GSSV LAUNCHING TEST OF Cryogenic Engine II 20 years ago Under pressure from the U.S., Russia denied TO INDIA क्या साकार होगा क्रायोजेनिक इंजन का सपना?
क्या साकार होगा क्रायोजेनिक इंजन का सपना?
रविवार, 5 जनवरी, 2014 को 05:02 IST तक के समाचार
Technically, today was denied to India 20 years ago. Under pressure from the U.S., Russia denied.
भारत का जियो सिंग्क्रनस
सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएसवी) का कल प्रक्षेपण होने वाला है. इसरो ने
मुझे बताया है कि इसकी उल्टी गिनती सामान्य ढंग से चल रही है. यह प्रक्षेपण
भारत के लिए बहुत अहमियत रखता है.
आठवीं बार इस राकेट का प्रक्षेपण किया जाएगा. इससे
पहले केवल दो बार ये राकेट पूरी तरह से सफल हुआ है और 2010 में दो बार यह
राकेट असफल रहा था.पहली बार तो क्रायोजेनिक इंजन का एक क्लिक करें बूस्टर पंप जाम हो गया था और दूसरी बार जब क्रिस्मस के दिन इसका लांच हुआ था तो इसके कुछ कनेक्टर फेल हो गए थे. इस कारण राकेट को हवा में ही ध्वस्त करना पड़ा.
लेकिन पिछली बार अगस्त 2013 में इसरो को इस समय एक बड़ा धक्का लगा जब 74 मिनट पहले इसी राकेट में एक लीक पकड़ा गया था. इसमें करीब 750 किलोग्राम ईंधन का रिसाव हो गया था और अगर इस रिसाव को पकड़ा नहीं जाता तो उस समय हिंदुस्तान के राकेट लांच पैड को काफी नुकसान हो सकता था.
80 हाथियों का वजन
ये हिंदुस्तान का बड़ा राकेट है और इससे हिंदुस्तान को काफी उम्मीदें हैं.
ये राकेट 49 मीटर ऊंचा है. मतलब 17 मंजिली बिल्डिंग के बराबर इसकी ऊंचाई है.
करीब 419 टन का इसका वजन है. यह वजह 80 व्यस्क हाथियों के वजन के बराबर है.
हिंदुस्तान को इसकी काफी सख्त ज़रूरत है क्योंकि संचार संबंधी क्लिक करें उपग्रह को छोड़ने में इसी राकेट से मदद मिलेगी.
अगर भारत इसके प्रक्षेपण में कामयाब हो जाता है तो वो अपने संचार उपग्रहों को इस राकेट से छोड़ पाएगा.
क्रायोजेनिक इंजन का परीक्षण
अगर इस राकेट का प्रक्षेपण कई बार सफल हो जाता है तो आप दुनिया भर से व्यावसायिक काम पा सकते है. दूसरे देशों के संचार उपग्रह भारत के लांच पैड से छोड़े जा सकेंगे.
इस राकेट के तीसरे चरण में एक क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल हो रहा है. क्रायोजेनिक इंजन में तरल हाइड्रोजन और तरल ऑक्सीजन का इस्तेमाल होता है, जो बरफ से भी बहुत कम तापमान पर काम करती है.
ये तकनीकी आज 20 साल पहले भारत को देने से इनकार की गई थी. अमरीका के दबाव में रूस ने इनकार किया था.
तब से भारत इस तकनीकी के विकास में लगा है. जीएसएलवी की इस उड़ान में जो क्रायोजेनिक इंजन लगा है वो भारत का अपना बनाया हुआ है.
इसलिए इस प्रक्षेपण की कामयाबी बहुत ज़रूरी है. सेटेलाइट से अधिक अहमियत क्रायोजेनिक इंजन की है.
दुनिया के इनकार का जवाब
पिछले 20 साल में कोई ऐसा देश नहीं है जिसने क्रायोजेनिक इंजन की तकनीकी का विकास किया हो. यह काफी जटिल तकनीकी है.
क्लिक करें पोखरण विस्फोट के बाद भारत को जब यह तकनीकी देने से इनकार कर दिया गया तब से भारत इसे बनाने में लगा है. इसके विकास पर कई सौ करोड़ रुपए लग गए हैं, लेकिन अगर ये कामयाब हो जाता है तो भविष्य में भारत का काफी पैसा बचेगा.
इसलिए कल का प्रक्षेपण इसरो के लिए काफी महत्वपूर्ण है. अगर कल का परीक्षण असफल हो जाता है तो फिर उन्हें शून्य से शूरुआत करनी पड़ेगी.
लेकिन इसरो के वैज्ञानिक मुझे बता रहे हैं कि उन्हें पूरा भरोसा है कि कल का परीक्षण सफल होगा.
किसी राकेट को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने के दौरान उसका ईंधन भी साथ में ले जाना पड़ता है. ऐसे में सबसे हल्का ईंधन तरल हाईड्रोजन और तरल ऑक्सीजन है और उसे जलाने पर सबसे अधिक ऊर्जा मिलती है.
क्रायोजेनिक इंजन के फायदे
भारत ने इससे पहले एक बार अपने क्रायोजेनिक इंजन के साथ उड़ान भरी है लेकिन वो असफल हो गया था.
यह दूसरी बार है जब भारत अपना क्रायोजेनिक इंजन इस्तेमाल कर रहा है और उम्मीद है कि इस बार यह कामयाब होगा.
मुख्य बात यह है कि राकेट कितनी तेजी से जा रहा है और राकेट के साथ जितना कम वजन होगा वो उतनी अधिक दूर तक जा सकेगा.
भारत ने हाल में जिस मंगलयान का प्रक्षेपण किया था, उसमें क्रायोजेनिक इंजन के इस्तेमाल की आवश्यकता नहीं थी. उसे क्लिक करें पोलर सेटेलाइट लांच व्हीकल से छोड़ा गया था, जिसमें क्रायोजेनिक इंजन नहीं लगाया जाता है.
भारत मंगलयान को छोड़ने के लिए जीएसएलवी का इंतजार करने की अवस्था में नहीं था. जीएसएलवी इस समय परीक्षण की अवस्था में है. वो अभी कामयाब राकेट नहीं है.
अंतरिक्ष में बादशाहत की होड़
मंगलयान का मुख्य उद्देश्य यह कि भारत मंगल तक पहुंच जाए और चीन से पहले पहुंच जाए.
अगर मंगलयान को जीएसएलवी से भेजा जाता और भारत चीन से पिछड़ जाता तो इससे उसे काफी मायूसी होती.
मंगलयान अभियान अभी जारी है, लेकिन अभी तक के उसके सफर में हमारे छोटे राकेट ने उसे सही दिशा और सही गति दी है.
इस तरह मंगलयान के लिए अगर हमारे पास क्लिक करें जीएसएलवी होता तो बहुत अच्छी बात होती लेकिन अगर नहीं है तो भी कोई बात नहीं.
कल होने वाले प्रक्षेपण के साथ एक उपग्रह जी-सैट को भी भेजा जा रहा है. ये एक संचार उपग्रह है. यह बहुत महंगा उपग्रह नहीं है.
इस राकेट में खास तौर से क्रायोजेनिक इंजन का परीक्षण किया जाना है. अगर यह परीक्षण सफल हो जाता है तो यह इसरो और भारत के लिए बहुत बड़ी कामयाबी होगी.
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