काला धन: पैंतरा बदल रही है मोदी सरकार
भारतीयों का कितना काला धन विदेशों में है? वास्तव में सच्चाई कोई नहीं जानता.
साल
2011 में 8000 करोड़ डॉलर के काले धन के अनुमान पर तत्कालीन प्रधानमंत्री
मनमोहन सिंह ने सवाल उठाए थे, उन्होंने कहा था कि यह बहुत बढ़ा-चढ़ाकर
बताया गया है.भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग संगठन (एसोचैम) का कहना है कि काले धन का आंकड़ा दो लाख करोड़ डॉलर है यानी भारत की जीडीपी से भी अधिक.
जाने-माने स्तंभकार स्वामिनाथन अय्यर का मानना है कि काले धन का आंकड़ा इतना नहीं हो सकता क्योंकि स्विटज़रलैंड में ब्याज दरें भारत के मुक़ाबले बहुत कम हैं और भारतीयों का अपना धन बाहर भेजने का कोई तुक नहीं बनता.
आख़िर कितना है काला धन और सरकार के लिए इसे वापस ला पाना संभव है भी या नहीं?
पढ़िए विश्लेषण
काला धन आख़िर है क्या? इसे लेकर भी प्रारंभिक जानकारी कुछ अस्पष्ट सी है. काला धन वह है जिस पर आयकर नहीं दिया गया है.हालाँकि, भारतीय जनता पार्टी के वादों और गांधी परिवार पर लगाए गए आरोपों के कारण बहुत से लोगों का मानना है कि काला धन दरअसल, वह धन है जो घूस के रूप में लिया गया और उसे विदेश भेज दिया गया.
चुनावी नारा
और काले धन के मुद्दे पर आक्रामक राजनीतिक दावों, अटकलबाज़ियों और मीडिया के लापरवाह रुख़ ने भारतीयों में ग़ुस्सा भर दिया है. इस मुद्दे को भाजपा में पहले लालकृष्ण आडवाणी और फिर नरेंद्र मोदी ने लपका था.भाजपा की दृष्टि में, काले धन की समस्या भ्रष्टाचार से जुड़ी हुई है, और इसे सत्ता में बदलाव के साथ आसानी से हल किया जा सकता है.
मोदी ने आगे कहा, "ये हमारे एमपी साहब कर रहे थे रेलवे लाइन...ये काला धन वापस आ जाए, जहां चाहो वहां रेलवे लाइन कर सकते हैं. ये लूट चलाई है और बेशर्म होकर कहते हैं. सरकार आप चलाते हो और पूछते मोदी को हो- कि कैसे लाएं? जिस दिन भारतीय जनता पार्टी को मौक़ा मिलेगा, एक-एक पाई हिंदुस्तान की वापस लाई जाएगी. और हिंदुस्तान के ग़रीबों के लिए काम लाई जाएगी."
नया कुछ नहीं
उनके काले धन के आंकड़े और काला धन वापस लाने को लेकर मीडिया को सवाल करने चाहिए थे, लेकिन जादुई चुनावी अभियान में सारे तथ्य बह गए.प्रधानमंत्री के रूप में पहले दिन उन्होंने काले धन पर विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया. लेकिन इसके बाद चीज़ें पहले की तरह पुराने ढर्रे पर चलती दिखाई देने लगीं, यहां तक कि सुब्रमण्यम स्वामी और राम जेठमलानी जैसा भाजपाइयों को भी ऐसा लगा.
बड़ा धनकुबेर नहीं
एसआईटी उन विदेशी बैंक के खाताधारकों की सूची की जांच कर रही है जो भारत को कांग्रेस के शासन में ही मिल गई थी.सुप्रीम कोर्ट के दबाव में तीन नाम और सार्वजनिक किए गए क्योंकि उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई शुरू कर दी गई थी.
हालाँकि इन तीनों व्यक्तियों ने आरोपों को ख़ारिज किया है और इनमें से कोई भी वाक़ई में बड़ा धनकुबेर नहीं है. यह भी नहीं बताया गया है कि इनके खाते में कितनी रक़म है और सरकार कितनी रक़म वसूल कर पाएगी.
बदलता पैंतरा
यह साफ़ होता जा रहा है कि सरकार अब काले धन को वापस लाने और इसे जनता में बांटने के वादे से ख़ुद को धीरे-धीरे अलग कर रही है.एक रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्होंने "आयकर विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों से ऐसे क्षेत्रों पर अपनी पकड़ मज़बूत करने के प्रयास करने को कहा है, जहां काले धन की सबसे ज़्यादा गुंजाइश है."
गुजराती निशाने पर?
मेरी राय में समस्या को देखने का यह सही तरीक़ा है. हक़ीक़त यह है कि विदेशी बैंकों के खाताधारकों में से अधिकांश नाम (पहली सूची में 18 में से 15 और तीन नामों की दूसरी सूची में) गुजराती हैं.मेरा अनुमान है कि टेलीविज़न चैनल जो अब तक दावों को अंधाधुंध तरीक़े से प्रचारित कर रहे थे, हताश हो चुके हैं और जब यह स्पष्ट हो जाएगा कि मोदी ने जो कुछ कहा था, वह नहीं कर पाएंगे, तो वे मोदी को अपने निशाने पर लेंगे.
काले धन पर जारी घटनाक्रम पर राष्ट्रीय सहारा लिखता है कि 2006 में जब स्विस बैंकों में काला धन रखने वालों के नाम बताने की दरख़्वास्तों का सिलसिला शुरू हुआ तो रक़म 23 हज़ार करोड़ रुपए बताई गई, अब जब मामला खुल कर सामने आ रहा है तो मालूम होता है कि रक़म घट कर नौ हज़ार करोड़ रुपए रह गई है.
अख़बार इस बात पर हैरान है कि वित्त मंत्रालय ये बताने को भी तैयार नहीं है कि ये नौ हज़ार करोड़ रुपए भी भारत कब आएंगे, और आएंगे भी या नहीं. अब इसे खोदा पहाड़ निकला चूहा ही कहना होगा.
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