Saturday 4 April 2015

गोवा टू बंगलूरू:मार्गदर्शक से मूकदर्शक तक आडवाणी.#BJP की दो साल पहले गोवा से आडवाणी को हाशिए पर डालने की प्रकिया बंगलूरू में पूरी.भाजपा में आडवाणी का सूर्य अस्त हो चुका है

गोवा टू बंगलूरू:मार्गदर्शक से मूकदर्शक तक आडवाणी.#BJP की दो साल पहले गोवा से आडवाणी को हाशिए पर डालने की प्रकिया बंगलूरू में पूरी.भाजपा में आडवाणी का सूर्य अस्त हो चुका है
लाल कृष्‍ण आडवाणी के जिन रथों पर सवार होकर भाजपा केंद्र की सत्ता का व्यूह भेद पाई थी, उन्हीं रथों के पहिए 2013 में गोवा में पटरी से उतरे और बंगलुरू में उसके परखच्‍चे उड़ गए।

पिछले लोकसभा चुनावों में बहुमत पाकर सत्ता में आई भाजपा ने सबसे पहले अपने तीन वरिष्ठ नेताओं अटल ‌बिहारी वाजपेयी, लालकृष्‍ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को संसदीय समि‌ति से बाहर कर मार्गदर्शक मंडल में रखा। बंगलूरू में हो रही राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उनसे मार्गदर्शन का अधिकार भी छीन लिया गया।

राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के पहले दिन से ही मुरली मनोहर जोशी चर्चा से बाहर थे, जबकि संभावना था कि पार्टी मे पितृपुरुष की पदवी पर बैठे आडवाणी को बोलने का मौका दिया जा सकता है। शुक्रवार को दिन भर चर्चा रही कि किसी प्रस्ताव में हस्तक्षेप या किसी अन्य माध्यम से आडवाणी को बोलने का मौका दिया जाऐगा।

हालांकि शनिवार को भी वक्ताओं की सूची में उनका नाम नहीं डाला गया। अनदेखी से व्यथित आडवाणी ने स्वयं ही भाषण देने से इनकार कर दिया।
 

भाजपा में आडवाणी का सूर्य अस्त हो चुका है

1980 में पार्टी के गठन के बाद ये पहला मौका है जब आडवाणी कार्यकारिणी की बैठक को संबोधित नहीं कर पाए। इससे पहले 2013 में गोवा में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में अनुपस्थित रहने के कारण आडवाणी का भाषण नहीं हो पाया था।

भाजपा में आडवाणी के पराभव की घोषणा तो उसी समय हो गई थी, जब उन्हें पार्टी की सर्वाधिक शक्तिशाली इकाई संसदीय समिति से निकालकर म्यूजियम जैसे मार्गदर्शक मंडल में सजा दिया गया। नरेंद मोदी और अमित शाह के उदय और लोकसभा चुनावों के बाद विधानसभा चुनावों में राज्य दर राज्य विजय से ये तय हो गया था‌ कि जब‌ तक यह जोड़ी है, तब तक आडवाणी का सूर्य अस्त ही रहेगा।

राष्ट्रीय कार्यक‌ारिणी में आडवाणी की अनदेखी ने उस मत की पुष्टि कर दी। मोदी युग के आरंभ और आडवाणी युग के अंत की जो प्रक्रिया 2013 की गर्मियों में गोवा से शुरु हुई थी, वह बंगलूरू में पूरी हो गई। भाजपा को अब 'आडवाणी-मुक्त' माना जा सकता है।
 

दो साल पहले शुरु हुई थी आडवाणी के अंत की प्रक्रिया

दो साल पहले शुरु हुई थी आडवाणी के अंत की प्रक्रिया
भाजपा में आडवाणी को हाशिए पर डालने की प्रकिया जून 2013 में गोवा में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक से शुरू हुई थी।

2009 में भाजपा ने लाल कृष्‍ण आडवाणी को प्रधानमंत्री पद का उम्‍मीदवार घो‌षित किया था, उस समय एक टीवी चैनल ने नरेंद्र मोदी से पूछा कि पार्टी अगर चुनाव हार गई, तो क्या अगले चुनाव में वे प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। जवाब में मोदी ने कहा था, 'हमारे नेता आडवाणी हैं, आडवाणी ही रहेंगे।'

हालांक‌ि जब 2014 के लोकसभा चुनाव करीब आए आडवाणी के दोबारा प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने की संभावनाओं पर मोदी ने ही पानी फेर दिया।

जून, 2013 में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से पहले भाजपा के चुनाव प्रचार की कमान आडवाणी के हाथ में थी। उस बैठक से चंद दिनों पहले चर्चा होने लगी कि नरेंद्र मोदी को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया जा सकता है।
 

आडवाणी ने मोदी को रोकने की हर संभव कोशिश की

आडवाणी ने मोदी को रोकने की हर संभव कोशिश की
चुनाव प्रचार समिति से हटाए जाने का अर्थ था प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी से हटाया जाना। आडवाणी ने मोदी के समर्थन में उमड़े तूफान को रोकने के लिए कार्यकारिणी के ब‌हिष्कार का अस्त्र फेंका।

बैठक गोवा में हो रही थी, आडवाणी दिल्ली में थे। उन्होंने बीमारी का बहाना बनाकर जाने से मना कर दिया। आडवाणी समर्थक कई अन्य नेताओं ने भी कार्यकारणी में जाने से मना कर दिया। उन नेताओं में जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा आदि शामिल थे। अधिकांश ने न जाने का कारण बीमारी ही बताया।

हालांकि यशवंत सिन्हा से जब ये पूछा गया था कि क्या वे बीमारी के कारण गोवा नहीं जा रहे, तो वह पूछने वाले पर भड़क गए। तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने उस समय आडवाणी को मनाने की हर संभव को‌शिश की, लेकिन वह नहीं माने। वह गोवा न जाने पर अड़े रहे।
 

आडवाणी का एक भी पैंतरा काम न आया

आडवाणी का एक भी पैंतरा काम न आया
दो दिनों तक चली राष्ट्रीय कार्यका‌रिणी की बैठक में नरेंद्र मोदी को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बना दिया गया। आडवाणी समेत कई वरिष्ठ नेताओं की अनु‌पस्थिति का पैंतरा काम नहीं आया।

बीजेपी के सहयोगी जदयू ने भी मोदी को रोकने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रही। चंद दिनों बाद उसने बीजेपी से 16 साल पुराना गठबंधन तोड़ लिया। आडवाणी ने राष्ट्रीय पटल पर तेजी से उभर रहे मोदी को रोकने के लिए आखिरी कोशिश इस्तीफे के रूप में की।

9 जून, 2013 को नरेंद्र मोदी को चुनाव प्रचार की कमान सौंपी गई और अगले ही दिन यानी 10 जून, 2013 को आडवाणी ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। आडवाणी के इस्तीफे पर तूफान आना तय ‌था और हुआ भी वही।

पार्टी के आला नेता आडवाणी को मनाने के ‌लिए दौड़ पड़े। हालांकि मोदी और उनकी लॉबी ने चुप्पी साधे रखी।
 

आडवाणी के इस्तीफे का अस्त्र भी नहीं चल पाया

आडवाणी के इस्तीफे का अस्त्र भी नहीं चल पाया
आडवाणी ने अपने इस्तीफे में कहा था कि भाजपा अब उन आदर्शों वाली पार्टी नहीं रही, जैसी इसे श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपध्याय, नानाजी देशमुख और अटल बिहारी वाजपेयी ने बनाया था।

तत्कालीन भाजपा अध्‍यक्ष राजनाथ ‌सिंह ने आडवाणी का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया। एक दिन बाद आरएसएस के हस्तक्षेप के बाद आडवाणी ने इस्तीफा वापस ले लिया। उस समय राजनाथ सिंह ने कहा था क‌ि आडवा‌णी की जो भी मुद्दे उठाएं हैं, उनका उचित तरीके से समाधान किया जाएगा। पार्टी की कार्यशैली में कोई बदलाव नहीं होगा।

आडवाणी ने इस्तीफा वापस तो ले लिया, लेकिन वे अब ये भी समझ चुके थे कि भाजपा के भीतर वह नक्‍कारखाने की तूती भर रह गए हैं। उनकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं बचा है।

उसी साल 13 सितंबर को भाजपा संसदीय बोर्ड ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घो‌षित कर दिया। आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और सुषमा स्वराज ने विरोध किया, लेकिन बहुमत के आगे उन्हें झुकना पड़ा।
 

आडवाणी ने कहा, पीएम न बनने का अफसोस नहीं

नवंबर-दिसंबर, 2013 में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए। दिल्‍ली और मिजोरम को छोड़कर भाजपा ने मध्य प्रदेश राजस्‍थान और छत्तीसगढ़ में रिकॉर्डतोड़ जीत हासिल की। 2014 की गर्मियों में हुए लोकसभा चुनावों में मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने 282 सीटें जीतीं। 30 सालों बाद किसी पार्टी को लोकसभा में बहुमत मिला।

भाजपा का ग्राफ तेजी से बढ़ता रहा और आडवाणी हाशिए पर फिसलते गए। लोकसभा चुनावों में ऐतिहासिक जीत के बाद मोदी ने मंत्री पद के लिए अधिकत 75 वर्ष की उम्र सीमा तय कर उनके लिए मंत्रालय के दरवाजे भी बंद कर दिए।

पिछले 11 महीने में गाहेबगाहे कई बार ऐसे मौके आए हैं, जिससे ये लगा कि आडवाणी और मोदी के रिश्ते सुमधुर है। हालांकि सूत्रों की मानें तो राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में मोदी-शाह ने उन्हें केवल इसलिए नहीं बोलने दिया कि कहीं वह पार्टी की फजीहत न करा दें।

बहरहाल पिछले वर्ष नवंबर महीने में दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि उन्हें प्रधानमंत्री न बन पाने का कोई अफसोस नहीं है। हाल ही उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।

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