ISRO India : MOM'S Last Salute To Mars
मंगलयान को मंगल की परिक्रमा करते हुए आज मंगलवार को छह महीने पूरे हो रहे हैं। इसी के साथ भारत का मंगल मिशन भी आधिकारिक रूप से खत्म हो रहा है। वैसे, मंगलयान अपना काम जारी रखेगा और इसकी भेजी हुई सूचनाओं पर इसरो काम करता रहेगा। भारत ने पहली बार और पहले ही प्रयास में अपने दम पर पिछले साल 24 सितंबर की सुबह मंगलयान को मंगल की कक्षा में स्थापित किया था।
भारत की इस कामयाबी ने स्पेस साइंस के मामले में देश को एक नए मुकाम पर पहुंचा दिया। पूरी दुनिया ने एक सुर में भारत की इस कामयाबी को सराहा था। इस मुहिम पर अन्य देशों के मुकाबले भारत ने करीब एक चौथाई पैसा ही खर्च किया और अमेरिका के मुकाबले 10 गुना कम।
मॉम ने मंगल से यह तस्वीर हाल ही मेें भेजी है
दांव पर थी साख
इस प्रॉजेक्ट से भारत की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई थी। अभी तक अमेरिका, रूस और यूरोप के कुछ देश (संयुक्त रूप से) ही मंगल की कक्षा में अपने यान भेज पाए हैं। चीन और जापान इस कोशिश में अब तक कामयाब नहीं हो सके हैं। रूस भी अपनी कई असफल कोशिशों के बाद इस मिशन में सफल हो पाया है। अब तक मंगल को जानने के लिए शुरू किए गए दो तिहाई अभियान नाकाम साबित हुए हैं।
भारत के मंगल मिशन को सरकार ने 3 अगस्त 2012 को मंजूरी दी थी। वैसे, इसके लिए 2011-12 के बजट में ही फंड का प्रावधान कर दिया गया था। मंगलयान और इसको ले जाने वाले रॉकेट का विकास इसरो के साइंटिस्ट्स ने पूरी तरह अपने दम पर किया था। इस अभियान को मार्स ऑर्बिटर मिशन ( मॉम) नाम दिया गया।
ऐतिहासिक दिन
मंगलयान को पहले अक्टूबर 2013 में छोड़े जाने की योजना थी, लेकिन मौसम खराब होने के कारण इसे टाल दिया गया। फिर इसरो ने पिछले साल 5 नवंबर 2013 को इसे दिन में 2 बजकर 36 मिनट पर छोड़ने का फैसला किया। इसके बाद मंगलयान पिछले साल 24 सितंबर को मंगल की कक्षा में पहुंचा। मंगलयान को इसरो के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से पोलर सैटलाइट लॉन्च वीइकल (पीएसएलवी) सी-25 की मदद से छोड़ा गया। इस वीइकल की लागत 110 करोड़ रुपये से कुछ ज्यादा थी और इसका वजन 1350 किलो था।
मॉम की भेजी एक और तस्वीर
यह था मकसद
मंगलयान को सफलतापूर्वक छोड़कर भारत अंतरिक्ष के मामले में अपनी टेक्नॉलजी का लोहा मनवाना चाहता था। इसके साथ ही वह अपनी वैज्ञानिक उत्सुकता को भी शांत करना चाहता था। मंगलयान के जरिए भारत मंगल ग्रह पर जीवन के सूत्र तलाशने के साथ ही वहां के पर्यावरण की जांच करना चाहता था। वह यह भी पता लगाना चाहता था कि लाल ग्रह पर मीथेन मौजूद है कि नहीं। इसके लिए मंगलयान को करीब 15 किलो वजन के कई अत्याधुनिक उपकरणों से लैस किया गया। इसमें कई पावरफुल कैमरे भी शामिल थे। मंगलयान की कामयाबी से इसरो को कई देशों के सैटलाइट्स छोड़ने के ऑफर मिले हैं।
भारत के पहले मंगलयान ने मंगल की कक्षा में 6 महीने पूरे कर सफलता का
इतिहास रच दिया है। मंगलयान के 6 महीनों के सफल सफ़र ने दुनिया में भारत का
मान बढ़ाया है।
24 सिंतबर 2014 को रोबोटिक मिशन मंगल की कक्षा में पहुंचा। वो एक ऐतिहासिक पल था। इसके साथ ही भारत दुनिया का ऐसा पहला देश बन गया जिसने मंगल मिशन की पहली कोशिश में ही कामयाबी हासिल की। इसकी लागत भी दूसरे ग्रह में भेजे गए दुनिया के किसी भी स्पेस मिशन के मुक़ाबले बहुत कम थी, सिर्फ़ 450 करोड़ रुपये।
मंगलयान अब भी पूरी मज़बूती से काम कर रहा है। इसमें लगे सभी पांचों उपकरण सही तरह से काम कर रहे हैं और इसमें 37 किलो ईंधन अब भी बाकी है। मंगल की कक्षा में चक्कर लगाने के लिए हर साल 2 किलो ईंधन की ज़रूरत पड़ती है इसलिए ये मंगल की कक्षा में सालों चक्कर लगाता रहेगा।
मंगलयान को बनाने वाले इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन यानी इसरो ने अपना काम को बख़ूबी अंज़ाम दिया है। इसकी मदद से मंगल से जुड़े पर्याप्त आंकड़े हासिल किए जा चुके हैं जिनका विश्लेषण हो रहा है। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि हाई रेडिएशन वाले वातावरण और लंबे ग्रहण का सामना करते हुए ये कब तक काम कर पाएगा?
आपको बता दें कि प्रतिष्ठित 'टाइम' पत्रिका ने भारत के 'मंगलयान' को 2014 के सर्वश्रेष्ठ आविष्कारों में शामिल किया है और इसे प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक ऐसी उपलब्धि बताया है, जो भारत को अंतर-ग्रहीय अभियानों में पांव पसारने का मौका प्रदान करेगी। 'टाइम' ने मंगलयान को 'द सुपरमार्ट स्पेसक्राफ्ट' की संज्ञा दी है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने 24 सितंबर 2014 को मंगलयान को मंगल की कक्षा में प्रवेश कराया था और इसी के साथ भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया था, जो मंगल तक पहुंचे हैं।
मॉम का मंगल को आखिरी सलाम.भारत के मंगलयान ने पूरा किया 6 महीने का सफ़र, सालों मंगल के चक्कर लगाता रहेगा
Mar 24, 2015
नई दिल्ली
मंगलयान को मंगल की परिक्रमा करते हुए आज मंगलवार को छह महीने पूरे हो रहे हैं। इसी के साथ भारत का मंगल मिशन भी आधिकारिक रूप से खत्म हो रहा है। वैसे, मंगलयान अपना काम जारी रखेगा और इसकी भेजी हुई सूचनाओं पर इसरो काम करता रहेगा। भारत ने पहली बार और पहले ही प्रयास में अपने दम पर पिछले साल 24 सितंबर की सुबह मंगलयान को मंगल की कक्षा में स्थापित किया था।
भारत की इस कामयाबी ने स्पेस साइंस के मामले में देश को एक नए मुकाम पर पहुंचा दिया। पूरी दुनिया ने एक सुर में भारत की इस कामयाबी को सराहा था। इस मुहिम पर अन्य देशों के मुकाबले भारत ने करीब एक चौथाई पैसा ही खर्च किया और अमेरिका के मुकाबले 10 गुना कम।
मॉम ने मंगल से यह तस्वीर हाल ही मेें भेजी है
दांव पर थी साख
इस प्रॉजेक्ट से भारत की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई थी। अभी तक अमेरिका, रूस और यूरोप के कुछ देश (संयुक्त रूप से) ही मंगल की कक्षा में अपने यान भेज पाए हैं। चीन और जापान इस कोशिश में अब तक कामयाब नहीं हो सके हैं। रूस भी अपनी कई असफल कोशिशों के बाद इस मिशन में सफल हो पाया है। अब तक मंगल को जानने के लिए शुरू किए गए दो तिहाई अभियान नाकाम साबित हुए हैं।
भारत के मंगल मिशन को सरकार ने 3 अगस्त 2012 को मंजूरी दी थी। वैसे, इसके लिए 2011-12 के बजट में ही फंड का प्रावधान कर दिया गया था। मंगलयान और इसको ले जाने वाले रॉकेट का विकास इसरो के साइंटिस्ट्स ने पूरी तरह अपने दम पर किया था। इस अभियान को मार्स ऑर्बिटर मिशन ( मॉम) नाम दिया गया।
ऐतिहासिक दिन
मंगलयान को पहले अक्टूबर 2013 में छोड़े जाने की योजना थी, लेकिन मौसम खराब होने के कारण इसे टाल दिया गया। फिर इसरो ने पिछले साल 5 नवंबर 2013 को इसे दिन में 2 बजकर 36 मिनट पर छोड़ने का फैसला किया। इसके बाद मंगलयान पिछले साल 24 सितंबर को मंगल की कक्षा में पहुंचा। मंगलयान को इसरो के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से पोलर सैटलाइट लॉन्च वीइकल (पीएसएलवी) सी-25 की मदद से छोड़ा गया। इस वीइकल की लागत 110 करोड़ रुपये से कुछ ज्यादा थी और इसका वजन 1350 किलो था।
मॉम की भेजी एक और तस्वीर
यह था मकसद
मंगलयान को सफलतापूर्वक छोड़कर भारत अंतरिक्ष के मामले में अपनी टेक्नॉलजी का लोहा मनवाना चाहता था। इसके साथ ही वह अपनी वैज्ञानिक उत्सुकता को भी शांत करना चाहता था। मंगलयान के जरिए भारत मंगल ग्रह पर जीवन के सूत्र तलाशने के साथ ही वहां के पर्यावरण की जांच करना चाहता था। वह यह भी पता लगाना चाहता था कि लाल ग्रह पर मीथेन मौजूद है कि नहीं। इसके लिए मंगलयान को करीब 15 किलो वजन के कई अत्याधुनिक उपकरणों से लैस किया गया। इसमें कई पावरफुल कैमरे भी शामिल थे। मंगलयान की कामयाबी से इसरो को कई देशों के सैटलाइट्स छोड़ने के ऑफर मिले हैं।
भारत के मंगलयान ने पूरा किया 6 महीने का सफ़र, सालों मंगल के चक्कर लगाता रहेगा
24 सिंतबर 2014 को रोबोटिक मिशन मंगल की कक्षा में पहुंचा। वो एक ऐतिहासिक पल था। इसके साथ ही भारत दुनिया का ऐसा पहला देश बन गया जिसने मंगल मिशन की पहली कोशिश में ही कामयाबी हासिल की। इसकी लागत भी दूसरे ग्रह में भेजे गए दुनिया के किसी भी स्पेस मिशन के मुक़ाबले बहुत कम थी, सिर्फ़ 450 करोड़ रुपये।
मंगलयान अब भी पूरी मज़बूती से काम कर रहा है। इसमें लगे सभी पांचों उपकरण सही तरह से काम कर रहे हैं और इसमें 37 किलो ईंधन अब भी बाकी है। मंगल की कक्षा में चक्कर लगाने के लिए हर साल 2 किलो ईंधन की ज़रूरत पड़ती है इसलिए ये मंगल की कक्षा में सालों चक्कर लगाता रहेगा।
मंगलयान को बनाने वाले इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन यानी इसरो ने अपना काम को बख़ूबी अंज़ाम दिया है। इसकी मदद से मंगल से जुड़े पर्याप्त आंकड़े हासिल किए जा चुके हैं जिनका विश्लेषण हो रहा है। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि हाई रेडिएशन वाले वातावरण और लंबे ग्रहण का सामना करते हुए ये कब तक काम कर पाएगा?
आपको बता दें कि प्रतिष्ठित 'टाइम' पत्रिका ने भारत के 'मंगलयान' को 2014 के सर्वश्रेष्ठ आविष्कारों में शामिल किया है और इसे प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक ऐसी उपलब्धि बताया है, जो भारत को अंतर-ग्रहीय अभियानों में पांव पसारने का मौका प्रदान करेगी। 'टाइम' ने मंगलयान को 'द सुपरमार्ट स्पेसक्राफ्ट' की संज्ञा दी है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने 24 सितंबर 2014 को मंगलयान को मंगल की कक्षा में प्रवेश कराया था और इसी के साथ भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया था, जो मंगल तक पहुंचे हैं।
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