नेहरू ने 20 साल तक करवाई थी सुभाष चंद्र बोस के परिवार की जासूसी, 'गुप्त' फाइलों से हुआ खुलासा
Friday, 10 April 2015
Keyword : Netaji Subhash Chandra Bose, IB, Jawaharlal Nehru, Spy, surveillance, Congress
Netaji's relatives were spied upon for two decades, according to recent declassified documents.
After the government declassified two files on Netaji Subhash Chandra Bose, it has been revealed that Netaji's relatives were asked to be spied upon by former PM Jawaharlal Nehru for nearly twenty years, according to an India Today report. The files show that the Intelligence Bureau, which came directly under Nehru, carried the espionage activities between 1948 to 1968. Nehru was the Prime Ministers for 16 of those years.
The IB resumed British-style surveillance on his two of his homes at 1, Woodburn Park and 38/2 Elgin Road in Calcutta.
Apart from this, the IB kept a close eye on Netaji's relatives by tracking their movements and the contents of the letters they wrote and received. The sleuths were particularly interested in Netaji's nephews, sons of his brother Sarat Chandra Bose. The nephews were close to Netaji during his years as a Congress activist. They were also in touch Netaji's wife Emily Schenkl and exchanged letters with her.
The IB followed the family on domestic as well as international travels and their letters were intercepted and copied. The Bureau was keen to know whom the family met and the details of their conversation.
Anita Bose-Pfaff, Netaji's only child and a Germany-based economist has expressed shock as to why her relatives, especially her cousins were spied on, the report adds.
The report quotes BJP national spokesperson MJ Akbar speculating that the anxiety about Netaji's disappearance and even remote possibility that he might come back must have led to the spying. He believes that the Congress must have felt threatened in the possibility of Netaji's return.
While Anup Dhar, author of India's Biggest Cover-Up has said that these files were accidently declassified, the issue of declassification of files on Netaji has been a contentious one since the UPA rule.
Taking the line adopted by the previous Congress-led UPA government, Prime Minister Narendra Modi's Office had refused to disclose records related to Subhash Chandra Bose's death as it rejected the argument that there was a larger public interest involved in making them public.
The Right to Information Act allows for a public authority to disclose records which are otherwise exempt from disclosure if public interest outweighs the harm protected. Activist Subhash Agrawal had sought from the Prime Minister's Office the records related to the freedom fighter and leader of the Indian National Army to clarify the mystery surrounding his alleged death in a plane crash 70 years back.
Agrawal had also asked for information of the steps taken by the top office to make such records public and the action taken on requests seeking such documents. But toeing the line of the UPA government, the PMO had cited an exemption clause in the RTI Act which allows withholding of information that could prejudicially affect relations with a foreign country. The PMO, however, did not give the names of the countries with which the relations may get affected once the said information is made public.
Exclusive: नेहरू ने 20 साल तक करवाई थी सुभाष चंद्र बोस के परिवार की जासूसी, 'गुप्त' फाइलों से हुआ खुलासा
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू
ने करीब दो दशकों तक नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रिश्तेदारों की जासूसी
करवाई थी. गुप्त सूची से हाल ही में हटाई गईं इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) की
दो फाइलों से यह खुलासा हुआ है.
फाइलों से पता चला है कि 1948 से 1968 के बीच सुभाष चंद्र बोस के परिवार पर अभूतपूर्व निगरानी रखी गई थी. इन 20 साल में से 16 साल तक नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे और आईबी उन्हीं के अंतर्गत काम करती थी.
इंडिया टुडे' को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक, फाइलों में बोस के कोलकाता स्थित दो घरों की निगरानी का जिक्र है. इनमें से एक वुडबर्न पार्क और दूसरा 38/2 एल्गिन रोड पर था. बोस के घरों की जासूसी ब्रिटिशराज में शुरू हुई थी, लेकिन चौंकाने वाली बात है कि इसे नेहरू सरकार ने भी करीब दो दशक तक जारी रखा.
वुडबर्न पार्क स्थित बोस परिवार का घर
IB हेडक्वार्टर में फोन करते थे जासूस
इंटरसेप्टिंग और बोस परिवार की चिट्ठियों पर नजर रखने के अलावा, आईबी के जासूसों ने उनकी स्थानीय और विदेश यात्रा की भी जासूसी की. ऐसा लगता है कि एजेंसी यह जानने को आतुर थी कि बोस के रिश्तेदार किससे मिलते हैं और क्या चर्चा करते हैं. हाथ से लिखे गए कुछ संदेशों से पता चला है कि आईबी के एजेंट बोस परिवार की गतिविधियों के बारे में आईबी हेडक्वार्टर, जिसे 'सिक्योरिटी कंट्रोल' कहा जाता था, में फोन करते थे.
हालांकि इस जासूसी की वजह पूरी तरह साफ नहीं हो पाई है. आईबी ने नेताजी के भतीजों शिशिर कुमार बोस और अमिय नाथ बोस पर कड़ी निगरानी रखी. शरत चंद्र बोस के ये दोनों बेटे नेताजी के करीबी माने जाते थे. नेताजी की पत्नी एमिली शेंकल ऑस्ट्रिया में रहती थीं और शिशिर-अमिय ने उनके नाम कुछ चिट्ठियां भी लिखी थीं. इस खुलासे से बोस परिवार हैरान है. बोस के पड़पोते चंद्रकुमार बोस ने कहा, 'जासूसी उन लोगों की होती है जिन्होंने कोई अपराध किया हो या जिनके आतंकियों से संबंध हों. सुभाष बाबू और उनके परिवार ने देश की आजादी की लड़ाई लड़ी थी, उनकी जासूसी क्यों की गई?'
38/2 एल्गिन रोड स्थित घर
बोस की वापसी से डरी हुई थी कांग्रेस?
लेखक और बीजेपी प्रवक्ता एमजे अकबर मानते हैं कि इसका एकमात्र उचित स्पष्टीकरण यही है कि कांग्रेस सुभाष चंद्र बोस की वापसी से डरी हुई थी. उनके मुताबिक, 'बोस अब जिंदा हैं या नहीं, इस पर सरकार को पक्की जानकारी नहीं थी. सरकार ने सोचा होगा कि अगर वह जिंदा होंगे तो कोलकाता में अपने परिवार से संपर्क जरूर करते होंगे. लेकिन कांग्रेस के पास डरने का क्या कारण था? बोस की वापसी का देश स्वागत करता. लेकिन शायद यही डर का कारण था. बोस उस दौर में ऐसे एकमात्र करिश्माई नेता थे जो कांग्रेस के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करके 1957 के चुनाव में चुनौती पेश कर सकते थे. यह कहा जा सकता है कि अगर बोस जिंदा होते तो वह गठबंधन जिसने 1977 में कांग्रेस को हराया, वह यह काम 1962 में ही कर देते, यानी 15 साल पहले.'
ओरिजिनल फाइलों को पश्चिम बंगाल सरकार ने अब भी गुप्त रखा है. इन फाइलों पर सबसे पहली नजर इस साल जनवरी में अनुज धर की पड़ी. 'इंडियाज बिगेस्ट कवर-अप' के लेखक अनुज का मानना है कि ये फाइलें गलती से गुप्त सूची से बाहर आ गईं. वह बताते हैं, 'अमेरिका में भी ऐसा हुआ था. सीआईए की गुप्त फाइलें, जिनमें 1971 में इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में जासूसी की फाइल भी थी, सरकारी विभाग ने गलती से गुप्त सूची से बाहर कर दी थीं.'
इंडिया टुडे' को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक, फाइलों में बोस के कोलकाता स्थित दो घरों की निगरानी का जिक्र है. इनमें से एक वुडबर्न पार्क और दूसरा 38/2 एल्गिन रोड पर था. बोस के घरों की जासूसी ब्रिटिशराज में शुरू हुई थी, लेकिन चौंकाने वाली बात है कि इसे नेहरू सरकार ने भी करीब दो दशक तक जारी रखा.
वुडबर्न पार्क स्थित बोस परिवार का घर
IB हेडक्वार्टर में फोन करते थे जासूस
इंटरसेप्टिंग और बोस परिवार की चिट्ठियों पर नजर रखने के अलावा, आईबी के जासूसों ने उनकी स्थानीय और विदेश यात्रा की भी जासूसी की. ऐसा लगता है कि एजेंसी यह जानने को आतुर थी कि बोस के रिश्तेदार किससे मिलते हैं और क्या चर्चा करते हैं. हाथ से लिखे गए कुछ संदेशों से पता चला है कि आईबी के एजेंट बोस परिवार की गतिविधियों के बारे में आईबी हेडक्वार्टर, जिसे 'सिक्योरिटी कंट्रोल' कहा जाता था, में फोन करते थे.
हालांकि इस जासूसी की वजह पूरी तरह साफ नहीं हो पाई है. आईबी ने नेताजी के भतीजों शिशिर कुमार बोस और अमिय नाथ बोस पर कड़ी निगरानी रखी. शरत चंद्र बोस के ये दोनों बेटे नेताजी के करीबी माने जाते थे. नेताजी की पत्नी एमिली शेंकल ऑस्ट्रिया में रहती थीं और शिशिर-अमिय ने उनके नाम कुछ चिट्ठियां भी लिखी थीं. इस खुलासे से बोस परिवार हैरान है. बोस के पड़पोते चंद्रकुमार बोस ने कहा, 'जासूसी उन लोगों की होती है जिन्होंने कोई अपराध किया हो या जिनके आतंकियों से संबंध हों. सुभाष बाबू और उनके परिवार ने देश की आजादी की लड़ाई लड़ी थी, उनकी जासूसी क्यों की गई?'
38/2 एल्गिन रोड स्थित घर
बोस की वापसी से डरी हुई थी कांग्रेस?
लेखक और बीजेपी प्रवक्ता एमजे अकबर मानते हैं कि इसका एकमात्र उचित स्पष्टीकरण यही है कि कांग्रेस सुभाष चंद्र बोस की वापसी से डरी हुई थी. उनके मुताबिक, 'बोस अब जिंदा हैं या नहीं, इस पर सरकार को पक्की जानकारी नहीं थी. सरकार ने सोचा होगा कि अगर वह जिंदा होंगे तो कोलकाता में अपने परिवार से संपर्क जरूर करते होंगे. लेकिन कांग्रेस के पास डरने का क्या कारण था? बोस की वापसी का देश स्वागत करता. लेकिन शायद यही डर का कारण था. बोस उस दौर में ऐसे एकमात्र करिश्माई नेता थे जो कांग्रेस के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करके 1957 के चुनाव में चुनौती पेश कर सकते थे. यह कहा जा सकता है कि अगर बोस जिंदा होते तो वह गठबंधन जिसने 1977 में कांग्रेस को हराया, वह यह काम 1962 में ही कर देते, यानी 15 साल पहले.'
ओरिजिनल फाइलों को पश्चिम बंगाल सरकार ने अब भी गुप्त रखा है. इन फाइलों पर सबसे पहली नजर इस साल जनवरी में अनुज धर की पड़ी. 'इंडियाज बिगेस्ट कवर-अप' के लेखक अनुज का मानना है कि ये फाइलें गलती से गुप्त सूची से बाहर आ गईं. वह बताते हैं, 'अमेरिका में भी ऐसा हुआ था. सीआईए की गुप्त फाइलें, जिनमें 1971 में इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में जासूसी की फाइल भी थी, सरकारी विभाग ने गलती से गुप्त सूची से बाहर कर दी थीं.'
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