जवाहरलाल इंस्टीट्यूट आफ पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (जिपमेर-पुदुचेरी): ढाई सौ रुपये में होती है यहां एमबीबीएस की पढ़ाई
पुदुचेरी First Published:16-09-14
पुदुचेरी में स्थित जवाहरलाल इंस्टीट्यूट आफ पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल
एजुकेशन एंड रिसर्च (जिपमेर) की खूबी यह है कि यहां आज भी एमबीबीएस एवं
नर्सिग की पढाई ढाई सौ रुपये महीने के शुल्क पर होती है। यह देश का एकमात्र
ऐसा कैंसर अस्पताल है जहां गरीब, अमीर सभी को कैंसर की दवाएं निशुल्क
मिलती है। असल में जिपमेर की स्थापना एक अलग अधिनियम के जरिये हुई है
जिसमें कैंसर का उपचार मुफ्त देने का प्रावधान है। इसलिए यह संस्थान डेढ़
लाख रुपये की भी कैंसर दवा भी मरीजों को मुफ्त में दे रहा है।
जिस स्थान पर आज जिपमेर है वहां पर अस्पताल और मेडिकल कालेज की स्थापना 1823 में फ्रांस सरकार ने की थी ताकि पांडिचेरी मे रह रहे फ्रांसीसी आधुनिक चिकित्सा की पढ़ाई कर सकें तथा उन्हें उपचार मिले। आजादी के बाद पांडिचेरी का प्रशासन भारत के हाथों आया था यह इस कालेज का नाम धन्वन्तिरि मेडिकल कालेज पड़ा। लेकिन जिपमेर अधिनियम 1964 में बना और अब संस्थान अपनी स्थापना के 50 साल पूरे करने जा रहा है। 26 सितंबर को स्वर्ण जयंती समारोह में राष्ट्रपति स्वयं पधार रहे हैं। 2059 बेड के इस अस्पताल की खूबी यह है कि इसमें प्राइमरी से लेकर सुपर स्पेसियलिटी उपचार तक की सुविधाएं एक ही कांप्लेक्स में हैं। यह खूबी एम्स में भी नहीं है।
अस्पताल के निदेशक एन. रविकुमार जो रिवर्स ब्रेन ड्रेन साइंटिस्ट हैं, ने बताया कि जिपमेर एम्स की बराबरी का है। लेकिन दिल्ली में नहीं होने के कारण इसे एम्स की भांति ‘ब्रांड इंडिया’ की पहचान नहीं मिली। लेकिन यह ‘ब्रांड साउथ इंडिया’ जरूर है। यहां आने वाले मरीजों में 20 फीसदी पांडिचेरी, 10 फीसदी केरल, 30 फीसदी तमिलनाडु, 10 फीसदी पश्चिम बंगाल और बाकी, कर्नाटक, उड़ीसा एवं आंध्र प्रदेश से हैं। यानी दक्षिण भारत के करीब-करीब सभी राज्यों को यह सेवा प्रदान कर रहा है। इसके अलावा बड़े पैमाने पर यह टेलीमेडिसिन के जरिये भी दक्षिणी राज्यों के छोटे अस्पतालों से जुड़ा है।
एमबीसीएस की फीस ढाई सौ रुपये-देश का शायद ही कोई मेडिकल संस्थान हो जो इतनी फीस में एमबीबीएस करा रहा हो। एम्स में भी यह फीस साढ़े बारह सौ रुपये महीने है। यहां एमबीबीएस की डेढ़ सौ सीटें हैं जिन्हें इस मामूली फीस के अलावा सिर्फ होस्टल का खर्च देना पड़ता है जो सालाना करीब 25 हजार रुपये है। करीब-करीब यह शुल्क नर्सिग कालेज में है। अस्पताल में रोजाना छह हजार मरीज आते हैं।
फ्री कैंसर दवा-जिपमेर में ही क्षेत्रीय कैंसर संस्थान भी है जिसमें रोगियों का उपचार निशुल्क होता है तथा उन्हें सभी दवाएं निशुल्क प्रदान की जाती हैं भले ही वे लाख-डेढ़ लाख रुपये की क्यों न हो। यह कानूनी प्रावधान है। गरीबी की रेखा से ऊपर के लोगों से रेडियोथैरेपी और कुछ अन्य क्रियाओं का शुल्क लिया जाता है जो बाजार की दर का बीसवां हिस्सा है। अस्पताल में मेडिकल शिक्षकों को ट्रेनिंग का भी केंद्र है जहां देश भर मे शिक्षक आते हैं। इतना ही नहीं, यहां पोस्ट ग्रेजुएट की दो सौ सीटें हैं। हाल में सुपर स्पेसियलिटी कोर्स भी शुरू किया गया है। पिछली सरकार ने इसे राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया था।
जिस स्थान पर आज जिपमेर है वहां पर अस्पताल और मेडिकल कालेज की स्थापना 1823 में फ्रांस सरकार ने की थी ताकि पांडिचेरी मे रह रहे फ्रांसीसी आधुनिक चिकित्सा की पढ़ाई कर सकें तथा उन्हें उपचार मिले। आजादी के बाद पांडिचेरी का प्रशासन भारत के हाथों आया था यह इस कालेज का नाम धन्वन्तिरि मेडिकल कालेज पड़ा। लेकिन जिपमेर अधिनियम 1964 में बना और अब संस्थान अपनी स्थापना के 50 साल पूरे करने जा रहा है। 26 सितंबर को स्वर्ण जयंती समारोह में राष्ट्रपति स्वयं पधार रहे हैं। 2059 बेड के इस अस्पताल की खूबी यह है कि इसमें प्राइमरी से लेकर सुपर स्पेसियलिटी उपचार तक की सुविधाएं एक ही कांप्लेक्स में हैं। यह खूबी एम्स में भी नहीं है।
अस्पताल के निदेशक एन. रविकुमार जो रिवर्स ब्रेन ड्रेन साइंटिस्ट हैं, ने बताया कि जिपमेर एम्स की बराबरी का है। लेकिन दिल्ली में नहीं होने के कारण इसे एम्स की भांति ‘ब्रांड इंडिया’ की पहचान नहीं मिली। लेकिन यह ‘ब्रांड साउथ इंडिया’ जरूर है। यहां आने वाले मरीजों में 20 फीसदी पांडिचेरी, 10 फीसदी केरल, 30 फीसदी तमिलनाडु, 10 फीसदी पश्चिम बंगाल और बाकी, कर्नाटक, उड़ीसा एवं आंध्र प्रदेश से हैं। यानी दक्षिण भारत के करीब-करीब सभी राज्यों को यह सेवा प्रदान कर रहा है। इसके अलावा बड़े पैमाने पर यह टेलीमेडिसिन के जरिये भी दक्षिणी राज्यों के छोटे अस्पतालों से जुड़ा है।
एमबीसीएस की फीस ढाई सौ रुपये-देश का शायद ही कोई मेडिकल संस्थान हो जो इतनी फीस में एमबीबीएस करा रहा हो। एम्स में भी यह फीस साढ़े बारह सौ रुपये महीने है। यहां एमबीबीएस की डेढ़ सौ सीटें हैं जिन्हें इस मामूली फीस के अलावा सिर्फ होस्टल का खर्च देना पड़ता है जो सालाना करीब 25 हजार रुपये है। करीब-करीब यह शुल्क नर्सिग कालेज में है। अस्पताल में रोजाना छह हजार मरीज आते हैं।
फ्री कैंसर दवा-जिपमेर में ही क्षेत्रीय कैंसर संस्थान भी है जिसमें रोगियों का उपचार निशुल्क होता है तथा उन्हें सभी दवाएं निशुल्क प्रदान की जाती हैं भले ही वे लाख-डेढ़ लाख रुपये की क्यों न हो। यह कानूनी प्रावधान है। गरीबी की रेखा से ऊपर के लोगों से रेडियोथैरेपी और कुछ अन्य क्रियाओं का शुल्क लिया जाता है जो बाजार की दर का बीसवां हिस्सा है। अस्पताल में मेडिकल शिक्षकों को ट्रेनिंग का भी केंद्र है जहां देश भर मे शिक्षक आते हैं। इतना ही नहीं, यहां पोस्ट ग्रेजुएट की दो सौ सीटें हैं। हाल में सुपर स्पेसियलिटी कोर्स भी शुरू किया गया है। पिछली सरकार ने इसे राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया था।
No comments:
Post a Comment