Editorial: नफरत का सिरा: अगर आपने हिटलर की आत्मकथा ‘मीन कैम्फ’ को पढ़ा हो तो... |
5 September 2014 11:37 |
अगर आपने हिटलर की आत्मकथा ‘मीन कैम्फ’ को पढ़ा हो तो यह समझने में शायद एक क्षण भी नहीं लगेगा कि सांप्रदायिक नफरत फैलाने के उद्देश्य से भारत में अभी ‘लव जेहाद’ के बहाने चलाए जा रहे अभियान का मूल स्रोत क्या है। हिटलर यहूदियों के बारे में यही कहता था कि ‘ये गंदे और कुटिल लोग मासूम ईसाई लड़कियों को बहला-फुसला कर, उन्हें अपने प्रेम के जाल में फंसा कर उनका खून गंदा किया करते हैं।’ हिटलर के शासन ‘थर्ड राइख’ के दुनिया के सबसे प्रामाणिक इतिहासकार विलियम एल शिरर अपनी पुस्तक ‘द राइज ऐंड फॉल ऑफ थर्ड राइख’ के पहले अध्याय में लिखते हैं- ‘हिटलर एक दिन वियना शहर के भीतरी हिस्से में घूमने के अपने अनुभव को याद करते हुए कहता है- ‘अचानक मेरा सामना बगलबंद वाला काला चोगा पहने एक भूत से हो गया! मैंने सोचा, क्या यह यहूदी है? लिंत्स शहर में तो ऐसे नहीं दिखाई देते! मैंने चुपके-चुपके उस आदमी को देखा। उसके विदेशी चेहरे, उसके नाक-नक्शे को जितना ध्यान से देखता गया, मेरे अंदर पहले सवाल ने नया रूप ले लिया। क्या वह जर्मन है?’ ‘मीन कैम्फ’ में यहूदियों की ऐसी-तैसी करने के लिए जघन्य संकेतों वाली बातें भरी हुई हैं कि यहूदी मासूम ईसाई लड़कियों को फांसते हैं और इस प्रकार उनके खून को गंदा करते हैं। इसी किताब में आगे दर्ज है- ‘अपने बुरे अंत के समय तक वह एक अंधा उन्मादी बना रहा। मौत के कुछ घंटे पहले लिखी गई अपनी अंतिम वसीयत में भी उसने युद्ध के लिए यहूदियों को जिम्मेदार ठहराया। जबकि इस युद्ध को उसी ने शुरू किया था जो अब उसे और ‘थर्ड राइख’ को खत्म कर रहा था। इस नफरत ने उस साम्राज्य के न जाने कितने जर्मनों को ग्रस लिया था। आखिरकार वह इतने बड़े पैमाने के कत्लेआम का कारण बनी और उसने सभ्यता के शरीर पर ऐसा बदनुमा दाग छोड़ दिया जो तब तक कायम रहेगा जब तक इस धरती पर इंसान रहेगा।’ यहां उल्लेखनीय है कि भारत में संघ परिवारियों के बीच हिटलर की आत्मकथा ‘मीन कैम्फ’ एक लोकप्रिय किताब है। जबकि इसे दुनिया में बहुत ही ऊबाऊ और अपठनीय किताब माना जाता है। लेकिन जर्मन इतिहासकार वर्नर मेसर के शब्दों में- ‘लोगों ने हिटलर की उस अपठनीय पुस्तक को गंभीरता से नहीं पढ़ा। अगर ऐसा किया गया होता तो दुनिया अनेक बर्बादियों से बच सकती थी।’
पूरी तरह से हिटलर के ही
नक्शे-कदम पर चलते हुए भारत में सांप्रदायिक नफरत के आधार पर एक फासिस्ट और
विस्तारवादी शासन की स्थापना के उद्देश्य से आरएसएस का जन्म हुआ था। इसके
पहले सरसंघचालक गुरु गोलवलकर के शब्दों में- ‘अपनी जाति और संस्कृति की
शुद्धता बनाए रखने के लिए जर्मनी ने देश से सामी जातियों- यहूदियों का
सफाया करके विश्व को चौंका दिया है। जाति पर गर्वबोध यहां अपने सर्वोच्च
रूप में व्यक्त हुआ है। जर्मनी ने यह भी बता दिया है कि सारी सदिच्छाओं के
बावजूद जिन जातियों और संस्कृतियों के बीच मूलगामी फर्क हो, उन्हें एक रूप
में कभी नहीं मिलाया जा सकता है। हिंदुस्तान में हम लोगों के लाभ के लिए यह
एक अच्छा सबक है।’ (एमएस गोलवलकर, वी आर आवर नेशनहुड डिफाइंड)। कथित ‘लव
जेहाद’ के मौजूदा प्रसंग से फिर यही पता चलता है कि संघ परिवार के लोग आज
भी कितनी गंभीरता से हिटलर की दानवीय करतूतों से ‘सबक’ लेकर ‘मूलगामी फर्क
वाली जातियों और संस्कृतियों के सफाए’ के घिनौने रास्ते पर चलना चाहते हैं।
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