HISTORICAL DECISION BY PRESIDENT: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने ठुकरार्इं मौत की सजा पाए 6 और दया याचिकाएं |
Monday, 21 July 2014 09:47 |
नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सनसनीखेज निठारी हत्या और बलात्कार मामलों के दोषी सुरेंद्र कोली समेत मौत की सजा पाए छह अपराधियों की दया याचिकाओं को खारिज कर दिया है। सरकारी सूत्रों ने बताया कि कोली के अतिरिक्त महाराष्ट्र की रेणुकाबाई और सीमा, महाराष्ट्र के ही राजेंद्र प्रह्लादराव वासनिक, मध्य प्रदेश के जगदीश और असम के होलीराम बोरदोलोई की दया याचिकाओं को गृह मंत्रालय की सिफारिशों के बाद राष्ट्रपति ने नामंजूर कर दिया है। उत्तर प्रदेश में नोएडा के निठारी गांव में बच्चों से बलात्कार के बाद उनकी नृशंस तरीके से हत्या करने वाले 42 वर्षीय कोली को निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी। जिसे इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सही ठहराया था व बाद में सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2011 में इसकी पुष्टि की थी। पूरे देश को झकझोर कर रख देने वाले इस मामले में कोली को 2005 से 2006 के बीच निठारी में अपने नियोक्ता और कारोबारी मोनिंदर सिंह पंढेर के आवास पर बच्चों के साथ एक के बाद एक बलात्कार करने और उनकी नृशंस तरीके से हत्या करने का दोषी पाया गया था। कई लापता बच्चों के अवशेष इस मकान के पास से बरामद किए गए थे। कोली के खिलाफ 16 मामले दाखिल किए गए थे। जिनमें से उसे अभी तक चार मामलों में मौत की सजा दी गई है और बाकी मामले अभी विचाराधीन हैं। महाराष्ट्र की रहने वाली दो बहनों रेणुकाबाई और सीमा ने अपनी मां व एक अन्य सहयोगी किरण शिंदे के साथ मिलकर 1990 से 1996 के बीच 13 बच्चों का अपहरण किया और उनमें से नौ की हत्या कर दी। हालांकि अभियोजन पक्ष केवल पांच ही हत्याओं को साबित कर पाया। दोनों बहनों को मौत की सजा दी गई है। 1997 में इनकी मां की मौत होने के कारण उसके खिलाफ मामला खत्म कर दिया गया जबकि शिंदे सरकारी गवाह बन गया। दोनों बहनें अपने इलाके में गरीब लोगों के बच्चों का अपहरण करती थीं और उसके बाद उन बच्चों को चोरी और चेन झपटमारी जैसे काम करने को मजबूर करती थीं। लेकिन जब बच्चे बड़े हो जाते और चीजों को समझने लगते तो ये उनकी हत्या कर देती थीं। कुछ बच्चों के सिर कुचले हुए, गला घोंट कर मारे हुए, लोहे की सलाखों से दागे हुए और रेलवे पटरियों पर फेंके हुए पाए गए। सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त 2006 को दोनों बहनों की मौत की सजा की पुष्टि की थी। जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि फांसी दिए जाने में अनावश्यक व अनुचित
देरी मौत की सजा पाए दोषी की सजा को हल्का करने का आधार बनता है और इससे
मौत की सजा पाए 15 दोषी सजा से बच गए। तीसरा मामला महाराष्ट्र के असरा
गांव में एक बच्ची की नृशंस हत्या से जुड़ा है। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने
अक्तूबर 2012 में वासनिक को सुनाई गई मौत की सजा को बरकरार रखा था। यह
मामला यौन उत्पीड़न व पीड़ित की हत्या से जुड़ा हुआ था।
राष्ट्रपति
ने जगदीश की दया याचिका भी नामंजूर कर दी जिसे अपनी पत्नी व पांच बच्चों की
हत्या का दोषी पाया गया था। उसने एक साल से लेकर 16 साल के बीच की उम्र की
अपनी चार बेटियों व एक बेटे की हत्या कर दी थी। 24 अप्रैल 2006 को मनासा
में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने उसे मौत की सजा सुनाई थी । जिसे 2009 में
सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया। जगदीश ने अदालत से कहा कि उसकी दिमागी हालत
ठीक नहीं है और उसकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया जाए क्योंकि
मौत की सजा दिए जाने में तीन साल से अधिक का समय निकल गया है।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जगदीश के मामले में उसकी दोष सिद्धि के समय से लेकर 18 सितंबर 2009 को उसकी याचिका खारिज होने के बीच अधिक समय नहीं गुजरा है। बोरदोलोई की दया याचिका भी नामंजूर कर दी गई। जिसे दी गई मौत की सजा को सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में सही ठहराया था। बोरदोलोई ने गांव में अपनी सर्वोच्चता कायम रखने के प्रयास में गांववालों के सामने दिनदहाड़े नृशंस तरीके से एक ही परिवार के तीन लोगों की हत्या कर दी थी। 26 नवंबर 1996 को 17 लोगों के साथ मिलकर बोरदोलोई ने नारायण बोरदोलोई की झोपड़ी पर हमला किया था जो अपने भाई, पत्नी व दो बच्चों के साथ रह रहा था। जब नारायण ने झोपड़ी को भीतर से बंद कर लिया तो आरोपी व उसके साथियों ने झोपड़ी में आग लगा दी। नारायण के भाई व बड़े बेटे ने दीवार के बड़े छेद से निकल भागने का प्रयास किया लेकिन बोरदोलोई और उसके साथियों ने उन्हें वापस आग में फेंक दिया। नारायण और उसका बेटा जिंदा भस्म हो गए जबकि उसकी पत्नी गंभीर रूप से जल गई। बोरदोलोई इतने पर ही नहीं रुका। उसने बाद में पड़ोस में रह रहे नारायण के एक और भाई को बाहर घसीटा व गांववालों के सामने उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए । |
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