गुजरात V/s बिहार:
विकास के मामले में कौन (नरेंद्र मोदी|नीतीश कुमार) कितने पानी में है, जानिए...
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अहमदाबाद। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
के बीच प्रतिद्वंद्विता काफी पुरानी है। दोनों ही उनके समर्थकों की नजर
में विकास के रोल मॉडल हैं। मोदी और नीतीश के संघर्ष अपने-अपने राज्यों की
विकास गाथा के आधार पर खुद को राष्ट्रीय परिदृश्य में स्थापित करने का रहा
है। जबसे जद यू ने एनडीए से अलग राह चुनी है, तभी से दोनों के बीच यह
संघर्ष और भी तीखा हो गया है। यह सवाल अक्सर ही उठता रहा है कि देश के लिए
विकास का कौन सा मॉडल बेहतर है? गुजरात का या बिहार का?
हालांकि कई आर्थिक विश्लेषक इस बहस को अप्रासंगिक मानते हैं, लेकिन
इसके बावजूद पिछले लंबे अरसे से अक्सर दोनों मॉडल चर्चा के केंद्र में रहे
हैं। इसकी वजह भी है। इन दोनों ही राज्यों ने अपने मुख्यमंत्रियों के कारण न
केवल भारत के आर्थिक विश्लेषकों का, बल्कि दुनिया भर के लोगों का ध्यान
खींचा है। नीतीश कुमार की अगुवाई में जहां बिहार एक बदहाल राज्य से ऊपर
उठने में सफल हुआ है तो मोदी के दस साल के शासनकाल में गुजरात ने वाइब्रेंट
स्टेट की एक अलग ही इमेज बनाई है।
विकास पर ही सारा जोर:
जगदीश भगवती का मानना है कि सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में निवेश के लिए
संसाधन तेज आर्थिक विकास से ही जुटाए जा सकते हैं। यानी उनका सारा जोर
केवल विकास और विकास पर है। उनका मानना रहा है कि इससे शुरुआत में सामाजिक
असमानताएं बढ़ेंगी, लेकिन संसाधन मौजूद हों तो सरकार इसे कम करने में सफल
हो सकती है। ऐसा ही गुजरात में हुआ है। वहां इसीलिए निजी निवेश को बढ़ावा
दिया गया। लेकिन गुजरात के साथ एक सकारात्मक बात यह भी थी कि वहां पहले से
ही सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत था। इसलिए निजी निवेश को बढ़ावा देने से
उसका सीधा फायदा राज्य और लोगों दोनों को मिला।
राज्यों की तुलना नहीं की जा सकती:
भारत के राज्यों के संदर्भ में इकोनॉमिक ग्रोथ को मॉडल्स में बांधना
बहुत ही मुश्किल है। हर राज्य की अलग-अलग परिस्थितियां हैं, प्राकृतिक साधन
भी अलग-अलग हैं। गुजरात तेजी से विकास कर रहा है, क्योंकि वहां उद्योगों
के लिए जरूरी संसाधन हैं और सरकार ने इसी अनुरूप नीतियां भी बनाई हैं। मैं
मानता हूं कि गुजरात का मॉडल अच्छा है, लेकिन बिहार या केरल या किसी और
राज्य के साथ इसकी तुलना नहीं की जानी चाहिए।
- डीएस रावत, सेक्रेटरी जनरल, एसोचैम
सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश:
डॉ. अमर्त्य सेन का मानना है कि भारत को तेज विकास के लिए सोशल
इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश करना चाहिए। इससे लोगों की प्रोडक्टिविटी बढ़ेगी
और विकास की प्रक्रिया तेज होगी। यदि ऐसा नहीं किया गया तो सामाजिक
असमानता बढ़ेगी और विकास बेमानी होकर रह जाएगा। विश्लेषकों का मानना है कि
सेन ऐसा कहकर बिहार के विकास मॉडल की परोक्ष रूप से वकालत कर रहे हैं।
विश्लेषकों का कहना है कि बिहार में पिछले कुछ दशकों के दौरान जो स्थिति
रही है, उसमें सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश जरूरी भी हो गया था। लेकिन
अब बिहार को इससे आगे जाकर निजी निवेश को बढ़ावा देना चाहिए, जो गुजरात कर
रहा है।
यह तो पर्सनैलिटी क्लैश है:
यह विचारधारा से ज्यादा दो लोगों की पर्सनैलिटी क्लैश है। वैसे भी इसे
ग्रोथ के दो अलग-अलग मॉडल के रूप में देखना ठीक नहीं है। गुजरात में विकास
हुआ है, लेकिन इसका सारा श्रेय नरेंद्र मोदी को नहीं दे सकते क्योंकि नियम-कायदों को सीमित कर इंडस्ट्री को प्रोत्साहित करने की नीति
दशकों पुरानी है। देश के अन्य राज्यों में ग्रोथ का कोई घोषित मॉडल है
भी, यह कहना मुश्किल है। पॉपुलिस्ट नीतियों की बात है तो मप्र सरकार भी
सस्ती कीमत पर अनाज दे रही है।
-आर जगन्नाथन, वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार
किसी राज्य का विकास इस बात पर भी निर्भर करता है कि वहां निवेश कितना
हो रहा है। ज्यादा निवेश इस बात का संकेत होता है कि अमुक राज्य में हालात
अच्छे हैं। कुछ अरसा पहले एसोचैम ने एक रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट
में मार्च 2003 से मार्च 2013 की अवधि में दोनों ही राज्यों के निवेश
संबंधी आंकड़े पेश किए गए थे।
सार्वजनिक निवेश
बिहार आगे:
सार्वजनिक निवेश के मामले में बिहार में यह दर 20 फीसदी सालाना रही है, जबकि इस अवधि में गुजरात में निवेश 14.1 फीसदी रहा है।
निजी निवेश
गुजरात आगे:
निजी निवेश के मामले भी अगर फीसदी में देखें तो बिहार में यह दर 104.5
फीसदी सालाना रही, जबकि गुजरात में 31.9 फीसदी रही। हालांकि कुल राशि के
मामले में गुजरात कहीं आगे रहा। गुजरात में इस अवधि के दौरान बिहार की
तुलना में चार गुना अधिक निजी निवेश हुआ।
विकास में कौन राज्य कहां?
गुजरात
10.2%
2001-2011 के बीच औसत वार्षिक विकास दर औसत राष्ट्रीय विकास दर से 2.5% ज्यादा।
7.5%
1991-2001 के बीच औसत वार्षिक विकास दर मोदी के शासनकाल से पहले भी यह दर राष्ट्रीय विकास दर से थोड़ी ज्यादा (1.4) रही।
बिहार
8.2%
2001-2011 के बीच औसत वार्षिक विकास दर राष्ट्रीय विकास दर से 0.5 फीसदी ज्यादा।
2.7%
1991-2001 के बीच वार्षिक विकास दर औसत राष्ट्रीय विकास दर से 3.4 फीसदी कम रही। इस दौरान राज्य में लालू प्रसाद सत्ता में रहे।
आगे पढ़ें, इससे क्या निकलता है निष्कर्ष....
निष्कर्ष...
1. गुजरात में विकास का माहौल पहले से ही रहा है, लेकिन नरेंद्र मोदी के शासनकाल में इसमें बढ़ोतरी हुई।
2. नीतीश कुमार के आने के पहले बिहार बदहाल राज्य था। वर्ष 2005 में नीतीश मुख्यमंत्री बने और उसके बाद राज्य ने तेजी से प्रगति की। हालांकि
2001-11 के दशक में यह गुजरात की तुलना में पीछे ही था।
3. वर्ष 2011 में बिहार की विकास दर (10.9 फीसदी) ने गुजरात की विकास दर (9.6 फीसदी) को पीछे छोड़ दिया।
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