Monday, 1 July 2013

उत्तराखंड: आपदा में फंसे बेज़ुबानों की कहानी

उत्तराखंड: आपदा में फंसे बेज़ुबानों की कहानी

 मंगलवार, 2 जुलाई, 2013 को 07:35 IST तक के समाचार


सेना के डॉक्टर घायल घोड़ों, खच्चरों की देखभाल कर रहे हैं
उत्तराखंड में आई आपदा में फँसे लाखों लोगों को बचाया जा चुका है. लेकिन बाढ़ और भूस्खलन के कारण बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों के खच्चर, घोड़े और गाय जैसे जानवार गाँवों-कस्बों में ही पीछे छूट गए हैं.
कुछ की तो क्लिक करें बाढ़ में बह कर मौत हो चुकी है लेकिन बाकी इन्हीं इलाकों में भूखे-प्यासे पिछले 15 दिनों से अटके पड़े हैं.
कुछ दिन पहले क्लिक करें उत्तराखंड में आई आपदा के दौरान नदी उस दिन उफ़ान पर थी. लोग अपनी जान बचाकर भाग रहे थे. उफनती नदी में एक बेबस खच्चर फँसा रहा गया. पहाड़ों में खच्चरों की क्या अहमियत है, ये बात स्थानीय लोगों से बेहतर कोई नहीं जानता. उन्हें यहाँ की रीढ़ माना जाता है.
ऋषिकेष में रहने वाले विक्रम सिंह राणा क्लिक करें बाढ़ पीड़ितों के लिए राहत सामग्री लेकर जा रहे थे जब उन्होंने एक खच्चर को उफनती नदी में डूबते देखा. बस विक्रम उसे बचाने के लिए नदी में कूद गए. ये काम खतरों से खाली नहीं था.
फ़ोन पर विक्रम ने क्लिक करें बीबीसी को बताया, "मैं राहत सामग्री लेकर सुबह जा रहा था. मैंने देखा कि एक खच्चर नदी में फँस गया है. मैंने उसे बचाने की ठान ली. पहली दो कोशिशें बेकार गईं. तीसरी बार में उसे बचाया जा सका."
जब मैंने उनसे पूछा कि नदी में काफी पानी था, तो क्या उन्हें अपनी जान का डर नहीं लगा, इस पर विक्रम का जवाब था, "डर तो लगा था. पर सामने एक निरीह जीव, जो बोल नहीं सकता वो डूब रहा हो, तो उसे बचाना हमारा फ़र्ज़ है. अगर मुझे कुछ हो जाता तो मैं समझता कि उसकी दुआ लगेगी परिवार को."

आक्रमक हो रहे हैं जानवर

“उत्तराखंड में जानवरों की हालत काफ़ी ख़राब है. अब सेना के हेलिकॉप्टरों की मदद से बाढ़ में फँसे जानवरों को ऊपर से चारा गिराया जा रहा है. ये जानवर कितने भूखे होंगे, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब ऊपर से चारा फेंका गया तो इन पशुओं में भी होड़ मच गई और इस चक्कर में कुछ घोड़े पहाड़ियों से गिर गए.”
क्लिक करें उत्तराखंड बाढ़ पर विशेष

घोड़े-खच्चरों की मदद से पहाड़ों में लोगों की रोज़ी रोटी चलती है
ये बात मुझे बताई मोनिका पुरी ने, जो उत्तराखंड की आपदा में फँसे जानवरों को निकालने के काम से जुड़ी हुई हैं.
सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि स्थानीय लोगों की अपुष्ट ख़बरों के मुताबिक कई जगह भूखे घोड़ों ने इंसानों पर हमला करना शुरु कर दिया है जिसके बाद प्रशासन जागा है. कार्यकर्ताओं का कहना है कि बाकी राहत कार्यों की तरह जानवरों की मदद करने में भी सेना ने बेहद उम्दा काम किया है.
कुछ संगठन मिलकर सेना की मदद से इन्हें खाना पहुँचाने और वहाँ से निकालने की कोशिश कर रहे हैं. सेना के हेलिकॉप्टरों के ज़रिए ऊपर से घोड़ों के लिए चारा गिराया जा रहा है.

पहाड़ों की रीढ़ है खच्चर

इन घोड़ों और खच्चरों को केदारनाथ और उत्तराखंड के बाकी इलाकों में लोगों की रोज़ी-रोटी का अहम जरिया माना जाता है. तीर्थयात्रा, आवाजाही, राशन लाने का काम, यहाँ तक कि चुनावी प्रक्रिया भी इनके बगैर पूरी नहीं होती.
क्लिक करें पहाड़ों से कचरा बीनती विदेशी लड़की
अपने मवेशियों से स्थानीय लोगों का बेहद लगाव भी होता है. टिहरी-गढ़वाल में रहने वले देवेंद्र नौटियाल ने बीबीसी को बताया, “केदारनाथ में बाढ़ से बचकर आए कुछ लोगों से मैं मिला था. उन्होंने बताया कि गाँव में 18 परिवार ऐसे थे जिन्होंने बाढ़ के ख़तरे के बावजूद सुरक्षित इलाक़ों में जाने से मना कर दिया क्योंकि उनके मवेशी पीछे छूट जाते. ये उनके परिवार का हिस्सा भी बन जाते हैं.”
"बाढ़ से बचकर आए कुछ लोगों से मैं मिला था. उन्होंने बताया कि गाँव में कई लोग ऐसे थे जिन्होंने बाढ़ के ख़तरे के बावजूद सुरक्षित इलाक़ों में जाने से मना कर दिया क्योंकि उनके मवेशी पीछे छूट जाते."
देवेंद्र नौटियाल, नागरिक, उत्तराखंड
'पीपल फॉर एनिमल्स'(पीएफ़ए) संगठन की टीम केदारनाथ इलाक़े में पहुँची हुई है. कई जगह तो जान जोखिम में डालकर ये लोग जानवरों की जान बचाने में लगे हैं.
'एनिमल वेलफ़ेयर बोर्ड ऑफ़ इंडिया' की कामना पांडे बाढ़ प्रभावित इलाक़ों से लौटी हैं जहाँ वे जानवरों को चारा गिरवाने का काम कर रही थीं.
उन्होंने बताया, “अनुमान है कि गौरीकुंड और केदरनाथ के इलाक़ों में करीब दो से तीन हज़ार जानवर फँसे हुए हैं. बाढ़ के समय ये घोड़े ऊँचाई वाले इलाक़ों में चले गए थे. जहाँ हरी घास है वहाँ तो ये खा पा रहे हैं. लेकिन कई घोड़े चट्टानों में फँसे हैं, जो करीब 15 दिन से भूखे हैं. पानी का बहाव अब भी काफ़ी तेज़ है और मलबा भी गिर रहा है. चारे की भी कमी है. हमें डर है कि ये कहीं एक दूसरे पर ही न हमला करने लगें क्योंकि जानवर जब बहुत भूखा होता है तो एक दूसरे को भी खा जाता है.”

कहीं छूट न जाएँ

उधर प्रशासन का कहना है कि सरकार के पास पर्याप्त चारा है और वो हर संभव कोशिश कर रही है.
पशुपालन विभाग के निदेशक डॉ. कमल महरोत्रा का दावा है, “अब तक करीब 161 क्विंटल चारा एयरड्रॉप करवाया गया है. हम उन इलाक़ों में ब्रिज बनाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि जानवरों को निकाला जा सके. लेकिन पुल बन नहीं पा रहा है. जानवरों की संख्या भी बहुत ज़्यादा है.”
पीएफ़ए कार्यकर्ता मोनिका पुरी कहती हैं कि लोगों को ये समझ में नहीं आ रहा है कि इन खच्चरों के बगैर पहाड़ में लोगों का जीवन अधूरा है.
वे कहती हैं, 'ये सही है कि इंसान की ज़िंदगी बेहद क़ीमती है. लेकिन इन खच्चरों के बिना उत्तराखंड में पर्यटन नहीं चल पाएगा. चार धाम की यात्रा संभव नहीं. कितने यात्री इन्हीं के सहारे केदारनाथ की चढ़ाई चढ़ते हैं."
जानवरों को बचाने में लगे कामना पांडे और उनके जैसे कई लोगों को डर है कि समय हाथ से निकलता जा रहा है और अगर वक़्त रहते इन जानवरों को पुल या सड़क मार्ग से नहीं निकाला गया तो ऐसा न हो कि तमाम कोशिशों के बावजूद ये जानवर दम तोड़ दें.


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