Friday 10 January 2014

देवयानी खोबरागड़े अमरीका से भारत लौट आई हैं, भारत ने अमरीका के राजनयिक को अपने देश से निकाला,अमरीकी राजनयिकों को इतनी तवज़्ज़ों का भुगता ख़ामयाजा

देवयानी खोबरागड़े अमरीका से भारत लौट आई हैं,  भारत ने अमरीका के राजनयिक को अपने देश से निकाला,अमरीकी राजनयिकों को इतनी तवज़्ज़ों का भुगता ख़ामयाजा 

 शनिवार, 11 जनवरी, 2014 को 07:00 am
 
 
देवयानी खोबरागड़े
देवयानी खोबरागड़े अमरीका से भारत लौट आई हैं


जब कोई देश किसी दूसरे देश के राजनयिक को अपने यहां से निकालता है, तो आम तौर पर वो देश भी उस देश के राजनयिक को अपने देश से निकाल देता है. राजनयिक संबंधों में ऐसा होता रहा है.

शीत-युद्ध के दौर में अमरीका और सोवियत रूस दोनों ही एक-दूसरे के राजनयिकों के साथ ऐसा सुलूक करते रहे हैं.
देवयानी मामले में भारत के लिए जो बात महत्व रखती है, वो ये है कि इसमें बदले की भावना वाली बात आ रही है कि आप जितनी ज़्यादती हमारे साथ करेंगे, हम भी आपके साथ उतनी ही ज़्यादती करेंगे.
वैसे तो इस बात को बहुत ज़्यादा महत्व नहीं देना चाहिए, लेकिन इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि भारत का ये क़दम कई मायनों में महत्वपूर्ण है.
महत्व यही है कि इसमें बदले की कार्रवाई झलक रही है.
वैसे भारत और अमरीका के रिश्तों में बीते 20-25 वर्षों से कभी ऐसा नहीं हुआ. उन्होंने भारत के किसी राजनयिक के साथ ज़्यादती नहीं की थी.
इसी तरह भारत के सामने भी कभी ये मजबूरी नहीं आई कि अमरीका के राजदूत को दिल्ली से जाने के लिए कहा गया.
भारत और पाकिस्तान के दरम्यान राजनयिकों को निकाले जाने या वापस बुलाए जाने की घटनाएं होती रही हैं.

दूसरा पहलू

ताज़ा घटनाक्रम का दूसरा पहलू ये भी है कि इससे ये मामला एक तरह से ख़त्म हो गया है.
देवयानी खोबरागड़े
दूसरे जिन सम्पर्कों में बाधा आ रही थी, वो सम्पर्क अब दोबारा शुरू हो सकते हैं.
अमरीका के ऊर्जा मंत्री भारत आ रहे थे, वो भारत नहीं आ पाए, उनकी यात्रा टल गई. अब उनका भारत का कार्यक्रम दोबारा बन जाएगा.
आमतौर पर होता ये है कि एक दूसरे को जवाब देने के बाद राजनयिक संबंध सामान्य हो जाते हैं.
हालांकि कुछ समय के लिए तनाव और दुख तो रहता ही है.
रही बात ये कि क्या भारत ने इस मामले में कुछ ज़्यादा ही तत्परता दिखाई तो मेरा मानना है कि भारत ने अमरीका को राजनयिक स्तर पर जो विशेष अधिकार और सुविधाएं दी थी, वो भारत को अमरीका को कभी देनी ही नहीं चाहिए थीं.

इतनी तवज़्ज़ों क्यों

आपको शायद याद होगा कि कई वर्षों पहले जब 'ख़ालिस्तान' की मांग ज़ोर पकड़ रही थी, तब भारत ने वॉशिंगटन में कहा था कि उसके राजनयिकों के लिए सुरक्षा का ख़तरा है, हमें थोड़ी सुरक्षा चाहिए.
इस पर अमरीकी सरकार ने कहा था कि आप ख़ुद ही सुरक्षाकर्मियों की सेवाएं ले लीजिए.
देवयानी के समर्थन में भारत में अमरीका के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुए हैं
फिर भारत को अमरीकी राजनयिकों को इतनी सुरक्षा देने की क्या ज़रूरत थी.
अमरीका को इतनी सुविधाएं भारत में मिलनी ही नहीं चाहिए थीं.
भारत, थाइलैंड या फ्रांस के राजनयिकों को क्या सुविधाएं दे रहा है? सब देशों के साथ बराबरी वाली बात होना चाहिए.

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