Tuesday 24 March 2015

#Sec66A:Social Media And Section 66a स्वागत - धारा 66 ए खत्म.सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मतलब यह नहीं है कि कुछ भी लिख दें। लेकिन प्रशिक्षक के नाते यह भी बता दूं कि फालतू का जोखिम मत लीजिएगा।

#Sec66A:Social Media And Section 66a

स्वागत - धारा 66 ए खत्म.सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मतलब यह नहीं है कि कुछ भी लिख दें। 

...लेकिन प्रशिक्षक के नाते यह भी बता दूं कि फालतू का जोखिम मत लीजिएगा।एक्ट ऑफ डिफेमेशन, आईपीसी 499, सद्भाव बिगाड़ने पर लगने वाली धारा 153 ए, धार्मिक भावनाओं को आहत करने पर लगने वाली धारा 295ए, और सीआरपीसी 95ए, अश्लीलता से संबंधित धारा 292... ये सब अपनी जगह मौजूद हैं। कंटेप्ट ऑफ कोर्ट और पार्लियामेंटरी प्रिवेलेज के प्रावधान खत्म नहीं हो गए हैं। और फिर भारतीय संविधान का 19 (1) (1) भी तो है, जिसके तहत विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर 6 तरह की पाबंदियां लगाई गई हैं।


social media and section 66a


सुप्रीम कोर्ट के आईटी एक्ट से धारा 66ए को खत्म करने के निर्णय का सोशल मी‌डिया ने जमकर स्वागत किया है। वहीं सोशल मीडिया पर ऐसे भी लोग हैं जिनका मानना है कि इस कानून के खत्म होने के बाद सोशल मीडिया पर अभद्र भाषा का प्रयोग और महिलाओं या व्यक्ति विशेष से लोग बेहुदे ढंग से पेश आ सकते हैं।

गौरतलब है अभी तक आईटी एक्ट की धारा 66ए के तहत सोशल मीडिया साइट, मोबाइल या अन्य टेक्निकल डिवाइसेज से किसी के बारे में आपत्तिजनक ‌लिखने या फिर मानहानि करने पर पर उसके खिलाफ पुलिस कार्रवाई करती थी। पर सुप्रीम कोर्ट ने धारा 66ए को अभिव्‍यक्ति की स्वतंत्रता में खलल माना है। साथ ही इसे तुरंत प्रभाव से निरस्त कर दिया है।


सोशल मीडिया साइट पर  इस कानून को तो खत्‍म कर दिया गया है। पर ट्विटर एकाउंट पर ऐसे लोगों के खिलाफ कौन कार्रवाई करेगा जो महिलाओं को गाली बकते हैं। साथ ही किसी के चरित्र पर हमला करने के साथ-साथ उस पर निजी हमला करते हैं।


आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता योगेंद्र यादव ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का स्वागत किया है। उन्होंने ट्विटर पर लिखा है कि इस कानून के जरिए कई लोगों को बेवजह अपराधी बना दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मतलब यह नहीं है कि कुछ भी लिख दें। आईटी एक्ट की धारा 66ए पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आपके जोश और उत्साह का मैं आदर करता हूं। लेकिन मीडिया स्टूडेंट और प्रशिक्षक के नाते यह भी बता दूं कि फालतू का जोखिम मत लीजिएगा।

एक्ट ऑफ डिफेमेशन, आईपीसी 499, सद्भाव बिगाड़ने पर लगने वाली धारा 153 ए, धार्मिक भावनाओं को आहत करने पर लगने वाली धारा 295ए, और सीआरपीसी 95ए, अश्लीलता से संबंधित धारा 292... ये सब अपनी जगह मौजूद हैं। कंटेप्ट ऑफ कोर्ट और पार्लियामेंटरी प्रिवेलेज के प्रावधान खत्म नहीं हो गए हैं। और फिर भारतीय संविधान का 19 (1) (1) भी तो है, जिसके तहत विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर 6 तरह की पाबंदियां लगाई गई हैं। इसलिए लिखिए, लेकिन जोखिम को समझते हुए। कानून की जानकारी न होना कोई डिफेंस नहीं है।


सुप्रीम कोर्ट देता है तो थप्पर फाड़ के देता है।

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