ज़रूर पढ़ें : कटौती से क्यों डर रहे हैं बैंक ? क्या बैंकों को फटकार नहीं, रिज़र्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन के चाबुक की है ज़रूरत ?...
8 APRIL 2015
मंगलवार को रिज़र्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन की 'फटकार' के बाद भारत के अग्रणी बैंकों ने ब्याज दरों में कटौती की घोषणा की.
भारतीय स्टेट बैंक ने दर घटाकर 9.85 फ़ीसदी कर दी है.लेकिन रिज़र्व बैंक के गवर्नर को आख़िर बैंकों को फटकार क्यों लगानी पड़ी?
इस साल दो बार रिज़र्व बैंक दो बार रेपो रेट घटा चुका है. लेकिन इसके बाद भी बैंकों ने ब्याज दरों में कटौती क्यों नहीं की?
आर्थिक मामलों के जानकार का कहना है कि रिज़र्व बैंक के गवर्नर की यह फटकार जायज़ थी.
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कुछ समय पहले तक ऐसा होता था कि जब भी रिज़र्व बैंक दरें बढ़ाता था तो बैंक शाम होते-होते अपनी ब्याज दरें भी फटाफट बढ़ा देते थे.बैंकों के कामकाज की भाषा में इसे ट्रांसमिशन कहते हैं.
यह बड़ी अजीब स्थिति है कि इस साल रिज़र्व बैंक ने दो बार दरों में कटौती की लेकिन बैंकों ने अभी तक अपनी ब्याज दरों में कोई कटौती नहीं की.
इसके दो कारण हैं. पहला, बैंक ऐसे क्षेत्रों में नहीं नज़र आ रहे थे जहां उनके पैसे पर अच्छा रिटर्न हासिल हो सके या ऐसा न हो कि कर्ज़ ही डूब जाए.
दूसरी बात यह है कि बैंक जो कर्ज़ दे चुके हैं और उसकी वसूली नहीं कर पा रहे हैं .या कंपनियाँ वो कर्ज़ वापस नहीं कर पा रही हैं, इसीलिए बैंक डर रहे हैं.
इसलिए फटकार पड़नी ही चाहिए थी. केंद्र में नई सरकार बनने के बाद तो यह उम्मीद भी की जा रही थी कि आरबीआई को 'चाबुक' चलाने की ज़रूरत है.
'फटकार ज़रूरी थी'
असल में भारत की अर्थव्यवस्था में सुधार के लक्षण दिख रहे हैं, लेकिन फ़िलहाल सुधार होता हुआ साफ़ दिख नहीं रहा है.यह एक बात है कि अगर राजनीतिक संदेश देने हों तो आप कह सकते हैं कि अच्छे दिन आने वाले हैं, लेकिन उन अच्छे दिनों के लिए अर्थव्यवस्था में विकास होना चाहिए. लेकिन जबकि कंपनियां बैंकों से कर्ज़ ले रही हों, ऐसा दिख नहीं रहा.
क्योंकि अगर कंपनियां कर्ज़ लेंगी तो बाज़ार में नए रोज़गार के अवसर पैदा होंगे, लोग ईएमआई पर घर लेंगे या अन्य उत्पाद ख़रीदेंगे. ये चक्र नहीं पूरा हो रहा है. इसीलिए कंपनियां और बैंक डरे हुए हैं.
जहां तक शेयर बाज़ार का सवाल है, वो इस उम्मीद पर उछाल भर रहा है कि अच्छे दिन आएंगे.
अर्थव्यवस्था में छह बुनियादी उद्योगों का हिस्सा 38 फ़ीसदी होता है.
इसलिए जब तक इन बुनियादी उद्योगों में सुधार नहीं होता है तब तक हम शर्तिया तौर पर नहीं कह सकते कि अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है.
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