित पत्रकारों/मीडियाकर्मियों ने कोई विरोध नहीं किया और फैसले को चुपचाप स्वीकार कर लिया क्योंकि उन्हें आगे के भविष्य की चिंता थी. उन्हें भय था कि अगर उन्होंने विरोध किया और सामूहिक आंदोलन आदि में उतरे तो वे ‘ब्लैकलिस्टेड’ कर दिए जाएंगे और उन्हें कोई चैनल/अखबार नौकरी नहीं देगा.
हैरानी की बात नहीं है कि नेटवर्क-१८ में हुई छंटनी में निकाले गए ३५० से अधिक पत्रकारों/मीडियाकर्मियों में से इक्का-दुक्का पत्रकारों को छोड़कर कोई पीड़ित पत्रकार फिल्म सिटी में हुए विरोध प्रदर्शन में शामिल होने की हिम्मत नहीं जुटा पाया.
विडम्बना देखिए कि नेटवर्क-१८ का प्रबंधन इसे अपनी कामयाबी की तरह पेश कर रहा है और उसका दावा है कि छंटनी के उसके फैसले से कहीं कोई ‘नाराजगी’ नहीं है और सभी पत्रकार उसके मुआवजे और छंटनी की शर्तों से पूरी तरह ‘संतुष्ट’ हैं.
यही नहीं, न्यूज मीडिया कंपनियों खासकर चैनलों का यह भी दावा है कि उनके यहाँ काम करनेवाले पत्रकारों/मीडियाकर्मियों के वेतन इतने ‘आकर्षक’ और सेवाशर्तें/कामकाज की परिस्थितियां इतनी ‘बेहतर’ हैं कि पत्रकारों/मीडियाकर्मियों को यूनियन की जरूरत ही नहीं महसूस होती है. लेकिन सच यह नहीं है.
सच यह है कि न्यूज मीडिया कंपनियों में यूनियनों का न होना उनके यहाँ काम करनेवाले पत्रकारों/मीडियाकर्मियों की ‘संतुष्टि’ का नहीं बल्कि मीडिया कंपनियों के अघोषित आतंक का परिचायक है. यह ‘जबरा मारे और रोवे न दे’ की स्थिति है.
ऐसा नहीं है कि न्यूज मीडिया कंपनियों खासकर अखबारों में यूनियनें नहीं थीं. ९० के दशक तक अधिकांश अखबारों में पत्रकार/कर्मचारी यूनियनें थीं. उनमें कुछ बहुत प्रभावी, ताकतवर और कुछ कमजोर और प्रबंधन अनुकूल थीं. उनमें बहुत कमियां और खामियां भी थीं. लेकिन इसके बावजूद उनके होने के कारण पत्रकारों/कर्मियों को अपने हितों के लिए लड़ने और प्रबंधन से मोलतोल करने का मंच मौजूद था और उन्हें एक सुरक्षा थी.
लेकिन ९० के दशक में शुरू हुई उदारीकरण-निजीकरण की आंधी में न्यूज मीडिया कंपनियों ने सरकारों के सहयोग से यूनियनों को खत्म करना और पत्रकारों को ठेके/संविदा (कांट्रेक्ट) पर रखना शुरू किया. शुरू में ठेके की व्यवस्था को आकर्षक बनाने के लिए स्थाई कर्मियों की तुलना में ज्यादा तनख्वाहें दी गईं, स्थाई कर्मियों को संविदा नियुक्ति में आने के लिए मजबूर किया गया और पत्रकारों/श्रमिकों को अलग किया गया. यूनियन नेताओं को प्रताड़ित किया गया, यूनियन से सहानुभूति रखनेवाले पत्रकारों को निकाला गया. इस प्रक्रिया में अधिकांश अखबारों में यूनियनों को खत्म या निस्तेज कर दिया गया.
चुप्पी के इस षड्यंत्र को तोड़ने की चुनौती
दूसरी ओर, अखबारों से सबक लेकर निजी न्यूज चैनलों ने अपने संस्थानों में शुरू से ही ठेके पर नियुक्तियां कीं, यूनियनें नहीं बनने दीं और न्यूजरूम में आतंक-नियंत्रण का माहौल बनाए रखा.
हालाँकि यह सच है कि पिछले एक-डेढ़ दशक में शुरू हुए ज्यादातर बड़े न्यूज चैनलों ने शुरुआत में अखबारों की तुलना में ज्यादा वेतन दिया खासकर ऊपर के पदों पर ऊँची तनख्वाहें दीं, तुलनात्मक रूप से कामकाज का माहौल भी अच्छा था लेकिन उसकी वजह यह थी कि शुरुआत में टी.वी के लिए प्रशिक्षित पत्रकारों की कमी थी और नया माध्यम होने और उसकी संभावनाओं को देखते हुए निवेशक पैसा झोंक रहे थे.
लेकिन पिछले पांच-सात सालों में कई कारणों जैसे टी.वी के लिए प्रशिक्षित पत्रकारों की अति-आपूर्ति, न्यूज चैनलों की संख्या में वृद्धि और तीखी प्रतियोगिता, वितरण-मार्केटिंग के बेतहाशा बढ़ते खर्चे, अर्थव्यवस्था की कमजोर स्थिति के कारण विज्ञापन राजस्व में गिरावट आदि से स्थितियां बदल गईं हैं.
छंटनी के हालिया मामलों से साफ़ है कि न्यूज चैनलों के लिए ‘आछे दिन, पाछे गए’. अब यहाँ चैनलों के बढ़ते घाटे पर अंकुश लगाने के नामपर न्यूजरूम के एकीकरण, पुनर्गठन और कर्मियों की संख्या के तार्किकीकरण की आंधी चल रही है. चैनलों में कम से कम स्टाफ में काम चलाने पर जोर है.
नए बिजनेस माडल में अधिक तनख्वाहें पानेवाले वरिष्ठ पत्रकारों/संपादकों और मंझोले कर्मियों को हटाकर उनकी जगह कम तनख्वाह में जूनियर स्तर पर भर्तियाँ करने की रणनीति आम होती जा रही है. यही नहीं, ए.एन.आई जैसी एजेंसी से ज्यादा से ज्यादा खबरें लेने और अपने रिपोर्टिंग/कैमरामैन आदि स्टाफ में कटौती की प्रवृत्ति आम हो रही है. इसके नतीजे में मौजूदा स्टाफ पर काम का बोझ बढ़ाने और छुट्टियों/सुविधाओं में कटौती की शिकायतें भी बढ़ी हैं.
कहने की जरूरत नहीं है कि इस सबको न्यूज चैनलों की खराब आर्थिक स्थिति और बढ़ते घाटे की आड़ में जायज ठहराया जा रहा है. तर्क यह दिया जा रहा है कि चैनलों को बंद करने और हजारों पत्रकारों को बेरोजगार करने से बेहतर है कि कुछ लोग छंटनी, वेतन कटौती और बढ़े हुए काम के बोझ का दर्द बर्दाश्त करें.
लेकिन तथ्य क्या हैं? नेटवर्क-१८ के ही उदाहरण को लीजिए. नेटवर्क-१८ को चालू वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में १८ करोड़ रूपये का मुनाफा हुआ है. पिछले साल उसे घाटा हुआ था लेकिन इस साल मुनाफा कमाने के बावजूद उसने ३५० कर्मियों को निकाल दिया. दूसरी बात यह है कि कई बड़े न्यूज चैनल इसलिए घाटे में नहीं हैं क्योंकि उनके स्टाफ की लागत अधिक है बल्कि इसलिए घाटे में हैं क्योंकि उनके प्रबंधन ने अच्छे दिनों में जमकर फिजूलखर्ची की, विस्तार के मनमाने फैसले किये और ऊँची दरों पर कर्ज लिया.
यही नहीं, न्यूज चैनलों के प्रधान संपादकों/प्रबंध संपादकों/स्टार एंकरों के साथ-साथ उनके सी.ई.ओ आदि की तनख्वाहें बहुत ज्यादा हैं, कुछ मामलों में तो ये तनख्वाहें इतनी अधिक (अश्लीलता की हद तक) हैं कि एक संपादक की तनख्वाह ३० जूनियर स्टाफ या १५ मंझोले स्टाफ के बराबर है. इसके बावजूद छंटनी की गाज हमेशा मंझोले/जूनियर स्टाफ पर गिरती है.
साफ़ है कि यह माडल न सिर्फ अन्यायपूर्ण है बल्कि टिकाऊ नहीं है. इस माडल की कीमत चैनलों के पत्रकार और मीडियाकर्मी ही नहीं चुका रहे हैं. इसकी कीमत आम दर्शकों और व्यापक अर्थों में भारतीय लोकतंत्र को भी चुकानी पड़ रही है.
चैनलों में पत्रकारों की छंटनी के कारण न सिर्फ उनके कवरेज और उसकी गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ रहा है और स्टाफ की कमी की भरपाई हलके-फुल्के मनोरंजन से की जा रही है बल्कि उनके रिपोर्टिंग की कवरेज में विविधता खत्म हो रही है और उसका दायरा सीमित हो रहा है.
यही नहीं, स्टाफ की कमी का असर खबरों और उनके तथ्यों की जांच-पड़ताल और छानबीन भी पड़ रहा है और भविष्य में और अधिक पड़ेगा. इसका असर संपादकीय निगरानी पर भी पड़ रहा है. इसके कारण खबरों में तथ्यात्मक गलतियाँ बढ़ रही हैं.
दर्शकों को सही, पूरी और व्यापक जानकारी नहीं मिल रही है और घटते कवरेज की भरपाई के रूप में उन्हें चर्चाओं/बहसों के नामपर शोर/एकतरफा विचारों से बहरा बनाया जा रहा है. जाहिर है कि यह दर्शकों का नुकसान है और अगर एक सक्रिय और प्रभावी लोकतंत्र के लिए हर तरह से सूचित नागरिक अनिवार्य शर्त हैं तो सूचना के एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में न्यूज चैनलों की मौजूदा स्थिति और उसमें काम कर रहे पत्रकारों का टूटता मनोबल लोकतंत्र के लिए कोई अच्छी खबर नहीं है.
इसलिए समय आ गया है जब चैनलों/अखबारों में काम करनेवाले पत्रकारों के कामकाज की स्थितियों पर सार्वजनिक चर्चा हो. यह इसलिए भी जरूरी है कि अन्य पेशों की तुलना में लोकतंत्र की सेहत के लिए पत्रकारिता के पेशे की अहमियत बहुत महत्वपूर्ण है.
यही वजह है कि आज़ादी के बाद ५० के दशक में पत्रकारों/कर्मियों के लिए संसद ने अलग से श्रमजीवी पत्रकार कानून बनाया. उनके लिए अलग से वेतन आयोग गठित किये गए. लेकिन अफसोस की बात यह है कि न्यूज मीडिया कम्पनियाँ न सिर्फ इस कानून की धज्जियाँ उड़ाने में लगी हुई हैं बल्कि केन्द्र और राज्य सरकारों के सहयोग से इसे पूरी तरह से बेमानी बना दिया गया है. स्थिति यह हो गई है कि बड़े अखबार समूह इस कानून को ही अप्रासंगिक साबित करके खत्म करने की मांग कर रहे हैं.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस कानून को और सशक्त, प्रभावी और व्यापक बनाने की जरूरत है. उसके दायरे में न्यूज चैनलों के श्रमजीवी पत्रकारों को भी लाने की जरूरत है. लेकिन इसके लिए इस मुद्दे पर सार्वजनिक चर्चा जरूरी है.
नेटवर्क-१८ की छंटनी को यूँ ही बेकार नहीं जाने दिया जाना चाहिए. अच्छी बात यह है कि युवा पत्रका

Saturday, 5 October 2013

Hacked:Adobe 29 लाख ग्राहकों का क्रेडिट कार्ड डाटा चोरी

Hacked:Adobe 29 लाख ग्राहकों का क्रेडिट कार्ड डाटा चोरी

Adobe hacked, 2.9 million accounts compromised
फोटोशॉप और एक्रोबैट जैसे सॉफ्टवेयर बनाने वाली अमेरिकी कंपनी एडोब सिस्टम्स की वेबसाइट पर दो बार साइबर हमला हुआ। हैकरों ने एडोब के 29 लाख ग्राहकों का क्रेडिट कार्ड डाटा चुरा लिया।

हालांकि कंपनी ने यह साफ नहीं किया है कि किस देश के कस्टमर इससे प्रभावित हुए हैं। दुनिया के करीब 34 देशों में एडोब के दफ्तर हैं। ग्राहकों के बारे में पूछे जाने पर एडोब के एक प्रवक्ता ने कहा कि इस समय हम देश के बारे में कुछ नहीं कह रहे हैं।

जांच चल रही है। एडोब ने शुक्रवार को बताया कि उसकी सुरक्षा टीम ने कंपनी के नेटवर्क पर हुए साइबर हमले का पता लगाया, जिसमें गैरकानूनी तरीके से ग्राहक की सूचना के साथ-साथ एडोब के विभिन्न उत्पादों के सोर्स कोड की भी जानकारी ली गई।

हैकरों ने एडोब के ग्राहकों की आईडी और कूट भाषा में लिखे पासवर्ड खंगाले। कंपनी ने आशंका जताई है कि हमलावरों ने उसके सिस्टम से ग्राहकों की कुछ सूचनाएं गायब भी की हैं।

ग्राहकों के नाम, कूट भाषा में लिखे क्रेडिट या डेबिट कार्ड नंबर, कार्ड एक्सपायरी की तिथि व अन्य सूचनाओं तक हैकरों ने पहुंच बनाई। हालांकि कंपनी को उम्मीद है उसके सिस्टम से हमलावरों ने सामान्य भाषा में बदले गए क्रेडिट या डेबिट कार्ड नंबरों को डिलीट नहीं किया है और आंतरिक रूप से यह काम कर रहा है।

दोबारा सेट होगा पासवर्ड

कंपनी ने बताया कि ग्राहकों को सूचनाएं भेजी जा रही हैं और पासवर्ड को फिर से सेट किया जा रहा है। बैंकों को भी अलर्ट कर दिया गया है जिससे ग्राहकों के खातों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

भारत में दो हजार कर्मचारी
कंपनी का मुख्यालय कैलिफोर्निया में है। भारत में बंगलूरू, नोएडा और मुंबई में इसके कार्यालय हैं। दुनिया भर में कंपनी के 11 हजार कर्मचारियों में से दो हजार से अधिक भारत में काम करते हैं।

बडे़ पैमाने पर प्रोडक्ट का होता है इस्तेमाल
एडोब प्रोडक्ट का इस्तेमाल फिल्म एवं वीडियो निर्माता, वेब एवं ग्राफिक डिजाइनर, क्रिएटिव प्रोफेशनल, पब्लिशर, इंटरप्राइजेज के अलावा व्यक्तिगत रूप से कस्टमर भी करते हैं। बडे़ पैमाने पर ये प्रोडक्ट इंटरनेट पर पढ़ने और डाक्यूमेंट देखने में इस्तेमाल होते हैं।

CAG:'गुजरात का हर तीसरा बच्चा कुपोषण का शिकार'

CAG:'गुजरात का हर तीसरा बच्चा कुपोषण का शिकार'

cag report of gujrat

गुजरात का हर तीसरा बच्चा कम वजन यानी कुपोषण का शिकार है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में राज्य में चल रही समन्वित बच्चा विकास योजना (आईसीडीएस) की कार्यप्रणाली को आडे़ हाथ लेते हुए खुलासा किया है।

गुजरात में हर तीसरे बच्चे का वजन कम है। उल्लेखनीय है कि इस योजना के तहत राज्य में कुपोषण को दूर किया जा रहा है।

गुजरात विधानसभा में बृहस्पतिवार को पेश रिपोर्ट में कहा गया कि गुजरात में पूरक पोषण कार्यक्रम के तहत 2 करोड़ 23 लाख बच्चे लाभार्थी हैं। लेकिन इनमें से करीब 63.37 लाख बच्चों को इस योजना का उचित लाभ नहीं मिला है।

योजना का लक्ष्य वर्ष में कम से कम 300 दिन बच्चों को पर्याप्त पोषण देना है। लेकिन बच्चों को महज 96 दिन ही पोषण मिल पा रहा है। हर तीसरे बच्चे का वजन कम है।

रिपोर्ट कहती है कि आईसीडीएस के लाभ से करीब 1.87 करोड़ बच्चे वंचित हैं।