Sunday 2 November 2014

बांग्लादेशः एक और इस्लामी नेता को 1971 के युद्ध अपराधों के लिए मौत की सज़ा

बांग्लादेशः एक और इस्लामी नेता को 1971 के युद्ध अपराधों के लिए मौत की सज़ा


3 nov

मीर क़ासिम अली


बांग्लादेश में सबसे बड़ी इस्लामी पार्टी जमात-ए-इस्लामी के एक और नेता को 1971 के युद्ध अपराधों के लिए मौत की सज़ा सुनाई गई है.
मीडिया कारोबारी और नेता मीर क़ासिम अली पर 14 आरोप थे, जिनमें चटगांव में चरमपंथी घटनाओं के आरोप भी थे.
उन्हें आठ मामलों में दोषी पाया गया. चार दिन के भीतर ही जमात-ए-इस्लामी के दो बड़े नेताओं को मौत की सज़ा सुनाई जा चुकी है.
इसके ख़िलाफ़ पार्टी ने गुरुवार को देशभर में 24 घंटों का बंद बुलाया है.
पिछले बुधवार को संगठन के पूर्व प्रमुख मोतिउर रहमान निज़ामी को भी मौत की सज़ा सुनाई गई थी.

मीर क़ासिम अली

कार्यकर्ता तीन दिनों से इसका विरोध कर रहे हैं.
अदालत ने कहा कि मीर अली के नेतृत्व में पाकिस्तानी सेना के बांग्लादेशी समर्थकों ने 1971 चटगांव में 'आतंक मचा दिया था.'
बांग्लादेश की आज़ादी के लिए नौ महीने चले मुक्ति युद्ध में मरने वाले की सही संख्या को लेकर अलग-अलग अपुष्ट आंकड़े हैं.
बांग्लादेश के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ क़रीब 30 लाख लोग इस दौरान मारे गए थे.


मोतिउर-रहमान-निज़ामी, जमात-ए-इस्लामी
जमात-ए-इस्लामी के पूर्व प्रमुख मोतिउर-रहमान-निज़ामी को भी फ़ांसी की सज़ा दी गई है.
शेख हसीना सरकार ने 2010 में अपराध युद्ध न्यायालय की स्थापना कर 1971 में हुए अपराधों की जांच के आदेश दिए थे.
उन पर अदालत का इस्तेमाल कर राजनीतिक विरोधियों से निपटने के आरोप भी लगते रहे हैं.
मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि यह युद्ध न्यायालय अंतरराष्ट्रीय मानकों पर ख़रा नहीं उतरता.

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