त्रिपुरा: सेना को मिला विशेषाधिकार ख़त्म
28*05*2015
त्रिपुरा सरकार ने सेना को विशेष अधिकार देने वाला विवादित क़ानून अाफ़्सपा को 18 साल बाद हटा दिया है.
समाचार
एजेंसी पीटीआई ने मुख्यमंत्री माणिक सरकार के हवाले से कहा है कि बुधवार
को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में इसे हटाने का फ़ैसला किया गया.मुख्यमंत्री ने कहा, "हमने प्रभावित इलाक़ों के हालात की हर छह महीने समीक्षा की. इस मामले पर राज्य पुलिस और राज्य में तैनात सुरक्षाबलों से चर्चा भी की गई."
राज्य में वामपंथी पार्टी की सरकार है.
हिंसा का दौर ख़त्म
उन्होंने कहा कि अब राज्य में हिंसा की समस्या करीब ख़त्म हो गई है. इसलिए इस क़ानून की अब कोई ज़रूरत नहीं है. हम जल्द ही इस संबंध में अधिसूचना जारी करेंगे.त्रिपुरा में अलगाववादी हिंसा बढ़ने के बाद 16 फ़रवरी 1996 को अाफ़्सपा लगाया गया था.
जिस समय आफ़्सपा राज्य में लागू किया गया था, उस समय वहां केवल 42 पुलिस थाने थे. इनमें से दो-तिहाई पुलिस थानों में ये क़ानून लागू था.
इस समय त्रिपुरा में 74 पुलिस थाने हैं. आफ़्सपा इनमें से 26 पुलिस थानों में पूरी तरह और चार में आशिंक रूप से लागू था.
क्या है आफ़्सपा
भारतीय संसद ने 11 सितंबर 1958 को आफ़्सपा क़ानून बनाया था. इसे शुरू में पूर्वोत्तर भारत के हिंसा प्रभावित इलाक़ों में लागू किया गया था.पंजाब में चरमपंथी हिंसा के दौर में आफ़्सपा वहां लागू किया गया.
सितंबर 1990 में संसद ने आफ़्सपा (जम्मू-कश्मीर) क़ानून बनाया. यह क़ानून जम्मू-कश्मीर के हिंसा प्रभावित इलाक़ों में लागू है.
हिंसा प्रभावित इलाक़ों में यह कानून सेना और अर्धसैनिक बलों को विशेष अधिकार देता है. इसके तहत वो सिर्फ़ शक़ के आधार पर किसी को भी गोली मार सकते हैं या किसी इमारत को तबाह कर सकते हैं. बिना वारंट के केवल शक के आधार पर ही किसी को गिरफ़्तार भी किया जा सकता है.
मानवाधिकार संगठन आरोप लगाते रहे हैं कि आफ़्सपा की आड़ में कई फ़र्ज़ी मुठभेड़ें हुई हैं.
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