Thursday 18 July 2013

हमको बैठा लीजिए, मेरी बेटी मर जाएगी' :छपरा (बिहार)

हमको बैठा लीजिए, मेरी बेटी मर जाएगी'
:छपरा (बिहार)

बिहार, छपरा, विषाक्त भोजन, त्रासदी, मृतक बच्ची का परिवार 
 

मध्याहन भोजन खाने से मरने वाले बच्चों की संख्या बढकर 23 हुई, 25 अब भी बीमार

 
बिहार के छपरा ज़िले के एक सरकारी स्कूल में विषाक्त भोजन खाकर मरने वाली एक बच्ची के पिता के आक्रोश को इस बात से समझा जा सकता है कि वे घटना के लिए ज़िम्मेदार लोगों के लिए मौत की सज़ा की माँग कर रहे हैं.
इस क्लिक करें त्रासदी में जान गँवाने वाली एक पाँच वर्षीय बच्ची के पिता अजय ने बीबीसी से कहा, "यहाँ सीबीआई की जाँच कराई जाए. यहाँ कोई सरकार नहीं आ रही है. आलतू-फ़ालतू के कहीं-कहीं के नेता लोग आ रहे हैं. यहाँ कोई जायज़ काम नहीं हो रहा है. सरकार देखे कि क्या हुआ है, कैसे हुआ है और कौन दोषी है. उसको मौत की सज़ा दी जाए क्योंकि उसके लिए यह सज़ा भी कम होगी."
क्लिक करें 16 जुलाई की तारीख़ अजय के जीवन में एक त्रासदी की तरह रहेगी. उस दिन का ज़िक्र करते हुए वह कहते हैं, "मेरे को क़रीब बारह-साढ़े बारह बजे पता चला कि सारे लड़के उल्टी कर रहे हैं. हम भी अपने खेतों में थे. वहाँ से दौड़े हुए गए. वहाँ पहुँचकर देखा कि मेरी बेटी को मेरा छोटा भाई लेकर चला आया था. मैंने अपनी बेटी से पूछा कि क्या हुआ है बेटा तुमको. वो बोली कि कुछ नहीं हुआ है हमको. फिर हमने उससे पूछा कि तुमने कुछ खाया है. वह बोली कि हाँ हमने खाया है लेकिन हमको कुछ नहीं हुआ है."

एम्बुलेंस सुविधा

"मेरी बेटी बस पाँच साल की थी. मेरी बेटी कह रही थी कि पापा हमको कुछ नहीं हुआ है. बोली कि पापा हमको घर ले चलो. चाचा को बुलाओ और गाड़ी पर बिठाओ और घर ले चलो."
अजय, मृतक बच्ची के पिता
"फिर गाड़ी लेकर लोग आए. उसको उठाकर मशरख़ ले गए. पहले क्लिक करें सरकारी हॉस्पीटल ले गए फिर वहाँ एक प्राइवेट अस्पताल ले जाकर दिखाए. वहाँ एक बोतल पानी चढ़ाया गया. वो डॉक्टर बोला कि आपको जहाँ ले जाना है ले जाईए. मेरी बेटी तब तक लार गिराने लगी."
अजय ने बताया, "उसके बाद वहाँ से हम अपने भाई को बोले कि कोई गाड़ी की व्यवस्था करो और चलो. उसने कहा कि एम्बुलेंस आ रही है. एम्बुलेंस वाले भी नहीं बैठा रहे थे."
उनकी लाचारगी और हालात की गंभीरता को इस बात से भी समझा जा सकता है कि एम्बुलेंस की सुविधा के लिए अजय को गिड़गिड़ाना पड़ा था.
वह कहते हैं, "वे लोग गाड़ी पर हमको नहीं बिठा रहे थे. हम गाड़ी को पकड़कर लटक गए और कहने लगे कि हमको बैठा लीजिए और ले चलिए. मेरी बेटी मर जाएगी. तब जाकर मेरे भाई ने गाड़ी का गेट खुलवाया. थोड़ी दूर जाने के बाद मेरी बेटी के नाक और मुँह से बहुत ज़ोर से गाज आने लगा बहुत ज्यादा. उसकी साँसे तेज़ चलने लगी."

आख़िरी शब्द

बिहार, छपरा, विषाक्त भोजन, त्रासदी, मृतक बच्ची का परिवार
अजय को एम्बुलेंस सुविधा के लिए गिड़गिड़ाना पड़ा था.
"फिर हम छपरा के सदर अस्पताल पहुँचे. वहाँ जो भी डॉक्टर आए वह सिर्फ़ हाथ पकड़कर चलते बने. इस पर हम चिल्लाने लगे. तब तक कोई आया और बताया कि वह मर गई है. वे लोग मेरी बेटी को ले गए, क्लिक करें चीर-फाड़ (पोस्टमॉर्टम) किए उसके बाद हमारे घर पहुँचाए."
इस घटना के बाद से ही अजय समेत कई परिवारों में मातम का माहौल है. अजय के छोटे भाई भी सदमे की अवस्था में है.

मरने से पहले बेटी के कहे आख़िरी शब्दों को दोहराते हुए अजय कहते हैं, 
"मेरी बेटी बस पाँच साल की थी. मेरी बेटी कह रही थी कि पापा हमको कुछ नहीं हुआ है. बोली कि पापा हमको घर ले चलो. चाचा को बुलाओ और गाड़ी पर बिठाओ और घर ले चलो."

मिड डे मील या दोपहर का भोजन कार्यक्रम देश भर के सरकारी स्कूलों में बच्चों का स्कूल और पढ़ाई-लिखाई में रूझान बनाए रखने के लिए चलाया जाता है.
स्कूलों में दिए जाने वाले पोषाहार की गुणवत्ता को लेकर समय-समय पर कई नकारात्मक खबरें प्रकाश में आती रही हैं लेकिन छपरा मिड डे मील त्रासदी ने इस योजना और सरकारी स्कूलों के काम काज पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं जिनके जवाब अभी ढूंढे खोजे जाने हैं.

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